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आम आदमी की क्या बिसात, यहां केंद्रीय मंत्री भी गिरफ्तार हो जाते हैं
26-Aug-2021 3:45 PM
आम आदमी की क्या बिसात, यहां केंद्रीय मंत्री भी गिरफ्तार हो जाते हैं

अपशब्दों के इस्तेमाल के लिए केंद्रीय मंत्री की गिरफ्तारी राजनीति और कानून व्यवस्था दोनों पर टिप्पणी है. यह भारत की कानून व्यवस्था का जेल प्रेम ही तो है जिसकी बदौलत जेलों में तीन लाख से ज्यादा अंडरट्रायल कैदी बंद हैं.

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नारायण राणे होना अपने आप में शायद आसान नहीं होता होगा. पहली पार्टी छोड़ कर दूसरी में जाना, फिर दूसरी छोड़ कर तीसरी में जाना, काफी इंतजार के बाद केंद्रीय मंत्री बनाए जाना और फिर गिरफ्तार होने वाला 20 सालों में पहला केंद्रीय मंत्री बनने का इतिहास लिखना - कितने लोग एक जीवनकाल में इतना सब कुछ हासिल कर पाते होंगे?

और गिरफ्तार हुए भी तो किस लिए, वो भी एक विडंबना है. राणे के चुनावी ऐफिडेविट के अनुसार उनके खिलाफ अपहरण, जबरन कैद करना, हमला और आपराधिक साजिश के आरोपों तहत एक 20 साल पुराना मामला लंबित है.

केंद्रीय मंत्री की गिरफ्तारी

लेकिन इतिहास रचने वाली उनकी गिरफ्तारी हुई महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अपशब्द कहने के मामले में. उन्होंने एक बयान में कह दिया था कि ठाकरे को यह भी नहीं मालूम कि भारत कब स्वतंत्र हुआ था और इसके लिए उन्हें एक झापड़ जड़ दिया जाना चाहिए.

बयान निश्चित रूप से निंदनीय था. राजनीति में उपयोग होने वाली भाषा का स्तर वैसे ही नीचे गिरता जा रहा है. ऐसे में एक केंद्रीय मंत्री एक मुख्यमंत्री को चांटा लगाने की इच्छा सार्वजनिक रूप से जाहिर कर दे, तब तो समझिए भाषा ही नहीं राजनीति में व्यवहार का भी बेड़ा गर्क हो चुका है.

लेकिन राणे की पूर्व पार्टी के कार्यकर्ताओं को उनके मौजूदा नेता के खिलाफ कही गई यह बात इतनी बुरी लग गई कि इस बयान पर महाराष्ट्र में राणे के खिलाफ तीन अलग स्थानों पर सीधे एफआईआर ही दर्ज करा दी गई.

भारतीय दंड संहिता की जो धाराएं उनके खिलाफ लगाई गईं, उनमें 153ए (1) (दंगे भड़काना), 506 (धमकाना) और 189 (सरकारी मुलाजिम को चोट पहुंचाने की धमकी देना) शामिल हैं.

बीस साल पहले

और फिर देखते ही देखते वो हो गया जो पिछले 20 सालों में नहीं हुआ था. इससे पहले 2006 में यह उपलब्धि लगभग तत्कालीन केंद्रीय कोयला मंत्री शिबू सोरेन के नाम लिख दी गई होती अगर उन्होंने गिरफ्तार होने से पहले मंत्रिपरिषद से इस्तीफा ना दे दिया होता.

महाराष्ट्र में जो हुआ ऐसा ही घटनाक्रम 2001 में तमिलनाडु में जे जयललिता की सरकार के कार्यकाल में हुआ था, जब तमिलनाडु पुलिस ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मुरासोली मारन और टीआर बालू को गिरफ्तार कर लिया था. यह भारत के इतिहास में केंद्रीय मंत्रियों की गिरफ्तारी का सबसे पहला मामला था.

हालांकि बाद में उन गिरफ्तारियों पर अदालत ने काफी सवाल उठाए और सरकारी अधिकारी और पुलिस दोनों को फटकार लगाई. राणे का मामला देखना होगा कहां तक जाता है लेकिन अभी तक जो हुआ उसमें अदालत की भूमिका भी सवाल खड़े कर गई है.

अदालत की भूमिका

पुणे, नाशिक, और रायगढ़ के महाड़ में राणे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. गिरफ्तारी की संभावना जब बढ़ गई तो उन्होंने रत्नागिरी सेशंस कोर्ट में गिरफ्तारी से पहले की  जमानत की याचिका डाली. लेकिन वहां उन्हें राहत नहीं मिली. अदालत ने कहा कि मामला उसके क्षेत्र के बाहर का है.

फिर रत्नागिरी पुलिस जब उन्हें गिरफ्तार करने उनके दरवाजे तक पहुंच गई तो उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट से मदद की गुहार लगाई. इसका बस अनुमान ही लगाया जा सकता है कि "मैं कोई साधारण आदमी नहीं हूं" कहने वाले केंद्रीय मंत्री को कैसा लगा होगा जब उनके वकील को अदालत ने बाकी सब की तरह लाइन में लगने, आवेदन देने और सुनवाई का इंतजार करने को कहा.

आखिरकार गिरफ्तारी के कुछ घंटों बाद महाड़ के ही एक मजिस्ट्रेट ने राणे को 15,000 रुपयों की जमानत पर बरी कर दिया. राणे के खिलाफ शिव सेना ने राजनीतिक हिसाब तो सीधा कर लिया, लेकिन नुकसान हुआ न्याय व्यवस्था का.

लिबर्टी बनाम जेल

भारत में अदालतें बार बार कहती हैं कि जमानत ही कायदा है और जेल अपवाद, लेकिन देश की कानून व्यवस्था अपने जेल प्रेम के लिए बदनाम है. देश की जेलों में 70 प्रतिशत कैदी अंडरट्रायल हैं और इसके बावजूद ट्वीट करने, कार्टून बनाने और बयान देने जैसे कारणों से आज भी लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है.

चाहे कोई विद्यार्थी, प्रोफेसर हो, पत्रकार हो या एक्टिविस्ट, राजनीतिक अजेंडा हो तो पुलिस का गलत इस्तेमाल कर किसी को भी आसानी से ना सिर्फ गिरफ्तार करवाया जा सकता है, बल्कि उसके खिलाफ राजद्रोह और आतंकवाद जैसे संगीन आरोप भी लगाए जा सकते हैं.

ऐसे में संभव है कि कल को जब किसी "साधारण आदमी" की गिरफ्तारी के खिलाफ अदालत में अपील की जाए तो अभियोजन पक्ष यह दलील दे सकता है कि जब केंद्रीय मंत्रियों को गिरफ्तार किया जा सकता है तो आम आदमी को क्यों नहीं? (dw.com)

 

 

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