विचार / लेख
-मनीष सिंह
वाचटेल नाम की लीगल फर्म अडानी में हायर की है। ये वही फर्म है, जिसने एलन मस्क को ट्विटर खरीदने पर मजबूर किया था।
इसे हिंडनबर्ग को सबक सिखाने को हायर किया, अथवा भविष्य की सुरक्षा के लिए, यह स्पष्ट नहीं है। मगर हिन्डनबर्ग पर मुकदमे का ख्याल है, तो बहुत बढिय़ा कदम है।
पहला तो यह होगा कि हिण्डनबर्ग 88 सवालों पर, लीगल फर्म ही अडानी से उत्तर पूछेगी। वे हर बिंदु बताएंगे कि असलियत क्या है।
अगर लीगल फर्म को लगा कि यहां तो अडानी ने गलत किया है, या हिंडनबर्ग सही है। वो खुद ही सलाह देगी की मुकदमा मत करो, वरना ज्यादा फंस जाओगे।
इस तरह यह बात जो दुनिया जानती है, बताने की मोटी फीस लेगी।
हिंडनबर्ग दो दर्जन से अधिक बड़ी बड़ी कंपनियों के खिलाफ रिपोर्ट पेश कर चुकी है। ये सब इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन थे। लेकिन बाल बांका नहीं हुआ है, तो जाहिर है कि ये कच्चे खिलाड़ी नहीं, रिसर्च तगड़ी होती है।
अगर येन केन मामला कोर्ट में गया तो मजा आएगा। मेरा मानना है, कि दो चार सबसे ज्यादा नुकसानदेह पॉइन्ट हिंडनबर्ग ने अभी स्लीव्स में छुपाए रखे होंगे।
पार्टली इसलिए की ये लोग शॉर्ट सेलिंग करना चाहते हैं, बर्बाद नहीं। इसलिए एक सीमा में खुलासे करते हैं। लेकिन कोर्ट में प्रतिष्ठा, और हार जीत का प्रश्न आएगा, तो और गहरा खोदेंगे। फिर, अडानी तो खदान है। खोदते जाओ, निकलता जाएगा।
मुझे लगता है, अभी कुछ दिखावटी केस कोर्ट में करेंगे। लेकिन चार छह माह बाद, आउट ऑफ कोर्ट सेटल कर लेंगे। अडानी वाचटेल को भी पैसे देंगे, हिन्डनबर्ग को भी सेटलमेंट का खर्च देंगे।
बाकी जो अपने शेयरों को खऱीदवा कर रेट बचाने में पैसे लग रहे हैं, वो तो लग ही रहे हैं।