राजपथ - जनपथ
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चुनाव रिज़ल्ट और मंत्री पद
लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस-भाजपा में समीक्षा का दौर चल रहा है। प्रदेश में भाजपा को 10 सीटें लाने के लिए सीएम विष्णुदेव साय को बधाईयां मिल रही है। इससे परे दो पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, और राजेश मूणत का भी पार्टी के भीतर कद बढ़ा है।
मूणत ने राजनांदगांव सीट में एक तरह से चुनाव प्रबंधन संभाला हुआ था और वो पूरे चुनाव राजनांदगांव में ही डटे रहे। यहां कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व सीएम भूपेश बघेल से उनकी व्यक्तिगत नाराजगी भी रही है। इस वजह से उन्होंने यहां खूब मेहनत की, और पार्टी प्रत्याशी संतोष पाण्डेय को जिताने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। ऐसे में बड़ी जीत पर संतोष के साथ मूणत की भी सराहना हो रही है।
दूसरी तरफ, अजय चंद्राकर ने कांकेर में विशेष ध्यान दिया था। यहां कांटे की टक्कर में भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग सीट निकालने में कामयाब रहे। अब देर सबेर मंत्रिमंडल का विस्तार होना है ऐसे में ये दोनों नेता अपने काम के बूते पर स्वाभाविक दावेदार नजर आ रहे हैं।
छत्तीसगढ़ से दो, एक, या एक भी नहीं ?
मोदी 3.0 सरकार के गठन को लेकर दिल्ली से रायपुर तक भाजपा खेमे में हलचल बढ़ गई है। प्रदेश के सभी सांसद दिल्ली पहुंच चुके हैं। कल सभी संसदीय दल के नेता नरेंद्र मोदी से लेकर सभी बड़े नेताओं को जयश्री राम बोल चुके हैं । कारण सभी जानते हैं, कैबिनेट में कुर्सी। हाईकमान के, मंत्री चयन का फार्मूला तय करने की खबर है। इसके मुताबिक छत्तीसगढ़ से दो को लाल बत्ती मिल सकती है। पार्टी ने 4 सांसदों पर एक मंत्री बनाने का फैसला किया है। यानी छत्तीसगढ़ को 10 मेें दो मंत्री बनाए जा सकते हैं। लेकिन पिछली सरकारों के नजरिए से एक भी हो सकते हैं । फिर पार्टी की प्राथमिकता गठबंधन दलों को खुश करने की भी है। इसलिए अपनों को नाराज करने से परहेज नहीं किया जाएगा। छत्तीसगढ़ से किसे लिया जाए, इस यक्ष प्रश्न को लेकर कई पैमाने गिनाए जा रहे हैं। पहला जाति समीकरण, दूसरा अनुभव, और तीसरा संगठन का रूख। बड़ी लीड और रिकार्ड सबसे आखिरी में। पहले तीन मापदंड पर तो दो ही नजर आ रहे हैं। इसमें से किसकी लॉटरी लगती है कल शाम ही पता चलेगा। वैसे सब कुछ वर्किंग स्टाइल ऑफ़ मोदी पर निर्भर है ।
शैलजा तो फिर भी जीत गई...
भाजपा में शामिल हुए पूर्व कांग्रेस के संगठन मंत्री चंद्रशेखर शुक्ला, पूर्व विधायक शिशुपाल शोरी, पूर्व विधायक प्रमोद शर्मा, पूर्व महापौर वाणी राव, महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रही अनीता रावटे, पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष तुलसी साहू, उषा पटेल, पूर्व प्रदेश ओबीसी कांग्रेस अध्यक्ष चौलेश्वर चंद्राकर, आलोक पांडे, अजय बंसल और बिलासपुर के जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण सिंह चौहान ने सिरसा, हरियाणा जाकर कांग्रेस प्रत्याशी कुमारी शैलजा के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस ली। इसमें आरोप लगाया गया कि विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण में प्रदेश की प्रभारी महासचिव रहते हुए उन्होंने भाई-भतीजावाद अपनाया, पैसों के लिए योग्यता को किनारे किया तथा शराब और कोयला घोटाले को संरक्षण दिया। छत्तीसगढ़ से इन नेताओं को सिरसा भेजने की रणनीति काम नहीं आई और कुमारी शैलजा को 2 लाख 68 हजार 497 मतों के भारी अंतर से मतदाताओं ने जिता दिया। न केवल उनकी सीट बल्कि कुल 5 सीट भाजपा से कांग्रेस ने छीन ली। वह पिछली बार शून्य पर थी।
प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाए जाने के बाद शैलजा ने अपने वकील के जरिये इन नेताओं को नोटिस भेजी और कहा कि दो दिन के भीतर वे सार्वजनिक रूप से माफी मांगे वरना लीगल एक्शन के लिए तैयार रहें। माफी किसी नेता ने नहीं मांगी, बल्कि भाजपा ने पूछा कि भूपेश बघेल ने अरुण सिसोदिया को भी ऐसी ही नोटिस दी थी, उसका क्या हुआ? माफीनामा नहीं मिलने के बाद कुमारी शैलजा ने इस मामले को आगे बढ़ाया या नहीं, इसकी कोई खबर फिलहाल नहीं है। मगर, दशकों तक कांग्रेस की सेवा करने के बाद भाजपा में जाते ही इन्होंने अनुशासित सिपाही की तरह सिरसा जाकर भाजपा के पक्ष में काम किया। अब लोग इंतजार कर रहे हैं कि कब संगठन और सत्ता में इन्हें कोई वजनदार ओहदा मिलेगा।
हार का श्रेय भी लिया जा सकता है...
राजनीति में दो और दो हमेशा चार नहीं होते। एक राय हो सकती है कि इस लोकसभा चुनाव में राजनांदगांव की सीट कांग्रेस के लिए बहुत मुश्किल नहीं थी। पांच साल तक भारी बहुमत से राज्य की सरकार चला चुके पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मैदान में थे और आठ में से 5 विधानसभा सीटों पर दिसंबर 23 के चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। मगर एक दूसरा आंकड़ा भी है। कांग्रेस की जीती हुई पांच सीटों पर कांग्रेस की भाजपा पर कुल बढ़त 80 हजार 457 थी। जबकि शेष तीन सीटों पर ही भाजपा की लीड 1 लाख 11 हजार 754 रही। इनमें राजनांदगांव से मिली 45 हजार से अधिक और कवर्धा से मिली 39 हजार से अधिक की लीड शामिल है। इस तरह से विधानसभा में सीटों की संख्या तो कांग्रेस के पास अधिक थी, मगर भाजपा की कुल बढ़त 30 हजार वोटों से अधिक थी। मोहला मानपुर की 31 हजार 900 की लीड लोकसभा में बढक़र 39 हजार से अधिक चली गई। मगर खुज्जी जैसी सीट पर 26 हजार की विधानसभा में जो लीड थी वह घटकर 15 हजार रह गई। राजनांदगांव में विधानसभा के मुकाबले बढ़त 45 हजार से बढक़र 52 हजार हो गई। पंडरिया विधानसभा सीट भाजपा के खाते में गई लेकिन यहां कांग्रेस को करीब 3400 की लीड मिल गई। डिप्टी सीएम विजय शर्मा की कवर्धा सीट पर भी विधानसभा के मुकाबले भाजपा की लीड 39 हजार से घट कर 10 हजार से कुछ अधिक रह गई। खुज्जी, पंडरिया और मोहला-मानपुर में मिली कांग्रेस को लीड मिली। पर राजनांदगांव और कुछ हद तक कवर्धा की लीड ने भाजपा की जीत निश्चित कर दी।
भाजपा के पक्ष में राजनांदगांव में बड़ी लीड से जीतने वाले डॉ. रमन सिंह और विजय शर्मा तो थे ही, मोदी को फिर से लाने का माहौल और साय सरकार की महतारी वंदन जैसी योजना का असर भी था। बघेल के खिलाफ कई बातें थीं। एक तो पिछली सरकार के प्रति नाराजगी का बना रहना, बाहरी होना, कवर्धा जैसे इलाकों में एजाज ढेबर और मोहम्मद अकबर की मतदाताओं को याद दिलाना।
इधर बघेल की हार से सबसे ज्यादा खुशी वहां के पूर्व कांग्रेस नेता सुरेंद्र दाऊ को हुई । ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, वे पोस्टर लगाकर खुद ही बता रहे हैं। उन्होंने राजनांदगांव में चुनाव प्रचार के लिए पहुंचने पर बघेल को मंच से ही कई बातें सुना दी थी, जिसके बाद उन्हें कांग्रेस ने पार्टी से निकाल दिया था, फिर वे बघेल के प्रचार में खुलकर आ गए थे। जब उन्होंने धमकी मिलने की बात कही थी तो भाजपा सरकार ने उनकी सुरक्षा भी बढ़ा दी थी। ([email protected])