बलौदा बाजार
![बलौदाबाजर हिंसा : 120 साल पुराने रिकॉर्ड भी आग में खाक, 10 साल पहले भेजे थे रायपुर से बलौदाबाजर हिंसा : 120 साल पुराने रिकॉर्ड भी आग में खाक, 10 साल पहले भेजे थे रायपुर से](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1718199325409.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 12 जून। कलेक्टोरेट में अंग्रेजों के जमाने का 100 से 120 साल पुराना राजस्व का रिकॉर्ड भी उपद्रव की आग में जलकर खाक हो गया। करीब 100 साल तक बलौदाबाजार जिले के अंतर्गत आने वाले इलाकों का पूरा रिकॉर्ड और अन्य फाइलें रायपुर कलेक्टरेट में सुरक्षित थी। 2011-12 में बलौदाबाजार को अलग जिले का दर्जा मिला। उसी के बाद 10 ट्रकों में यहां से पूरा रिकॉर्ड एक-एक कर बलौदाबाजार भेजा गया था।
अब तक की जांच के अनुसार सोमवार को बलौदाबाजार कलेक्टरेट में लगाई गई आग में एक भी रिकॉर्ड सुरक्षित नहीं बचा है। पुराना रिकॉर्ड जल जाने से अब राजस्व संबंधित मामलों की जांच में दिक्कत आएगी। क्योंकि अब रायपुर में भी उसका रिकॉर्ड नहीं है।
बलौदाबाजार जिले के राजस्व का 1929 का बंदोबस्त मिशन नक्शा 1939 से 40 का चकबंदी मिशन नक्शा की एक-एक फाइल यहां से भेजी गई है। इसके जल जाने से अब वहां जाति प्रमाण पत्र के प्रकरण उलझ जाएंगे।
इसी तरह रजिस्ट्री राजस्व, फूड, आबकारी, खनिज से संबंधित सारे दस्तावेजों को भी वहीं भेज दिया गया था। उनकी दूसरी कॉपी नहीं है। ऐसे में राजस्व संबंधित प्रकरणों को निपटाना काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा बी-1 में जमीन के मालिक का नाम नहीं चढ़ा होने पर परेशानी होगी। बिना रिकॉर्ड नाम चढ़ाना संभव नहीं है। ऐसे में जमीन के मालिक होने के बाद भी नाम चढऩे के लिए भटकना पड़ेगा।
जमीन के विवाद सुलझाने में दिक्कत
जमीन से संबंधित अगर भाइयों में विवाद चल रहा होगा तो दस्तावेज जल जाने पर निपटारा नहीं हो सकेगा। ऐसी दशा में अगर किसी परिवार में बुजुर्ग है तो उनकी मौजूदगी में विवाद का हल निकाला जा सकेगा। लेकिन उनके नाम पर जमीन है और वह बुजुर्ग दुनिया में नहीं है ऐसी स्थिति में प्रकरण अटका रहेगा।
जाति प्रमाण पत्र बनाना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि इसके लिए 1950 के पहले के रिकॉर्ड की जरूरत होती है। रिकॉर्ड जल गया तो प्रमाण पत्र कैसे बनेगा। हां किसी के पिता अगर सरकारी नौकरी में हैं तो उनके दस्तावेज की कॉपी ऑफिस में होगी लेकिन उनके परिवार के सदस्य शासकीय सेवा में नहीं है, वह भटकते रहेंगे।
2012 के बाद डिजिटल किया गया है पूरा रिकॉर्ड
2012 के बाद रायपुर कलेक्टोरेट के रिकॉर्ड और पुरानी फाइलों को डिजिटल फॉर्मेट में तब्दील किया गया है। हालांकि इसके लिए भी खासी दिक्कतें सामने आई क्योंकि कई फाइलें और दस्तावेज इतने पुराने थे। कि इन्हें डिजिटल करने के प्रयास में उनके टुकड़े-टुकड़े हो गए थे। इस वजह से इसके लिए खासी परेशानी उठानी पड़ी थी।
रायपुर को बांट कर बनाए गए थे चार नए जिले
रायपुर जिले में पहले धमतरी, गरियाबंद, बलौदाबाजार, महासमुंद भी शामिल थे। 1998 में धमतरी और महासमुंद नए जिले बनाए गए, इसके बाद वर्ष 2011-12 में बलौदाबाजार और गरियाबंद को अलग जिला बनाया गया। जिला अलग होने के बाद रायपुर के कलेक्ट्रेट के कमरा नंबर 3 से 10 ट्रक भर कर सारे दस्तावेजों को भेजा गया था।