विचार / लेख

गुरु घासीदास का सच
18-Dec-2020 2:41 PM
गुरु घासीदास का सच

-कनक तिवारी

दिसम्बर के एक पखवाड़े भर कब तक लोग गुरु घासीदास पर केवल मंत्रियों के भाषण झेलने के लिए जीते रहेंगे? हमारे नेता, उद्योगपति, नौकरशाह और राजनीति के दलाल जनता के जीवन, आदर्शों, हालत और भविष्य को लेकर झूठ बोलते रहते हैं।

18 दिसम्बर को जन्मे गुरु घासीदास की सत्यनिष्ठा छत्तीसगढ़ के विचार संसार की आत्मा है। जातिवाद के खिलाफ किया गया उनका सैद्धांतिक संघर्ष झूठ के चरित्र का चेहरा नोचता रहता है। इस इलाके की सहज, निष्कपट बयानी में उनकी याद गाहे-बगाहे कौंधती रहती है। ऐसे ऋषि चिन्तक यदि सर्वजन सुलभ नहीं हों तो एक क्षेत्रीय संस्कृति के सामने कई नये खतरे मंडराने लगेंगे। उन्होंने शराबखोरी जैसी सामाजिक लत को लेकर भी वैचारिक जेहाद किया। मनुष्य को आदर्श जीवन जीने के लिए बहुत अधिक आडम्बर की जरूरत नहीं होती। यह भी गुरु घासीदास के जीवन का एक महत्वपूर्ण सन्देश है। छत्तीसगढ़ के जनजीवन की सादगी, सहजता और मिलनसारिता के तत्वों को यदि सबसे ज्यादा पोषक खाद मिलती रहती है, तो वह संत घासीदास के ही विचारों से।

ईसा मसीह, मोरध्वज, हरिश्चंद्र और गांधी जैसे सत्यशोधकों ने चाहे अनचाहे पंथ नहीं चलाया। घासीदास के नाम के पीछे वीरपूजा की भावना के साथ सत्य का अनुयायी पंथ स्वयमेव चला। सतनामी शब्द का असली अर्थ आध्यात्मिक है। उस पर जातीय चश्मा भले चढ़ गया है। सत्य के नाम के अनुयायी पंथ को अनुसूचित जाति क्यों कहा जाता है? घासीदास के अनुयायी समाज की तलहटी में क्यों रहें? सतनामी शब्द धार्मिक सामाजिकता का श्रेष्ठतम संस्कार है। एक माह या पखवाड़ा घासीदास की याद में सभा सम्मेलनों के लिए सुरक्षित हो गया है। लोग उनके नाम का राजनीतिक शोषण करते चलते हैं। छत्तीसगढ़ के इस अद्वितीय महापुरुष को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तारित करना चाहिए। सत्य पर लिखे ग्रंथ, इतिहास के शोध और आचरण की व्यवस्थाएं दैनिक व्यवहार से लेकर अनन्त आकाश तक की वृत्तियों का आत्माघर छत्तीसगढ़ क्यों नहीं बन सकता।

अन्य पंथों तथा धर्मों ने जातियों और तरह तरह के समूहों को प्रश्रय दिया है। गुरु घासीदास हैं जो कहते हैं आओ सत्य के रास्ते पर चलकर एक नया संसार बनाएं। वही धर्म है, वही अर्थ है, वही काम और वही मोक्ष है। दु:खद है कि उनके रास्ते चलने वाले समाज को दलित, पिछड़ा और अछूत तक समझा जाता है। वह नौकरी में तरक्की का आरक्षण लेकर सडक़ से संसद तक लड़ रहा है। उसे समाज के उच्च वर्गों तथा उच्च पदों पर बिठाने से अब तक सवर्णों को कोफ्त है। बिहार की महावीर, गुरु गोविन्द सिंह और बुद्ध के कारण प्रतिष्ठा है। अपनी तमाम प्रशासनिक उपलब्ध्यिों का प्रचार करने वाले छत्तीसगढ़ को देश में यह आध्यात्मिक गौरव अब तक क्यों नहीं मिलता कि वह गुरु घासीदास की जन्मस्थली है। गांधी ने यही कहा था आवश्यक होने पर अहिंसा छोड़ी जा सकती है लेकिन सत्य कभी नहीं। यह गांधी ने गुरु घासीदास के बहुत बाद में कहा था। गिरोदपुरी छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश का तीर्थ केन्द्र कब बनेगा?

गुरु घासीदास ने सतनाम क्या कहा, छत्तीसगढ़ की आत्मा शुद्ध कर दी। सत्य का आचरण करते रहने की उनकी सीख विसंगतियों के बावजूद कुछ लोगों की सामाजिक आदत बनी। यह भी है कि सच के रास्ते चलने का उपक्रम करते लोग अनुसूचित जाति के कहलाने लगे। समाज में जातीय विग्रहों के कारण वे तलहटी में पहुंचा दिए गए। वे फिर भी ‘सतनामी‘ तो हैं। झूठ का तिलिस्म आततायी होता है। उसमें सत्तालोलुपता के कारण वंचितों का शोषण करने की हिंसा है। उसे सम्पत्ति के साथ सम्पृक्त होकर लहलहाते देखना भी छत्तीसगढ़ के नसीब में रहा है। कम प्रदेश होंगे जहां गुरु घासीदास की सत्यपरक अभिव्यक्ति की कद काठी के समाज सुधारक हुए होंगे। वर्ण, वर्ग और जातिवाद से संघर्ष करना भारत में दुस्साहस और जोखिम का काम है। ताजा इतिहास इस तरह की हजारों दुर्घटनाओं से पटा पड़ा है।

छत्तीसगढ़ भी सामूहिक हिंसा के षडय़ंत्रों से फारिग नहीं है। इसके बावजूद दिसम्बर का महीना गुरु के जन्मदिन के आसपास उष्ण सामाजिकता का पर्याय हो जाता है। गिरौदपुरी को वैचारिक अनुष्ठान का विश्वविद्यालय क्यों नहीं बनाया जा सकता? आत्मा के लोहारखाने में बैठकर गुरु घासीदास ने सादगी की शैली में मनुष्य की महानता के अप्रतिम गीत गाए। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि वे कब और किन परिस्थितियों में पैदा हुए और रहे। यह भी कि उनकी याद में उनकी जन्मतिथि के आसपास गांव गांव में यादध्यानी जश्न किए जाते हैं। राजनीतिक और सामाजिक जमावड़े उनके उत्तराधिकारी होने का दावा और ढोंग करते हैं।

गुरु के तात्विक यश की सामाजिक उपयोगिता को लेकर कोई सार्थक प्रयोजन होता दीखता नहीं। राजनीतिक कारणों की वजह से छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास और कोमाखान जमींदारी के विद्रोही नारायणसिंह की स्मृति में विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा हुई। घासीदास के नाम का प्रादेशिक विश्वविद्यालय केन्द्रीय विश्वविद्यालय हो गया है। सरकारी फाइलों में उनके नाम का गलत उल्लेख भी किया जाना पाया गया।

छत्तीसगढ़ का कोई विश्वविद्यालय, कॉलेज या स्कूल देश के चुनिंदा शिक्षा संस्थानों में नहीं है। घासीदास विश्वविद्यालय से शीर्ष लेखक मुक्तिबोध को दुरूह होने का आरोप लगाकर पाठ्यक्रम से निकाल दिया गया। गुरु घासीदास विश्वविद्यालय नाम रख देने भर से छत्तीसगढ़ के इस महान संत के प्रति हमारा दाय पूरा नहीं होता। विश्वविद्यालय प्रशासन में आए दिन भ्रष्टाचार, घूसखोरी और हिंसा तक की खबरें प्रकाशित होती रहती हैं।

क्यों नहीं इस संस्थान को घासीदास की स्मृति में दर्शन और विचारों के एक विश्वस्तरीय बौद्धिक संस्थान की तरह तब्दील किया जा सकता जहां अन्य विषयों की पढ़ाई के साथ-साथ दर्शन और नीतिशास्त्र के एक दुर्लभ अध्ययन-केन्द्र की स्थापना की जाए। उसमें सच का विभाग अपनी अतिविशिष्टता के लिए ख्यातनाम हो। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चमत्कार पुरुषों ओशो, महेश योगी आदि से कहीं बड़ा योगदान है गुरु घासीदास का। अन्य आग्रही व्यक्तियों को लेकर सरकारें कुछ करती रहती हैं। दिसम्बर के एक पखवाड़े भर कब तक लोग गुरु घासीदास पर केवल मंत्रियों के भाषण झेलने के लिए जीते रहेंगे? हमारे नेता, उद्योगपति, नौकरशाह और राजनीति के दलाल जनता के जीवन, आदर्शों, हालत और भविष्य को लेकर झूठ बोलते रहते हैं। फिर भी सत्ता की कुर्सी पर ये लोग क्यों बैठे रहते हैं बाबा घासीदास? कब तुम्हारे बेटे समाज में अपना हक इस तरह पाएंगे कि हरिश्चंद्र, मोरध्वज, ईसा मसीह, सुकरात, युधिष्ठिर, गांधी और तुम्हारे जैसे सप्तर्षि सत्य को धुवतारा बनाकर एक नया इतिहास लिखा जाए?

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