राजपथ - जनपथ
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विस्तार टल गया?
सरकार ने आधी रात आदेश जारी कर संसदीय कार्य विभाग का प्रभार वन मंत्री केदार कश्यप को दे दिया है। विधानसभा सत्र की वजह से संसदीय कार्य विभाग किसी मंत्री को सौंपा जाना तय था। इस छोटे से बदलाव के बाद अटकलें लगाई जा रही है कि कैबिनेट विस्तार में समय लग सकता है।
साय कैबिनेट में दो स्थान रिक्त हैं। चर्चा है कि पार्टी के अंदरखाने में कैबिनेट विस्तार को लेकर काफी मंथन भी हुआ था। यह भी कहा जा रहा था कि पहली बार के विधायकों को कैबिनेट में जगह दी जा सकती है। मगर ऐसा नहीं हुआ।
दरअसल, रामविचार नेताम, दयालदास बघेल, और केदार कश्यप को छोडक़र सभी पहली बार के मंत्री हैं। कुछ नेताओं की राय थी कि सीनियर विधायकों को मंत्री बनाया जाना चाहिए ताकि उनके अनुभवों का लाभ मिल सके। इस क्रम में राजेश मूणत, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, और धरमलाल कौशिक का नाम प्रमुखता से चर्चा में रहा है। यही नहीं, पूर्व मंत्री लता उसेंडी, और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी भी स्थानीय समीकरण को देखते हुए मंत्री पद की दौड़ में रहे, लेकिन इन सब पर फिलहाल विराम लग गया है।
खट्टर का बस्तर कनेक्शन...
केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर यहां आए, तो बस्तर के नेताओं की पूछपरख की। बहुत कम लोगों को मालूम है कि खट्टर वर्ष-2002 से 03 तक करीब एक साल बस्तर में भाजपा संगठन का काम देखते रहे हैं। उस वक्त प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। उन्होंने मोटरसाइकिल में बैठकर बस्तर के दूर दराज इलाकों का दौरा किया था, और संगठन को मजबूत किया।
खट्टर ने प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में दिवंगत बलीराम कश्यप के साथ अपने संबंधों को याद किया। उन्होंने केदार कश्यप का भी हाल चाल जाना। और जब अपने उद्बोधन में खट्टर ने लता उसेंडी को मंत्री कह दिया, तो मंच पर किसी ने कहा कि वो मंत्री नहीं हैं। इस पर खट्टर ने तुरंत भूल सुधार किया, और कहा कि वो मंत्री नहीं है, लेकिन तालियों की गडगड़़ाहट बता रही हैं कि लता मंत्री बन जाएंगी।
खट्टर यहां भी नहीं रूके, और उन्होंने पूर्व मंत्री महेश गागड़ा को याद किया। महेश गागड़ा बाकी पदाधिकारियों के साथ छठवीं पंक्ति पर बैठे थे, और उन्होंने दोनों हाथ उठाकर कहा भाई साब मैं यहां हूं। कुल मिलाकर खट्टर ने विशेषकर बस्तर के नेताओं का दिल जीत लिया।
आशीर्वाद आगे काम आएगा?
केन्द्रीय वित्त आयोग की टीम, चेयरमैन डॉ. अरविंद पनगढिय़ा की अगुवाई में यहां पहुंची, तो सीएम और सरकार के मंत्रियों के साथ बैठक की। आयोग की टीम पंचायत, और नगरीय निकाय के पदाधिकारियों के साथ-साथ विपक्ष के नेताओं से भी मेल मुलाकात की। राज्य का जोर आयोग से अतिरिक्त अनुदान के लिए था।
बाद में वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने आयोग की टीम को अपने निवास में रात्रिभोज पर आमंत्रित किया। यहां चुनिंदा लोग ही थे। कुल मिलाकर आयोग को सरकार के लोगों ने अतिरिक्त वित्तीय मदद देने के लिए राजी करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इन सबके बीच भाजपा प्रवक्ता उज्जवल दीपक भी चेयरमैन डॉ. अरविंद पनगढिय़ा से मिले। उज्जवल अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है, उस वक्त डॉ. पनगढिय़ा अमरीका में उनके प्रोफेसर थे। उज्जवल ने डॉ. पनगढिय़ा का आशीर्वाद लिया। अब आयोग की नजरें कितनी इनायत होती है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
कांग्रेस संगठन, नए समीकरण
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज आज ही अपने कार्यकाल की पहली वर्षगांठ मना रहे हैं और राजीव भवन में स्थानीय निकायों जैसे जमीनी चुनाव से पहले बदलाव की चर्चाएं जोर पकड़े हुए है। सभी यह मान रहे हैं कि अगले एक सवा महीने में हाईकमान बदलाव कर सकता है । सो इच्छुक हर वरिष्ठ नेता हर प्रयास कर रहे हैं। खासकर ऐसे पूर्व मंत्री जो चुनाव हार चुके हैं। वे दिल्ली दरबार तक दखल रखने वाले प्रमुख नेताओं से घंटे से घंटों बैठकें कर रहे हैं। और उसके बाद दौरे पर निकल पड़ रहे हैं। पहले धनेंद्र साहू, नेता प्रतिपक्ष डॉ महंत, टीएस सिंहदेव से मिले, फिर मोहन मरकाम और अब मो अकबर भी। हालांकि सिंहदेव को भी समर्थक नया अध्यक्ष मानकर चल रहे हैं। उनसे डॉ. महंत को भी दिल के किसी कोने में एतराज नहीं।
दोनों ने रविंद्र चौबे के साथ बैठकर नया त्रिफला बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इन मुलाकातों के बाद मरकाम और अकबर को लेकर भी चर्चाएं गर्म हैं। मोहन मरकाम तो नांदगांव जाकर बघेल विरोधी नेताओं के साथ रानीसागर रेस्ट हाउस में बैठक कर आए। तो अकबर ने धरसींवा, भाटापारा से शुरुआत की। देखना यह है कि अकबर का दौरा जारी रहता है या थमता है।
सडक़ पर फिर मवेशियों का डेरा
नेशनल और स्टेट हाइवे पर इन दिनों फिर मवेशियों का डेरा बढ़ गया है। पशुओं को उनके मालिक खुला छोड़ रहे हैं और वे सडक़ों पर जमे रहते हैं। कांग्रेस थी तब इन्हीं दिनों में प्रदेश में रोका-छेका अभियान चला करता था। इस समस्या को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर हाईकोर्ट में कई बार सुनवाई हो चुकी है। ताजा मामले में कोर्ट ने अफसरों को निर्देश दिया है कि कोई ठोस प्लान बनाएं वरना जवाबदेही तय की जाएगी। हाईकोर्ट में कई याचिकाएं हैं। कुछ तो सात-आठ साल से दायर हैं। कुछ निर्देशों के बाद निराकृत भी कर दिये गए थे, पर हल नहीं निकला। इसी में एक आदेश पिछले साल का है। सितंबर 2023 में कोर्ट ने कहा था कि सभी जिलों में कलेक्टर या किसी शीर्ष अधिकारी के नियंत्रण में जिला स्तर पर समिति बनाई जाए। यही नहीं नगर पंचायतों और ग्राम पंचायतों में भी समिति बनाएं और मवेशियों को सडक़ से दूर रखें। आदेश के बाद कुछ दिनों तक कई जिलों में कलेक्टर्स ने सक्रियता दिखाई। उसके बाद उस समिति का कोई क्रियाकलाप दिखाई नहीं दे रहा है। मवेशी मालिकों पर जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी गई थी, पर वह भी कारगर नहीं रहा। पिछली छत्तीसगढ़ सरकार ने गौठान योजना पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए थे। पहले भी अधिकांश वीरान हो चुके थे, अब तो किसी गौठान में कोई भी गतिविधि नहीं हो रही है। वह रकम बर्बाद हो चुकी है। मौजूदा सरकार ने गौ अभयारण्य बनाने की घोषणा की है। दावा है कि यह गौठान योजना से भी अच्छी होगी। पर अभी वह जमीन पर नहीं दिखाई दे रहा है। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले साल सोशल मीडिया पर घोषणा की थी कि मवेशियों के आने वाली जगहों को चिन्हित कर नेशनल हाईवे में 120 सेंटीमीटर ऊंची बाड़ लगाई जाएगी। इसकी शुरुआत राजमार्ग क्रमांक 30 से होने की बात भी बताई थी। पर, छत्तीसगढ़ के किसी हाईवे पर यह काम शुरू नहीं हुआ है। ऐसा करना उचित है भी या नहीं, यह भी नहीं बताया जा सकता।