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उत्तरकाशी की सुरंग में फंसने वाले बिहार के मजदूरों ने सुनाया 17 दिन का हाल
02-Dec-2023 4:22 PM
उत्तरकाशी की सुरंग में फंसने वाले बिहार  के मजदूरों ने सुनाया 17 दिन का हाल

चंदन कुमार जजवाड़े

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग से निकलने वाले बिहार के मजदूरों ने बीबीसी हिंदी से उन 17 दिनों के अपने अनुभव साझा किया जब वो अंदर उम्मीद के सहारे समय काट रहे थे।

सुरंग में फंसे 41 मजदूरों में बिहार के भी 5 मजदूर थे, जो शुक्रवार को पटना पहुंचे और फिर अपने-अपने घरों की तरफ रवाना हुए। घर पहुंचने पर इनका जोरदार स्वागत किया गया। इस स्वागत के पीछे इन मज़दूरों का सत्रह दिनों का साहस है, जिसने उन्हें मुश्किल समय में हिम्मत दी।

किसी भी लंबी सुरंग के अंदर सूनेपन में भी एक आवाज होती है, फिर अंधेरा, मिट्टी और कीचड़। यहां न सोने की जगह होती है और न ही शौच की।

मजदूरों ने सत्रह दिनों का यह समय कैसे गुजारा था, अपने इस खौफनाक अनुभव को उन्होंने साझा किया। बिहार के भोजपुर जि़ले के पेउर गांव के सबा अहमद करीब 14 साल से उसी कंपनी में काम कर रहे हैं, जो उत्तरकाशी का सुरंग बना रही है।

सबा अहमद ने बताया कि अंदर फंसे लोगों में वो सबसे अनुभवी थे और सीनियर फोरमैन के तौर पर काम कर रहे थे। यह प्रोजेक्ट साल 2018 के अंत में शुरू हुआ था। उत्तराखंड में सुरंग हादसे में बचाए गए बिहार के मजदूर सोनू के परिवार का क्या हाल है?

जब इलेक्ट्रीशियन ने शोर मचाना शुरू किया

जिस दिन यानी 12 नवंबर को यह हादसा हुआ उस दिन भारत में दिवाली का त्योहार था। सुरंग के अंदर सभी मजदूर 11 नवंबर की रात से ड्यूटी पर तैनात थे और उन्हें अपना काम पूरा करना था।

सबा ने बताया कि सभी मजदूरों को उस फेस का काम पूरा कर काम बंद करना था, ताकि दिवाली की तैयारी कर सकें।

दरअसल सुरंग बनाते समय इस बात का ख़्याल रखा जाता है कि किसी काम को बीच में न छोड़ा जाए, जिससे कोई हादसा या परेशानी होने की आशंका हो।

इसी दौरान सुबह कऱीब 5 बजे एक इलेक्ट्रीशियन ने शोर मचाना शुरू किया कि सुरंग धंस रही है। यह सुनकर सबा अहमद सुरंग के अंदर इस्तेमाल में आने वाली एक गाड़ी (मशीन) को लेकर उस तरफ भागे, जहां सुरंग के धंसने की बात की गई थी।

सबा अहमद याद करते हुए कहते हैं, ‘मैं गाड़ी चलाते हुए बढ़ता गया। मुझे कहीं कुछ नहीं दिख रहा था। फिर जब सुरंग से बाहर निकलने वाले छोर के कऱीब 250 मीटर अंदर था तो देखा कि वहां सुरंग धंस गई है।’

सबा अहमद ने बताया, ‘हमने फौरन अपना फ़ोन लगाने की कोशिश की लेकिन सुरंग के अंदर फोन काम नहीं करता है। उस वक्त सभी मज़दूरों को घबराहट होने लगी कि अब वो कैसे बाहर निकलेंगे।’

शुरू में यह सुरंग करीब 10 मीटर तक धंसी थी, लेकिन इसके मलबे से होकर कहीं-कहीं से बाहर की थोड़ी रोशनी अंदर तक आ रही थी। थोड़ी देर में इन मज़दूरों को खय़ाल आया कि सुरंग में मौजूद पानी के पाइप से कोई सिग्नल भेजने की कोशिश की जा सकती है।

सबा ने बताया कि सुरंग की खुदाई करते समय एक पाइप के जरिए बाहर से ताज़ा पानी अंदर की तरफ लाया जाता है ताकि चट्टानों को काटने के दौरान मशीन को ठंडा रखा जा सके। जबकि एक अन्य पाइप से सुरंग के अंदर के गंदे पानी और कीचड़ को बाहर निकाला जाता है।

पानी के पाइप के सहारे दिए संकेत

सबा के मुताबिक, उन लोगों ने तीन चार बार पंप चलाकर अंदर के पानी को कभी बाहर भेजा तो कभी बंद किया। इससे बाहर मौजूद लोगों को यह सिग्नल मिल गया कि अंदर मजदूर सुरक्षित हैं और कुछ कहना चाहते हैं।

सबा ने बीबीसी को बताया कि उन्हें इसकी ट्रेनिंग दी जाती है कि कोई भी सुरंग बनाते समय यही पाइप लाइन सभी मज़दूरों के लिए जीने का सहारा होती है। इसलिए पानी के पाइप को सुरंग के एक तरफ और बिजली के तारों को दूसरी तरफ रखा जाता है।

यह सब करने में मजदूरों को कऱीब 11 से 12 घंटे लग गए। उसके बाद वो फिर से निराशा में घिर गए, क्योंकि बाहर लोगों को क्या संकेत मिला है और बाहर के लोगों ने क्या समझा है, यह मजदूरों को पता नहीं था।

सबा याद करते हैं, ‘हम सभी थक हारकर इंतजार कर रहे थे, तभी अचानक सुरंग के अंदर सांय- सांय की आवाज़ आने लगी और सभी मज़दूर घबरा गए। थोड़ी देर में हमें पता चला कि पानी के पाइप से अंदर ऑक्सीजन भेजा जा रहा है और यह उसी की आवाज़ है।’

इस तरह से सभी मज़दूरों को थोड़ी राहत ज़रूर मिली। लेकिन अभी उनके सामने और भी परेशानी थी। 41 प्यासे लोगों के लिए सुरंग के अंदर कऱीब 50 लीटर पानी बचा था, जबकि खाने को कुछ नहीं था।

बिहार के सारण जि़ले के खजुवान गांव के सोनू साह के मुताबिक़, उन्हें शुरुआत के चौबीस घंटे तक काफ़ी घबराहट रही थी। उसके बाद जब कुछ नहीं हुआ तो सभी को लगने लगा कि वो बच जाएंगे।

इसी दौरान छह इंच के एक पाइप को सुरंग के अंदर पहुंचाकर मज़दूरों के लिए खाने को कुछ भेजने की तैयारी हो रही थी, लेकिन यह पाइप मलबे से टकराकर ऊपर की तरफ चला गया। हालांकि बाद में पाइप सही जगह पर पहुंच गया और अंदर फंसे लोगों के लिए काजू, किशमिश, चने और खाने की कई चीजें भेजी जाने लगीं।

अंदर दो किलोमीटर तक खुदाई हुई थी

बिहार के ही मुजफ्फरपुर के सरैया के रहने वाले दीपक भी उन्हीं मजदूरों में शामिल थे, जो सुरंग के अंगर फंसे थे।

दीपक याद करते हैं, ‘दो दिनों तक हमें काफ़ी डर लग रहा था कि क्या होगा, बचेंगे या नहीं। लेकिन खाने पीने की चीजें आने लगी थीं और फिर हमारे सीनियर फोरमैन ने समझाया कि कुछ नहीं होगा, घबराना नहीं है। उन्हें ऐसी स्थिति का पहले से थोड़ा-बहुत अनुभव था।’

सबा अहमद ने बताया कि 12 नवंबर को सुरंग जिस जगह पर धंसी थी, उसी जगह पर फिर से कुछ मलबा गिरा।

अगली रात को भी इस जगह पर कुछ मलबा गिरा और सुरंग पूरी तरह बंद हो गई। इस तरह से अब बाहर से रोशनी तो क्या हवा तक आने के लिए जगह नहीं बची।

सब अहमद कहते हैं, ‘मेरे अनुभव में इससे सुरंग के और धंसने का रास्ता बंद हो गया, क्योंकि मलबा ऊपर तक चला गया और इससे सुरंग के धंसने की जगह नहीं बची।’सिलक्यारा सुरंग जिस जगह पर धंसी थी, उससे बाहर निकलने का छोर कऱीब 250 मीटर दूर था।

जबकि अंदर दो किलोमीटर से ज़्यादा खुदाई हो चुकी थी। इसी खुली जगह ने सभी लोगों की जान बचाने में बड़ी मदद की।

सुरंग में शौच के लिए कऱीब डेढ़ किलोमीटर अंदर मशीन से कुछ गड्ढे तैयार किए गए, जिन्हें शौच के लिए इस्तेमाल किया गया। साफ-सफाई को लेकर भी लोगों को हिदायत दी गई ताकि कोई संक्रमण न फैले।

वॉटरफ्रूफिंग शीट को बनाया बिस्तर

इन मुश्किल परिस्थितियों में इस सुरंग की एक और खासियत ने अंदर फंसे लोगों की मदद की।

दरअसल सुरंग में अंदर काफी ढलान है, जिससे मशीन के लिए इस्तेमाल होने वाला पानी, या पहाड़ों से रिसने वाला पानी दूसरे छोर पर इक_ा हो रहा था और सुरंग में बाक़ी जगह पर कीचड़ जैसी स्थिति नहीं थी। इसलिए सभी लोगों के बैठने और आराम करने के लिए सूखी जगह मौजूद थी, लेकिन सुरंग के अंदर ठंड भी काफ़ी ज़्यादा होती है।

सोनू साह बताते हैं, ‘सुरंग में वॉटरप्रूफिंग के लिए जो शीट लगाई जाती है। सुरंग में बड़ी मात्रा में वह शीट मौजूद थी। हमने उसी को चाकू से काटकर ज़मीन पर बिछा दिया और उसी पर सोते थे, उसी को ओढ़ते थे।’

सबा अहमद याद करते हैं, ‘कुछ लोग सो जाते थे, लेकिन मैं पिछले 18 दिनों से नाइट ड्यूटी पर था तो ठीक से सो नहीं पा रहा था। सुरंग में सबसे सीनियर मैं ही था और हर परिस्थिति पर नजऱ रखनी होती। इसलिए कऱीब 5 बजे सुबह सोता था और फिर 7 बजे से बाहर से संपर्क शुरू हो जाता था, इसलिए जगना होता था।’

इस तरह से सारे मज़दूर बाहर से पाइप के ज़रिए आने वाले भोजन के सहारे थे। आपस में बातचीत और एक दूसरे को भरोसा दिलाते हुए उनका समय गुजऱ रहा था।

एक बार भोजन और पानी पहुंचने के बाद मज़दूरों को लगा कि अब वो सुरक्षित निकल जाएंगे।

दरअसल बाहर से सुरंग के अंदर के हालात और माहौल को समझ पाना मुश्किल था, लेकिन अंदर दो किलोमीटर से ज़्यादा लंबी सुरक्षित जगह और सुरंग में लगातार काम करने से जाना-पहचाना माहौल इन मज़दूरों को हौसला दे रहा था।

ताश की गड्डियों की मांग

सबा अहमद बताते हैं, ‘मैंने इस तरह से प्रोजेक्ट पर कई साल काम किया है, इसलिए भरोसा था कि बाहर निकल जाएंगे, क्योंकि सुरंग से निकलने के चार-पांच तरीके होते हैं। हमें जिस तरीके से निकाला गया वह सबसे बेहतर तरीका है।’

सोनू के मुताबिक़, एक बार जब यह लगने लगा कि वो सुरक्षित बच जाएंगे तो समय काटने का जुगाड़ सबसे ज़रूरी था। इसके लिए उन्होंने 6-7 गड्?डी ताश अंदर भेजने की मांग की।

सोनू ने बीबीसी को बताया, ‘मैंने ही जीएम साहब से इसके लिए आग्रह किया तो उन्होंने कहा ठीक है। फिर ताश आ गया, लेकिन ज़्यादातर लोगों को पता ही नहीं था कि ताश खेलते कैसे हैं।

उसके बाद कई लोगों को ताश खेलना सिखाया गया और अलग-अलग ग्रुप बनाकर सुरंग के अंदर ताश खेलकर समय गुज़ारने लगे।’

फिर कऱीब एक हफ़्ते के बाद जब पहली बार जब इन मजदूरों का वीडियो सामने आया तब उनके घरवालों को भी थोड़ी राहत मिली।

मज़दूरों के घर वाले उन्हें सीधा देख पा रहे थे और बात भी कर पा रहे थे। इससे मज़दूरों का भी हौसला बढ़ा। इस दौरान नेता, मंत्री, बचाव दल और कई लोगों ने उनसे बात की।

मज़दूरों ने धामी से कहा- ‘जल्दबाज़ी न करना’

सबा अहमद के मुताबिक़, ‘हमें किसी भी समय नहीं लगा कि अब जि़ंदा नहीं बचेंगे। इसलिए उत्तराखंड से मुख्यमंत्री धामी जी को हमने कहा कि सर जल्दबाज़ी या घबराहट में कुछ नहीं करना है हम सब सुरक्षित हैं, आराम से काम करें, लेकिन हमें सुरक्षित बाहर निकाल दें।’

इस तरह से देश विदेश के विशेषज्ञ, कई तरह की मशीनें और तकनीक के सहारे आखऱिकार 17 दिनों बाद 28 नवंबर मंगलवार की शाम इन सभी मज़दूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।

सुरंग से बाहर निकलते ही सभी मज़दूरों के चेहरे खिल गए और उन्होंने अपने-अपने घरवालों से बात की।

लेकिन सुरंग के अंदर 400 घंटे से ज़्यादा समय तक सुरक्षित बचे रहने में सबा अहमद, सबसे बड़ा योगदान पानी निकालने वाले पाइप का मानते हैं। (bbc.com/hind)

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