विचार / लेख

पुष्पम प्रिया की राजनीति
19-Jul-2020 4:41 PM
पुष्पम प्रिया की राजनीति

(इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर दरभंगा की रहने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी ने विज्ञापन के जरिए खुद को बिहार के मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार बताया था। पुष्पम प्रिया ने कुछ समय पहले ‘प्लूरल्स’ नाम के एक राजनीतिक दल के गठन का ऐलान किया था और खुद को प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया। पुष्पम प्रिया चौधरी दरभंगा की रहने वाली हैं और उन्होंने लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी की है। उनके पिता विनोद चौधरी जेडीयू के वरिष्ठ नेता हैं और एमएलसी रह चुके हैं. पुष्पम प्रिया ने जनसंपर्क अभियान की शुरुआत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा से की। जनसंपर्क अभियान की शुरुआत करने के दौरान पुष्पम प्रिया चौधरी ने फेसबुक पर लिखा, उनकी पार्टी ‘प्लूरल्स’ की योजना बहुत स्पष्ट है -अंतरराष्ट्रीय ज्ञान और जमीनी अनुभव की साझेदारी ताकि कृषि क्रांति, औद्योगिक क्रांति और नगरीय क्रांति की नई कहानी लिखी जा सके। (यह जानकारी ‘आजतक’ से) -संपादक, ‘छत्तीसगढ़’)

-पुष्य मित्र
इन दिनों पुष्पम प्रिया चौधरी का नाम सोशल मीडिया में तेजी से फैल रहा है। इस कोरोना काल में भी वह पूरे बिहार में घूम रही हैं, हर इलाके की प्रमुख समस्या को उठा रही हैं। वे जिन मुद्दों को लेकर सोशल मीडिया को लेकर मुखर हैं, वे बिहार के विकास से संबंधित जरूरी सवाल हैं। कई लोग उनमें विकल्पहीन होती बिहार की राजनीति के लिए एक सकारात्मक विकल्प के तौर पर देख रहे हैं।

उनकी यात्राओं से संबंधित पोस्ट देखता हूँ तो मुझे एक रिपोर्टर के तौर पर 2015 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव की गई अपनी यात्राएं याद आती हैं। इनमें से ज्यादातर जगहों पर मैं इस दौरान जा चुका हूँ। बिहार के जो कुछ चुनिंदा घुमंतू रिपोर्टर हैं, वे इन जगहों पर जाते रहते हैं, अपने सीमित संसाधनों में। मगर उनकी कैमरा टीम काफी प्रोफेशनल है, इसलिये उनकी यात्राओं की तस्वीरें काफी प्रभावशाली दिखती हैं।

मगर पुष्पम प्रिया रिपोर्टर नहीं हैं, वे टीवी जर्नलिस्ट भी नहीं हैं। वे राजनीति करने आई हैं और राजनीति में जरूरी मुद्दों की समझ होना काफी नहीं है। यह तो राजनीति का पहला अध्याय है। मुद्दों की समझ के साथ साथ राजनेताओं को इन मुद्दों के लिये संघर्ष करना और संघर्ष के साथियों की टीम बनाना जरूरी होता है। लोग यह भी देखना चाहते हैं कि आपमें समझ के साथ-साथ बदलाव की क्षमता है कि नहीं। बदलाव कैसे आएगा यह विजन है कि नहीं। इस लिहाज से अभी उन्हें काफी काम करना है।

हां, यह कहा जा सकता है कि उनकी शुरुआत सही है। हालांकि इसके बदले यह कहा जाना चाहिए कि उनकी रिसर्च टीम अच्छी है, उनके प्रेजेंटर अच्छे हैं, उनका विजुअल प्रेजेंस बेहतरीन है। उन्होंने अच्छी पीआर टीम हायर की है। मगर इन सबका प्रभाव सिर्फ सोशल मीडिया पर है।

इन दिनों गांव में हूँ और पिछले डेढ़ महीने में किसी को पुष्पम प्रिया के बारे में बात करते नहीं सुना। हो सकता है वे उन्हें जानते हो मगर उनकी यात्राओं के बारे में उन्हें ज्यादा नहीं मालूम। फेसबुक और ट्विटर एक भ्रम है, इसके संदेश जमीन पर बहुत कम पहुंचते हैं। इसके बदले टीवी और वाट्सएप राजनीति के लिहाज से ज्यादा पॉवरफुल और प्रभावी माध्यम है। इन माध्यमों तक उनकी पहुंच नहीं बनी है।

उनकी टीम कार्यकर्ताओं का नेटवर्क बना रही है या नहीं, यह मालूम नहीं। यह सब इसलिये लिख रहा हूँ, क्योंकि देखता हूँ कई मित्र उनसे काफी प्रभावित दिख रहे हैं। मगर उन्हें यह भी समझना चाहिए कि पुष्पम प्रिया आजतक की स्टार रिपोर्टर नहीं हैं, वे बिहार जैसे भदेस राज्य की स्वघोषित मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं। दिल्ली जैसे मेट्रोपोलिटन शहर में भी आम आदमी पार्टी को जमीन बनाने में प्रभावी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ साथ हर मुहल्ले में जाकर संघर्ष करना पड़ा था। उनके पास प्रतिबद्ध युवाओं की एक बेहतरीन टीम थी और वैचारिक लोगों का मार्गदर्शन भी। राजनीति इतनी आसान चीज नहीं है।

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