विचार / लेख
विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री ने 41 कोयला खदानों में खनन की नीलामी प्रक्रिया शुरू की और इस मौके पर सरकार की पीठ ठोकते हुए इसे कोयला क्षेत्र को ‘दशकों के लॉकडाउन’ से बाहर निकालने जैसा बताया जबकि इन कोयला खदानों के पास रहने वाले लाखों लोगों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को 41 कोयला खदानों के वाणिज्यिक खनन की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी। सरकार के इस कदम से देश का कोयला क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए खुल जाएगा। प्रधानमंत्री ने इसे आत्मनिर्भर भारत बनने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है। हालांकि देश के विभिन्न हिस्सों में इस कदम का विरोध हो रहा है। छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य क्षेत्र के 9 सरपंचों ने नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर खनन नीलामी पर गहरी चिंता जाहिर की है और कहा कि यहां का समुदाय पूर्णतया जंगल पर आश्रित है, जिसके विनाश से यहां के लोगों का पूरा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
ग्राम प्रधानों ने कहा था कि एक तरफ प्रधानमंत्री आत्मनिर्भरता की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ खनन की इजाजत देकर आदिवासियों और वन में रहने वाले समुदायों की आजीविका, जीवनशैली और संस्कृति पर हमला किया जा रहा है। हालांकि इन चिंताओं को दरकिनार करते हुए नरेंद्र मोदी ने खनन नीलामी प्रक्रिया शुरू करने की मंजूरी दी है। उन्होंने कहा कि देश कोरोना वायरस संक्रमण से अपनी लड़ाई जीत लेगा और इस संकट को एक अवसर में बदलेगा। यह महामारी भारत को आत्मनिर्भर बनाएगी।
विवादास्पद निर्णय पर
कई सवाल उठे...
प्रधानमंत्री के भाषण से यह समझ में न आया कि यह महामारी देश को आत्मनिर्भर कैसे बनाएगी? उनका यह कहना कि कोयले की खदानों को अदानी, अंबानी, वेदांता जैसे कॉर्पोरेट को सौंपना कोरोना संकट को अवसर में बदलना कैसे है? बल्कि इस मामले में तो सरकार ने लॉकडाउन का भरपूर फायदा उठाया है। इतने बड़े निर्णय को बिना संसद की स्वीकृति के लॉकडाउन की आड़ लेकर निजी कंपनियों के लिए खोल दिया, क्या नीतिगत निर्णय लेने के पहले उन्हें देश के लोगों को विश्वास पर नहीं लेना चाहिए था?
सरकार को एक दिन
जवाब देना पड़ेगा?
जब देश में कोल इण्डिया जैसा पब्लिक सेक्टर मुनाफे में अच्छा काम कर रहा था तो बड़े कार्पोरेट हाउस को इस क्षेत्र में भी उपकृत करने की क्यों सूझी? इस नीलामी में जाहिर है कई विदेशी कंपनिया भी बोली लगाएंगी। और यहाँ खनन कर अपनी कमाई भी तो देश से बाहर ले जाएंगी। इसके अलावा सबसे बड़ा सवाल इतने बड़े पैमाने पर खनन से जंगल उजड़ जाएँगे और लाखों लोग बेदखल हो जाएँगे जो इन 42 खदानों के आसपास रह रहे है खेती-किसानी कर रहे... ऐसे कई वाजि़ब सवाल जो अभी लॉक हो गए हैं जरूर एक दिन उठेंगे और सरकार को पीएम मोदी को उनका जवाब देना पड़ेगा।
कोयला क्षेत्र को ‘दशकों के लॉकडाउन’ से बाहर निकालने
के उनके निहितार्थ...?
पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा कि नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत होना देश के कोयला क्षेत्र को ‘दशकों के लॉकडाउन’ से बाहर निकालने जैसा है। उन्होंने कहा कि आज हम सिर्फ वाणिज्यिक खनन के लिए कोयला ब्लॉकों की नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत नहीं कर रहे हैं, बल्कि कोयला क्षेत्र को ‘दशकों के लॉकडाउन’ से भी बाहर निकाल रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘जो देश कोयला भंडार के हिसाब से दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश हो और जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक हो। वो देश कोयले का निर्यात नहीं करता, बल्कि हमारा देश दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला आयातक है। बड़ा सवाल ये है कि जब हम दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक बन रहे हैं तो हम सबसे बड़े निर्यातक क्यों नहीं बन सकते?’
मोदी ने कहा, ‘वाणिज्यिक कोयला खनन के लिए निजी कंपनियों को अनुमति देना चौथे सबसे बड़े कोयला भंडार रखने वाले देश के संसाधनों को जकडऩ से निकालना है।’ प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से नीलामी प्रक्रिया का उद्घाटन किया। वेदांता समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल और टाटा संस के चेयरमैन एन। चंद्रशेखरन भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।
किसकी और कैसी आत्मनिर्भरता?
वन-पर्यावरण नष्ट होने का खतरा?
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कोयला क्षेत्र को बंद रखने की पुरानी नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि कोयला नीलामी में पहले बड़े घोटाले हुए, लेकिन अब प्रणाली को ‘पारदर्शी’ बनाया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इन कोयला खदानों की नीलामी प्रक्रिया का शुरू होना ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत की गई घोषणाओं का ही हिस्सा है। यह राज्य सरकारों की आय में सालाना 20,000 करोड़ रुपये का योगदान करेगा।
केंद्र सरकार का दावा है कि इस नीलामी प्रक्रिया का लक्ष्य देश की ऊर्जा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भरता हासिल करना और औद्योगिक विकास को तेज करना है।मोदी ने कहा कि कोयला और खनन क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा, पूंजी और प्रौद्योगिकी लाने के लिए इसे पूरी तरह खोलने का बड़ा फैसला किया गया है।
(लेखक भोपाल स्थित पत्रकार हैं)