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कनक तिवारी की यादों का एक सैलाब
12-Dec-2020 12:34 PM
कनक तिवारी की यादों का एक सैलाब

मेरे नाना जी रांची के स्टेशन मास्टर थे। लिहाजा अपने मायके में डिलीवरी के लिए गई मेरी मां के पहुंचने पर वहां मेरा उनके बंगले में जन्म हुआ। जब 70 साल का हुआ। मन में  वर्षों की कुलबुलाहट के कारण पहली बार और अब तक आखिरी बार रांची गया था। दो-तीन दिन वहां रुका अपने परिवार के साथ। बहुत परेशान था कि जिस बंगले में मेरा जन्म हुआ है। वह बचा या नहीं बचा।

कुछ माह पहले रांची के रेलवे डिपार्टमेंट के एक इंजीनियर से ट्रेन में मुलाकात रायपुर बिलासपुर के बीच हुई थी। उन्होंने बताया था कि वह बंगला सुरक्षित है। रांची के प्रसिद्ध लेखक रविभूषण के साथ स्टेशन मास्टर के पास पहुंचा। स्टेशन मास्टर 70 साल पहले पैदा हुए एक बच्चे के जन्म स्थान का कैसे पता बताएं। लिहाजा एक बहुत बूढ़ा कर्मी जो रिटायर हो चुका था। अपने घर से बुलाया गया और उसने याद करके कहा कि हां गंगा प्रसाद बाजपेयी नाम के स्टेशन मास्टर थे। उनका घर फलां फलां है।

अब वहां एक कर्मचारी रहते हैं। और बंगले का स्वरूप बाहर से इसलिए समाप्त हो गया है कि कई क्वार्टर बन गए हैं। स्टेशन मास्टर का नया बंगला बन गया है। रविभूषणजी के साथ गया और बंगाली परिवार जो वहां रहता था। उनके साले साहब मिले। उनकी मदद से हमने घर देखा।

मुझे बचपन में मामा मौसी ने जो बताया था, एक एक कमरे की याद आई। मां तो मुझे साढ़े तीन साल का होने पर छोड़ कर चली गई थीं। इसलिए उनसे तो कुछ पता नहीं चल सकता था।         

देखने लगा यहां पर मैं पैदा हुआ था। यहां पर गाय का कोठा अलग से बनाया गया था। यहां पर एक फायरप्लेस था अंग्रेजों के समय के हिसाब से बना हुआ। यहां पर आउटहाउस में धोबी और घर के अन्य कर्मचारी रहते थे।
      
सब कुछ ऐसे जीवंत हो गया जैसे मैं पिछले जन्म में चला गया हूं। मैं अभिभूत हो गया। होटल पहुंच कर मैंने अपनी पत्नी और बच्चों से कहा बहू से कहा। हम सब दूसरे दिन वहां औपचारिक तरीके से फिर पहुंचे। तब तक वे बंगीय सज्जन छुट्टी पर होने के कारण घर पर थे।
      
क्या स्वागत हुआ हमारा ! हमें तिलक लगाया गया ! फूल मालाएं पहनाई गईं ! हमें मिठाई खिलाई गई ! हमारे पैर छुए गए ! हमारा सम्मान किया गया। मैं यथासंभव ठीक उसी जगह पर बैठा जहां शायद मेरी मां ने मुझे जन्म दिया होगा। मैं अंदर ही अंदर महासागर अपने में समेटे हुए था। वह मुझे यादों के इतने  थपेड़े मार रहा था कि मुझे लगा मेला अस्तित्व एक तिनके की तरह इस पूरे वातावरण में उड़ जाएगा। बाहर से सूखा मरुस्थल बना रहा।            

मेजबान परिवार ने कहा कि हमने जीवन में ऐसा भी कोई व्यक्ति देखा सुना नहीं है कि कोई अपने जन्म के बाद 70 साल बाद अपना जन्म स्थान, मां की कोख का स्थान इस तरह देखने आए। आप लोगों ने तो चमत्कार कर दिया। मित्रों ! अगर जीवित रहा तो एक बार और जाना चाहता हूं रांची। तब बहुत मित्र नहीं थे। अब तो कुछ  हो गए हैं। एक बार अपने जन्म स्थान की मिट्टी को चंदन समझकर अपने माथे पर तिलक करना चाहता हूं। तब तक मुझे चैन नहीं है।

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