विचार / लेख
मनोरमा सिंह
24 नवम्बर को देश में बहुत से खास-आम लोगों ने तुलसी विवाह किया, शायद उन्हें इसकी कथा मालूम हो अगर नहीं तो यहाँ शेयर कर रही हूँ, ये विवाह किसी भी स्त्री के अपने साथ यौन दुव्र्यहार करने वाले से विवाह को सौभाग्य के रूप में स्थापित और ग्लोरीफाय करता है और ईश्वर जैसा कोई व्यक्ति हो तो उस विवाह को स्त्री पर कृपा की तरह से ग्रहण किये जाने का संदेश देता है, उसे ईश्वर कृपा के रूप में जस्टिफाय करता है, बाकी आप इस कहानी को आज की किसी भी स्त्री से जोडक़र देखें और विचार करें। शुक्र है अपने देश का संविधान धर्म और आस्था की इन कहानियों से संचालित नहीं है इसलिए किसी भी पुरुष के ऐसे आचरण को अपराध की श्रेणी में रखा है चाहे वो किसी भी पद, रुतबे , ताकत या हैसियत का हो।
बहरहाल, कहानी इस प्रकार से है-
नारद पुराण के अनुसार, एक समय दैत्यराज जलंधर के अत्याचारों से ऋषि-मुनि, देवता और मनुष्य सभी बहुत परेशान थे। वह बड़ा ही पराक्रमी और वीर था। इसके पीछे उसकी पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली पत्नी वृंदा के पुण्यों का फल था, जिससे वह पराजित नहीं होता था। उससे परेशान देवता भगवान विष्णु के पास गए और उसे हराने का उपाय पूछा। तब भगवान श्रीहरि ने वृंदा का पतिव्रता धर्म तोडऩे का उपाय सोचा। भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर दिया। जिसके कारण वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग हो गया और जलंधर युद्ध में मारा गया।
भगवान विष्णु से छले जाने तथा पति के वियोग से दुखी वृंदा ने श्रीहरि को श्राप दिया कि आपकी पत्नी का भी छल से हरण होगा तथा आपको पत्नी वियोग सहना होगा। यह श्राप देने के बाद वृंदा अपने पति जलन्धर के साथ सती हो गईं जिसकी राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा का पतिव्रता धर्म तोडऩे से भगवान विष्णु को बहुत ग्लानि हुई। तब उन्होंने वृंदा को आशीष दिया कि वह तुलसी स्वरुप में सदैव उनके साथ रहेगी। उन्होंने कहा कि कार्तिक शुक्ल एकादशी को जो भी शालिग्राम स्वरुप में उनका विवाह तुलसी से कराएगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। तब से तुलसी विवाह होने लगा।