विचार / लेख
-कार्टूनिस्ट कैप्टन
कार्टूनिस्ट कैसे कार्टून बनाता है ये बहुत हद तक संपादक तय करता है, अगर संपादक कार्टून का शौकीन है तो फिर कहने ही क्या और अगर कार्टून की समझ ही न हो तब तो क्या कीजे... ऐसे ही एक संपादक जी से पाला पड़ा था, कार्टून में उनको कोई खास रुचि न थी, उन्हें पता तक नहीं था कि कौन कार्टून बनाता है अलबत्ता ये तक नहीं पता था कि कार्टून को कार्टून भी बोला जाता है, एक बार उन्होंने डेस्क से बैठे बैठे जोर से आवाज लगाई...अरे वो डायग्राम बनाने वाला कहाँ है?भेजो जरा उसे...मैं उनके पास गया तो कहने लगे कि फला जगह एक्सीडेंट हुआ है वहां रिपोर्टर के साथ जाओ और घटना स्थल का डायग्राम बना कर लाओ...मैं थोड़ी देर खड़ा रहा फिर धीरे से कहा...सर वो मेरी जगह फोटोग्राफर को भेजें तो ज़्यादा अच्छा होगा...खैर ये तो हो गई एक बात, अब दूसरे संपादक जी की कहानी...अपने शुरुआती दौर में एक अखबार में काम करता था वहां के डाक एडिशन के संपादक भयंकर कार्टून के शौकीन थे ,इतने की कार्टून में अतिशयोक्ति कर देते...एक बार धार जिले में किसी 99 साल के आदमी का निधन हुआ, वो वसीयत में ये लिखकर गया कि मेरी शव यात्रा बैंडबाजे के साथ निकाली जाए...बस! फिर क्या आगए संपादक जी मेरे पास की इस पर कार्टून बनाओ की लोग शवयात्रा में नाच रहे हैं और एक आदमी सडक़ पर नागिन डांस करते हुए कहा रहा है कि ये बारात नहीं मय्यत है...मैंने लाख समझाया कि सर अच्छा नहीं लगेगा, उसके घर वाले क्या सोचेंगे...पर नहीं! उनके दबाव में मुझे कार्टून बनान पड़ा...कुछ समय बाद ऑफिस बॉय आया कि सर वो आपके सारे कार्टून दे दो क्योंकि यहाँ सारे कार्टून लेकर लाइब्रेरी में जमा होते हैं,...एक दम मुझे मय्यत वाले कार्टून का खयाल आया और मैंने उस कार्टून के पीछे एक नोट लिखा कि...ये कार्टून मैं बनाना नहीं चाहता था, किसी की मय्यत पर इस तरह का कार्टून असंवेदनशील है, फला फला सर ने मुझसे ये जबरदस्ती बनवाया है... ये नोट लिखकर कार्टून दे दिया ताकि कल को कोई लाइब्रेरी छाने और मेरे कार्टून नजऱ आए तो उसे पता हो कि मैं कैसे काम करता था...