विचार / लेख

स्टेडियम में जाकर क्रिकेट मैच
02-Dec-2023 4:25 PM
स्टेडियम में जाकर क्रिकेट मैच

संजीव खुदशाह

कल पहली बार स्टेडियम में अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय क्रिकेट देखने का मौका मिला।

यकीन मानिए तो क्रिकेट से मेरा विश्वास उठ चुका है। तब जब मैच फिक्सिंग के मामले में क्रिकेट की थू थू हुई थी। एक समय क्रिकेट को लेकर दीवानगी मेरे अंदर थी।

लेकिन अब वह बात नहीं है टीवी पर भी क्रिकेट मैं बहुत कम देखता हूं। कोई बहुत खास मैच होता है तभी टीवी के सामने बैठता हूं।

कल मुझे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच जो की रायपुर के शहीद वीर नारायण अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में खेला गया देखने का मौका मिला जो की मित्रों द्वारा प्रायोजित था।

स्टेडियम की ओर जाती हुई भीड़ देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि क्रिकेट को लेकर कितनी दीवानगी है। बच्चे, बूढ़े, औरत, नौजवान, लड़कियां सब स्टेडियम की ओर जा रहे थे।

गेट पर ही पानी के बोतल, सिक्के, खाने की वस्तुएं रखवा ली गई। भीतर जाने के बाद पता चला कि?20 की पानी की बोतल ?100 में और खाने के जो समान है। उनका रेट कितना ज्यादा की मत पूछिए।

जैसे ही मैं स्टेडियम के भीतर पहुंचा आवक रह गया। स्टेडियम में खचाखच भरी भीड़ और दूधिया रोशनी से नहाती खिलाडिय़ों के मैदान। बेहद आकर्षक लग रहे थे। हम लोग जब अपनी सीट पर बैठकर क्रिकेट का आनंद लेने की कोशिश करने लगे तो महसूस हुआ की इससे ज्यादा अच्छा तो टीवी में लगता है। ऐसा लगता है कि हम खिलाडिय़ों के साथ ही घूम रहे हैं या मैदान के बीच में है।

लेकिन क्रिकेट के मैदान में बात दूसरी हो जाती है। कौन बैटिंग कर रहा है? कौन बॉलिंग कर रहा है? आप समझ नहीं पाते. यह जानने के लिए डिस्प्ले बोर्ड जो मैदान में 1 या 2 होते हैं उनका सहारा लेना पड़ता है। बच्चे बूढ़े सब अपने गालों में तिरंगा झंडा बनाए हुए। भारतीय टीम की नीली शर्ट जो मैच के दौरान, एक-दो घंटे के लिए ही पहननी थी लोगों ने 150, 300 में खरीदा था। ऐसा नहीं लग रहा था की यह कार्यक्रम किसी विकासशील देश में हो रहा है। लोगों की खरीदने की ताकत पहले से कहीं अधिक है। टिकट की मूल या 3500 से 25000 तक थे।

क्रिकेट का मैच दरअसल एक इवेंट हो गया है। ओवर खत्म होने के बाद आकर्षक म्यूजिक बजाया जाता है। चौका- छक्का या विकेट गिरने पर भी चीयर गर्ल्स नाचती हैं या फिर लोकल कलाकार डांस करते हैं। और दर्शकों को टीम से कोई लेना-देना नहीं। देशभक्ति तो अपनी जगह है। लेकिन दर्शक सिर्फ और सिर्फ इंजॉय करने के लिए वहां पर जाते हैं। उन्हें हर बॉल पर हर रन पर चिल्लाना है, खुशियां मनाना है। यह बड़ा अच्छा संकेत है कम से कम अति राष्ट्रवाद और किसी देश को लेकर के वह वैमनस्यता वाली बात यहां पर नहीं दिखती है।

आम भारतीयों के जीवन में ऐसी कुछ कमी रह गई है जो उनकी खुशियों में बाधा है इस बाधा को दूर करती है क्रिकेट। जो मैदान में जाकर देखी जाती है। इसे आप मैदान में जाकर देखें बिना महसूस नहीं कर सकते।

क्रिकेट मैच के ऑर्गेनाइजर आम जनता की इस जरूरत को समझ चुके हैं। इसीलिए इवेंट को इस तरह से रचा जाता है की क्रिकेट सिर्फ और सिर्फ एक मनोरंजन का खेल लगता है। जिसमें कोई देश जीते, कोई देश हरे। जो जनता अपनी पैसे को खर्च कर वहां पर आई है उसका सिर्फ और सिर्फ एक मकसद होता है एंजॉय करना। खुशियां मनाना। यह बात सही है कि अपने देश को हराते हुए देखना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है। फिर भी खेल भावना लोगों में अपनी जगह बना रही है।

बॉलीवुड की फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही है जिसका टिकट 150 से ?400 का लेकिन लोग उसे नहीं देखने जाते हैं?। जबकि क्रिकेट का टिकट 3000 से लेकर 25000 तक है। फिर भी लोग वहां जा रहे हैं क्योंकि वह एंजॉयमेंट, वह दीवानगी जो क्रिकेट में है वह फिल्में नहीं दे पा रही हैं। या कहीं और ऐसा मनोरंजन उनको नहीं मिल पा रहा है।मुझे लगता है कि एक न एक बार इस तरह स्टेडियम में जाकर क्रिकेट मैच जरूर देखना चाहिए।

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