विचार / लेख

गांधी अपनी पहचान के लिए किसी विदेशी फिल्म के मोहताज नहीं हैं...
20-Mar-2022 5:40 PM
गांधी अपनी पहचान के लिए किसी विदेशी फिल्म के मोहताज नहीं हैं...

-समीर चौगांवकर

1930 में महात्मा गांधी जेल में थे और उसी साल दिसंबर 1930 में अपनी पत्रिका के लिए ‘मैन ऑफ द ईयरज्  (वर्ष का व्यक्तित्व) के चुनाव के लिए टाइम के संपादकों की एक बैठक हुई। जो लोग टाइम पर्सन ऑफ द ईयर के लिए दावेदार थे उसमें गोल्फ खिलाड़ी ‘बॉबी जोन्स’ जिसने चार प्रमुख चैम्पियनशिप जीते थे, दूसरे ‘सिनक्लेयर लेविस’ जो 1929 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले अमेरिकी थे, तीसरे शख्सियत थे ‘जोसेफ स्टालिन’ जो पोलित ब्यूरो में अपने सारे प्रतिस्पर्धिर्यो को परास्त करते हुए अब 15 करोड़ लोगों के भाग्य का संपूर्ण रूप से स्वामी थे और चौथे दावेदार के रूप में दूनिया का सबसे खतरनाक अपराधी ‘अल कोपेन’ था जो 1930 में ही जेल से रिहा किया गया था। महात्मा गांधी का नाम इन चार नामों जिन पर विचार होना था, में नहीं था।

टाइम के संपादकों ने जब ‘टाइम पर्सन ऑफ द ईयरज् के लिए विचार करना शुरू किया तो संपादकों ने एक स्वर में महसूस किया कि इन चारो दावेदारों के बाहर पूरी दुनिया में एक ऐसा व्यक्ति भी है जिसके विराट व्यक्तित्व और अपार लोकप्रियता का सिर्फ हिन्दुस्तान ही नहीं दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है। टाइम के संपादकों ने माना कि हिन्दुस्तान के जेल में बंद उस अर्धनग्न आदमी ने 1930 में विश्व इतिहास पर इतनी गहरी छाप छोड़ी है कि उसका मुकाबला किसी से नहीं किया जा सकता। इस अकेले व्यक्ति ने अपने अहिंसा और  सत्याग्रह से अंग्रेजी सरकार के भीमकाय शरीर में करंट और कंपकंपी पैदा कर दी हैं।
उसी साल 1930 में ही गांधी की आत्मकथा  ‘महात्मा गांधी: हिज ओन स्टोरी’ के नाम से अमेरिका में  मैकमिलन द्वारा प्रकाशित किया गया था। टाइम पत्रिका  ने गांधी की आत्मकथा को असाधारण रूप से स्पष्टवादी करार दिया जबकि उस दौर में प्रथम विश्वयुद्ध के वरिष्ठ सेनानायकों, मशहूर नायिकाओं और दुनिया के जाने माने राजनीतिज्ञों की आत्मकथाओं की बाढ़ आई हुई थी।

टाइम पत्रिका  ने अपनी संपादकीय में लिखा कि गांधी की आत्मकथा पढ़ते वक्त पाठक बहुत सारी सनसनीखेज घटनाओं, आश्चर्यो, सहानुभूतियों और प्रशंसाओं का अनुभव करेंगे, लेकिन आखिरकार उनके मन में प्रशंसा ही बची रह जाएंगी जब वह याद करेगा कि कितने कम आत्मकथा लेखकों ने अपने निजी जीवन की कमजोरियों को छुपाने का कोई प्रयास नहीं किया।

और इस तरह वर्ष 1930 के लिए मोहन दास करमचंद गांधी को टाइम पत्रिका की तरफ से ‘मैन आफ द ईयर’ चुना गया। 1931 मे टाइम का अंक छपकर बाहर आया तब भी गांधी जेल में थे। टाइम मैगजीन का अंक हाथों हाथ बिक गया और टाइम के संपादकों पर इस बात का दबाव था कि वह और अंक प्रकाशित करें।

1940 आते आते हमारे बापू पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो चुके थे। महात्मा गांधी ने कभी भी अमेरिका की धरती पर कदम नहीं रखा, लेकिन उनका लिखा सबसे ज्यादा अमेरिका में पढ़ा जाता था। दुनिया के तमाम बड़े अखबार महात्मा गांधी पर संपादकीय लिखते थे। दुनिया का हर बड़ा व्यक्ति महात्मा गांधी से मिलने को बेचैन और उत्सुक रहता था।

महात्मा की यही महानता थी और इसलिए हमारे राष्ट्रपिता हमारे लिए और दुनिया के लिए सम्माननीय हैं और रहेंगे।

गांधी अपनी पहचान के लिए किसी विदेशी के बनाई फिल्म के मोहताज नहीं हैं।

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