विचार / लेख

अब बेरोजगारी की चुनौती से निबटना होगा
23-Mar-2022 5:45 PM
अब बेरोजगारी की चुनौती से निबटना होगा


-डॉ.संजय शुक्ला

देश पिछले दो साल से कोरोना महामारी की विभीषिका से जूझते रहा है इस त्रासदी ने अब तक 5.17 लाख लोगों की जान ले ली वहीं करोड़ों के हाथों से नौकरियां भी छिनी है। दरअसल देश में बेरोजगारी एक परंपरागत समस्या बनी हुई है लेकिन अब यह समस्य लोगों के सामाजिक और आर्थिक जीवन को इस कदर प्रभावित कर रहा है कि अब वे आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं। संसद के जारी बजट सत्र में सरकार ने राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के हवाले बताया है कि साल 2018 से 2020 यानि बीते तीन सालों में बेरोजगारी से 9 हजार तथा रोजगार छीनने के कारण कर्ज के बोझ तले दबे 16 हजार लोगों ने खुदकुशी कर ली है। साल 2020 से अब तक कोरोना महामारी ने सबसे ज्यादा असर रोजगार के क्षेत्र में डाला है फलस्वरूप एनसीबी के अगले रिपोर्ट में बेरोजगारी के चलते आत्महत्या के मामले में और इजाफा होने की उम्मीद है।इधर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानि सीएमआईई के मुताबिक गांवों में काम की कमी के कारण पिछले महीने फरवरी में देश में बेरोजगारी दर छह महीने के रिकॉर्ड स्तर 8.1 फीसदी पर पहुंच गया है जबकि शहरों में स्तर  7.55 फीसदी रहा जो पिछले चार महीनों का सबसे निचला स्तर है। कोरोना महामारी से ठीक पहले फरवरी में बेरोजगारी दर 7.76 फीसदी थी वहीं पिछले साल मई में यह 11.84 के उच्च स्तर पर थी। यह वह समय था जब देश में महामारी की दूसरी लहर का साया था और गांव व शहर दोनों में लॉकडाउन था। सीएमआईई के अनुसार बीते साल दिसंबर तक देश में कुल 5.3 करोड़ बेरोजगार थे जिसमें महिलाओं की संख्या काफी ज्यादा है। भारत सरकार के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर में शहरी बेरोजगारी बढ़ी है। महामारी की पहली तिमाही में 1.45 करोड़ लोगों की नौकरी खत्म हुई तो दूसरी लहर में 52 लाख तथा तीसरी लहर में 18 लाख लोगों की नौकरियां गई। आंकड़ों के मुताबिक 2020 से अब तक 2.15 करोड़ लोगों के हाथों से रोजगार छिन गया।बहरहाल यह महज बेरोजगारी का आंकड़ा भर नहीं है बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर है। भारत युवा आबादी के लिहाज से दुनिया में अव्वल है लेकिन युवाओं के ऊर्जा और प्रतिभाओं का समुचित उपयोग नहीं हो रहा है फलस्वरूप या तो वे परदेस पलायन के लिए विवश हैं अथवा कुंठाग्रस्त हो रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में हर साल एक करोड़ युवा वर्कफोर्स में शामिल हो जाते हैं लेकिन इस अनुपात में रोजगार सृजन नहीं हो पाता। देश में शिक्षित के साथ-साथ अशिक्षित बेरोजगारी भी बड़ी समस्या है।
 
गौरतलब है कि बढ़ती बेरोजगारी कल के भारत की खौफनाक तस्वीर पेश कर रही है। महामारी से पहले ही देश में आर्थिक मंदी, नोटबंदी,जीएसटी और वैश्विक मांग कम होने होने के कारण बेकारी की समस्या अपने रिकॉर्ड स्तर पर थी और शिक्षित बेरोजगारों की लंबी कतार मौजूद थी। कोरोना लॉकडाउन ने बेरोजगारों के सामने अनेक दुश्वारियां पैदा कर दी है। देश में बेरोजगारी दो तरह से बढ़ रही है पहला वह जिसमें शिक्षित युवा हैं जो पहले से ही रोजगार की कतार में हैं दूसरे वे जिनके हाथ पहले नौकरी या रोजगार था लेकिन महामारी ने इनका रोजगार छीन लिया। महामारी ने पर्यटन, विमानन, परिवहन, होटल,रेस्तरां से लेकर रेहड़ी पटरी पर छोटे व्यापार करने वालों को बुरी तरह से प्रभावित किया है तो दूसरी ओर आर्थिक बदहाली के चलते सरकारी और निजी क्षेत्र में नौकरी के दरवाजे लगभग बंद ही हैं। हालांकि महामारी की तीसरी लहर के ढलान के साथ ही अब इन क्षेत्रों में रौनक लौटने लगी है जिससे उम्मीद जगी है।
 
बहरहाल बेरोजगारी और कर्ज से आत्महत्या करने का मामला न केवल देश के लिए चिंताजनक है बल्कि मानवता को शर्मसार करने वाला है। हालिया दौर में बेरोजगारी देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है जिसने लाखों युवाओं के सुनहरे सपनों पर पानी फेर दिया है। देश के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो बेरोजगारी जैसा बड़ा मुद्दा सियासत और चुनावी राजनीति में धर्म व जाति के मुद्दे के सामने बौना साबित हो रहे हैं। विडंबना है कि बेरोजगारी पर संसद में कभी भी गंभीर बहस नहीं हुई तो दूसरी ओर सरकार बेरोजगारों को महज कुछ हजार बेरोजगारी भत्ता देकर अपने जिम्मेदारी की इतिश्री मान लेती हैं। देश और प्रदेश की सरकारें बेरोजगारों के सामने रोजगार के लिए नई नीति या योजना परोसकर अथवा समिति बनाकर झूठा दिलासा दे रहीं हैं। गौरतलब है कि 1990 के दशक में जब देश में निजीकरण और आर्थिक उदारीकरण की नीतियां लागू किया गया तब दावा किया गया था कि इससे सबको रोजगार मिलेगा और देश खुशहाल बनेगा लेकिन स्थिति में कोई खासा बदलाव नहीं आया बल्कि शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण गांवों में खेती की जमीन कम हुई है फलस्वरूप गांवों में रोजगार के अवसर घटे हैं तथा शहरों की ओर पलायन बढ़ा है।

चिंतनीय है कि बढ़ती बेरोजगारी का दुष्प्रभाव असर अब समाज और परिवार पर दिखाई दे रहा है।बेरोजगार युवा बड़ी  नशाखोरी, अपराध, अवसाद जैसे मानसिक रोग के गिरफ्त में आ रहे हैं या आत्महत्या के लिए विवश हो रहे हैं वहीं महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हो रहे हैं। देश में महिला शिक्षा और सशक्तिकरण के तमाम नारों और दावों के बावजूद महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर लगातार घट रहे हैं दरअसल इसके लिए हमारी रूढ़िवादी सामाजिक सोच भी जिम्मेदार है। देश में बेरोजगारी की समस्या के लिये प्रमुख रूप से जनसंख्या में वृद्धि, गरीबी, अशिक्षा, लचर शिक्षा व्यवस्था, खराब कौशल, कृषि क्षेत्र की लगातार उपेक्षा, कुटीर और लघु उद्योगों का खात्मा, मशीनीकरण,  सरकारी लालफीताशाही और लायसेंस राज और बाजार गत परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। शिक्षा और बेरोजगारी का गहरा संबंध है देश की एक बड़ी आबादी अभी भी अशिक्षित हैं खासकर बालिका शिक्षा में देश फिसड्डी साबित हो रहा है वहीं बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों की तादाद दिनोदिन बढ़ रही है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था के गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में भारत के युवाओं को तकनीकी और व्यवसायिक तौर पर उच्च कौशल उन्नयन की जरूरत है।वाणिज्यिक संगठन फिक्की के अनुसार देश में 21 से 35 आयु वर्ग के लगभग 10 करोड़ लोग हैं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक 25 फीसदी भारतीय ग्रेजुएट ही संगठित क्षेत्र में रोजगार के लायक हैं। एक सर्वे के अनुसार कौशल में कमी के कारण 48 फीसदी भारतीय कंपनियों को नौकरियां देने में दिक्कत आ रही है वहीं 36 फीसदी कंपनियों को कर्मचारी चयन करने के बाद उन्हें प्रशिक्षित करना पड़ता है। नि: संदेह यह परिस्थितियां देश के उच्च और तकनीकी शिक्षा के कमजोर गुणवत्ता के कारण बन रही है। देश के स्कूली से लेकर उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में बदलती दुनिया के साथ तालमेल बिठाते हुए इसे रोजगारोन्मुख बनाने और कौशल उन्नयन हेतु प्रशिक्षण कक्षाओं पर जोर देने की जरूरत है। हमारी प्रतिभाएं नौकरी और उच्च शिक्षा के लिए परदेस पलायन न करें बल्कि वे रोजगार प्रदाता बनें इसके लिए अनुकूल वातावरण तैयार करते हुए देश के तकरीबन 50 विश्वविद्यालयों को विश्वस्तरीय बनाना होगा।


बहरहाल सरकार को बेरोजगारी के समाधान के लिए दूरगामी उपाय करने होंगे। रोजगार के अवसर पैदा हों इसके लिए केन्द्र सरकार को "राष्ट्रीय रोजगार नीति" बनाने की दरकार है, इस नीति के अंतर्गत शहर और गाँव के समावेशी आर्थिक विकास के साथ रोजगार के अवसरों को प्रोत्साहित करना होगा। चूंकि किसी भी सरकार के लिए सभी को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं है लिहाजा  युवाओं को स्वरोजगार, इन्फ्रास्ट्रक्चर और मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग की दिशा में आगे बढ़ना होगा। देश की पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकारों ने बेरोजगारी खत्म करने व स्वरोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए  दर्जनों योजनाएं लागू की है लेकिन इन योजनाओं की जमीनी हकीकत सबको मालूम है। सरकार को इन सभी योजनाओं को मिलाकर रोजगारपरक शिक्षा और कौशल उन्नयन पर योजना बनानी होगी ताकि लोगों को स्थायी रोजगार मिल सके। इसके अलावा मध्यम एवं कुटीर उद्योगों के पर्याय संरक्षण की दिशा में ईमानदार प्रयास करनी होगी। गांव आज भी 60 फीसदी लोगों को रोजगार मुहैया करा रहा है लिहाजा युवाओं को ग्रामीण रोजगार के संसाधन जैसे कृषि, फल-फूल बागवानी, डेयरी, मछलीपालन, मिट्टी, काष्ठ और लौह शिल्प के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए सरल और उत्प्रेरक नीति बनानी होगी। गांवों में रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित के लिए मनरेगा और श्रम कानूनों को और प्रभावी बनाना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में अधोसंरचना और सूचना प्रौद्योगिकी विकास में तेजी लानी होगी ताकि आज के शिक्षित युवा ग्रामीण जीवन को अपना सकें।

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