विचार / लेख
दिपाली अग्रवाल
जैसे ही कैब ली तो ड्राइवर ने बताया कि आप जैसे सारे कस्टमर हों तो कितना अच्छा हो। मैं अचानक हुई इस प्रशंसा पर चौंकी तो उसने कहा कि आप आगे गाड़ी तक ख़ुद ही चलकर आ गईं, अधिकतर लोग इंतज़ार ही करते रहते हैं। मैंने सोचा कि इंतजार से अच्छा है कि ख़ुद चलकर जाया जाए लेकिन बहुत बात करने का मूड नहीं था। मैं किसी काम को लेकर कुछ मनन कर रही थी कि वो अपनी कहानी सुनाने लगे कि कैसे यहां एक सत्तर साल के बुजु्र्ग रहते हैं जो महीने की 45.000 रुपया कैब में देते हैं और उनका एक बेटा है जिसके पास मर्सिडीज़ है। थोड़ी जिज्ञासा जगी कि उस व्यक्ति के बारे में और पूछूं लेकिन ख़ुद को रोक लिया। मै सुबह ही बाहर से लौटी हूंं, 5 बजे की जागी और किसी काम के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए मुझे कुछ मंथन करना था लेकिन कैब वाले अंकल रुके नहीं, वे लगातार कहानी सुनाते रहे। मेरी हम्म से वे जान नहीं पाए कि मैं बहुत सुनने की इच्छा में नहीं हूं। वे अपने बारे में बताने लगे कि दिल्ली-एनसीआर में कई जगह फ़्लैट खऱीद रखे हैं, बेटे के लिए। अब देखना है कि बेटा कितने पैसे कमाता है।
इन सब पर बहुत अनिच्छा से मैंने पूछा कि वे कहां से हैं, वे बोले मथुरा तो मुझे उत्साह हुआ। मैंने बताया कि मथुरा से हूं मैं भी, किसी दूसरे शहर में किसी अपने शहर के व्यक्ति का मिलना शहर में पहुंचने जैसा ही लगता है। वे बोले कि राया से हूं और उनके समधी बरसाने मंदिर में किसी पद पर हैं। इसमें गर्व जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि - आप लोगों को राधारानी के पैर नहीं छूने देंगे लेकिन हम लोग छू लेते हैं। फिर उन्होंने बताया कि बेटे की शादी तय हो गई है, दो महीने बाद है। बेटा नोएडा में ही नौकरी करता है और 6 फुट 2 इंच का है पर लडक़ी 5 फुट 2 इंच की है। वे व्यथा ज़ाहिर करते हुए बोले कि आजकल लड़कियों की हाइट कम ही रह जाती है, मैंने अपनी ओर देखकर सहमति जताई। वे बोले कि जिनकी हाइट ज़्यादा है भी वो नोन-वेज खाती हैं और उन्हें वेजेटेरियन ही बहू चाहिए। इसकी बात में कितनी वैज्ञानिक सच्चाई है, ये तो ईश्वर ही जाने। ख़ैर, बात तो अब लंबी चल पड़ी।
वे अपने फ़ोन में बेटे, होने वाली बहू और समधी की तस्वीरें दिखाने लगे. कुछ संतों की तस्वीरें भी थीं। बात बरसाने से होकर कृपालु महाराज और गोकुल तक भी पहुंच गई। वे सबकी तस्वीरें दिखाते जाते। मैंने ध्यान से देखा उनकी उम्र कुछ 46 के कऱीब होगी। फिर वे बोले कि शिक्षा का बहुत महत्व है लेकिन अपनी ही बात को फिर काटकर बोले कि जितना मैंने कमा लिया क्या कोई नौकरी वाला कभी कमा पाएगा, किस तरह उन्होंने संघर्ष किया है, गाडिय़ां चलाईं, पैसे बचाए और ज़मीनें खऱीदीं। उस पल तो सुनने में सब बहुत आसान ही लग रहा था लेकिन अब वे आराम करना चाहते हैं। बरसाने में ही घर बना रहे हैं और राधा रानी की सेवा में जीवन बिताना है।
मुझे ऑफि़स पहुंचने की जल्दी थी और काम करना था। मैं शांत बैठ गई और वे बोलते रहे फिर दफ़्तर उतारने तक भी तस्वीरें दिखाते रहे। मैंने उन्हें बताया था कि मैं भी मथुरा से हूं लेकिन इससे उन्हें कोई ख़ास जिज्ञासा नहीं हुई थी। पर मुझे गाड़ी से उतरना था और उनको टोकना अनादर लग रहा था। अंत में वे बोले कि मैंने आपका समय खऱाब किया उसके लिए स़ॉरी। मैंने हंसते हुए कहा कि - नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं, उन्होंने राधे-राधे कहा और मैंने कहा - जय श्रीकृष्ण।
कई बार सोचना टाल देना चाहिए, जीवन कितने रूपों में सामने आता है, कितने अनुभवों के साथ। यही सोचकर अब उस विषय पर मंथन करूंगी जिस पर काम करना है।