विचार / लेख
पुष्य मित्र
बंगाल में इन दिनों कुछ बड़े तृणमूल नेताओं के द्वारा पार्टी छोडक़र भाजपा में शामिल होने की खबरें हैं। इनमें सुभेंदु अधिकारी का जैसा बड़ा नाम है, जो हाल तक बंगाल की सरकार में मंत्री रहे हैं। इस घटना को बंगाल में बीजेपी की बढ़त के रूप में देखा जा रहा है। इससे पहले भी बंगाल में मुकुल राय जैसे बड़े तृणमूल कांग्रेस के नेता भाजपा जा चुके हैं और वे अभी बंगाल बीजेपी के बैकबोन हैं। मगर सबसे दिलचस्प बात है कि इन दोनों बड़े नेताओं का नाम शारदा चिटफंड घोटाले से जुड़ा है और भाजपा को इस बात से कोई दिक्कत नहीं है।
हाल ही में इस मामले से जुड़ी एक विचित्र घटना बंगाल में हुई। 5 दिसंबर को मीडिया में शारदा चिटफंड घोटाले के प्रमुख अभियुक्त सुदीप्त सेन की जेल से लिखी एक चि_ी वहां की मीडिया में वायरल हुई। वह चि_ी उन्होंने पीएम मोदी और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के नाम लिखी थी।
उस चि_ी में उन्होंने खास तौर पर इस बात पर निराशा जताई थी कि जिन बड़े तृणमूल नेताओं ने उनकी करोड़ों की राशि हड़प ली थी, वे अब भाजपा में शामिल हो रहे हैं। इसमें उन्होंने पांच बड़े नेताओं का नाम लिया, जिसमें दो नेता ऐसे थे, जो अब भाजपा की तरफ हैं।
इनमें पहला नाम मुकुल राय का है, जिसका नाम शारदा घोटाले में आने के बाद 2015 में उन्हें तृणमूल कांग्रेस से छह साल के लिए निकाल दिया गया था। मगर भाजपा ने मुकुल राय को हाथोंहाथ लपक लिया, क्योंकि वे बंगाल के कद्दावर नेता थे। कभी ममता दीदी के बहुत करीबी रहे मुकुल राय अब बंगाल में भाजपा की बैकबोन हैं।
दूसरा नाम उस सुभेंदु अधिकारी का है, जो तृणमूल कांग्रेस से अभी हाल में अलग हुए हैं और कल उनके भाजपा ज्वाइन करने की खबरें हैं। मतलब साफ है कि भाजपा हर हाल में बंगाल में मजबूत होने की कोशिश कर रही है, उसे इसके लिए भ्रष्टाचारी नेताओं से भी परहेज नहीं है, अगर वे कुछ वोट उसे दिला सकें।
सुदीप्त सेन की चि_ी में कुछ कांग्रेस औऱ वाम नेताओं के भी नाम हैं। मगर उन नेताओं ने इन आरोपों का खंडन किया है। सुदीप्त की जेल से लिखी चि_ी इन पोस्ट के साथ लगी है।
बंगाल में वैसे भी माइक्रोफाइनेंस औऱ चिटफंड कंपनियों का ग्रामीण इलाकों में बड़ा असर है। वे अक्सर वहां की राजनीति को भी प्रभावित करते हैं, क्योंकि गांव के इलाकों में बड़ी संख्या में इनके सदस्य होते हैं। अब तक इनके बीच तृणमूल कांग्रेस का बड़ा असर रहा है, अब भाजपा इनके बीच पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।
बंगाल में अब तक जो राजनीति हो रही है, उससे समझ आ रहा है कि आने वाला चुनाव वहां किसी युद्ध की तरह लड़ा जायेगा, जिसमें अभी से सच्चाई और इमानदारी जैसी चीजें और सिद्धांत की बातों का लोप हो गया है। वहां चुनाव का अर्थ सिर्फ यह होने वाला है कि भाजपा कैसे जीतती है और ममता कैसे अपनी कुर्सी बचा लेती है। इस बीच सवाल वाम दल और कांग्रेस का भी है, जो बीजेपी और टीएमसी की आमने-सामने की फाइट में लगातार अप्रासंगिक हो रहे हैं। मीडिया में कहीं भी इनकी बातें नजर नहीं आ रही।