विचार / लेख
-ध्रुव गुप्त
अपने सार्वजनिक जीवन में बेहद चंचल, खिलंदड़े , शरारती और निजी जीवन में बहुत उदास और खंडित किशोर कुमार रूपहले परदे के सबसे अलबेले, रहस्यमय और विवादास्पद व्यक्तित्वों में एक रहे हैं। बात अगर अभिनय की हो तो अपने समकालीन दिलीप कुमार, राज कपूर, देवानंद, अशोक कुमार, बलराज साहनी जैसे अभिनेताओं की तुलना में वे कहीं नहीं ठहरते, लेकिन वे ऐसे अदाकार ज़रूर थे जिनके पास अपने समकालीन अभिनेताओं के बरक्स मानवीय भावनाओं और विडंबनाओं को अभिव्यक्त करने का एक अलग अंदाज़ था। एक ऐसा नायक जिसने नायकत्व की स्थापित परिभाषाओं को बार-बार तोडा। ऐसा विदूषक जो जीवन की त्रासद से त्रासद परिस्थितियों को एक मासूम बच्चे की निगाह से देख सकता था। हाफ टिकट, चलती का नाम गाड़ी, रंगोली,मनमौजी, दूर गगन की छांव में, झुमरू, दूर का राही, पड़ोसन जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय के नए अंदाज़, नए मुहाबरों से हमें परिचित कराया।
अभिनय से भी ज्यादा स्वीकार्यता उन्हें उनके गायन से मिली। उनकी आवाज़ में शरारत भी थी, शोख़ी भी, चुलबुलापन भी, संज़ीदगी भी, उदासीनता भी और बेपनाह दर्द भी। मोहम्मद रफ़ी के बाद वे अकेले गायक थे जिनकी विविधता सुनने वालों को हैरत में डाल देती है। 'मैं हूं झूम-झूम-झूम-झूम झुमरू' का उल्लास, 'ओ मेरी प्यारी बिंदु' की शोख़ी, ये दिल न होता बेचारा' की शरारत, 'ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना' की मस्ती, 'ये रातें ये मौसम नदी का किनारा' का रूमान ,'चिंगारी कोई भड़के' का वीतराग, 'सवेरा का सूरज तुम्हारे लिए है' की संजीदगी, 'घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं' की निराशा, 'छोटी सी ये दुनिया पहचाने रास्ते हैं' की उम्मीद, 'कोई हमदम न रहा' की पीड़ा, 'मेरे महबूब क़यामत होगी' की हताशा, 'दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना' का वैराग्य - भावनाओं की तमाम मनःस्थितियां एक ही गले में समाहित ! यह सचमुच अद्भुत था। उनके गाए सैकड़ों गीत हमारी फिल्म संगीत विरासत का अनमोल हिस्सा हैं और बने रहेंगे।
जन्मदिन (4 अगस्त) पर किशोर दा को श्रद्धांजलि !