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अंतिम सांसें गिन रहा पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित हर्बल गार्डन
18-Dec-2022 4:13 PM
अंतिम सांसें गिन रहा पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित हर्बल गार्डन

नगर पालिका प्रशासन की उदासीनता

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
मनेन्द्रगढ़, 18 दिसम्बर।
हसदो नदी के तट पर स्थित प्रदेश का अपने तरह का पहला श्री पंचमुखी हर्बल गार्डन जिसके लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा नगर पालिका प्रशासन को सम्मानित भी किया जा चुका है, आज वही हर्बल गार्डन शासन-प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। देखरेख के अभाव में यहां के पेड़-पौधे सूख रहे हैं। पर्यटकों को लुभाने के लिए पत्थरों पर की गई नक्कासी अंतिम सांसें गिन रही है तो वहीं बिजली, पानी, सडक़ जैसी बुनियादी सुविधा सब कुछ समाप्त हो चुकी है।

उल्लेखनीय है कि ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने व जड़ी-बूटियों के संरक्षण के उद्देश्य से हसदो गंगा तट की पुण्य भूमि पर करीब 20 साल पहले नगर पालिका प्रशासन द्वारा पंचमुखी हर्बल गार्डन स्थापित किया गया है। हसदो गंगा तट पर सैकड़ों की संख्या में फलदार, फूलदार वृक्ष तथा विभिन्न औषधीय गुणों से युक्त जड़ी-बूटियों को संचय कर हर्बल प्लांट लगाए गए। पंचमुखी हर्बल गार्डन के नाम से ख्यातिलब्ध इस गार्डन में दो दर्जन से भी अधिक औषधीय पौधों को लगाया गया।

आंवला, घृत कुमारी, चिरायता, सर्पगंधा, बड़ी इलायची, ब्राह्मी, सिंदूर, पारिजात, लेमन ग्रास, सतावर, चित्रक, गुड़मार, सर्पगंधा, पिपरमेंट, लेडी पीपर, सफेद मूसली, अजवाईन, मौलश्री, आमा हल्दी, पुनरनवा, पथरचूर, स्टीविया, लाजवंती आदि हर्बल प्लांट के साथ फलों में विविध प्रजाति के आम, अमरूद, मोसम्बी, चीकू, लिची, आंवला, केला, बैर, काजू, बादाम, नींबू, जामुन, करौंदा के अलावे विविध प्रजातियों के आकर्षक और रंग-बिरंगे फूल गार्डन की शोभा में चार चांद लगाने के लिए लगाए गए थे। पूर्व में नगर पालिका द्वारा गार्डन का पर्याप्त रख-रखाव कराया जाता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से गार्डन की उपेक्षा किए जाने से यहां के आधे से ज्यादा पेड़-पौधे मर चुके हैं जो शेष बचे हैं वे भी अपनी अंतिम सांसें गिन रहे हैं।

इसके अलावा पत्थरों में की गई नक्काशी भी अपना अस्तित्व खो रही है। जमाने से पत्थरों में की गई नक्काशी में कोई रंग नहीं भरे गए हैं। पिकनिक एवं पूजा-पाठ के अवसर पर यहां आने वालों के लिए विश्राम हेतु बनाया गया लकड़ी का कॉटेज देखरेख के अभाव में जीर्णशीर्ण होता चला गया और आज कॉटेज पूरी तरह से तहस-नहस हो चुका है। काटेज के समीप ही पर्यटकों की बैठक व्यवस्था और पानी की टंकी भी अपनी बर्बादी की कहानी साफ बयां करती है। यदि हम किसी धरोहर को सहेज नहीं सकते तो उसे उजडऩे भी न दें, वरना आने वाली पीढिय़ां हमें जी भरकर कोसेंगी, लेकिन यह बात शहर सरकार को न जाने क्यों समझ में नहीं आ रही है।

क्या यही है पौधारोपण के बाद सुरक्षा का संकल्प?
इसी हर्बल गार्डन में हरियर छत्तीसगढ़ अभियान के तहत् कई बार हरेली उत्सव भी मनाया गया। इस अवसर पर अधिकारी-कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों जिसमें पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री राजेश मूणत, साध्वी ऋतंभरा के अलावे अफसरों और जनप्रतिनिधियों के द्वारा वृहद वृक्षारोपण कर उसकी सुरक्षा का संकल्प लिया गया, लेकिन फोटो सेशन के बाद सारे संकल्पों को भुला दिया गया, परिणामस्वरूप मंत्रियों, विधायकों, पार्षदों और अफसरों के द्वारा गार्डन में लगाए गए अधिकांश पौधे मर चुके हैं।

मिल चुका है संत गहिरा गुरू पर्यावरण पुरस्कार
दरअसल हर्बल गार्डन की दुर्दशा पिछले करीब 8 सालों में हुई है। यह इस बात से प्रमाणित होता है कि तत्कालीन नपाध्यक्ष धर्मेंद्र पटवा के कार्यकाल में पर्यटकों के लिए यहां बिजली, पानी, सडक़ सब कुछ उपलब्ध कराया गया था। दो-दो कर्मचारियों की पदस्थापना की गई थी जिनके द्वारा गार्डन की समुचित देखभाल की जाती थी। यहां आने वाले पर्यटकों को गार्डन की सुंदरता काफी लुभाती थी। राज्य शासन द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर पूर्व नपाध्यक्ष धर्मेंद्र पटवा के कार्यकाल में नपा मनेंद्रगढ़ को संत गहिरा गुरू पर्यावरण पुरस्कार से नवाजा गया, लेकिन आज गार्डन की दुर्दशा ने पर्यावरण पुरस्कार से नवाजे गए हर्बल गार्डन की दशा पर पानी फेरकर रख दिया है।

तबाह हो चले गार्डन में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा
घोर उदासीनता की वजह से हर्बल गार्डन जहां अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है वहीं असामाजिक तत्वों के लिए यह सैरगाह बन चुका है। शराब की बॉटल से लेकर चारों तरफ बिखरे पड़े डिस्पोजल और गुटखा के पाउच यह बताते हैं कि यहां अब मयखाने भी सजने लगे हैं। गंदगी को देखकर ऐसा लगता है कि कई साल से गार्डन में साफ-सफाई तक नहीं कराई गई है।

अवैध कब्जा करने वालों की होड़
इधर नपा प्रशासन के द्वारा हर्बल गार्डन की जहां उपेक्षा की जा रही है वहीं दिनों-दिन यहां तेजी से अवैध कब्जा करने की होड़ सी मची हुई है, लेकिन शासन-प्रशासन के नुमाइंदे पूरी तरह से आंख बंद किए बैठे हैं। बेजा कब्जाधारियों ने पहले गार्डन के आसपास अपना कब्जा जमाया, बाद में उन्होंने देखा कि प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है तो अब वे गार्डन के अंदर तक डेरा डाल चुके हैं।

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