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यह भोलापन मुबारक हो योगीजी!
14-Dec-2020 4:33 PM
यह भोलापन मुबारक हो योगीजी!

-कनक तिवारी

मेडिकल शिक्षा के जितने भी सरगना है। उन्होंने ट एम ए पाई फाउंडेशन के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट के सामने एक मुकदमा पेश किया ।बात कुछ और थी लेकिन 11 जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट में ध्यान रहे 11 जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट में फैसला किया कि यदि आपको मेडिकल शिक्षा लेनी है तो फिर तो फीस  भुगतनी होगी निजी सेक्टर में । 

यह कोई मासूम खबर नहीं है। यह गरीब और मध्य वर्ग के बच्चों को मेडिकल शिक्षा से हटाने की गहरी साजिश है। अच्छी तरह समझ लीजिए। इस देश में मेडिकल शिक्षा प्राइवेट सेक्टर में ही ज्यादा है। सरकारी कॉलेज तो बहुत कम हैं। वहां पर भी अपने पूरे जीवन की पूंजी  लुटा कर कुछ मां-बाप बच्चों को पढ़ाते हैं। और सरकारी कॉलेजों में पढ़ कर उसके बाद यदि वे 10 साल तक सरकार की नौकरी नहीं करें। जो बहुत बदहाली में होती है।  तो 10000000 रुपए जुर्माना देना पड़ेगा।  इसे क्षतिपूर्ति नहीं जुर्माना कहा गया है।      

यह भोलापन मुबारक हो योगीजी ! इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि संविधान के तहत गरीब और मध्यम वर्ग के काबिल बच्चों को मेडिकल इंजीनियरिंग और सभी शिक्षा देने का उत्तरदायित्व सरकार का है।  दूसरी बात इस देश में अब तक एक बहुत महत्वपूर्ण फैसले से लोग परिचित नहीं हैं। मेडिकल शिक्षा के जितने भी सरगना है उन्होंने ट एम ए पाई फाउंडेशन के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट के सामने एक मुकदमा पेश किया ।बात कुछ और थी लेकिन 11 जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट में ध्यान रहे 11 जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट में फैसला किया कि यदि आपको मेडिकल शिक्षा लेनी है तो फिर तो फीस  भुगतनी होगी निजी सेक्टर में ।       

दूसरी बात यह है कि इस देश में उच्च शिक्षा पाने का किसी का मूल अधिकार नहीं है ।लेकिन उच्च शिक्षा का उसकी दुकानदारी और प्रबंधन का मूल अधिकार है अनुच्छेद 19 में। ये बातें तय हुईं। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के एक प्रसिद्ध मुकदमे उन्नीकृष्णन के फैसले को पलटते हुए हुआ जो 5 जजों की बेंच ने बहुत सही लिखा था। उन्नीकृष्णन का फैसला उच्च शिक्षा को पब्लिक सेक्टर में सरकारी सेक्टर में ले जाने का कहा जा सकता है। और देखिए इस फैसले में टीएमएपाई के फैसले में ऐसा कुछ लिखा गया जो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को समझ में नहीं आया।  उसके बाद एक और मुकदमा  पांच जजों की बेंच का सुप्रीम कोर्ट में इस्लामिक एजुकेशन सोसाइटी का आया। उसमें कहा गया कि 11 जजों ने  जो कहा है उसको देश के  कई  हाईकोर्ट के जज भी नहीं समझ पाए। और आपस में विरोधी फैसले हो रहे हैं। समझा दिया 5 जजों की बेंच ने। तय कर दिया कि हाईकोर्ट जज रिटायर होंगे उनकी अध्यक्षता में बच्चों से फीस  वसूलने वाली कमेटी बनेगी। यहां पर भी हाईकोर्ट जजों की रिटायरमेंट के बाद अपनी हैसियत स्थापित कर ली गई। सुप्रीम कोर्ट को तसल्ली नहीं हुई फिर एक और फैसला आया 7 जजों का पी ए इनामदार के मामले में। और उसमें कहा गया कि 5 जजों की बेंच ने 11 जजों के फैसले को ठीक नहीं समझा और 11 जजों ने जो लिखा है उससे भी भ्रांति हो गई। हम समझाते हैं। यह फैसला भी मेडिकल कॉलेज के संचालकों के  पक्ष में झुका हुआ आया।  और इस तरह सब कुछ चल रहा है ।अब यदि अमीर आदमी का बेटा प्राइवेट कॉलेज में पढ़ कर डॉक्टर बनेगा और कहेगा मैं सरकार की नौकरी नहीं करता 10000000 रूपए रखो अपनी जेब में। योगी जी हालांकि आपके पास जेब नहीं है। जो 10 करोड़ 20 20 करोड़ ?500000000 खर्च करके बच्चों को पढ़ाते हैं विदेश में देश में और बाद में 100 200 करोड़ 500 करोड़ खर्च करके निजी अस्पताल बनाते हैं  डॉक्टर बच्चों के लिए और वह दुकानदारी करते हैं। उनके लिए एक करोड़ तो कुछ भी नहीं है। लेकिन कोई गरीब का बच्चा एक करोड़ नहीं दे पाएगा योगीजी! और एक करोड रुपए क्यों लेंगे ब्लैकमेल करते हुए ?

आप बच्चों की शिक्षा पर क्या एक करोड़ खर्च करते हैं?और अगर करते हैं तो क्यों करते हैं? आप बच्चों को शिक्षा क्यों नहीं दे सकते? सरकारी कॉलेज इतनी संख्या में खोलिए कि निजी शिक्षा अपने आप गायब हो जाए। तो यह बहुत बड़ा फ्रॉड है गरीब बच्चे मध्य वर्ग के बच्चों के खिलाफ। इसे आप समझें। एक चमत्कार और है। बड़े अफसरों के और बड़े आदमियों के बच्चों की नियुक्ति सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कर दी जाती है। अच्छे दफ्तरों में कर दी जाती है। और गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चों को जंगलों देहातों में नक्सली  क्षेत्रों में पदस्थापित किया जाता है। और वहां दवाओं तक की कोई सुविधाएं नहीं होतीं। तो वह अपना जीवन वैसे ही वहां काटना मुश्किल समझते हैं। दोनों तरफ से मारे जाते हैं। डॉक्टर की नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं होती। तुलनात्मक योग्यता के आधार पर नहीं होती। वहां पर तो अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह  चीन्ह  कर देय। यह दुर्भाग्य है कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में अब जनहित याचिकाओं और न्यायिक सक्रियता के मामलों में एक धूमिल चादर है जबकि उसे सूरज की रोशनी से न्याय की जगमगाना चाहिए।

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