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चीनी सामान का बायकॉट करना भारत के लिए कितना मुश्किल
18-Jun-2020 7:24 PM
चीनी सामान का बायकॉट करना भारत के लिए कितना मुश्किल

लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष में भारतीय जवानों की मौत के ख़िलाफ़ बुधवार को भारत के अलग-अलग राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुए।

पश्चिम बंगाल के एक प्रमुख औद्योगिक शहर सिलीगुड़ी में स्थानीय व्यापारियों ने मशहूर हॉन्गकॉन्ग मार्केट का नाम बदलने का भी फैसला किया।

यही हाल गुजरात के अहमदाबाद शहर का भी रहा। सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें जनता चीन की कंपनी के टीवी को तोड़ते दिखाई दे रही है।

दिल्ली में कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स ने भारतीय सामान हमारा अभिमान के नाम से नया कैंपेन लॉन्च कर दिया। इसके साथ ही फिल्मी सितारों से अपील की गई है कि वो चीनी सामान के विज्ञापन ना करें।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार चीनी मोबाइल कंपनी ओपो ने बुधवार को भारत में ऑनलाइन लॉन्चिंग कार्यक्रम रद्द कर दिया।

चीनी सामान को बाय-बाय कहना कितना संभव

क्या मेड इन चाइना को एक झटके में ऐसे बाय-बाय बोला जा सकता है?

इसको जानने और समझने के लिए ये जानना ज़रूरी है कि चीन, भारत को क्या बेचता है। और चीन भारत से क्या खऱीदता है।

चीन, भारत को जो चीज़ें बेचता है, वो हैं-

मशीनरी, टेलिकॉम उपकरण, बिजली से जुड़े उपकरण, ऑर्गैनिक केमिकल्स यानी जैविक रसायन और खाद।

भारत के रसोई घर, बेडरूम में, एयर कंडीशनिंग मशीनों की शक्ल में, मोबाइल फोन और डिजिटल वैलेट के रूप में चीन कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में मौजूद है।

कुछ नया मिला, कुछ सस्ता मिला और बहुत सुंदर मिल जाए जब हर ग्राहक की माँग ये होती है, तो व्यापारी के पास चीनी सामान के अलावा दूसरा विकल्प नहीं होता।

इसलिए चाहे दिल्ली का सदर बाजार हो या पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी का हॉन्गकॉन्ग मार्केट, सभी चीनी सामान से पटे पड़े होते हैं।

एक सच्चाई ये भी है कि चीनी स्मार्टफ़ोन ओप्पो, श्याओमी जैसे ब्रैंड्स भारत में हर दस में से आठ बिकने वाले स्मार्टफोन हैं।

ऐसे में जब भारतीय मीडिया में केंद्र सरकार के सूत्रों के हवाले से ये ख़बर चलती है कि बीएसएनएल और एमटीएनएल को आदेश दिया गया है कि 4 फीसदी के लिए चीनी उपकरणों का इस्तेमाल रोका जाए, तो एक सवाल तो उठता है कि वास्तव में ये कितना संभव है। इसलिए जान लीजिए कि चीन का भारत में निवेश कितना है।

चीनी निवेश

चीन ने भारत में छह अरब डॉलर से भी ज़्यादा का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रखा है जबकि पाकिस्तान में उसका निवेश 30 अरब डॉलर से भी ज़्यादा का है।

मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक गेटवे हाउसने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का निवेश है।

इसकी हालिया रिपोर्ट में जानकारी सामने आई है कि भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है। यूनिकॉर्न एक निजी स्टार्टअप कंपनी को कहते हैं जिसकी कीमत एक अरब डॉलर है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि तकनीकी क्षेत्र में निवेश की प्रकृति के कारण चीन ने भारत पर अपना कब्जा जमा लिया है।

उदाहरण के लिए, बाइटडांस, टिकटॉक की मूल कंपनी है, जो चीन की है और यह यूट्यूब के मुकाबले भारत में काफी लोकप्रिय है।

सामरिक चीनी निवेश पर भारत सरकार थोड़ा सतर्क थी। हाल ही में उसने अपनी नई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति को यह कहकर टाल दिया कि भारत के साथ ज़मीनी सीमा से जुड़े देशों के सभी निवेशों को निवेश से पहले मंजूरी की आवश्यकता होगी।

कारोबार में चीन को ज़्यादा फ़ायदा

भारत और चीन के बीच कारोबार में किस तरह बढ़ोतरी हुई है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इस सदी की शुरुआत यानी साल 2000 में दोनों देशों के बीच का कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था जो 2008 में बढक़र 51.8 अरब डॉलर का हो गया।

इस तरह सामान के मामले में चीन अमरीका की जगह लेकर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।

2018 में दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते नई ऊंचाइयों पर पहुँच गए और दोनों के बीच 95.54 अरब डॉलर का व्यापार हुआ।

कारोबार बढ़ रहा है, इसका यह मतलब नहीं है कि फ़ायदा दोनों को बराबर हो रहा है।

भारतीय विदेश मंत्रालय के वेबसाइट के मुताबिक, 2018 में भारत चीन के बीच 95.54 अरब डॉलर का कारोबार हुआ लेकिन इसमें भारत ने जो सामान निर्यात किया उसकी क़ीमत 18.84 अरब डॉलर थी।

इसका मतलब है कि चीन ने भारत से कम सामान खऱीदा और उसे चार गुने से भी ज़्यादा सामान बेचा। ऐसे में इस कारोबार में चीन को फ़ायदा अधिक हुआ है।

चीन में भारत का सामान

भारत चीन को मुख्य रूप से जो चीज़ें बेचता है, वो हैं- कॉटन यानी कपास, कॉपर यानी तांबा, हीरा और अन्य प्राकृतिक रत्न, दवाइयां, आईटी सेवाएं, इंजीनियरिंग सेवाएं।

इसके अलावा चावल, चीनी, कई तरह के फल और सब्जिय़ां, मांस उत्पाद, सूती धागा और कपड़ा भी भारत बेचता है।

यहाँ एक और बात जो ध्यान देने वाली है वो ये कि कई सामान जो हम दूसरे देशों को बेचते हैं उनके लिए कच्चा माल भी हम चीन से खऱीदते हैं जैसे दवाइयाँ।

लेकिन ये भी सच है कि चीन और भारत के व्यापार में संतुलन की कमी है। भारत को अगर किसी देश के साथ सबसे ज़्यादा कारोबारी घाटा हो रहा है तो वह चीन ही है।

यानी भारत, चीन से सामान ज़्यादा खऱीद रहा है और उसके मुक़ाबले बेच बहुत कम रहा है।

2018 में भारत को चीन के साथ 57.86 अरब डॉलर का व्यापारिक घाटा हुआ।

साफ़ है कि चीनी सामान को बाय-बाय करने के पहले भारत को उनके दूसरे सस्ते विकल्प तलाशने पड़ेंगे। (बीबीसी)

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