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सोनू पंजाबन: जिस्मफ़रोशी को जनता की सेवा बताने वाली औरत
26-Jul-2020 6:58 PM
सोनू पंजाबन: जिस्मफ़रोशी को जनता की सेवा बताने वाली औरत

-चिंकी सिन्हा

छह साल पहले का वाक़या है. ठंड के दिन थे. बहादुरगढ़ में बस से उतरते ही 17 साल की उस लड़की ने सबसे पहले राह चलते एक शख़्स से नज़दीकी थाने का पता पूछा. सामने ही नजफगढ़ पुलिस थाना था.

9 फ़रवरी 2014 की सुबह लड़की उस थाने में हाज़िर थी. पुलिस को उसने बताया कि रोहतक के राजपाल नाम के एक शख़्स के पास उसके कुछ दस्तावेज़ हैं, उन्हें वह दिलवा दे.

अपने ऊपर हुए ज़ुल्म की सारी कहानी उसने सामने बैठे पुलिस वालों से कह डाली. कैसे उसे क़ैद में रखा गया, यातनाएं दी गईं और किस तरह उसका शोषण किया गया. पुलिस वाला सब कुछ अपनी डायरी में नोट करता रहा.

अपनी आपबीती सुनाते हुए उसने सोनू पंजाबन का नाम लिया और कहा कि उससे जिस्मफ़रोशी करवाने वालों में वो भी शामिल थीं. पुलिस ने लड़की की शिकायत पर एफ़आईआर दर्ज कर ली.

पुलिस जिस वक़्त यह शिकायत दर्ज कर रही थी उस वक़्त दिल्ली की कुख्यात सैक्स रैकेट सरगना सोनू पंजाबन हिरासत में थीं. कुछ महीनों के बाद सोनू की शिकार वह लड़की ग़ायब हो गई. लेकिन 2017 में बड़े ही रहस्यमय तरीक़े से प्रकट हो गई. सोनू पंजाबन फिर गिरफ्तार कर ली गईं.

इसके तीन साल बाद दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें फिर दोषी ठहराया और 24 साल की सश्रम क़ैद की सज़ा सुनाई.

लंबे समय से वह पुलिस से बचती रही थीं. 'जघन्य अपराधों' को अंजाम देने वाली एक महिला अपराधी की गिरफ्तारी सुर्खियां बनकर छा गई. सोनू ने जो कुछ भी किया था वह समाज की ओर से तय अच्छी महिला की छवि के बिल्कुल उलट था.

ख़ुद को सताई लड़कियों की रहनुमा बताती

जज के मुताबिक, वह एक सभ्य समज में रहने लायक नहीं थीं. लेकिन दिल्ली में अपना रैकेट चलाने वाली लड़कियों की यह 'दलाल' हमेशा यही दलील देती रही कि वह सताई गई लड़कियों की रहनुमा रही है. उसने हालात की मारी लड़कियों को सहारा दिया है.

सोनू यह भी कहती थीं कि अपने जिस्म पर औरतों का अधिकार है. उन्हें इसे बेचने का हक़ है. वह सिर्फ इस काम में मदद करती थीं. आख़िरकार हम सब भी तो कुछ न कुछ बेच ही रहे हैं- अपना हुनर, शरीर, आत्मा प्यार और न जाने क्या-क्या?

लेकिन इस बार, बेचने और ख़रीदने के इस धंधे की शिकार एक नाबालिग थी.

सोनू पंजाबन को जेल भेजने का फ़ैसला देते हुए जज प्रीतम सिंह ने कहा, " महिला की इज़्ज़त उसकी आत्मा जैसी बेशकीमती होती है. दोषी गीता अरोड़ा उर्फ़ सोनू पंजाबन औरत होने की सारी मर्यादाएं तोड़ चुकी है. क़ानून के तहत वह कड़ी से कड़ी सज़ा की हक़दार है.''

नाबालिग लड़की की शिकायत पर गिरफ़्तारी

सोनू पंजाबन के ख़िलाफ़ दर्ज की गई एफ़आईआर 2015 में ही क्राइम ब्रांच भेज दी गई थी. लेकिन 2017 में जब क्राइम विभाग के डीसीपी भीष्म सिंह ने केस अपने हाथ में लिया तो 2014 में गांधी नगर से घर छोड़ कर निकल चुकी लड़की को ढूंढ निकालने के लिए एक टीम बनाई गई.

पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने के बाद ही यह लड़की ग़ायब हो गई थी. उसके पिता ने उस वक़्त लड़की की गुमशुदा होने की एक और रिपोर्ट लिखाई थी.

नवंबर में पुलिस ने उस लड़की को यमुना विहार में खोज निकाला. वहां वह अपने कुछ दोस्तों के साथ रह रही थी. उस दौरान सोनू पंजाबन 2014 के एक मकोका केस में सबूत के अभाव में छूट चुकी थीं. लेकिन लड़की का पता चलते ही 25 दिसंबर 2017 में सोनू को फिर गिरफ्तार कर लिया गया.

सज़ा सुनाए जाने के दिन सोनू पंजाबन ने एक साथ ढेर सारी पेनकिलर्स खाकर ख़ुदकुशी करने की कोशिश की थी. उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया. कुछ घंटों के बाद उनकी हालत स्थिर हो गई.

भीष्म सिंह ने कहा, "हो सकता है उसने कड़ी सज़ा से बचने के लिए यह क़दम उठाया हो. शायद जज को थोड़ी दया आ जाती." लेकिन जज ने कोई दया नहीं दिखाई.

ड्रग्स के इंजेक्शन

मुक़दमे की सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि सोनू पंजाबन ने पीड़ित लड़की के स्तनों पर मिर्च पाउडर डाल दिया था ताकि वह ख़ौफ़ से उसके काबू में आ जाए. अपनी गवाही में लड़की ने कहा था उसे ड्रग्स के इंजेक्शन दिए गए.

भीष्म सिंह ने कहा, " यह गाय-भैंसों का दूध उतारने के लिए दिया जाने वाला इंजेक्शन था. यह शरीर को जल्दी तैयार कर देता है."

पुलिस का कहना है सोनू के अनकहे अपराधों की एक लंबी लिस्ट है. ये तो उनकी बेरहमी के चंद नमूने भर हैं. वह इससे भी ज़्यादा बेरहम हो सकती हैं. जिस लड़की की शिकायत पर सोनू पंजाबन को सज़ा हुई, उसको उन्होंने ख़रीदा था.

उनके रैकेट में कई हाउस वाइफ़ और कॉलेज की लड़कियां थीं. उन औरतों की जिस्मफ़रोशी के लिए वह सुविधाएं जुटाती थीं और बदले में कमीशन लेती थीं. ये सब आपसी रज़ामंदी से होता था. लेकिन वह दूसरे दलालों से भी कम उम्र की लड़कियों की ख़रीद कर ग्राहकों को सप्लाई करती थीं.

सोनू पंजाबन इन लड़कियों को बेचे जाने तक क़ैद में रखती थीं. इन लड़कियों को बारी-बारी से ग्राहकों को भेजा जाता था ताकि दलालों को अपने-अपने इलाक़ों में सप्लाई की दिक़्क़त न हो.

जज ने सोनू पंजाबन के मामले में फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि उन्होंने औरत होने की सारी मर्यादाएं तोड़ दी हैं. महिला के नाम पर वह कलंक हैं.

डीसीपी सिंह के मुताबिक़, सोनू पंजाबन एक शातिर औरत रही है जिसे न कोई डर है और न कोई अफ़सोस.

वह कहते हैं, "जब मैंने पूछा कि नाबालिग लड़कियों की ख़रीद-फरोख़्त अपराध है तो उसने कहा कि उसे पता नहीं. वह जानबूझ कर ऐसा कह रही थी. उसे पता था कि वह जो कर रही है वो ग़लत है. हमारे समाज में तो लोग यह मानते हैं कि औरतों के ख़िलाफ़ औरतें ही ऐसे अपराधों को अंजाम नहीं दे सकतीं."

सोनू पंजाबन सभ्य समाज के लायक नहीं?

सोनू को 24 साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गई. उन्हें आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 328, 342, 366ए, 372, 373 120बी समेत अनैतिक व्यापार रोकथाम क़ानून की धारा 4, 5 और 6 के तहत सज़ा दी गई है.

सोनू बच्चों को यौन अपराधों से बचाने वाले क़ानून पोक्सो के तहत भी दोषी ठहराई गई हैं. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रीतम सिंह ने सोनू के ख़िलाफ़ सज़ा सुनाते हुए उन पर 64 हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया. अदालत ने सोनू के सह आरोपी संदीप बेडवाल को भी 20 साल जेल की सज़ा सुनाई और कहा कि वह पीड़ित लड़की को सात लाख रुपये मुआवज़ा दें.

पुलिस के मुताबिक़, सोनू पंजाबन की ज़ुल्म की शिकार हुई लड़की ने 2014 में अपनी मर्ज़ी से घर छोड़ा था. वह नशे की आदी थी और यह कलंक वह बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी. उसकी बहन की शादी होने वाली थी. वह नहीं चाहती थी कि इस रिश्ते में उसका अतीत अड़चन बन जाए.

सुनवाई के बाद फ़ैसला सुनाने के दौरान एलप्रेक्स नाम की दवा का ज़िक्र आया था. पीड़िता डिप्रेशन की शिकार थी और इस दवा का इस्तेमाल करती थी. उसने एफ़आईआर में आरोप लगाया था कि कुछ लोग उसे धमकियां देते थे.

लंबे वक़्त तक ग़ायब रहने के बाद जब वह मिली तो उसकी काउंसिलिंग करवाई. उसे नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करने में मदद की गई. उसकी शादी भी हुई. उसका एक बच्चा है और अब वह अपने मां-बाप के साथ रहती है.

शादी के बाद उसके ससुराल वालों ने उसे छोड़ दिया था. लड़के के मां-बाप उसके अतीत से समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे. वह लड़की फ़ोन पर बात नहीं करती है. लेकिन जांच अधिकारी पंकज नेगी के मुताबिक़ लड़की को लग रहा है कि आख़िरकार उसकी जीत हुई है. वह राहत महसूस कर रही है.

सोनू पंजाबन के ख़िलाफ़ अदालत के आदेश में कहा गया, " औरत की इज़्ज़त उसकी आत्मा की तरह बेशकीमती होती है. कोई महिला कैसे एक नाबालिग लड़की की गरिमा से इस कदर छेड़छाड़ कर सकती है. उसकी इज़्ज़त को वह इतने भयावह तरीक़े से कैसे तार-तार कर सकती है. अपनी शर्मनाक करतूतों की वजह से सोनू पंजाबन किसी भी कोर्ट की ओर से रहम की हकदार नहीं है. चाहे औरत या हो मर्द, इस तरह के ख़ौफ़नाक करतूतों को अंजाम देने वाला शख़्स सभ्य समाज में रहने का हक़दार नहीं है. उसके लिए सबसे अच्छी जगह जेल की चारदीवारी ही है."

सोनू पंजाबन को मैंने पहली बार 2011 में दिल्ली की एक अदालत में देखा था. जज के सामने वह हाथ जोड़े खड़ी थीं. उनके बाल उजड़े हुए थे. वह थकी हुई लग रही थीं. पुलिस का कहना था कि वह नशे की लत छोड़ने का कोर्स कर रही हैं और ज़्यादातर वक़्त तिहाड़ जेल की अपनी कोठरी में सोती रहती हैं.

उस दिन कोर्ट की सुनवाई के बाद देर दोपहर में उन्हें बस से फिर तिहाड़ ले जाया गया. बस की खिड़कियों में ग्रिल लगी थी. सोनू पंजाबन सीधे बस में जाकर पीछे की सीट पर बैठ गईं. मैं पार्किंग के पास खड़ी थी.

जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, मैंने उनसे कहा कि वह अपने मिलने आने वालों की लिस्ट में मेरा भी नाम डाल दें. मुझे याद है वह जुलाई महीने का एक गर्म दिन था. उन्होंने मेरा नाम पूछा. फिर कई दिनों तक मैं तिहाड़ फ़ोन कर पूछती रही कि क्या सोनू पंजाबन की विजिटर्स लिस्ट में मेरा नाम है. उधर से वो बताते कि सोनू की लिस्ट में जो छह नाम हैं, उनमें मेरा नाम नहीं है.

गिरफ़्तारी के समय 30 साल उम्र

सोनू पंजाबन के मामले के जांच अधिकारी कैलाश चंद 2011 में सब-इंस्पेक्टर थे. महरौली थाने में बातचीत के दौरान उन्होंने बताया था कि कैसे उन्होंने सोनू पंजाबन को फंसाने के लिए जाल बुना था.

कैलाश चंद बताते हैं कि हिरासत में वह सोनू से रात-रात भर बात करते थे. पांच दिन तक सोनू को थाने में रखा गया था. कैलाश चंद सोनू के लिए सिगरेट, चाय और खाना लाते थे और वो उन्हें अपनी कहानी बताती थीं.

महरौली में जब कैलाश चंद ने सोनू पंजाबन को पकड़ा था तो उनकी ख़ूबसूरती देख कर दंग रह गए. उन्होंने मोबाइल फ़ोन के कैमरे से उनकी तस्वीर भी ली थी. हालांकि अब वह धुंधली हो चुकी है.

2011 में गिरफ्तारी के बाद सोनू की उम्र 30 साल थी. जिस्मफ़रोशी के काम में पहली बार उतरने के डेढ़ साल बाद ही उन्होंने इसे छोड़ दिया था. तब तक वह अपना सिंडिकेट चलाने के लिए नेटवर्क बना चुकी थीं.

पुलिस के मुताबिक़, उन्होंने एक डायरी भी बरामद की थी जिसमें सोनू के ग्राहकों और संपर्क के लोगों के नाम थे. उनकी मोबाइल फ़ोनबुक भी बरामद हुई थी. सोनू के रैकेट में शहर के इलिट कॉलेजों में पढ़ने वाली लड़कियां भी थीं. वे उसके लिए कॉन्ट्रेक्ट पर काम करती थीं.

सोनू ने कैलाश चंद से कहा था कि 'वेश्यावृति जनसेवा है. हम पुरुषों के निवारण का रास्ता मुहैया कराते हैं. हम महिलाओं को उनके सपने पूरे करने में भी मदद करते हैं. अगर आपके पास बेचने के लिए शरीर के सिवा कुछ भी नहीं है तो इसे ज़रूर बेचना चाहिए. लोग हर वक़्त कुछ न कुछ तो बेचते ही रहते हैं. उसकी यह पूरी बातचीत लिखित में दर्ज कर चार्जशीट में नत्थी कर दी गई थी.'

पुलिस से बातचीत में अक्सर वह तर्क देती थीं कि वह समाज को एक ज़रूरी सेवा मुहैया करा रही हैं. अगर वह और उसकी जैसी महिलाएं न हों तो न जाने कितने रेप हों.

वह कहती थीं कि वासना एक बाज़ार है. अगर यह बाज़ार न हो तो समाज में मार-काट मच जाए. नैतिकता का सवाल वह काफ़ी पहले छोड़ आई थीं.

अपनी पुरानी नोटबुक में मुझे पुलिस को सुनाई सोनू पंजाबन की एक कहानी मिली थी. सोनू ने एक ऐसी महिला का ज़िक्र किया था, जिसका पति उसे पीटता था. उसके साथ ज़बरदस्ती सेक्स करता था. वह उसे एक फ़ूटी-कौड़ी नहीं देता था. उसका एक बच्चा था और वह उसे बढ़िया तरीक़े से पढ़ाना-लिखाना चाहती थी.

कैलाश चंद से उन्होंने कहा था, "आख़िर उस महिला का क्या कसूर है. वह शादीशुदा है, इसलिए अपनी सारी इच्छाओं और आकांक्षाओं को दबा दे. वह एक ऐसे शख्स के साथ शादी के रिश्ते में बंधी है जो उस मारता है. इस सबसे बचने के लिए उसके पास उसका शरीर ही एक मात्र जरिया है. जबकि समाज की नज़रों में यह खराब काम है."

पुलिस बताती है, "सोनू पंजाबन तेज़-तर्रार थी. अच्छे कपड़े पहनती थी. अपने ऊपर उसे काफ़ी भरोसा था. 2017 में वह एक बार फिर पकड़ी गई. पुलिस वालों को पता था राज उगलवाना है तो सोनू की अच्छी ख़ातिरदारी करनी होगी. लिहाज़ा उसके लिए रेड बुल ड्रिंक, सैंडविच, बर्गर और पिज़्ज़ा लाया जाता था. कैलाश चंद की तरह ही इस बार भी पुलिस उसके लिए सिगरेट ख़रीद कर लाती थी. उस बार उसने अपनी कहानी सुनाई और वेश्यावृत्ति के समर्थन में अपने पुराने तर्क दिए. उसने इस बात को कबूल करने से इनकार कर दिया था कि वह ग़ायब हुई नाबालिग लड़की को जानती थी. लेकिन इस बार किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया."

सोनू पंजाबन अनैतिक व्यापार रोकथाम क़ानून के तहत 2007 में प्रीत विहार में पकड़ी गई थीं. ज़मानत पर रहने के दौरान 2008 में वह एक बार फिर पुराने अपराध में पकड़ी गई थीं.

2011 में जिस्मफ़रोशी के कारोबार में एक और बार पकड़े जाने के बाद उनके ख़िलाफ़ मकोका के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था. मकोका गैंगस्टर और आतंकवादियों पर नकेल कसने के लिए लाया गया था. दिल्ली ने 2002 में मकोका का इस्तेमाल शुरू किया.

सोनू की नज़र में जिस्मफ़रोशी जनसेवा

सोनू पंजाबन 2019 में पैरोल पर रिहा हुईं. उस दौरान उन्होंने अपने तमाम टीवी इंटरव्यूज़ में कहा था कि पुलिस उन्हें परेशान कर रही है. किसी भी लड़की ने ऑन-रिकॉर्ड यह नहीं कहा कि वह दलाल हैं. वह लोगों को सिर्फ सुविधाएं मुहैया कराती हैं.

वह ऐसी महिलाओं को सहारा दे रही हैं जो अपनी ख़राब शादियों से बचने का रास्ता तलाश रही हैं. अपने घरों में खट-खट कर बेहाल हो चुकी हैं. वो ऐसी महिलाओं की मदद कर रही हैं जो जीवन का आनंद लेना चाहती हैं. उन्हें पता था कि उनकी कहानी ही ऐसी है जो सुर्खियां बनाएगी.

वह अपराध और पीड़ित दोनों की भूमिकाओं से वाकिफ़ थीं. वह दोनों रह चुकी थीं. 2013 में आई फिल्म 'फ़ुकरे' और 2017 में आई 'फ़ुकरे रिटर्न' में भोली पंजाबन का किरदार उन्हीं की कहानी से प्रेरित था. दोनों किरदारों को ऋचा चड्ढा ने निभाया था.

सोनू पंजाबन जब मकोका में फंसी थीं तो आरएम तुफ़ैल ने उनका केस लड़ा था और बरी भी कराया था. 24 साल की सज़ा का फ़ैसला सुनाए जाने के बाद उन्होंने कहा, यह काफ़ी लंबा वक़्त है. इस केस में उन्होंने सोनू की पैरवी की थी. उन्होंने कहा कि वह इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील दायर करेंगे.

तुफ़ैल कहते हैं, "दुनिया का सबसे पुराना पेशा भीख मांगना और वेश्यावृत्ति है. इस बारे में कोई भी ठीक से कुछ नहीं जानता. सब नैतिकता की बातें करते हैं. इन बातों से अब चिढ़ होती है."

'सोनू को काफ़ी लंबी सज़ा दी गई है'

पूर्वी और दक्षिणी दिल्ली में करोड़ों रुपये का सेक्स रैकेट चलाने वाली सोनू पंजाबन 2011 में मकोका के तहत गिरफ्तारी के बाद से ही ख़बरों में रही हैं. अख़बारों में उनके बारे में जो स्टोरीज़ छपी हैं उनके मुताबिक उनकी आलीशान लाइफ़स्टाइल रही है. उनके कई प्रेमी और कम से कम चार पति रहे हैं. सभी कुख्यात गैंगस्टर रहे हैं. इनमें से कई पुलिस एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं.

सोनू ने इन संबंधों को 'शादी' मानने से इनकार कर दिया था. उनका कहना था कि पुलिस ने ही उनका नाम 'सोनू पंजाबन' रख दिया था. बचपन में उनके मां-बाप उसे सोनू नाम से पुकारते थे. जबकि, पुलिस का कहना है कि उन्होंने अपने पतियों में से एक हेमंत उर्फ़ सोनू का नाम ले लिया था.

2003 में उनके एक और पति विजय की यूपी में पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई थी. उसके बाद वह अपने दोस्त दीपक के साथ रहने लगी. दीपक गाड़ियां चुराता था. पुलिस ने गुवाहाटी में एक मुठभेड़ में दीपक को मार गिराया था. फिर वह दीपक के भाई हेमंत उर्फ़ सोनू के साथ रहने लगी थीं. हेमंत एक अपराधी था. उसने अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए बहादुरगढ़ में एक शख़्स की हत्या कर दी थी. सोनू के मुताबिक हेमंत भी एक एनकाउंटर में मारा गया था.

कहा जाता है कि सोनू की मौत के बाद वह खुद को बेसहारा महसूस करने लगी थी. उनके दो भाई बेरोज़गार थे. पिता गुज़र चुके थे. अपने बेटे और मां की देखभाल की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी. इसी वक़्त उन्होंने कॉल गर्ल बन कर जिस्मफ़रोशी के कारोबार में क़दम रखा.

सोनू इस बात से इनकार करती हैं कि उन्होंने और भी शादियां की हैं. लेकिन पुलिस और मीडिया के मुताबिक विजय की मौत के बाद सोनू ने चार शादियां कीं. पांचवें पति के अलावा सभी की मौत अलग-अलग पुलिस एनकाउंटर में हो गई.

जांच अधिकारी पंकज नेगी कहते हैं, " सोनू के फोन में इन लोगों के साथ उसकी तस्वीर है. इनमें वह सिंदूर लगाए उनके साथ खड़ी है. इन अंतरंग तस्वीरों से पता चल जाता है कि ये पति-पत्नी हैं."

गीता मग्गू से लेकर सोनू पंजाबन तक का सफ़र

सोनू पंजाबन 1981 में गीता कॉलोनी में पैदा हुई थीं. उनका नाम था गीता मग्गू. उनके दादा पाकिस्तान से एक शरणार्थी के तौर पर आए थे और रोहतक में बस गए थे. उनके पिता ओम प्रकाश दिल्ली चले आए थे और ऑटो रिक्शा चलाते थे.

उनका परिवार पूर्वी दिल्ली की गीता कॉलोनी में रहने लगा था. सोनू के तीन भाई बहन थे- एक बड़ी बहन और दो भाई. सोनू की बड़ी बहन बाला की शादी सतीश उर्फ़ बॉबी से हुई थी. सतीश और उसके छोटे भाई विजय ने उस शख़्स की हत्या कर दी थी, जिससे उनकी बहन निशा का अफ़ेयर था. दोनों इस मामले में जेल चले गए थे. पैरोल पर रिहा होने के बाद 1996 में गीता ने विजय से शादी कर ली.

2011 में जब मैं पहली बार उनके घर गई तो मैंने पहाड़ों के आगे खड़े विजय की एक तस्वीर देखी. प्रेम में पड़ कर उन्होंने विजय से शादी कर ली थी. उस वक़्त उनकी उम्र महज़ 15 साल थी. इसके बाद उनका एक बेटा हुआ. जब मैं उनके घर गई थी तो उनका बेटा पारस नौ साल का था.

उस वक़्त वह अपनी मां का इंतज़ार कर रहा था. वह टॉय कार लेकर आने वाली थीं. उनकी मां ने कहा था कि वह कभी-कभी जेल से फ़ोन करती है. पारस अब 17 साल का है. पुलिस का कहना है कि वह अपनी मां के बारे में जानता है.

सोनू के परिवार ने एक बेटी भी गोद ली थी. लेकिन विजय की मौत के बाद गोद देने वाला परिवार उसे ले गया था. शादी के सात साल बाद विजय की मौत हो गई थी. उस वक्त वह पैरोल पर बाहर आए हुए थे.

सोनू पंजाबन के पिता 2003 में गुज़र गए थे. उसके बाद उन्होंने प्रीत विहार में एक ब्यूटीशियन के तौर पर काम शुरू किया था. वहीं वह अपनी एक सहकर्मी नीतू से मिली थीं, जिसने उन्हें जिस्मफ़रोशी के कारोबार से परिचित कराया.

फिर वह रोहिणी में रहने वाली महिला किरण के लिए सेक्स वर्कर के तौर पर काम करने लगीं.

शुरू में अपने इस कारोबार के लिए उन्होंने पर्यावरण कॉम्प्लेक्स के बी ब्लॉक में कमरा लिया. फिर फ़्रीडम फ़ाइटर कॉलोनी, मालवीय नगर और शिवालिक में किराये पर अपार्टमेंट लिए. दिल्ली के सैदुल्लाजाब के अनुपम एनक्लेव में उन्होंने एक अपार्टमेंट ख़रीदा. यह फ्लैट संजय मखीजा के नाम से खरीदा गया था.

पुलिस रिकार्ड के मुताबिक, संजय मखीजा सोनू पंजाबन का पुराना साथी है. सोनू पंजाबन के पूरे करियर के दौरान यानी पहले सेक्स वर्कर और फिर हाई क्लास दलाल के तौर पर काम करने के दौरान, राजू शर्मा उर्फ़ अजय उनका सहयोगी रहा.

राजू पहले सोनू का रसोइया था और फिर बाद में उनके ड्राइवर के तौर पर काम करने लगा था. वह भी दलाली का काम करता था और सोनू पंजाबन के साथ दो बार गिरफ्तार भी हो चुका था.

यह काफी अच्छे से चलाया जाने वाला कारोबार था. सोनू अपने क्लाइंट्स के लिए कुक और क्लीनर भी रखती थीं.

जैसे-जैसे कारोबार बढ़ता गया उनका सहयोगी राजू आउट स्टेशन क्लाइंट्स का काम देखने लगा. दोनों ने अपने एजेंटों के ज़रिये अलग-अलग शहरों में भी अपना काम फैला लिया.

पुलिस से अपनी बातचीत के दौरान सोनू पंजाबन ने उन दलालों के नाम लिए थे जो अलग-अलग इलाकों के इंचार्ज थे. हालांकि उनमें आपस में प्रतिस्पर्धा थी लेकिन वे मिलकर काम करते थे. जैसे, अगर किसी इलाके में सोनू पंजाबन का कोई क्लाइंट है और उसे वहां कोई लड़की नहीं मिल रही है तो वह दूसरे से इसका इंतज़ाम करने के लिए कहती थीं. बाकी दलाल भी ज़रूरत पड़ने पर ऐसा ही करते थे. हालांकि उनके बीच ज़बरदस्त कॉम्पीटिशन भी था.

नेगी के मुताबिक जब सोनू पंजाबन ने बिज़नेस संभाला तब सिक्योरिटी मुहैया करने और अपने नेटवर्क के लिए कमाई का लगभग 60 फीसदी कमीशन लेना शुरू किया.

उनकी कार रात को शहर में 500 किलोमीटर तक दौड़ती थी. यह गाड़ी लड़कियों को अपने लोकेशन से बिठाती और 'क्लाइंट सर्विस' के लिए अलग-अलग जगह ड्रॉप करती.

सोनू उन लड़कियों के लिए सबसे ज़्यादा मार्जिन लेती थीं जिन्हें वह अपने कैद में रखती थीं. इन लड़कियों को वह ख़रीद चुकी होती थीं. ऐसी ही एक नाबालिग लड़की ने उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर कराई थी.

दिल्ली के एक और हाई प्रोफ़ाइल दलाल इच्छाधारी बाबा इस वक़्त तिहाड़ जेल में हैं. कहा जाता है कि सोनू ने पुलिस को सुराग देकर तेज़-तर्रार स्वयंभू बाबा इच्छाधारी बाबा को पकड़वाया था.

भीष्म सिंह कहते हैं, " इस तरह के अपराध में जब भी जगह खाली होती कोई न कोई उसे भर देता था. यहां भी ऐसा ही हुआ. इच्छाधारी बाबा की गिरफ्तारी के बाद सोनू ने अपना कारोबार फैला लिया."

सोनू पंजाबन की गिरफ्तारी की ख़बर हेडलाइंस बन चुकी थी. गुलाबी कार्डिगन और ब्लू जीन्स पहने उनकी तस्वीरें मीडिया में छा गई थीं. अपने दूसरे इंटरव्यूज़ में वह लेदर की जैकेट, पीला जंपर और शॉल ओढ़े नजर आईं.

टीवी चैनलों पर उनका चेहरा दिखाया जा रहा था. उनका अपराध बताया जा रहा था और उसे संगठित सेक्स रैकेट की 'मलिका' बताया जा रहा था.

अभी अधूरी है सोनू की कहानी

सोनू पंजाबन की गिरफ्तारी भले ही दूसरे लोगों को ऐसे अपराधों से रोकने का काम करे. लेकिन पुलिस का मानना है कि इस तरह का सेक्स रैकेट चलाने वालों को अदालत तक लाकर सज़ा दिलाना काफ़ी मुश्किल काम है.

भीष्म सिंह कहते हैं अगर उस नाबालिग लड़की ने आगे बढ़ कर सोने के ख़िलाफ़ शिकायत न दर्ज कराई होती तो सोनू पंजाबन को पकड़ना मुश्किल होता.

सोनू पंजाबन से मैं जब मिली थी तो वह 31 साल की थीं. अब 40 साल की हो चुकी हैं. जेल से निकलते वक़्त वह 64 साल की हो चुकी होंगी. किसी को शायद ही वह याद रहेंगी. कुछ दिनों के बाद दुनिया ख़ुद में मसरूफ़ हो जाएगी.

फ़िलहाल सोनू की उसके जघन्य अपराधों के लिए भर्त्सना की गई है और उन्हें सभ्य समाज में रहने लायक नहीं बताया गया है. शायद उस दिन वह अपनी विज़िटर्स लिस्ट में मेरा नाम लिख देतीं तो हो सकता है कि मैं उनसे मिलकर उनका नज़रिया समझ पाती. यह जान पाती कि जिस महिला के बारे में इतनी बातें लिखी जा रही हैं, वह क्या सोचती-समझती है.

बहरहाल जब तक वह अपनी बात नहीं कहतीं तब तक यह कहानी मुकम्मल नहीं बनती. अभी तक पुलिस फ़ाइल में लिखीं बातें, उनके बारे में सुनाए जाने वाले वाक़ये, लोगों की धारणाएं और फ़ैसले ही इस कहानी का प्लॉट बने हुए हैं.

किसी भी सूरत में यह पूरी कहानी नहीं है. जब तक यह कहानी अधूरी है तब तक मुझे अपनी 2011 की नोटबुक में दर्ज उसकी बात याद आती रहेगी. सब-इंस्पेक्टर कैलाश चंद से उन्होंने कहा था, " मैं जो हूं उसका मेरे काम से कोई वास्ता नहीं है. मेरे कारोबार से मुझे नहीं आंका जा सकता." (bbc)

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