राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : जानी-पहचानी अपनी पुरंदेश्वरी
19-Jun-2024 4:59 PM
 राजपथ-जनपथ : जानी-पहचानी अपनी पुरंदेश्वरी

जानी-पहचानी अपनी पुरंदेश्वरी

लोकसभा स्पीकर के लिए जिन नामों की प्रमुखता से चर्चा चल रही है, उनमें प्रदेश भाजपा की पूर्व प्रभारी डी पुरंदेश्वरी शामिल हैं। डी पुरंदेश्वरी राजमुंदरी सीट से सांसद बनी है। पुरंदेश्वरी को सीनियर होने के बाद भी मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली, लेकिन उन्हें अहम जिम्मेदारी मिलने की चर्चा है।

  पुरंदेश्वरी भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। इससे परे लोकसभा स्पीकर के लिए आम सहमति बनाने की कोशिश हो रही है। इसमें पुरंदेश्वरी को फिट माना जा रहा है। वजह यह है कि पुरंदेश्वरी पहले कांग्रेस में थी, और डॉ.मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रही हैं। कांग्रेस नेताओं से उनके अच्छे रिश्ते हैं। यही नहीं, एनडीए के घटक दल टीडीपी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू उनके बहनोई हैं। ऐसे में कई लोगों का मानना है कि पुरंदेश्वरी के लिए सहमति बनाने में ज्यादा कोई दिक्कत नहीं आएगी।

पुरंदेश्वरी का नाम की चर्चा से छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता काफी खुश हैं। पुरंदेश्वरी करीब दो साल के कार्यकाल में निचले स्तर के कार्यकर्ताओं  तक अपनी पहुंच बना ली थी। प्रदेश के कई नेता अब भी उनके संपर्क में रहते हैं। ऐसे में पुरंदेश्वरी स्पीकर बनती हैं, तो संसद भवन में आना जाना आसान हो जाएगा। देखना है आगे क्या होता है।

दोनों का विभाग एक !

केन्द्रीय मंत्रिमंडल में तोखन साहू को जगह मिलने से राज्य को काफी उम्मीदें हैं। वैसे केंद्र में राज्यमंत्री के पास ज्यादा फाइलें नहीं आती है, और ज्यादा प्रभावशाली नहीं रह पाते। आम तौर पर कई कैबिनेट मंत्री विभाग अपने पास रखते हैं, और कार्य विभाजन नहीं करते हैं। इसके कारण कई राज्य मंत्रियों के लिए यह पद एक तरह से झुनझुना रह जाता है। मगर तोखन साहू का मामला अलग है।

तोखन के पास आवास एवं शहरी मामलों का मंत्रालय है। हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर उनके कैबिनेट मंत्री हैं। खट्टर बहुत अच्छे व्यक्ति माने जाते हैं। वो संगठन के काम से कई बार यहां आ चुके हैं। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि मंत्री के रूप में तोखन साहू को पूरे अधिकार मिलेंगे, और राज्य के लिए काफी कुछ प्रोजेक्ट ला सकते हैं।

इससे परे लोकसभा चुनाव के दौरान अरूण साव पूरे प्रदेश के दौरे पर रहे पर बिलासपुर सीट पर उनकी सक्रियता कम रही। इसे लेकर संगठन के स्तर पर कई नेताओं ने शिकायती लहजे में उठाया भी था। यह भी एक वजह मानी जा रही है।

तोखन साहू को केंद्रीय राज्यमंत्री बनाकर भाजपा संगठन ने नया समीकरण बना दिया है। लोरमी सीट से जीतकर अरुण साव डिप्टी सीएम बने। उसी लोरमी के रहने वाले तोखन केंद्र में राज्य मंत्री बनाए गए हैं। दोनों के विभाग के एक ही हैं। अब राज्य के नगरीय विकास के प्रोजेक्ट लेकर अरुण साव दिल्ली जाएँगे, तो पहले तोखन साहू के साथ बैठेंगे, फिर दोनों कैबिनेट मंत्री मनोहरलाल के पास जाएँगे।

रायपुर से एक मंत्री पक्का

बृजमोहन अग्रवाल का विधानसभा की सदस्यता से दिया  इस्तीफा मंजूर हो गया है। आज-कल में मंत्री पद भी छोड़ देंगे। कैबिनेट में एक सीट खाली होगी तो रायपुर से एक सीट मिलनी तय है। दूसरी सीट दुर्ग जाएगी। रायपुर में जो चर्चा है, उसके मुताबिक ओडिय़ा समाज के पुरंदर मिश्रा का नाम राजभवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक है। दरअसल, यह नाम इसलिए भी चर्चा में है, क्योंकि डिप्टी सीएम और केंद्रीय राज्यमंत्री का पद साहू समाज को मिल चुका है। ऐसी स्थिति में मोतीलाल साहू का समीकरण कमजोर हुआ है। संगठन ने वर्तमान में जो क्राइटेरिया तय किया है, उसमें राजेश मूणत को लेकर ऊहापोह चल रहा है । एक और खाली सीट आरएसएस और ओबीसी के कोटे से दुर्ग संभाग में जाने के संकेत है। वहीं कुर्मी समाज के कोटे को लेकर मंथन खत्म नहीं हो रहा। इस कोटे से अजय चंद्राकर और धरमलाल कौशिक दावेदारी है।

पुलिस की भाषा कैसी हो?

उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा ने अफसरों को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य पुलिस ऐसे शब्दों को अपने डिक्शनरी से हटाए जो आम लोगों की समझ से नहीं आता। इनकी जगह पर हिंदी के सरल शब्द प्रयोग में लाए जाएं। सन् 1861 में जब अंग्रेजों का कानून लागू हुआ था, तब कोर्ट-कचहरी और पुलिस के दस्तावेजों में उर्दू और फारसी शब्द बहुतायत से शामिल किए गए। आम बोलचाल में बहुत से शब्द शुद्ध हिंदी से कहीं अधिक प्रभावी हैं। जैसे- न्यायालय को कोर्ट या कचहरी कहना ज्यादा आसान लगता है। अधिवक्ता को तो हर कोई वकील ही कहता है। निरीक्षक, थानेदार और प्रधान आरक्षक, हवलदार कहे जाते हैं। अपराधी को मुजरिम कहा जाता है। व्यक्तिगत बंध पत्र को मुचलका, आधिपत्य को कब्जा, बिना मंशा के, को गैर इरादतन। हत्यारे को कातिल, अभिरक्षा को हिरासत, प्रत्यक्षदर्शी को चश्मदीद , दैनिक डायरी को रोजनामचा और प्रथम सूचना रिपोर्ट को एफआईआर।

मगर बहुत से शब्द ऐसे भी हैं जो आम लोगों की समझ से बाहर हैं या फिर समझने में जोर लगाना पड़ता है- जैसे इस्तगासा, मसरूका, नकबजनी। और इसी तरह के अनेक।

मंत्री ने हिंदी का इस्तेमाल करने कहा है तो उम्मीद करनी चाहिए कि बदलाव करने वाले अफसर उनकी मंशा को समझेंगे। ऐसा नहीं हो कि हिंदी में ऐसे शब्दों का चयन किया जाए जो चलन में न हो। शासकीय कार्यालयों, खासकर केंद्रीय कार्यालयों की हिंदी में ऐसा देखा गया है।

लोगों का यह भी मानना है कि लिखने की भाषा से ज्यादा जरूरी है, पुलिस को बोलने की भाषा में सुधार लाने के लिए कहा जाए।

वैसे भी एक जुलाई से नई न्याय संहिता लागू होने जा रही है। लिखा-पढ़ी के बहुत से बदलाव इसके आने के बाद अपने आप ही आ जाएंगे।

पानी सहेजने पहाड़ काटे

प्रदेश के दूसरे कई जिलों की तरह राजनांदगांव भी पेयजल संकट से जूझ रहा है। यहां के गांवों में व्याप्त पेयजल और निस्तारी की समस्या पर तो हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर कर दी गई है। पर, राजनांदगांव में जल स्तर दुरुस्त करने के लिए एक बड़ी पहल भी इस गर्मी में की गई। यहां के 42 पंचायतों ने बारिश का पानी जमा करने के लिए 2.25 लाख छोटे-छोटे गड्ढे बनाए हैं। जिले की 111 पहाडिय़ों पर यह काम हुआ है, जिसमें 11 लाख श्रम दिवस मजदूरों की जरूरत पड़ी। जिला पंचायत ने मनरेगा के तहत जल रक्षा अभियान चलाया है। पहाडिय़ों का पानी ठहरता नहीं, नदी-नालों के रास्ते से बह जाता है। कोशिश यह की गई है कि इन गड्ढों के बन जाने से पानी रुकेगा, मिट्टी रिचार्ज होगी और भू जल स्तर सुधारने में मदद मिलेगी। यह प्रयोग सफल है या नहीं इस बार बारिश में पता चलेगा। ([email protected])

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