राजपथ - जनपथ
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डबल इंजन के नफे
डबल इंजन की सरकार बनी है, तो इसका फायदा भी दिख रहा है। पहले केन्द्रीय योजनाओं के मद की राशि जारी करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी, लेकिन अब केन्द्र सरकार उदारतापूर्वक राशि जारी रही है। केन्द्र के भरोसे 18 लाख ग्रामीण आवास योजना का क्रियान्वयन बेहतर ढंग से होने की उम्मीद जगी है। पिछली सरकार में इस दिशा में ज्यादा काम नहीं हो पाया था।
इसी तरह 15वें वित्त आयोग की टीम यहां पहुंची, तो तीन दिन प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में जाकर विभागीय अफसरों के साथ जनप्रतिनिधियों से भी चर्चा की। पंचायत, नगरीय प्रशासन विभाग ने वित्त आयोग के मद की राशि बढ़ाने की भी मांग की है। इस पर आयोग का रुख सकारात्मक दिखा है। देखना है आयोग राज्य की अपेक्षाओं को कितना पूरा करती है।
ई ऑफिस और सच्चाई
प्रदेश के प्रशासनिक मुख्यालय मंत्रालय को ई ऑफिस में और सरकार के कामकाज को डैशबोर्ड में बदलने की कवायद तेजी से चल रही है। कर्नाटक से सीख कर आए एक साहब ने ऐसा करने की ठानी है। तो एक मंत्री जी गुजरात से पूरा सॉफ्टवेयर खंगाल आए।
दावे तो बहुत से किए जा रहे हैं, ऐसा होगा तो वैसा होगा। लोगों की समस्याएं घर बैठे दूर की जाएंगी। लोग मोबाइल पर ही अपनी फाइल मूवमेंट एक क्लिक में देख सकेंगे। सीएम साहब भी अपनी योजना की ग्राउंड रियलिटी डैश बोर्ड में परख सकेंगे आदि आदि।
इसकी शुरुआत अटेंडेंस से होने जा रही है। साप्रवि, मंत्रालय के एक हजार अधिकारी कर्मचारियों का अटेंडेंस आनलाइन रखना चाह रहा है। स्वाइप कार्ड से इनकमिंग और आउटगोइंग की एंट्री हुआ करेगी। हर गेट पर मशीने होंगी और आई कार्ड पर इलेक्ट्रॉनिक चिप लगा होगा। यहां तक तो ठीक है,हाई टेक महसूस करने के लिए। मगर मंत्रालय के भीतर प्रशासनिक कामकाज क्या उतना परिपक्व हो पाया है। नहीं..! अभी भी ढर्रे पर चल रहा है। जो आवक जावक में बैठा है तो 24 वर्ष से वही काम कर रहा है।
साहबों के दोपहर बाद आने का क्रम जारी है। कैबिनेट के दिन छोड़ मंत्री भी दफ्तर नहीं जाते। चर्चा करें, परीक्षण करें लिखी फाइलों का ढेर है। जानकारों का कहना है कि केवल चपरासी, लिपिकों के टाइम पर आने से ई-ऑफिस नहीं होगा। साहबों को भी समय पर आना होगा। उन्हे फाइलें लंबित रखने के बजाए निर्णय लिखने होंगे। लिपिकों से लेकर अवर सचिव और ऊपर तक हर साल ट्रेनिंग देनी होगी। प्रोसेस से अपडेट रखना होगा।
सेक्शन में उपकरण देने होंगे। अभी कंप्यूटर है तो प्रिंटर, फोटो कॉपियर नहीं है। रिकार्ड सेव रखने पेन ड्राइव नहीं है। कंप्यूटर है तो 10 वर्ष पुराने हैं आदि आदि। उस पर अप्रशिक्षित स्टाफ। ऐसे बड़े बदलाव करने होंगे, नहीं किए गए तो यूं ही विथ पेपर मंत्रालय ही रहने दिया जाए।
पीएससी पासआउट भृत्य
मंत्रालय में सोमवार मंगलवार को एक गजब का वाकया हुआ। बहुमंजिले भवन के सेक्शन ब्लाक में कुछ महिला पुरुष औचक निरीक्षण की तर्ज पर घूम रहे थे। स्टाफ को लगा आईएएस, राप्रसे पास आउट कोई नए साहब लोग होंगे। या दीगर राज्यों से भ्रमण पर आए अफसर होगें जो भवन देख रहे होंगे। सो जिन लोगों की नजर पड़ी, वह कुछ सहमते हुए आदर पूर्व उनके सामने से गुजरता रहा। और एक दूसरे को भी आगाह करते रहे। भ्रमणकर्ताओं की सच्चाई बहुत देर तक छिपी नहीं रह सकी। इनमें से एक-दो साप्रवि और अधीक्षण शाखा में देखे गए। वहां के पुराने स्टाफ से, इन नए लोगों के बारे में पूछताछ की। तो मालूम हुआ कि ये नई भर्ती के 80 भृत्य में से कुछ हैं जो अपने योग्यता के प्रमाण पत्रों के सत्यापन के लिए आए थे। और मंत्रालय घूमकर देख रहे थे। आपको बता दें कि ये लोग पद में भले भृत्य हों, लेकिन पास आउट पीएससी से हैं। कांग्रेस शासन काल में मंत्रालय में भृत्यों की भर्ती प्रक्रिया पीएससी से की गई थी। इन्हें भी लोक सेवक मानकर पीएससी ने प्रक्रिया की थी। ये उन्ही भृत्यों का पहला पीएससी पास आउट बैच है। जब पीएससी पास आउट हैं तो पहनावा, चाल ढाल एटीट्यूड भी वैसा ही रखना होगा। वे लोग उसी आचरण संहिता का पालन कर रहे थे।
भाजपा पर सिंहदेव की टिप्पणी
सोशल मीडिया पर इन दिनों एक पोस्ट वायरल है। यह इंडिया टुडे न्यूज चैनल के पत्रकार राहुल कंवल की है, उन्होंने अपने एक डिबेट में बीजेपी नेता अमित मालवीय की ओर से कही गई बात लिखी है। मालवीय इसमें कहते हैं कि कांग्रेस अपने नेताओं की शहादत की याद दिलाती है, लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि ये हत्याएं उनके राजनीतिक निर्णयों के कारण हुई।
प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा है कि भाजपा इंदिरा और राजीव की हत्याओं को उचित ठहरा रही है...। उनकी विरासत और इतिहास यही है। वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे का जश्न मनाते हैं, क्योंकि हिंसा विरोधी विचार को समाप्त करने का यह सबसे अच्छा उपाय है। सिंहदेव के पोस्ट में और भी बातें हैं।
कांग्रेस शासनकाल में सिंहदेव को लेकर बार-बार चर्चा होती थी कि वे भाजपा में जा सकते हैं। पर उन्होंने हर बार कहा कि विचारधारा उनसे मेल नहीं खाती। अब दिल्ली के भाजपा नेता के बयान पर टिप्पणी कर इस बात को उन्होंने पुख्ता किया है। उनकी पोस्ट अंग्रेजी में है। कोई बात नहीं, बीजेपी की ओर से कोई प्रतिक्रिया उनके बयान पर नहीं आई है। मगर, दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान को तो गौर करना चाहिए। वे प्रदेश में कांग्रेस की कमान संभाल सकते हैं, एआईसीसी में बड़ी जगह पाने के काबिल हैं। बिखरी कांग्रेस को समेटकर फिर खड़ा कर सकते हैं।
बच्चों के सपनों से खिलवाड़
स्कूल खुले नहीं कि बच्चों से बेगारी कराने की तस्वीरें आने लगी है। जीपीएम जिले के प्राइमरी स्कूल बंधी के प्रधान पाठक को शायद नहीं मालूम कि मिट्टी खोदने, घास उखाडऩे जैसा काम बच्चों से लेकर वे बाल श्रम कानून का ही उल्लंघन नहीं कर रहे हैं बल्कि पढ़-लिखकर कुछ बन जाने के, बच्चों के सपने को भी गड्ढे में पाट रहे हैं। इन कामों के लिए शालाओं में आकस्मिक मद होता है। प्राथमिक शालाओं में शाला विकास समिति भी होती है। पंचायत से मदद मिल सकती है। बच्चों को पढने के लिए मां-बाप स्कूल भेजते हैं। पर सरकारी स्कूलों में तो लगता है कि जैसी मजदूरी मां-बाप बाहर कर रहे हैं, बच्चों को स्कूल में भी उसी की ट्रेनिंग दी जा रही है। क्या इन बच्चों के माता-पिता मध्यान्ह भोजन की आस में चुपचाप इसे सह रहे हैं?