विचार / लेख
- लक्ष्मण सिंहदेव
7 दिवसीय पुस्तक समीक्षा चुनौती श्रृंखला में पहली पुस्तक जिसकी मैं समीक्षा कर रहा हूँ आखिरी मुगल का हिन्दी अनुवाद। इसे विलियम डैलरिम्पल ने लिखा है। मुगल बादशाह जफर के आखिरी दिनों का दिल्ली का वर्णन है, और बादशाह के आखिरी बर्मा वाले दिनों का। पुस्तक का आधार राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद दस्तावेज एवम तत्कालीन जासूसों के पत्राचार है। डैलरिम्पल ने इन्हें अपने सहायक फारुकी की सहायता से पढ़ा और निष्कर्ष निकालकर अपने हिसाब से इतिहास की विवेचना की। ये दस्तावेज 1857 के गदर के आसपास के हैं। और बादशाह के पत्राचार के, जासूसों के खतों के।
वैसे मुझे पता चला कि असल काम फारूकी ने किया, डैलरिम्पल, मजा ले गया। जैसे आजकल कोई भी बिना समाज शास्त्र के बेसिक सिद्धांत जाने कुछ-कुछ सामाजिक मुद्दों पर विशेषज्ञ के समान राय प्रकट कर देता है और पॉप सोशियोलॉजी उभरी है, वैसे ही यह किताब पॉप हिस्ट्री का एक अनुपम उदाहरण है। पॉप हिस्ट्री मतलब ज्यादा नहीं सोचना, इतिहास को मेरठ में छपने वाले उपन्यास की भांति पढ़ो, ज्यादा दिमाग न लगाओ और इसके पीछे अंग्रेजों का एक एजेंडा भी होता है।
वस्तुत: जैसे अंग्रेज यह कहने की चेष्टा कर रहे हो कि हमने तुम्हें गुलाम बनाकर अहसान किया था। लगभग 580 पेज की इस किताब में अनेक खण्ड हैं जो बहादुर शाह जफर के शासन काल का वर्णन करते हैं। डैलरिम्पल ने इस बात पर दु:ख प्रकट किया है कि लालकिले के अंदर मौजूद प्रासाद को अंग्रेजों ने ध्वस्त कर दिया और उस प्रासाद का कोई रेखाचित्र भी मौजूद नहीं है। और वह संभवत: विश्व का श्रेष्ठ प्रासाद हो।
1857 के गदर को मुसलमानों द्वारा धर्म युद्ध बनाने पर भी जोर है। काफिरों को मारो का नारा इतना प्रचलित हुआ कि तत्कालीन हिन्दू भी अंग्रेजों के खिलाफ यह नारा लगाते प्रतीत होते हैं। इस किताब में इस बात पर काफी जोर है कि मुसलमान अंग्रेजों के खिलाफ धार्मिक स्पिरिट से लड़ रहे थे इसलिए गदर की विफलता के बाद अंग्रेजों ने मुसलमानों को दिल्ली से बाहर कर दिया और जामा मस्जिद में सिख सैनिक रहने लगे।
महीनों तक जामा मस्जिद में सिख रहे जो वहीं सुअर काटकर खाते थे। जब अंग्रेजों ने लालकिले पर कब्जा कर लिया तो अंग्रेजों का साथ देने वाले सिख, पठान सिपाहियों ने मुगलशाही वंश की 300 से ज्यादा महिलाओं के साथ लालकिले के अंदर बलात्कार किया और बाद में उन्हें रेड लाइट इलाकों में बेच दिया गया गया। वे स्वयं ही वेश्यावृत्ति करने लगी।
पठानों और सिखों को मुगलों से पहले से ही चिढ़ थी चूंकि मुगलों ने पठानों-अफगानों से हिंदुस्तान का तख्त छीना इसलिए उन्होंने पूरी भड़ास निकाली। सिखों ने संभवत: अपने गुरुओं की हत्या से चिढ़कर ऐसा किया। किताब में कुछ मसाला भी है। यथा एक मुगल शहजादा गर्मी के कारण यमुना में तैरने गया तो उसे एक मगरमच्छ ले गया। एक घटना का जिक्र है कि एक हिन्दू मुगल बादशाह जफर के पास आया और कहा कि उसे इस्लाम कबूल करना है लेकीन जफर ने उसे भगा दिया।
किताब का सबसे रोचक पक्ष है मुगल बादशाह के एकदम आखिरी के दिनों का वर्णन जो दिन बर्मा में गुजरे। यह बहुत रोचक है। डैलरिम्पल ने लिखा है कि बेगम जीनत महल ने अपने नौकर के साथ ही यौन संबंध बना लिए ऐसा कुछ अंग्रेजों ने शक जाहिर किया। कुल मिलाकर मसाला पढऩे वालों के लिए यह अच्छा है, यह सोशल इतिहास तो हो सकता है लेकिन राजनैतिक नहीं। इसका अनुवाद जकिया जहीर ने किया है और अच्छा हिंदुस्तानी अनुवाद है।