विचार / लेख
-मनोरमा सिंह
आज लोकसभा में कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी ने सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर बड़ा बयान दिया, उन्होंने कहा कि फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। राजनीतिक एजेंडे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। फेसबुक के जरिए सामाजिक सौहार्द खत्म करने की कोशिशें की जा रही हैं और लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश रची जा रही है। सत्ता की मिली भगत से सामाजिक सौहार्द खराब किया जा रहा है। इस तरह की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की जरूरत है।
लेकिन क्या सोनिया गाँधी ने ऐसे ही ये कहा है? कल -परसों से मीडिया में इस आशय की ख़बरें हैं, जिनके मुताबिक कई बाते हैं जिस पर गौर किया जाना चाहिए जैसे, फेसबुक ने बीजेपी से चुनावी विज्ञापनों के लिए दूसरों की तुलना में कम शुल्क लिया, कम शुल्क के कारण भाजपा को फेसबुक का सबसे बड़ा राजनीतिक ग्राहक होने में मदद मिली और कम पैसे में अधिक मतदाताओं तक पहुंचने की सहुलियत मिली। गौरतलब है कि भारत में फेसबुक का सबसे बड़ा राजनीतिक क्लाइंट बीजेपी है।
बहरहाल, भारत की एक गैर-लाभकारी मीडिया संगठन,द रिपोर्टर्स कलेक्टिव (TRC), और ad.watch, के द्वारा सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापनों के अध्ययन की एक शोध परियोजना के तहत फरवरी 2019 और नवंबर 2020 के बीच एड लाइब्रेरी एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई), मेटा प्लेटफॉर्म्स इंक के 'पारदर्शिता' टूल के माध्यम से डेटा एक्सेस करते हुए, जो अपने प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक विज्ञापन डेटा तक पहुंच की अनुमति देता है, फेसबुक पर डाले गए 536,070 राजनीतिक विज्ञापनों के डेटा का विश्लेषण किया गया और इस आधार पर निष्कर्ष दिया गया कि 22 महीने की कुल अवधि और 10 चुनावों के दौरान के विज्ञापन खर्च के विश्लेषण के अनुसार, फेसबुक का एल्गोरिदम अन्य राजनीतिक दलों के मुकाबले भाजपा को सस्ते दर पर विज्ञापन अनुबंध प्रदान करता है। 2019 के केंद्र के चुनावों सहित, 10 में से नौ चुनावों में, जिसमें भाजपा ने जीत हासिल की, पार्टी से अपने विरोधियों की तुलना में विज्ञापनों के लिए कम शुल्क लिया गया। इसके कारण बीजेपी को कम पैसे में ज्यादा से ज्यादा वोटर्स तक पहुंचने में मदद मिलती है, जिससे इसे चुनाव अभियानों में पैर जमाने में मदद मिलती है।
इसके अलावा ये भी रिपोर्ट है कि रिलायंस-वित्त पोषित फर्म ने विज्ञापनों के माध्यम से फेसबुक पर भाजपा समर्थक टॉकिंग पॉइंट्स को ऊपर उठाने में मदद की। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, NEWJ ( न्यू इमर्जिंग वर्ल्ड ऑफ जर्नलिज्म लिमिटेड) के लिए फेसबुक पर विज्ञापनों की एक श्रृंखला के लिए भुगतान किया गया जिसके तहत नरेंद्र मोदी और भाजपा की छवि को चमकाने और विपक्ष की छवि धूमिल करने के लिए टारगेटेड कंटेंट बनाये और चलाये गए।
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव (TRC) ने अपनी जाँच में पाया कि NEWJ, ( न्यू इमर्जिंग वर्ल्ड ऑफ जर्नलिज्म लिमिटेड) Jio Platforms Ltd की एक सहायक कंपनी है - जिसका स्वामित्व रिलायंस समूह के मुकेश अंबानी के पास है।
इस सन्दर्भ में तीसरी गौर करने वाली खबर ये है कि 23 फेसबुक घोस्ट एडवरटाइजर्स ने बीजेपी के 'प्रमोशन' में 5 करोड़ रु खर्च किये, इसके द्वारा कुल 34,884 राजनीतिक विज्ञापनों ने विपक्ष की रीच को कम करके 22 महीनों में 10 चुनावों में भाजपा की पहुंच को दोगुना कर दिया।
बाकी आप द रिपोर्टर्स कलेक्टिव (TRC) की रिपोर्ट में विस्तार से पढ़ सकते हैं, और हां आप चाहें तो अब भी तसल्ली दे सकते हैं खुद को कि ये 1947 से पहले की गुलामी और उससे पहले का कंपनी राज का दौर नहीं है, बल्कि 2014 में जो हासिल हुई उस नई आज़ादी के दौर का है।