विचार / लेख
-रमेश अनुपम
आजकल झूठ को भी सच का लिबास पहनाकर, इस खूबसूरती और सुनियोजित प्रचार-प्रसार के साथ पेश किया जा रहा है कि आप इसे ही सच मान लें। वैसे भी आज झूठ ही सच है और सच झूठ।
इतिहास में जाने की या उसे गंभीरतापूर्वक पढऩे या समझने की हिमाकत इन दिनों चलन से बाहर है। इतिहास को अब अपने-अपने ढंग से तोड़-मरोड़ कर फायदे या नुकसान की दृष्टि से लिखे जाने का दौर है ताकि तथाकथित हिंदू नजरिए से देश को अधिक सांप्रदायिक, अधिक कट्टर और अधिक मुस्लिम ईसाई विरोधी बनाकर वोट बैंक में इजाफा किया जा सके।
कश्मीर को हम कितना जानते हैं ? ‘कश्मीर फाइल्स’ को इन दिनों जानबूझकर प्रचारित किया जा रहा है। कश्मीरी पंडित का मुद्दा एक पार्टी विशेष के लिए बेहद फायदेमंद है।
जिन लोगों ने अशोक कुमार पांडेय की किताब ‘कश्मीर नामा’ (राजपाल एंड संस) और ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ (राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली) नहीं पढ़ी है उन्हें यह जरूर पढऩी चाहिए। ये दोनों किताबें बेहद परिश्रम के साथ इतिहास और उपलब्ध तथ्यों का परीक्षण करते हुए ईमानदारी के साथ लिखी गई हैं।
इसलिए ’कश्मीर फाइल्स’ में दिखाई गई घटनाओं और दृश्यों को भी अगर हम झूठ के चश्मे से देखेंगे तो गड़बडिय़ां तो होंगी ही और हम जाने अनजाने कट्टरपंथियों की साजिश का एक हिस्सा बन जायेंगे।
कश्मीर में 370 हटाए जाने के एक साल बाद कश्मीर में कितनी शांति बहाल हुई है और कश्मीर में कितना विकास इससे हुआ है, यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए?
कश्मीर को मिली हुई स्वायत्तता कश्मीर की जनता के लिए कितनी जरूरी थी इसे भी हमने समझने की कोशिश नहीं की है। इसे भी हम तथाकथित हिंदू धर्म के चश्मे से ही देखने और समझने की कोशिश करते हैं ।
कश्मीर को लेकर हमारे पास जो भी ज्ञान है वह बेहद अधकचरा है। घाटी में रहने वाले 96 फीसदी कश्मीरी मुसलमान केवल मेहनत मजदूरी करने और कालीन बुनने के लिए ही पैदा हुए है।
370 और 35 ए हटाए जाने के बाद इन 96 फीसदी गरीब मुसलमानों की जमीन अब देश के बड़े पूंजीपति कौडिय़ों के भाव में खरीद सकेंगे।
वैसे भी कश्मीर के गरीब मुसलमान राजा हरिसिंह से लेकर आज तक केवल मजदूरी करने के लिए ही पैदा हुए हैं। राज तो उन पर 4 फीसदी कश्मीरी पंडित ही करते रहें हैं जो बड़े-बड़े सरकारी ओहदों में विराजमान थे।
अशोक कुमार पाण्डेय ने अपनी किताब ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ में गजेटियर और अनेक साक्ष्यों के आधार पर यह प्रमाणित किया है कि 1981 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर में कुल 1,32,453 (एक लाख बत्तीस हजार चार सौ तिरपन) कश्मीरी पंडित थे। जिसमें से लगभग 1,24,000 (एक लाख चौबीस हजार) कश्मीरी पंडितो ने जगमोहन राज में बहकावे में आकर कश्मीर छोड़ दिया था।
इसके साथ ही पचास हजार कश्मीरी मुसलमानों ने भी उस समय कश्मीर छोड़ दिया था। जिसकी चर्चा आज कोई नहीं करता है। केवल कश्मीरी पंडितों के पलायन का ही राग बजाया जाता है।
आज तथाकथित अंधभक्त कश्मीरी पंडितों की संख्या जिन्होंने कश्मीर से पलायन किया था कोई पांच लाख बता रहा है, तो कोई दस लाख। जबकि कश्मीर में उनकी कुल आबादी ही 1,32, 453 (एक लाख बत्तीस हजार चार सौ तिरपन मात्र थी )
हमारे देश में वैसे भी कौवा कान लेकर भाग गया सुनकर कौवा के पीछे भागने वाले व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से दीक्षित युवाओं और अंध भक्तों की कमी नहीं है, जो न कश्मीर का इतिहास जानते हैं और न ही अपने इस महान देश भारत की गौरवशाली विरासत को।
वैसे भी उन्हें अपने देश और समाज से क्या मतलब है? उनके अनपढ़ और अज्ञानी गुरु जो स्वयं इस देश की गौरवशाली परंपरा और संस्कृति को नहीं जानते हैं उनके अंधभक्त शिष्य उन्हीं का अनुकरण करने में ही अपनी भलाई समझते हैं।