राजपथ - जनपथ
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वे ही नहीं चाहते थे
परसों ठाकरे परिसर में संगठन के बड़े नेता और भाई साहब लोग नतीजों पर नजर रखने बैठे थे। पल पल फ्लैश होते ब्रेकिंग खबरों से कभी उत्साहित तो कभी हल्की मायूसी। खासकर यूपी के आंकड़े परेशान कर रहे थे। हर ब्रेकिंग पर टिप्पणियों का भी होती रहीं। शाम 4 बजते ही जब पिक्चर क्लीयर हुई तो यूपी की विफलता के कारण बाहर आए। भाई साहबों ने कहा यूपी में 18 फीसदी ब्राह्मणों ने पार्टी का तिरस्कार किया। इनमें अखाड़े, मठ और शंकराचार्यों के समर्पित भक्त शामिल हैं।
एक भाई साहब ने कहा कि पहली नाराजगी तो अपूर्ण मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा और उद्घाटन को इन ब्राह्मणों ने अनुचित माना। पूजन के समय पहुंची एक ब्राह्मण दंपत्ति को शो पीस बनाकर रखना। यूपी की सभाओं में अजा, ओबीसी का पैर पूजना, पार्टी की ब्राह्मणों से दूरी। बिष्ठ ठाकुर से योगी बने आदित्यनाथ का ठाकुर प्रेम। यह सब देख 2014,19, से 24 तक 16 से 18 फीसदी हुए ब्राह्मणों ने हाथ उठा दिया। और रामलला की जन्मभूमि में भी 550 वर्ष के इंतजार का फायदा नहीं मिला। और इतना ही नहीं ठाकरे परिसर में एक भाई साहब ने कहा योगी जी ही नहीं चाहते थे।
नाराजगी नहीं नाखुशी का मामला..
कल भंग की गई लोकसभा के मंत्रिपरिषद् की आखिरी बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोगों में सरकार नहीं, उम्मीदवार विशेष को लेकर नाराजगी थी। 1 लाख 64 हजार मतों के विशाल अंतर से जीतने वाले बिलासपुर संसदीय सीट के उम्मीदवार तोखन साहू के संदर्भ में मोदी की बात तौली जा सकती है। तोखन साहू लोरमी के रहने वाले हैं और यहीं से उपमुख्यमंत्री अरुण साव भी विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते हैं। यह वह जगह थी जहां से सबसे ज्यादा बढ़त भाजपा को मिल सकती थी। पर सिर्फ 464 मतों से तोखन साहू को बढ़त हासिल हुई, जो अन्य किसी भी विधानसभा में कांग्रेस भाजपा के बीच वोटों का सबसे कम अंतर है। अरुण साव कह सकते हैं कि डिप्टी सीएम होने के चलते वे अकेले लोरमी नहीं, पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर प्रचार करते रहे। मगर, तोखन साहू तो लोरमी के लिए जाने-पहचाने चेहरे हैं। वे 2013 में विधानसभा जीतकर संसदीय सचिव बने थे, 2018 में धर्मजीत सिंह ठाकुर से हार गए थे। लोरमी की जनता के पास एक उपमुख्यमंत्री पहले से था, फिर एक सांसद भी मिलने वाला था, फिर वोट तोखन साहू के पक्ष में खटाखट क्यों नहीं गिरे? इलाके में इसके दो तीन कारण बताए जा रहे हैं। एक पक्ष कह रहा है कि तोखन को लेकर कोई नाराजगी नहीं थी, बल्कि उनका और भाजपा का लोरमी के लिए बेफिक्र हो जाना बड़ा कारण था। फिर एक दूसरी बात यह थी कि ओबीसी यादव समाज के मतदाता बड़ी संख्या में लोरमी में हैं। उन्हें देवेंद्र यादव का साथ मिला। वे साहू-साहू वर्चस्व को लेकर आशंकित तथा नाखुश थे। तीसरी यह वजह आई कि तोखन साहू लोरमी के लिए नया चेहरा नहीं थे। बाकी विधानसभा सीटों के लिए वे नए थे। मोदी मैजिक और महतारी वंदन ने बाकी सीटों पर तो काम किया पर लोरमी में उनकी विधायकी के परफार्मेंस पर लोगों ने ध्यान दिया। शायद इसीलिये 2018 में हराया भी था। इन सबके बावजूद तोखन साहू की जीत 2019 में बिलासपुर सीट से मिली जीत से बड़ी है।
सीएम व उनकी टीम हुई मजबूत
भाजपा की प्रदेश की सत्ता में वापसी के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ विधायक मंत्रिपरिषद् में जगह पाने से वंचित रह गए। विष्णु देव साय मंत्रिमंडल के कई सहयोगी बिल्कुल नए हैं, पर कुछ अनुभवी भी हैं। मंत्रिपरिषद् में बृजमोहन अग्रवाल, केदार कश्यप, रामविचार नेताम और दयाल दास बघेल को पहले से मंत्री पद पर काम करने का मौका मिल चुका था। लखन लाल देवांगन संसदीय सचिव रह चुके थे। जबकि दोनों डिप्टी सीएम अरुण साव और विजय शर्मा पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। मंत्री ओपी चौधरी, लक्ष्मी राजवाड़े और टंकराम वर्मा भी पहली बार विधानसभा पहुंचे और मंत्री बनाए गए। टिकट बंटवारे में जब वरिष्ठ दावेदारों को मौका तो दिया गया था लेकिन मंत्रिमंडल में उन्हें नहीं लिया गया। इनमें अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल, धरम लाल कौशिक, रेणुका सिंह, राजेश मूणत आदि शामिल हैं। जब बृजमोहन अग्रवाल को लोकसभा की टिकट दे दी गई, तब यह लगभग यह तय हो गया कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नई टीम के जरिये पार्टी को आगे ले जाना चाहती थी। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने 400 पार के नारे के साथ प्रदेश की सभी 11 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा और नारा दिया। इनमें से 10 सीटें आ ही गईं। यह 2019 से अच्छी स्थिति है जब केंद्र में भाजपा ने 2014 से बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन छत्तीसगढ़ से दो सीटें कांग्रेस के पास चली गई थी। इस बार जब केंद्र में भाजपा के लिए एक-एक सीट कीमती है तब 10 सीटों पर जीत काफी महत्व रखता है। नतीजों के बाद महाराष्ट्र में उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस ने अपने इस्तीफे की पेशकश की है। राजस्थान में भी भाजपा ने सीटें गंवाई। वहां पहली बार के विधायक मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का भविष्य दांव पर लगा है। एक मंत्री ने वहां भी इस्तीफे की पेशकश कर दी है। सबसे अप्रत्याशित नतीजा उत्तरप्रदेश का रहा, जहां योगी आदित्यनाथ की कुर्सी पर संकट मंडरा रहा है। फडऩवीस की पेशकश ने उन पर दबाव बढ़ा दिया है। ऐसी चर्चा है कि सीएम योगी भी इस्तीफे की पेशकश कर सकते हैं। मगर, छत्तीसगढ़ में परिणाम अपेक्षा के अनुरूप आने के कारण मुख्यमंत्री और उनका मंत्रिमंडल नई टीम के साथ मजबूत दिखाई दे रहा है। उनके सिर्फ एक मंत्री लखन लाल देवांगन के क्षेत्र में कांग्रेस की हार हुई।
बारिश से पहले घोंसले की तैयारी
मानसून आने के पहले ये कैटल इग्रेट आपको पेड़ों पर घोंसला बनाते हुए दिखाई दे सकते हैं। यह बगुला परिवार का पक्षी है, जो कॉलोनियों में खुली जगह देखकर अपना बसेरा बनाते हैं। बगुले की दूसरी प्रजातियों से अलग ये सूखी जगहों पर रहना ज्यादा पसंद करते हैं। यह तस्वीर बिलासपुर के वन्यजीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने ली है। ([email protected])