विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
उत्तराखंड के सिलक्यारा में सुरंग निर्माण कार्य में लगे इकतालीस मजदूरों के सकुशल बाहर निकलने से देश के उन तमाम संवेदनशील नागरिकों ने राहत की सांस ली है जो सत्रह दिन से सुरंग धंसने से उसमें फंसे हुए लोगों के लिए चिंतित थे। प्रकृति और पर्यावरणविदो का एक बड़ा वर्ग पूरे हिमालय पर्वत श्रृंखला में हो रहे निर्माण कार्य पर चिंता जाहिर करता रहा है। यह अकारण नहीं है कि पिछ्ले कुछ दशकों से हिमालय के लिए चिंतित लोग सरकार और प्राइवेट कंपनियों द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों में किए जा रहे अंधाधुंध निर्माण कार्यों का जबरदस्त विरोध करते रहे हैं । विगत दो दशक में हिमालय में प्राकृतिक और मानव पोषित आपदाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है। केदारनाथ की बाढ़ से लेकर जोशी मठ के मकानों और सडक़ों की दरारों तक कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनसे यह प्रमाणित होता है कि हिमालय पर्वत श्रृंखला अंधाधुंध विकास को सहन करने में सक्षम नहीं है। ऐसा लगता है कि केन्द्र और राज्य सरकार की हिमालय पर्वत श्रृंखला में विकास कार्य की कोई स्पष्ट नीति नहीं है, इसीलिए इस क्षेत्र में भयावह प्राकृतिक आपदाओं और सिलक्यारा जैसी दुर्घटनाओं की पुनरावृति की संभावना बनी रहेगी।
सिलक्यारा सुरंग निर्माण का कार्य केंद्रीय परिवहन विभाग की राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के अंतर्गत चारधाम यात्रा मार्ग को सुगम बनाने के लिए शुरु किया है। लगभग साढ़े चार किलोमीटर लंबी सुरंग के निमार्ण से वर्तमान गंगोत्री यमुनोत्री मार्ग की 25 किलोमीटर दूरी घटकर 5 किलोमीटर रह जाएगी और इस सुरंग के बाद 60 मिनट का सफर घटकर 5 मिनट रह जाएगा। निश्चित रुप से चारधाम यात्रा के तीर्थयात्रियों को सुरंग बनने से यात्रा में सहूलियत होगी लेकिन हिमालय क्षेत्र के संवेदनशील इलाकों में लंबी सुरंग बनाने से कमजोर पहाड़ी क्षेत्रों में भू स्खलन आदि की समस्याओं में भी इजाफा होता है। इसीलिए पर्यावरणविद इन इलाकों की विकास योजनाओं को प्रकृति केंद्रित रखने पर जोर देते हैं ताकि तीर्थाटन और पर्यटन के नाम पर प्रकृति और पर्यावरण से खिलवाड़ न हो। चारधाम की यात्रा उस दौर में भी की जाती थी जब आवागमन के लिए आज जैसी सुविधाओं का नितांत अभाव था। उन दिनों केवल धार्मिक प्रवृत्ति के लोग ही तीर्थाटन करते थे लेकिन इधर धार्मिक और मौज मस्ती के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पहाड़ों पर चौड़ी सडक़ें, बडी बडी सुरंग और विशाल होटल और रिजॉर्ट आदि के निमार्ण से प्रकृति और पर्यावरण का महाविनाश किया जा रहा है। पिछली आपदाओं और दुर्घटनाओं से भविष्य के लिए कोई खास सबक नहीं लिया गया। संभावना यही है कि कुछ समय बाद सिलक्यारा की दुर्घटना को भी वैसे ही भुला दिया जाएगा जैसे केदारनाथ और जोशीमठ की आपदा को भुला दिया गया।
सिलक्यारा की दुर्घटना में एन डी आर एफ की टीमों ने सत्रह दिन तक अथक प्रयास कर यह साबित कर दिया कि दुर्घटनाओं के दुष्प्रभाव से लोगों को बचाने के लिए हमारी तकनीकी क्षमता में अच्छा खासा विकास हुआ है। दूसरे,इस दुर्घटना ने एक बार फिर हमें चेताया है कि हिमालय क्षेत्र में भारी निर्माण करने के दौरान जमीन धंसने से बडी दुर्घटना घट सकती है। ऐसे निर्माण इस संवेदनशील क्षेत्र में प्रकृति और पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं इसलिए हिमालय के संतुलित विकास के लिए एक दूरगामी योजना बनाई जानी चाहिए। इस क्षेत्र में बड़े निर्माण कार्य की जगह प्रकृति केंद्रित विकास ही स्थाई हल है। यदि सरकारें प्रकृति और पर्यावरण को दरकिनार कर इसी तरह बडी बडी परियोजनाओं को क्रियान्वित करती रहेंगी तो प्राकृतिक आपदाओं और दुर्घटनाओं की पुनरावृति को रोकना संभव नहीं होगा।