विचार / लेख
युद्व को फैटेंसाइज, ग्लैमराइज मत कीजिए। पाकिस्तान, चीन या हम खुद भी मोहल्लों के गैंग नहीं हैं कि थोड़े ज्यादा लडक़े ले जाकर उन्हें पीटकर आ गए। या कभी वे ज्यादा हुए तो हम पिट गए।
दूध मांगोगे तो खीर देगे, कश्मीर मांगोगो तो चीर देंगे या हम एक सिर के बदले दस सिर लेकर आएंगे। ये जुमले और डायलॉग सिनेमा और चुनावी रैलियों में रोंगटे खड़े करने के लिए अच्छे हैं लेकिन इन्हें आप असली मत मान लीजिए। आप ये मानिए कि सनी देओल और नरेंद्र मोदी उस समय एक किरदार में थे, और एक किरदार के डायलॉग बोल रहे थे। सिनेमा और चुनाव युद्ध को भरपूर भुनाते हैं। उसमें एक थ्रिल इलीमेंट होता है आप उनका मजा लीजिए। लेकिन सच में युद्ध के करीब जहां तक संभव हो खुद को ले जाने से बचा लीजिए। सरकारों का अपना एक किरदार होता है, वे कभी युद्ध नहीं चाहती, आप भी मत चाहिए।
फस्र्ट और सेकेंड वल्र्ड वॉर की ज्यादातर वजहें उपनिवेश के विस्तार की और अपनी नस्ल को श्रेष्ठ साबित करने में छिपी हुई हैं। दूसरी नस्ल के लिए घृणा भी युद्ध की एक वजह रही है। शासकों ने युद्व इसलिए लड़े क्योंकि जनता युद्ध के लिए तैयार थी। जनता उसे अपने स्वाभिमान के साथ जोड़ चुकी थी। तो आपको युद्ध के लिए तत्पर दिखना सरकार के लिए युद्व में जाने के रास्ते खोलेगा।
युद्धों के परिणाम से आप वाकिफ हैं। ब्रिटेन जैसा मुल्क जिसके उपनिवेश हर महाद्वीप में फैले थे वह हमेशा के लिए खोखला हो गया। एक सनकी की सनक पर नाच रहा जर्मनी अपनी छाती पर दशकों तक एक दीवार लिए जीता रहा। कई सारे ताकतवर देश हमेशा के लिए किसी दूसरे देश पर आश्रित हो गए। कुछ देशों में अब तक अपाहिज नस्लें पैदा हो रही हैं। इन युद्वों के मुख्य किरदार जर्मनी और ग्रेट ब्रिटेन से आज पूछिए कि उन्हें युद्व में क्या हासिल हुआ?
हो सके तो सेकेंड वल्र्ड वॉर से जुड़ी तमाम सारी डाक्यूमेंट्रीज देखिए। उस पर रचे गए सिनेमा को देखिए। उससे जुड़ा साहित्य पढि़ए। अंतत: युद्व देश को खोखला करने और परिवारों को उजाड़ देने वाला ही साबित होता है। वाट्सअप पर मैसेज आते हैं कि हमारे 20 सैनिक मरे और चीन के 34। एक पल के लिए इस गणतीय जीत से हटकर उन 20 परिवारों के नजरिए से चीजों को देखिए। पता नहीं परिवार के मुखिया को हमेशा के लिए खो देने के कष्ट से आप निजी तौर पर कितना वाकिफ हैं लेकिन उस दर्द को महसूस करने की कोशिश कीजिए।
भारत, पाकिस्तान से लड़े या चाइना से भारत अकेले इन देशों से नहीं लड़ेगा। उसे परोक्ष रुप से कई देशों से भी लडऩा होगा। कोरोना की वजह से सिर्फ दो महीने ठप्प रही अर्थव्यवस्था से हम यह सहज अनुमान लगा सकते हैं कि यदि किसी देश को पूरी तरह से युद्व में जाना पड़ा तो सरकार की प्राथमिकताओं में हम कहां पर होंगे? नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सडक़ जैसी बुनियादी जरूरतें कितनी पीछे दुबककर खड़ी हो जाएंगी। सेकेंड वल्र्ड वॉर के अंतिम तीन सालों में ब्रिटेन की हर फैक्ट्री में जहां तक संभव था सिर्फ युद्व से जुड़ी हुई चीजों का निर्माण होता था।
इन दिनों पाकिस्तान नहीं, चीन हमारे निशाने पर है। चीन का सामान आप खरीदें या ना खरीदें इसे वाट्सअप फॉरवर्ड में तो भेजना अच्छा या कुल लग सकता है लेकिन जब अपना मुल्क चीन से आयात और निर्यात बंद नहीं कर कर रहा है और ना ही इसकी संभावनाएं हैं तो चीनी उत्पादों को बंद करने का फैसला ना सिर्फ बचकाना है बल्कि यह एक किस्म की मनोरंजक प्रैक्टिस भर है।
ब्रिटेन को सेकेंड वर्ल्ड वॉर में जीत दिलाने वाले वेस्टन चर्चिल अपना अगला चुनाव हार गए थे। अमेरिका ने इसी युद्ध के बाद ब्रिटेन को हमेशा के लिए पीछे कर दिया। जर्मनी की सरकारें उन लोगों पर खोज खोजकर मुकदमा कर रही हैं जो उस समय यहूदियों की हत्या में परोक्ष रूप से शामिल थे। उसमें ज्यादातर लोग मर चुके हैं लेकिन उनके उत्ताराधिकारी कोर्ट में उनका पक्ष रखने के लिए पहुंचे। आप इन देशों से सीखिए।
कहा जाता है कि वो लोग समझदार होते हैं जो अनुभव से सीखते हैं, और वह लोग बहुत समझदार होते हैं जो दूसरों के अनुभव से सीखते हैं। हो सके तो आप सेकेंड वल्र्ड वॉर के ताकतवर देशों से सीखिए, इनके अनुभव से सीखिए।
कोई सरकार युद्ध नहीं चाहती। आप उसे चाभी मत लगाइए। सीमा के विवाद हर देश की स्वाभाविक समस्या हैं। ये गांव के नाली और गलियारे के जैसे मामले हैं। जब तब उखड़ आते हैं और कभी खत्म नहीं होते। लेकिन वह लोग मूर्ख कहलाते हैं जो नाली के विवाद में किसी की हत्या करके अपनी पूरी उम्र जेल में बिताते हैं। उसकी अगली ही बरसात नाली अपना रास्ता खुद बना लेती है...पर वे जेल में रहते हैं।
सेना और सरकार शरहदों के इस उबड़ खाबड़पन से वाकिफ होते हैं, वो इसे हैंडल कर लेंगे, प्लीज़ आप एक प्रेशर ग्रुप की तरह काम मत कीजिए।