राजपथ - जनपथ
शादी और बर्बादी
शादी समारोह में कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन के मामले में अंबिकापुर में अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई हुई है। वर-वधु, और शादी-भवन मालिक पर जिला प्रशासन ने 9 लाख से अधिक का जुर्माना ठोका है। इस कार्रवाई की राजनीतिक हलकों में जमकर चर्चा है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि वर, वधु, और शादी भवन मालिक, तीनों ही पक्ष सरकार के एक ताकतवर मंत्री के करीबी माने जाते हैं। चर्चा है कि प्रशासन ने कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू की, तो मंत्री बंगले से कार्रवाई रोकने के लिए फोन आ गया। मगर प्रशासन ने एक नहीं सुनी, और तीनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दिया। ये अलग बात है कि एफआईआर दर्ज कराने के लिए प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। नायब तहसीलदार को एफआईआर दर्ज कराने के लिए थाने में घंटों बैठना पड़ा। थाने का स्टाफ भी इधर-उधर हो गया था। बाद में नायब तहसीलदार ने कलेक्टर को फोन लगाया, और फिर कलेक्टर की दखल के बाद मामला दर्ज हो पाया।
टीकाकरण बंद, खाली-पीली दौड़ लग रही
राजधानी में यह जरूर हो रहा है कि आधे से अधिक केन्द्रों में टीकाकरण का काम फिर शुरू हुआ पर यह एक दो दिन ही चलने की उम्मीद है। एक ही दिन में 38 हजार से अधिक टीके लग गये जबकि कुल डोज 2 लाख ही आये हैं। इनमें से कुछ की दूसरे जिलों को भी आपूर्ति की जा चुकी है। अब क्या होगा? टीकाकरण अधिकारी बताते हैं कि नई खेप आने के बारे में उन्हें कोई सूचना नहीं। कई जिलों से कल रायपुर गाडिय़ां बुला ली गईं, पर टीके नहीं मिले। बिलासपुर जिले से पहुंची स्वास्थ्य विभाग की गाड़ी को खाली लौटाना पड़ा। वैक्सीन की जगह उसमें सिरिंज ही भेज दी गई। स्वास्थ्य अमले को इतनी लम्बी दौड़ लगानी पड़ी और टीके मिले भी नहीं। पर इससे ज्यादा परेशान तो वे लोग हैं जिन्होंने टीका लगवाने के लिये रजिस्ट्रेशन करा रखा है। खासकर जिनके दूसरे डोज की बारी आ गई है। इन्हें फोन पर एसएमएस अलर्ट आ रहा है कि अपने नजदीकी वैक्सीनेशन केन्द्र में पहुंचकर टीका लगवा लें, पर केन्द्र पहुंचने पर वहां ताला लगा मिल रहा है। अब टीकाकरण की जागरूकता के लिये मोबाइल फोन, टीवी आदि पर दिये जाने वाले संदेश का मजमून बदल देना चाहिये। इसमें कहा जाता है कि अपनी बारी आ गई हो तो वैक्सीनेशन हो रहा है या नहीं पता लगाते रहें।
नाक और कान दांव पर
किसी मनौती को पूरा करने के लिये लोग दाढ़ी, बाल बढ़ा लेते हैं। कई बार लोग मूंछों को भी दांव पर लगा देते हैं। जैसे 2003 के विधानसभा चुनाव में स्व. दिलीप सिंह जूदेव ने कांग्रेस की हार के लिये लगाया था। अब बस्तर के पूर्व सांसद दिनेश कश्यप ने अपनी कान दांव पर लगा दी है। संगठन की बैठक में उन्होंने दावा किया कि प्रदेश में अगली बार कांग्रेस की सरकार नहीं आयेगी। यदि आ गई तो अपने कान कटवा लेंगे। सांसद दीपक बैज ने पलटकर जो जवाब दिया वह शालीन है या नहीं हम नहीं कह सकते, पर आजकल तो इस तरह के राजनीतिक बयान हर तरफ सुनाई दे रहे हैं। बैज का कहना था- न दिनेश सांसद रहे, न उनके भाई केदार विधायक। नाक तो कटवा ही चुके। 2023 के चुनाव में कान भी कटवा लें, हम स्वागत करेंगे।
सिंहदेव के मौसा वीरभद्र सिंह..
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह को प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने श्रद्धांजलि दी है। सोशल मीडिया पर लिखे पोस्ट में उन्होंने बताया है कि मौसा जी बीते 65 वर्षों से उनके अभिभावक, सलाहकार व मार्गदर्शक रहे। उनके साथ बचपन की अनेक स्मृतियां जुड़ी हैं। सिंहदेव ने उनकी खिलखिलाहट को अंतर्मन तक छू जाने वाली बताया है। सिंहदेव अपने परिवार के कुछ सदस्यों के साथ उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने भी गये हैं।
थानेदारों पर शामत आई है...
प्रदेश में कई जिलों के एसपी बदले तो कई थानेदारों की सांस फूल रही है। दुर्ग, बिलासपुर, सरगुजा और रायगढ़ में कई थाना और चौकी प्रभारी लाइन हाजिर किए जा चुके हैं। कई लोगों को थाने से लाइन पर लगा दिया गया और कई को लाइन से थाना भेज दिया गया। इससे यह ध्वनित होता है कि जिले की कमान जो पहले संभाल रहते हैं उन साहबों ने अपने काम में चुस्ती नहीं बरती। पर ऐसा है नहीं। कप्तान साहब जब नये जिले में पहुंच रहे हैं तो उनका एक खौफ बनना चाहिए। 1-2 पर कार्रवाई होती है तो 10-20 अलर्ट जाते हैं। जिनको भुगतना पड़ रहा है, वे उतने ही काबिल हैं, जितने बाकी। शिकार हो गये, यह साहब के मूड की बात है। बस सहानुभूति रखी जा सकती है।
इतना झूठ बरसा पीसी में...
खाद की कमी को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह द्वारा बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में अचानक कार्यक्रम स्थल की छत से पानी ठीक उसी जगह पर टपकने लगा जहां वे मौजूद थे। उन्हें तुरंत छतरी लाकर बारिश के पानी से बचाया गया। इस पर चुटकी लेते हुए प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में इतना झूठ बरसा कि टपकने लगी।
समस्याएं आरोप-प्रत्यारोप के बावजूद हल नहीं होती लेकिन मुसीबतों-दिक्कतों से घिरी जनता का भी इस तरह की बयानबाजी से मनोरंजन जरूर हो जाता है।
भूख मिटाने के लिये घर तोड़ता हाथी..
जंगल का विनाश होगा तो भूख के लिए घर को ही तोड़ेगा। आदिवासी एक तरफ खनन से विस्थापित हो रहा है और दूसरी और हाथियों के साथ संघर्ष में मर रहा है। खनन का दुष्परिणाम अंतत: दोनों को भुगतना पड़ रहा है। अडानी सब पर भारी। (आलोक शुक्ला/ट्विटर)
मन हल्का करने के लिये..
छत्तीसगढ़ के जिन सांसदों ने आस लगा रखी थी उन्हें मायूसी घेर रही हो तो सुशील मोदी, रविशंकर और डॉ. हर्षवर्धन का स्मरण कर लेना चाहिये। ज्यादा हो तो इनसे फोन लगाकर बात कर सकते हैं। मन हल्का होगा। मगर बुरा हो कांग्रेस नेताओं और उनके समर्थकों का। हम उनकी बात से बिल्कुल सहमत नहीं हैं। वे सोशल मीडिया पर जाने क्या-क्या लिख रहे हैं। जैसे-
-गड़बड़ी इंजन में है और डिब्बे बदले जा रहे हैं।
-हर्षवर्धन जी डॉर्क चॉकलेट खायें, डिप्रेशन दूर होगा।
-कोई फायदा नहीं होने वाला, सिर्फ बंदर बदले जा रहे हैं, मदारी वही है।
-क्या पत्ते फेंटे, सभी जोकर हो गये।
-लोग आते हैं, जाते हैं, सिर्फ स्मृति रह जाती है।
छत्तीसगढ़ पुलिस के बाबा
सियासत में जोड़तोड़ के गुर सिखाने का दावा करने वाले तांत्रिकों और बाबाओं की छत्तीसगढ़ पुलिस में भी गहरी पैठ है। एसीबी के निशाने पर आए सीनियर आईपीएस जी पी सिंह के कथित तांत्रिकों से लगातार संपर्क में रहने से जुड़े दस्तावेज हाथ आने के बाद सरकार अपनी एजेंसियों के जरिये कई दूसरे बाबाओं की भी खोज कर रही है।
नांदगांव से सटे एक ग्रामीण इलाके में एक बाबा के पास छत्तीसगढ़ पुलिस के अफसरों का अक्सर आना-जाना रहा है। पुलिस हेडक्वार्टर में पदस्थ राज्य पुलिस सेवा के एक अधिकारी उच्च अफसरों से बाबा से भेंट कराने की एक अहम कड़ी हैं। बताते हैं कि प्रदेश पुलिस के एक प्रमुख अधिकारी के करीब 6 माह पूर्व बाबा से मुलाकात की उड़ती खबर स्थानीय पुलिस अधिकारियों के पास पहुंची। बताते हैं कि अफसर को बाबा ने मौजूदा राज्य सरकार के साथ बनते-बिगड़ते रिश्ते पर कई तरह के उपाय करने की नसीहत दी है।
बताया जाता है कि राज्य में तैनात आईपीएस अफसरों की लगातार यहां आवाजाही रही है। अफसरों से मेल-मुलाकात के चर्चाओं को बाबा की जुबानी स्वीकृति से बल भी मिला है। राजनांदगांव के शहरी सीमा से सटे इस गांव में राजनेता भी आमद देते हैं। एसीबी ऐसे बाबाओं की पृष्ठभूमि को खंगालने के लिए आगे बढ़ रही है।
मोदी मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़
लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में पिछले कई चुनावों से भाजपा को बम्पर जीत मिलती रही है। पिछली बार 11 में से 10 सीटें तब मिल गई थीं, जब कुछ माह पहले ही विधानसभा चुनाव में उसकी बुरी तरह हार हुई थी। इस भारी जीत के बावजूद मंत्रिमंडल में वह भागीदारी नहीं मिली, जिसकी अपेक्षा की जाती है। इस समय केवल एक सरगुजा से राज्य मंत्री के रूप में रेणुका सिंह केन्द्र में हैं। मंत्रिमंडल विस्तार में नये चेहरों को मौका मिलने की बात की जा रही थी। बिलासपुर से सांसद अरुण साव भी कल दिन भर दिल्ली से फोन आने की प्रतीक्षा करते रहे लेकिन नहीं आया। उन्होंने अपना दिल्ली जाना रद्द कर दिया और बिलासपुर में ही घूम रहे हैं। सरोज पांडेय का भी नाम चला है, पता चला है वे दिल्ली पहुंच गई हैं। संतोष पांडेय, सुनील सोनी, विजय बघेल में से किसी को मौका मिल सकता है, इस बात के भी कयास लगाये जा रहे थे। संगठन की ओर से ये नाम भेजे भी गये थे। रेणुका सिंह सरगुजा से आती हैं और वहीं की राजनीति करती हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में अपना कद बढ़ाने की उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं दिखती। जानकार कह रहे हैं कि मंत्रिमंडल में किसी को नहीं लिया जाना अकेले दिल्ली का फैसला नहीं है। थोड़ी सलाह छत्तीसगढ़ के स्थापित नेताओं की ओर से भी दी गई है।
ज्यादा लिखा, थोड़ा समझना
वैसे वन मंत्री मो. अकबर की यह चि_ी सालभर पुरानी है, जो पहले भी वायरल हो चुकी है। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को उन्होंने लिखा था कि मोरगा साउथ, मोरगा टू, मदनपुर नार्थ, स्यांग और फतेहपुर ईस्ट में प्रस्तावित कोयला खदानों की नीलामी स्थगित करें। उन्होंने घने जंगल तथा मांड और हसदेव नदी के जल ग्रहण क्षेत्र के नष्ट होने की चिंता जताई थी। साथ ही बताया था कि 1995 वर्ग किलोमीटर में हाथी रिजर्व एरिया बनाने का भी प्रस्ताव है जो इन प्रस्तावित खदानों के इलाके में ही होगा। अब उनका विभाग 450 वर्ग किमी का सीमित हाथी रिजर्व परियोजना का प्रस्ताव बना रहा है। अब मंत्रीजी को जावड़ेकर को फिर से एक पत्र लिखना पड़ सकता है पिछली चि_ी में हमने ज्यादा लिख दिया था, उसे कम मानकर पढ़ें। हाथियों के लिये 450 वर्ग किलोमीटर ही काफी है। कोयला ब्लॉक देना चाहते हैं या नहीं आप देख लें।
जीएसटी से ज्यादा पेट्रोल-शराब की कमाई
पेट्रोल की कीमत रायपुर सहित प्रदेश के कई शहरों में 100 रुपये से ऊपर चली गई है। कांग्रेस ने इसके विरोध में सडक़ों पर प्रदर्शन किया, थालियां बजाई। पर दरअसल कीमत बढऩे से केन्द्र को ही नहीं राज्यों का भी राजस्व संग्रह बढ़ता जा रहा है। शराब की कीमत के साथ भी ऐसा ही है। एक आंकड़ा सामने आया है जिसमें बताया गया है कि छत्तीसगढ़ में जनवरी से मई माह के बीच जीएसटी से 2829 करोड़ रुपये मिले जबकि पेट्रोल-डीजल और शराब से मिलने वाला राजस्व 3796 करोड़ रुपये रहा। जीएसटी से करीब एक हजार करोड़ रुपये अधिक। शराब से हुई आमदनी 1690 करोड़ है। यह भी सच है कि यदि राज्य सरकार पेट्रोल डीजल पर टैक्स कुछ कम भी कर दे तो इनकी कीमत में तीन चार रुपये से ज्यादा कमी नहीं आने वाली है। टैक्स का अधिकांश बोझ केन्द्र की ओर से डाला जाता है।
लापता की तलाश
कोरोना संक्रमण की वजह से कई सांसद-विधायकों ने अपने क्षेत्र का दौरा करना बंद कर दिया है। ये कुछ जरूरी मौकों पर ही क्षेत्र जाते हैं। ऐसे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ इलाके में विरोधी सक्रिय हैं, और सोशल मीडिया में अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। सरगुजा के प्रतापपुर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह भी काफी समय से क्षेत्र नहीं गए हैं।
सरगुजा जिले में कोरोना काफी फैला हुआ है। यही वजह है कि डॉ. प्रेमसाय सिंह क्षेत्र नहीं जा पा रहे हैं। यद्यपि वे स्थानीय लोगों के संपर्क में रहते हैं, और जन समस्या का निराकरण भी कर रहे हैं। बावजूद इसके विरोधियों ने सोशल मीडिया में उनकी फोटो के साथ मैसेज पोस्ट किया, जिसमें उन्हें लापता बताया गया। यह भी कहा गया कि प्रेमसाय सिंह करीब 2 साल से अपने क्षेत्र से लापता हैं।
क्षेत्र की जनता ने काफी खोजबीन की, लेकिन अभी तक नहीं मिले। अंतिम बार सफेद धोती, कुर्ता, और हाफ जैकेट में कुशवाहा वेल्डिंग वाड्रफ नगर के सामने देखे गए थे। पता बताने वाले या मिलाने वाले को क्षेत्र की जनता द्वारा उचित इनाम दिया जाएगा। कुछ इसी तरह के मैसेज कांकेर सांसद मोहन मंडावी, और जांजगीर-चांपा के सांसद गुहाराम अजगले के लिए भी पोस्ट किए गए।
गुहाराम लंबे समय से दिल्ली में हैं। वैसे भी जांजगीर-चांपा जिला प्रदेश के सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित है। कोरोना संक्रमण के बीच लोगों से मिलना-जुलना जोखिम भरा है। देश के कई जनप्रतिनिधियों की मौत भी हो चुकी है। छत्तीसगढ़ में भी अधिकांश विधायक-सांसद कोरोना के चपेट में आ चुके हैं। ऐसे में अगर ये जनप्रतिनिधि आम लोगों से मेल मुलाकात से परहेज कर रहे हैं, तो यह गलत भी नहीं है।
बैस और संभावनाएँ
त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस का झारखण्ड तबादले से समर्थकों में खुशी का माहौल है। बैस के त्रिपुरा जाने के बाद, जो नेता संपर्क में नहीं थे वो भी अब बधाई देने के लिए उनके निवास जुटने लगे हैं। पहले चर्चा थी कि उन्हें बिहार भेजा जा सकता है, इससे उनके करीबी उत्साहित नहीं थे। मगर झारखण्ड का राज्यपाल बनाए जाने से समर्थक गदगद हैं। इसकी एक वजह ये भी है कि झारखंड, छत्तीसगढ़ की तरह खनिज-संपदा से भरपूर है, और वहां कारोबार की काफी संभावनाएं भी हैं। हालांकि झारखंड में झामुमो गठबंधन की सरकार है। और यह कहना कठिन है कि संवैधानिक पद पर आसीन बैस अपने से जुड़े लोगों की कुछ मदद कर पाएंगे। फिर भी बैस के नजदीक आने से समर्थक खुश हैं।
कोरोना से राजधानी में कितनी मौतें?
देशभर में कोरोनावायरस से कितनी मौतें हुई है इस बारे में अलग-अलग दावे किए जाते हैं। राज्य सरकारों पर आरोप है कि वह मौतों के आंकड़ों को छिपा रही है। ऐसा देश-विदेश की कई सूचना एकत्र करने वाली एजेंसियां भी कह रही है। बीबीसी न्यूज़ सर्विस की रिपोर्ट विश्वसनीय मानी जाती है। हाल ही में की गई पड़ताल के बाद न्यूज़ सर्विस ने दावा किया है कि हजारों ऐसी मौतें हुई हैं जिनकी गिनती नहीं की गई। इसके लिए 8 राज्यों के जिन 12 शहरों से आंकड़े उन्होंने जुटाये हैं, एक शहर रायपुर भी है। रायपुर में जब सरकारी आंकड़ा 516 बताया गया तब बीबीसी की ओर से किए गए सर्वे में कहा गया कि 340 और मौतें हुई हैं जिनका रिकॉर्ड कहीं दर्ज नहीं है। यह केवल रायपुर की बात है, पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा अंतर हो सकता है। बीबीसी के मुताबिक कोरोना की मौत कई राज्यों ने सिर्फ उन्हीं मामलों में दर्ज की जिन्हें कोई दूसरी बीमारी नहीं थी। जिन्हें कोरोना के अलावा दूसरी बीमारी थी, दूसरी बीमारी के खाते में दर्ज कर दी गई। आमतौर पर जितनी मौतें दर्ज की गई है, कहीं कहीं तो 4 गुना ज्यादा मौतें हैं। यूपी और बिहार में मौतों के आंकड़े कम बताने की खबरें तो पहले ही आ चुकी है, अब छत्तीसगढ़ भी इसी संदेह से गुजर रहा है। कोरोना से होने वाली मौतों का सर्टिफिकेट नहीं दिया जाना तो एक अलग समस्या है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि मौतें छुपाई गई तो तीसरी लहर के नियंत्रण की रणनीति कारगर नहीं हो पाएगी।
वेतन चाहिये तो खिलाओ बकरा-भात
स्कूल शिक्षा सबसे भ्रष्ट समझे जाने वाले विभागों में से एक है। यहां काम करने वाले स्टाफ की भी संख्या बाकी सभी विभागों से ज्यादा है, क्योंकि गांव गांव में स्कूल हैं। मध्यान्ह भोजन है, फर्नीचर, स्कूल ड्रेस की खरीदी है लैब है, खेल है, ट्रेनिंग है। और भी रास्ते हैं जैसे, एक अधिकारी कोई न कोई कारण बताकर किसी भी शिक्षक को नोटिस जारी कर देगा फिर उस नोटिस पर क्या कार्रवाई की जाएगी यह टेबल के नीचे से मिलने वाली रकम से तय होती है। मगर बलौदा बाजार जिले के बया गांव की जो घटना सामने आई है उसने तो हदें पार कर दी। एक नवविवाहिता शिक्षिका का वेतन बीते 8 माह से रोक रखा गया है। वजह यह सामने आई कि शादी के बाद उसने अपना सरनेम नहीं बदला। इस रुकावट को उसने प्रक्रिया पूरी करके दूर कर ली। फिर भी वेतन जारी नहीं किया जा रहा है। महिला ने यूनियन के नेताओं से फरियाद लगाई है और बताया है कि वेतन मांगने पर ऑफिस का बाबू उसे जान से मारने की धमकी देता है शराब पीकर बकरा-भात खिलाने की मांग करता है। प्राचार्य उनका वेतन बिल भी कोषालय में जमा नहीं कर रहे हैं। शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने इस मामले एक्शन लिया है और सोशल मीडिया के जरिए सीधे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ध्यान में बात लाई है। देखें शिक्षिका को राहत मिल पाती है।
यह टकराव की शुरुआत तो नहीं?
सरगुजा से प्रतिनिधित्व करने वाले स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने मुख्यमंत्री को लेमरू एलीफेंट प्रोजेक्ट को लेकर पत्र लिखा है। उन्होंने इस बात पर नाराजगी जताई है कि परियोजना क्षेत्र का दायरा घटाने को लेकर उनका नाम घसीटा जा रहा है। सिंहदेव कह रहे हैं कि पूर्व के प्रस्ताव पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं, जिसमें लेमरू एलिफेंट रिजर्व को 1995 वर्ग किलोमीटर रखा गया है। फिर भी वन विभाग ने अपने पत्राचार में लिखा है कि मैंने क्षेत्र कम करने की कोई सिफारिश की है। सिंहदेव के अलावा वन विभाग ने अपने पत्राचार में सरगुजा, कोरिया, कोरबा, जशपुर के कई विधायकों के भी नाम हैं।
यदि सिंहदेव की यह बात सच है तो यह हैरान करता है कि किसी मंत्री का नाम उनसे पूछे बिना कोई अधिकारी कैसे ले रहा है। अब तो बाकी विधायकों से भी पूछा गया होगा, इस पर संदेह हो रहा है। हालांकि उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। मामला सरगुजा का है इसलिए सिंहदेव की राय मायने रखती है। लेकिन लोग यह भी कयास अब लगा रहे हैं कि यह सत्ता संघर्ष के लिये टकराव की नई शुरुआत हो सकती है। और कह रहे हैं, इसके जिम्मेदार होंगे अडानी।
ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने का नया ठिकाना
कोरोना काल में जब कई काम धंधे बंद हो गए हैं, मोटर ड्राइविंग ट्रेनिंग सेंटर चलाने वालों के दिन बीते एक तारीख से फिर रहे हैं। केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने अब पॉलिसी बनाई है कि ड्राइविंग लाइसेंस लेने के लिए आरटीओ के मैदान में जाकर टेस्ट नहीं देना होगा। किसी मान्यता प्राप्त ट्रेनिंग सेंटर की परीक्षा में आप पास हो गए तो उसी सर्टिफिकेट से आपका लाइसेंस जारी कर दिया जायेगा। हमारे देश में सडक़ दुर्घटनाओं का आंकड़ा भयावह है। इसकी एक बड़ी वजह है बिना लाइसेंस के वाहन चलाना या फिर लाइसेंस फर्जी तरीके से हासिल कर लेना। स्वास्थ्य परीक्षण के बिना ही यहां फिटनेस सर्टिफिकेट मिल जाते हैं। रुपये ढीलने पर बिना किसी दिक्कत के लाइसेंस घर पहुंच जाता है। पर क्या नई पॉलिसी से परिवहन विभाग में व्याप्त गोरखधंधे पर रोक लग सकेगी?
ट्रेनिंग सेंटर वास्तव में कितनी ट्रेनिंग देंगे और कितने लोग ऊपर के खर्चे करके बिना प्रशिक्षण लिए ही सर्टिफिकेट हासिल कर लेंगे, यह देखना पड़ेगा। अभी तो बस ऐसा लग रहा है कि लेन-देन का व्यवहार एक जगह से बदल कर दूसरी जगह पर शिफ्ट हो जाएगा।
छत्तीसगढ़ ओलम्पिक में शून्य
हर बार की तरह ओलम्पिक खेलों में भाग लेने वाले खिलाडिय़ों की सबसे ज्यादा संख्या हरियाणा से है। पर आकार की दृष्टि से केरल और पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की भागीदारी भी शानदार है। जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश जैसे सीमा के राज्यों और पूर्वोत्तर के मेघालय, त्रिपुरा से किसी खिलाड़ी का नाम इस सूची में नहीं है। इन राज्यों की हालातों के कारण इसका कारण कुछ हद तक समझा जा सकता है, पर छत्तीसगढ़ से भी कोई खिलाड़ी नहीं है, बिहार की तरह। कभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के इन खेलों में उपलब्धि मिली भी तो सरकारी, सार्वजनिक उपक्रमों के खिलाडिय़ों की बदौलत। ओलम्पिक या अंतर्राष्ट्रीय खेलों में हिस्सेदारी से राज्य की पहचान बनती है। पर ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ ने कभी ओलम्पिक स्तर के खिलाडिय़ों को तैयार करने के बारे में सोचा नहीं। अभी तो हालत यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य से हैं बताने पर, कहा जाता है- वही नक्सलियों का इलाका?
निर्विवाद बैस का विवाद में घिर जाना
कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल कई राज्यपालों पर आरोप लगाते रहे हैं कि वे भाजपा या आरएसएस कार्यकर्ता की तरह काम कर रहे हैं। पर कभी छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस के साथ कोई ऐसा विवाद अब तक नहीं जुड़ा। पहले भी जब भाजपा नेता थे वे ज्यादातर विवादित मामलों में चुप रहते थे। विवाद पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सोशल मीडिया पर की गई एक पोस्ट से खड़ा हुआ। उन्होंने कल चाय पर बैस से मुलाकात की। इसकी जानकारी देते हुए ट्विटर पर उन्होंने लिखा- ‘छत्तीसगढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता’- रमेश बैस। तुरंत इस ओर कांग्रेस के एक कार्यकर्ता मणि वैष्णव का इस ओर ध्यान गया। उन्होंने प्रतिक्रिया में लिख डाला- भाजपा संविधान को अपनी बपौती समझती है, कम से भाजपा नेता लिखने से पहले पूर्व तो लिख लेते? गलती तो थी, तुरंत पोस्ट हटाकर संशोधित पोस्ट डाली गई।
जब बच्चों को वैक्सीन लगाना होगा..
बड़ों को कोविड वैक्सीन लगाने की खूबी बताने के लिये जागरूकता
का अभियान छेड़ा गया है। पर बच्चों को क्या भाषण पिलाया जा सकेगा?
ऑनलाइन मीटिंग की दिक्कत
भाजपा में वर्चुअल प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा है। पार्टी के सीनियर नेताओं का कृषि सुधार, और उपलब्धियां विषय पर उद्बोधन भी हो रहा है, लेकिन जिलों में पार्टी नेता कार्यक्रम में रूचि नहीं दिखा रहे हैं। दो दिन पहले सरगुजा में काफी मशक्कत करने के बाद वर्चुअल बैठक में सिर्फ 57 लोग ही जुड़े थे। बैठक को पूर्व सीएम रमन सिंह ने संबोधित किया। रमन सिंह के भाषण के दौरान एक मौका ऐसा भी आया, जब पार्टी के एक प्रदेश पदाधिकारी ने गंदी-गंदी गालियां देना शुरू कर दिया।
इससे रमन सिंह, और बाकी नेता सकते में आ गए। कुछ क्षण बाद किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष के हस्तक्षेप के बाद रमन सिंह भाषण पूरा कर पाए। दरअसल, वर्चुअल बैठक में गाली बकने वाला नेता अपनी दुकान में बैठा हुआ था। पार्टी कार्यक्रम में वर्चुअल जुड़ा था, और साथ ही ग्राहकों को भी निपटा रहा था। इस दौरान दुकान में उसकी किसी से बहस हो गई, और वह उस पर गुस्से में फट पड़ा। एकबारगी ऐसा लगा कि वह रमन सिंह को ही गाली बक रहा है। थोड़ी देर बाद सबको वस्तु स्थिति समझ में आई। तब कहीं जाकर कार्यक्रम आगे बढ़ा।
सरगुजा में भाजपा बँटी
सरगुजा भाजपा दो खेमों में बंट गई है। एक खेमा सरगुजा राजघराने के मुखिया, और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के साथ खड़ी दिख रही है, तो दूसरा उनसे हर हाल में भिडऩे के लिए तैयार है। ऐसे ही रिश्वतखोरी के प्रकरण पर आंदोलन करने के मसले पर भाजपा नेता आपस में ही टकरा रहे हैं। हुआ यूं कि सांप काटने से 14 साल के किशोर की मौत हो गई। किशोर के पोस्टमार्टम जल्द करने, और प्रमाण पत्र देने के एवज में डॉक्टर ने मृतक की मां से 50 हजार रुपए रिश्वत मांगी। सर्पदंश से मौत पर मृतक के परिवार को 4 लाख मुआवजा देने का प्रावधान है।
गरीब महिला ने किसी तरह 12 हजार रुपए का इंतजाम किया। कुछ स्थानीय लोगों ने डॉक्टर को महिला से रिश्वत लेते कैमरे में कैद भी कर लिया। बात फैली, तो लोग आक्रोशित हो गए, और भाजपा के कई नेता स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने लगे। मगर भाजपा के भीतर सिंहदेव समर्थक खेमे ने रुचि नहीं दिखाई। बाद में स्थानीय लोगों की शिकायत पर जिला प्रशासन ने जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन पार्टी स्तर पर सिंहदेव के विभाग में भ्रष्टाचार के मसले पर चुप्पी साध लेने से दूसरा खेमा बिफरा हुआ है, और इसकी शिकायत प्रदेश नेतृत्व से भी की गई है।
कांग्रेस में मारपीट, ठगी, अभद्रता के मामले
हर दो-चार दिन में किसी न किसी कांग्रेसी नेता के खिलाफ पुलिस में शिकायत हो रही है। अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव मोहम्मद शाहिद पर नौकरी लगाने के नाम पर पांच लाख रुपये से ज्यादा की ठगी का मामला सामने आया है। खुर्सीपार भिलाई थाने में पीडि़तों ने लिखित शिकायत की है। हालांकि अभी इसकी पुलिस सिर्फ जांच ही कर रही है, एफआईआर भी दर्ज नहीं की गई है।
छत्तीसगढ़ में एक कांग्रेसी नेता पर आदिवासी महिला ने जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर गाली गलौज करने का आरोप लगाया गया है। बिलासपुर में ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष यातायात सिपाही से गाली गलौज करने का मुद्दा अभी तो गरम ही है। कोरबा के दीपका टेंडर फॉर्म नहीं देने पर भी ऐसी घटना हुई। पिछले जनवरी माह में रायपुर के कांग्रेस पार्षद ने आदिवासी युवक को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था, जिसका भी वीडियो वायरल हुआ। कुछ दिन पहले बिलासपुर में एक और मामला हुआ था जब एक दुकान को खाली कराने के लिए कांग्रेस नेताओं ने कानून अपने हाथ में ले लिया। यहीं पर कल एक और घटना हो गई। कांग्रेस नेता हरमेंद्र शुक्ला ने जो ठेकेदारी भी करते हैं उसने दुकानदार के साथ हाथापाई की। दुकानदार के करीब 7 लाख रुपये उधारी में डूब गये हैं। पुलिस ने दोनों पक्षों के खिलाफ मारपीट का अपराध दर्ज किया है। ये तो कुछ घटनाएं हैं जो हाल के दिनों में देखने को मिलीं। कुछ और खबरों को खंगालने से ध्यान में आ जाएगा। इन सभी मामलों में यह दिखाई दे रहा है कि पुलिस में पकड़ है और किसे संरक्षण नहीं मिल रहा है। गुण-दोष के आधार पर नहीं, सिफारिश और सियासी ताकत के आधार पर पुलिस भी कार्रवाई कर रही है और संगठन भी ऐसा कर रहा है। जो भी हो ऐसी घटनाएं संकेत तो अच्छा नहीं दे रही हैं और न केवल पार्टी बल्कि सरकार की भी छवि को धक्का पहुंच रहा है।
मंत्री जय सिंह अग्रवाल का बताया जा रहा एक आडियो घूम रहा है जिसमें उन्हें एक सतनामी अफसर को गलिया देते सुना जा सकता है। इसे लेकर एक छत्तीसगढ़ी संगठन ने सोशल मीडिया पर अभियान छेड़ भी दिया है।
अब छत्तीसगढ़ में पोस्टर पर दिखे तीसरे सीएम
मुख्यमंत्री के रूप में टीएस बाबा के बाद अब सरगुजा के ही मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम की भी तस्वीर प्रचार सामग्री में छप गई है। यह मामला छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक रायपुर का है, जिसके अध्यक्ष बैजनाथ चंद्राकर हैं। पोस्टर छप भी गया और अपेक्स बैंक के सामने वह लग भी गया लेकिन जिस भी अधिकारी ने प्रिंट को देखने तक की जहमत उठाए बगैर इसे ओके कर दिया वह तो साफ बच गए, बेचारे 2 कर्मचारी निलंबित कर दिये गये। कुछ दिन पहले ही जांजगीर में सक्ती के अस्पताल में बांटा गया टीकाकरण कार्ड भी चर्चा में रहा। यह कार्ड भी सैकड़ों लोगों में बंट गया और स्वास्थ्य मंत्री की फोटो के साथ उनका पद माननीय मुख्यमंत्री लिख दिया गया। जांजगीर के मामले में किसी के निलंबित नहीं किया गया है। कार्रवाई जांच के बाद करने की बात की जा रही है। फिलहाल इसके लिए बीएमओ को जिम्मेदार बताया जा रहा है। पोस्टर और कार्ड दोनों सुधार के लिए गए हैं। जिज्ञासा लोगों में यही है की एक ही तरह की गलती अलग-अलग विभागों में कैसे हो गई है, तब जब यह सरकार के ढाई साल पूरा होने का खास मौका है।
सियाराम साहू के दफ्तर का ताला खुलेगा?
हाईकोर्ट के आदेश पर सियाराम साहू को दुबारा पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष पद पर बैठने का मौका मिलना था पर उनके कमरे का ताला ही नहीं खोला जा रहा है। अब वे इस मुद्दे पर अधिकारियों के खिलाफ हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर करने पर विचार कर रहे हैं। उनका तीन साल का कार्यकाल अगस्त तक है। पर जिस अवधि में उन्हें हटाया गया उसका अतिरिक्त लाभ उन्हें मिलेगा या नहीं यह अभी स्पष्ट नहीं है। वैसे साहू छत्तीसगढ़ सरकार की तारीफ भी कर गये हैं। उन्होंने कहा है गोधन न्याय योजना अच्छी है। इससे पिछड़े वर्ग के ग्रामीणों को लाभ मिलेगा।
क्या पता इस तारीफ से ही ताला खुल जाये।
कार्ड में तो दो-दो सीएम छप ही गये
बीते विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस से मुख्यमंत्री पद के तीन दावेदार बताये जाते थे। भाजपा नेता कुछ और नामों को जोडक़र इनकी संख्या 6 तक पहुंचा देते थे। वे ऐसा इसलिये कहा करते थे कि जिस पार्टी में सीएम पद के लिये आम राय नहीं, वह चुनाव कैसे जीत सकती है। खैर सरकार बनी। बघेल सीएम बनाये गये। सिंहदेव के समर्थक उनकी बारी आने का अब भी इंतजार कर रहे हैं। ढाई साल पूरा होने पर एक ही काम हुआ कि मंत्रियों के प्रभार वाले जिले बदल गये। दूसरा संयोग यह रहा कि जांजगीर जिले में कोविड टीके के सर्टिफिकेट में बघेल और सिंहदेव दोनों की फोटो लगाई गई और दोनों का ही पदनाम मुख्यमंत्री लिखकर बांट दिया गया। अब यह गलती जानबूझकर की गई या अनजाने में हुई यह तो पता नहीं चला। हो सकता है किसी अधिकारी को लगा होगा कि क्या पता कार्ड छपते-छपते ही कहीं कोई फेरबदल न हो जाये। उन्होंने रिस्क नहीं लिया और दोनों को खुश करने का तरीका ढूंढा होगा।
एसपी यानि सरपंच पति का रुतबा
बलरामपुर और कोरबा में महिला जनप्रतिनिधियों के पतियों का रुतबा कुछ दिन पहले दिखाई दे चुका है। अब एक और मामला जांजगीर से सामने आया है। जिले के मुलमुला थाने में बीते दिनों योग प्रशिक्षण का उद्घाटन पुलिस महानिरीक्षक रतनलाल डांगी ने किया। बतौर विशिष्ट अतिथि गांव की सरपंच यशोदा महिलांगे को भी बुलाया गया था। पर वह नहीं पहुंची। उनकी जगह पर फीता काटने सरपंच पति छत्रधारी महिलांगे के पहुंच गये। स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50त्न सीटें आरक्षित हैं सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें आगे बढऩे का मौका मिले लेकिन हाल के दिनों का यह तीसरा मामला है जब उनकी जगह पर उनके पति हावी होते दिखे। हालांकि पहले के दोनों मामलों में घटनाएं अपराधिक थी और यह महिला सरपंच की जगह पर अतिथि बनने का मामला था। जो भी हो कार्यक्रम में दो एसपी उपस्थित थे, एक सुपरिंटेंडेंट ऑफ़ पुलिस और दूसरे सरपंच पति।
टीकों की कमी के बीच जागरूकता मुहिम
जिन 5- 6 प्रदेशों में कोरोना पर काबू पाने में दिक्कत जा रही है उनमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है। यह जरूर है कि इसका प्रकोप घटा है, पर अब भी 5787 सक्रिय मरीज हैं और हर दिन कहीं ना कहीं मौतें भी हो रही हैं। अभी तो बीजापुर और सरगुजा जैसे इलाकों में भी मामले बढ़ रहे हैं। केन्द्र की एक टीम इस स्थिति को समझने के लिये आने वाली भी है। बीते 4 दिनों तक टीकों की कमी के कारण वैक्सीनेशन की रफ्तार मंद पड़ गई थी। पर अभी दो लाख के करीब और टीके के आने के बाद कुछ दिनों तक अभियान चलाया जा सकता है। रायपुर में सभी समाज के प्रमुखों की ओर से जहां एक जागरूकता रैली निकाली जा रही है। जनप्रतिनिधि अलग से टीकाकरण बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। अधिकारी भी बैठक ले रहे हैं, दौरे कर रहे हैं। यूनिसेफ का भी कुछ जिलों में कार्यक्रम चल रहा है। पर सबसे ज्यादा जरूरी है टीकों की पर्याप्त उपलब्धता। केन्द्र द्वारा टीकाकरण अपने हाथ में लिये जाने पर इसे राज्य सरकार की विफलता और केन्द्र सरकार की उपलब्धि के तौर पर देखा गया था, पर अब भी लोग टीकाकरण केन्द्रों से भटककर लौट रहे हैं।
अच्छे काम का नतीजा
प्रदेश में आईपीएस अफसरों की तबादला लिस्ट में एक संयोग ऐसा जुड़ा है कि आईपीएस प्रशांत अग्रवाल संभवत: पुलिस महकमे के इकलौते अफसर हैं, जो कि पूर्व, और वर्तमान सीएम के निर्वाचन जिले में पुलिसिंग का मौका मिला है। प्रशांत पिछली सरकार में नांदगांव में पदस्थ थे। नांदगांव रमन सिंह का निर्वाचन क्षेत्र है, और वहां नक्सल मोर्चे में काफी काम किया था। प्रदेश के एक बड़े बिजनेस घराने से ताल्लुक रखने वाले प्रशांत की बिलासपुर से दुर्ग पोस्टिंग हुई है, जो कि सीएम के साथ होम मिनिस्टर का भी गृह जिला है।
प्रशांत अग्रवाल से परे भोजराम पटेल जैसे अफसर कोरबा भेजा गया है। पटेल ने गरियाबंद में बेहतर काम किया है। वे जिले में मादक पदार्थों, और कीमती पत्थरों की तस्करी रोकने में काफी हद तक सफल रहे। इसी तरह महासमुंद में प्रफुल्ल ठाकुर ने सराहनीय काम किया है, और यही वजह है कि उन्हें धमतरी एसपी बनाया गया। इसी तरह दुर्ग में करीब दो साल तक रहने के बाद प्रशांत ठाकुर को जांजगीर-चांपा एसपी बनाया गया है। जांजगीर-चांपा, दुर्ग की अपेक्षा नया जिला जरूर है, लेकिन वहां बेहतर पुलिसिंग की जरूरत महसूस की जा रही है। प्रशांत ठाकुर की पोस्टिंग की एक प्रमुख वजह यह भी है।
अच्छे दिन का इंतजार
छत्तीसगढ़ कैडर के 2006 बैच के आईपीएस मयंक श्रीवास्तव, और आरएन दास अपने दूसरे राज्यों में बैचमेट की तुलना में अच्छी पोस्टिंग नहीं पा सके हैं। मयंक, झीरम कांड के दौरान बस्तर एसपी थे। वे निलंबित भी हुए। पिछली सरकार ने उन्हें दुर्ग, और फिर बिलासपुर एसपी बनाया। वे कोरबा एसपी रहे। मगर सरकार बदलते ही उनके सितारे गर्दिश में चले गए, और अहम पोस्टिंग से वंचित हैं। इसी तरह राजेन्द्र नारायण दास को पिछली सरकार में अच्छा महत्व मिला। उनके कांकेर एसपी रहते चर्चित अंतागढ़ कांड हुआ था जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार ने नाम वापस ले लिया था।
कई और निर्दलीय उम्मीदवारों ने भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में नाम वापस लिया था। इस पूरे मामले पर पुलिस अफसरों की भूमिका पर भी सवाल खड़े हुए थे। सरकार बदलने के बाद दास एक तरह से लूप लाइन में हैं। जबकि उनके बैच के दो अफसर महाराष्ट्र में प्रभारी आईजी से लेकर नक्सल डीआईजी जैसे अहम पदों पर बखूबी जिम्मेदारी के साथ काम कर रहे हैं। महाराष्ट्र के अमरावती में मयंक और दास के बैचमेट चंद्र किशोर मीणा प्रभारी आईजी के रूप में 5 जिलों को सम्हाल रहे हैं। यही नहीं, उनके एक अन्य बैचमेट संदीप पाटिल नागपुर में पदस्थ होकर गढ़चिरौली डीआईजी जैसा चुनौतीपूर्ण काम सम्हाल रहे हैं। फिलहाल मयंक, और दास को अच्छे दिन का इंतजार है।
विस्फोट की धमक दूर तक जाएगी
छत्तीसगढ़ में आईपीएस जीपी सिंह पर एसीबी के छापे की खबर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर रही है। प्रदेश के सियासी, प्रशासनिक गलियारों से लेकर हर वर्ग की दिलचस्पी इस छापे से निकलने वाली जानकारी पर टिकी हुई है। अभी तक इस कार्रवाई के बारे में कोई आधिकारिक ब्यौरा तो सामने नहीं आया है, लेकिन मीडिया और समाचार पत्रों के जरिए अनुपातहीन संपत्ति मिलने, मनी लॉड्रिंग और खदानों में निवेश की जानकारी की खबरें सामने आ रही है। हालांकि किसी भी छापे में इस तरह के प्रमाण मिलना स्वाभाविक माना जाता है, लेकिन इस छापे में लोगों की दिलचस्पी इन बातों से परे कुछ और है। क्योंकि यह छापा किसी व्यापारी या उद्योगपति के ठिकानों पर तो पड़ा नहीं है, बल्कि सूबे के एक ताकतवर माने जाने वाले आईपीएस के ठिकानों पर कार्रवाई हुई है।
ऐसे में आम लोगों की धारणा है कि आईपीएस पर यह कार्रवाई किसी विशेष प्रयोजन के तहत की गई है। अनुपातहीन संपत्ति के कारण कार्रवाई होती तो अब तक कई और अफसर नप गए होते। एंटी करप्शन ब्यूरो में ही 100 के आसपास आईएएस और आईपीएस सहित अन्य अफसरों के खिलाफ अनुपातहीन संपत्ति के मामले दर्ज हैं। विधानसभा के तकरीबन हर सत्र में इस तरह के सवाल उठते रहते हैं और सरकार की तरफ से लिखित जवाब आता है। ऐसे में आम लोगों की कुछ और जानकारी सामने की अपेक्षा वाजिब ही लगती है। खैर, ये तो लोगों की अपेक्षा की बात हुए, लेकिन वे यहीं नहीं रूक रहे हैं, वे तो पूर्वानुमान भी लगा रहे हैं। पिछले 24 घंटों से इस बारे में कई तरह की जिज्ञासा, अनुमान और सवाल सुनने को मिल रहे हैं। लोगों का कहना है कि यह कार्रवाई उस सियासी हलचल को कुचलने की कोशिश है, जिसे पिछले कुछ दिनों से लगातार हवा दी जा रही है और वो भी लगातार सुर्खियों में है। लोगों के इस अनुमान में कितना दम है, यह तो छापे की आधिकारिक जानकारी सामने आने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इतना मानना ही पड़ेगा कि पब्लिक को सियासी लोग ऐसे ही भगवान का दर्जा नहीं देते। वे सिर्फ वोट देने के लिए नहीं है, बल्कि सरकार के फैसलों और कार्रवाइयों का भी बारीक विश्लेषण कर अपनी राय देते रहते हैं।
समय ने दिखाया कुचक्र
छत्तीसगढ़ में इस छापे की एक और बात चर्चा में हैं। लोग मान रहे हैं कि जैसी करनी वैसी भरनी। जीपी सिंह का कार्यकाल विवादों और चर्चाओं में रहा है। बात चाहे एसपी राहुल शर्मा की आत्महत्या का हो या फिर चर्चित आईपीएस अफसर को पूछताछ के लिए अपने कार्यालय बुलाने का हो। यह बात तो छत्तीसगढ़ के अधिकांश लोग जानते हैं कि जीपी सिंह करीब सालभर पहले तक एसीबी के चीफ थे और आज उसी एसीबी ने उन पर छापे की कार्रवाई की है। ब्यूरो के मुखिया रहते हुए उन्होंने भी राज्य के चर्चित आईपीएस और ब्यूरो के पूर्व चीफ को पूछताछ के लिए आरोपित की तरह दफ्तर तलब किया था। ब्यूरो में उस वक्त के प्रत्यक्षदर्शियों का तो यहां तक कहना है कि चर्चित अफसर ने उनसे तेज आवाज और आपत्तिजनक भाषा में बात की थी, आज उनके साथ भी वही हो रहा है या हो रहा होगा। वे बस्तर में पदस्थ रहने के दौरान भी अपने वरिष्ठ अफसर के सरकारी आवास में दबिश देने के कारण भी सुर्खियों में आए थे। कुल मिलाकर इसे समय का चक्र ही कहें, जो घूमता तो हमेशा रहता है, लेकिन जब अपने ऊपर आता है, तभी उसका अंदाजा होता है।
नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया के विधानसभा क्षेत्र आरंग में समर्थक बकायदा कैलेण्डर बंटवा रहे हैं। इसमें डॉ. डहरिया की विकास गाथा उल्लेखित है। अब क्षेत्र में विकास कार्य हो रहे हैं, तो उसे उपलब्धि के तौर पर प्रचारित करना गलत भी नहीं है। बल्कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में जरूरी भी हो गया है। मगर उत्साही समर्थकों ने इतना प्रचार किया कि कैलेण्डर में जून महीना 31 दिन का हो गया। पहले तो कैलेण्डर में इस गलती की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया, लेकिन अब घर-घर पहुंचा, तो गलतियां लोगों की जुबान में आ गई। गलती ऐसी है कि कैलेण्डर को वापस लेना भी कठिन है। हाल यह है कि विकास गाथा से ज्यादा चर्चा गलती की हो रही है।
पार्टी टैक्स इतने खुले-खुले !
प्रदेश में कांग्रेस सरकार के ढाई बरस पूरे होते ही अब सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह लगने लगा है कि अब अगले चुनाव के दिन करीब आते जा रहे हैं और इस बीच उन्हें पार्टी की तरफ से सरकार में कोई छोटा मोटा भी ओहदा अगर नहीं मिला है तो उन्हें खुद होकर अपनी ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए। कई जगहों पर सत्तारूढ़ पार्टी के लोग सडक़ों पर गुंडागर्दी करते तो दिखे ही हैं, कुछ दूसरे किस्म की दादागिरी भी चल रही है। अब महासमुंद जैसे राजनीतिक रूप से ऐतिहासिक जिले में सत्तारूढ़ कांग्रेस की जिलाध्यक्ष की तरफ से सरकार के सबसे बड़े निर्माण विभाग पीडब्ल्यूडी के अफसर को चि_ी लिखी गई है कि जिले में जितने काम किए जाएं उनका अवलोकन जब पार्टी के कार्यकर्ता या पार्टी के जिलाध्यक्ष के प्रतिनिधि कर लें, तो उसके बाद ही ठेकेदार को भुगतान किया जाए। अब यह नौबत पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं के राज की तरह की दिखाई पड़ रही है। अगर सरकारी अफसरों को सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं को काम दिखाने के बाद ही ठेकेदारों को पेमेंट करना है, तो जाहिर है कि ठेकेदारों के मत्थे एक खर्च और बढ़ जाएगा। अभी तक सरकारी काम करने वाले ठेकेदार ऑफिस खर्च के नाम पर किसी विभाग में 10 फ़ीसदी, तो किसी विभाग में 20 फ़ीसदी की गुंजाइश रखते हैं। कुछ मंत्री इतने दमदार भी हुए हैं कि जो 15 से 20 फ़ीसदी अपने लिए रखवाते हैं और ऑफिस का खर्च ठेकेदार या सप्लायर अलग से उठाएं। अब इन सबके साथ-साथ सत्तारूढ़ पार्टी का खर्च भी अगर ठेकेदार के मत्थे आ गया और अफसरों पर दबाव आ गया कि पार्टी का भुगतान होने के बाद ही ठेकेदार का भुगतान हो, तो इससे नुकसान ठेकेदार का नहीं होगा, सीमेंट मे रेत और बढ़ जाएगी, मुरम की जगह मिट्टी बढ़ जाएगी, ईंटें और घटिया लगने लगेंगी, और छड़ की मोटाई घट जाएगी। आगे तो फिर ऐसी इमारतों में पढऩे वाले बच्चे जानें जिनके सिर पर छत के गिरने का खतरा और अधिक हो जाएगा।
सकते में आईपीएस
छत्तीसगढ़ के 28 में से 21 जिलों के आईपीएस अफसरों के तबादले के ठीक दूसरे दिन आईपीएस अधिकारी जी पी सिंह पर शिकंजा कसा गया है। आईपीएस ट्रांसफर में कुछ अफसर मनचाहे जिलों में पोस्टिंग नहीं मिलने से निराश हुए थे, हालांकि अपेक्षाकृत कुछ जूनियर माने जा रहे अफसरों को बड़े जिलों की कमान मिली है, लेकिन जिन अधिकारियों को बड़े जिलों की जिम्मेदारी मिलने की अटकलें लगाई जा रही थी, उनके साथ ऐसा नहीं हुआ तो स्वाभाविक है कि उन्हें निराशा हुई होगी। इसमें से कुछ अगली बार बड़ा जिला पाने की कोशिश में अभी से लग गए थे, लेकिन जैसे ही तबादले के दूसरे दिन आईपीएस अधिकारी के ठिकानों पर छापेमारी की कार्रवाई हुई। आईपीएस अधिकारी सकते में आ गए हैं। और वे फिलहाल कोई जोड़-तोड़ में रहने के पक्ष में नहीं हैं। किसी आईपीएस पर पहली बार इतनी बड़ी कार्रवाई हुई है। वैसे भी जीपी सिंह की गिनती पावरफुल अधिकारियों में होती है। पिछली और मौजूदा सरकार के कार्यकाल में अहम पदों पर रहे हैं। एसीबी और ईओडब्ल्यू के चीफ भी रहे हैं। जाहिर है इतने बड़े अधिकारी पर कार्रवाई होने के बाद आईपीएस तबादलों को लेकर जुगाडमेंट करने से बचेंगे। हालांकि जीपी सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के कारण कार्रवाई हुई है, लेकिन चर्चा यह है कि कार्रवाई किसी दूसरे मकसद से की गई है। संभव है कि छापे की जानकारी बाहर आने के बाद कुछ माजरा स्पष्ट हो पाएगा। दूसरी चर्चा यह भी है कि राज्य के एक और चर्चित आईपीएस से जीपी सिंह की नजदीकियों के कारण वे संदेह के घेरे में हैं। अगर, संदेह सच हुआ तो आने वाले दिनों में कुछ और बड़े अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।
बोरा के रिलीविंग में देरी की सियासी वजह
छत्तीसगढ़ कैडर के 1999 बैच के आईएएस सोनमणि बोरा सेंट्रल डेपुटेशन में जाने के लिए रिलीविंग का इंतजार कर रहे हैं। पिछले महीने से यह चर्चा जोरों पर है कि उन्हें कभी भी दिल्ली जाने की अनुमति मिल सकती है। उन्हें दिल्ली में भूमि संसाधन विभाग में संयुक्त सचिव बनाने का आदेश काफी पहले ही निकल चुका है, लेकिन राज्य से अभी तक उन्हें रिलीव नहीं किया गया है, जबकि वे छत्तीसगढ़ में बिना विभाग के सचिव हैं। ऐसे में उनको अनुमति नहीं मिलना प्रशासनिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। सोनमणि बोरा असम के रहने वाले हैं और हाल ही में वहां विधानसभा के चुनाव हुए हैं। असम चुनाव में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री मुख्य ऑब्जर्वर बनाए गए थे। मुख्यमंत्री और उनकी टीम ने महीनों तक असम में डेरा डाल कर पूरे चुनाव अभियान में ताकत के साथ सक्रिय थे। वहां कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता आईएएस बोरा के करीबी रिश्तेदार हैं। ऐसे में यह संभव नहीं है कि बोरा के बारे में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और असम के कांग्रेस नेता के बीच चर्चा नहीं हुई होगी? इसके बाद भी बोरा के रिलीविंग में हो रही देरी को राजनीतिक कारणों से जोडक़र देखा जा रहा है।
बीस साल एक कुर्सी पर
आयुष संचालक डॉ. जी एस बदेशा बुधवार को रिटायर हो गए। वे राज्य गठन के बाद से अब तक संचालक रहे। उनके नाम 20 साल संचालक के पद पर रहने का रिकॉर्ड कायम हो गया है। आयुष संचालनालय के अधीन आयुर्वेद, होम्योपैथी, और योग-नेचुरोपैथी चिकित्सा-शिक्षा आते हैं। बतौर संचालक डॉ. बदेशा के नाम पर कोई खास उपलब्धि नहीं रही। बावजूद वे पद पर बने रहे।
राज्य बनने के बाद कई नए मेडिकल कॉलेज खुले, लेकिन एकमात्र नया सरकारी आयुर्वेद कॉलेज बिलासपुर में खुल पाया। इससे परे होम्योपैथी चिकित्सा शिक्षा तो पूरी तरह निजी हाथों में है। जबकि पिछले सीएम डॉ. रमन सिंह खुद आयुर्वेद चिकित्सक थे। बावजूद इसके 15 साल में आयुर्वेद-होम्योपैथी चिकित्सा के क्षेत्र में कोई खास प्रगति नहीं हो पाई।
आयुर्वेद के कई प्रतिष्ठित चिकित्सक रायपुर आयुर्वेदिक कॉलेज को गुजरात के जामनगर विश्वविद्यालय की तर्ज पर विश्वविद्यालय के रूप में अपग्रेड करने के पक्ष में थे। इस सिलसिले में भरपूर कोशिशें भी हुई, लेकिन आगे कुछ नहीं हो पाया। कई लोग इसके लिए डॉ. बदेशा को जिम्मेदार ठहराते हैं। कुछ जानकारों का मानना है कि राज्य बनने के पहले, और बाद में आयुर्वेद-होम्योपैथी, और नेचुरोपैथी चिकित्सा कभी भी किसी भी सरकार की प्राथमिकता में नहीं रहा। ऐसे में डॉ. बदेशा को अकेले जिम्मेदार ठहराया जाना सही नहीं है।
बंगलों का राज
सरकार बदलने के बाद भी मंत्री बंगला नहीं छोडऩे पर बृजमोहन अग्रवाल भाजपा के भीतर अपने विरोधियों के निशाने पर रहे हैं। दबे-छिपे ढंग से इसकी शिकायत पार्टी हाईकमान तक पहुंच चुकी है। बृजमोहन के बाद नंदकुमार साय का बंगला पार्टी नेताओं के आंखों की किरकिरी बन चुका है। साय किसी भी सरकारी पद पर नहीं हैं, लेकिन जेल रोड स्थित बहुत बड़ा सरकारी बंगला अभी भी उनके कब्जे में हैं। नंदकुमार साय, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे तब उन्हें यह बंगला आबंटित किया गया था।
बाद वे सांसद बने, और कुछ समय पद में नहीं रहने के बाद भी पिछली सरकार ने उन्हें बंगला खाली नहीं कराया। इसके बाद वे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष बन गए। यह पद केन्द्र सरकार के कैबिनेट मंत्री के समकक्ष है। बतौर अध्यक्ष उनका कार्यकाल खत्म हो गया, लेकिन उन्होंने बंगला नहीं छोड़ा है। मौजूद सरकार को भी उनके बंगले में कोई रूचि नहीं दिखती है। वैसे भी नंदकुमार साय अपनी पार्टी के कुछ नेताओं के खिलाफ मुखर रहते हैं, जिससे सरकार के लोग काफी खुश हैं। जाहिर है एक बंगले की वजह से सरकार इस दिग्गज नेता को अपने पाले से जाने नहीं देना चाहती है।
कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त प्रवक्ता !
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पद संभालते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था। उन्होंने करीब दो साल पहले पद छोडक़र एक व्यक्ति एक पद का संदेश दिया था, लेकिन लगता है कि प्रदेश के मुखिया के इस संदेश का कांग्रेसियों में कुछ असर नहीं पड़ा। प्रदेश कांग्रेस को देख लीजिए, जहां कई ऐसे नेता हैं, जिन्हें लालबत्ती मिल गई है, फिर भी संगठन के पद पर जमे हुए हैं। इसी तरह दूसरे लालबत्तीधारी नेता भी संगठन के दूसरे महत्वपूर्ण पदों पर हैं। इनमें से कई नेताओं को अब सरकार ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दे दिया है। ऐसे में संचार विभाग के दूसरे सदस्यों ने चुटकी लेना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि अब कांग्रेस में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त पदाधिकारी मीडिया को बयान जारी करेंगे। फिलहाल यह बात हंसी-मजाक में हो रही है, लेकिन बात में तो पूरी गंभीरता दिखाई दे रही है। संभव है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा बन जाए।
गोबर का गुड गोबर
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार की फ्लैगशिप गोधन न्याय योजना पर अफसरों ने पलीता लगाना शुरू कर दिया है। बिलासपुर के तखतपुर ब्लॉक के मॉडल गौठान से गड़बड़ी की खबर निकलकर सामने आई है। इसके जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं। जबकि सरकार ने गोबर खरीदी में 100 करोड़ के आंकड़े को पार कर लिया है और इसे जोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है। खरीदी के आंकड़ों को गौर किया जाए, तो प्रदेश भर के गौठानों में 50 लाख क्विंटल गोबर की उपलब्धता होनी चाहिए। इससे वर्मी कम्पोस्ट बनाने का काम भी चल रहा है, तो कुल गोबर का 40 फीसदी यानी करीब 20 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट होना चाहिए, जबकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3 लाख क्विंटल से कुछ अधिक ही वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया गया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि अभी तो एक जिले से गड़बड़ी की खबर आई है। अगर, बारीकी से जांच की जाए, तो संभव है कि प्रदेशभर से ऐसी और गड़बड़ी निकलकर सामने आ सकती है। इस चर्चा के बाद हाल में ही कलेक्टर बने कई साहब काफी परेशान दिख रहे हैं। उनकी चिंता है कि गुड गोबर करे कोई और परिणाम उनको भुगतना पड़ेगा, इसलिए कुछ ने तो गुपचुप जांच भी शुरू कर दी है, ताकि वे जवाब दे सकेंगे। संभव है कि जवाब देकर नए अधिकारी बच जाएं, लेकिन वाकई गड़बड़ी हुई होगी, तो सरकार को जवाब देना मुश्किल हो सकता है।
अब क्या शिकायत करें...
भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री सुनील देवधर के यहां दौरे को लेकर पार्टी के विशेषकर असंतुष्ट नेता काफी खुश थे। देवधर वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने उत्तर-पूर्व में पार्टी को खड़ा किया, और त्रिपुरा में सरकार बनवाई। देवधर के आने के पहले असंतुष्टों ने संगठन में हावी नेताओं के खिलाफ गुपचुप तरीके से शिकवा-शिकायतों की तैयारी की थी। वे यहां पहुंचे, तो उनका अच्छा सत्कार भी हुआ।
स्वागत से अभिभूत देवधर ने मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया, और छत्तीसगढ़ में पार्टी की स्थिति पर यह कह गए कि सौदान भाई साहब से पूरी जानकारी मिलती रहती है। बस फिर क्या था, असंतुष्ट नेता मायूस हो गए, और शिकायत करने का इरादा छोड़ दिया। दरअसल, असंतुष्टों ने जिनके खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा तैयार किया था वे सभी सौदान सिंह के करीबी माने जाते हैं। ऐसे में शिकायत सौदान सिंह तक पहुंचने का खतरा पैदा हो गया था, जो कि असंतुष्ट नहीं चाहते थे।
देर न हो जाए कहीं देर ना हो जाए
निगम-मंडलों की सूची में देरी से दावेदारों का धैर्य जवाब देने लग गया है। इन्हीं में से एक प्रदेश कांग्रेस के सचिव शिव सिंह ठाकुर ने देर न हो जाए कहीं देर ना हो जाए...। गाना गाकर फेसबुक पर पोस्ट किया है। उन्होंने सीएम भूपेश बघेल के तस्वीर के साथ फेसबुक पर गाना पोस्ट किया है। ठाकुर का यह गाना पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
शिव सिंह ठाकुर झीरम घाटी हमले में घायल हुए थे। वे पार्टी संगठन की कई कमेटियों में रहे, और उन्हें सीएम भूपेश बघेल का करीबी माना जाता है। उन्हें निगम-मंडल में जगह मिलने की संभावना भी है। मगर सरकार का आधा कार्यकाल पूरा हो चुका है। सूची में देरी से दावेदारों में बेचैनी बढ़ रही है, और शिव सिंह ठाकुर जैसे लोग गाना गाकर अपनी भावनाओं का इजहार कर रहे हैं।
बिन वैक्सीन सब सून
केंद्र सरकार की इस बात पर बड़ी चर्चा हो रही थी कि जैसे ही टीकाकरण का काम उसने अपने हाथ में लिया रफ्तार बढ़ गई, मगर अब स्थिति डांवाडोल हो रही है। छत्तीसगढ़ में प्रत्येक दिन चार-पाँच लाख से अधिक टीके लगाने की क्षमता है और हर दिन करीब 2 लाख टीके लगाए जा रहे हैं। पर अब वैक्सीन खत्म हो रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मोदी को सीधे चि_ी लिखी है और कम से कम एक करोड़ डोज की मांग की है। स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव का कहना है कि यदि पर्याप्त संख्या में टीके नहीं मिलते हैं तो वैक्सीनेशन का अभियान सप्ताह में सिर्फ 4 दिन चलाना पड़ेगा। जब तीसरी लहर होने की आशंका सामने खड़ी हुई है और स्कूलों को भी बच्चों के टीकाकरण के साथ खोलने पर विचार किया जा रहा है, वैक्सीन की कमी चिंता बढ़ाती है।
विधायक की अपनी टीम बन रही
बिलासपुर में विधायक शैलेष पांडेय ने एक पुराना वीडियो जारी कर बताया कि जिस आरक्षक की शिकायत पर उनके ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष मोती थावरानी को जेल भेजा गया वह सिपाही खुद भी शराब पीकर मोहल्ले में लोगों को आतंकित करता था। वीडियो जारी होने के बाद भी पुलिस टस से मस नहीं हुई। बताया कि यह दो साल पुराना मामला था, एफआईआर हुई थी। पर यह नहीं बताया कि क्या सजा उसे हुई, यदि फैसला आना बाकी है तो कब उसे लाइनअटैच किया गया, उसे वापस कैसे ड्यूटी पर लिया गया ? विधायक अपने कार्यकर्ता के लिये बिलासपुर में अकेले लड़ाई लड़ रहे हैं। प्रदेश स्तर पर विधायक की संगठन में पकड़ नहीं होती तो थावरानी अब तक पार्टी से लाइनअटैच किये जा चुके होते। पर बिलासपुर में अजीब माहौल है। विधायक छोडक़र बाकी कोई भी नेता न तो थावरानी के खिलाफ कोई कुछ बोल रहा है, न ही उसके समर्थन में। विधायक ने भी तारबाहर थाने में थावरानी की शिकायत पर कार्रवाई नहीं होने पर जो हंगामा किया, उस पर भी कांग्रेस चला रहे गुट की कोई प्रतिक्रिया नहीं है। लगता है खामोश रहना तय कर लिया गया है। बिसात अगले चुनाव की बन गई है जिसमें शैलेष पांडे को दावेदारी से बाहर करना है। पर, दूसरी ओर पांडे ने इस घटनाक्रम में सहानुभूति बटोर ली है। उनकी एक अलग टीम बन रही है। यह टीम कितनी सशक्त होगी आने वाले दिनों में देख सकते हैं।
सरकार के साथ विपक्ष !
भूपेश सरकार के खिलाफ भाजपा प्रदेशभर में माहौल बनाने की कोशिश में जुटी है, लेकिन पार्टी के कई बड़े नेता जाने अनजाने में सरकार की तारीफ कर मुहिम को झटका दे देते हैं। पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर, और दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय कई बार भूपेश सरकार की तारीफ कर चुके हैं। इसी कड़ी में कांकेर सांसद मोहन मंडावी, और बिलासपुर सांसद अरुण साव का नाम भी जुड़ गया है।
पिछले दिनों सीएम जिलों में वर्चुअल बैठक कर धान के बदले वृक्ष लगाने की योजना पर चर्चा कर रहे थे, तो दोनों सांसदों ने सरकार की इस योजना की तारीफ की। उनका कहना था कि इस योजना से किसानों की आय में बढ़ोत्तरी होगी। अब विपक्षी नेता सरकार की तारीफ करेंगे, तो सत्ता पक्ष के लोगों का खुश होना लाजमी है।
वैक्सीनेशन के लिये जागरूकता
कोविड वैक्सीनेशन पर जागरूकता लाने का काम शुरू हो चुका है। इस विषय पर बलौदाबाजार जिले के कलेक्टर ने स्व-सहायता समूह, स्कूल समन्वयकों, प्राचार्यों और जन-प्रतिनिधियों की बैठक ली। इसी जिले के कसडोल में एसडीएम ने बैठक ली। महासमुंद में भी कलेक्टर ने बैठक ही नहीं ली बल्कि टीकाकरण केन्द्रों में जाकर टीका लगवाने वालों से अपील की कि वे अपने आसपास के दूसरे लोगों को भी टीका लगवाने के लिये प्रेरित करें। इस तरह की ख़बरें कुछ और जिलों से भी हैं। जागरूकता की गतिविधियां तब ज्यादा तेज हुई है जब केन्द्र सरकार ने सभी के लिये मुफ्त टीका लगाने की घोषणा की और टीके पहुंच भी रहे हैं। इसके पहले जब टीकों की आपूर्ति धीमी थी, जागरूकता की कोशिश नहीं की गई। तब समस्या थी कि यदि लोगों से टीका लगाने की अपील करेंगे तो फिर वे टीके की मांग भी करेंगे, जो पहले जरूरत के मुताबिक उपलब्ध नहीं थे।
ऊपर भी भूत, नीचे भी भूत
कुछ लोग अपने भूतकाल के सपनों में इस कदर खोए रहते हैं कि उन्हें मौजूदा वर्तमान नहीं दिखता और भविष्य तो मानो उनके लिए रहता ही नहीं है। अभी राजधानी रायपुर में एक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के सामने रोज खड़ी होने वाली एक बड़ी सी आलीशान गाड़ी के सामने लगी हुई चमचमाती तख्ती को पढ़ते हुए कुछ स्कूली बच्चियां साइकिल पर निकलीं। उनमें से एक ने इस तख्ती को पढ़ा ‘भूतपूर्व मंत्री’ । और आपस में हंसती हुई आगे निकल गई कि जिस पेड़ के नीचे कार खड़ी है उस पर उस पेड़ पर भी भूत रहता है और नीचे कार के भीतर भी।
अब सवाल यह है कि क्या भूतपूर्व मंत्री का वर्तमान कुछ भी नहीं है? क्या फिर यह चौराहों पर पुलिस को दिखाने के लिए लगाई गई तख्ती रहती है जिसमें लोग अपने भूतपूर्व ओहदे या किसी संगठन के पदाधिकारी होने का जिक्र करते हैं? ट्रैफिक के नियमों के मुताबिक ऐसी कोई भी तख्ती लगाना जुर्माने के लायक है, लेकिन ट्रैफिक पुलिस भी जानती है कि किसके मुंह लगा जाए और किसके मुंह न लगा जाए। कौन किसी ताकतवर की गाड़ी रोक कर अपना बस्तर तबादला करवाना चाहेंगे। इसलिए ताकत का यह प्रदर्शन जारी रहता है।
सरकार मेहरबान, तो कालिख पहलवान
आखिरकार शनिवार की देर शाम पदोन्नति समिति की बैठक में 87 बैच के अफसर जेईसीएस राव को पदोन्नति देने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी गई। सोमवार को पदोन्नति आदेश जारी होगा। राव 30 तारीख को रिटायर भी हो जाएंगे। यानी वे दो दिन के लिए पीसीसीएफ रहेंगे। राव की पदोन्नति आसान नहीं थी। वे पिछली सरकार में काफी पॉवरफुल वन अफसरों में रहे हैं, और उन्हें पसंदीदा काम मिलता रहा है।
राव के खिलाफ 3 विभागीय जांच भी चल रही थी, लेकिन वे पिछली सरकार में ही अपनी सारी जांच खत्म करवाने में सफल रहे। रिटायरमेंट के पहले पदोन्नति के लिए वे काफी भागदौड़ कर रहे थे। विभागीय मंत्री, और हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स ने उदारता दिखाई। फिर क्या था राव की पदोन्नति की फाइल तेजी से दौडऩे लगी। विशेषकर फारेस्ट में कई अफसर राव जितने भाग्यशाली नहीं रहे। पीसी मिश्रा जैसे साफ छवि के अफसर तो बिना पीसीसीएफ बने रिटायर हो गए।
नियामक आयोग में दुर्ग जिले की बारी
आखिरकार दुर्ग-भिलाई में पले बढ़े हेमंत वर्मा बिजली नियामक आयोग के चेयरमैन नियुक्त हो गए। वैसे तो चेयरमैनशिप के लिए 30 आवेदन आए थे। सारे आवेदनों की स्क्रूटनी के बाद अंतिम दो नाम का पैनल तैयार किया। जिसमें पूर्व आईएएस शैलेश पाठक, और हेमंत वर्मा थे।
वैसे तो कुछ जानकार पूर्व सीएस सुनील कुजूर को मजबूत दावेदार मान रहे थे। मगर उनका नाम पैनल में नहीं आ पाया। इस कॉलम में हमने सबसे पहले टेक्नोक्रेट के ही चेयरमैन बनने की संभावना जताई थी। हेमंत वर्मा की नियुक्ति के पीछे उनकी योग्यता-अनुभव से परे स्थानीय होना बाकियों पर वजनदार साबित हुआ।
कांग्रेस सरकार बनने के बाद सबसे पहले पावर कंपनी के चेयरमैनशिप के लिए हेमंत का नाम चला था। तब शैलेन्द्र शुक्ला उन पर भारी पड़ गए थे। और जब नियामक आयोग चेयरमैन की नियुक्ति की बारी आई, तो इस बार भी बड़े पैमाने पर ताकतवर लोगों की सिफारिशें आई थी, लेकिन सीएम ने महत्व नहीं दिया। पैनल में से ही नाम पर मुहर लगाई गई।
परिवहन में राज किसका?
परिवहन में सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। पिछली सरकार में पॉवरफुल रहे एक छोटे कर्मचारी की हैसियत घटी नहीं है। वे अब भी पॉवरफुल हैं, और उनके तेवर से खफा कुछ अफसरों ने इसकी शिकायत ऊपर तक पहुंचाई है। इस कर्मचारी का मामला सुलझा नहीं था कि रायपुर में नए नवेले एजेंट ने आरटीओ के नाक में दम कर रखा है। एजेंट गाडिय़ों की फिटनेस के लिए आरटीओ दफ्तर में रखे कागजात को अपने घर लेकर चला गया। एजेंट ने यह कह दिया कि वे जांच के बाद कागजात आरटीओ को देंगे, और फिर फिटनेस सर्टिफिकेट जारी होगा। अब यह बात किसी छिपी नहीं है कि सर्टिफिकेट जारी करने के नाम पर बड़ा ‘खेला’ होता है। सोशल मीडिया में एजेंट की हरकतों पर काफी कुछ लिखा जा रहा है। स्वाभाविक है कि ऐसे कारनामों से विभाग की बदनामी होती है।
गांवों में निजी अस्पताल
उद्योग विभाग को यह कार्ययोजना बनाने के लिये कहा गया है कि गांवों में निजी अस्पतालों के निर्माण के इच्छुक लोगों को किस तरह की सहायता दी जा सकती है। स्वास्थ्य का क्षेत्र सेवा ही नहीं एक उद्योग भी है। पर अब तक इसे प्रोत्साहन देना सरकारी नीतियों में शामिल नहीं रहा है। कभी-कभी सरकारी जमीन जरूर कम दर पर आबंटित कर दी जाती है। हाल के कोरोना संकट के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों से जिस तरह कोरोना के केस बढ़े, गांव क्या तहसील स्तर पर भी स्वास्थ्य सुविधाओं की बड़ी कमी देखी गई। सारा दबाव आखिरकार रायपुर और बिलासपुर जैसे बड़े शहरों पर पड़ा। इसका फायदा निजी अस्पताल प्रबंधकों ने भी खूब उठाया। आम दिनों में भी गांवों में सरकारी डॉक्टरों को टिकाये रखना हमेशा कठिन रहा है। लोगों की निर्भरता नीम-हकीमों और झोला छाप डॉक्टरों पर बनी हुई है। इन परिस्थितियों में यदि किसी तरीके से गांवों में निजी अस्पताल खुल जाते हैं तो कम से कम प्रशिक्षित और डिग्रीधारी डॉक्टरों और नर्सों की सेवायें तो मिल सकेंगीं। पर सवाल यह है कि निजी अस्पतालों के बिल की भरपाई करने की क्षमता गांव के मरीजों में होगी? इस बारे में एक डॉक्टर से राय ली गई तो उनका कहना था, आप क्या समझते हैं, सिर्फ जिला अस्पताल और बड़े सरकारी दूसरे अस्पतालों में गांव के मरीज पहुंचते हैं? शहरों के अधिकांश निजी अस्पताल ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों से भरे हुए मिलेंगे। वे किस तरह से निजी अस्पतालों के बिल को बर्दाश्त कर लेते हैं यह आप अलग से पता करें, पर जब वे शहर आकर खर्च करने के लिये तैयार हैं, तो गांव क्यों नहीं करेंगे?
वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ी पर खतरा बरकरार
बीते एक सप्ताह से कोरोना संक्रमण ने जो रफ्तार पकड़ी है उसका यह नतीजा निकला है कि प्रदेश के 25 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लग चुकी। शनिवार को रिकॉर्ड टूटा जब वैक्सीनेशन का आंकड़ा 3.33 लाख तक पहुंच गया। अब तक 88 लाख लोगों को कोविड टीका लग चुका है। ये आंकड़े बताते हैं कि धीरे-धीरे लोगों में टीके पर भरोसा बढ़ रहा है। अब विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंकड़ा काफी नहीं है। वे बता रहे हैं कि जब तक कम से कम 60 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज नहीं लग जाती, खतरा बना रहेगा। यानि अभी लड़ाई लम्बी लडऩी होगी।
लॉकडाउन के मया...
कोई बात अलग तरह से की जाये तो लोगों का ध्यान उस ओर ज्यादा जाता है। संक्रमण से बचाव के लिये लोग प्रोटोकॉल का पालन करें और लॉकडाउन के निर्देश मानें, इसके लिये दीवार पर इस तरह लेखन किया गया है।
अचानक सुनाई देना बंद हो गया !
संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत प्रभारी मंत्री बनने के बाद पहली बार राजनांदगांव पहुंचे, तो कांग्रेसजनों ने उनके स्वागत सत्कार में कहीं कोई कमी नहीं की। भगत ने भी उन्हें भरपूर महत्व दिया। वे डोंगरगढ़ मंदिर दर्शन के लिए भी गए, और बाहर निकले तो पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। उनसे सवाल किया गया कि आप संस्कृति मंत्री हैं, और शराब पर लगाम नहीं लग रहा है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति इससे भ्रष्ट हो रही है। डोंगरगढ़, और प्रदेश के बाकी जगहों में भी यही स्थिति है। आपका क्या कहना है? भगत ने पूरे ध्यान से सवाल सुना, और फिर कहा कि आप क्या बोल रहे हैं, मुझे सुनाई नहीं दे रहा है। फिर सवाल दोहराया गया, तो वे यह कहकर आगे बढ़ गए कि उन्हें कुछ सुनाई नहीं दे रहा है। बुरा बोलने या बुरा देखने से बेहतर है कि बुरा न सुनना। संस्कृति मंत्री ने भी यही किया।
निराश अफसर की मुलाकातें!
सरकार बदलने के बाद कई अफसर लूप लाइन में हैं। इनमें से एक तो पिछली सरकार में कई जिलों के कलेक्टर रहे हैं। काफी हाथ-पांव मारने के बाद भी पूर्व कलेक्टर को अब तक कोई अहम दायित्व नहीं मिल पाया है। ढाई साल हो गए हैं, वे संचालनालय से नहीं निकल पा रहे हैं। अफसर ने दो दिन पहले भाजपा के एक बड़े नेता से मौलश्री विहार स्थित उनके घर पर लंबी चर्चा की।
अफसर की भाजपा नेता से मुलाकात की खबर छनकर बाहर निकली, तो यह पता चला कि अफसर केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं, और इसके लिए भाजपा नेता की मदद चाहते हैं। यह भी अंदाजा लगाया जा रहा कि पावस सत्र नजदीक है, और विभाग से जुड़े कुछ फीडबैक भी दिए हैं। इसमें सच्चाई कितनी है, यह तो पता नहीं, लेकिन अफसर के भाजपा नेता से मुलाकात को लेकर कई तरह की चर्चा हो रही है।
महिला प्रधान पर, पति पहलवान
दीपका नगरपालिका में टेंडर की प्रक्रिया को लेकर अध्यक्ष के पति और प्रतिपक्ष के नेता के बीच विवाद बढ़ा और अध्यक्ष पति ने प्रतिपक्ष के नेता को तमाचा जड़ दिया। फिर तो दोनों पक्षों में जमकर लात-घूंसे चले। मामला थाने पहुंचा, शिकायत दर्ज कर ली गई।
इन दिनों जिस तरह से एक के बाद एक सत्ता पक्ष से जुड़े लोगों की ओर से मारपीट, हाथापाई, गाली-गलौच की खबरें आ रही हैं, वह चिंताजनक है। इस मामले में कानूनी तौर पर कौन सही है या कौन गलत यह पुलिस जांच का विषय है। पर दूसरी बात यह भी है कि पंचायतों और नगरीय निकायों में चुनी गई महिला जनप्रतिनिधियों के कामकाज में उनके परिवार के पुरुष सदस्य, खासकर पति की भूमिका अक्सर विवाद में रहती है। बलरामपुर जिले के रामानुजगंज में पंडो आदिवासियों को मछली चुराने के आरोप में बीते सप्ताह पेड़ से बांधकर पीटा गया। इस घटना में दबंगई दिखाने वाला और कोई नहीं बल्कि गांव की महिला सरपंच का पति ही था। समय-समय पर महिला सरपंच और अन्य महिला जन-प्रतिनिधियों को घोटालों में लिप्त पाया जाता है। जांच करने पर मालूम होता है कि ज्यादातर मामलों में महिला की भूमिका केवल दस्तखत करने की रही। कारनामा उसके पति या परिवार के किसी पुरुष सदस्य का है।
संशोधित पंचायती राज कानून 1985 का है, जब महिलाओं का अलग कोटा तय किया गया। आज छत्तीसगढ़ सहित ज्यादातर राज्यों में स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण है। 35-36 साल आरक्षण के बाद भी महिलाओं को विवेक पर पुरुष भरोसा नहीं कर पाते हैं। दरअसल, चुनाव के दौरान मतदाता ही तय कर कर देते हैं कि वे स्वतंत्र क्षमता से काम करने वाली महिला को चुन रहे हैं या परिवार के पुरुष सदस्यों की करतूतों की कवच बनने वाली। शासन ने समय-समय पर सर्कुलर जारी कर बैठकों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधि की जगह पुरुषों के बैठने पर प्रतिबंध लगा रखा है, पर इन घटनाओं से साफ है कि असल हस्तक्षेप तो बैठकों के बाहर होता है। पंचायतों, जनपदों और पालिकाओं के कार्यपालन अधिकारी भी पुरुष सदस्यों को पश्रय देते हैं। इससे बंदरबांट में आसानी होती है।
इसीलिए जब पंचायती राज्य लागू हुआ और महिला आरक्षण हुआ, तो पाँच-पति के लिए पाप, और सरपंच-पति के लिए साँप शब्द ईजाद हुए थे!
एसपी, कलेक्टर्स इस भीड़ से वाकिफ हैं?
कोरोना केस घटने के बाद प्रदेश में लॉकडाउन को लगभग हटाया जा चुका है, पर हर रिपोर्ट कह रही है कि खतरा कम नहीं हुआ है। अब भी प्रत्येक जिले में कम ही सही पर केस आ रहे हैं। दूसरी लहर का भयंकर प्रकोप देखा गया था, तो इसके पीछे भी लोगों ने माना कि पहली लहर के कमजोर पडऩे पर लोग लापरवाह हो गये थे। अब भी देश में लोग डेल्टा, डेल्टा प्लस वेरियंट और तीसरी लहर को लेकर चिंतित हैं।
सबसे बड़ी बात, अब भी धारा 144 खत्म नहीं की गई है। पांच से ज्यादा लोग बिना मंजूरी के एक जगह इक_े हों, मास्क नहीं लगायें, सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं करें तो अब भी महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई हो सकती है। सभा-समारोहों में 50 लोगों की अधिकतम उपस्थिति ही तय की गई है, वह भी कोरोना गाइडलाइन का पालन करने के साथ। गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले में दो दिन के भीतर आम लोगों से करीब 75 हजार रुपये का जुर्माना इसलिये वसूल किया गया क्योंकि लोगों ने नियमों को तोड़ा। ये सब आम लोग थे। दूसरी ओर इन दिनों प्रदेश में जगह-जगह प्रभारी मंत्री पहुंच रहे हैं। उनके स्वागत में सडक़ें जाम हो रही है, सभाओं में भीड़ जमा हो रही है। दूसरी ओर कोरोना संक्रमण मत फैले इसलिये जन-दर्शन, राजधानी से लेकर जिलों तक में बंद है। नेताओं, अधिकारियों के आचरण से ही जनता सीखती है। जगह-जगह स्वागत के उतावले मंत्रियों, कार्यकर्ताओं से पूछना चाहिये कि कोरोना इतना ही कमजोर हो चुका है तो सब पाबंदियां क्यों नहीं उठा ली जाती? आम लोगों को जबरन परेशानी में क्यों डाला जा रहा है?
जय हो दिल्ली सरकार...
गौर से देखिये, खंभे पर लटके इस पोस्टर पर किसी मोहल्ला कार्यकर्ता का नाम नहीं है जो, एक स्पीड ब्रेकर बन जाने पर जश्न मना रहा हो। यह दिल्ली सरकार का विज्ञापन है। ऐसे 25-50 पोस्टर लगे हों तो यह तय करना मुश्किल हो जायेगा कि स्पीड ब्रेकर पर ज्यादा खर्च आया या इस बात को प्रचारित करने पर। जिन दलों को दो तिहाई सीटें चाहिये, उन्हें केजरीवाल सीख दे रहे हैं।
दिल्ली ने बुलाया है
खाद्य विभाग में विशेष सचिव मनोज सोनी की प्रतिनियुक्ति की अवधि बढ़ाने के केन्द्र सरकार ने मना कर दिया है। सोनी भारतीय दूरसंचार सेवा के अफसर हैं, और पिछले सात साल से छत्तीसगढ़ सरकार में प्रतिनियुक्ति पर थे। खाद्य विभाग में मनोज सोनी, पीडीएस देख रहे थे।
राज्य सरकार ने उनकी प्रतिनियुक्ति बढ़ाने का आग्रह किया था, लेकिन केन्द्र सरकार ने इससे इनकार कर दिया, और तुरंत रिलीव करने के लिए लेटर भेज दिया है। इससे पहले केंद्र ने दूरसंचार सेवा के अफसर वीके छबलानी की प्रतिनियुक्ति बढ़ाने से मना कर दिया था। छबलानी पिछले 9 साल से छत्तीसगढ़ सरकार में सेवा दे रहे थे।
अटकलों से भी ख़ुशी तो है ही
खबर है कि कांग्रेस हाईकमान ने निगम-मंडलों के पदाधिकारियों की सूची पर मुहर लगा दी है। चर्चा है कि सूची में कुछ कम 70 नेताओं के नाम हैं। कांग्रेस नेता सूची का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। सोशल मीडिया में संभावित नाम तैर रहे हैं। मगर इन नामों में सच्चाई कितनी है, इसका कुछ पता नहीं है। फिर भी कुछ नेता संभावित सूची में नाम आ जाने से ही खुश हैं।
सूची जारी होने में देरी क्यों हो रही है, इसका पार्टी के लोग भी ठीक-ठीक अंदाजा नहीं लगा पा रहे हंै। इससे परे सीएम भूपेश बघेल ने गुरुवार को दो मंत्री रविन्द्र चौबे, और मोहम्मद अकबर के साथ लंबी बैठक की है। चर्चा है कि बैठक में निगम-मंडलों की सूची से लेकर कुछ कैबिनेट प्रस्तावों पर बात हुई है। मगर इस बात का जवाब नहीं मिल पा रहा है कि सूची आखिर कब जारी होगी?
फ्रंटलाइन वर्कर भी लाइन में
जब राज्य में कोविड वैक्सीन की कमी की खबरें सुर्खियों में थी, तब लोग भी टीका लगवाने के लिए घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे। अब जब केंद्र सरकार ने काम हाथ में लिया है और टीके आ रहे हैं, लोग भी वैक्सीन लगवाने के लिए बाहर निकलने लगे हैं। इसकी एक वजह तीसरी लहर की आशंका भी है।
राजधानी रायपुर सहित बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा आदि जिलों में बीते कुछ दिनों से वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ गई है। ऐसे में सब्जी विक्रेताओं, बस व ट्रक ड्राइवरों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, पंचायत कर्मियों, पीडीएस दुकान संचालकों, कोटवार और राज्य सरकार के अधीन काम करने वाले कर्मचारी, शमशान के कर्मचारी, दिव्यांग आवश्यक सेवा में काम करने वाले शासकीय शासकीय कर्मचारी, वकील, पत्रकार थोड़े मायूस दिखाई दे रहे हैं। वजह यह है कि राज्य सरकार ने इन सब को प्राथमिकता से टीका लगाने के लिए फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा दे रखा है। पर इन्हें ऐसी कोई सुविधा नहीं मिल रही है कि टीकाकरण केंद्रों में जाएं और प्राथमिकता से टीके लगा कर लगवा कर लौट जाएं। इन्हें भी दूसरों की तरह कोविन ऐप में पंजीकरण कराना अनिवार्य है। जिस तरह से दूसरे लोग लाइन में लग रहे हैं इन्हें भी उसी तरह लगकर टीका लगवाना होगा। दरअसल जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी को टीका लगाने का काम राज्यों से अलग करके खुद के हाथ में ले लिया है पूरी व्यवस्था बदल गई है। अब सीजी टीका ऐप भी बंद हो गया। शायद अघोषित रूप से फ्रंटलाइन वर्करों की विस्तारित की गई सूची भी रद्द कर दी गई है।
खुशामद ने चुनावों की याद दिलाई
नि:संदेह टीकाकरण ने रफ्तार तो पकड़ी है पर अभियान लक्ष्य से पीछे ही चल रहा है। टीका फ्री में लगाया जा रहा है यह काफी नहीं है। किसी भी सरकारी योजना की सफलता के लिए जरूरी है तोहफे का तडक़ा भी हो। टीका लगाने का लाभ इसे लगवाने वालों को ही है पर सरकार, अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को इसके लिए बार-बार लोगों से अपील करनी पड़ रही है। इस अपील का साइड इफेक्ट यह हुआ है कि लोगों ने समझ लिया टीका लगवाना उनकी नहीं सरकार की जरूरत है। अब ऐसी स्थिति में जनप्रतिनिधि करें तो क्या करें? रायपुर में इसका एक तोड़ निकाला गया है कि टीका पहली बार लगवाने वालों को लकी ड्रा के आधार पर घरेलू इस्तेमाल की चीजें उपहार में दी जाए। इनमें टेलीविजन रेनकोट, कुकर, छतरी, आयरन, प्रेशर कुकर, मिक्सर आदि शामिल हैं। कई पार्षद एक किलो शक्कर का ऑफर भी दे रहे हैं। मेयर रविवार को सभी वार्डों के पार्षदों के साथ जन-जागरण अभियान भी शुरू करने वाले हैं। वे स्वेच्छानुदान से सबसे ज्यादा टीका कराने वाले वार्ड पार्षद को 5 से 10 लाख तक अतिरिक्त राशि भी देने वाले हैं। कुछ दिन पहले मेयर ने अनाउंस किया था कि विचार कर रहे हैं, जो लोग टीका नहीं लगवायेंगे, उनका राशन रोक दिया जायेगा। इस पर अधिकारियों का तुरंत खंडन आ गया। राशन रोकना एक दंड होगा, जिसका विरोध हो सकता है, इसलिये कुछ छीनने के बजाय कुछ देकर लोगों को टीका के लिये मनाने का रास्ता चुना गया है। लोकतंत्र में यही जरूरी है। फिर यह कोई नई बात नहीं है। उपहार का ऑफर टीके के लिये तो खुलेआम की गई है। इस तरह से चोरी-छिपे बांटने रहने का रिवाज तो प्राय: चुनाव के दिनों में रहा ही है। कांग्रेसी कह सकते हैं कि किसी सरकारी कार्यक्रम को उत्सव की शक्ल देना केवल एक पार्टी की बपौती नहीं है।
नहीं चाहते अभिभावक, स्कूल खुलें
पहले यह चर्चा चल रही थी की जून के तीसरे सप्ताह से स्कूलों को खोला जा सकता है लेकिन स्कूल शिक्षा मंत्री डॉक्टर प्रेमसाय सिंह के बयान से साफ हो गया कि अभी इस बारे में कुछ भी निर्णय नहीं लिया गया है। दूसरी लहर तो अब लगभग अपनी समाप्ति की ओर है लेकिन तीसरी लहर डेल्टा वैरीएंट के साथ पहुंचने के अनुमान ने अभी सतर्क कर रखा है। दूसरी लहर में एकाएक जिस तेजी से ऑक्सीजन बेड और वेंटिलेटर के अभाव में लोगों की मौत हुई उसे दोहराना कोई भी नहीं चाहता। आशंका यह भी है कि तीसरी लहर बच्चों के लिए ज्यादा नुकसानदायक हो सकती है। फिर ऐसे मौके पर स्कूलों में को खोलने का निर्णय लेना विवादित हो जाएगा।
एक सर्वे एजेंसी ने 25 मई से 15 जून के बीच एक सर्वेक्षण किया है जिसकी रिपोर्ट कहती है कि 76 फ़ीसदी माता पिता अपने जिले में कोरोनावायरस को शून्य हो जाने तथा सबको टीका लग जाने के बाद ही बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं। यह सर्वेक्षण यह भी कहता है कि माता-पिता बच्चों के वैक्सीन की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उम्मीद है सितंबर तक उनके टीके आ जाएंगे। तीसरी लहर 4-6 हफ्ते के बाद आने का अनुमान लगाया गया है। यह भी समय करीब सितंबर को ही जाता है। फिर भी सितम्बर शांति से गुजरा तब भी सर्वे के अनुसार लोग दिसंबर 2021 तक इंतजार करना चाहते हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि यदि इस साल के अंत तक भी कोई बड़ी लहर नहीं आती है तो बचे हुए तीन-चार महीनों में स्कूल खोल कर कोर्स पूरा कराया जा सकता है और स्थिति ऐसी बन सकती है कि पिछले 2 सालों की तरह जनरल प्रमोशन की नौबत न आए और वार्षिक परीक्षा ली जा सके।
22 करोड़ के इंजेक्शन की नई जरूरत
स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी बीमारी का नाम पहली बार तब सुनने को मिला था जब मुम्बई की बच्ची तीरा कामत के इलाज के लिये क्राउड फंडिंग की जा रही थी। इसके बाद छत्तीसगढ़ के कोरबा से दूसरा मामला सामने आया। डेढ़ साल की सृष्टि रानी को भी इलाज की जरूरत है। बीते 6 माह से इस इंजेक्शन के लिये रकम जुटाने की कोशिश उसके माता-पिता और शुभचिंतक कर रहे हैं। पिता सतीश कुमार एसईसीएल की दीपका खदान में ओवरमैन के पद पर काम करते हैं। अब तीसरा मामला भी छत्तीसगढ़ से ही आया है। रायगढ़ जिले के पुसौर के तुरंगा निवासी किसान नरेन्द्र नायक और पद्मिनी के 14 माह का बेटा छायांक भी इसी दुर्लभ बीमारी से पीडि़त पाया गया है।
इन्हें जिस इंजेक्शन जोल्गेंशमा की जरूरत है उसकी कीमत 22 करोड़ 50 लाख रुपये है। यह स्विट्जरलैंड की फार्मा कंपनी बनाती है लेकिन अमेरिका से मंगाना पड़ेगा। कोरबा और रायगढ़ के सांसदों ने अपने-अपने क्षेत्र के मामलों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की है कि इन बच्चों के इलाज में मदद की जाये। यदि सरकार इसके आयात पर लगने वाले टैक्स में राहत देती है तब भी 16 करोड़ रुपये से अधिक की जरुरत प्रत्येक मरीज के लिये होगी। दोनों परिवारों का कहना है कि वे अपनी पूरी प्रापर्टी बेच दें तब भी इतनी रकम की व्यवस्था नहीं कर सकते। दुनिया का सबसे महंगा इंजेक्शन इसे कहा जाता है। पर, देशभर में इस बीमारी से पीडि़त बच्चों की संख्या बहुत कम है। यह सवाल बना हुआ है कि क्या क्राउड फंडिंग से राशि एकत्र हो पायेगी? या फिर सरकार की ओर से ही टैक्स छूट के अलावा भी कोई और मदद की जायेगी?
ढाई-ढाई साल का खेल खत्म
अब भाजपा ने भी मान लिया है कि कांग्रेस सरकार के ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर अब बात नहीं करनी है। राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय ने पत्रकारों से बात करते हुए बुधवार को कहा कि 20-20 मैच खत्म हो गया। भूपेश बघेल की टीम जीत गई। मतलब यह है कि प्रदेश में अब नेतृत्व परिवर्तन की बात को भाजपा हवा नहीं देगी। उन्होंने मुख्यमंत्री को इस ‘जीत’ के लिये बधाई तो दी, लेकिन कहा कि भविष्य के लिये बेस्ट ऑफ लक नहीं बोल सकती क्योंकि अगली सरकार तो भाजपा की बनेगी। आत्मविश्वास बना रहे।
भूत वर्तमान व भविष्य के दानी अम्बानी
अगर आपके पास धन हो तो प्रत्येक क्षेत्र में आप सिद्धहस्त हो जाते हैं। धार्मिक रुचि और धर्मस्थलों के संचालन में आपकी क्षमता का भी मूल्यांकन हो सकता है। शायद यही वजह है कि उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम् बोर्ड में मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अम्बानी को सदस्य बनाया गया है। भूतकाल में दान मिला, वर्तमान में भी दान दे रहे हैं, यहां तक तो ठीक है पर भविष्य में भी दान देते रहेंगे इसे लेकर भी बोर्ड के सचिव आश्वस्त हैं। यह उनके पत्र से ही पता चलता है। (राजीव ध्यानी/फेसबुक)
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गोबर मायने गुड़-गोबर
छत्तीसगढ़ के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की वह टिप्पणी कल से चर्चा में है, जिसमें उन्होंने कहा कि यहां स्मार्ट सिटी कोई नहीं है, पूरा गोबर राज्य है। हालांकि यह टिप्पणी कोर्ट की कार्रवाई का हिस्सा नहीं है, न ही आदेश में कुछ लिखा गया है पर लोग इस वक्तव्य का अपने-अपने हिसाब से मतलब निकाल रहे हैं। कोई कह रहा है कि एक बूढ़ा तालाब का टेंडर निरस्त करने को लेकर ही क्या यह विचार जस्टिस साहब का बन गया? शायद नहीं। हर मामले पर याचिका तो नहीं लगाई जाती पर खबरों में तो हर रोज लोग देख रहे हैं कि शहरों में किस तरह से विकास की योजनाएं अधूरी हैं। फिर एक्टिंग चीफ जस्टिस तो छत्तीसगढ़ के ही रहने वाले हैं। यहां से उनका सरोकार कैसे छूट सकता है?
बिलासपुर शहर जहां हाईकोर्ट स्थापित है वहां हाईकोर्ट की तरफ जाने वाला फ्लाईओवर अधूरा है। भाजपा शासन काल में यह अंडरग्राउंड सीवरेज की वजह से खोदापुर कहा जाता था तो अब वही बात अमृत मिशन की खुदाई के चलते हो रही है। दोनों योजनाएं अधूरी हैं। तालाब सौंदर्यीकरण, सडक़ चौड़ीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किये जा चुके हैं पर शहरों की सूरत नहीं बदली। छत्तीसगढ़ में रायपुर, नवा रायपुर और बिलासपुर स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल हैं, पर जैसा देश के बाकी स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का है, अपने यहां भी पांच साल से यह घिसट-घिसट के चल रही है। हाईकोर्ट वाले बिलासपुर में तो मुश्किल से एक सडक़ ही तैयार हो पाई है। केन्द्र सरकार के एक सर्वेक्षण में दो दिन पहले ही रायपुर का नाम उन शहरों में आया था, जिसे रहने के लिहाज से बेहतर राजधानी माना गया है। तो मान लें कि देश के बाकी राज्यों में भी शहर विकास की स्थिति बहुत अच्छी नहीं होगी।
कुछ लोग कह रहे हैं कि यह टिप्पणी राज्य सरकार पर नहीं, स्मार्ट सिटी पर है जो केन्द्र की योजना है। राज्य पर टिप्पणी करनी होती तो जंगल राज्य, गुंडा राज्य, भ्रष्ट राज्य जैसा कुछ कहा जाता। यह बात अलग है कि अदालतों की निगाह में हाईकोर्ट के सामने सडक़ पर सैकड़ों की संख्या में विचरण कर रहे मवेशी भी पड़ जाते होंगे। पर गोबर राज्य तो कहने में कोई दिक्कत नहीं है। गोबर खरीदी योजना से तो गरीबों का भला हो रहा है। दूसरे राज्य भी इस तरह की योजना शुरू करने जा रहे हैं। दरअसल, यह टिप्पणी शहरों के विकास के लिये आने वाले फंड के दुरुपयोग से सम्बन्धित है, योजनाओं को समय से पूरा नहीं करना, फंड को बर्बाद कर देना। अच्छी खासी योजनाओं का गुड़-गोबर कर दिया जाना। शहरों में व्यवस्थित बसाहट हो, सडक़ें हो, स्कूल, अस्पताल हों, सबको साफ पानी मिले, गंदगी और मच्छर से छुटकारा मिले, सौंदर्यीकरण की योजनाओं को समय पूरा करें। जो पूरी हो जाए उनका ठीक तरह से मेंटेनेंस हो तब शायद ऐसी टिप्पणी सुनने को नहीं मिलेगी।
भाजपा की बस्तर में लड़ाई वैसी, जैसी चाहिये
कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़प के बाद मामला तूल पकड़ रहा है। सोमवार को भाजपा कार्यालय के सामने कांग्रेस कार्यकर्ता महंगाई के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। इस बीच युवा मोर्चा के कार्यकर्ता आ गए और उन्होंने कांग्रेस सरकार और सीएम के खिलाफ नारा लगाना शुरू कर दिया। दोनों तरफ से भीड़ बढ़ी और माहौल गर्म हो उठा। आनन फानन में तीन थानों की पुलिस वहां बुलानी पड़ी। इस बीच सांसद दीपक बैज का काफिला भी रोक लिया गया। इससे कांग्रेस नेता ज्यादा नाराज हो गये। किसी तरह बैज को आगे रवाना किया गया। कांग्रेस नेताओं ने भाजपा दफ्तर में घुसने की भी कोशिश की। दोनों दल एक दूसरे की पिटाई, धक्का-मुक्की पर आमादा हो गये। किसी तरह से पुलिस ने स्थिति संभाल ली।
पर, मामला फिलहाल जल्दी ठंडा होने वाला है, ऐसा नहीं दिखाई देता। बीजेपी ने कल प्रेस कांफ्रेंस कहा कि हमारे जन-जागरण आंदोलन से घबराकर कांग्रेस नेता गुंडागर्दी पर उतर आये हैं। इधर कांग्रेस ने बोधघाट थाने में तीन शिकायतें भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज कराई। एसपी बस्तर से मुलाकात की है और भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज पुराने मामलों में अब तक कोई कार्रवाई नहीं होने पर सवाल किया है।
अब लड़ाई ठीक रहेगी। भाजपा संगठन के नये प्रभारी जिस तेवर के लिये रायपुर में पार्टी नेताओं को तैयार कर रहे थे वह बस्तर में दिखने लगा है।
मेगा जागरुकता अभियान भी जरूरी
21 जून को पूरे देश में कोविड टीकाकरण का मेगा अभियान शुरू हुआ। देशभर में एक ही दिन में 84 लाख लोगों को टीका लगाने का रिकॉर्ड बना। छत्तीसगढ़ में भी करीब 1 लाख लोगों को एक ही दिन में टीका लगाने का रिकॉर्ड रहा। छत्तीसगढ़ में अब आने वाले कुछ दिनों तक तक वैक्सीन की कमी होगी, इसकी कोई आशंका दिखाई नहीं दे रही है। ऐसा इसलिये भी है क्योंकि अधिकांश जिलों में पहले दिन वैक्सीनेशन के लिये जो लक्ष्य रखे गये थे वे पूरे नहीं हुए। लक्ष्य प्रत्येक जिले में 15 से 30 हजार तक वैक्सीन लगाने का था लेकिन कहीं 8, 10 तो कहीं 3, 4 हजार लोगों ने ही टीके लगवाये। इसकी वजह कोविड की दूसरी लहर के बाद लोगों का बेफिक्र होते जाना तो है ही, वैक्सीन को लेकर तरह-तरह की भ्रामक सूचनाओं और अफवाहों का खासकर ग्रामीण इलाकों में फैलना भी है। जिस दिन देश में वैक्सीनेशन का रिकॉर्ड बन रहा था, उसी दिन सरगुजा जिले के मणिपुर चौकी के अंतर्गत ग्राम लब्जी में टीकाकरण के लिये गये स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट कर दी और भगा दिया। यह पहली घटना नहीं है। जीपीएम जिले में मितानिन पर जानलेवा हमला भी हो चुका है। पुलिस वालों की समझाइश भी कई जगह काम नहीं कर रही है। रायगढ़ जिले में पुलिस ने सोशल मीडिया पर वैक्सीन को लेकर अफवाह फैलाने वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी किया है। स्थिति ऐसी बन रही है कि टीकों की उपलब्धता की चिंता अगर समाप्त भी हो गई तो जागरुकता की कमी और अफवाहों के कारण वैक्सीनेशन का लक्ष्य हासिल करने में बड़ी दिक्कत होगी। हैरानी यह है कि इस अभियान को जन-प्रतिनिधि, पंचायत प्रतिनिधियों के माध्यम से गांवों में चलाया जा सकता है, पर इस पर अब तक जोर नहीं दिया गया है। वैक्सीनेशन की सफलता पर भीतर कोई राजनीति तो नहीं हो रही है?
धान बर्बाद होने से वेतन पर संकट
धान का बारिश में खराब होना और नुकसान सोसायटियों के खाते में जुड़ जाना। कवर्धा जिले में काम कर रही लगभग सभी 90 समितियों के 400 कर्मचारियों ने इसी वजह से इस्तीफा दे दिया है। उनका वेतन बीते चार महीनों से इस आशंका के चलते रोक लिया गया है कि जो हजारों क्विंटल धान उठाव के चलते खराब हो रहे हैं उसका बोझ सोसाइटियों को उठाना पड़ेगा। हालांकि उनका इस्तीफा अब तक स्वीकार नहीं किया गया है पर यह पहला मौका है जब एक साथ इतने कर्मचारियों ने अपनी नौकरी दांव पर लगा दी है। संग्रहण और खरीदी केन्द्रों में पड़े-पड़े सड़ जाना और सैकड़ों करोड़ के धान का नुकसान होना, यह सिलसिला तो वर्षों से चला आ रहा है। पर कम से कम ऐसी व्यवस्था तो की ही जानी चाहिये कि धान के नुकसान का बोझ समितियों के कर्मचारियों को अपने वेतन रुक जाने के रूप में उठाना पड़े। आखिर वे तो इस बर्बादी के लिये जिम्मेदार हैं नहीं।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस का ट्वीट कौन कर रहा है?
छत्तीसगढ़ कांग्रेस का बलरामपुर जिले के त्रिकुण्डा थाने के अंतर्गत हुई घटना पर ट्वीट न केवल झूठा और हास्यास्पद है बल्कि विशेष संरक्षित पंडो जनजाति के साथ हुए क्रूरतापूर्ण बर्ताव का मजाक उड़ाना भी है। यहां सरपंच पति और उसके 10 सहयोगी ग्रामीणों ने इन आदिवासियों पर तालाब से मछली चुराने का आरोप लगाया फिर उनकी लाठी-डंडों से पिटाई पेड़ से बांधकर की। उन पर 35 हजार रुपये का दंड भी थोपा गया। इस घटना का वीडियो कल वायरल हुआ था।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस की ओर से इस घटना पर ट्वीट करते हुए लिखा गया है कि यह बड़ा प्रश्न है कि घटना हो जाने और आरोपियों को जेल भेजने के एक हफ्ते बाद यह वीडियो अचानक से किन षडय़ंत्रकारियों ने सरकार को बदनाम करने की मंशा से जारी कर दी? वे कौन लोग हैं जो आदिवासियों के बीच डर फैलाना चाहते हैं, जिससे नक्सलियों को बल मिले, इसके पीछे कौन ताकतें हैं?
ट्वीट में यह बात झूठी है कि एक सप्ताह पहले आरोपियों की गिरफ्तारी कर ली गई। पुलिस की प्रेस नोट 21 जून को जारी हुई है। इसमें बताया गया है कि घटना की रिपोर्ट 21 जून को दर्ज कराये जाने के 24 घंटे के भीतर आरोपियों को अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम और अन्य धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया। पुलिस प्रेस नोट में साफ लिखा गया है कि आरोपियों ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाने पर जान से मारने की धमकी दी थी। आरोपी पक्ष काफी डरे हुए हैं, आतंकित हैं। इस कारण उन्होंने घटना के एक सप्ताह बाद रिपोर्ट लिखाई।
दूसरी बात, यह ट्वीट उन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सच्चाई उजागर करने वालों को डरा भी रहा है। यदि कोई पेड़ से बांधकर लाठी डंडों से पीटे और पीडि़त एक सप्ताह तक डर के मारे पुलिस तक नहीं पहुंच पाये तो यह तो सरकार, प्रशासन और पुलिस पर भरोसे का ही सवाल है। क्या छत्तीसगढ़ कांग्रेस की ओर से अधिकारिक ट्वीट करने वाले के दिमाग में यह ख्याल नहीं आया? ट्वीट करने वाले को इस वीडियो से नक्सली पैदा होने का खतरा दिखाई दे रहा है। तो, क्या अगला कदम यह होगा कि वीडियो फैलाने वाले पर छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा कानून लगा दिया जायेगा?
अजय चंद्राकर के तेवर
भाजपा कार्यसमिति में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के भाषण की राजनीतिक हलकों में जमकर चर्चा है। वैसे तो शिव प्रकाश के हवाले से मीडिया में काफी कुछ बात आई, लेकिन बैठक में मौजूद भाजपा के लोग इससे इंकार कर रहे हैं। मगर अजय चंद्राकर के भाषण तो मीडिया में ज्यादा नहीं आई, लेकिन पार्टी के लोगों की जुबान पर है। अजय ने साफ तौर पर कह दिया कि जब तक मुखर नहीं रहेंगे, प्रदेश में सरकार की कल्पना करना भी बेमानी है।
उन्होंने कहा कि लड़ाई के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की जरूरत है। अजय ने सीधे-सीधे पूछ लिया कि कितने लोग सीएम के खिलाफ सीधे मोर्चा खोलने के लिए तैयार हैं? कार्यसमिति के ज्यादातर सदस्यों ने हाथ बांधे रखा। अजय को पार्टी के भीतर अपेक्षाकृत भले ही भरपूर समर्थन नहीं मिल रहा, लेकिन वे अकेले ही सोशल मीडिया प्लेटफार्म से लेकर विधानसभा तक सरकार के खिलाफ मुखर हैं। सदन के भीतर उनकी तेज आवाज से बगल में बैठने वाले नारायण चंदेल भी कई बार परेशान हो जाते हैं।
बडग़ैया को प्रमोशन!
सीसीएफ एसएसडी बडग़ैय्या को एपीसीसीएफ पद देने का प्रस्ताव है, और इसके लिए केन्द्र सरकार को लेटर लिखा गया है। वैसे तो एपीसीसीएफ के रिक्त पदों पर पदोन्नति के लिए केन्द्र से अनुमति की जरूरत नहीं होती है। मगर बडग़ैय्या का केस थोड़ा अलग है। पिछली सरकार ने उन्हें वीआरएस देने की अनुशंसा कर दी थी। मगर केन्द्र ने कुछ बिन्दुओं पर जानकारी मांग ली थी। इसके बाद प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ा। बाद में सरकार ने उन्हें प्रमोट भी कर दिया। अब जब दोबारा प्रमोशन की फाइल चल रही है, तो केन्द्र से अनुमति मांगी गई है। देखना है कि अनुमति कब तक मिल पाती है।
सिलगेर के लोगों को न्याय दिलाने की बात
छत्तीसगढ़ सरकार में बस्तर के एकमात्र मंत्री कवासी लखमा का कद प्रभारी मंत्री के रूप में और बढ़ गया। अब उनके पास बस्तर के 9 विधानसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी है। मीडिया से बातचीत में उनका यह स्वीकार करना कि सिलगेर की घटना का दुख है, दुबारा ऐसी घटना कभी नहीं होनी चाहिये, उल्लेखनीय है। पर, सिलगेर को लेकर आंदोलन जारी है। बस्तर के बाकी इलाकों के लोग भी रैलियां निकाल रहे और घेराव कर रहे हैं। वे ऐसे पोस्टर लेकर चल रहे हैं जिसमें सांसद, विधायकों को श्रद्धांजलि दे दी गई है। अलग बस्तर राज्य की मांग भी की जा रही है। मंत्री कहते हैं कि इस इलाके के निवासियों को पट्टा, साफ पानी, स्वास्थ्य सुविधा आदि कैसे मिले, यह देखना जरूरी है। जिस जमीन पर फोर्स कैंप बना रही थी वह आदिवासियों की है भी या नहीं यह भी तय नहीं हो पाया है। मंत्री खुद मान रहे हैं कि पटवारी वर्षों से इन गांवों में नहीं पहुंचे। वे सिंगारम का भी जिक्र कर रहे हैं कि वहां 19 निर्दोष आदिवासियों को मार डाला गया था। अपने क्षेत्र से हर बार चुनाव जीतने वाले लखमा के लिये जरूरी है कि बस्तर के लोगों के साथ नजर आयें इसलिये उनके दुख-दर्द में शामिल होने का आभास कराना चाहते हैं। पर, क्या आदिवासियों की जान के बदले पट्टा देने या स्वास्थ्य की सुविधा मिल भी गई तो उसको न्याय कहा जायेगा?
किसका टाइम आएगा?
मोदी कैबिनेट में जल्द फेरबदल के आसार हैं। चर्चा है कि छत्तीसगढ़ से कम से कम एक मंत्री बनाया जा सकता है। कुछ सांसद इसके लिए अपने संपर्कों के जरिए प्रयास भी कर रहे हैं। प्रदेश से एकमात्र मंत्री रेणुका सिंह आस में पिछले दो हफ्ते से दिल्ली में ही डटी हैं। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से अकेले में मुलाकात की खबर है।
कुछ लोगों का अंदाजा है कि रमन सिंह, दुर्ग सांसद विजय बघेल का नाम सुझा सकते हैं। दिल्ली से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय मंत्री बनने की रेस में सबसे आगे हैं। यही नहीं, बिलासपुर सांसद अरुण साव, और रायपुर सांसद सुनील सोनी का नाम भी चर्चा में है।
सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में रमेश बैस, और दिलीप सिंह जूदेव को मौका मिला था। इसके बाद छत्तीसगढ़ के एक ही मंत्री लिए जाते रहे हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी विष्णुदेव साय अकेले मंत्री थे। अब चूंकि प्रदेश में सरकार नहीं है, इसलिए उम्मीद है कि एक से अधिक को जगह मिल जाए।
रेल का समीकरण
राज्य बनने के बाद सरगुजा के भाजपा सांसद रेल सुविधाओं के विस्तार पर जोर देते रहे हैं। नंदकुमार साय की इच्छा थी कि रेल लाइन के जरिए अंबिकापुर, झारखंड, और ओडिशा से जुड़ जाए। मुरारीलाल सिंह, और कमलभान सिंह भी रेल सुविधाओं के विस्तार के लिए प्रयासरत रहे। मगर उनके प्रस्तावों को गौर नहीं किया गया। रेणुका सिंह ने रेल सुविधाओं को बढ़ाने के लिए एक नया दांव चला है।
उन्होंने सारे पुराने प्रस्ताव से परे अंबिकापुर को रेणुकूट से जोडऩे की मांग की है। यूपी के सोनभद्र जिले का रेणुकूट एक बड़ा स्टेशन है, और यहां तक रेल सुविधा शुरू होने से अंबिकापुर से बनारस तक का सफर आसान हो जाएगा। और इससे व्यापार में भी बढ़ोत्तरी होगी। बनारस, पीएम का संसदीय क्षेत्र है, और यहां के विकास कार्यों को लेकर केन्द्र सरकार संवेदनशील रहती है। रेणुका से जुड़े लोगों को उम्मीद है कि कम से कम बनारस के नाम से रेल सुविधा बढ़ सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी के फोन के नाम पर
सरकारी नौकरी का आकर्षण ऐसा होता है कि लोग आसानी से ठगी के शिकार हो जाते हैं। जो लोग ठगी करते हैं उनके पास मंत्रियों व शीर्ष अधिकारियों के लेटर हेड होते हैं। कई मोबाइल फोन होते हैं। अच्छे कपड़े और अच्छी गाडिय़ों में घूमते हैं और दफ्तर भी ऐसा बनाकर रखते हैं कि लोगों को उनकी ऊंची पहुंच का विश्वास बना रहे। सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले के अंतर्गत शंकरगढ़ थाने में इस महीने की शुरुआत में नौकरी के नाम पर ठगी के शिकार हुए कुछ पीडि़तों ने शिकायत दर्ज कराई। मामला करोड़ों की ठगी है और शिकार लोगों की संख्या 80 के आसपास हो सकती है। हालांकि जिन लोगों ने पुलिस में शिकायत की, उन्होंने अपनी गंवाई हुई रकम 28 लाख रुपये ही बताई है।
सामने यह बात आई है कि इसमें आरोप उस शख्स पर भी है जिसके पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बीते साल फोन आया था। पिछले साल इस घटना की सरगुजा की मीडिया में खूब चर्चा भी हुई। इस फोन काल के बाद उस शख्स का रुतबा एकाएक बढ़ गया और उन्हें लोग ऊंची पहुंच वाले मानने लग गये। प्रधानमंत्री के एक फोन से उस व्यक्ति के दिन तो फिर गये पर उनके नाम पर ली गई राशि से कई पीडि़त अपनी जमीन जायजाद, नौकरी के लालच में गंवा डाले, या कर्जदार बन गये। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री का फोन, वाले रुतबे की वजह से ही पुलिस भी शिकायत की आगे जांच करने में झिझक रही है। एक पखवाड़े से अधिक हो गये, पुलिस की कोई कार्रवाई दिखाई नहीं दे रही है।
ढाई साल पूरे होने के बाद की चर्चा
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री और कई मंत्रियों ने ढाई-ढाई साल के फार्मूले पर बार-बार सफाई दी। पर कुछ होने वाला तो नहीं, इसे लेकर जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में चर्चा चली हुई थी। भाजपा ने तो कह दिया था कि 17 जून को कुछ बड़ा होने वाला है। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की ओर से भी आरोप लगाये गये। 17 जून और उसके तीन दिन बाद तक कुछ नहीं हुआ। 20 को बदलाव हुआ। कुछ बड़ा सा। जिलों में प्रभारी मंत्रियों की सूची देखिये, किसका वजन बढ़ा, किसका कद घट गया यह समझने के लिये दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं डालना पड़ेगा। अब ज्यादातर चर्चा इस फेरबदल की ही हो रही है। यह भी निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि आलाकमान ने ढाई साल पूरा होने के बाद मुख्यमंत्री को ज्यादा फ्री कर दिया है।
उत्कृष्ट विद्यालय की शुरुआती अंग्रेजी
स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूलों का इन दिनों बड़ा क्रेज है। इन स्कूलों की बिल्डिंग, सीटिंग अरेंजमेंट, स्मार्ट क्लासेस, स्मार्ट लैब, प्ले ग्राउंड का लोगों में आकर्षण बना हुआ है। महंगे पब्लिक स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावकों को यह रौनक भा रही है। यही वजह है कि ज्यादातर स्कूलों में भर्ती के लिये निर्धारित सीटों से तीन-चार गुना तक आवेदन आये हैं। पर एक शंका बहुत लोगों के मन में बैठी हुई है कि जैसी बिल्डिंग, जैसा लैब दिखाई दे रहा है, क्या पढ़ाई का स्तर भी उसी तरह ऊंचा रहेगा? इस आशंका को तब और बल मिल गया जब रायपुर के जिला शिक्षा अधिकारी की पोर्टल पर शिक्षकों की भर्ती के लिये ऑनलाइन आवेदन मंगाये गये। जो आवेदन पत्र भरना था, उसमें अंग्रेजी के साधारण से शब्दों फादर, रेसिडेंसियल जैसे शब्दों का गलत व्याकरण था। अंग्रेजी स्कूल के लिए यह स्थिति हास्यास्पद हो गई। यह खबर मीडिया में आ गई तब अधिकारियों का ध्यान गलती पर गया। अब आनन-फानन गलतियों को सुधार लिया गया है। मान कर चलें कि ये लोग भी अंग्रेजी अभी सीख रहे हैं। लापरवाही से शुरू में गलती हो गई होगी, पर धीरे से स्कूल को नाम के अनुरूप उत्कृष्ट बनाया जा सकेगा।
एक जैसे नहीं होते सब अधिकारी
कोविड लॉकडाउन के दौरान सूरजपुर जिले में बड़े प्रशासनिक अधिकारियों की जो अप्रिय छवि बन गई थी, ऐसा लगता है उसे ठीक करने के लिये नये कलेक्टर गौरव सिंह चिंतित है। शुक्रवार को वे प्रतापपुर इलाके के दौरे पर गये थे। जब लौट रहे थे, रास्ते में एसईसीएल का एक कर्मचारी घायल अवस्था में सडक़ पर पड़ा हुआ था। कलेक्टर ने तुरंत गाड़ी रुकवाई। घायल को अपनी गाड़ी में बिठा लिया और उसे लेकर भटगांव के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंच गये। अस्पताल पहुंचाना भी काफी था, पर वे घायल कर्मचारी के प्राथमिक उपचार तक वहीं रुके। इसके बाद ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर को उन्होंने ठीक तरह से उपचार के लिये फोन किया। एसईसीएल कर्मचारी की हालत गंभीर ही थी। प्राथमिक उपचार के बाद उसे अम्बिकापुर रेफर करना पड़ा। प्राय: बड़े प्रशासनिक अधिकारी ऐसी घटनाओं को अनदेखा कर देते हैं या फिर सम्बन्धित को फोन करने के बाद अपनी जवाबदारी पूरी समझ लेते हैं, पर, वहां के पहले खौफ खा चुके लोग कलेक्टर की संवेदनशीलता की सराहना कर रहे हैं।
अफसरों की वफादारी में फंसे
पुलिस महकमे के दो बड़े अफसरों के झगड़े का दंश दो हवलदारों को झेलना पड़ रहा है। दोनों अफसर, एक के बाद एक रायपुर के कप्तान रहे हैं। वे यहां पदस्थ थे तो दोनों हवलदारों के संपर्कों का खूब इस्तेमाल किया। इससे अफसरों की छवि भी चमकी। बाद में वे प्रमोट होकर पीएचक्यू गए, तो दोनों ही हवलदार अफसरों के आंखों की किरकिरी बन गए।
दरअसल, दोनों अफसर एक दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं। दोनों अफसरों को शक रहा है कि हवलदार उनके विरोधी के करीबी हैं। और इसका नतीजा यह रहा कि पिछली सरकार में एक अफसर पॉवरफुल हुए, तो दोनों हवलदारों की क्लॉस लगा दी, और उन्हें निलंबित कर दिया। बाद में हवलदार किसी तरह बहाल हुए, तो पुलिस लाइन में अटैच कर दिया।
सरकार बदली तो दूसरा अफसर पॉवरफुल हो गया, और दोनों हवलदारों को अपने दिन फिरने की उम्मीद जगी। मगर हवलदारों को उस वक्त झटका लगा जब पॉवरफुल अफसर ने उन्हें अपने विरोधी अफसर का ही करीबी बता दिया। दोनों हवलदारों के फील्ड में पोस्टिंग के प्रस्ताव निरस्त कर दिए। अब हवलदार, दोनों अफसरों के रिटायरमेंट की प्रतीक्षा कर रहे हैं। दोनों ही अफसर 2023 तक रिटायर हो जाएंगे। इसके बाद ही हवलदारों का भाग्योदय हो सकता है। तब तक तो उन्हें इंतजार के अलावा कोई और चारा नहीं दिख रहा है।
ननकीराम ने तारीफ की या तंज कसा?
भाजपा विधायक व पूर्व गृह मंत्री ननकीराम कंवर जब कुछ बोलते हैं तो पार्टीलाइन की बहुत ज्यादा परवाह नहीं करते। वे हैं भी इतने सीनियर कि पार्टी के दूसरे नेता भी न तो उन्हें नजरअंदाज कर पाते न ही उनका विरोध कर पाते। भाजपा शासनकाल में उन्होंने कितनी ही बार शराबबंदी को लेकर आवाज उठाई। आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग को भी उठाया करते थे।
फिलहाल चर्चा में उनका मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ हुआ संवाद है। मौका था कोरबा जिले में विकास कार्यों के वर्चुअल उद्घाटन का। उन्होंने इस दौरान बघेल को दो-दो बार प्रधानमंत्री बनने की शुभकामनायें दीं। बघेल ने उनसे कहा- ननकी भैया, मोदी जी सुन रहे हैं। मंत्री रविन्द्र चौबे का कहना है कि बघेल सरकार में हो रहे विकास कार्यों से भाजपा के सांसद विधायक भी खुश हैं। यह बात अलग है कि कंवर ने मुख्यमंत्री से प्रशासन के कामकाज के तरीके को लेकर कुछ शिकायतें भी की थीं।
अब भाजपा नेताओं का कहना है कि यह तो तंज कसा गया है। कंवर कह रहे थे कि आप मुख्यमंत्री नहीं प्रधानमंत्री बन जायें पर काम अच्छे से करवायें।
वक्त से पहले मिला तोहफा
सरकार ने एक साथ 56 अधीक्षक-तहसीलदारों को प्रमोशन का तोहफा दिया है। ये तहसीलदार 10 साल की सर्विस में ही डिप्टी कलेक्टर बन गए। आमतौर पर नायब तहसीलदार से डिप्टी कलेक्टर तक पहुंचने में कम से कम 15 साल का वक्त लगता है। मगर उनके समय पूर्व प्रमोशन देने के लिए नियमों में संशोधन होता रहा। पिछली सरकार में राजस्व मंत्री रहे प्रेमप्रकाश पाण्डेय ने उदारता दिखाई, और नई तहसीलों के गठन के बाद रिक्त पदों को भरने के लिए नायब तहसीलदारों के प्रमोशन के लिए ठोस पहल की थी। इसके बाद प्रमोशन का रास्ता खुल गया, और ये सभी नायब तहसीलदार, उप तहसीलदार, और फिर तहसीलदार हो गए, और अब डिप्टी कलेक्टर बन गए। इनमें से ज्यादातर डिप्टी कलेक्टरों को मनचाही पोस्टिंग भी मिल गई है।
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असम के बाद अब यूपी
कांग्रेस हाईकमान छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को एक के बाद एक राज्यों में चुनाव प्रचार की कमान सौंप रहा है। असम के बाद यूपी चुनाव की तैयारियों की जिम्मेदारी भी यहां के नेताओं को दी गई है। सीएम के संसदीय सलाहकार राजेश तिवारी यूपी के प्रभारी सचिव भी बनाए गए हैं। मगर यूपी में पार्टी का हाल इतना बुरा है कि ज्यादातर नेता वहां जाने से कतरा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के कुछ नेताओं को पंचायत चुनाव की रणनीति बनाने यूपी भेजा गया था, लेकिन इन नेताओं के अनुभव इतने खराब रहे कि वे विधानसभा चुनाव तैयारियों के लिए वहां जाने से बचने का बहाना ढूंढ रहे हैं। एक नेता को यूपी के एक बड़े जिले का प्रभारी बनाया गया था। उस जिले में 83 जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव थे। पार्टी नेता को यहां से प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया समझाकर भेजा गया था। वहां जाकर पता चला कि प्रत्याशी के लिए आवेदन ही नहीं आ रहे हैं।
कई तो कांग्रेस का समर्थन लेने से परहेज करने लगे हैं। ले-देकर पार्टी वहां 56 प्रत्याशियों की घोषणा कर पाई। इनमें से कांग्रेस समर्थित सिर्फ एक ही प्रत्याशी को जीत हासिल हुई। तीन सीटों पर कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी दूसरे स्थान पर, और पांच जगहों पर तीसरे स्थान पर रहे। यह भी दिलचस्प है कि यूपी में कांग्रेस से जुड़े लोग छत्तीसगढ़ के नेताओं का इस उम्मीद से खूब सत्कार करते हैं कि शायद फंड लेकर आए होंगे।
लोकसभा चुनाव में तो राहुल गांधी की सीट के एक प्रमुख पदाधिकारियों को यहां के नेताओं ने चुनाव प्रचार-नुक्कड़ सभा की तैयारियों के लिए पांच लाख दिए थे। पैसा मिलने के बाद पदाधिकारी ऐसा गायब हुआ कि यहां के नेता उसे ढूंढते रहे। आखिरकार यहां के नेताओं को कुछ स्थानीय लोगों को साथ लेकर चुनाव प्रबंधन खुद संभालना पड़ा।
असम चुनाव में भी छत्तीसगढ़ के सी एम भूपेश बघेल को जिम्मा दिया गया था, वहाँ वोट भी बढ़े, सीटें भी बढ़ीं, लेकिन सरकार नहीं बन पायी। एक बड़े नेता का कहना है कि भूपेश ने उतनी मेहनत न झोंकी होती तो हो सकता है कि असम में भी पार्टी का हाल बंगाल सरीखा हो गया होता।
भाजपा से घरोबा भारी
खबर है कि एक दिग्गज भाजपा नेता से नजदीकियां राज्य सेवा के एक पुलिस अफसर को भारी पड़ सकता है। अफसर प्रतिनियुक्ति पर परिवहन विभाग में हैं। पिछले दिनों दिग्गज नेता ने अफसर को बुलवाया, तो वे दौड़े चले गए। चर्चा है कि नेताजी ने अफसर से कुरेद-कुरेद कर परिवहन-गतिविधियों की जानकारी ली। दिग्गज नेता से मिलने की खबर विभाग के कुछ लोगों तक पहुंच गई है।
सुनते हैं कि विभाग के एक प्रमुख ने अफसर को बुलाकर दिग्गज नेता से मेल मुलाकात पर जानकारी चाही। अफसर ने तो सौजन्य मुलाकात बताकर बात को टाल दिया, लेकिन उन पर विभाग के आंतरिक मसलों को उजागर करने का शक पैदा हो गया है। वैसे भी परिवहन को आबकारी विभाग की तरह मलाईदार महकमा माना जाता है, और इसमें पोस्टिंग के लिए हर स्तर पर मारामारी रहती है। स्वाभाविक है कि वहां के जिम्मेदार लोगों को पसंद नहीं है कि बात बाहर जाए। देखना है कि अफसर का आगे क्या कुछ होता है।
इन अस्थियों को मोक्ष मिल पायेगा?
यूपी और बिहार में कोविड-19 से मौत के बाद जिन लोगों के पास लकडिय़ां खरीदने के लिये पैसे नहीं थे, उन्होंने गंगा नदी में शवों को बहा दिया या फिर दफना दिया। ड्रोन से ली गई तस्वीरों में प्रयागराज, कानपुर, बक्सर आदि में सैकड़ों की संख्या में शव दिखे। कई शवों के कपड़े कुत्ते नोचते दिखे। दोनों राज्यों की सरकारों ने यह सफाई देने की कोशिश की ऐसा पहले से होता आ रहा है। अपने राज्य में ऐसी समस्या नहीं आई। ज्यादातर स्थानीय निकायों में अंत्येष्टि पर आने वाले खर्च को वहन करने का निर्णय लिया था। यहां रिश्तों की परख दूसरे तरीके से हो रही है। बिलासपुर, रायपुर जैसी जगहों में श्मशान गृहों में शवों के जलाने के बाद नाम-पते लिखी हुई अस्थियां लॉकरों में कैद है और उन्हें लेने के लिये कोई करीबी नहीं पहुंच पा रहा है। यहां अस्थियों के विसर्जन के लिये प्रयागराज जाने का चलन रहा है। पर इस बार लोग कोरोना और लॉकडाउन के कारण यात्रा से बच रहे हैं और राजिम, अमरकंटक आदि जगहों को चुन रहे हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं हो वे आसपास की नदियों में भी विसर्जन के लिये नहीं जा पा रहे हों, पर यहां तो लॉकरों में दो-तीन सौ अस्थियों का कोई दावेदार नहीं आ रहा है। आश्चर्य है कि कई लॉकरों में जेवर और मोबाइल फोन भी बंद हैं। कुछ समाजसेवियों ने आगे आकर इन अस्थियों का परम्पराओं के मुताबिक विसर्जन करने की पहल की है। ऐसा करने के लिये कुछ प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन करना होगा। आसार बन रहे हैं कि इस माह के अंत तक इन अस्थियों के विसर्जन की व्यवस्था हो जाये।
दो गज की दूरी और अपराधी
कोरोना काल में पुलिस अजीब सी दुविधा में गुजर रही है। प्रदेश के कई थानों को कोरोना की पहली में कंटेनमेन्ट जोन बनाना पड़ा। अनेक थानेदार और पुलिस जवान कोरोना संक्रमित हो गये। कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। कोरोना संक्रमण बचने के लिये जरूरी है कि सोशल डिस्टेंस का पालन किया जाये। पर पुलिस के लिये यह मुमकिन नहीं है। अपराधियों को गिरफ्त में लेने के लिये दूरी का पालन तो हो ही नहीं सकता। बलौदाबाजार की घटना अपने आपमें अलग तरह का है। यहां थानेदार से छुड़ाकर कोरोना संक्रमित भाग खड़े हुए। यही नहीं उन्होंने थानेदार की पिटाई भी कर दी। इस लापरवाही के लिये उनको लाइन हाजिर भी कर दिया गया। अब इन कोरोना संक्रमितों को पकडऩे के लिये 50 जवानों को लगाना पड़ा। पांचों कोरोना संक्रमित तो पकड़ लिये गये पर पुलिस के चार जवान भी कोरोना पॉजिटिव निकल आये। कानून व्यवस्था बनाये रखने के दौरान पुलिस कोरोना से कैसे बचकर रहे, अपने आप में यह एक बड़ा सवाल है। ([email protected])
प्रमोशन का मौसम
आखिरकार रिटायरमेंट के पहले सीनियर एपीसीसीएफ जेएसीएस राव पीसीसीएफ हो जाएंगे। राव 30 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। उनकी पदोन्नति के लिए सीएस ने फाइल सीएम को बढ़ा दी है। सीएम के अनुमोदन के बाद कमेटी की बैठक होगी, और कुछ दिनों के लिए राव पीसीसीएफ (वर्किंग प्लान) बन जाएंगे। राव के रिटायरमेंट के तुरंत बाद जुलाई के पहले हफ्ते में पीसीसीएफ के खाली पद के लिए डीपीसी होगी। इसमें 87 बैच की आईएफएस वीएस उमा देवी, और के मुरुगन को पदोन्नति दी जा सकती है। उमादेवी केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं, लिहाजा उन्हें प्रोफार्मा पदोन्नति दी जाएगी। उमादेवी, छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस, और केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य सचिव बीवी सुब्रमण्यम की पत्नी हैं, और वे अतिरिक्त सचिव के पद पर कार्यरत हैं।
ऐसे हो रही है जंगल की रखवाली..
सूरजपुर जिले के प्रतापपुर वन परिक्षेत्र में एक हाथी की मौत का पता दस दिन बाद चला। कुछ दिन पहले अचानकमार अभयारण्य में एक बाघिन को घायल पाया गया था। दोनों ही मामलों में वन विभाग को सूचना ग्रामीणों से मिली। बाघिन को तो बचा लिया गया है पर यदि समय रहते हाथी के बीमार या घायल होने का पता चल जाता तो शायद उसकी जान भी बचाई जा सकती थी। वन विभाग के कर्मचारियों, अधिकारियों की लापरवाही का यह एक बड़ा मामला है। यहां तैनात बीट गार्ड, फारेस्ट गार्ड, रेंजर, जंगल की किस तरह निगरानी कर रहे हैं यह इन घटनाओं से मालूम होता है।
पढ़ाई भी आला दर्जे की होगी?
उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम विद्यालय सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं में से एक है। यह तस्वीर मुंगेली की है जिसकी बिल्डिंग तो शानदार है, उम्मीद यह करनी चाहिये की पढ़ाई का स्तर भी बिल्डिंग की तरह आला दर्जे की होगी। इसी उम्मीद में जितनी सीटें हैं उससे 4 गुना अधिक आवेदन इन स्कूलों में प्रवेश के लिये आये हैं। इस तस्वीर को आईएएस अवनीश शरण आईएएस ने ट्विटर पर शेयर किया है। ([email protected])
कांग्रेस और छत्तीसगढ़
कांग्रेस में एक बड़े बदलाव के संकेत हैं। चर्चा है कि प्रदेश के एक बड़े नेता को राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है। इससे पहले सिर्फ दिवंगत मोतीलाल वोरा ही प्रदेश के अकेले नेता थे, जो कि पार्टी संगठन के इस अहम पद पर रहे। वैसे तो अजीत जोगी को भी राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में दायित्व दिया गया था। वे राष्ट्रीय कार्यसमिति के साथ-साथ अनुसूचित जनजाति विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। मगर पार्टी संगठन में राष्ट्रीय महासचिव का पद अहम माना जाता है।
जुलाई में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ-साथ संगठन में नए चेहरों को जगह मिल सकती है। पार्टी हल्कों में यह चर्चा है कि राष्ट्रीय स्तर में फेरबदल के बाद छत्तीसगढ़ कैबिनेट में भी बदलाव हो सकता है। फिलहाल पार्टी के लोगों की निगाहें राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले संभावित बदलाव पर टिकी हैं ।
अब सोनू सूद से मदद की उम्मीद
ये बीजापुर की सरोजनी साहू हैं नक्सल पीडि़त हैं। मां की पहले ही मौत हो चुकी है, पिता नक्सल हमले में मारे गये। जब इनके पिता की मौत हुई थी तो एसपी और बड़े-बड़े नेताओं ने आकर उसे सलामी दी थी। उसे लगा कि अब दिन फिर जायेंगे। घटना 2007 की है। आज 14 साल बीत गये उसे कोई मदद नहीं मिली है, मजदूरी कर रही है। यह हैरानी की बात है कि राज्य सरकार की तरफ से उसे कोई सहायता नहीं मिली। जिन लोगों ने उसके पिता को आकर सलामी दी वे भी दुबारा लौटकर नहीं आये। अब उसने सोनू सूद से मदद मांगी है। उसे कोई छोटी-मोटी मगर स्थायी नौकरी चाहिये। या फिर कोई पक्का रोजगार ही मिल जाये।
-शैलेष पाठक भी मैदान में
छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन, और सदस्य के चयन की प्रक्रिया चल रही है। रविवार, या सोमवार को नियुक्ति आदेश जारी कर दिए जाएंगे। जिन अफसरों ने आवेदन किया है उनमें पूर्व आईएएस शैलेष पाठक भी हैं। 88 बैच के आईएएस शैलेष पाठक ने नौकरी छोड़ दी थी, और निजी कंपनी में चले गए थे। वर्तमान में भी एक निजी कंपनी के सीईओ हैं। पाठक मिलनसार अफसर रहे हैं, और मौजूदा सीएस अमिताभ जैन से उनके मधुर संबंध हैं।
पाठक के अलावा पूर्व सीएस, और सहकारिता आयोग के चेयरमैन सुनील कुजूर भी दावेदार हैं। पॉवर कंपनी के पूर्व चेयरमैन शैलेन्द्र शुक्ला ने भी आवेदन दिया है। मगर सवाल यह है कि क्या सीएम आईएएस बिरादरी से ही चेयरमैन बनाएंगे?
सुनते हैं कि इस बार तकनीकी विशेषज्ञ को चेयरमैन का दायित्व सौंपा जा सकता है। बिजली विभाग के रिटायर्ड अफसर इसके लिए दबाव भी बनाए हुए हैं। आयोग के गठन के बाद से सिर्फ मनोज डे ही अकेले चेयरमैन रहे, जो कि तकनीकी विशेषज्ञ थे। बाकी सभी चेयरमैन आईएएस रहे। सदस्य तो वैसे भी तकनीकी विशेषज्ञ रहते हंै। मौजूदा सदस्य अरूण कुमार शर्मा एनटीपीसी के ईडी रहे हैं। चर्चा है कि इस बार छत्तीसगढ़ पॉवर कंपनी के ही किसी रिटायर्ड अफसर को मौका मिल सकता है।
-बाबा के खिलाफ एफआईआर
बाबा रामदेव के ख़िलाफ सिविल साइंस थाने में एफआईआर दर्ज की गई है। क्या लगता है, बाबा को बयान देने के लिये यहां आना पड़ेगा? शायद नहीं। संबित पात्रा के खिलाफ़ भी तो रिपोर्ट दर्ज की गई थी, वे आये क्या? बचने के रास्ते अदालती कार्रवाई में अनेक हैं। थोड़ी मशक्कत करनी होगी, रास्ता निकल जायेगा। ([email protected])
एक साथ इतनी शिकायतें!
खबर है कि रायपुर के एक कांग्रेस नेता से उनकी ही पार्टी के कई नेता खफा हैं। सोमवार की रात प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया से मिलने आए पार्टी नेताओं ने मेयर की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए, और उनकी जमकर शिकायत की।
पार्टी के एक सीनियर नेता ने सबसे पहले इस नेता का शिकायती लहजे में जिक्र छेड़ा, तो कमरे में मौजूद बाकी नेता भी शुरू हो गए। उन्होंने भी खूब आलोचना की।
बताते हैं कि पार्टी नेताओं ने यहां तक कह दिया कि इस नेता की वजह से भाजपा को रायपुर में अपनी पकड़ बनाने का मौका मिल रहा है। यदि उन्हें कंट्रोल नहीं किया गया, तो रायपुर की चारों विधानसभा सीट पर कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है। एक साथ पार्टी के सीनियर नेताओं द्वारा एक नेता के खिलाफ इतनी शिकायत सुनकर पुनिया भी हक्का-बक्का रह गए। उन्होंने नाराज नेताओं से सिर्फ इतना ही कहा कि जल्द ही वे इसको लेकर ऊपर बात करेंगे।
केंद्र सरकार में छत्तीसगढ़ी
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पहली बार केन्द्र सरकार में एक साथ चार आईएएस अफसर केंद्र सरकार में एडिशनल सेक्रेटरी के पद पर काबिज हैं। 93 बैच के अमित अग्रवाल वित्त, 94 बैच के विकासशील स्वास्थ्य, रिचा शर्मा पर्यावरण, और निधि छिब्बर रक्षा विभाग में एडिशनल सेक्रेटरी हो गई हैं।
छत्तीसगढ़ मूल के असम कैडर के अफसर 93 बैच के विवेक देवांगन भी ऊर्जा मंत्रालय में एडिशनल सेक्रेटरी हैं। विवेक प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ में रह चुके हैं। वे सरगुजा, और रायपुर कलेक्टर भी रहे हैं। दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ कैडर के 88 बैच के आईपीएस अफसर रवि सिन्हा रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग (रॉ) में एडिशनल डायरेक्टर हो चुके हैं। सिन्हा राज्य के अकेले आईपीएस हैं, जो कि केन्द्र सरकार में डीजी के पद के लिए इंपैनल हुए हैं।
सुनते हैं कि रवि सिन्हा को यहां लाने पर विचार हुआ था। सिन्हा ने करीब डेढ़ साल पहले सीएम से सौजन्य मुलाकात भी की थी। चर्चा है कि वे यहां आने के उत्सुक भी थे। बताते हैं कि यदि वे यहां आते, तो डीजीपी भी बन सकते थे। रवि सिन्हा रायपुर, और दुर्ग में सीएसपी के पद पर काम कर चुके हैं। मगर दिक्कत यह रही कि केन्द्र सरकार विशेषकर खुफिया एजेंसी रॉ में पदस्थ अफसरों को मूल कैडर में वापस जाने की आसानी से अनुमति नहीं मिल पाती है। कामकाज बेहतर हो, तो अनुमति मिलना नामुमकिन है।
महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस, और सीबीआई के मौजूदा चीफ सुबोध जायसवाल भी रॉ में पदस्थ रहे हैं। उन्हें महाराष्ट्र लाने के लिए तत्कालीन सीएम देवेंद्र फडणवीस को काफी मशक्कत करनी पड़ी, और उन्होंने सीधे पीएम से बात की, तब कहीं जाकर जायसवाल को अपने मूल कैडर में जाने की अनुमति मिल पाई, और फिर वे महाराष्ट्र के डीजीपी बनाए गए थे। महाराष्ट्र, और केंद्र में एक दल की सरकार होने की वजह से संभव हो पाया, लेकिन छत्तीसगढ़ के लिए आसान नहीं था। लिहाजा, बात सिर्फ आपसी चर्चा तक ही सीमित रह गई।
किनको कुछ मिलेगा?
निगम-मंडलों की एक छोटी सूची जल्द जारी हो सकती है। संकेत हैं कि जिन निगम-मंडलों में नियुक्तियां हो चुकी हैं, वहां उपाध्यक्ष-सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी। छह महीने पहले करीब पौने 3 सौ नेताओं को पद देना तय हुआ था, लेकिन सूची जारी नहीं हो पाई है। चर्चा है कि ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन, सीएसआईडीसी, मंडी बोर्ड, और मार्कफेड में नियुक्तियां फिलहाल नहीं होंगी।
अलबत्ता, संचार विभाग-प्रोटोकॉल से जुड़े कुछ और नेताओं को पद मिल सकता है। इनमें सुशील आनंद शुक्ला, सन्नी अग्रवाल, अजय साहू जैसे कुछ नाम चर्चा में हैं। दो पत्रकारों को भी पद देने की चर्चा है। इनमें राजकुमार सोनी, और शेख इस्माइल का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। इससे पहले मनोज त्रिवेदी, और धनवेंद्र जायसवाल को सूचना आयुक्त बनाया जा चुका है। चुनाव तैयारियों में अहम भूमिका निभाने की वजह से संचार विभाग के सदस्यों की काफी पूछपरख हो रही है। वैसे भी पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए कुछ न कुछ करना जरूरी है।
ये दिन फिर कब लौटेंगे?
16 जून वह तारीख है जब गर्मियों की छुट्टी खत्म होती और स्कूल खुल जाते थे। नई किताबें, स्कूल बैग, ड्रेस और साइकिलें लेकर अगली कक्षा में प्रवेश के लिये हंसते, खिलखिलाते और रोते-गाते हुए बच्चों की टोलियां सडक़ों पर निकल पड़ती थीं। माताओं का बच्चों को नहलाना, धुलाना, टिफिन, बैग तैयार करना, एक उत्साहजनक सिरदर्द हुआ करता था। पर यह लगातार दूसरा साल है जब स्कूलों के दरवाजे बच्चों के लिये नहीं खुल पाये हैं। ऑनलाइन कक्षाओं में उनका मन नहीं लग पाया, न ही बिना परीक्षा दिये पास हो जाना भा रहा है।
कोरोना की दूसरी लहर तो कम हो चुकी है पर तीसरी लहर का असर बच्चों पर ज्यादा होने की आशंका कही जा रही है। छत्तीसगढ़ सरकार ने कुछ दिन पहले 16 जून से स्कूलों को खोलने की घोषणा की थी, पर डर का माहौल ऐसा है कि न तो अभिभावक और न ही शिक्षक इसका मन बना पाये हैं।
रहस्यमयी तारीख, 17 जून
वैसे तो तारीख 17 जून का खास महत्व नहीं है पर बदलाव की उम्मीद में बैठे कांग्रेस के कई नेताओं ने इसे वजन दे रखा है। मुख्यमंत्री और उनके करीबी ढाई-ढाई साल के किसी फार्मूले को पूरी तरह नकार रहे हैं पर बाबा और उनके समर्थक न कहते हुए भी हां जैसी बात करते आ रहे हैं। सरकार की ‘विफलता’ पर इन दिनों आंदोलन कर रही भाजपा के नेता हर एक प्रेस कांफ्रेंस, सभा में दावा कर रहे हैं कि 17 जून को बड़ा परिवर्तन होने वाला है। इन सबसे परे ढाई साल पूरे होने के बाद सरकार पर एक दबाव जरूर बनता है कि उसे अब अपने चुनावी वायदों को पूरा करना होगा। संविदा कर्मचारियों को नियमित करना, बेरोजगारों को भत्ता देना, कर्मचारियों को चार निश्चित प्रमोशन देना, शराबबंदी को लागू करना आदि कुछ ऐसे वादे हैं जो कांग्रेस सरकार के गले की फांस बने हुए हैं। संभव है, कोरोना संकट की आड़ लेकर इन वादों को पूरा करने से सरकार पीछा छुड़ाने की कोशिश करे।
रायगढ़ पुलिस की एक पहल
कोरोना महामारी ने पुलिस और आम लोगों के बीच दूरी घटाने में बड़ी भूमिका निभाई है। लोगों को मास्क नहीं पहनने पर टोकने, दुकानों को खुला रखने पर कार्रवाई करने जैसे कुछ ऐसे काम हैं। अलग-अलग जिलों में पुलिस अपने-अपने तरीके से काम कर रही है। रायगढ़ में पुलिस ने एक अनूठा काम शुरू किया है। ऐसे लोग जो खानाबदोश हैं, सडक़ों, झुग्गियों में रहते हैं उनकी तलाश कर उनसे मिलने जा रही है। उन्हें टीकाकरण केन्द्रों में ले जाकर टीके लगवा रही है और साथ ही कोरोना से बचने के लिये मास्क पहनने, सोशल डिस्टेंस बनाये रखने के लिये कहा जा रहा है।
कुर्सी की जगह चेम्बर में तखत
अटल बिहारी बाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति प्रो. अरुण दिवाकर वाजपेयी एक बार फिर चर्चा में हैं। उन्होंने चेम्बर से अपनी कुर्सी हटवा दी है और तखत लगाकर बैठने लगे हैं। इसमें गद्दे और मसनद भी लगे हुए हैं। बताया जाता है कि तीन माह पहले प्रभार ग्रहण करने के बाद ही उन्होंने अधीनस्थों को तखत बनवाने का ऑर्डर दिया था पर कुछ कारणों से इसमें देर हो गई। कुलपति का कहना है कि इसमें बैठकर उन्हें काम करने में अधिक सहूलियत हो रही है। गौरतलब है कि कुलपति ने जब पदभार ग्रहण किया था तो कक्ष के सामने हवन पूजन किया था। कोरोना से बचने का तरीका उन्होंने नीम की पत्तियां चबाना बताया था। उनके कक्ष के बाहर ये पत्तियां लटकी होती थीं और मिलने के लिये जो भी भीतर जाता था उन्हें ये पत्तियां चबानी पड़ती थीं। हालांकि सैनेटाइजर भी गेट पर दिया जाता था, जो अब भी जरूरी है। वैसे इनकी सक्रियता भी कम नहीं है। कोरोना काल में जब यूनिवर्सिटी बंद है लगातार कोरोना के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक क्षेत्र में आये परिवर्तनों पर देश-विदेश के वैज्ञानिकों का वेबिनार करा चुके हैं और यह सिलसिला चल रहा है। सोमवार को जब तखत पर बैठकर उन्होंने पहली बार काम किया तो कर्मचारियों और छात्रों की कई पुरानी मांगों पर फैसला लिया।
प्रमोशन की मिसाल वाला दफ्तर
ज्यादातर सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को क्रमोन्नति-पदोन्नति के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। मगर निगम-मंडलों के कर्मचारी बेहतर स्थिति में होते हैं, और कई निगमों में तो कर्मचारी समय से पहले पदोन्नति पा जाते हैं। ऐसे ही एक मालदार निगम, मंडी बोर्ड में जिस तेजी से कर्मचारियों की पदोन्नति हुई है उससे बाकी निगम, और सरकार के लोग चकित हैं।
मसलन, बोर्ड के एडिशनल एमडी महेन्द्र सिंह सवन्नी के प्रमोशन पर निगाह डालें, तो पता चलता है कि सवन्नी मंडी निरीक्षक के रूप में भर्ती हुए थे। फिर एक के बाद एक प्रमोशन पाते गए, और आज बोर्ड एमडी के बाद दूसरे नंबर पर हैं।
सरकार में आठ साल में प्रमोशन-क्रमोन्नति का नियम है, लेकिन मंडी और कई अन्य बोर्ड में पांच साल में अधिकारी-कर्मचारी पदोन्नति पा जाते हैं। चतुर अधिकारी-कर्मचारी, इससे पहले भी पदोन्नति हासिल कर लेते हैं। महेन्द्र सिंह सवन्नी, भाजपा संगठन में ताकतवर महामंत्री भूपेन्द्र सिंह सवन्नी के भाई हैं।
पिछली सरकार में तो महेन्द्र सिंह सवन्नी की तूती बोलती थी। इस सरकार में भी उनकी हैसियत कम नहीं हुई है। वे विभागीय मंत्री रविन्द्र चौबे के पसंदीदा अफसर माने जाते हैं। बोर्ड के एक और अफसर आर के वर्मा की पदोन्नति भी चर्चा में रही है। वर्मा सहायक ग्रेड-3 के पद पर भर्ती हुए थे। इसके बाद उन्हें एक के बाद एक पदोन्नति मिलती गई, और वर्तमान में डिप्टी डायरेक्टर हो गए हैं। उन्हें ज्वाइंट डायरेक्टर बनाने की तैयारी चल रही है। मंडी बोर्ड में पदोन्नति, कर्मचारी संगठनों के बीच चर्चा का विषय है।
मरकाम के मजे
कांग्रेस के प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीएम भूपेश बघेल ने सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका गांधी के साथ, पुनिया व मोहन मरकाम के जिंदाबाद के नारे लगवाए। कांग्रेस के कई लोग मानते हैं कि मरकाम सबसे मजे में हैं। संगठन के मुखिया होने की वजह से सीएम, और मंत्री उन्हें पूरा महत्व देते हैं। उनकी सिफारिशों का ध्यान रखा जाता है। उनके विधानसभा क्षेत्र कोंडागांव में तो 3 सौ करोड़ के विकास कार्य चल रहे हैं। स्वाभाविक है कि इन सबसे मरकाम संतुष्ट होंगे ही।
जांजगीर का गौठान गायब
जब भाजपा की सरकार थी कांग्रेस के नेता ‘रमन का चश्मा’ पहनकर विकास कार्यों को ढूंढ रहे थे। अब जब कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरे हो चुके हैं भाजपा ने 14 जून से विरोध प्रदर्शन का सिलसिला शुरू किया है। जांजगीर जिले में भाजपा नेताओं ने इसी क्रम में एक गड़बड़ी पकडऩे का दावा किया है। वे दूरबीन लेकर निकले और उस शहर में नगरपालिका की ओर से बनाये गये उस गौठान को ढूंढा जिसका विवरण सरकारी वेबसाइट में है और जियो टैग पर भी दिखाई देता है। यह जगह बीटीआई चौक के पास बताया गया, पर वहां कोई गौठान ही नहीं मिला। गौठानों में अधूरे निर्माण कार्यों की तो शिकायतें कई जगह से आई है पर पूरे गौठान का ही नजर नहीं आना एक सवाल खड़े करता है।
सरसों तेल की कीमत पर प्रतिक्रिया...
सरसों तेल की क़ीमत में भारी इज़ाफ़े से मन प्रसन्न है। हम बस चाहते हैं कि सरसों तेल इतना महंगा हो जाए कि इसकी जगह हम देसी घी इस्तेमाल करने लगें। अडानी के तेल की जगह पतंजलि का घी खऱीदें। इस जेब में जाए या उस जेब में, पैसा जाएगा तो एक ही जगह। बस हमें तेल के साथ घी का विकल्प मिल जाएगा...। ([email protected])