राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : मोटर पार्ट्स और चना सप्लाई
14-Jul-2024 4:00 PM
राजपथ-जनपथ :  मोटर पार्ट्स और चना सप्लाई

मोटर पार्ट्स और चना सप्लाई 

खाद्य विभाग ने चना सप्लाई के मसले पर विपक्ष ने सवालों की झड़ी लगा दी है। कितने प्रश्न मंजूर हुए हैं, यह अभी साफ नहीं है। मगर विपक्ष के कुछ सदस्य चना सप्लाई में कथित गड़बड़ी को जोर शोर से उठाने की तैयारी कर रहे हैं। 

दिलचस्प बात यह है कि पिछली सरकार में भी चना सप्लाई के मसले पर सदन गरम रहा था। उस वक्त भाजपा सदस्यों ने आरोप लगाया था कि मोटर पार्ट्स का काम करने वाले लोग चना सप्लाई कर रहे हैं। ये अलग बात है कि उस वक्त भी चना सप्लाई में गड़बड़ी साबित नहीं हुई थी। बाद में सत्तारूढ़ दल के एक पदाधिकारी ने विवाद का फायदा उठाकर कारोबार में अपना दबदबा बना लिया। 

सरकार बदली, फिर चने का टेंडर निकला, और उसी सप्लायर को  न्यूनतम बोली के आधार पर काम मिल गया। सप्लाई ऑर्डर करीब 15 करोड़ के आसपास है। मगर अब कांग्रेस के लोगों को इसमें नुक्स दिख रहा है। इसमें क्या कुछ निकलता है यह तो सदन में बहस होने के बाद ही पता चलेगा। 

कांग्रेस अब जाएगी अयोध्या?

विष्णुदेव साय कैबिनेट ने शनिवार को अयोध्या धाम जाकर रामलला मंदिर के दर्शन किए। सरकार ने आम लोगों के लिए अयोध्या धाम यात्रा शुरू की है। जिसमें लोगों को स्पेशल ट्रेन से वहां ले जाकर दर्शन कराया जा रहा है।

खबर यह भी है कि सरकार सत्ता, और विपक्ष के विधायकों के साथ-साथ सभी सांसदों को भी रामलला मंदिर दर्शन के लिए ले जाने की सोच रही है। कहा जा रहा है कि मानसून सत्र के दौरान संसदीय कार्य मंत्री इस मसले पर विपक्ष के नेताओं से चर्चा कर सकते हैं। 

हालांकि विपक्षी विधायक सरकार के लोगों के साथ रामलला मंदिर दर्शन के लिए जाएंगे, इसकी संभावना कम दिख रही है। वजह यह है कि रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पार्टी के राष्ट्रीय नेता दूर थे। बाद में कई कांग्रेस नेताओं ने अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार रामलला मंदिर दर्शन किए। इस बार भी शायद कुछ ऐसा हो। देखना है आगे क्या होता है। 

भाजपा में बड़े बदलाव के संकेत

छत्तीसगढ़ प्रभारी ओम माथुर के बाद भाजपा संगठन में बड़े बदलाव के संकेत हैं। आरएसएस की अखिल भारतीय प्रांत प्रचारकों की रांची  बैठक के बाद संभवत: कोई निर्णय लिया जाए। हालांकि बदलाव की सुगबुगाहट चुनाव से पहले से ही थी, लेकिन नए प्रभारियों के असिस्टेंट के लिए टाल दिया गया था। राज्य में सरकार बनने के बाद कई तरह की शिकायतें भी आ रही हैं। इसके बाद यह चर्चा तेज हुई। वैसे आरएसएस ने भी प्रांत प्रचारक को बदल दिया है। इसका असर भाजपा संगठन में भी देखने को मिल सकता है। संकेत है कि एक दिग्गज सांसद को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।

फ्लोर मैनेजमेंट आसान नहीं

विधानसभा में फ्लोर मैनेजमेंट आसान नहीं होता। इसके लिए सदन के नियम प्रक्रिया की जानकारी के साथ-साथ विपक्ष से बेहतर समन्वय भी जरूरी है। इस पूरी प्रक्रिया में पर्दे के पीछे काफी सारी बातें रहती हैं, जो फ्लोर मैनेजमेंट का अहम हिस्सा होती है।

बृजमोहन अग्रवाल, रविंद्र चौबे और अजय चंद्राकर जैसे जानकार न सिर्फ अपनी सरकार को गिरने से रोकते थे, बल्कि विपक्ष को भी बोलने का पूरा मौका देते थे। भाजपा ने 14 विधायकों से ही कांग्रेस के सामने कड़ी चुनौती पेश की थी। छठवीं विधानसभा में कांग्रेस विधायकों की संख्या इस आंकड़े के दोगुने से ज्यादा है। 

संख्या बल के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत जैसे चाणक्य पूर्व सीएम भूपेश बघेल, कवासी लखमा, उमेश पटेल, लखेश्वर बघेल, दलेश्वर साहू जैसे अनुभवी विधायक भी हैं, जिनके हमलों से भी बचाना होगा, क्योंकि कई नए मंत्री सवालों का जवाब देने में भी एक्सपर्ट नहीं हुए हैं। और कई अपने भी नाराज हैं। मंत्री पिछले सत्र में तो कई बार सत्ता पक्ष के विधायकों के सवालों से घिर गए थे। पांच बैठकें कम अवश्य है लेकिन विपक्ष के लिए बहुत है। देखना होगा कि नए संसदीय कार्य मंत्री कैसे समन्वय बिठा पाते हैं।

वित्त मंत्री का वायरल वीडियो

एक वीडियो सोशल मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से वायरल है, जो कथित रूप से वित्त मंत्री ओपी चौधरी का है। इसमें वे सरकारी भर्ती का विज्ञापन निकालने की मांग लेकर पहुंचे युवाओं से कह रहे हैं कि पैसा कहां है? सबको सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती। मिलेगी तो एक प्रतिशत को ही। हमारा वादा 5 साल के लिए है, कांग्रेस से ज्यादा भर्ती होगी। भर्ती अभी निकल सकती है, 6 माह में निकल सकती है और साल भर में भी।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने इस पर टिप्पणी करते हुए याद दिलाया है कि भाजपा ने 3 लाख भर्तियों का वादा किया था। उन्हें अब युवाओं को कोचिंग देना बंद कर देना चाहिए। भूपेश बघेल की टिप्पणी है कि वे युवाओं को पकौड़े तलने के लिए कह रहे हैं। यू-ट्यूब और एक्स पर इस वीडियो को लाखों लोग देख चुके हैं। युवाओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। एक ने चौधरी की किसी जनसभा का वीडियो शेयर किया है, जिसमें वे कहते हुए दिख रहे हैं कि कैलेंडर बनाकर एक साल के भीतर एक लाख भर्तियां की जाएंगीं।

करीब दो साल पहले तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का वीडियो वायरल हुआ था। सिंहदेव ने वेतन भत्ता बढ़ाने की मांग कर रहे कर्मचारियों से इसमें कहा था कि 50-55 हजार करोड़ अभी हम आप पर खर्च कर ही रहे हैं। आप 5-6 हजार करोड़ रुपये और मांग रहे हैं। कहां से दें, सरकार के पास पैसे नहीं है। सिंहदेव ने स्वीकार किया था कि वीडियो उनका ही है। साथ में जोड़ा कि केंद्र सरकार हमें हमारा 20 हजार करोड़ रुपये नहीं दे रही है, इसलिये यह नौबत आई है। मगर, भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि कांग्रेस सरकार के कुप्रबंधन ने प्रदेश को कर्ज में डुबो दिया।पहले स्टिंग ऑपरेशन के लिए बड़ी तैयारी करनी पड़ती थी। अब हर हाथ में मोबाइल फोन है। सिंहदेव और चौधरी की बात एक ही तरह की है। कुछ लोगों के बीच भरोसे में कुछ कहा, हजारों-लाखों लोगों के बीच फैल गया और सरकार में चल क्या रहा है, जनता को पता चल गया।

अतिथि शिक्षकों पर अलग-अलग नीति

कॉलेजों में पद रिक्त होने के कारण अस्थायी रूप से अध्यापन के लिए भर्ती किए जाने वाले अतिथि व्याख्याताओं, सहायक प्राध्यापक और सह-प्राध्यापकों के लिए बड़ा फैसला लिया गया। उच्च शिक्षा विभाग ने कॉलेजों को निर्देश दिया है कि इन पदों पर एक बार नियुक्ति हो जाने के बाद यदि अगले सत्र में भी वे पढ़ाना चाहते हैं तो उनसे फिर काम लिया जाए। उसी कॉलेज में जगह न हो तो जिले या प्रदेश के दूसरे कॉलेज में मौका मिलेगा। रिक्त पदों पर 100 फीसदी भर्ती जब तक न हो, उन्हें मौके मिलते रहेंगे। यह आदेश हाईकोर्ट में लगाई गई अतिथि व्याख्याताओं की एक याचिका के बाद निकाला गया। दूसरी तरफ स्कूलों के संबंध में इस तरह का कोई फैसला नहीं लिया गया है। आम स्कूलों में अतिथि शिक्षकों की ऐसी नियुक्ति शाला विकास समितियां बहुत मामूली मानदेय पर करती हैं। पूर्व में शिक्षाकर्मियों की भर्ती की गई थी, जिन्हें लंबे आंदोलन के बाद नियमित किया जा चुका है। यह भी तय किया गया है कि अब नियमित शिक्षकों की ही भर्ती होगी।

इधर करीब आठ साल पहले एकलव्य आवासीय विद्यालय योजना शुरू की गई थी, जिनमें 630 अतिथि शिक्षकों की भर्ती हुई थी। ये शिक्षक न तो शिक्षाकर्मियों की श्रेणी में आते, जिन्हें बाद में नियमित किया गया, न ही कॉलेजों के अतिथि व्याख्याता की तरह हैं, जिनको हाल के आदेश के जरिये जॉब की थोड़ी सुरक्षा मिल गई है। मगर, ये लगातार 8 साल से स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। अब इनको अपनी नौकरी छिनने का खतरा दिखाई दे रहा है, क्योंकि सरकार ने एकलव्य स्कूलों में नई स्थायी भर्ती का निर्णय लिया है। इन्हें भर्ती प्रक्रिया में रियायत देने का कोई प्रावधान नहीं है। हटाए जा रहे शिक्षक हड़ताल कर रहे हैं, आमरण अनशन की चेतावनी भी दी है।

स्कूल शिक्षा विभाग में उच्च शिक्षा विभाग की तरह कोई पॉलिसी अस्थायी शिक्षकों के लिए नहीं बनी, इसलिये यह नौबत आई है। शिक्षाकर्मी एक बड़ा वोट बैंक था, इसलिए उन्होंने हक हासिल कर लिया, कॉलेजों के अतिथि व्याख्याताओं के मामले में हाईकोर्ट का आदेश था। पर एकलव्य स्कूल शिक्षकों की संख्या कम है। उनके पक्ष में कोई अदालती आदेश भी नहीं है। इसलिये इनकी लड़ाई आसान नहीं है।  

क्या छुट्टी लेकर ही गायब हो पाएंगे?'

यह चर्चा हो रही है कि अब सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को अवकाश लेने के लिए आवेदन ऑनलाइन करना होगा। लंबी छुट्टी हो या एक या दो दिन के आकस्मिक अवकाश, पोर्टल पर जाकर ही आवेदन जमा करना होगा। ऑनलाइन आवेदन मिल जाने के बाद अधिकारी स्वीकृति भी ऑनलाइन ही देंगे। यह प्रक्रिया जल्द ही घोषित कर दी जाएगी। जो टीचर्स अवकाश के मामले में नियम कायदों का पालन करते हैं, उन्हें क्या ऑफलाइन और क्या ऑनलाइन। समस्या तो वहां है, जहां शिक्षक बिना अवकाश के ही स्कूल नहीं पहुंचते। ऐसा अक्सर होता है, जब डीईओ, बीईओ आकस्मिक निरीक्षण करते हैं तो बच्चे इंतजार करते रहते हैं, और शिक्षक गायब रहते हैं। उनका छुट्टी का कोई आवेदन भी प्रभारी अधिकारी के पास नहीं होता है। जांच पड़ताल होने पर शिक्षक यह बहाना करते हैं कि उन्हें अचानक कोई काम आ गया। अब प्रक्रिया ऑनलाइन कर देने से वे छुट्टी की अर्जी जहां पर मौजूद हैं, वहीं से दे सकते हैं। यह नया प्रयोग लागू होने के बाद पता चलेगा कि शिक्षकों की बिना बताए गैरहाजिरी पर कितनी रोक लगी।

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