विचार / लेख
-गिरीश मालवीय
नोएडा में आज दोपहर सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के ट्विन टावर विस्फोटक लगा कर ध्वस्त कर दिए जाएंगे... देश की राजधानी से कुछ ही किलोमीटर दूर बने यह दोनों टावर सरकार के भ्रष्टाचार का अनुपम उदाहरण है आश्चर्य की बात है कि मोदी जी जो ड्रोन भेजकर जांच करवाते थे उसमें भी यह टावर नहीं दिखे।
ये टॉवर एक मिसाल है कि इस देश में कैसे बिल्डर सरकारी एजेंसी के आला अधिकारियों को इतनी रिश्वत खिलाते हंै कि सरकारी एजेंसी खुलेआम कोर्ट में बिल्डर के पक्ष में खड़ी हो जाती हैं।
सुपरटेक के ट्विन टावर को तोडऩे के फैसले के साथ नोएडा अथॉरिटी की कार्यशैली पर सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणी की थी उसे कोई गैरतमंद अधिकारी सुनता तो तुरंत ही इस्तीफा दे दे देता लेकिन अब इनकी खाल इतनी मोटी हो चुकी है कि इन्हें अब कोई परवाह ही नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए नोएडा अथॉरिटी को कहा कि आपको निष्पक्ष होना चाहिए था, लेकिन आप से भ्रष्टाचार टपकता है। कोर्ट ने कहा कि आपने ग्राहकों से बिल्डिंग के प्लान को छिपाया और हाईकोर्ट के आदेश के बाद इसे दिखाया गया। आप सुपरटेक के साथ मिले हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान नोएडा अथॉरिटी को फटकार लगाते हुए कहा था ‘यह अधिकारों का चौंकाने वाला इस्तेमाल है। आप (नोएडा प्राधिकरण) न केवल (बिल्डर के साथ) मिलकर काम कर रहे हैं बल्कि सुपरटेक के साथ सांठगांठ कर रखी है। जब घर खरीदारों ने एक स्वीकृत योजना के लिए कहा, तो आपने सुपरटेक को लिखा कि आपको दस्तावेज देना चाहिए या नहीं और इनकार करने पर आपने उन्हें योजना देने से इनकार कर दिया। ‘उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से आपको यह निर्देश दिए जाने के बाद ही आपने उन्हें योजना सौंपी। आप पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं।’ ....पीठ ने नोएडा प्राधिकरण से कहा कि ‘अधिकारी होने के नाते, आपको सुपरटेक के कृत्यों का बचाव करने के बजाय एक तटस्थ रुख अपनाना चाहिए। आप किसी भी प्रमोटर के लिए एक निजी स्टैंड नहीं ले सकते।’
ट्विन टावर का यह मामला और इस मामले में दिया गया फैसला एक माइल स्टोन है, क्योंकि कुछ आम लोगों ने एक दिग्गज कंपनी के खिलाफ लड़ाई शुरू की और आखिरकार अब उसे जीत लिया है।
सुपरटेक ने जब 40-40 मंजिल वाले अपने दो टावर खड़े करने शुरू किए। इसे लेकर वहां के रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने विरोध करना शुरू कर दिया। क्योंकि उनकी सोसाइटी के ठीक सामने, जिसे नोएडा अथॉरिटी ने पहले ग्रीन बेल्ट बताया था, वहां ये विशालकाय टावर खड़े हो रहे थे। आरडब्ल्यूए से जुड़े लोगों ने फैसला किया कि वो इस प्रोजेक्ट के खिलाफ लड़ेंगे। कुल 660 लोगों ने एक साथ कोर्ट का रुख किया और बताया कि कैसे अथॉरिटी और कंपनी की मिलीभगत के चलते ये टावर खड़े किए जा रहे हैं।
दरअसल बिल्डर ने नक्शे में जो भी संशोधन किए थे उन संशोधन पर यहां रहना शुरू कर चुके फ्लैट बायर्स की मंजूरी ली जानी चाहिए थी, यूपी अपार्टमेंट एक्ट की शर्तों के तहत 60 पर्सेंट बायर्स की बिना सहमति के रिवाइज्ड प्लान को अप्रूवल नहीं दिया जा सकता था। इसकी एनओसी नहीं ली गई। लेकिन नोएडा अथॉरिटी के तत्कालीन अधिकारियों ने भी इस नियम की परवाह नहीं की। साथ ही नेशनल बिल्डिंग कोड का नियम यह है कि किसी भी दो आवासीय टावर के बीच कम से कम 16 मीटर की दूरी होनी जरूरी है, लेकिन प्रोजेक्ट में टावर नंबर 16, 17 की मंजूरी देने पर टावर नंबर-15, 16 और 1 के बीच मौके पर 9 मीटर से भी कम दूरी बची।
एक रहवासी ने बताया कि बिल्डर ने हमे फ्लैट देते हुए कहा था कि यहां बच्चों के खेलने के लिए एक पार्क भी होगा। लेकिन पार्क की जमीन पर अवैध टॉवर खड़े कर दिए।
सुप्रीम कोर्ट का टॉवर गिराए जाने का यह निर्णय उन बिल्डरों के लिए सबक है जो यह समझते हैं कि प्राधिकरण और कानून सब उनकी जेब में है।