विचार / लेख
21 मार्च विश्व वानिकी दिवस पर वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्ढा ने लिखा
जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो यह माना जाता है कि भगवान अभी मानव जाति से नाराज नहीं, असीम प्यार रखता है। छतीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व में तो अपवाद स्वरूप बाइसन मां दो नवजात शावकों के संग वीडियो रिकार्ड की गई। अर्थात इस पार्क के संवारने में प्रकृति मां का स्नेह बरकरार है।
लेकिन जब तक अधिकारी दफ्तर में रहेंगे तो पार्क के हालात से कैसे वाकिफ होंगे? यह भी मान लो कि समस्या की सारी जानकारी उनको है, तो फिर समस्या का हल क्यों नहीं पार्क की जमीन पर दिखता।
जहां सैलानियों की जिप्सी से वन्य जीवों को शिकार के लिए लगाया गया फंदा टकरा जाए और वन विभाग के गार्ड भी दूसरा फंदा खोज लाये तो न जाने कितने फंदे अभी और लगे होंगे। 19 गांव इस पार्क के सीने में अंगद के पांव समान जमे हैं। वर्षों हो गए गांव वाले भी अपने बेहतर भविष्य के लिए पार्क छोड़ने को तैयार हैं तो फिर देर किस बात की। क्यों नहीं विस्थापन की समस्या का निदान सरकार कर रही?
सवाल अब नई पीढ़ी का है। छोटे बच्चे अचानकमार में मन्दिर के सामने कुछ पाने की आस से कतार में खड़े हैं। यहां के रहवासी पशुपालन युग में जीते हैं जहाँ कोर जॉन का बोर्ड लगा है। वही इनकी दर्जनों भैंसे चरती दिखती हैं। बेहतर हो गांव वालों को गांव के आसपास चराई के लिए भूमि बता दी जाए और मवेशी तथा वन्यजीवों के बची दूरी बनी रहे, जिससे एक दूसरे में चपका- खुरहा जैसे रोगों के फैलाव की आशंका भी नहीं रहेगी।
अचानकमार के इलाके में जंगली हाथी आ गए हैं उनको हटाया जाना कठिन है। लेकिन उनके भय से शिकारी और लकड़ी कटाई की घटनाओं में कमी होगी। सिंहावल में जब तक पालतू हाथियों को बंद करके रखा जायेगा, जंगली हाथी उनसे मिलने आते-जाते रहेंगे। यहां के हाथियों के जंगली हाथियों से मिला सके तो उनका पुनर्वास हो सकता है।
वन्यजीवों के लिए पानी को जो व्यवस्था की गई है, वह आने वाली गर्मी में नाकाफी होगी। अचानकमार पार्क पहाड़ों पर बसा है। मनियारी नदी सहित यहां से बरसात का पानी बह कर नीचे मैदानी इलाके में चल जाता है। इससे पार्क में इन दिनों पानी की कमी बन जाती है। इसके लिए सौर ऊर्जा संचालित पंपों की संख्या बढ़नी होगी और सूखे गड्ढों में टैंकर से पानी भरना होगा जिसकी तैयारी करने विलम्ब नहीं हो तो बेहतर होगा।
जंगल के महुआ फूल अब बस टपकने वाले हैं। उनको एकत्र करने पालतू कुत्तों के साथ ग्रामीण जंगल में प्रवेश के करते हैं। भालू भी महुआ फूलों के शौकीन होते हैं। महुआ फूल एकत्रित करने गांव वाले जमीन पर गिरे पत्ते जला देते है, ताकि महुआ सहज दिखे और जल्दी एकत्र हो, पर यह अग्नि दावानल बन कर जंगल भी जला देती है। ऐसी घटनाएं वन्यजीवों की सुरक्षा के मद्देनजर रोकनी होंगी। पार्क के पास स्टाफ है अगर सही मॉनिटरिंग हुई तो गर्मी में पार्क की सेहत को बड़ा लाभ होगा।