विचार / लेख
अक्टूबर माह में एनसीईआरटी ने अंग्रेज़ी और हिंदी में चंद्रयान-3 पर 10 शैक्षिक मॉड्यूल्स जारी किए। इनका उद्देश्य लाखों स्कूली बच्चों को हालिया चंद्रयान मिशन की जानकारी प्रदान करना है। प्रेस और मीडिया में गंभीर आलोचना के बाद इन मॉड्यूल्स को एनसीईआरटी के वेबपेज से हटा लिया गया था, लेकिन सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति के बाद इसे पुन: अपलोड कर दिया गया। सरकारी विज्ञप्ति में मॉड्यूल्स का बचाव करते हुए कहा गया है कि ‘पौराणिक कथाएं और दर्शन विचारों को जन्म देते हैं और ये विचार नवाचार एवं अनुसंधान की ओर ले जाते हैं।’
गौरतलब है कि इन मॉड्यूल्स को नई शिक्षा नीति (एनईपी 2020) में वर्णित सीखने के विभिन्न चरणों (फाउंडेशनल, प्रायमरी, मिडिल स्कूल, सेकंडरी और हायर सेकंडरी) के अनुसार तैयार किया गया है। यह काफी हैरानी की बात है कि इन मॉड्यूल्स की सामग्री में कई वैज्ञानिक और तकनीकी त्रुटियां हैं जिनमें से कुछ का आगे जि़क्र किया जा रहा है। इसके अलावा, इनमें छद्म वैज्ञानिक दावे किए गए हैं, भ्रामक वैज्ञानिक सामग्री है और यहां तक कि एक नाज़ी वैज्ञानिक का हवाला भी दिया गया है जो एनसीईआरटी सामग्री के सामान्य मानकों से मेल नहीं खाता है। अंग्रेज़ी संस्करण में व्याकरण सम्बंधी त्रुटिया तो हैं ही।
इस प्रकार की गलत जानकारी विद्यार्थियों तक पहुंचे तो काफी नुकसान कर सकती है। और तो और, सामग्री का घटिया प्रस्तुतीकरण विद्यार्थियों को इस रोमांचक क्षेत्र से विमुख कर देगा।
वैज्ञानिक समुदाय के सदस्यों और सभी तर्कसंगत सोच वाले नागरिकों को इस घटिया ढंग से तैयार की गई सामग्री को खारिज कर देना चाहिए। व्यापक आलोचना के बाद एनसीईआरटी द्वारा इस सामग्री को वेबसाइट से हटाना और सरकार द्वारा पौराणिक कथाओं का हवाला देते हुए उन्हें वापस प्रसारित करना न तो उचित है और न ही ऐसा दोबारा होना चाहिए। एआईपीएसएन मांग करता है कि एनसीईआरटी इन मॉड्यूल्स को स्थायी रूप से हटा दे। चंद्रयान पर एनसीईआरटी मॉड्यूल्स में वैज्ञानिक त्रुटियों, छद्म वैज्ञानिक दावों और मिथकों की बानगी -
1. बुनियादी स्तर (कोड 1.1एफ, केजी और कक्षा 1-2)-
क.मॉड्यूल उवाच- (चंद्रयान-2 के संदर्भ में) ज्इस बार रॉकेट के पुजऱ्े में कुछ तकनीकी खामी के कारण उसका धरती से संपर्क टूट गया।
टिप्पणी- लॉन्चर रॉकेट ने ठीक तरह से काम किया। जबकि लैंडर सतह पर उतरने में विफल रहा, लेकिन चंद्रयान का ऑर्बाइटर मॉड्यूल काम करता रहा और इससे इसरो को डैटा भी प्राप्त होता रहा।
2. प्राथमिक स्तर (कोड 1.2पी, कक्षा 3-5):
क.मॉड्यूल उवाच: इस रॉकेट के तीन प्रमुख हिस्से हैं – प्रोपल्शन मॉड्यूल, रोवर मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल जो हमें चंद्रमा के बारे में जानकारी भेजता है।
टिप्पणी- चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को रॉकेट (एलएमवी3) अंतरिक्ष में लेकर गया था। अंतरिक्ष यान में एक ऑर्बाइटर और एक लैंडर था। रोवर को लैंडर के अंदर रखा गया था ताकि चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद उसे बाहर निकाला जा सके।
3. माध्यमिक स्कूल स्तर (कोड- 1.3एम, कक्षा 6-8)-
क.मॉड्यूल उवाच- प्राचीन साहित्य में वैमानिक शास्?त्र ‘विमान विज्ञान’ से पता चलता है कि उन दिनों हमारे देश में उडऩे वाले वाहनों का ज्ञान था (इस पुस्तक में इंजनों के निर्माण, कार्यप्रणालियों और जायरोस्कोपिक सिस्टम के दिमाग चकरा देने वाले विवरण हैं)।
टिप्पणी: कई अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि बहुप्रचारित वैमानिक शास्त्र की रचना 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई है और इसमें वर्णित डिज़ाइन, इंजन और उपकरण पूरी तरह से काल्पनिक, अवैज्ञानिक और नाकारा हैं।
ख.मॉड्यूल उवाच- वेद भारतीय ग्रंथों में सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं। इनमें विभिन्न देवताओं को पशुओं, आम तौर पर घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले पहिएदार रथों पर ले जाने का उल्लेख मिलता है। ये रथ उड़ भी सकते थे। उडऩे वाले रथों या उडऩे वाले वाहनों (विमान) का उपयोग किए जाने का उल्लेख भी मिलता है। ऐसी मान्यता है कि हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार सभी देवताओं के पास अपना वाहन था जिसका उपयोग वे एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए करते थे। माना जाता है कि वाहनों का उपयोग अंतरिक्ष में सहजता और बिना किसी शोर के यात्रा करने के लिए किया जाता था। ऐसे ही एक विमान – पुष्पक विमान (जिसका शाब्दिक अर्थ ‘पुष्प रथ’ है) का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है।
टिप्पणी: विभिन्न वैदिक ग्रंथों और महाकाव्यों में उडऩे वाले वाहनों के ये सभी उल्लेख कवियों की कल्पनाएं हैं। दुनिया भर की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं के साहित्य में उनके देवताओं के आकाश में उडऩे का उल्लेख मिलता है। इन्हें प्राचीन काल में उडऩे वाले वाहनों के अस्तित्व का प्रमाण नहीं माना जा सकता है। 1961 में यूरी गागरिन द्वारा अंतरिक्ष की यात्रा करने से पहले किसी भी मानव द्वारा अंतरिक्ष यात्रा के लिए पृथ्वी छोडऩे का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।
ग.मॉड्यूल उवाच- आधुनिक भारत ने वैमानिकी विज्ञान की विरासत को आगे बढ़ाते हुए अंतरिक्ष अनुसंधान में उल्लेखनीय प्रगति की है।
टिप्पणी-जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, ऐसे साहित्यिक संदर्भ कई प्राचीन सभ्यताओं में पाए जा सकते हैं और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए साराभाई और अन्य वैज्ञानिकों के प्रयास इन काव्यात्मक कथाओं का उत्पाद नहीं हैं। ऐसा दावा करना साराभाई की विरासत और कई समकालीन वैज्ञानिकों के अग्रणी कार्यों का अपमान होगा।
घ.मॉड्यूल उवाच- चंद्रमा पर ऐसी चोटियां भी हैं जहां हर समय सूर्य का प्रकाश मौजूद होता है तथा ये चंद्र गतिविधियों की सहायता हेतु विद्युत उत्पन्न करने के उत्कृष्ट अवसर पैदा कर सकती हैं।
टिप्पणी- भले ही चंद्रमा के घूर्णन की धुरी क्रांतिवृत्त (एक्लिप्टिक) तल के लगभग लंबवत है, लेकिन किसी भी पर्वत शिखर पर ‘निरंतर सूर्य का प्रकाश' तभी हो सकता है जब वह लगभग दक्षिणी ध्रुव पर हो। चंद्रयान-3 का अवतरण स्थल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से 500 कि.मी. से अधिक दूर है। ऐसे में अवतरण स्थल के पास ऐसी पर्वत चोटियों का पता लगाना संभव नहीं है।
ङ.मॉड्यूल उवाच- (गतिविधि-1) चंद्रयान-3 बनाने में उपयोग की जाने वाली स्वदेशी सामग्रियों की सूची बनाएं जिसने चंद्रयान-3 को एक बजट अनुकूल मिशन बनाया।
(स्रोत फीचर्स)