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छत्तीसगढ़ एक खोज : उनसठवीं कड़ी : प्रवीर चंद्र भंजदेव एक अभिशप्त नायक या आदिवासियों के देव पुरुष एक डॉक्टर का बयान
12-Mar-2022 12:38 PM
छत्तीसगढ़ एक खोज : उनसठवीं कड़ी  : प्रवीर चंद्र भंजदेव एक अभिशप्त नायक या आदिवासियों के देव पुरुष  एक डॉक्टर का बयान

-रमेश अनुपम

9. यह कि इस समय तक पुलिस पर्याप्त शक्तिशाली हो गई थी, क्योंकि अत्यधिक संख्यां में सशस्त्र पुलिस वाले जिनके पास बंदूकें लाठियां और ढाल थे वहां पहुंच चुके थे और तत्पश्चात वे सशस्त्र पुलिस वाले अत्यधिक फायर करते हुए और बहुत अश्रु गैस छोड़ते हुए महल के मुख्य द्वार से प्रसाद क्षेत्र में प्रविष्ट हुए।

10. यह कि तत्पश्चात यह सुना गया कि एक सशस्त्र पुलिस का हवलदार घायल हो गया और लॉकअप रक्षक हेड कांस्टेबल भी घायल हुआ है। फिर सशस्त्र पुलिस वाले मुख्य प्रसाद स्थल के भीतर गए और रुक-रुक कर अंधाधुंध गोली चालन निरंतर दिनांक 26.3.1966 के प्रात: 4:00 बजे तक करते रहे।

11. यह कि 25 .3.1966 को रात्रि के लगभग 11.30 बजे तक निरंतर अंधाधुंध गोली चालन की ध्वनि राजप्रसाद के भीतर सुनी जाती रही।

12. यह कि सशस्त्र पुलिस बल द्वारा दिनांक 25.3. 1966 के 11.30 बजे मध्यान्ह से दिनांक 26 .3.1966 की सुबह लगभग 4.00 बजे तक जो प्रभूत, निरंतर तथा रुक-रुक कर राजप्रसाद के भीतर गोली चालन किया गया। वहां जिस प्रकार और जितना गोली चालन हुआ उसको कदापि न्याय संगत नहीं कहा जा सकता है।

13. यह कि पुलिस द्वारा इस स्थिति पर काबू पाने के लिए जितनी शक्ति का उपयोग किया गया वह आवश्यकता और सीमा से अधिक थी।

14. यह कि रात्रि में इस घटना से संबंधित अधिकारियों और पुलिस वालों ने राजप्रसाद के चारों मुख्य द्वारों पर एक-एक सर्च लाइट लगा दी थी, जिसका प्रकाश राजप्रसाद की ओर जाता था उक्त रात्रि में राज प्रसाद के भीतर अंधकार था।

15. यह कि मैं अपने उपरोक्त वक्तव्य की पुष्टि हेतु लगभग 50 साक्षियों का साक्ष्य दूंगा और इन साक्षियों को जांच के समय प्रस्तुत करूंगा। में पुलिस के अवैधानिक कार्यकलापों के कारण उन साक्षियों की नामावली अपने इस वक्तव्य के साथ नहीं प्रकट करना चाहता।

पूर्व में दिए गए एक शिक्षा शास्त्री और एक चिकित्सक के बयान को गंभीरतापूर्वक पढ़े जाने की आवश्यकता है। इन दोनों बयानों के अतिरिक्त एडवोकेट गोरेलाल झा द्वारा शासकीय अधिकारियों से किए गए जिरह पर भी गौर किए जाने की जरूरत है।

इन बयानों से यह है स्पष्ट हो जाता है कि 25 मार्च सन 1966 को बस्तर राजमहल में जो दुर्भाग्यपूर्ण गोलीकांड हुआ है वह अनावश्यक था। इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को आसानी के साथ टाला भी जा सकता था। महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव और अनेक बेकसूर आदिवासियों की मौत केवल शासन प्रशासन के अविवेकपूर्ण निर्णय का ही एक घातक परिणाम था।

क्या बस्तर गोलीकांड शासन-प्रशासन का एक पूर्व नियोजित षड्यंत्र नहीं था? आदिवासियों के देवतुल्य महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव को सदा-सदा के लिए चुप करवा दिए जाने की क्या यह कोई गहरी साजिश नहीं थी?

बस्तर के आदिवासियों की पीड़ा और शोषण को लेकर सरकार से सवाल जवाब करना क्या कोई जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है ?

स्वतंत्रता के पश्चात भी बस्तर के आदिवासियों को न्याय नहीं मिल पाना, उनके जल, जंगल और जमीन को गैर आदिवासियों द्वारा लूटा जाना न्यायोचित है ?

मालिक मकबूजा के नाम पर उनके बेशकीमती पेड़ों को औने-पौने दामों में बिचौलियों द्वारा खरीदना, अपने पीने के लिए बनाए गए महुवा से बने शराब को जब्त कर उन्हें पुलिस द्वारा प्रताडि़त किया जाना, क्या एक लोकतांत्रिक सरकार को शोभा देता है?

अगर आजादी के बाद हमारे द्वारा चुनी गई सरकारें आदिवासियों के हितों का ध्यान रखती। उन्हें हर तरह की लूट और शोषण से बचाए रखने की कोशिश करती, तो बस्तर जैसा वीभत्स गोली कांड की कभी नौबत ही नहीं आती।

बस्तर महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के विषय में अक्सर यह प्रचारित किया जाता रहा है कि उनका मानसिक संतुलन ठीक नहीं था। महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के विक्षिप्त होने के संबंध में अनेक प्रकार के झूठे किस्से भी गढ़े गए हैं। बस्तर के आदिवासियों को शासन-प्रशासन की खिलाफ उकसाने के अनेक अफसाने भी उनके विरुद्ध लिखे गए हैं।

महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की शिक्षा-दीक्षा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुई थी। वे काफी पढ़े-लिखे थे।उनकी अपनी एक समृद्ध लाइब्रेरी भी राजमहल में थी।

21, 22 तथा 23 अक्टूबर सन् 1950 में तीन दिवसीय मध्य प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन का चतुर्दश वार्षिक अधिवेशन जो बस्तर महाराजा के राजमहल में संपन्न हुआ उसके वे स्वागत समिति के अध्यक्ष भी थे। इस अधिवेशन की सारी जिम्मेदारी महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के द्वारा उठाई गई थी।

डॉ . सुनीति कुमार चैटर्जी, आचार्य क्षिति मोहन सेन, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, भदंत आनंद कौशल्यायन , डॉ. बाबूराम सक्सेना, डॉ . बलदेव प्रसाद मिश्र, भवानी प्रसाद मिश्र जैसी महान विभूतियां उस अधिवेशन में सम्मिलित थे।

ऐसी महान विभूति को मानसिक रूप से विक्षिप्त घोषित किया जाना किस तरह की मानसिकता का परिचायक है? इसे आसानी से समझा जा सकता है।

बस्तर महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव साहित्यिक एवं अध्यात्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे। उन्होंने ‘योग के आधार’
(सिंघई प्रेस जबलपुर), ‘योग तत्व’ तथा ‘भगवत तत्व’
(राजेंद्र प्रेस चारामा) ‘लोहंडीगुड़ा तरंगिनी’ तथा ‘आई प्रवीर द आदिवासी गॉड’ (लक्ष्मी प्रिंटिंग प्रेस रायपुर) जैसी महत्वपूर्ण कृतियों की रचना की थी।

ऐसे संवेदनशील प्रवीर चंद्र भंजदेव की छवि को धूमिल करने वाले कभी क्षमा के पात्र नहीं हो सकते हैं।

शेष अगले सप्ताह बस्तर से एक ग्राउंड रिपोर्ट..

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