विचार / लेख
-रविश कुमार
सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला शर्मनाक है। इस हमले के समर्थन में खड़े होने वाले लोग दूसरों के लिए भी कट्टरता बो रहे हैं। ऐसे लोगों की मौजूदगी दूसरी तरफ भी कट्टरता को फल-फूलने का मौक़ा देती रहती है।जिसके कारण करोड़ों लोग दहशत की ज़िंदगी जी रहे हैं। कितने बेकसूर लोग मार दिए जाते हैं। कट्टरता कभी एक नहीं होती है। वह कई ख़ेमों में बंटी होती है। हर ख़ेमा दूसरे ख़ेमे की कट्टरता से सीना फुलाता है, मुस्कुराता है और आंखें दिखाता है।ऐसे वक्त में हिंसा का विरोध करने वाले मज़ाक का पात्र बना दिए जाते हैं, मगर दूसरा रास्ता क्या है, क्या आप नहीं जानते कि हिंसा का समर्थन करने का मतलब किसी की हत्या और किसी को हत्यारा बनाना है?
सलमान रुश्दी पर हमला संगठित कट्टरता का परिणाम है। संगठित का मतलब ज़रूरी नहीं कि कोई संगठन बनाकर ही कट्टरता फैला रहा हो। अगर 24 साल का हादी उतार एक लेखक की हत्या का इरादा रखता हो, योजना बनाकर घात लगाने बैठा हो तो उसके भीतर की कट्टरता संगठित कट्टरता है। यह पैदा होती है, उन लोगों के बीच जो लगातार ऐसी हिंसा के लिए एलान करते रहते हैं। खुलकर या दबी ज़ुबान में समर्थन करते रहते हैं। किसी लेखक को कई साल से मार देने की योजना बनती रही हो, ख़तरे पैदा किए जाते रहे हों तो यह संगठित कट्टरता है। धर्मांधता आसमान से नहीं टपकती है। जहां भी समूह की संभावना है, समूह का निर्माण है, वहाँ धर्मांधता और कट्टरता की भी संभावनाएँ है। जो भी इस हत्या के पक्ष में खड़ा है, वह जानबूझकर कर अपने समुदाय के भीतर किसी और के हत्यारा बनने की संभावनाएँ पैदा कर रहा है। किसी और इंसान की हत्या के हालात रचता है।
सलमान रुश्दी लंबे समय तक हत्या की आशंका के साये में जीते रहे हैं। दुनिया उनके लेखन की कायल रही है। बताया तो यही जाएगा कि यह हमला उनकी हार है जो धर्मांधता और हिंसा के ख़िलाफ आवाज़ उठाते हैं। दूसरे के नाम पर अपनी कट्टरता को सही ठहराने वाले मुस्कुराते ही रहेंगे। इसमें कोई नई बात नहीं है। मूर्ख को अगर पता चल जाए कि दूसरी तरफ़ भी मूर्ख है, तो वह ख़ुश ही होता है। अपनी विद्वता समझ हंसता है।
धर्मांधता से लड़ने वाले हारते ही रहेंगे।जो भी कट्टरता के खिलाफ लड़ता है, वह केवल अपने धार्मिक समाज के भीतर संग्राम नहीं झेलता बल्कि दूसरे धार्मिक समाजों में भी निशाना बनाया जाता है। हर तरह की कट्टरता उनका इस्तेमाल करती है, उन पर हमले करती है। यह लड़ाई अपने भीतर के बल से लड़ी जाती है। कभी चुप रह कर, कभी बोल कर, कभी सिसक कर।
दुआ कीजिए कि सलमान रुश्दी ठीक हो जाएं।