राजपथ - जनपथ
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रिटायर्ड के लिए एक मौक़ा
राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर रामसिंह का कार्यकाल खत्म होने के बाद से पद खाली है। चुनाव आचार संहिता खत्म होने के बाद सरकार निर्वाचन आयुक्त के पद पर नियुक्ति कर सकती है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि नवंबर-दिसंबर में निकाय चुनाव, और ठीक इसके बाद पंचायत के चुनाव होंगे।
निर्वाचन आयुक्त के लिए नियमों में साफ है कि सरकार के विभाग में सचिव के पद पर काम कर चुके अफसर ही पात्रता रखते हैं। आयुक्त का कार्यकाल 6 साल का होता है, या फिर 66 वर्ष की उम्र तक रह सकते हैं। नई नियुक्ति नहीं होने पर निर्वाचन आयुक्त 6 महीने और पद पर रह सकते हैं। इस पद के लिए कई रिटायर अफसरों के नाम चल रहे हैं। कुछ अफसर, जो कि पिछले सरकार में हाशिए पर रहे हैं, उनके नाम पर विचार हो सकता है। इनमें पूर्व एसीएस सी.के.खेतान, डी.डी. सिंह, अमृत खलखो सहित कई नाम हैं।
कुछ अफसर जो कि इस साल रिटायर हो रहे हैं, उन्हें भी दौड़ में माना जा रहा है। इनमें रीता शांडिल्य, गोविंद राम सुरेन्द्र, डॉ.संजय कुमार अलंग, और शारदा वर्मा भी हैं। चर्चा है कि जून माह के आखिरी तक निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति कर दी जाएगी।
मेल कराती मधुशाला...
राजधानी के खमतराई इलाके की शराब दुकान में रात 10:00 बजे के बाद बोतल देने से मना करने पर सेल्समैन की पिटाई कर दी गई। जो खबर निकल कर आई है उसके मुताबिक पिटाई करने वाले दोनों बिरगांव के पार्षद हैं। कांग्रेस के डिगेश्वर सिन्हा और भाजपा के खेमलाल साहू।
शराब को लेकर ऊपर के लेवल पर कांग्रेस और भाजपा के बीच तलवारें खिंची रहती है। कहा जाता है कि कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में दोबारा नहीं लौट पाई तो इसकी एक वजह शराब के कारोबार में कथित घपलेबाजी भी थी। अभी भी कई अफसर, सप्लायर, ठेकेदार कानून के शिकंजे में हैं। मौजूदा सरकार भी चखना दुकानों की नीलामी को लेकर विपक्ष के हमले झेल रही है। कांग्रेस कह रही है कि इससे दो नंबर की दारू बेचने का रास्ता खुलेगा।
पॉलिटिक्स के लिए शराब एक अच्छा जरिया है मगर उसे बंद करने के लिए कोई तैयार नहीं है। जब दोनों ही दलों के जमीनी कार्यकर्ता शराब नहीं मिलने पर एक राय होकर ठुकाई-पिटाई पर उतर आते हों तो किसी को ऐसी उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए।
मरीज बढ़ रहे, दवाइयां खत्म
सन् 2020 के बाद से दुनियाभर में तपेदिक के रोगियों की संख्या बढऩे लगी है। यही नहीं इससे होने वाली मौतों का अनुपात भी बढ़ रहा है। डब्ल्यूएचओ ने इसकी एक वजह कोविड-19 को बताया है। इसकी वजह यह भी रही कि जिन दवाओं की नियमित आपूर्ति महामारी के दौरान नहीं की जा सकी, उनमें टीबी मरीजों को दी जाने वाली दवाएं भी हैं। रिकवरी भी कोविड महामारी के पहले जितनी हो जाती थी नहीं हो पा रही है। छत्तीसगढ़ भी इस समस्या से जूझ रहा है। बीते साल पूरे 12 महीनों में टीबी के करीब 38 हजार मरीज थे इस साल पांच महीनों में करीब 15 हजार नए मरीज मिल चुके हैं। उस पर विडंबना यह है कि बीते कई महीनों से प्रदेश भर के अस्पतालों में टीबी की दवाएं खत्म हो चुकी हैं। इसकी सप्लाई केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के टीबी डिवीजन की तरफ से होती है, जो नहीं हो रही है। टीबी के मरीजों को दवाओं की नियमित खुराक देनी होती है, वरना बीमारी बढऩे लगती है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने मार्च में राज्यों को भेजे गए पत्र में कहा था कि कुछ अप्रत्याशित और बाहरी कारणों से दवाओं की आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।
दूसरी ओर कई रिपोर्ट इस बीच प्रकाशित हुई है जिनमें बताया गया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के ‘घोर कुप्रबंधन’ के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। याद होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन् 2020 में लक्ष्य रखा था कि सन् 2025 तक भारत से टीबी का उन्मूलन कर लिया जाएगा। मगर, आज स्थिति उलट है, टीबी मरीज बढ़ रहे हैं, दवाएं गायब।
घर से निकलते ही...
भीषण गर्मी की उबासी को दूर करने के लिए सोशल मीडिया पर मीम चल पड़े हैं। ऐसे में एक ने इस तस्वीर में दिखाया है कि घर से निकलते ही, कुछ देर चलते ही क्या हो रहा है। एक यूजर ने इसमें जोड़ दिया- भ_ी में है उसका घर...।
हत्या पर अनसुलझे सवाल
बलरामपुर रामानुजगंज जिले में बजरंग दल के सह संयोजक सुजी स्वर्णकार और एक युवती का शव हाईवे के समीप मिला था। पुलिस ने इस मामले में अब तक जो जांच की है, उसमें यह बात सामने आई है कि जंगली जानवरों को मारने के लिए करंट की तार बिछाई गई थी, जिसकी चपेट में दोनों आ गए। दूसरी ओर यहां सक्रिय विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें इस कहानी पर भरोसा नहीं है। उन्होंने बताया है कि मृतक सुजीत 6 माह से गौ तस्करी के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन में शामिल थे। उनको कुछ समय पहले गौ तस्करों की ओर से फोन पर धमकी मिली थी। एसपी को भी इसकी जानकारी दी गई थी। उसकी हत्या हो सकता है इसी वजह से की गई होगी। इन मौतों को लेकर बलरामपुर में बड़ा रोष देखा गया है। चक्काजाम और नगर बंद किया जा चुका है। आगे भी आंदोलन की चेतावनी दी गई है। जिन लोगों ने सुजीत हत्या मामले में आवाज उठाई है वे भाजपा को साथ देने वाले संगठन ही हैं। पुलिस जांच में इसे दुर्घटना जैसा बता दिया गया है। प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए यह असहज करने वाली स्थिति है। ([email protected])