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जंगल जरूरी है या एयरकंडीशनर के लिए बिजली
30-Aug-2022 12:10 PM
जंगल जरूरी है या एयरकंडीशनर के लिए बिजली

दुनिया के सबसे पुराने और अनछुए जंगलों में से एक भारत के केंद्र में है। इस जंगल का नाम है हसदेव अरण्य। क्या भारत की बिजली की मांग हसदेव अरण्य को निगल लेगी?

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वैभव बेमतरिहा की शादी का कार्ड देखते ही उनकी होने वाली पत्नी और न्योता पाने वालों को हैरानी हुई। कार्ड पर ‘सेव हसदेव’ लिखा था। 38 साल के वैभव, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहते हैं। भारत का एक बड़ा कोयला भंडार उनके राज्य में दबा है, वो भी हसदेव के जंगल में। हसदेव अरण्य, मध्य भारत के आखिरी समृद्ध जंगलों में से एक है। भारत के मूल निवासी कहे जाने वाले गोंड आदिवासियों की अच्छी खासी संख्या हसदेव में रहती है। जंगल के बीच से हसदेव नाम की नदी गुजरती है। वहां शताब्दियों से चला आ रहा जंगली हाथियों का कॉरिडोर भी है।

जंगल के 1,878 हेक्टेयर से ज्यादा बड़े इलाके में कोयले का भंडार है। 2010 में छत्तीसगढ़ सरकार ने जंगल से कोयला निकालने के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस का आवेदन किया। मामला अदालतों तक भी पहुंचा। इसी दौरान पर्यावरण मंत्रालय की फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी ने खनन के लिए वन भूमि ट्रांसफर करने पर आपत्ति जताई। इसके बावजूद  2012 में भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव जंगल में कोयले के खनन के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस को मंजूरी दे दी। यह पारसा ईस्ट और केंते बसान (पीईकेबी) का पहला चरण था। कोयला राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को दिया गया, निगम के लिए यहां खनन काम अडानी ग्रुप करता है।

पहले चरण के 10 साल बाद मार्च 2022 में छत्तीसगढ़ सरकार ने एलान किया कि उसने पीईकेबी के दूसरे चरण के लिए भी खदान आवंटित कर दी है। इस फैसले से पहले हसदेव जंगल को बचाने के लिए करीब ढाई सौ आदिवासी 300 किलोमीटर लंबा पैदल मार्च कर रायपुर तक पहुंचे। अक्टूबर 2021 के इस पैदल मार्च का कोई असर नहीं हुआ, छह महीने बाद लोगों द्वारा चुनी गई सरकार ने दूसरे चरण को मंजूरी दे दी।
कैसे जनांदोलन बन गया सेव हसदेव
अप्रैल 2022 में हसदेव जंगल में सैकड़ों साल पुराने साल और सागवान के पेड़ों की कटाई शुरू हो गई। जब सैकड़ों पेड़ों की कटाई के वीडियो सामने आने लगे तो नाराजगी शहरों तक पसरने लगी। लोगों को आदिवासियों का पैदल मार्च याद आने लगा। सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर प्तस्ड्ड1द्ग॥ड्डह्यस्रद्गश ट्रेंड करने लगा। यूट्यूबर, कलाकार और छात्र भी खुलकर जंगल बचाने के लिए शुरू हुए आंदोलन का समर्थन करने लगे। इंटरनेट पर हो रहा विरोध जल्द ही छत्तीसगढ़ के सारे शहरों के साथ साथ देश के कई महानगरों तक फैल गया।
लक्ष्य मधुकर के नाना खनन इंजीनियर थे। लक्ष्य की मां का बचपन छत्तीसगढ़ के कोरबा में गुजरा। कोरबा को छत्तीसगढ़ में खनन का गढ़ कहा जाता है। मधुकर कहते हैं, ‘मेरी मां का परिवार कोरबा के एक गांव से आता है, जहां खनन ही जिंदगी जीने का तरीका है। लेकिन हमें पता है कि खनन का असर कैसा होता है।’ लक्ष्य कलाकार हैं और चित्रकला के जरिए वह हसदेव बचाओ का संदेश दे रहे हैं।
आलोक शुक्ला छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन नाम का एक एनजीओ चलाते हैं। शुक्ला कहते हैं, ‘लंबा मार्च कई लोगों के लिए आंखें खोलने वाला था। विरोध करने वाले समुदाय थक चुके थे, उन्हें नहीं मालूम था कि उनकी लड़ाई अभी कितनी लंबी चलेगी। लेकिन जिस तरह का समर्थन उन्हें मिला, उसने आंदोलन तो नई जान और लोगों को नई ऊर्जा दी।’

विदेशों तक पहुंची सेव हसदेव की पुकार
प्रदर्शनकारी हसदेव अरण्य में सभी कोयला खनन प्रोजेक्टों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। उनका आरोप है कि नकली जमीन मालिक और नकली ग्राम सभाएं बनाकर जमीन गैरकानूनी ढंग से ली गई। आंदोलन की पुकार इंग्लैंड तक भी पहुंची। मई 2022 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक आयोजन के दौरान कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से हसदेव अरण्य में खनन के बारे में सवाल पूछा गया। एक छात्रा ने उनसे पूछा कि 2015 में आप खुद को आदिवासियों के साथ खड़ा बताते थे, और आज आपकी पार्टी अडानी के जंगल कटाई और खनन विस्तारीकरण के साथ है। इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि वह आदिवासियों की मांगों से सहमत हैं और कुछ ही दिन में पार्टी इसका समाधान निकाल लेगी।गांधी परिवार के सदस्य के मुंह से निकली इस बात का असर हुआ। छत्तीसगढ़ विधानसभा ने हाल ही में एक प्रस्ताव पारित करते हुए केंद्र सरकार से हसदेव अरण्य के सभी कोयला ब्लॉकों का आंवटन रद्द करने की मांग की। इस बार राज्य सरकार ने कहा कि वहां हाथियों का कॉरिडोर है, जिस वजह से वहां से कोयला नहीं खोदा जाना चाहिए।


जंगल बचाने के अभियान में जुटे सभी लोग इस फैसले से थोड़ी राहत तो महसूस कर रहे हैं, लेकिन उन्हें डर है कि खनन पूरी तरह बंद नहीं होगा। भारत में गर्मियों में लगातार बिजली की मांग बढ़ती जा रही है। मध्य वर्ग की आय में इजाफा होने से एयरकंडीशनिंग का दायरा बढ़ता जा रहा है। हर साल गर्मियों में देश के अखबारों में कोयले की कमी से जूझते कोयला बिजलीघरों की खबरें आने लगती हैं। राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा समेत कई राज्य छत्तीसगढ़ के कोयले से खुद को भले ही रोशनी दें, लेकिन कई आदिवासियों की जिंदगी में वो अंधकार भरते आ रहे हैं।
ओएसजे/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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