राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : मीडिया प्रभारियों का इतिहास
07-Jul-2024 4:42 PM
राजपथ-जनपथ : मीडिया प्रभारियों का इतिहास

मीडिया प्रभारियों का इतिहास  

भाजपा हो या कांग्रेस, मीडिया प्रमुखों को सरकार में ‘लाल बत्ती’ मिली है। पार्टी की छवि बनाने में मीडिया प्रमुखों की अहम भूमिका रहती है। यही वजह है कि सरकार बनने पर उन्हें महत्व मिलता है। भूपेश सरकार में शैलेष नितिन त्रिवेदी, और सुशील आनंद शुक्ला को ‘लाल बत्ती’ मिली थी। यही नहीं, कांग्रेस ने अपने प्रवक्ताओं डॉ. किरणमयी नायक, सुरेन्द्र शर्मा को क्रमश: आयोग व बोर्ड में पद देकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था। किरणमयी तो अभी भी महिला आयोग का अध्यक्ष पद संभाल रही हैं। 

भाजपा में भी मीडिया प्रकोष्ठ की जिम्मा संभालने वाले नेताओं को  भी भाजपा सरकार में अहम दायित्व मिला है। मध्यप्रदेश में पार्टी का मीडिया संभालने वाले प्रभात झा तो राज्यसभा में गए, और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भाजपा के पहले मीडिया प्रभारी सुभाष राव 10 साल राज्य हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन रहे। इसके बाद रसिक परमार भी दुग्ध महासंघ के चेयरमैन बनाए गए। 

परमार के बाद के मीडिया प्रभारी नलिनेश ठोकने को ‘लाल बत्ती’ नहीं मिल पाई। क्योंकि भाजपा की सरकार हट गई थी। हालांकि नलिनेश को प्रदेश संगठन में जिम्मा दिया गया। वर्तमान में मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी, और सह प्रभारी अनुराग अग्रवाल का नाम स्वाभाविक रूप से ‘लाल बत्ती’ के दावेदारों के रूप में उभरा है। 

चिमनानी रायपुर उत्तर के टिकट के दावेदार थे। लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल पाई। अनुराग अग्रवाल का नाम रायपुर दक्षिण सीट से टिकट के दावेदारों में प्रमुखता से लिया जा रहा है। कुछ लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि निगम मंडलों के पदाधिकारियों की पहली लिस्ट में मीडिया विभाग के पदाधिकारियों का भी नाम हो सकता है। देखना है कि आगे क्या होता है। 

केंद्र से बड़ी घर वापिसी  

केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर गए कुछ सीनियर आईएएस अफसरों की छत्तीसगढ़ में वापसी हो सकती है। ज्यादातर अफसर पिछली सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। वर्तमान में पीएमओ में पदस्थ वर्ष-2002 बैच के अफसर डॉ. रोहित यादव की प्रतिनियुक्ति खत्म हो गई है, और वे इस महीने के आखिरी तक छत्तीसगढ़ आ सकते हैं।  इसके अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सचिव नीरज बंसोड़ की भी वापसी की चर्चा है। केन्द्र सरकार में संयुक्त सचिव अमित कटारिया के भी अगले दो महीने में छत्तीसगढ़ वापस आने की चर्चा है। कटारिया पिछले सात साल से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। इसके अलावा प्रमुख सचिव स्तर के अफसर सुबोध सिंह के भी प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद अगले एक-दो महीने में वापस आ सकते हैं। इन अफसरों के आने से छत्तीसगढ़ सरकार में अनुभवी अफसरों का टोटा खत्म होगा। 

वल्र्ड बिरयानी डे की एक तस्वीर..

दुनियाभर में खान-पान के शौकीन आज वल्र्ड बिरयानी डे  मना रहे हैं। सैकड़ों किस्म के वेज-नॉनवेज बिरयानी की तस्वीर और वीडियो सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं और ललचा रहे हैं। प्रदेशभर में इन दिनों शाला प्रवेशोत्सव भी चल रहा है। बच्चों को खीर, पूड़ी, पनीर खिलाते नेताओं और अफसरों की तस्वीरें आ रही हैं। इन सबके बीच इस एक तस्वीर को भी देख लीजिए। यह बलरामपुर जिले के बीजाकुरा गांव की है। यहां के 43 स्कूली बच्चे मध्यान्ह भोजन में हल्दी, नमक मिला भात खा रहे हैं। साथ में और कुछ नहीं। स्कूल प्रबंधन का कहना है कि हफ्तेभर से सब्जी मिल नहीं रही है, तब से ऐसा ही चल रहा है।

पढ़ाई के बगैर परीक्षा नहीं

अब तक प्राइवेट परीक्षार्थी साल में एक बार कॉलेज चुनकर फॉर्म जमा कर देते थे और सीधे एग्जाम में बैठ जाते थे। अब उन्हें एक माह की कक्षा भी अटेंड करनी पड़ेगी। यह स्नातक और पीजी डिग्री हासिल करने का आसान तरीका रहा है। अब नई शिक्षा नीति में यह जरूरी कर दिया गया है कि छात्र कम से कम एक माह क्लास अटेंड करें और परफॉर्मेंस दिखाएं, इसके बाद ही प्राइवेट एग्जाम दे सकेंगे। इस व्यवस्था से जितनी चिंता प्राइवेट छात्र-छात्राओं को नहीं हो रही है, उससे अधिक कॉलेजों के प्रबंधकों को है। वे क्लास लेने के लिए जगह की कमी की बात उठा रहे हैं। निजी कॉलेजों को प्राइवेट परीक्षार्थियों से अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। तय फीस के अलावा वे अलग-अलग मद में फीस काटते हैं, जो यूनिवर्सिटी नहीं भेजी जाती। चाहे परीक्षा देने के लिए जगह कम पड़े लेकिन कोई भी प्राइवेट दिलाना चाहे तो उनको वे निराश नहीं करते। अब नई व्यवस्था में क्लास लेना मजबूरी हो जाएगी। अब उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय की निगरानी भी होगी कि जितने छात्रों से कोई कॉलेज प्राइवेट फॉर्म जमा करा रहे हैं उतने लोगों को पढ़ाने के लिए उसके पास शिक्षक और भवन है भी या नहीं। अब तक ऐसे किसी नियंत्रण की जरूरत नहीं थी।

यह गौर करने की बात है कि राज्य में एक मुक्त विश्वविद्यालय भी है, जो पं. सुंदरलाल शर्मा के नाम से सन् 2005 से स्थापित है। यहां की दर्ज संख्या 60 हजार के आसपास ही पहुंच पाई है, जबकि दक्षिण और पूर्वोत्तर के कई ऐसे राज्य जो छत्तीसगढ़ से छोटे भी हैं, वहां स्थापित मुक्त विश्वविद्यालयों की दर्ज संख्या डेढ़ लाख, दो लाख है। वजह यह है कि वहां प्राइवेट एग्जाम को हतोत्साहित किया जाता है। यदि कोई रेगुलर क्लास नहीं आ सकता तो उसे ओपन यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने के लिए कहा जाता है। ओपन यूनिवर्सिटी के अपने सिलेबस होते हैं, एडमिशन लेने वाले छात्रों को अपनी पुस्तकें देते हैं। प्रत्येक सेमेस्टर की सप्ताह भर या 15 दिन की क्लास लगाई जाती है। उन्हीं पुस्तकों से सवाल दिए जाते हैं, फिर परीक्षा ली जाती है और डिग्री दी जाती है।

नई शिक्षा नीति में की गई यह  व्यवस्था प्राइवेट कॉलेजों को बाध्य करेगी कि वह प्राइवेट छात्रों से सिर्फ फीस लेकर मुक्त नहीं हो सकते। उन्हें पढ़ाने की जिम्मेदारी भी होगी। प्रदेश के एकमात्र मुक्त विश्वविद्यालय में हो सकता है दाखिला इस नई व्यवस्था से बढ़ जाए, मगर वहां भी फिलहाल संसाधन बहुत कम हैं। उच्च शिक्षा विभाग से यह लगभग उपेक्षित संस्थान है। ([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news