राजपथ - जनपथ
पीडि़तों की मदद के कई और रास्ते
जरूरतमंदों के लिये सरकार की कोई योजना फायदेमंद है तो सरकारें उसे स्वीकार करने में हिचकती नहीं हैं। मनरेगा पर बजट बढ़ाना इसका बड़ा उदाहरण है जिसे कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्मारक बताया था। कोरोना महामारी से जान गवां चुके लोगों के बच्चों को स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी विद्यालयों में प्रवेश का फैसला छत्तीसगढ़ सरकार का एक बड़ा कदम है। यहां जितनी सीटें हैं, उससे दस गुना आवेदन आये हैं। पर बेसहारा हुए बच्चों का प्रवेश निश्चित है। इसी तरह से अनुकम्पा नियुक्ति में 10 प्रतिशत की सीमा को शिथिल करने का फायदा सैकड़ों असमय जान गवां चुके सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को मिलने वाला है।
इन कदमों के बीच मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार का फैसला भी सामने आया है। कोरोना से बेसहारा हुई बड़ी बच्चियों के विवाह का खर्च सरकार ने उठाने निर्णय लिया है। बेसहारा हुए बच्चों के कॉलेज तक की पढ़ाई का पूरा खर्च सरकार ने उठाने की घोषणा की है। इन फैसलों को देखकर छत्तीसगढ़ सरकार भी मदद का दायरा बढ़ा सकती है।
गर्व से बोलो खजाना खाली है..
अब लोग श्रीगंगानगर की ख़बर को पढ़ सुनकर अलर्ट हो गये हैं। यहां भी किसी दिन डीजल का दाम सौ रुपये हो ही जायेगा। केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान की साफगोई की दाद देनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि सरकार का खज़ाना खाली है। इसलिये अभी पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं घटा सकते। सवाल इस पर भी किया जा सकता है। पूछ सकते हैं कि फिर जीएसटी लागू क्यों की। नोटबंदी क्यों कर दी। अर्थव्यवस्था नहीं संभल रही है, हमारे फैसले गलत थे। इस सच्चाई को स्वीकार करने में झिझक हो रही है।
अनुकम्पा में भी उगाही?
अनुकंपा नियुक्ति में अनियमितता की पड़ताल चल रही है। प्रदेश में कोरोना से करीब 9 सौ अधिकारी-कर्मचारियों की मौत हुई है। सरकार ने तो उदारता दिखाते हुए दिवंगतों के आश्रितों को तुरंत नौकरी देने के लिए नियमों में संशोधन भी कर दिया। मगर कई जिलों में अफसरों ने सरकार की मंशा को पलीता लगाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। आपदा में पैसे कमाने के अवसर तलाश लिए गए, और चर्चा है कि अफसरों के एजेंटों ने आश्रितों से मनचाही पोस्टिंग के लिए मोल-भाव किए, और लाखों रुपए बटोरे हैं।
एक जगह गड़बड़ी पकड़ी जा चुकी है, और संकेत है कि जल्द ही इस जिले में बड़े अफसर पर गाज गिर सकती है। सुनते हैं कि रायपुर जिले में गड़बड़ी करने वाले अफसर के नाम सीएम को बता दिए गए हैं। इससे सीएम काफी खफा हैं। हालांकि अफसर के बचाव में भी कई लोग आ गए हैं। देखना है कि रायपुर में लेनदेन करने वाले अफसर के खिलाफ कार्रवाई हो पाती है अथवा नहीं।
तब रमन ने ही कलेक्टर बनाया था
रमन सिंह ने पीएससी चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी पर तीखा कटाक्ष किया है। वे यह कह गए कि भूपेश सरकार ने जिसे पीएससी का चेयरमैन बनाया है, लडक़े उनका बायोडाटा देख लें तो पीएससी की परीक्षा ही न दें। जाहिर है रमन सिंह का इशारा जांजगीर-चांपा जिले के मनरेगा घोटाले की तरफ रहा है। जिसकी जद में सोनवानी आए थे। सोनवानी उस समय जिला पंचायत सीईओ थे। मनरेगा घोटाले के चलते सोनवानी की पदोन्नति रुकी रही।
अब जब सोनवानी पर आक्षेप लग रहे हैं, तो इसकी एक वजह यह भी है कि वे जोगी सरकार में भूपेश बघेल के पीएचई मंत्री रहते विशेष सहायक रहे हैं। भूपेश बघेल के सीएम बनते ही उनके सचिवालय में पहली पोस्टिंग गौरव द्विवेदी, और टामन सिंह सोनवानी की हुई थी। ऐसे में जब पीएससी चेयरमैन पर आरोप लग रहे हैं, तो स्वाभाविक है कि सोनवानी के बहाने भूपेश बघेल को घेरने की कोशिश हो रही है। ये अलग बात है कि सोनवानी के कार्यकाल में पीएससी में भ्रष्टाचार के कोई प्रमाणिक मामले सामने नहीं आए हैं। फिर भी बरसों पुराना प्रकरण तो पीछा नहीं छोड़ रहा है।
मुख्यमंत्री रहते हुए रमन सिंह ने ही जांजगीर के आरोपों के बाद भी सोनवानी को एक मौका देते हुए नारायणपुर कलेक्टर बनाया था। जहां सोनवानी के काम की काफी तारीफ हुई थी। इसके बाद सोनवानी को एक तरह से प्रमोशन देते हुए अपेक्षाकृत बड़े जिले कांकेर का कलेक्टर बनाया गया। एक-दो मौके पर तो रमन सिंह ने खुद उनकी तारीफ की थी।
बलरामपुर से बॉलीवुड का सफर
मराठी और हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री मयूरी कांगो के बारे में सुना जा चुका है कि वह वर्षों तक थियेटर और फिल्मों में अपनी एक जगह बना चुकी थी पर बाद में एक बिल्कुल अलग फील्ड चुन लिया। आज वे भारत में गूगल की इंडस्ट्री हेड हैं।
अपने बलरामपुर जिले की प्रीति साय ने भी अपना कार्यक्षेत्र बदलने की चुनौती कुछ इसी तरह से ली।
माता-पिता डॉक्टर हैं। उससे भी अपेक्षा की जा रही थी वह भी इसी फील्ड में आये लेकिन उसने मना कर दिया। वह प्रशिक्षण लेकर एयर होस्टेस बन गई। पर उसका मन वहां नहीं लगा। बचपन में डांस प्रतियोगिताओं में पुरस्कार मिले। रायपुर आने के बाद उसने छत्तीसगढ़ी फिल्मों में अवसर तलाशा। काम भी किया और झारखंड फिल्म महोत्सव में पुरस्कार हासिल किया। उसे लगा कि यही दिशा सही है पर दायरा बढ़ाना होगा। वह मुम्बई चली आईं, यहां उन्हें टीवी सीरियल्स में काम मिलने लगे। उसकी प्रतिभा को अब पंख लग गये हैं। अमेजॉन प्राइम पर 18 जून को रिलीज हो रही ‘शेरनी’ फिल्म में वह मशहूर अभिनेत्री विद्या बालन के साथ ट्रांक्यूलाइजर एक्सपर्ट के रूप में दिखाई देंगीं। खुले आकाश में उडऩे का मौका मिला, शुभचिंतकों ने हौसला बढ़ाया। और प्रीति साय यहां तक पहुंच गई।
वैक्सीन की जगह चुम्बक घुसा दी?
कोविड वैक्सीन लगाने का अभियान बीते कई महीनों से चल रहा है। देशभर में अब तक 25 करोड़ टीके लगाये जा चुके हैं। अब जाकर कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि टीके के बाद उनके हाथ में चुम्बकीय शक्ति पैदा हो गई है। लोहे के चम्मच, बर्तन, सिक्के आदि चिपकने लगे हैं। नासिक से पहला दावा किया गया था। खबर पढक़र छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव की एक पार्षद सुनीता फडऩवीस ने भी इसे आजमाया। डॉक्टरों ने जाकर परीक्षण किया तो पाया कि यह वैक्सीन के कारण नहीं हो रहा है। पर क्यों हो रहा है इस पर भी बात साफ नहीं हुई है। ऐसा सचमुच है तो फिर लाखों लोगों ने टीका लगवा लिया, एक दो ही क्यों ऐसी बात लेकर सामने आ रहे हैं।
बीबीसी, रायटर्स आदि न्यूज सर्विस ने अलग-अलग कई वैज्ञानिकों से इस बारे में बात की। उनका कहना है कि किसी भी धातु को चिपकाने के लिये कम से कम एक ग्राम चुम्बक की जरूरत पड़ेगी। फिर किसी भी वैक्सीन में लोहे के कण का इस्तेमाल ही नहीं हो रहा है। यह बात ‘कोरी बकवास’ है। तेल, गोंद या चिपकने वाली किसी दूसरे द्रव्य से जरूर ऐसा किया जा सकता है।
अभी तो जो बर्तन चिपके दिख रहे हैं, वे तो असली चुम्बक से भी नहीं चिपकते।
सोशल मीडिया पर यह जरूर चर्चा का नया विषय बन गया है। घरों में मोबाइल पर लोग एक दूसरे को ऐसी फर्जी तस्वीरें फॉरवर्ड कर रहे हैं। कुछ ने तो मोबाइल फोन भी चिपकाकर दिखा दिया है। एक तो वैक्सीनेशन को लेकर वैसे भी लोगों के बीच तरह-तरह की अफवाहें फैली हुई हैं, लोग डर भी रहे हैं। ऐसे में इस तरह की शरारतें और मुश्किल खड़ी करेंगी।
लेकिन दुनिया के इतिहास में कई दशक से ऐसी तस्वीरें आती रहती हैं, जिनमें इंसानों के बदन से बर्तन चिपके दिखते हैं। उस वक्त तो न कोरोना था, न उसकी वैक्सीन।
विकिपीडिया के मुताबिक - Liew Thow Lin (31 March 1930 - 9 April 2013) of Malaysia was known as the "Magnet Man", "Magnetic Man" or "Mr. Magnet" because he had the ability to stick metal objects to his body.
Liew performed in many charity events showing his ability. He could cause metal objects, weighing up to 2 kg each, up to 36 kg total, to stick to his skin. He also pulled a car using this ability.
Liew's ability was not due to any source of magnetism. Scientists from Malaysia's University of Technology found no magnetic field in Lin's body, but did determine that his skin exhibits very high levels of friction, providing a "suction effect".The trait appears to be genetic, appearing in Lin's three grandchildren. Liew was featured on the second episode of the Discovery Channel's One Step Beyond.
सोशल मीडिया में नेताओं की मौजूदगी
अभी कल एक समाचार चैनल से बात करते हुए बिलासपुर के विधायक शैलेष पांडेय ने सांसद अरुण साव को सोशल मीडिया का कीड़ा बता दिया। जवाब में साव ने कहा कि यह बयान बेतुका है। बिलासपुर की उस जनता का अपमान है, जिन्होंने उसे चुना है।
यह देखना होगा कि कीड़ा शब्द क्या बेतुका है? वैसे बाद में पांडेय ने मान लिया कि उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिये था। पर अब बहस इस पर भी हो सकती है कि सोशल मीडिया का कीड़ा डंक मारने वाले कीड़े के बारे में कहा जा सकता है या फिर काटने वाले कीड़े के बारे में।
सोशल मीडिया पर तो राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय तक, पद संभालने वालों से लेकर पद से वंचित लोगों, वर्तमान से लेकर भूतपूर्व तक, अब हर नेता सक्रिय है। सोशल मीडिया का कीड़ा वास्तव में फिर किसे कहा जाना चाहिये? जो जनता के बीच नहीं दिखें केवल उनको, या फिर जो जनता के बीच भी दिखते रहें उनको? बात यह भी है कि सोशल मीडिया में किस तरह की गतिविधियां किसी को कीड़ा बना सकती है। इसमें केवल उन बयानों को लिया जाये जो एक दूसरे पर उछाले जाने के बाद खत्म हो जाते हैं या फिर उन बयानों को भी जो पुलिस और कोर्ट तक खींच लिये जाते हैं? सब शोध का विषय है।
क्या हमें एल्डरमेन भी नहीं बना सकते?
नगरीय निकायों में प्रदेश सरकार ने हाल ही में 16 एल्डरमेन बदल दिये और इसके अलावा 44 लोगों की नियुक्ति भी की। कुछ लोगों ने इस सूची का विश्लेषण करके बताया कि इनमें से कई लोगों ने कांग्रेस में कभी काम ही नहीं किया। पर हो सकता है कि पार्टी को पीछे से मदद करते होंगे, क्योंकि कुछ ठीक-ठाक बिजनेस में भी हैं। एक दूसरी बात भी है कि अल्पसंख्यक समुदाय को कांग्रेस से ज्यादा उम्मीद रहती है। मुस्लिम समाज से रायपुर नगर निगम में एक एल्डरमेन को फिर मौका मिला है। लेकिन ईसाई समुदाय को इन नियुक्तियों से निराशा हुई है। एक संगठन अखिल भारतीय ईसाई समुदाय अधिकार संगठन के अध्यक्ष गुरविन्दर चड्डा ने अपनी पीड़ा भी जाहिर कर दी है। इतने एल्डरमेन नये बनाये गये उनमें एक भी ईसाई नहीं। कहा- अब हम क्या करें, हमारी कहां सुनवाई होगी? ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस सरकार (भी) ईसाईयों की राजनैतिक सक्रियता नहीं चाहती।
कांग्रेस में सभी नेताओं के पास अभी लम्बी-लम्बी सूची है। अपने अपने समर्थकों को बिठाने का काम बाकी है। हो सकता है कि चड्डा जी की भी सुन ली जाये, किसी और वजह से न तो काम से काम इस वजह से कि चड्डा की बीवी इतालियन है ।
नेताम के साथ ठगी पर उठे सवाल
राज्यसभा सदस्य और प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री रामविचार नेताम के साथ जिस तरह से ठगी हुई है उसे सीधे-सीधे ऑनलाइन ठगी नहीं कह सकते क्योंकि उनके पास कोई फोन नहीं आया न उन्होंने धोखे से भी किसी को कोई आईडी पासवर्ड या क्रेडिट कार्ड नंबर बताया, बल्कि उनके नष्ट किये गये एसबीआई के क्रेडिट कार्ड का किसी ने रिनिवल करा लिया। देश के सबसे विश्वसनीय और बड़े बैंक के रूप में एसबीआई की साख है। नेताम की मानें तो न कार्ड रिनिवल करने से पहले बैंक ने उससे पूछा न ही रिनिवल करने के बाद उन्हें इसकी जानकारी दी। इस घटना ने रतनपुर के महामाया ट्रस्ट के खाते से हाल ही में निकाले गये 27 लाख रुपये की तरफ भी ध्यान दिलाया है। ट्रस्ट के पास ओरिजनल चेक मौजूद थे और क्लोन चेक के जरिये उनके खाते से रुपये पार किये गये। एसबीआई, जहां हल्की ओवरराइटिंग से भी चेक रिजेक्ट कर दी जाती है और आप पर सरचार्ज जुड़ जाता है, वहां लोग इतनी आसानी से धोखाधड़ी कैसे कर लेते हैं? क्या बैंक प्रबंधन ऐसी गड़बडिय़ों को रोकने प्रति गंभीर है?
जीन्स तो है, हिम्मत भी है क्या ?
दुनिया में फैशन का कभी अंत नहीं होता, कोई एक कपड़ा, या कोई एक जूता चलन में आए, तो यह मानकर चलें कि उसके पीछे-पीछे कई और चीजें चली आ रही हैं। दुनिया में सबसे लोकप्रिय कपड़ा डेनिम की जींस रही है, और 1873 में पहली जीन्स बनने के बाद, एक सदी से ज्यादा वक्त तक बिना किसी फेरबदल वाली जींस ने पिछले कुछ दशकों से शक्ल बदलना शुरू किया है, और तरह-तरह से घिसी हुई जींस, रंग उड़ी हुई जींस, छर्रे चलाकर छेदी गई जींस, फटी हुई जींस, रंग पेंट से सजी हुई जींस, कई किस्म की जींस फैशन में आईं। अब सबसे नई फैशन अभी अमेरिका से सामने आई है जिसे वेट पैंट्स डेनिम कहा गया है, यानी गीला दिखने वाला डेनिम। अमेरिका की इस कंपनी ने खुद तो कई किस्मों की जींस बाजार में उतारी हैं, जिनमें ऐसा पेंट किया गया है कि लगे कि पहनने वाले ने तो अपने पर कुछ गिरा लिया है, या जींस के भीतर पेशाब हो गई है। इसके अलावा कंपनी ने एक यह सहूलियत भी शुरू की कि लोग अपनी पुरानी जींस कंपनी को भेज सकते हैं, और कंपनी करीब ?2000 में उस पर ऐसा पेंट करके उसे वापिस भेज देगी। फिलहाल कोरोना के संक्रमण के खतरे को देखते हुए कंपनी ने पुरानी जींस पर पेंट कुछ समय के लिए रोक रखा है, लेकिन ऐसी पेंट की हुई नई जींस तो ऑनलाइन आर्डर करके बुलाई ही जा सकती है। अब आगे देखें और कौन सी फैशन चलन में आती है । इससे भी अधिक के लिए हिम्मत जुटाकर रखें।
सरकारी बंगलों पर खर्च
सरकारी बंगलों में साज-सज्जा और मरम्मत के नाम हर साल लाखों-करोड़ों रुपए फूंक दिए जाते हैं। मंत्रियों के बंगलों में तो खर्च ज्यादा होता है। कुछ साल पहले विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल ने अपने सरकारी बंगले में 50 से अधिक एयर कंडीशनर लगाए, तो इसकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हुई। यह एक अलग बात है कि गौरीशंकर अग्रवाल उस नहीं थे, वे शैलेन्द्र नगर के अपने निजी मकान में ही रहते रहे. और स्पीकर हाउस सिर्फ उनके मिलने-जुलने के लिए काम आता रहा.
सरकारी बंगलों पर यह सब खर्चा लोक निर्माण विभाग करता है, और राज्य बनने के बाद से अब तक सरकारी बंगलों के सौंदर्यीकरण के नाम होने वाले भारी भरकम खर्चों को रोकने के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई है। अलबत्ता, टीएस सिंहदेव अपवाद जरूर हैं, जिन्होंने सरकारी बंगले में अतिरिक्त निर्माण का खर्च खुद वहन किया है।
पीडब्ल्यूडी के लोग जो ड्राइंग डिजाइन लेकर आए थे वह उन्हें पसंद नहीं था। लिहाजा, उन्होंने वापस भेज दिया, और अपनी पसंद से निर्माण करवाया। ये अलग बात है, उसी बंगले में राजेश मूणत भी रहते थे, जिन्होंने वहां सरकारी खर्च पर काफी काम कराया था। पर सिंहदेव की बात अलग है, यह भी है कि हर किसी को विरासत में इतनी दौलत तो मिलती नहीं है ।
मैनेज करने के लिए
एक निर्माण विभाग में इंजीनियरों की सीनियारिटी को लेकर काफी किच-किच हो रही है। दैनिक वेतन भोगी से नियमित हुए सब इंजीनियरों ने एकजुट होकर सीनियारिटी के नए सिरे से निर्धारण के लिए दबाव बनाया है।
हाईकोर्ट ने इस मसले पर सरकार को कमेटी बनाकर याचिकाकर्ता सब इंजीनियरों के प्रकरणों के लिए भी कह दिया है। पेंच इसमें यह है कि ये सब इंजीनियर अपने दैनिक वेतन भोगी के रूप में सेवा अवधि को भी शामिल कर सीनियारिटी का निर्धारण करने पर जोर दे रहे हैं।
अगर ऐसा होता है तो उन इंजीनियरों को नुकसान हो सकता है जो परीक्षा देकर भर्ती हुए थे, और वर्तमान में दैवेभो से नियमित हुए सब इंजीनियरों से ऊपर हैं। सुनते हैं कि हर हाल में सीनियारिटी पाने लिए दैवेभो से नियमित हुए सब इंजीनियरों ने कमेटी को मैनेज करने के लिए डेढ़ करोड़ एकत्र भी कर लिए हैं।
इनके लिए सुविधाजनक स्थिति यह है कि कमेटी में दागी-बागी टाइप लोग ही हैं, जो खुद अलग-अलग तरह की जांच से घिरे हैं। अब कमेटी के फैसले का इंतजार हो रहा है। फैसला चाहे जो भी हो विभाग में गदर मचना तय है।
सांसद-विधायक निधि रुकने की पीड़ा
कोविड वैक्सीन की खरीदी और इस महामारी से निपटने की दूसरी व्यवस्था के लिये विधायक निधि रोकी गई। भाजपा नेता इस फैसले का पहले ही विरोध रहे थे। अब इसे बहाल करने की मांग उन्होंने फिर से इस आधार पर उठाई है कि केन्द्र सरकार ने सबको टीका मुफ्त लगाने की जिम्मेदारी ले ली है। अब राज्य को इस पर खर्च करना ही नहीं पड़ेगा। इधर कांग्रेस का जवाब है कि सांसद निधि को भी तो केन्द्र ने रोक रखा है। जब कोविड से निपटने के लिये पेट्रोल-डीजल और तमाम चीजें महंगी कर दी गई तो सांसदों को उनका पैसा क्षेत्र में खर्च करने के लिये जारी क्यों नहीं किया जाता?
सांसद हों या विधायक, दोनों के पास जो निधि होती है वह बड़े काम की है। वे इस राशि का बंटवारा बिना प्रशासनिक हस्तक्षेप के कर सकते हैं। कार्यकर्ताओं को वे इसी बहाने खुश भी कर पाते हैं। ये अलग बात है कि इसका कितना सदुपयोग होता है। लेकिन अब ये निधि ही नहीं है तो बंगलों की रौनक भी फीकी पड़ गई है। मांगने वाले पहुंच ही नहीं रहे। पीड़ा तो नेता कार्यकर्ता सबको है पर कैसे कहें, अपनी-अपनी पार्टी के अनुशासन से बंधे हैं।
वैक्सीन फ्री में कितनों को लगेगा?
केन्द्र सरकार द्वारा वैक्सीनेशन की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लिये जाने के बावजूद सबको फ्री वैक्सीन मिल पाना आसान नहीं है। निजी अस्पतालों के लिये 25 फीसदी कोटा तय किये जाने का मतलब और क्या हो सकता है? वैक्सीन की आपूर्ति में जो कमी बनी हुई है वह तुरंत दूर भी नहीं होने वाली है। शायद, हर चौथे व्यक्ति को वैक्सीन पर रूपये खर्च करने पड़ेंगे। जो लोग सरकारी आपूर्ति की प्रतीक्षा करने के लिये तैयार नहीं होंगे, उन्हें भले ही खर्च करना पड़े, सक्षम होंगे तो निजी अस्पतालों का रुख करेंगे।
केन्द्र सरकार ने यह भी निर्णय लिया है जो राज्य वैक्सीन बर्बाद करेंगे उनकी आपूर्ति में कटौती की जायेगी। हाल ही में केन्द्र ने कहा था कि छत्तीसगढ़ ने 30.2 प्रतिशत टीके खराब कर दिये। इस आरोप को छत्तीसगढ़ सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है। राज्य सरकार कहती है कि हमने सिर्फ 0.79 प्रतिशत टीके बर्बाद किये जो राष्ट्रीय औसत से कम है। लेकिन केन्द्र ने राज्य के इस बात का कोई जवाब नहीं दिया है। यदि केन्द्र सरकार गणना के अपने तरीके पर कायम रहती है तो निश्चित रूप से राज्य को कम वैक्सीन मिलेंगे। इसका लाभ भी निजी अस्पतालों को ही होगा।
वैक्सीन लगवाने वाले से शादी
सोशल मीडिया पर फेक पोस्ट से हर बार नुकसान नहीं होता, कई बार मजे लेने के लिये भी डाल दिये जाते हैं। किसी अंग्रेजी अखबार के विज्ञापन की तरह दिखाई दे रही एक क्लिप ट्विटर और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खूब चल रही है। इसमें एक युवती वैवाहिक विज्ञापन में कह रही हैं कि उसे ऐसे लडक़े ही शादी करनी है जिसने कोविशील्ड वैक्सीन के दोनों डोज लगवा लिये हों। कई न्यूज पोर्टल और अखबारों की वेबसाइट में बाद में बताया गया कि ये कतरन फर्जी है। पर लोगों ने इसे एक अच्छा कदम बताते हुए शेयर भी कर दिया। जीनियस माने जाने वाले कांग्रेस नेता शशि थरूर को तो 15 हजार से ज्यादा लाइक मिल चुके। पर लोग चुटकी भी ले रहे हैं, जैसे एक ने उनकी पोस्ट की प्रतिक्रिया में कहा है- यू स्टिल सर्चिंग मेट्रोमोनियल पेजेस? ( आप अब भी वैवाहिक पेज खोज रहे हैं?)
रेणु जोगी और सोनिया गांधी
खबर है कि दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी की पत्नी, और कोटा विधायक डॉ. रेणु जोगी की पिछले दिनों सोनिया गांधी से चर्चा हुई है। रेणु जोगी का गुडग़ांव के मेदांता अस्पताल में ऑपरेशन हुआ था, और इसके बाद सोनिया ने उनका हालचाल पूछा। बात यहीं खत्म नहीं हुई। हल्ला यह भी है कि रेणु जोगी, रायपुर आने से पहले सोनिया गांधी से मिलने भी गई थीं। इसके बाद राजनीतिक गलियारों में रेणु जोगी के कांग्रेस में शामिल होने की एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि रेणु जोगी के सोनिया गांधी से हमेशा मधुर संबंध रहे हैं। अजीत जोगी के जीवित रहने के दौरान कांग्रेस प्रवेश का हल्ला उड़ता रहा। लेकिन कांग्रेस के स्थानीय नेता जोगी परिवार को कांग्रेस में शामिल करने के विरोध में रहे हैं। जोगी पार्टी के विधायक भी कांग्रेस में शामिल होने के मसले पर बंटे हैं।
देवव्रत, और प्रमोद शर्मा तो कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन विधायक दल के नेता धर्मजीत सिंह इसके खिलाफ हैं। धर्मजीत सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि वे किसी भी दशा में कांग्रेस में नहीं जाएंगे। खैर, दिल्ली से लौटने के बाद अमित जोगी ने ट्विटर पर जिस अंदाज में भूपेश सरकार पर हमला बोला है, उससे तो जोगी परिवार के सदस्यों के कांग्रेस प्रवेश की संभावना नहीं दिख रही है। आने वाले दिनों में क्या कुछ होता है, यह देखना है।
सोनमणि की रिलीविंग में देर
आईएएस अफसर सोनमणि बोरा की केन्द्र सरकार में पोस्टिंग तो हो गई है, लेकिन वे अभी तक रिलीव नहीं हुए हैं। उनकी केन्द्र सरकार में संयुक्त सचिव भू-प्रबंध के पद पर पोस्टिंग हुई है। उनकी रिलीविंग के लिए 15 दिन पहले ही पत्र सीएस को आ गया था। सीएस ऑफिस ने उन्हें रिलीव करने के लिए फाइल बढ़ा भी दी है। मगर अभी तक रिलीविंग की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। बोरा के पास वैसे भी ज्यादा कोई कामधाम नहीं है। उनके पास सिर्फ संसदीय कार्य विभाग है। कहा जा रहा है कि राज्य सरकार की अनापत्ति के बिना ही केन्द्र में पोस्टिंग मिल गई। मगर अब रिलीविंग में देरी हो रही है, तो कई तरह की चर्चा शुरू हो गई है।
रिटायरमेंट के बाद...
जनसंपर्क सचिव डीडी सिंह इसी महीने रिटायर होने वाले हैं। अगले महीने राजस्व मंडल के चेयरमैन सीके खेतान का रिटायरमेंट है। दोनों अफसरों के पुनर्वास को लेकर भी प्रशासनिक हलकों में कयास लगाए जा रहे हैं। यह माना जा रहा है कि डीडी सिंह को कुछ न कुछ दायित्व मिलेगा। वजह यह है कि उनके साथ काम कर चुके मंत्री-सीनियर अफसर उनकी तारीफ करते नहीं थकते हैं।
खेतान सबसे सीनियर होते हुए, और भारत सरकार में काम का तजुर्बा रहते हुए भी सीएस नहीं बन पाए थे, अब सरकार और खेतान के दिमाग़ में क्या है इसकी खबर नहीं।
कई और अफसर ऐसे हैं, जिन्हें रिटायरमेंट के बाद कुछ नहीं मिला। जिनमें एसीएस रह चुके केडीपी राव, नरेन्द्र शुक्ला, निर्मल खाखा शामिल हैं। अलबत्ता, सुरेन्द्र जायसवाल और हेमंत पहारे को संविदा नियुक्ति मिली थी। बाद में उनकी संविदा अवधि पूरी होने के बाद कार्यकाल आगे नहीं बढ़ाया गया। यह भी सच है कि रिटायरमेंट के बाद हर किसी को पद देना मुश्किल है। मध्यप्रदेश में तो ज्यादातर को रिटायरमेंट के बाद कुछ नहीं मिलता।
पैर छूने पर कलेक्टर का प्रसन्न हो जाना
कोरिया जिले के कलेक्टर श्याम धावड़े का वैसे भी स्वागत हो रहा है क्योंकि एस एन राठौर को हटाने के बाद उन्हें लाना सत्तापक्ष से जुड़े कई नेताओं को अपनी उपलब्धि के रूप में दिखाई दे रहा है। राठौर का तबादला होने पर इन्होंने आतिशबाजी भी की थी। अब नये कलेक्टर धावड़े भी चर्चा में हैं। पदभार ग्रहण करने जब वे बैकुंठपुर पहुंचे तो कार से उतरते ही जिले के केल्हारी के तहसीलदार मनोज पैकरा ने उनका पैर छू लिया। कलेक्टर ने भी उन्हें खुश रहने का आशीर्वाद दिया। इस घटना की फोटो वायरल हो गई तो तहसीलदार पैकरा ने सफाई दी कि वे गरियाबंद जिले में साहब के साथ काम कर चुके हैं और वह उन्हें अपना बड़ा भाई मानते हैं।
वैसे बहुत से आईएएस हैं जो इस तरह की हरकत को चापलूसी भी मानते हैं और वह सार्वजनिक रूप से तो कम से कम पैर छूने को सही नहीं मानते। वे आशीर्वाद देने के बजाय डपट भी देते हैं। फिलहाल तो ऐसा दिख रहा है कि बाकी अधिकारियों को भी आइडिया मिल गया है कि कलेक्टर यदि नाराज हों तो उन्हें कैसे प्रसन्न किया जा सकता है।
अब शायद प्रतीक्षा खत्म होने वाली है...
कोरोना की रफ्तार जैसे ही धीमी हुई प्रदेश में प्रशासनिक सर्जरी की गई। अब खबर है कि विभिन्न निगमों, मंडल और आयोग में खाली पदों को भरने का निर्णय लिया जा चुका है और अगले सप्ताह से नियुक्तियों का सिलसिला शुरू हो चुका है। काफी दिनों से कांग्रेस की जीत के लिए पसीना बहाने वाले नेता-कार्यकर्ता उम्मीद कर रहे हैं कि अब कोई अड़चन नहीं आयेगी। सत्ता और संगठन के बीच नामों पर सहमति बन चुकी है। इन नियुक्तियों में वरिष्ठ विधायक जिन्हें मंत्री नहीं बनाया सका और कुछ पूर्व विधायक तथा वरिष्ठ नेता जो टिकट से वंचित रह गये थे, उन्हें भी शामिल किये जाने की चर्चा है। जो लोग फिर भी एडजस्ट नहीं किये जा सकेंगे उनको संगठन में जिम्मेदारी दी जायेगी। नियुक्तियां पाने वालों के पास अपना परफॉर्मेंस दिखाने के लिए करीब दो साल का वक्त रहेगा, उसके बाद प्रदेश चुनावी मोड में चला जायेगा। देखना यही होगा कि इन नियुक्तियों से सबको संतुष्ट किया जा सकेगा या नहीं जो कांग्रेस में प्राय: मुमकिन दिखाई नहीं देता।
ब्राह्मण वोटों का महत्व..
बहुतों को यह पहली बार पता चला कि कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल होने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ब्राह्मण है और पार्टी को इसी का फायदा मिलेगा। यूपी में एक संगठन ब्राह्मण चेतना परिषद् है जिसके संरक्षक (पंडित) जितिन प्रसाद हैं। लगता है इस संगठन का कामकाज उनके मार्गदर्शन में ही चल रहा है। वाट्सएप के जमाने में वहां का एक प्रेस नोट जरूर घूमते-घूमते यहां तक पहुंच गया है, जिसमें उन्नाव के जिला अध्यक्ष ने उनके भाजपा में शामिल होने के विरोध में संगठन से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने यह लिखा है कि भाजपा ब्राह्मण विरोधी पार्टी है और उसी में हमारे संरक्षक शामिल हो गये।
वैसे यूपी के कांग्रेस अध्यक्ष का भी बयान आया है कि वहां प्रियंका गांधी से बड़ा कोई ब्राह्मण चेहरा नहीं है। भाजपा को तो कभी दुविधा नहीं रही पर कांग्रेस में खुद की धर्मनिरपेक्ष छवि को बचाये रखने और उदार हिन्दू दिखने के बीच उलझन बनी रहती है। अपने छत्तीसगढ़ में अनेक कांग्रेस नेता धर्माचार्यों के अनुयायी हैं इसका सार्वजनिक प्रदर्शन भी करते हैं। इसका असर भी देखने में मिला है। लोग मानते हैं कि बीते चुनाव में बिलासपुर सीट पर कांग्रेस की जीत का एक यह बड़ा कारण था। वैसे अतीत के और लोकसभा, विधानसभा चुनावों के नतीजों से माना जा सकता है कि हर बार यह दांव काम नहीं करता।
नेहरू-गांधी की फोटो
दिल्ली में आज कांग्रेस के एक किसी बड़े नेता के भाजपा में जाने की चर्चा चल रही थी, और अभी दोपहर तक वह नाम भी सामने आ गया जतिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो गए हैं। फेसबुक पर किसी ने दिलचस्प सवाल किया कि जब लोग पार्टी बदलते हैं, तो उनके घर पर बैठकखाने की दीवारों पर से तस्वीरें भी बदल जाती होंगी? हो सकता है कि नई-नई निष्ठा के कुछ अधिक सुबूत पेश करने के लिए लोग अपने पुराने नेताओं के साथ की तस्वीरें हटा भी देते हो। लेकिन छत्तीसगढ़ में एक आईएएस अफसर ऐसे भी हुए जिन्होंने रमन सरकार के दौरान राजधानी का कलेक्टर रहते हुए अपने चेंबर में अपनी मेज के ठीक पीछे नेहरू और गांधी की बड़ी सी तस्वीर लगा कर रखी थी। जो भी उनसे मिलने आए उन्हें यह तस्वीर दिखती ही थी, और उनकी जो फोटो खींची जाए उसमें पीछे नेहरू-गांधी दिखते ही थे। अब दिल्ली से लेकर दूसरी जगह तक भाजपा के बड़े से बड़े नेता जिस नेहरू के कद को काटने में लगे रहते हैं वैसे में छत्तीसगढ़ की मजबूत भाजपा सरकार के रहते हुए भी एक अफसर ने इतना हौसला दिखाया था कि अपनी पसंद की तस्वीर उसने दीवार पर लगा कर रखी थी। कलेक्टर ठाकुर राम सिंह ने इस बारे में पूछने पर बतलाया था कि वे जब जिस दफ्तर में रहे उसमें उन्होंने यही तस्वीर लगा कर रखी क्योंकि वह नेहरू और गांधी से सबसे अधिक प्रभावित थे। जहां पर अफसर कई मामलों में अपनी पसंद और नापसंद, सत्ता के हिसाब से तय करते हैं, उनके बीच में एक अफसर रिटायरमेंट के इतने करीब भी नेहरू को सजा कर रखता था जबकि रिटायरमेंट के बाद उन्हें भी किसी नियुक्ति की उम्मीद थी। आमतौर पर लोग ऐसे में सावधान होकर भारत माता की है किसी और की फोटो लगा लेते हैं, लेकिन ठाकुर रामसिंह ने वह फोटो कभी नहीं बदली।
मोदी मंत्रिमंडल में कौन?
मोदी कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा है। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं का अंदाजा है कि अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सकता है। फिलहाल छत्तीसगढ़ से एकमात्र रेणुका सिंह ही राज्यमंत्री हैं। फेरबदल की सुगबुगाहट के बीच रेणुका सिंह दिल्ली रवाना हो गई हैं।
पार्टी के भीतर रेणुका सिंह की जगह किसी दूसरे सांसद को मंत्री बनाने की मांग उठ रही है। रेणुका सिंह के विरोधियों का कहना है कि वे सिर्फ सरगुजा तक ही सीमित रही हैं, और उनके मंत्री बनने से छत्तीसगढ़ में भाजपा को कोई फायदा नहीं हुआ है। हालांकि आदिवासी महिला नेत्री होने की वजह से उन्हें मंत्री पद से हटाए जाने की संभावना कम ही दिख रही है। अलबत्ता, एक और सांसद को मंत्री बनने का मौका मिल सकता है।
पार्टी के भीतर बिलासपुर के सांसद अरूण साव के नाम की प्रमुखता से चर्चा है। वे साहू समाज से आते हैं, और प्रदेश में पिछड़ा वर्ग में सबसे ज्यादा आबादी इसी समाज के लोगों की है।
एक बड़ी अफवाह यह भी है कि भाजपा कांग्रेस के एक बहुत बड़े साहू नेता को अगले चुनाव के पहले कभी पार्टी में लाकर एक भूचाल की तैयारी में है।
लेकिन फिलहाल केंद्र में मंत्री बनने के लिए राज्यसभा सदस्य सरोज पाण्डेय का नाम भी चर्चा में है। देखना है कि फेरबदल में छत्तीसगढ़ को महत्व मिलता है, अथवा नहीं।
रेत में से तेल
कांग्रेस संगठन के एक बड़े नेता के बेटे की सक्रियता चर्चा में है। नेताजी तो प्रदेश के बाहर के हैं, और यदा-कदा ही बैठकों में हिस्सा लेने आते हैं। मगर उनके बेटे ने पिता के रसूख का फायदा उठाकर यहां अच्छा खासा कारोबार जमा लिया है। सुनते हैं कि यूपी से सटे जिलों में रेत खनन को लेकर काफी उठा पटक होती है, और इसमें दोनों राज्यों के नेताओं का दखल रहता है।
रेत खनन के चलते संसदीय सचिव चिंतामणि महाराज, और बलरामपुर-रामानुजगंज के कांग्रेस जिलाध्यक्ष के बीच खुली जंग भी चल रही है। मगर नेताजी के बेटे के हस्तक्षेप पर कोई खुलकर कुछ नहीं कह रहा है। अब तो बेटे ने रायपुर के बाहरी इलाके में स्थित रईसों की कॉलोनी में बंगला भी बुक करा लिया है। कुछ लोगों ने नेताजी के बढ़ते हस्तक्षेप की शिकायत हाईकमान से भी की है, और यदि बेटे के चक्कर में नेताजी पर गाज गिर जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
अब टीके के सर्टिफिकेट पर वापस मोदी
छत्तीसगढ़ सहित उन सभी राज्य सरकारों ने कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस भाषण के बाद राहत की सांस ली, जिसमें कोविड टीके के प्रबंधन केन्द्र सरकार ने पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया। छत्तीसगढ़ के अलावा पश्चिम बंगाल भी ऐसा राज्य था जहां 18 प्लस वालों को टीका लगाने का खर्च चूंकि राज्य सरकार को उठाया जाना था, सर्टिफिकेट में मुख्यमंत्रियों की फोटो लाई जा रही थी। इसके अलावा उन्होंने अपने राज्य के लिये अलग ऐप भी तैयार कर लिया था। छत्तीसगढ़ में यह सीजी टीका के नाम से लांच हो चुका है।
केन्द्र ने वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया था कि दिसम्बर महीने तक सबको कोरोना वैक्सीन लगाने का लक्ष्य रखा गया है। अलग-अलग कीमतों को लेकर भी याचिका दायर है। भाजपा के नेता इस फैसले को मोदी सरकार की जबरदस्त उपलब्धि के रूप में प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस कह रही है मजबूरी में लिया गया फैसला है। जो भी हो, अब सब के लिये टीका छत्तीसगढ़ में केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध होगा। यह पर्याप्त मात्रा में पहुंचा, समय पर सबको लग गया तो श्रेय, किसी और को नहीं प्रधानमंत्री को जायेगा। नहीं लग पाया, टीके नहीं मिल पाये तब भी सवाल केन्द्र पर ही उठेगा। लोग मोदी के भाषण का अपनी-अपनी तरह से सार निकाल रहे हैं। लेकिन यह याद रखने की जरूरत है कि यह मांग कई महीनों से राहुल गाँधी ट्विटर पर करते आ रहे थे, मोदी सरकार कांग्रेस की सलाह कई हफ्ते देर से मानती है।
सिलगेर का संकट हर कोई देख रहा
सिलगेर मामले में जिस तरह से सरकार के पास जवाब देने के लिये तर्क कम होते जा रहे हैं और आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, पता चलता है कि नक्सल समस्या के खात्मे को लेकर उनके अब तक के प्रयास फीके हैं। इधर राज्यपाल भी सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं। पहले तीन और बाद में आई चार मौतों का गुस्सा, फिर पुलिस के कैम्प का भी हजारों ग्रामीण विरोध कर रहे हैं। आज की खबर है, लगातार आंदोलन के बीच दूर दराज के ग्रामीण भी राशन पानी लेकर धरने के लिये सिलगेर पहुंच रहे हैं। यानि आंदोलन तेज होगा। पुलिस कह रही है कि इसके पीछे नक्सलियों का हाथ है।
पुलिस और सुरक्षा बलों को अक्सर ग्रामीणों के बीच तालमेल बनाने के लिये दवा बांटते, उनके उत्सवों में भाग लेते, शिक्षा पर काम करते देखा गया है। पर लगता है काम कम प्रचार ज्यादा हुआ है। और अन्य विभागों के वे अफसर जिनके कामकाज के चलते नक्सलियों में सरकार के प्रति अविश्वास बढ़ता है वे तो इस आपसी समझ बढ़ाने वाली प्रक्रिया से दूर ही हैं। अब साफ है कि आपस में भरोसा मजबूत नहीं हो पा रहा बल्कि खाई बढ़ रही है।
छत्तीसगढ़ के बाकी हिस्सों के लोग बस्तर कम जाते हैं। जो जाते हैं पर्यटन और व्यापार के काम से बड़े शहरों में, नक्सल समस्या को समझने के लिये तो बिल्कुल नहीं जाते। पर वे नक्सल समस्या का खात्मा होते देखना चाहते हैं। बाहर अब भी बहुत से लोग पूछा करते हैं, वही छत्तीसगढ़ जहां नक्सलियों का राज है?
राहुल का छत्तीसगढ़ कांग्रेस से जुडऩा
अब ये भी एक बड़ी खबर बन गई है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस को ट्विटर पर फॉलो करना शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने राहुल गांधी के फॉलो करने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा है कि इससे हम सबका हौसला बढ़ा। हम विश्वास दिलाते हैं कि कमल..खाकी... को जनता के बीच बेनकाब करके रहेंगे। देश को टूटने नहीं देंगे।
वैसे खबर तो यह होनी चाहिये कि राहुल गांधी अब तक फॉलो क्यों नहीं करते थे। आखिर उनकी पार्टी की सरकार छत्तीसगढ़ जैसे गिने-चुने राज्यों में ही तो बच गई है।
कलेक्टर के तबादले पर जश्न मनाया जाना
हाल में कुछ ऐसे कलेक्टर हटाये गये, जिनका कार्यकाल एक साल भी पूरा नहीं हुआ था। पिछले महीने जब सूरजपुर कलेक्टर को हटाया गया तब उनके खिलाफ नाराजगी का माहौल जनता में बना हुआ था। सरकार की त्वरित कार्रवाई पर लोगों ने प्रसन्नता जताई और बयान भी जारी किये, लेकिन अब उसके ठीक बगल वाले जिले बैकुंठपुर (कोरिया) में कलेक्टर के तबादले से तो पटाखे भी फूटे। और यह काम कांग्रेसियों ने ही किया। जो खबर आ रही है उसके मुताबिक यहां के 3 विधायकों में से दो नहीं चाहते थे कि कलेक्टर को हटाया जाए, जबकि अंबिका सिंहदेव की पटरी उनके साथ नहीं बैठ रही थी। उनके समर्थकों का बयान आया है कि कोरिया जिला विकास के मामले में पीछे हो रहा था, अब तेजी आएगी। भाजपा नेताओं को तंज कसने और चुटकी लेने का मौका मिल गया है। वे कह रहे हैं कि क्षेत्र के विकास के लिये एकजुट होने की जगह विधायक अपनी पसंद-नापसंद से अधिकारियों को हटाने, बिठाने में लगे हुए हैं।
तबादले के वक्त
कुछ कलेक्टरों का हटना तय था। पहली बार के एक कलेक्टर को कुछ दिन पहले ही भनक लग गई थी। फिर क्या था कलेक्टर ने आनन-फानन में जमीन के प्रकरणों को इतनी तेजी से निपटाया कि मातहत भी दंग रह गए। कलेक्टर के खिलाफ लेनदेन की शिकायत सरकार के एक मंत्री तक पहुंची है, मंत्रीजी भी उसी जिले के रहवासी हैं। मंत्रीजी कर भी क्या सकते हैं। कलेक्टर महोदय अपना काम कर निकल गए।
पिछले ढाई साल में प्रशासनिक अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग की तरफ निगाह डालें, तो एक बात साफ है कि मौजूदा सरकार में लो-प्रोफाइल में रहने वाले अफसरों को अच्छा महत्व मिला है। सरकार के एक करीबी का मानना है कि काम को प्रचार की जरूरत नहीं है, जिनका काम दिखता है उन्हें महत्व दिया जा रहा है।
एमआईसी को लेकर चर्चा
रायपुर नगर निगम एमआईसी हर महीने बैठती है, और इसमें विकास योजनाओं को मंजूरी दी जाती है। चूंकि कोरोना की वजह से सामान्य सभा नहीं हो रही है। इसलिए एमआईसी का महत्व और बढ़ जाता है। 9 जून को होने वाली एमआईसी में आने वाले एक प्रस्ताव की जमकर चर्चा है। यह प्रस्ताव एक बड़े उद्योग समूह के कार्पोरेट बिल्डिंग की जमीन के लीज की अवधि बढ़ाने का है। चर्चा है कि इस प्रस्ताव को लाने के लिए निगम के दो विपरीत ध्रुव माने जाने वाले पदाधिकारी एकजुट हो गए हैं। दो प्रतिद्वंदी मिल गए हैं, तो प्रस्ताव मंजूरी मिलना तय है।
ब्लैक फंगस के खतरनाक इंजेक्शन
छत्तीसगढ़ में ब्लैक फंगस के इंजेक्शन्स की बड़ी कमी बनी हुई है। एम्स, सिम्स और जिन-जिन मेडिकल कॉलेजों में मरीजों का इलाज चल रहा है वहां जरूरत के आधे इंजेक्शन भी उपलब्ध नहीं हैं। इधर, मध्यप्रदेश के भोपाल, जबलपुर, इंदौर, सागर और भोपाल से खबर है कि ब्लैक फंगस के सस्ते इंजेक्शन के चलते वहां दाखिल 183 मरीजों की तबीयत बिगड़ गई। स्थिति इसलिये बिगड़ी क्योंकि हिमाचल की एक फार्मा कंपनी का बेहद सस्ता 340 रुपये का एम्फोटेरेसिन बी इंजेक्शन इन्हें लगाया गया। इन्हें ठंड के साथ बुखार आया और उल्टी दस्त की शिकायत भी पाई गई। तुरंत इस इंजेक्शन का इस्तेमाल बंद किया गया। इसी के साथ केन्द्र सरकार की रिपोर्ट भी आई है जिसमें कहा गया है कि इलाज के लिये समय पर भर्ती किये गये जाने के बावजूद 46 प्रतिशत लोगों को बचाया नहीं जा सका। ब्लैक फंगस के केस जरूर कोरोना से कम हैं, पर मृत्यु दर तो कोरोना से कहीं ज्यादा खतरनाक स्थिति पर है।
लोगों को यह याद होगा कि जब नकली रेमडेसिविर के कारोबारी मध्यप्रदेश में पकड़े गये थे तो छत्तीसगढ़ में इन्होंने सप्लाई की, इसकी जानकारी जांच दलों के हाथ लगी थी। ब्लैक फंगस के इंजेक्शन नकली है या फिर केवल उसकी गुणवत्ता सवालों के घेरे में है, ये तो विशेषज्ञ डॉक्टर और फार्मासिस्ट ही बता सकते हैं। पर फिलहाल मध्यप्रदेश के मामलों को देखते हुए छत्तीसगढ़ को सावधान तो रहना ही होगा।
स्कूली शिक्षा में राज्य का परफार्मेंस
दो दिन पहले नीति आयोग ने जब बेहतर परफार्मेंस वाले राज्यों की श्रेणी में छत्तीसगढ़ को टॉप लिस्ट पर रखा था तब लोगों ने खुशी जाहिर की थी। पर अगले ही दिन केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट ने मायूस कर दिया। परफारमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स (पीजीआई) में छत्तीसगढ़ का स्तर काफी नीचे है। कई ऐसे राज्य जिन्हें छत्तीसगढ़ से भी ज्यादा पिछड़ा माना जाता है उनकी ग्रेडिंग भी अपने प्रदेश से कहीं ज्यादा बेहतर है। ग्रेड के हिसाब से देखें तो मेघालय और लद्दाख की स्थिति ही छत्तीसगढ़ के मुकाबले परफार्मेंस में कमजोर है।
स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता पर तो प्रदेश में समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। कई स्वतंत्र सर्वेक्षणों से भी यह बात सामने आ चुकी है कि अभी सुधार के लिये बहुत काम करना होगा। यह रिपोर्ट कुल 70 मापदंडों के आधार पर बनाई गई है। इनमें एकीकृत जिला सूचना प्रणाली, राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण मध्यान्ह भोजन, सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन आदि हैं। सूची में पंजाब, तमिलनाडु, केरल जैसे राज्य ऊपर हैं।
जारी किया गया यह आंकड़ा सन् 2019-20 के तीसरे एडिशन का है। तब कोरोना का भी असर शुरू नहीं हुआ था। कोरोना के बाद तो स्कूली शिक्षा पर बहुत ज्यादा और अभूतपूर्व बदलाव आया है। ऑनलाइन पढ़ाई जैसे आकलन इस सर्वेक्षण में है नहीं। राज्य में अभी हजारों पदों पर शिक्षकों की भर्ती रुकी है। समय पर किताबें, छात्रवृत्ति और बालिकाओं को साइकिलें नहीं बंट पाने की शिकायत हर साल आती है। छात्रों की संख्या घटने की वजह से सैकड़ों स्कूलों को बंद करना पड़ा है। दूसरी ओर पिछले साल से स्वामी आत्मानंद विशिष्ट अंग्रेजी स्कूल खोलकर एक बेहतर काम भी शुरू किया गया है, जिसके परिणाम अभी आने वाले हैं।
फिर भी, इस केन्द्र की इस ग्रेडिंग को एक मौका माना जा सकता है गुणवत्ता में सुधार लाने का। हमारे सामने टॉप सूची में शामिल पंजाब का भी उदाहरण है। पंजाब ने 3 सालों में लगभग तीन हजार स्कूलों में स्मार्ट कक्षायें शुरू की हैं। इसके अलावा शिक्षा के स्तर, बुनियादी सुविधा, समान शिक्षा और शासन प्रक्रिया में व्यापक सुधार की बात आई है। सर्वेक्षण निरीक्षण के लिए हर स्तर पर कमेटी बनी है। सरकारी स्कूलों में पिछले 2 सालों में पांच लाख से ज्यादा नए बच्चों ने दाखिला लिया है। क्या हमारे यहां ऐसा नहीं हो सकता?
घर पहुंच मालिश, पर सम्हलकर
मालिश का काम चाहे परंपरागत रूप से हिंदुस्तान में बहुत पहले से चले आ रहा हो, लेकिन जैसे-जैसे इसकी आधुनिक सेवा शुरू हुई वह तरह-तरह की सनसनी से भरी रही। मसाज पार्लर के नाम पर कई जगहों पर जिस तरह के देह सुख देने का काम चलता है, उस पर अगर इलाके की पुलिस मेहरबान ना रहे तो कभी-कभी उन पर कोई कार्यवाही भी होते दिखती है। अब फेसबुक पर रायपुर, दुर्ग, भिलाई के लिए यह इश्तहार दिख रहा है जिसमें घर पर जाकर किसी अकेली महिला या किसी जोड़े की मालिश की सर्विस बताई जा रही है, लेकिन किसी अकेले पुरुष की मालिश से इनकार किया जा रहा है. अब इसका क्या मतलब हो सकता है लोग अपने आप निकालते रहें। फेसबुक के बहुत से इश्तहार धोखा देने वाले रहते हैं, देख समझकर ही फंसें।
भारतीदासन का बड़ा प्रमोशन
सरकार के ढाई साल पूरे होने के साथ ही एक बड़ा प्रशासनिक फेरबदल किया गया। इनमें रायपुर, और कोरबा कलेक्टर का तबादला अपेक्षित था। दोनों को ढाई साल हो चुके थे। फेरबदल के बाद रायपुर कलेक्टर एस भारतीदासन पॉवरफुल होकर उभरे हैं। उन्हें सीएम के विशेष सचिव के साथ-साथ कमिश्नर जनसंपर्क, और सरकार की फ्लैगशिप योजनाएं नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी, और गोधन न्याय योजना का नोडल अधिकारी बनाया गया है। उन्हें विशेष सचिव कृषि की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
भारतीदासन अपने कार्यकाल में निर्विवाद रहे हैं, और उनकी कार्यशैली को सबने पसंद भी किया। यही वजह है कि सीएम ने उन्हें अपने साथ रखा है। कोरबा कलेक्टर किरण कौशल को मार्कफेड में लाया गया है। मार्कफेड का करीब 15 हजार करोड़ का कारोबार है। मार्कफेड का अतिरिक्त प्रभार विशेष सचिव अंकित आनंद के पास था, जो कि इससे मुक्त होना चाह रहे थे। राजनांदगांव कलेक्टर टोपेश्वर वर्मा को पहली बार सचिव बनने के साथ ही अहम विभाग भी मिला है। उन्हें खाद्य सचिव के साथ-साथ परिवहन विभाग का भी दायित्व सौंपा गया है।
पहली बार में पुराना जिला
सरकार ने पिछले ढाई साल से जनसंपर्क की कमान संभाल रहे तारण प्रकाश सिन्हा को कलेक्टर बनाकर राजनांदगांव भेजा गया। राजनांदगांव राजनीतिक, और प्रशासनिक दृष्टि से काफी अहम जिला है। तारण सिन्हा ने जब जनसंपर्क का प्रभार संभाला था जब सरकार नई-नई थी, और विभाग में भ्रष्टाचार की गूंज चौतरफा सुनाई दे रही थी। पिछली सरकार के लोगों ने सालभर का बजट तीन महीने में ही उड़ा दिया था।
ऐसे विपरीत माहौल में विभाग और नई सरकार की छवि निखारने की जिम्मेदारी भी उन पर थी। उन्होंने अपना काम बेहतर तरीके से किया। उन्हें सीएम का भरपूर समर्थन भी मिला। उन्होंने विभाग में अनुशासन लाने, और रणनीति बनाकर देश-प्रदेश में सरकारी योजनाओं के लिए प्रचार-प्रसार खूब मेहनत की। उन्होंने विज्ञापनों में भेदभाव की शिकायतों को काफी हद तक दूर किया। वे सरकार की अपेक्षाओं में खरे उतरे। यही वजह है कि पहली बार में उन्हें पुराने जिले की कमान सौंपी गई है।
निगम से राजधानी कलेक्टर
नगर निगम आयुक्त सौरभ कुमार का कद एकाएक बढ़ा है, और उन्हें रायपुर कलेक्टरी सौंपी गई है। सौरभ कुमार सरकार बदलने के बाद कुछ तकलीफ में थे, और अनियमितता की शिकायतों की जांच के घेरे में आ गए थे। लेकिन जब उन्हें निगम कमिश्नर की जिम्मेदारी सौंपी गई, तो उन्होंने काफी बेहतर काम किया, और सरकार की मंशा में खरे उतरे। महापौर एजाज ढेबर भी उन्हें कलेक्टर बनवाने में लगे हुए थे। इसका प्रतिफल यह रहा कि उन्हें रायपुर कलेक्टर बनाया गया।
इससे परे प्रधानमंत्री के सवालों का सही ढंग से जवाब नहीं देने के कारण जांजगीर-चांपा कलेक्टर यशवंत कुमार का हटना तय माना जा रहा था। उनकी जगह जितेन्द्र शुक्ला को भेजा गया है। जितेन्द्र जिले में जाने के लिए काफी उत्सुक भी थे।
इसी तरह किरण कौशल की जगह रानू साहू को भेजा गया, जिनके परिवार से सीएम का पुराना घरोबा रहा है। महिला की जगह महिला कलेक्टर की पोस्टिंग हुई है। इसी तरह पी एस एल्मा को बड़ा जिला देकर उपकृत किया गया है।
भाग दौड़ से बचना है तो टीके के लिये खर्च करिये
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी है कि निजी अस्पतालों को 1 करोड़ 20 लाख टीके मई माह में दिये गये। अपने छत्तीसगढ़ में भी ये टीके आये हैं जो अपोलो सहित कुछ बड़े अस्पतालों में उपलब्ध हैं। ये टीके लगभग 800 रुपये में लगाये जा रहे हैं। इधर छत्तीसगढ़ सरकार भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट को 75-75 लाख टीकों का ऑर्डर कर चुकी है, जो 18 से 44 साल के लोगों को लगाये जायेंगे। इसके लिये रजिस्ट्रेशन भी चल रहा है। करीब 10 दिनों के बाद एक बार फिर इस वर्ग को टीका लगाने की शुरुआत आज से की गई है। राजधानी के लिये ही 14 हजार टीके आबंटित किये गये हैं। पिछली बार देखा गया था कि टीके लगाने के लिये जो सेंटर मिल रहे हैं वे शहरों से 20-20 किलोमीटर दूर हैं। बारी भी देर से आ रही है। इससे परेशान लोग मुफ्त टीका लगवाने का मोह छोडक़र निजी अस्पतालों की तरफ मुड़ रहे हैं। पर दिक्कत यह है कि निजी अस्पतालों में भी मांग के अनुरूप सप्लाई नहीं हो रही है। आने वाले दिनों में जब आपूर्ति की स्थिति में सुधार होगा, बहुत संभव है कि जो भी सक्षम हैं भाग-दौड़ से बचने के लिये निजी अस्पतालों को प्राथमिकता दें। वैसे लोगों को हाईकोर्ट में सरकार की ओर से कुछ दिन बाद दिये जाने वाले जवाब की भी प्रतीक्षा है जिसमें वह बतायेगी कि 18 से 44 वर्ष के लोगों को टीके लगाने के लिये उसके पास क्या योजना है।
प्राइवेट के जरिये हरियाली लौटाने की कोशिश
इस बार भी हर वर्ष की तरह विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधे लगाने की होड़ रही पर हर साल की तरह इस बार भी सवाल यही बना रहा कि इनमें से कितने पौधे बचेंगे। जब भी शहर के विकास की बात होती है तो वर्षों पुराने हरे-भरे पेड़ काटे जाते हैं। लक्ष्य उससे 10 गुना अधिक पौधे लगाने का रखा जाता है पर सच्चाई यह है कि काटे गये पौधों के मुकाबले 10 फीसदी भी नये पौधे नहीं पनपते। रायपुर में स्मार्ट सिटी और नगर निगम दोनों को विकास कार्य करने हैं। इसलिये ज्यादा पेड़ काटने पड़ते हैं। दानी स्कूल, माधवराव सप्रे स्कूल जैसे जगहों पर काटे गये सैकड़ों पुराने पेड़ की जगह दुबारा हरियाली लौटेगी या नहीं यह सवाल बना हुआ है। दावा बीते वर्षों में हर साल पांच हजार पौधे लगाने का किया जा रहा है, पर इनमें से कितने पौधे बच पाये यह भी लोगों को दिखाई दे रहा है। अब स्मार्ट सिटी ने पौधे लगाने के साथ साथ उसकी देखभाल का ठेका निजी कम्पनी को देना तय किया है। निजी कम्पनी सरकारी ठर्रे पर ही काम करेगी या कुछ हरियाली बचाये रखने में मदद कर पायेगी, यह आने वाले वर्षों में दिखाई देगा।
छत्तीसगढ़ की सीमा पर वसूली का धंधा
बड़े-बड़े लाल अक्षरों में छपे हुए 135 रुपये पर मत जाईये। असली फीस वह नहीं है। रसीद के साथ चिपकाये गये छोटे से पर्चे में वसूल की गई असली रकम हाथ से लिखी गई है। जो अधिकारिक एंट्री शुल्क से 20 गुना ज्यादा, यानि करीब 27 सौ रुपये है। वेंकटनगर के खूटाटोला बैरियर में छत्तीसगढ़ प्रवेश के लिये यह लगान जमा करनी होती है। समझा जा सकता है कि आये दिन मध्यप्रदेश से आने वाली गाडिय़ों में गांजा, शराब क्यों बरामद होती है। जब एक नंबर के माल के लिये 20 गुना अधिक रकम ली जा रही हो तो तस्करी के सामान का तो हिसाब लगाया ही जा सकता है। फेसबुक पर वाहन मालिकों की इस पीड़ा को गौरेला के एक पत्रकार साथी ने शेयर किया है।
हमारे चुने गये नेताओं की क्या भूमिका?
सरकार के ढाई साल बीतने को हैं पर बीते विधानसभा चुनाव में पसीना बहाने वाले अनेक नेता राजसुख भोगने से वंचित हैं। अब रही सही कसर भी केन्द्र सरकार पूरी कर दे रही है। जिला खनिज न्यास ट्रस्ट में पूरे प्रदेश में अनेक अशासकीय सदस्यों की नियुक्ति की गई थी। इनमें अधिकांश कांग्रेस से जुड़े हुए लोग हैं। अब केन्द्र सरकार के नये नोटिफिकेशन के मुताबिक जलवा कलेक्टर और सांसदों का रहेगा। ये अशासकीय सदस्य बाहर हो जायेंगे। जब राज्य की भाजपा सरकार थी, कलेक्टरों को जिला खनिज न्यास समितियों में सर्वेसर्वा बनाया गया था। वही व्यवस्था फिर लागू होने वाली है। राज्य सरकार की ओर से जिले के प्रभारी मंत्री को अध्यक्ष बनाने की अनुशंसा की गई है, पर जैसा अब तक केन्द्र का रुख रहा है राज्य सरकार की बात सुनी जायेगी, इसकी उम्मीद कम ही है। जब कलेक्टर अध्यक्ष हुआ करते थे तब डीएमएफ के पैसों की कम बर्बादी नहीं हुई है। इसके कई उदाहरण हैं।
यह एक ऐसा फंड है जिसका इस्तेमाल राज्य सरकार अपनी उन जरूरतों के लिये करती रही है, जिनका बजट में सीधे आबंटन नहीं रहा। प्रदेश में स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोलने में, कोविड काल में उपकरणों की आपात कालीन खऱीदी में इस फंड का खूब इस्तेमाल किया गया है। अब दो बातें हो गईं। पूरा फंड कलेक्टर के पास आ गया, जनप्रतिनिधियों की भूमिका खत्म हो गई। दूसरी, जो कांग्रेस कार्यकर्ता समितियों में रखे गये थे, उनका भी कार्यकाल अधूरा रह गया। वैसे जब यह बात की जा रही है तो आपका ध्यान स्मार्ट सिटी परियोजना पर भी जाना चाहिये। रायपुर, नया रायपुर और बिलासपुर में जो फंड आयुक्तों को मिले हैं उसे वे अपनी मर्जी से खर्च कर सकते हैं। महापौरों, पार्षदों से सहमति लेने की जरूरत नहीं है। ध्यान रहे, गांव शहर दोनों में ज्यादातर काम ब्यूरोक्रेट्स करेंगे, आपकी ओर से चुने गये प्रतिनिधियों की भूमिका सीमित है।
बीजेपी संगठन में बदलाव?
प्रदेश भाजपा संगठन में बड़े बदलाव के संकेत हैं। चर्चा है कि महामंत्री (संगठन) पवन साय की आरएसएस में वापसी हो सकती है, और उनकी जगह प्रचारक रहे डॉ. देवनारायण साहू को भाजपा संगठन में भेजा जा सकता है। डॉ. देवनारायण साहू, वर्तमान में विद्या भारती का काम देख रहे हैं, और वे भी आरएसएस के प्रचारक रहे हैं।
पवन साय पिछले कुछ सालों से महामंत्री (संगठन) के पद पर हैं, लेकिन पार्टी के भीतर कलह को शांत करने में कामयाब नहीं रहे। वे काफी सरल स्वभाव के हैं। उन पर दबी जुबान में पार्टी के कुछ नेता आरोप भी लगाते हैं कि वे एक-दो प्रभावशाली नेताओं के दबाव में ही काम करते हैं। यही वजह है कि पार्टी के ज्यादातर जिलों में हारे, या पुराने नेताओं को ही पद मिला है। नए लोगों को उभरने का मौका नहीं मिल पाया है। हाल यह है कि ढाई साल बाद भी पार्टी की अंदरूनी हालत खराब हो चली है।
चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी, और छत्तीसगढ़ के संगठन प्रभारी शिव प्रकाश भी बड़े बदलाव के पक्ष में बताए जाते हैं। ऐसे में डॉ. देवनारायण साहू को पार्टी संगठन में अहम जिम्मेदारी मिलने के संकेत हैं। डॉ. साहू, पिछड़े वर्ग में सबसे बड़ी आबादी साहू समाज से आते हैं। वे भी पवन साय की तरह अविवाहित हैं, और प्रचारक रहते पीएचडी की उपाधि हासिल की।
कुछ लोगों का अंदाजा है कि डॉ. साहू 45 वर्ष के हैं, और उन्हें एकदम से महामंत्री (संगठन) जैसा अहम दायित्व शायद न देकर संभागीय संगठन मंत्री बनाया जा सकता है। वैसे भी सरगुजा, बस्तर के संगठन मंत्री के पद खाली हैं। डॉ. साहू के अलावा कुछ और प्रचारकों को पार्टी संगठन में भेजा जा सकता है। इसकी कवायद चल रही है। देखना है कि आगे-आगे होता है क्या।
देवता अब तो विनती सुन लो...
धरना-प्रदर्शन, ज्ञापन आवेदन जैसे गुहार के सारे तरीके व्यर्थ लगने लगे तो अफसर देवता नजर आने लगते हैं। कोरबा जिले के एसईसीएल के गेवरा खदान से विस्थापित गांव बरभांठा में पेयजल की घोर समस्या है। ग्रामीणों ने अपनी बात अधिकारियों तक पहुंचाने की हरसंभव कोशिश की। सुनी नहीं गई तो उन्होंने दीवार पर सीएमडी एपी पांडा और मुख्य महाप्रबंधक एस के मोहन्ती की तस्वीर चिपकाई। अगरबत्ती जलाकर पूजा पाठ किया। भोग प्रसाद चढ़ाया। आरती उतारी या नहीं इसका पता नहीं, पर कहा- देव अब तो खुश हो जाओ, मान जाओ। पानी की समस्या दूर करो। पता नहीं इस भक्ति का फल गांव के लोगों को कब मिलेगा। फिलहाल तो समस्या जस की तस बनी हुई है।
क्या चली गई दूसरी लहर?
प्रदेश में बीते 24 घंटे के दौरान 14 सौ से ज्यादा कोरोना संक्रमित मरीज मिले। कभी ब्रिटेन से राजधानी लौटी एक अकेली लडक़ी के केस ने हाहाकार मचा दिया था। मगर आज यह आंकड़ा लोगों के माथे पर बल नहीं दे रहा है। क्योंकि यह दूसरी लहर के तीव्र वेग के दौरान मिले मामलों से बेहद कम है। इन दिनों सडक़ों, दुकानों पर जिस तरह से भीड़ उमड़ी है, समझ आ रहा है कि सोशल डिस्टेंस को भुला दिया गया है। मास्क को पुलिस से बचने के लिये गले पर लटकाया जा रहा है, हर ओर बेफिक्री दिख रही है। गैर जिम्मेदारी का नमूना यह है कि लोग वैक्सीन लगवाने के लिये भी टीकाकरण केन्द्रों में नहीं पहुंच रहे हैं। सरकार पर तो सवाल उठाना तो हक है पर अब जब कोई लहर आयेगी तो इसके लिये हम-आप कितने जिम्मेदार माने जायेंगे, यह भी सोचना जरूरी है।
महिलाओं के नाम दो उपलब्धियां
कोरोना की दूसरी लहर में हर तरफ से आ रही चिंता बढ़ाने वाली ख़बरों के बीच छत्तीसगढ़ को महिला शक्ति से जुड़ी दो उपलब्धियां हासिल हुईं। बस्तर जिले के एकटागुड़ा गांव की नैना सिंह धाकड़ का एवरेस्ट फतह करना और लैंगिक समानता में छत्तीसगढ़ को नीति आयोग द्वारा पहले स्थान रखा जाना काफी महत्व रखता है।
आम तौर पर प्रदेश में पर्वतारोहण की ओर रुझान कम रहा है। ऐसे में सुदूर बस्तर से आने वाली नैना की उपलब्धि युवाओं को प्रेरित करेगी। नैना का कहना है कि बार-बार मौसम की वजह से परेशानी हुई पर एक जून को आखिरकार सबसे ऊंची चोटी पर पहुंच गईं। अफवाहें भी फैलाई गई कि वे बीमार पड़ गई हैं।
नीति आयोग ने अनेक योजनाओं में महिलाओं की अच्छी भागीदारी का जिक्र तो किया है लेकिन अभी कोरोना काल में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और मितानिनों की भूमिका का भी उल्लेख होना जरूरी है। लोगों को बीमारियों से बचाने के लिये दवायें बांटना, वैक्सीन के लिये जागरूकता करना, घर-घर जाकर मरीजों का पता करना, स्कूली बच्चों के घर तक सूखा राशन पहुंचाना कुछ ऐसे काम थे जो कठिन थे।
ऐसे तो विपक्ष धारदार नहीं हो सकता
भाजपा के राष्ट्रीय नेता, जिन्हें प्रदेश का प्रभार मिला है विपक्ष के रूप में पार्टी के कमजोर प्रदर्शन को लेकर आगाह कर चुके हैं। पर यह आक्रामकता किस तरफ मुड़ जाये और अप्रिय स्थिति पैदा कर दे, कह नहीं सकते। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के उस बयान की आलोचना हो रही है जिसमें उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस महंगाई को राष्ट्रीय आपदा मानती है तो वे खाना-पीना और पेट्रोल भरवाना बंद कर दें, महंगाई कम हो जायेगी। जाहिर है बयान सही नहीं है। यदि किसी ने खाना-पीना बंद कर दिया तो हश्र क्या होगा यह बताने की जरूरत नहीं है। बृजमोहन अग्रवाल ने अब से करीब पांच साल पहले भाजपा के मंच से कार्यकर्ताओं से कहा था कि जो भारत माता की जय नहीं बोले, उसका जबड़ा तोड़ दो। बीते लोकसभा चुनाव में कोरबा में एक सभा को सम्बोधित करते हुए कहा था कि ‘नामर्द’ कांग्रेसियों ने अक्षरधाम और मुम्बई हमले के बाद कुछ नहीं बोला। वैसे किसी एक दल या एक नेता की बात नहीं है। जबान फिसलती रहती है। पर कितनी बार?
देर से आये पर दुरुस्त भी नहीं आये
अब जब कोविड सेंटर्स खाली होने लगे हैं, छत्तीसगढ़ योग आयोग का ध्यान गया है कि लोगों को योग सिखाया जाये। हालांकि कोविड से छुटकारा पाने के बाद भी लोगों की सेहत सुधरने में समय लगता है इसलिये अब शुरू किया गया है तब भी गलत नहीं। पर दिक्कत यह है कि ये क्लासेस ऑनलाइन चल रही है। यू ट्यूब पर कल इसके कुल दर्शक मिले 117- यानि बेहद कम। फेसबुक में भी ऑनलाइन स्ट्रीमिंग की जा रही है, जिन्हें हर बार 15-20 लोगों ने लाइक किया है। वैसे यह क्लासेस एक साल तक चलेगी। इसके अलावा योग आयोग के सोशल मीडिया पेज पर यह सुरक्षित भी रहेगा, जिन्हें बाद में भी देखा जा सकता है। इसलिये आगे दर्शक बढ़ भी सकते हैं। अच्छी बात यह भी है कि योग आयोग आयुर्वेदिक दवाओं की दुकान सजाकर नहीं रखता। पर कोविड सेंटर में योग क्लास प्रत्यक्ष चलाने के बारे में आयोग ने विचार किया होता तो शायद ज्यादा लोग लाभ उठा पाते। इधर कुछ कोविड सेंटर में प्रत्यक्ष क्लासेस चल रही है। इसे डॉक्टर और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी अपनी खुद की प्रेरणा से चला रहे हैं। तस्वीर पत्थलगांव के कोविड सेंटर्स की है।
कोरबा के गांव में कोरोना से बचने के कायदे
महात्मा गांधी कहते थे गांव की व्यवस्था गांव वाले ही संभालें। थोड़ा पीछे जाएं तो गांव में सरपंच और पंचों का एक समूह नियम-कायदे तय करता था। पर धीरे-धीरे यह हुआ कि सामाजिक बहिष्कार करने जैसे फैसले लिये जाने लगे और मामले पुलिस अदालत में पहुंचने लगे। अब कोरबा जिले की एक जो खबर है उस पर आप अपने हिसाब से निष्कर्ष निकालिये कि यह ठीक है या गलत। करतला ब्लॉक के जोगीपाली पंचायत के मांझी आदिवासियों ने तय किया है कि घर से बाहर निकलेंगे मास्क लगाना जरूरी है। बिना मास्क दिखे तो 10 रुपये जुर्माना देना पड़ेगा। उस जुर्माने की रकम से आपको मास्क खरीद कर दी जाएगी। लॉकडाउन के नियम नहीं मानने पर, बाहर से लौटने पर गांव में घुसने तो दिया जायेगा लेकिन 1000 रुपये जुर्माना देना होगा।
ऐसे वक्त में जब कोरोना को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां गांवों में फैली हुई है, किसी गांव में इतनी सतर्कता बरती जा रही हो तो सुनकर हैरानी तो होती है।
बस तस्वीर भली है, हक और हकीकत नहीं
गांवों की ऐसी तस्वीर आपको सिर्फ देखने में भली लग सकती है, भोगने में नहीं। जब इतना भारी कंडों का बोझ लिये महिलायें जा रही हैं तो दो चार दिन नहीं आने वाली पूरे बारिश की चिंता उनको होगी। सरकारी आंकड़े हैं कि देश के 24 करोड़ गरीब परिवारों को उज्ज्वला गैस सिलेंडर दी गई। पर किसी को पता नहीं कि इस सिलेंडर से कितनों के घर चूल्हा जलता है।
(सौजन्य-प्राण चड्ढा)।
कुतर्क का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं
लोगों से किसी किस्म की सावधानी की बात की जाए तो वे उसके खिलाफ हजार किस्म के कुतर्क तैयार रखते हैं। सिगरेट पीने वाले बड़े-बड़े ज्ञानी-विद्वान ऐसे रहते हैं जिन्हें सिगरेट के नुकसान गिनाएं, तो वे अपने परिवार की मिसालें देते हैं कि उनके घर कौन-कौन रोज कितनी-कितनी सिगरेट पीते हुए कितनी लंबी उम्र तक जिंदा रहे हुए हैं। अभी फेसबुक पर किसी ने के लिखा कि उनके दफ्तर का एक कर्मचारी रोजाना दर्जनों लोगों से मिलता है, लेकिन अभी तक कोरोना से इसलिए बचा हुआ है कि पिछले 15 महीनों में उसने मास्क उतारकर कभी दफ्तर में या बाहर अपना चेहरा ही नहीं दिखाया है। इस पर किसी ने छत्तीसगढ़ के ही एक शहर के डॉक्टर का नाम लिखा कि उनके दोनों बेटे भी डॉक्टर हैं, और इन तीनों ने एक भी दिन मास्क नहीं लगाया।
अब जो लोग डॉक्टर रहते हुए भी इस पूरे दौर में मास्क लगाने से परहेज करते रहे हैं, उनसे क्या बहस की जा सकती है? बहस तो उन्हीं लोगों से हो सकती है जो कि विज्ञान को मानते हों, चिकित्सा विज्ञान के दिखाए गए खतरों से सावधान रहते हों। कई ऐसे भी लोग हैं जो वैक्सीन के खिलाफ साजिश की कहानियों में डूबे रहते हैं, और गंभीर बीमारियों के बाद भी वैक्सीन नहीं लगवाते।
कुछ लोगों ने फेसबुक की इस चर्चा पर तंज कसते हुए यह लिखा है कि वह ऐसे बहुत से लोगों को जानते हैं जिन्होंने कभी सीट बेल्ट और हेलमेट नहीं लगाया है फिर भी जिंदा हैं। दरअसल खतरा सिगरेट का हो कोरोनावायरस या सडक़ हादसे में मरने का हो, लापरवाही बरतते लोगों के भी जिंदा रहने की मिसालें कम नहीं रहतीं और ऐसी मिसालें दूसरे लोगों की लापरवाही बढ़ाने के काम आती हैं।
जोगी को याद किया जाना
कसडोल की कांग्रेस विधायक शकुंतला साहू के सोशल मीडिया पोस्ट आये दिन ध्यान खींच लेते हैं। यह पोस्ट कुछ दिन पुरानी है पर प्रासंगिक है। प्रथम मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी की प्रथम पुण्यतिथि पर विभिन्न राजनैतिक दलों और साथ काम कर चुके ज्यादातर नेताओं ने जब उनका स्मरण करने की जरूरत नहीं समझी विधायक साहू ने याद किया। उनको याद करना सहज है, स्वाभाविक भी। पर इसका राजनैतिक असर कितना होगा वे जानें। वैसे जिन्होंने ध्यान नहीं दिया वे जान लें कि जोगी जिसे दुश्मन नंबर वन समझते थे, उन भूपेश बघेल ने भी श्रद्धांजलि पोस्ट की थी, जिसके शब्द गौर करने लायक थे।
बैंड बाजे पर पाबंदी
कुछ जिलों में लॉकडाउन ढील के साथ 7 जून तक बढ़ाया गया है पर ज्यादातर जिले 1 जून से खुल गये हैं। सारी सेवाएं लगभग अनलॉक हो चुकी हैं। कुछ लोग अभी इंतजार कर रहे हैं कि छूट का फायदा मिल रहा है तो सबको मिलना चाहिए। अब शादी के ही मामले को ले लीजिए, अनुमति दे दी गई है 50 लोगों की। शादी तो होगी मगर बैंड बाजा के बगैर। बाजा बजाने वालों को अभी छूट नहीं है। शादी का माहौल तो बैंड बाजे से ही बनता है। सैकड़ों लोगों की रोटी इस धंधे से जुड़ी हुई है। इन लोगों ने सरकार से गुहार लगाई है कि जब सबको छूट मिल रही है तो बैंड बाजे से क्यों परहेज रखा जा रहा है। प्रशासन को लगता होगा, बैंड बाजे से खतरा कम है, पर ज्यादा नागिन डांस वाले कोरोना फैला सकते हैं।
मानसून की आहट
इस बार मौसम का मिजाज कुछ बदला हुआ था। गुजरात और आंध्र प्रदेश की ओर से दो-दो तूफान आ गये। असर ऐसा रहा कि तापमान बार-बार गिरा। वैसे भी घरों में लोग लॉकडाउन के चलते घुसे हुए थे। इसलिए सूरज की तपिश ज्यादातर लोगों ने महसूस नहीं की। रायपुर और बिलासपुर का अधिकतम तापमान 44 डिग्री तक ही पहुंच पाया, जो इससे भी तीन डिग्री ऊपर जाता रहा है। अब बात बारिश की होने लग गई है। मौसम विभाग की सूचना है कि मानसून की आहट हो चुकी है। अगले 24 घंटे में केरल और कर्नाटक के तट पर बारिश होने वाली है। ट्रेन्ड रहा है कि दक्षिण में मानसून पहुंचने के 7 दिन के भीतर यह छत्तीसगढ़ भी पहुंच जाता है। यानि 7-8 जून तक हम मानसून आने का अंदाजा कर सकते हैं जो आमतौर पर 15 जून के बाद आता है।
बिना टीका लगाये लाइन पर
तो तय हो गया कि 12वीं की परीक्षा घर बैठकर देनी है। उत्तर पुस्तिकाएं लेने के लिए स्कूलों में कतार लगी। ज्यादातर केंद्रों में सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल किसी ने नहीं किया। न छात्रों ने, अभिभावकों ने और न ही स्कूल के प्रबंधकों ने। यह लापरवाही कोरोना फैलाने में कितनी मदद करेगी, कुछ दिन के बाद मालूम हो सकेगा। ऐसी ही कतार उत्तर पुस्तिकाओं को जमा करने के लिये भी लगने वाली है। पर एक सवाल अधूरा रह गया जिसमें दिल्ली, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने मांग की थी कि 12वीं के बच्चों को पहले कोरोना वैक्सीन लगाई जाये, फिर घर से बाहर निकलने की इजाजत दी जाये। यह सही है कि ज्यादातर बच्चे 18 साल से कम उम्र के हैं पर इस उम्र तक पहुंचने वाले तो हैं ही। जिस तरह से बहुत से वर्गीकरण करते हुए टीका लगाने की प्राथमिकताएं तय की गई हैं, इन छात्रों को भी मौका दिया जा सकता था। खासकर तब जब अगली लहर को बच्चों के लिये ज्यादा घातक बताया जा रहा हो।
जन्म तारीख का मौसम
आज 1 जून को छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस अफसर आरिफ शेख ने फेसबुक पर लिखा है कि आज उनके 46 फेसबुक दोस्तों का जन्मदिन है। उन्होंने लिखा है कि भारत में स्कूल आमतौर पर जून के दूसरे सोमवार से शुरू होते हैं और 1 जून तक जिन बच्चों के 5 साल पूरे हो जाते हैं तो उन्हें पहली कक्षा में एडमिशन मिलता है इसलिए बहुत से बच्चों का जन्मदिन मां बाप या स्कूल शिक्षकों द्वारा 1 जून लिखवा दिया जाता है ताकि उनका दाखिला आसानी से हो जाए।
कोई आधी सदी पहले मध्यप्रदेश में स्कूल 1 जुलाई से खुला करती थीं, बाद में कब वह कैलेंडर बदला यह तो ठीक से याद नहीं है लेकिन उस वक्त जन्म तारीख अगर 30 जून रहती थी, तो उस दिन तक पैदा होने वाले और 5 बरस पूरे करने वाले बच्चों को स्कूलों में दाखिला मिल जाता था। इस उम्र के साथ-साथ एक और पैमाना उन दिनों चलता था कि बच्चों के हाथ उनके सिर पर से लाकर उनके कान छुआए जाते थे, और अगर हाथ कान तक पहुंच जाते थे, तो भी उनका दाखिला हो जाता था। वह दौर ऐसा था जब कोई जन्म प्रमाण पत्र ना बनते थे ना लगते थे, और स्कूल में लिखाई गई जन्म तारीख ही बात में जन्म प्रमाण पत्र मान ली जाती थी।
रायपुर में एक संयुक्त परिवार ऐसा भी है जिसके हर बच्चे की जन्म तारीख 30 जून दर्ज है। ऐसे परिवार कम नहीं होंगे।
अब तो फैशनेबल निजी स्कूलों में पहली कक्षा के पहले भी दो-तीन कक्षाएं और होती हैं, प्ले स्कूल, के जी-1, के जी-2, नर्सरी, पता नहीं इनमें आगे-पीछे क्या होता है। और बच्चों का ढाई-तीन साल से ही स्कूल जाना शुरू हो जाता है। अब पता नहीं किस दाखिले के लिए कौन सी तारीख आगे पीछे करके लिखाई जाती है या फिर अब अस्पतालों से ही पैदा होते ही मिलने वाले जन्म प्रमाण पत्रों की वजह से यह फर्जीवाड़ा कुछ कम हुआ है। बहुत से मामलों में तो पहले यह होता था कि लोग सरकारी नौकरी पाने के बाद रिटायर होने के पहले भी अपनी जन्म तारीख से सुधरवाते रहते थे ताकि नौकरी में 2-4 बरस और गुजर जाएं। अब धीरे-धीरे वैसे चर्चा भी कम सुनाई पड़ती है।
मौत कोरोना से होने का सर्टिफिकेट कहां है?
कोरोना से अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चों के लिए 3 दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मदद का ऐलान किया। साथ ही अपील की फिर आज भी ऐसे बच्चों की सहायता के लिए राज्य भी आगे आयें। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ सरकार ने तय किया है की बेसहारा बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी। इसके अलावा उन्हें हर माह छात्रवृत्ति भी मिलेगी। इन्हें स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी उत्कृष्ट स्कूलों में प्रवेश के लिये प्राथमिकता भी दी जायेगी। यह सब तो ठीक है पर दूसरी तरफ विभिन्न जिलों से खबर आ रही है कि कोरोना से मरने वालों के मृत्यु प्रमाण पत्र में इस महामारी से मृत्यु होने का उल्लेख नहीं किया जा रहा है। पंजीयन अधिकारी वजह सिर्फ यह बता रहे हैं कि शासन से ऐसा ही निर्देश आया है। मगर यह निर्देश क्यों दिया गया है, इसकी उनको जानकारी नहीं है। मालूम हुआ है कि मुआवजे का दावा नहीं किया जा सके, इसलिये यह अघोषित नियम बना दिया गया। पर सवाल उठ रहा है कि अनाथ बच्चे सर्टिफिकेट नहीं होंगे तो योजनाओं का फायदा कैसे उठा पाएंगे?
नये कृषि कानून की झलक
केन्द्र का कहना है कि नया कृषि कानून राज्यों को मानने की बाध्यता है। राज्य सरकार ने इसे असरहीन करने के लिये दो विधेयक पारित किये हैं जिन पर अभी राज्यपाल के हस्ताक्षर की जरूरत है। इस हिसाब से केन्द्र का कानून राज्य में लागू होना ही माना जाना चाहिये। इधर बेमेतरा जिले की घटना से समझा जा सकता है कि इस कानून के क्या नफा-नुकसान हैं। यहां के 40 गांवों के ढाई सौ से ज्यादा किसानों ने 12 सौ एकड़ में नर-नारी बीज बोया। ये बीज एक निजी कम्पनी ने उपलब्ध कराये थे, ज्यादा पैदावार का आश्वासन मिला था। इसकी बोनी और देखभाल पर काफी खर्च भी हुआ। बालियां बढऩे लगी तो किसानों को खुशी भी हुई, मगर तब झटका लगा जब फसल तैयार हुई तो उसमें दाने ही नहीं पड़े। किसान लुट गये। कम्पनी ने एग्रीमेंट किया था, पर जिसमें बीज ही नहीं, वह फसल वह कैसे खरीदे, हाथ खड़े कर दिये। किसान अब मुआवजे की मांग कर रहे हैं। कम्पनी जो मुआवजा देने का आश्वासन दे रही है वह फसल की लागत के भी बराबर नहीं है। किसान समझ नहीं पा रहे हैं कि कोर्ट का दरवाजा खटखटायें या पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करायें। यह भी डर बना हुआ है कि कम्पनी कहीं नये कानून का हवाला देकर अपने खिलाफ किसी भी शिकायत पर जांच को न रुकवा दे। थोड़ा बहुत मुआवजा जो मिलने वाला है वह भी न मारा जाये। मामला अटका हुआ है। किसान कृषि विभाग से मध्यस्थता की उम्मीद कर रहे हैं, पर वह भी अपना पल्ला झाड़ रहा है।
साइकिल आदत में शामिल कर लें?
राज्य सरकार ने ड्राइविंग लाइसेंस सहित आरटीओ दफ्तर के अनेक काम घर बैठे ऑनलाइन आवेदन के जरिये निपटाने की व्यवस्था की है। यह योजना जनवरी माह में लांच की गई थी। अब उसका विस्तार किया गया है। जब भी ड्राइविंग, आरटीओ, वाहन आदि की बात होती है अचानक पेट्रोल-डीजल की कीमत पर ध्यान चला जाता है। कोरोना के चलते लोग इतने टूटे हुए हैं कि वे घर से निकलकर बढ़ती कीमतों के खिलाफ आंदोलन करने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। विपक्षी दलों का भी यह मुद्दा नहीं है। अभी केवल वैक्सीनेशन हॉट टॉपिक है। लोग लॉकडाउन की वजह से घरों में बैठे थे पर एक जून से ज्यादातर जिले अनलॉक हो रहे हैं। याद होगा जनवरी माह में रायपुर के महापौर ने साइकिल पर दफ्तर आने का अभियान छेड़ा था। वह था तो पर्यावरण और ट्रैफिक सुधारने का संदेश देने के लिये लेकिन लगता है कि अब की बार सौ तो पार हो ही जायेगा। अब रस्म और फोटो खिंचवाने से बाहर निकलकर साइकिल को अपनी आदत में शामिल करना पड़ेगा।
नियामक आयोग की दौड़
सरकार पर जल्द से जल्द बिजली नियामक आयोग का चेयरमैन तय करने का दबाव है। चेयरमैन तय नहीं होने के कारण बिजली की नई दरें घोषित नहीं हो पाई है। आयोग के चेयरमैन-सदस्य के लिए कुल 90 आवेदन आए हैं। चयन कमेटी के मुखिया जस्टिस सतीश अग्निहोत्री की अध्यक्षता में एक वर्चुअल बैठक हो चुकी है।
बड़े दावेदारों में सहकारिता आयोग के चेयरमैन सुनील कुजूर, और राज्य पॉवर कंपनी के पूर्व चेयरमैन शैलेन्द्र शुक्ला सहित कई नाम हैं। सुनील कुजूर ने चेयरमैन के लिए आवेदन किया, तो बाकी दावेदार थोड़े मायूस दिख रहे हैं। वजह यह है कि कुजूर सीएस रह चुके हैं, और वर्तमान में आयोग के अध्यक्ष भी हैं। इन सबके बाद भी उन्होंने चेयरमैन बनने की इच्छा जताई है, तो बाकियों का मायूस होना स्वाभाविक है।
नियामक आयोग में सिर्फ मनोज डे ही अकेले ऐसे चेयरमैन थे, जो कि टेक्नोक्रेट थे। बाकी चेयरमैन आईएएस ही रहे हैं। कुछ लोग याद करते हैं कि मनोज डे की नियुक्ति के समय भी आईएएस को चेयरमैन बनाने के लिए काफी दबाव था। आईएएस लॉबी ने मध्यप्रदेश के पूर्व आईएएस अतिन्द्र सेन का नाम आगे बढ़ाया था।
बताते हैं कि उस समय सीएस पी जॉय उम्मेन भी अतिन्द्र सेन को चेयरमैन बनाने के पक्ष में थे। मगर सीएम डॉ. रमन सिंह ने मनोज डे के नाम पर मुहर लगाई। उस समय चर्चा थी कि मनोज डे के लिए दिग्गज कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा ने भी सिफारिश की थी। खैर, इस बार कुछ लोगों का अंदाजा है कि सीएम भूपेश बघेल किसी टेक्नोक्रेट को चेयरमैन बना सकते हैं। मगर कुजूर का आवेदन चौंका जरूर रहा है।
तबादलों की अटकलें जारी
सरकार के प्रवक्ता और मंत्री रविन्द्र चौबे ने प्रशासनिक फेरबदल की संभावनाओं पर विराम लगाते हुए कहा था कि फेरबदल फिलहाल नहीं होंगे। सरकार की प्राथमिकता कोरोना पर काबू पाने की है। मगर अब कोरोना संक्रमण कुछ हद तक काबू में हैं। ऐसे में अब फिर फेरबदल की अटकलें लगाई जा रही है।
सुनते हैं कि जून महीने में आईएएस, आईपीएस, और आईएफएस अफसरों के बड़े पैमाने पर तबादले होंगे। आईएफएस के पीसीसीएफ से लेकर सीएफ के पदों पर पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू हो गई है, ऐसे में फारेस्ट अफसरों के तबादले की लंबी सूची निकलना तय है। इसमें पीसीसीएफ और सीसीएफ स्तर के अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं। कुछ डीएफओ, और सीएफ का भी बदलना तय है। इसी तरह आईपीएस की भी सूची जारी हो सकती है। जिसमें आधा दर्जन जिलों के एसपी को बदला जा सकता है।
आईएएस में भी बड़े बदलाव के संकेत हैं। इस क्रम में कुछ जिलों के कलेक्टरों को बदला जा सकता है। रायपुर और कोरबा कलेक्टर को दो साल से अधिक हो चुके हैं। चर्चा है कि उन्हें कोई अहम दायित्व सौंपा जा सकता है। मानसून के आने के साथ ही कई जिलों में नए डीएम, एसपी, और डीएफओ का भी आगमन हो सकता है।
लोकप्रिय अफसरों से सरकार को फायदा
कई अफसर लोकप्रियता में अपने मंत्रियों से भी आगे निकल जाते हैं। छत्तीसगढ़ में कुछ ऐसा ही स्वास्थ्य विभाग की एक आईएएस अफसर प्रियंका शुक्ला के साथ है। उनके मंत्री टी एस सिंहदेव के ट्विटर पर 1 लाख 88 हजार से कम फॉलोवर हैं, लेकिन प्रियंका शुक्ला के फॉलोअर्स की गिनती कल दो लाख पार कर गई है। वे सरकार और विभाग के कामकाज के बारे में तो ट्वीट करती ही हैं काम आवे मानवी जीवन की बहुत सारी सकारात्मक बातें पर भी ट्वीट करती हैं। उनकी लोकप्रियता जितनी बढ़ती है उतना ही फायदा उससे सरकार को होता है क्योंकि वह विभाग और सरकार की बहुत सारी सकारात्मक बातों को, कामयाबी की बहुत सारी कहानियों को भी ट्वीट करती रहती हैं। स्वास्थ्य विभाग एक ऐसा अनोखा विभाग है जहां के नए प्रमुख सचिव डॉ आलोक शुक्ला भी लोकप्रियता में आगे हैं और उनकी वेबसाइट ने अभी 31 लाख की दर्शक संख्या पार कर ली है। आलोक शुक्ला भी सरकार की कामयाबी से परे बच्चों के साहित्य को लेकर भी लगातार सक्रिय रहते हैं, और उनकी लोकप्रियता का फायदा भी सरकार की सकारात्मक बातों के प्रचार को मिलता है।
मंत्री पर आंच, जांच में आयेगा सच सामने?
सरस्वती नगर थाने में पुलिस ने ठगी के आरोप में जीवमंगल सिंह टंडन नाम के एक व्यक्ति पर अपराध दर्ज कर उसे गिरफ्तार किया है। कुछ लोगों ने इस बात के सबूत पुलिस को दिये हैं कि एसईसीएल,बीएसपी आदि केन्द्रीय उपक्रमों में नौकरी लगाने के लिये उन्होंने आरोपी को लाखों रुपये दिये हैं। पकड़े गये आरोपी ने अपने बयान में बलरामपुर कलेक्टर और नगरीय प्रशासन मंत्री को लपेट लिया है। उसका कहना है कि चुनाव के दौरान डॉ. शिव डहरिया को उसने करीब 40 लाख रुपये दिये। मंत्री तक कितने रुपये पहुंचे, पहुंचे भी या नहीं यह तो पता नहीं मगर पुलिस की छानबीन का यह मसला जरूर है कि जो 40 लाख रुपये चुनाव में बांटने की बात कर रहा हो उसके ख़िलाफ केवल 19 लाख रुपये की ठगी का मामला सामने आया है। जाहिर है और लोग भी ठगी के शिकार हुए होंगे, पर सामने नहीं आ रहे होंगे। मंत्री की तरफ से भी जवाब आना जरूरी है कि इस व्यक्ति को वे पहचानते हैं या नहीं।
अस्पताल पूछ रहे, तीसरी लहर आयेगी भी?
कोरोना का दूसरा वेव बहुत खतरनाक रहा। देश-प्रदेश के शासन-प्रशासन ने पहली लहर खत्म होने के बाद मान लिया था कि अब खतरा टल गया है। दूसरी लहर आने के बाद आलोचना हुई कि उन्होंने वैज्ञानिकों की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया कि संक्रमण फिर घातक रूप से फैलेगा। कमोबेश जब दूसरी लहर का आक्रमण धीमा हो रहा है, विशेषज्ञ तीसरी लहर की आशंका पर लोगों को सतर्क कर रहे हैं। मार्च के आखिरी सप्ताह के बाद प्रदेश के निजी चिकित्सालयों को आनन-फानन में कोविड मरीजों के अनुकूल बनाया गया। बिस्तर बढ़ाये गये। प्रदेश में 14 हजार से अधिक कोविड बेड तैयार हो गये। मरीजों के कम होने के बाद अब 70 फीसदी से ज्यादा बिस्तर खाली हो गये। न रेमडेसिविर की मांग वैसी है न ऑक्सीजन बेड की। एक बड़े अस्पताल के प्रबंधक चिकित्सक बता रहे हैं कि वे इन दिनों कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित अमेरिका, ब्रिटेन, इटली आदि देशों की खबरों पर नजर बनाये हुए हैं। यदि लहर वहां आयेगी तो पक्का है कि कुछ समय बाद हम भी घिरेंगे। सटीक जानकारी इसलिये चाहिये क्योंकि दर्जनों बिस्तरों के रखरखाव और उसी के एवज में रखे गये स्टाफ का खर्च तो उन्हें वहन करना ही पड़ रहा है।
भूखे भजन न होय गोपाला
विधानसभा चुनाव में ढाई साल बाकी रह गए हैं, और कांग्रेस ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम हो रहा है। संचार विभाग की रोज वर्चुअल बैठक हो रही है। जिसमें पूर्व पत्रकार विनोद वर्मा, रूचिर गर्ग, और अनुभवी अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी रोज संचार विभाग के सदस्यों से मीडिया में उठाए जाने वाले मुद्दों पर बात कर रहे हैं। नामी पत्रकारों का मार्गदर्शन मिल रहा है, तो स्वाभाविक है कि संचार विभाग का काम बेहतर हो चला है।
वर्चुअल बैठक को तीन-चार दिन ही हुए हैं, और अब कुछ सदस्य इसमें अरूचि दिखाने लग गए हैं। वजह यह है कि संचार विभाग के कई सदस्य निगम मंडल में जाने वाले थे। दाऊजी ने उनके नामों पर मुहर भी लगा दी थी। मगर पार्टी में अंदरूनी खींचतान की वजह से सूची जारी नहीं हो पाई। कोरोना की वजह से पहले चुप रहे, लेकिन अब काम का दबाव बढ़ रहा है, तो पद के आकांक्षी सदस्यों में बेचैनी साफ दिख रही है। संचार विभाग के प्रमुख सदस्य सुशील आनंद शुक्ला ने फेसबुक पर लिख भी दिया-भूखे भजन न होय गोपाला। लीजे आपन कंठी माला।। देखना है कि सदस्यों को संतुष्ट करने के लिए पार्टी क्या कुछ करती है।
कागज पर ही रहीं, और चली गईं
तेज तर्रार महिला नेत्री करूणा शुक्ला कोरोना संक्रमण से उबर नहीं पाई, और कुछ दिन पहले चल बसीं। करूणा दो बार विधायक, और एक बार सांसद रहीं। अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करूणा भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहीं। वे सौदान सिंह, और रमन सिंह से विरोध की वजह से कांग्रेस में शामिल हुई थीं। कांग्रेस ने भी उन्हें पूरा सम्मान दिया। करूणा शुक्ला को समाज कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। सालभर पहले उनकी नियुक्ति हुई थी। लेकिन इस पद पर वे काम नहीं कर पाईं।
समाज कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए केन्द्र सरकार की रजामंदी जरूरी है, और राज्य सरकार ने प्रस्ताव भी भेज दिया था। मगर केन्द्र से उनकी नियुक्ति को हरी झंडी नहीं मिल पाई। आम तौर पर केन्द्र से तुरंत सहमति पत्र मिल जाता है, लेकिन करूणा के मामले में ऐसा नहीं हो पाया। कांग्रेस के भीतर यह चर्चा है कि भाजपा के प्रभावशाली नेताओं ने केन्द्र सरकार से उनकी नियुक्ति पर सहमति नहीं होने दी। करूणा शुक्ला को लालबत्ती वाहन, और मानदेय अंत तक नहीं मिल पाया। वे सिर्फ कागज पर ही अध्यक्ष रहीं, और दुनिया छोड़ चली गईं।
कोरोना ने पगड़ी बचाने का रास्ता दिखाया...
संक्रमण के मामलों में गिरावट के बाद लोगों को विवाह घरों में भी समारोह आयोजित करने की अनुमति कमोबेश सभी जिलों में मिल गई है। जून और जुलाई महीने में विवाह के कई मुहूर्त है। अभी तक विवाह का आयोजन 10 लोगों की अधिकतम उपस्थिति में करने की अनुमति दी गई थी पर अब 50 लोग शामिल हो सकते हैं। जाहिर है अब भी यह संख्या कम है और बहुत करीबी लोगों के बीच ही यह मांगलिक कार्य हो पाएंगे। ऐसे समारोह से जुड़े व्यवसायियों को भी थोड़ी राहत तो मिली है लेकिन तब भी समारोह में हुआ भव्यता नहीं आ पाएगी जो कोरोना काल से पहले दिखाई देता था। इस दौर में आडंबर का प्रदर्शन शायद ही कोई करे। यदि किसी ने किया तो उसे अच्छा नहीं माना जाएगा। कहा जा रहा है कि कोरोना काल के बाद की दुनिया बदल जाएगी। संभव है विवाह में फिजूलखर्ची तामझाम और दिखावे का चलन भी इन बदलावों में एक रहेगा। यह उन बेटियों के पिता के लिए तो सुकून देने वाली बात है जो रिश्तेदारों और समाज को दिखाने के लिये हैसियत से ज्यादा खर्च करते हैं और कर्ज में डूब जाते हैं।
कोविशील्ड व कोवैक्सीन की उलझन
कोविड टीकाकरण के दौरान ज्यादातर लोगों ने यह जानने की कोशिश नहीं की उनको कोविशील्ड की डोज दी गई गई या को वैक्सीन की। लेकिन कुछ लोग परेशानी में हैं। इन्होंने साफ देखा कि उन्हें कोविशील्ड लगाई गई पर मेसैज को वैक्सीन की आ गई। ऐसे ही को वैक्सीन लगवाने वालों को कोविशील्ड का मेसैज आ गया। यानि डेटा अलग फीड हो गया। रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर में ऐसी कई शिकायतें टीकाकरण अधिकारी और सीएमएचओ के पास आ चुकी है। पर अकेले छत्तीसगढ़ से ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी यह गड़बड़ी हुई है। जब टीकाकरण अभियान शुरू किया गया था तो कहा गया था कि पहला व दूसरा डोज एक ही वैक्सीन हो। अब जब ऐसी शिकायतें थोक में आने लगी है तब केन्द्र सरकार के एक्सपर्ट्स बता रहे हैं कि कायदे से तो दोनों डोज एक ही वैक्सीन की होनी चाहिये पर यदि अलग-अलग वैक्सीन किसी कारण से लग जाये तो चिंता करने की जरूरत नहीं। लोग नये निष्कर्ष के बाद कुछ राहत की सांस ले सकते हैं।
वर्क फ्रॉम टूरिस्ट प्लेस
लॉकडाउन तो अपनी जगह है पर मल्टीनेशनल सहित बड़ी-बड़ी कम्पनियों ने पिछले दो साल से वर्क फ्रॉम होम को प्राथमिकता दे दी है। इन कम्पनियों का कारोबार देश-विदेश में ज्यादातर ऑनलाइन होता है। अपने छत्तीसगढ़ में भी बैंगलूरु, पुणे, हैदराबाद में काम करने वाले बहुत से प्रोफेशनल्स घर पर काम करते दिखेंगे। आपके आसपास भी ऐसे लोग मिल जायेंगे। शुरू में जब इन युवाओं को घरों से काम करने की छूट मिली तो बड़ी खुशी हुई। माता-पिता भी अपने बच्चों को पास पाकर बड़े खुश हुए। पर अब बहुत से लोग बोरियत भी महसूस कर रहे हैं। इसके लिये भी अब रास्ता सुझाया गया है। आईआरसीटीसी जिसका ज्यादातर बिजनेस ट्रेनों के संचालन से जुड़ा है इन दिनों अपनी आमदनी के नये रास्तों को ढूंढ रही है। उसने प्रस्ताव दिया है कि देशभर के अपने पसंद के हिल स्टेशन, पर्यटन स्थल पर उनकी होटलों पर ऐसे प्रोफेशनल्स आयें और वहीं अपना से अपना काम करें। होटल, उनके कमरे कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित हों इसके लिये जरूरी व्यवस्था भी की जायेगी। वाई फाई, ट्रैवल इंश्योरेंस, फूड सबका ख्याल स्वास्थ्य की सुरक्षा के साथ रखा जायेगा। घर से बाहर भी और दफ्तर में भी नहीं, काम चलता रहेगा।
वैसे यही हाल हमारे जनप्रतिनिधियों, नेताओं का है। कुछ लोग पता कर रहे हैं कि क्या उनके लिये भी इस तरह का कोई पैकेज है?
एक अफसर के लिए मंत्रियों में जंग
अंबिकापुर डीईओ की पोस्टिंग के चलते सरकार के दो मंत्री टीएस सिंहदेव, और अमरजीत भगत के समर्थकों में जंग छिड़ गई है। हुआ यूं कि अंबिकापुर के प्रभारी डीईओ आईपी गुप्ता 31 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। वे टीएस के करीबी माने जाते रहे हैं, और उन्हें डीईओ का प्रभार दिलाने में टीएस की भूमिका रही है। अब जब टीएस के लोग गुप्ता के एक्सटेंशन की कोशिश में लगे हुए थे कि सुनील दत्त पाण्डेय की पोस्टिंग हो गई। पाण्डेय मैनपाट में बीईओ हैं, और चर्चा है कि उन्हें गुप्ता की जगह प्रभारी डीईओ बनवाने में अमरजीत भगत की अहम भूमिका रही है।
पाण्डेय एक जून को चार्ज लेंगे। सुनते हैं कि गुप्ता ने अपने कार्यकाल में टीएस समर्थकों को खूब उपकृत किया था, और स्कूलों में सप्लाई का काफी ऑर्डर दिया था। इससे टीएस के लोग काफी खुश थे। अब अमरजीत के करीबी अफसर की पोस्टिंग हो गई, तो उन्हें तगड़ा झटका लगा है, और वे रूकवाने की कोशिश में भी जुटे हुए हैं। हालांकि उन्होंने गुप्ता के एक्सटेंशन की आस नहीं छोड़ी है। दिलचस्प बात यह है कि स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह भी सरगुजा के ही हैं, लेकिन वे इस पोस्टिंग विवाद से खुद को अलग रखे हुए हैं।
सिगलेर के समर्थन में वर्चुअल धरना
बीजापुर और सुकमा के सरहदी गांव सिगलेर में गोलीबारी से तीन लोगों की मौत का मसला सुलगा हुआ है। पुलिस इन्हें नक्सली और स्थानीय लोग तथा क्षेत्र के आदिवासी संगठन ग्रामीण बता रहे हैं। सर्व आदिवासी समाज और कई अन्य संगठन इस घटना के विरोध में वैसे तो पिछले 15 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं पर कल बस्तर से बाहर, देश-प्रदेश के अलग-अलग स्थानों पर लोगों ने अपने घरों में धरना दिया। सोशल मीडिया पर आंदोलन की साझा की गई तस्वीरें कोलाज की तरह उभरकर आईं। यानि जवाब मिलना बहुत जरूरी है। सिगलेर घटना ने अविश्वास की खाई बढ़ा दी। स्थानीय लोगों का मन जीतने के किये जा रहे दर्जनों कामों पर ऐसी एक घटना पानी फेर देती है। इसी बीच झीरम हमले की आठवीं बरसी भी गुजरी है। कोई भी सरकार हो बस्तर को लेकर बेदाग बने रहे लगता है यह बेहद मुश्किल काम है।
तो मंदिर भी क्यों नहीं खोल देते?
पहले ऑनलाइन शराब मिली, फिर देसी को छूट मिली और अब अंग्रेजी शराब दुकानों को भी खोला जा रहा है। भीड़ दोनों जगह उमड़ती है पर विशेष त्यौहारों को छोडक़र बाकी दिनों में शराब दुकानों के मुकाबले तो कम ही होती है। प्राय: यह अनुशासित भी होती है। अब तो मदिरा दुकानें ही क्यों, सारे बाजार ही खुल चुके हैं। वैसे मंदिर पूरी तरह बंद नहीं किये गये हैं। पूजा-पाठ आरती हो रही है मगर आम लोगों के दर्शन, पूजा, हवन करने पर रोक है। मंदिरों का संचालन, रख-रखाव भक्तों के श्रद्धा पुष्प से ही होता है। पुजारियों की आजीविका का भी स्त्रोत है। इस बीच कई बड़े त्यौहार आये, गुजर गये। मंदिरों में शादियां भी आजकल होने लगी हैं। इस बीच कई मुहूर्त निकल चुके हैं। न केवल पुजारियों की बल्कि मंदिर के बाहर पूजन सामग्री बेचने वाले सैकड़ों लोगों का रोजगार भी कोरोना महामारी ने ठप कर रखा है। वैसे मंदिर, सरकार की आमदनी के प्रमुख स्त्रोतों में कहीं नहीं है फिर भी पुजारियों को उम्मीद है कि 31 मई के बाद सरकार उनकी तरफ भी ध्यान देगी।
पीएम की बैठक में विपक्ष का होना..
आपदा का समय है, सबको साथ लेकर चलना चाहिये। हो सकता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी उदार भाव से पश्चिम बंगाल की अपनी अधिकारिक बैठक में प्रतिपक्ष के नेता शुभेन्द्रु सरकार को शामिल कर लिया हो। अब लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि जब यूपी, गुजरात में पीएम बैठक लेंगे तब वहां भी क्या विपक्ष के नेता को बुलाया जायेगा? छत्तीसगढ़ में तो फिलहाल ऐसी कोई विशिष्ट आपदा, परिस्थितियां नहीं है जिसकी वजह से मोदी जी को यहां का दौरा करना पड़े लेकिन यदि कभी संभावना बनती है तो अपने यहां नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक हैं। जैसा बखेड़ा वहां के नेता प्रतिपक्ष के पहुंचने पर खड़ा हो गया, यहां होने की संभावना भी नहीं दिखती।
सुब्रमण्यम के जलवे...
छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस और जम्मू कश्मीर के सीएस बीवीआर सुब्रमण्यम केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण वाणिज्य-उद्योग सचिव नियुक्त हुए हैं। सुब्रमण्यम छत्तीसगढ़ कैडर के पहले अफसर हैं, जो केंद्र सरकार में सचिव के पद पर नियुक्त हुए हैं। कुछ लोग सुब्रमण्यम की नियुक्ति को ईनाम भी मान रहे हैं। वजह यह है कि सुब्रमण्यम के सीएस रहते ही जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35ए खत्म हुआ। जम्मू कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना। वे इस सारी प्रक्रिया के हिस्सा भी थे।
एक रिटायर्ड अफसर का मानना है कि सुब्रमण्यम सीएस के रूप में इतिहास का हिस्सा भी बन गए हंै। 87 बैच के अफसर सुब्रमण्यम पिछले दो दशक से महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। वे यूपीए सरकार में तत्कालीन पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के सचिव रहे। उन्होंने एनडीए सरकार में भी पीएमओ में संयुक्त सचिव के रूप में काम किया। वे वर्ल्ड बैंक में भी सलाहकार रहे। कुल मिलाकर वे केंद्र की दोनों सरकारों का भरोसेमंद रहे। छत्तीसगढ़ में प्रमुख सचिव (गृह) के पद पर रहते राज्य पुलिस बल के केंद्रीय बलों के साथ तालमेल में अहम भूमिका निभाई थी। उनकी कार्यशैली को नजदीक से देखने वाले एक रिटायर्ड सीएस, सुब्रमण्यम को काबिल और ईमानदार अफसर मानते हैं।
एक समय ऐसा भी था, जब उन्हें छत्तीसगढ़ का मुख्य सचिव भी बनाए जाने की चर्चा चल रही थी। सुनते हैं कि करीब डेढ़ साल पहले उनकी सीएम भूपेश बघेल के साथ बैठक भी हुई थी। तब वे जम्मू कश्मीर में कुछ असहज महसूस कर रहे थे, लेकिन बाद में स्थिति उनके अनुकूल होती गई, और फिर बाद में उन्होंने भी छत्तीसगढ़ में कोई रूचि नहीं ली। इससे परे आतंकवाद से ग्रस्त जम्मू कश्मीर में भी उनके करीब तीन साल के कार्यकाल में प्रशासन को लोग मोदी सरकार की मर्जी का मानते हैं, और अभी केंद्र में आने के बाद उनकी संभावनाएं बची हुई हैं. उनके पुराने ठिकाने पीएमओ में रिटायर्ड अफसरों की बड़ी जगह रहती है।
गाज बस थानेदार के सिर पर गिरा...
सारंगढ़ में एक क्लीनिक में घुसकर वसूली के मामले में गर्दन फंसी तो बस सब-इंस्पेक्टर की। पर इसमें शामिल उससे बड़े-बड़े अधिकारी लगता है बचा लिये जायेंगे।
सारंगढ़ थाना प्रभारी कमल किशोर पटेल, ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. आरएल सिदार और तहसीलदार सुनील अग्रवाल हिर्री गांव के डॉ. खगेश्वर प्रसाद वारे की क्लीनिक में पहुंचे थे। आरोप है कि उन्होंने क्लीनिक में अनियमितता के नाम से धमकाते हुए डॉक्टर से पांच लाख रुपये की मांग की। जब डॉक्टर ने इतनी बड़ी रकम देने से हाथ खड़े कर दिए तब मामला तीन लाख रुपये में सेट हो गया। लेन-देन की पूरी घटना क्लीनिक के सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड हो गई और इधर डॉक्टर ने सबूत के साथ इसकी शिकायत कलेक्टर और दूसरे उच्चाधिकारियों को कर दी।
जनपद कहें, कस्बा या छोटे शहर, स्वास्थ्य, राजस्व और पुलिस विभाग के यही सबसे बड़े अधिकारी होते हैं। यदि इन तीनों विभागों के अधिकारी वसूली के लिए गठजोड़ बना लें तो किस सीमा तक उत्पात मचा सकते हैं अंदाजा लगाया जा सकता है।
बहरहाल, रायगढ़ पुलिस अधीक्षक ने थाना प्रभारी को तो लाइन अटैच कर दिया और एसडीओपी की जांच भी बिठा दी, मगर बाकी अन्य विभागों के बड़े अधिकारियों को जांच के नाम पर नोटिस जैसी प्रक्रियाओं का कवच पहना दिया गया है। एसपी ने प्रारंभिक कार्रवाई के बाद जांच की घोषणा की है, पर तहसीलदार, बीएमओ के खिलाफ जांच से पहले ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया। होना तो यह चाहिए कि पहले बड़े अधिकारी की गिरेबान नापी जानी चाहिए। अब सूरजपुर का मामला ही लें। वहां कलेक्टर ने थप्पड़ मारी तो उनका तबादला हो गया। पर उसी तरह थप्पड़ चलाने वाले एसडीएम पर अभी कोई आंच नहीं आई है।
जरा संभलकर खायें मिठाईयां कुछ दिन
लंबे लॉकडाउन के बाद प्रदेश के अधिकांश जिलों में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई है। उन लोगों को इससे बड़ी खुशी हुई है जो चटपटे चाट और रसीले रसगुल्लों के लिये तरस रहे थे। लेकिन थोड़ा रुक जाना चाहिये। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के आदेश पर गौर किया जाये। इन्होंने प्रदेश के सभी स्वीट कॉर्नर और होटल संचालकों को निर्देश दिया है कि लॉकडाउन से पहले जो मिठाइयां बच गई थी उन्हें वह काउंटर में न सजाएं, नष्ट करें। इनकी बिक्री प्रतिबंधित है। यानी ताजा बनी मिठाइयों को ही बेचने का निर्देश है। वैसे ज्यादातर दुकानदारों ने इस बात को पहले ही माल खत्म कर दिया होगा। लॉकडाउन की अवधि बार-बार बढ़ती गई। इतने दिन में उसमें फफूंद, फंगस भी लग गये होंगे। भरोसा करके चलना चाहिये कि दुकानदारों को अपने फर्म की गुडविल की चिंता तो होगी ही, अपने सेहत का ख्याल रखना तो आपका काम है। पर ताजा मिठाईयों का सवाल है तो अभी कारीगर काम पर ठीक से लौटे नहीं हैं। इसलिये खरीदी के पहले सूंघ, चख लेना ज्यादा ठीक होगा। वैसे बता दें नमकीन के लिये भी ड्रग डिपार्टमेंट का वही ऑर्डर है, जो मिठाई के लिये है।
मदिरा नीति में केरल का क्या मुकाबला?
छत्तीसगढ़ की तरह केरल भी उन राज्यों में शामिल है जहां शराब पीने वालों की संख्या बहुत अधिक है और यह अपने राज्य की ही तरह राजस्व का बहुत बड़ा स्त्रोत भी है। सन् 2020 में जब लॉकडाउन लगा तो वहां भी छत्तीसगढ़ की तरह घर-घर शराब पहुंचाने के लिये ऑनलाइन सेवा शुरू की गई थी। इस साल लॉकडाउन के समय ही केरल में नई सरकार बनी है। वहां के आबकारी मंत्री ने बयान दिया है- हमारी नीति पूर्ण शराबबंदी नहीं बल्कि शराब के परहेज को बढ़ावा देने की है हमारी योजना घर-घर शराब पहुंचाने की भी नहीं है और इसलिए नहीं होगा। इधर छत्तीसगढ़ में जब लॉकडाउन का समय बढ़ता गया तो शराब के ऑनलाइन ऑर्डर और होम डिलिवरी की सेवा शुरू कर दी गई। शुरूआत में ही इतने अधिक ऑर्डर आ गये कि पोर्टल के साथ-साथ पूरा आबकारी महकमा ही पस्त हो गया। बिक्री के रिकॉर्ड भी टूट गये। पर इस सुविधा का फायदा देसी पीने वाले ज्यादातर लोग नहीं उठा पा रहे थे। आबकारी मंत्री ने कहा- गरीबों को बड़ी असुविधा हो रही थी, उनके हित को देखते हुए देसी दुकानों को खोलने का फैसला लिया गया है। इसकी पुष्टि भी बिलासपुर के एक मदिरा प्रेमी ने दुकान खुलते ही चखना सेंटर की आरती उतारकर कर दी। या तो केरल की सरकार छत्तीसगढ़ की तरह जनता के नब्ज की ठीक तरह से पहचानती नहीं या फिर कहा जा सकता है कि जीत का नया-नया जोश है। वैसे केरल सरकार ज्यादा व्यवहारिक नजर आ रही है। अपने यहां शराबबंदी का मुद्दा गले की फांस बना हुआ है, केरल सरकार ने कह दिया कि हम पूर्ण शराबबंदी नहीं करेंगे पर लोग परहेज करें ऐसी नीति बनायेंगे।
प्रकृति की रंगीनियत से छेड़छाड़
रंग बिरंगी चित्रकारी वैसे तो अच्छी लगती है पर यह कुदरत की चित्रकारी पर अतिक्रमण करके उकेरें तब? राजधानी रायपुर के सडक़ों और उद्यानों में पेड़ों पर किये गये इसी तरह के रंग-रोगन पर सवाल उठा है। रायपुर के नितिन सिंघवी ने कुछ तस्वीरें साझा की है। ये दर्शाती हैं कि गांधी उद्यान में पेंट लगा देने के कारण पेड़ों की मौत हो रही है। बूढ़ा तालाब परिसर में बड़े-बड़े वृक्षों पर पेंटिंग की जा गई है। ऐसा पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिये किया गया है। कुछ समय पहले खबर आई थी कि भिलाई में करीब 3 किलोमीटर लंबे रास्ते पर 400 पेड़ों पर पेंट कर दिया गया है और इस पर 38 लाख रुपए खर्च हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और समय-समय पर पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार इस तरह से पेड़ों को विकृत किया जाना कानून के खिलाफ है।
बात राजधानी की है इसे किस कीमत पर, किस तरह से सुंदर बनाना है, तय करने के लिए सभी बड़े अफसर बैठे हैं। मुख्य सचिव से शिकायत की गई है। क्या एक्शन लिया जाता है देखना होगा।
शिक्षकों की मौत के बावजूद
अकेले स्वास्थ्य, पुलिस या राजस्व विभाग के अधिकारी ही नहीं प्रदेश के शिक्षक भी कोरोना से बचाव व व्यवस्था बनाये रखने में बड़ी संख्या में प्रदेशभर में ड्यूटी पर लगाये गये हैं। शिक्षक संगठनों का कहना है कि मौतें 400 से अधिक हुई हैं। उन्हें कोरोना वारियर्स भी घोषित नहीं किया जा रहा है न ही वैक्सीन लगाने में प्राथमिकता दी जा रही है। इतनी मौतों की वजह भी वे यही बता रहे हैं। कोरबा जिले के ही तानाखार इलाके के ऐसे एक शिक्षक की संक्रमण से मौत हो गई जो 60 फीसदी नि:शक्त थे। शिक्षक की मौत हो गई। यहां के सांसद के पास शिकायत आई है कि गंभीर बीमारी से ग्रस्त कर्मचारियों व शिक्षकों की, गर्भवती व शिशुवती महिलाओं की भी कोविड में ड्यूटी लगा दी गई। जिला शिक्षा अधिकारी ने एक वर्चुअल मीटिंग में यह भी मौखिक निर्देश दिया कि जो लोग होम आइसोलेट हैं वह भी कार्य पर पहुंचें। उनकी छुट्टी मंजूर नहीं की जाएगी। कोरबा के शिक्षा विभाग में बहुत से लोग प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए हैं जिनका वेतन भी रोक दिया गया है। इन सब बातों की शिकायत कोरबा के सांसद तक पहुंची तो उन्होंने इस कार्यशैली पर नाराजगी जताई है और संवेदनशीलता के साथ आदेश देने, कार्य करने का निर्देश जिला शिक्षा अधिकारी को दिया है।
सांसद के निर्देश का कितना पालन होता है यह आगे पता चलेगा लेकिन समझा जा सकता है कि सामंजस्य और सावधानी बरती गई होती तो राज्य में शिक्षकों की मौत का आंकड़ा इतना अधिक नहीं होता।
तनख्वाह रोकने की धमकी काम आई
कुछ जिलों से खबर आई थी कि टीका नहीं लगवाने पर बीपीएल परिवारों को राशन नहीं देने की चेतावनी दी गई। अब एक नया फरमान सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। गौरेला पेंड्रा मरवाही में आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त ने बकायदा एक लिखित आदेश जारी कर दिया कि दफ्तर के सभी कर्मचारी-अधिकारी छात्रावास और आश्रमों में कार्यरत लोग टीकाकरण कराना सुनिश्चित करें और वैक्सीनेशन का कार्ड कार्यालय में जमा करें। ऐसा नहीं करने पर जून माह का वेतन रोक दिया जाएगा। ऐसे आदेश से जाहिर है अधिकारी कर्मचारियों में रोष पनपने लगा। जब इस बारे में सहायक आयुक्त से कर्मचारी संगठनों ने जानकारी मांगी कि आपको वेतन रोकने का कैसे अधिकार है? उन्होंने कहा मानता हूं। वैसे भी मैं वेतन रोकने वाला नहीं था। यह तो तरीका था सबको टीका लग जाए, फायदा भी हुआ है करीब-करीब सभी लोगों ने टीका लगवा लिया है।
रिश्तों पर जमी धूल को हटाई
डेढ़ दशक तक राज्य में सत्तासुख भोगने के बाद विपक्ष में रहते हुए विशेषकर राजनांदगांव जिले में भाजपा की जमीनी पकड़ ढीली पड़ गई है। यह भांपकर भाजपा के रणनीतिकार पार्टी संगठन को मजबूत बनाने, और आम जनता के बीच छवि निखारने की रणनीति बनाने में जुटे हैं।
सुनते हैं कि कोराना संकट के बीच पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने नांदगांव के कई कांग्रेसी नेताओं का हालचाल पूछकर पुराने संबंधों को मजबूती देने का काम किया है। कोरोना के दूसरी लहर में कांग्रेसियों की सेहत को लेकर पूर्व सीएम कुछ ज्यादा ही फिक्रमंद थे।
रमन सिंह ने राजनांदगांव जिले के कांग्रेस विधायकों के साथ-साथ शहर और ग्रामीण कांग्रेस मुखिया कुलबीर छाबड़ा व पदम कोठारी से भी चर्चा की। कोराना संकट से बाहर निकलने के नुस्खे बताने के साथ ही साथ रमन से सभी के परिवार की चिंता कर सौहार्द दिखाया।
बताते हैं कि कोरोना के खौफ के बीच रमन सिंह से हुई बातचीत से कुछ कांग्रेस नेता खुश नजर आए। वैसे भी रमन सिंह ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में कांग्रेसियों का खूब ख्याल रखा था। मगर बाद में मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद रमन सिंह, और जिले के कांग्रेस नेताओं के बीच बोलचाल बंद हो गई थी। मगर अब रमन ने कोरोना के बहाने कुशलक्षेम पूछकर पुराने रिश्तों पर जमी धूल को हटाने का काम किया है।
धरने को लेकर..
टूलकिट मामले पर धरना-प्रदर्शन के चलते भाजपा के भीतर मनमुटाव की खबर है। वैसे तो सभी बड़े नेताओं को एक मंच पर लाने के लिए ही प्रदेश भर में धरना-प्रदर्शन हुआ था। मगर इसके लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाने पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
पहले दिन सिविल लाइन थाना परिसर में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की अगुवाई में राजेश मूणत, श्रीचंद सुंदरानी, संजय श्रीवास्तव, और मोतीलाल साहू धरने पर बैठे थे। ये सभी गिरफ्तारी देने गए थे, लेकिन पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया। ये बाहर जमीन पर बैठे रहे। सीएसपी और टीआई ने उनसे आग्रह भी किया कि वे चिलचिलाती धूप में बाहर बैठने के बजाए उनके कमरे में बैठे। मगर मूणत अड़ गए। खैर, सभी दो घंटे बाद धरना खत्म कर लौट गए।
अगले दिन पूर्व सीएम रमन सिंह भी सिविल लाइन थाने गिरफ्तारी देने पहुंचे, और बाहर अन्य नेताओं के साथ धरने पर बैठे। मगर रमन सिंह के धरने के लिए भाजपा दफ्तर से आरामदेह कुर्सियां मंगवाई गई थी। दो घंटे की राजनीतिक ड्रामेबाजी के बाद यह भी धरना खत्म हो गया। मगर एक ही केस को लेकर अलग-अलग तरीके के धरने पर पार्टी के भीतर जमकर बहस हो रही है।
पुलिस के साथ ऐसा क्यों हो रहा है?
सरगुजा संभाग के कोरिया जिले के जनकपुर इलाके में बीते रविवार को बाल विवाह रोकने के लिए गये तहसीलदार और पुलिस टीम को रास्ते में रोककर ग्रामीणों ने हमला किया। उस समय तो किसी तरह तहसीलदार की टीम वहां से बचकर निकल गई लेकिन बाद में करीब 20 आरोपियों को नामजद किया गया और इनमें से 7 को अलग-अलग ठिकानों से गिरफ्तार भी कर लिया गया।
मंगलवार को बलरामपुर रामानुजगंज जिले में इसी तरह की एक और घटना हो गई। गश्त पर निकले राजपुर के प्रधान आरक्षक और तीन सिपाहियों पर नक्की गांव में सुबह 4 बजे तब हमला कर दिया गया, जब वे एक शादी समारोह में बज रहे डीजे को रोकने के लिए गये। एक सिपाही का इस हमले में सिर फट भी गया। दोनों मामलों में लाठी-डंडों का जमकर इस्तेमाल किया गया और न केवल पुरुष बल्कि महिलाएं और बच्चे भी इन हमलों में शामिल थे। अम्बिकापुर में एक हवलदार की कार को थाने में घुसकर जलाने की घटना भी चर्चा में है। इस मामले में तो हवलदार का रो रोकर अपने अधिकारी की शिकायत करते हुए वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें जांच का आदेश भी पीएचक्यू से जारी हो गया है। इन घटनाओं को गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले की उस घटना के साथ भी जोड़ा जा सकता है जब टीका लगवाने के लिए पुलिस ग्रामीणों को घर से निकालने की कोशिश करती है पर महिलाएं उनसे उलझ रही हैं। आए दिन छत्तीसगढ़ में इस तरह की घटनाएं सामने आती है जब पुलिस और आम लोगों के बीच विवाद, हमले और मारपीट में बदल रहे हैं।
प्रदेश के आला अधिकारियों को इन मामलों की गंभीरता का अंदाजा तो होगा ही। अक्सर यह बात की जाती है की पुलिस और जनता के बीच विश्वास बढऩा चाहिए। यदि कोई व्यक्ति या समूह जाने अनजाने में कानून का उल्लंघन करता है तो फिर उन्हें रोकने वाली पुलिस पर लोगों का गुस्सा क्यों फूट जाता है? कानून व्यवस्था की स्थिति बनाये रखने के लिये पुलिस और जनता के बीच संवाद और आपसी विश्वास की बात अक्सर की जाती है। हर जिले में कमान संभालने वाले पुलिस के मुखिया का पहला वक्तव्य यही होता है। पर जिस तरह एक के बाद एक घटनायें सरगुजा से सामने आई है, हालात विपरीत दिखायी दे रहे हैं।
मंहगे पेट्रोल में वैक्सीनेशन के लिये दौड़
राज्य के अधिकांश जिलों में 18 प्लस टीकाकरण का काम रुक चुका है। कल दो लाख टीकों की खेप आने की खबर पहुंची तो कई जिलों ने आज के लिए ऐलान कर दिया कि टीके लगाना जारी रहेगा। पर कंपनी ने कह दिया कि ये इंजेक्शन तो 45 प्लस वालों के लिए है। इसे केन्द्र ने भेजा है। राज्य की डिमांड वाली डिलवरी नहीं है।
18 प्लस के लिए टीकों का इंतजाम राज्यों को खुद करना है। अभी पहले चरण के लिए ही टीके नहीं मिल पा रहे हैं। 45 साल से ऊपर के लोग भी लाखों में हैं जिनको दूसरा डोज लगवाना है। 82 दिनों का गैप मिलने से इस श्रेणी के लिए अभी डिमांड कुछ कम तो हुई है, पर उसे भी ज्यादा दिनों के लिये कैसे टालेंगे।
18 प्लस वाले तो इस बात से भी दुखी है कि पेट्रोल के दाम इन दिनों बढ़ रहे हैं और उन्हें एक के बाद दूसरे सेंटर में गाड़ी दौड़ानी पड़ रही है। युवाओं का सारा जेब खर्च इसी दौड़ धूप में निकल रहा है।
लॉकडाउन के खत्म होते ही बारिश...
कोरोना काल में अभयारण्य बंद होने के कारण वहां की हरियाली भी बढ़ी होगी, वन्य जीवों को भी फलने-फूलने का अच्छा मौका मिल गया होगा, पर इन्हें देखने का मौका नहीं मिलने वाला है। कोरोना महामारी की रफ्तार ऐसे मौके पर कम हुई है जब बारिश का सीजन शुरू होने वाला है। 15 जून के आसपास सारे अभयारण्य बंद कर दिए जाते हैं क्योंकि यह वन्य प्राणियों के प्रजनन का काल माना जाता है, फिर कच्ची सडक़ों से जंगल के भीतर घूमना-फिरना भी मुश्किल होता है।
लोग जब गर्मियों की शुरुआत में जंगलों की ओर भागना चाहते थे तब कोरोना का तेजी से प्रकोप फैला और सारे पर्यटन स्थल तथा अभ्यारण बंद कर दिये गये। अब जब लॉकडाउन में ढील दे दी गई है तब अभयारण्य के बंद होने का समय आ गया है। एक वन अधिकारी का कहना है कि अगर प्रशासन इन अभयारण्यों को चालू करने की अनुमति दे तब भी विश्रामगृह, पर्यटक स्थलों के रास्ते और वहां काम करने वाले स्टाफ इन सब की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो रखी है। अब तो नवंबर का ही इंतजार करना पड़ेगा, बशर्ते तीसरी लहर का लॉकडाउन न हो।
प्राइवेट हॉस्पिटल से एक तस्वीर ऐसी भी...
कोरोना मरीजों के इलाज के लिए निजी अस्पतालों की फीस तय होना न होना मायने नहीं रखता। निजी अस्पतालों में भारी-भरकम बिल बनाने की इतनी शिकायतें आई हैं कि लोगों की सांसे बीमारी के साथ-साथ इलाज के खर्च नाम पर भी फूल जाती है। पर एक उल्टी खबर भी निकली है। बिलासपुर के एक निजी अस्पताल से 15 दिन बाद स्वस्थ होकर निकले मरीज ने अस्पताल का पूरा बिल तो चुकाया, लेकिन इसका बाद उन्होंने 50 हजार रुपए का अलग से चेक काट दिया। ये कहते हुए उसने डॉक्टर को चेक सौंपा कि मैं अपनी खुशी से इसे दे रहा हूं। आप और आपके स्टाफ ने जिस तरह से देखभाल की उससे वह प्रसन्न है। डॉक्टर ने भी उनकी भावना का सम्मान किया और चेक रख लिया, पर इसे उन्होंने जिले के मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ्य अधिकारी को सौंप दिया, ताकि किसी जरूरतमंद मरीज के लिए खर्च किया जा सके। इस डॉक्टर ने वह कमाई कर ली, जो दूसरे नहीं कर पाये।
सोने पर भरोसे की मार्किंग में अभी देर
केंद्र सरकार ने नवंबर 2019 में पहली बार घोषणा की थी कि हाल मार्किंग की। लागू करने की तारीख हो 1 जनवरी 2021 थी लेकिन धीरे-धीरे टलती गई। अब तारीख फिर नजदीक आ गई थी, 1 जून। इस बीच बॉम्बे हाईकोर्ट में आल इंडिया जेम्स एंड ज्वेलरी कौंसिल ने केस लगाया। उनका कहना है कि देश में हॉल मार्किंग सेंटर की संख्या बहुत कम है। इस समय लगातार कोरोना महामारी के कारण बाजार बंद रहे और और अरबों का माल उनके पास डंप है। ऐसी स्थिति में 1 जून से बिना हाल मार्किंग सोना बेचने पर दंडित करने का प्रावधान लागू न किया जाए। मुंबई हाई कोर्ट ने इस मामले में फिलहाल स्थगन दे दिया है। अगली सुनवाई 14 जून को है। यानि तब तक हॉलमार्क लगा सोना बेचना अनिवार्य नहीं।
छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां 5000 से ज्यादा सराफा कारोबारी है जिनके पास हॉल मार्किंग लाइसेंस नहीं है। जिनके पास है उनकी संख्या कुल व्यापारियों में से 10 फ़ीसदी ही है। इन्हें बीआईएस, (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) में पंजीयन कराना है। अभी लॉकडाउन के कारण ना केवल सर्राफा बाजार बल्कि सरकारी दफ्तरों में भी कामकाज नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति में 1 जून से पहले पंजीयन होना संभव दिखता नहीं।
कोरोना काल में जब ज्यादातर व्यवसाय में अनिश्चितता दिखी तो लोगों ने सोने पर ठीक-ठाक निवेश किया है जिसके चलते इसकी कीमत बढ़ी ही है। अपने प्रदेश के ग्रामीणों में ठोस सोना खरीदने का ही चलन है। सोने की गुणवत्ता को परखना उनके लिये आसान नहीं है। पढ़े लिखे लोगों का रुझान को इन्हीं शंकाओं के चलते भी ऑनलाइन निवेश पर ज्यादा बढ़ा है। अनिवार्य हॉल मार्किंग नियम जब भी लागू होगा, सोने के बाजार में बदलाव दिखेगा।
वैक्सीनेशन सेंटर, बतियाने का नया ठिकाना...
जब से 18 प्लस वालों को वैक्सीन लगाने की घोषणा की गई है सोशल मीडिया पर इसे लेकर रोज नए नए जोक्स डाले जा रहे हैं। अब इस लतीफे को सुनें-
पहली सहेली- कहां मिलें, लॉकडाउन के चलते साथ बैठकर गपशप मारने का मौका ही नहीं मिल रहा।
दूसरी सहेली- फिक्र मत कर, टीकाकरण केंद्र आजा, वहां जल्दी नंबर लगता नहीं। लगेगा कि नहीं बताते भी नहीं। वहीं हांकेंगे...।
मुसीबत में काम आने वाले आलोक शुक्ला
भले ही नान केस की वजह से प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला का प्रशासनिक कैरियर लडखड़़ा गया। वे प्रमोट होने से रह गए, और शीर्ष प्रशासनिक पद तक नहीं पहुंच पाए, लेकिन प्रशासन में कई मौके पर संकट मोचक के तौर पर उभरे हैं। मसलन, डेढ़ साल पहले स्कूल शिक्षा विभाग में खरीदी-ट्रांसफर के चलते विभागीय मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह बुरी तरह उलझ गए थे। उस समय तो 30 से ज्यादा विधायकों ने प्रेमसाय सिंह के खिलाफ सीएम को शिकायत कर दी थी। स्कूल शिक्षा महकमा सरकार के लिए सिरदर्द बन गया था। तब गौरव द्विवेदी की जगह डॉ. आलोक शुक्ला को लाया गया, और देखते ही देखते सबकुछ ठीक हो गया।
अब तो स्कूल शिक्षा विभाग की वाहवाही होने लगी है। कोरोना काल में पढ़ाई तुंहर दुआर योजना की तो राष्ट्रीय स्तर पर सराहना हुई है। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर काम करने का अंदाज सरकार को काफी भा रहा है। और जब कोरोना काल में स्थिति एक बार फिर अनियंत्रित होती दिख रही थी, तब सीएम खुद व्यवस्था की मॉनिटरिंग करने लगे। इस मौके पर डॉ. आलोक शुक्ला ही सलाहकार के रूप में उभरे।
रेणु पिल्ले के छुट्टी पर जानेे के बाद डॉ. आलोक शुक्ला को पहले प्रभार दिया गया, और फिर पूरी तरह स्वास्थ्य महकमा डॉ. आलोक शुक्ला के हवाले कर दिया गया। ये अलग बात है कि इस बदलाव से टीएस सिंहदेव संतुष्ट नहीं थे। मगर यह भी सच है कि आलोक शुक्ला के स्वास्थ्य महकमा संभालते ही कोरोना का ग्राफ लगातार गिरने लगा है, और प्रदेश की स्थिति सामान्य होती दिख रही है। आलोक शुक्ला की कार्यप्रणाली को नजदीक से जानने वाले केन्द्र सरकार में भी काम कर चुके राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव का मानना है कि आलोक जीनियस है। विशेषकर संकटकाल में स्वास्थ्य जैसा महत्वपूर्ण महकमे के लिए आलोक सबसे उपयुक्त है।
अब कैसे पालन होगा लॉकडाउन का?
सूरजपुर के पिटाई मामले पर लिए गए एक्शन ने कई दबी हुई आवाजों को मुखर कर दिया। आईएएस रणवीर सिंह पर कार्रवाई होते ही तुरंत लोगों का ध्यान भैयाथान के एसडीएम प्रकाश राजपूत की तरफ चला गया और वीडियो के साथ प्रमाण दिया गया कि उन्होंने भी सडक़ पर निकलने वाले युवकों को थप्पड़ लगाई। यह बात अलग है कि इस लाइन के लिखे जाने तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। पर लोग साहस बटोर कर शिकायतें सामने ला रहे हैं। कांकेर के कुछ युवकों ने 10 दिन पुरानी घटना का जिक्र सोशल मीडिया पर किया है। फेसबुक पोस्ट पर युवक ने लिखा है कि 13 मई की शाम 5:30 बजे बिजली बंद थी। वह अपने तीन-चार दोस्तों के साथ सडक़ पर टहल रहे थे। उसी समय काम कर के डिप्टी कलेक्टर विश्वास कुमार और दो-तीन बोलेरो जीप में पुलिस वाले पहुंचे। पहले उन्होंने शब्दों से फिर डंडे से बौछारें कीं। मना करने पर भी नहीं रुके। जबकि हमने मास्क पहना हुआ था और दूरी बनाकर चल रहे थे। मेरे हाथ में अब तक सूजन है, जो इस बात का सबूत है।
पोस्ट के मुताबिक सूरजपुर का मामला सामने आने के बाद उनमें यह बात बताने की हिम्मत आई। मामले में डिप्टी कलेक्टर की सफाई भी आ गई है कि इन लोगों को कोई गलतफहमी हुई होगी। मैंने तो पिटाई किसी की नहीं की। वैसे युवकों के पोस्ट से यह पता नहीं चलता है कि वह इस मामले में कोई कार्रवाई चाहते हैं या नहीं। या फिर किसी अधिकारी से इसकी शिकायत भी की है।
मगर यह तो तय हो गया है कि अब लॉक डाउन का उल्लंघन करने वालों को रोकने के लिए कुछ नए उपायों पर प्रशासन व पुलिस को विचार करना पड़ेगा। कहीं ऐसा ना हो की खौफ और रौब खत्म हो जाए और लॉकडाउन की कोई परवाह ही न करे।
क्रेज घटने लगा वेबीनार का
कोरोना के चलते कितनी ही छोटी-छोटी गोष्ठियों, सभाओं पर विराम लगा हुआ है। वीडियो कांफ्रेंस के जरिए पहले सरकारी अधिकारी नेता बैठकें लेते थे लेकिन अब यह घर-घर की बात हो गई है। दादी-दादी और गृहणियों ने भी इसे सीख लिया है। शुरू-शुरू में वेबीनार या ऑनलाइन मीटिंग में घर पर बैठे-बैठे शामिल होना रोमांच लाता था और लोग बड़ी जिज्ञासा के साथ इनमें भाग लिया करते थे। पर, अब ऐसा नहीं है। लोगों के पास इतने अधिक लिंक आने लग गए हैं कि उनमें शामिल होने के लिए सोचना पड़ता है। और, लोगों को याद आ रहा है कि प्रत्यक्ष किसी सभा में शामिल होने का अनुभव कुछ अलग है। वेबीनार में सामने कई चेहरे तो होते हैं लेकिन आपस में सहज संवाद नहीं हो पाता। लोगों को प्रतीक्षा तो कोरोना की लहर खत्म होने की प्रतीक्षा है जब भौतिक उपस्थिति के साथ आमने-सामने होने वाली बैठकों में काना-फूसी, चुगली, आलोचना भी हो सके।
ऐसे ही सलाह मांगते रहना चाहिये...
केंद्रीय शिक्षा बोर्ड सीबीएसई, आईसीएसई और कई राज्यों की बारहवीं बोर्ड परीक्षा कोरोना संक्रमण के चलते अब तक नहीं हो पाई है, या यूं कहें कि तारीख भी तय नहीं हो पाई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ इन संस्थाओं के अधिकारियों की बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला। अब केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने सभी राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि अपना सुझाव दें। यह बताएं की परीक्षा में किस तरह का प्रश्न पत्र हो, कितनी देर की हो, आदि-आदि।
शिक्षा और 12वीं बोर्ड की परीक्षा वास्तव में बहुत गंभीर मसला है जिस पर राज्यों से सुझाव मांगना बहुत अच्छी बात है लेकिन कई लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह केवल इसी एक मुद्दे पर सुझाव लेना चाहिए? ज्यादातर मामलों में तो केंद्र सरकार ने किसी मसले पर राज्यों से कुछ पूछा ही नहीं। जैसे कि 18 प्लस के लोगों को 1 मई से वैक्सीन लगाने का फैसला। बोर्ड परीक्षा के मामले में भी दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के शुरुआती सुझाव आ ही गये हैं। वे कह रहे हैं कि परीक्षा लेने से पहले छात्र-छात्राओं को वैक्सीन लगाई जाए। देखना है की इस सुझाव को तवज्जो दी जाती है या नहीं।
वैक्सीनेशन से ज्यादा कठिन दाखिला
स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट विद्यालयों में दाखिला लेने के लिये जबरदस्त आकर्षण है। ऑनलाइन और ऑफलाइन आवेदन के लिये अंतिम तिथि 10 जून तय की गई है। पर अभी से अधिकांश शालाओं में उपलब्ध सीटों से ड्योढ़े, दुगने आवेदन आ गये हैं। राज्य भर में 6 हजार सीटें हैं पर 9 हजार से अधिक आवेदन अब तक आ चुके हैं। हो भी क्यों नहीं। जो लोग पब्लिक स्कूलों के नाम पर निजी संस्थानों की मोटी फीस और पढ़ाई की गुणवत्ता को लेकर तंग आ चुके हैं, उन्हें अच्छा विकल्प मिला है। सरकारी हिन्दी मीडियम स्कूलों में तो थोड़ी-बहुत फीस भी है, पर इन अंग्रेजी स्कूल में एडमिशन फीस, परीक्षा फीस, ट्यूशन फीस सब माफ है। किताबें और यूनिफॉर्म भी नि:शुल्क मिलेंगे।
आवेदनों की बड़ी संख्या को देखते हुए तय किया गया है कि लॉटरी निकालकर प्रवेश दिया जाये। पर यह इतना आसान भी नहीं है। लॉटरी निकालते समय भी कई श्रेणियों का ध्यान रखना होगा। जैसे, कुल मे से आधी सीटें बालिकाओं के लिये आरक्षित की जायेंगी। 25 प्रतिशत आरटीई के दायरे में आने वाले गरीब परिवारों के बच्चों के लिये रिजर्व रखा जायेगा। इस बार एक और मापदंड जोड़ा गया है, उन बच्चों को प्राथमिकता से प्रवेश दिया जायेगा जिनके माता-पिता को कोरोना ने छीन लिया।
संकेत यही मिलता है कि आने वाले दिनों में स्वामी आत्मानन्द दर्जे के स्कूलों की संख्या बढ़ानी बढ़ानी पड़ सकती है। स्कूली शिक्षा पर बजट बढ़ाना पड़ सकता है। पर, सरकारी स्कूलों के बारे में लोगों की धारणा भी तो बदलेगी। वैसे अभी स्कूलों के रंग-रोगन और फर्नीचर की सुविधा का ही ज्यादा आकर्षण है। अब तक कोरोना के चलते कक्षायें ठीक तरह से लग नहीं पाई हैं। पढ़ाई की गुणवत्ता को परखा जाना अभी बाकी है।
बुरे सम्बन्ध ऐसे ही वक्त
सूरजपुर कलेक्टर रणबीर शर्मा ने दवाई खरीदने जा रहे युवक पर हाथ छोड़ा, तो सोशल मीडिया में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई, और देशभर से कलेक्टर के खिलाफ कार्रवाई की आवाजें उठने लगी। सरकार ने भी बिना देरी किए कलेक्टर को हटाकर मामले को शांत करने की कोशिश की है।
कलेक्टर ने माफी भी मांगी है, और सफाई भी दी कि पीडि़त किशोर नाबालिग नहीं था, और 22-23 साल का है। फिर भी सार्वजनिक तौर पर पिटाई करने पर विशेष तौर पर स्थानीय लोग काफी खफा हैं। बताते हैं कि कुछ दिन पहले भी कलेक्टर ने एक युवक पर हाथ छोड़ दिया था, लेकिन तब किसी ने कुछ नहीं कहा। सूरजपुर नया जिला जरूर है, खनिज-संपदा से भरपूर होने की वजह से काफी संपन्न माना जाता है।
आदिवासी बाहुल्य सूरजपुर में वैश्य तबके के लोगों का काफी दबदबा है। सुनते हंै कि जिला प्रशासन की तरफ से रेडक्रास सोसायटी में पैसा देने के लिए व्यापारियों पर काफी दबाव भी था। यही नहीं, एक अभियान चलाकर डेढ़ दर्जन से अधिक क्रेशर बंद कर दिए गए थे। इन सब वजहों से व्यापार जगत में कलेक्टर के खिलाफ माहौल था, और जब युवक की पिटाई का मामला सामने आया, तो सब कलेक्टर के खिलाफ एकजुट हो गए, और फिर अपने-अपने ढंग से हिसाब चुकता किया।
रमन सिंह का थाने जाना टल गया
पूर्व सीएम रमन सिंह के खिलाफ टूलकिट मामले में केस दर्ज होने के बाद सियासी घमासान चल रहा है। पहले रमन सिंह अकेले गिरफ्तारी देना चाहते थे, लेकिन प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी ने उन्हें मना कर दिया। प्रदेश प्रभारी इस केस के जरिए सारे नेताओं को एक मंच में लाना चाहती थीं। इसी बीच पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर का सुझाव आया कि सभी जिले में पांच-पांच प्रमुख नेता थाने जाकर गिरफ्तारी दें।
अजय का सुझाव सबने पसंद किया, और फिर सभी जिलों में गिरफ्तारी देने वाले पांच बड़े नेताओं की सूची तैयार की गई। इसके बाद सभी नेता अपने-अपने जिले के थाने में जाकर धरने पर बैठे। किसी भी जिले में गिरफ्तारी नहीं हुई। वजह यह थी कि टूलकिट केस में उनके खिलाफ कोई नामजद रिपोर्ट नहीं थी। खैर, सभी नेता थाने में दो घंटे धरने पर बैठने के बाद लौट आए।
दूसरी तरफ, रमन सिंह भी सिविल लाइन थाने जाने वाले थे, लेकिन एक रात पहले ही उन्हें थाने से नोटिस मिल गई कि पुलिस अमला खुद 24 तारीख को उनके घर जाकर पूछताछ करेगा। अंदर की खबर यह है कि पूर्व सीएम के सुरक्षा अधिकारी भी कोरोना के बीच उनके थाने जाने के पक्ष में नहीं थे। फिर क्या था आईजी से बात हुई, और आनन-फानन में नोटिस टाइप किया गया। इसके बाद फिर रमन सिंह का थाने जाना टल गया।
कांग्रेस चुनावी मोड में?
सरकार के कार्यकाल को ढाई साल बचे हैं, और कांग्रेस अभी से चुनावी मोड में आ गई है। दाऊजी खुद दो बार संचार विभाग की बैठक ले चुके हैं। दो दिन पहले हुई बैठक में दाऊजी के साथ चार मंत्री भी थे। बैठक का लब्बोलुआब यह रहा कि कांग्रेस आने वाले दिनों में मोदी सरकार-भाजपा पर हमले तेज करेगी।
बैठक में लालबत्तीधारी एक नेता ने नसीहत दे दी कि सबको नम्रता से अपनी बात रखनी है। इस पर दाऊजी ने उन्हें कहा कि नम्रता का लबादा आप ओढ़े रहिए, युवा अपनी बात पूरी आक्रामकता से रखेंगे। एक अन्य सदस्य ने सुझाव दिया कि यूपीए सरकार के कार्यों को जनता के सामने रखना चाहिए। इसकी सभी ने सराहना की। एक युवा सदस्य ने शिकायती लहजे में विभाग से जुड़ी कुछ समस्याओं का जिक्र किया, तो दाऊजी ने उन्हें टोका, और सलाह दी कि वे सबसे छोटे हैं, और उन्हें सबसे सीखना चाहिए।
राजीव पुण्यतिथि फीकी
राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर सरकार ने न्याय योजना की एक किश्त जारी कर किसानों को बड़ी सौगात दी। मगर हाईकमान के निर्देश के बाद भी संगठन का पुण्यतिथि का कार्यक्रम एकदम फीका रहा। ले देकर राजीव गांधी पुण्यतिथि के मौके पर श्रद्धांजलि देने कुल 13 लोग ही पीसीसी दफ्तर पहुंचे थे। जबकि मंत्री-विधायक समेत रायपुर के ही एक दर्जन से अधिक लालबत्तीधारी नेता हैं। बड़े नेताओं में एकमात्र किरणमयी नायक ने ही उपस्थिति दर्ज कराई। बाकी नेता गायब रहे। आम तौर पर पीसीसी में राजीव गांधी की जयंती, और पुण्यतिथि के मौके पर बड़े स्तर पर कार्यक्रम होते हैं। इस बार पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम अपने क्षेत्र में थे। बाकियों ने संगठन के बजाय सरकार के कार्यक्रम में वर्चुअल मौजूद रहना बेहतर समझा।
छत्तीसगढ़ में भी नकली रेमडेसिविर!
मध्यप्रदेश में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी की खबरें आने के बाद आशंका तो थी कि छत्तीसगढ़ में भी इसे खपाया गया होगा, पर अब स्वास्थ्य विभाग में ही संलग्न संसदीय सचिव विनोद चंद्राकर ने खुलकर आरोप ही लगा दिया है। वे कह रहे हैं कि खाद्य एवं औषधि विभाग के अधिकारियों के संरक्षण में अप्रैल महीने के आखिरी हफ्ते तक, जब तक एमपी में रेड नहीं पड़ी थी यहां हजारों नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन खपा दिये गये। रायपुर से जिस एजेंसी ने रेमडेसिविर की सप्लाई के लिए सूरत की कंपनी को ऑर्डर किया था, वह वही है जिसके तार मध्यप्रदेश के रैकेट से जुड़े हैं। एमपी की जांच एजेंसियों को छत्तीसगढ़ में सप्लाई का पता नहीं चला है पर चंद्राकर का दावा है कि एक मई को मामला उजागर होने से पहले तक अधिकारियों की मिलीभगत से निजी अस्पतालों के जरिए नकली रेमडेसिविर खपाये गये ।
आरोप विपक्ष की ओर से नहीं है। सत्तारूढ़ दल के विधायक का है। उनका, जो स्वास्थ्य विभाग से ही जुड़े हैं। मामला महामारी का भी है। सप्लाई का जो समय बताया जा रहा है उस दौरान रेमडेसिविर की भारी मांग थी। कई लोग कालाबाजारी करते हुए पकड़े भी गये। इसी दौरान कोरोना पीडि़त मरीजों की एक के बाद एक मौतें भी हुईं। आरोपों को गंभीरता से लेने की जरूरत तो है।
सोशल मीडिया की ताकत..
सूरजपुर में कलेक्टरी का ताप दिखाने के बाद हटाए गए आईएएस रणबीर शर्मा के बुरे बर्ताव की आईएएस एसोसिएशन ने कड़ी निंदा की है। संगठन ने एक ट्वीट में कहा कि यह व्यवहार सेवा और सभ्यता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और अस्वीकार्य है। सिविल सेवकों को नागरिकों से सहानुभूति रखनी चाहिए और हर समय समाज को एक उपचारात्मक स्पर्श प्रदान करना चाहिए। खासकर, महामारी के इस कठिन समय में...।
भला हो उस हिम्मती युवक का जिसने एक के मोबाइल को पटकते देखते हुए भी शूट करना नहीं छोड़ा। सोशल मीडिया की ताकत भी दिख गई। देशभर में वीडियो इस तरह से फैला कि आईएएस के पास बचाव का कोई रास्ता ही नहीं रहा। माफी भी लीपा-पोती की तरह ली गई। एसोसियेशन को भी सामने आना पड़ा। वरना, कांकेर की घटना याद आती है, जब रिश्वत मामले में एसीबी ने कार्रवाई की थी तो इसे आईएएस और आईपीएस के बीच की लड़ाई ठहराने की कोशिश की गई थी। प्रशासनिक अधिकारियों में एसडीएम को हिरासत में लिये जाने से नाराजगी थी। कुछ 20-25 दिन पहले पश्चिमी त्रिपुरा के एक डीएम शैलेश कुमार यादव की एक विवाह समारोह में की गई इसी तरह की दबंगई भी सोशल मीडिया के जरिये देशभर में फैली थी। इस घटना में डीएम को न केवल पद से हटाया गया बल्कि सस्पेंड भी किया गया। छत्तीसगढ़ में डीएम को हटाकर तत्परता तो दिखाई गई है, लेकिन मांग इनके भी निलंबन की उठ रही है। सूरजपुर की इसी घटना में एक और अधिकारी, वहां के एसडीएम ने भी हाथ चलाया है। आईएएस का शोर इतना मचा कि अभी वे बचे हुए हैं। उन पर किसी का ध्यान नहीं गया है।
खुद के वेतन में कटौती का सुझाव....
आमतौर पर मंत्रियों-विधायकों की ओर से खुद अपने वेतन भत्तों की बढ़ोतरी कर ली जाती है यह इकलौता ऐसा प्रस्ताव सदन में होता है जिस पर पक्ष और विपक्ष के लोगों में कोई मतभेद नहीं होता। ऐसी स्थिति में यदि कोई विधायक वेतन भत्तों को कम करने की बात करें तो?
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर का कहना है कि सभी मंत्रियों, संसदीय सचिव और विधायकों के वेतन भत्ते में 50 प्रतिशत तक कटौती की जाये। जनसंपर्क निधि को भी एक साल के लिए स्थगित कर दिया जाये। छत्तीसगढ़ इस समय कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पाने में लगा हुआ है और तीसरी लहर आने की आशंका दिखाई दे रही है। ऐसी स्थिति में वेतन भत्तों की कटौती से मिलने वाली पूरी राशि स्वास्थ्य की व्यवस्था मजबूत करने में लगाई जाये। अभी तक धर्मजीत सिंह के विचार का किसी विधायक, मंत्री ने समर्थन नहीं किया है। कोई करेगा, ऐसी उम्मीद भी कम है।
वैक्सीनेशन में सामाजिक सद्भाव
वैक्सीनेशन पर भ्रांतियों, अफवाहों को हवा मिलती है जब इसे धर्म, समुदायों की अस्मिता के साथ जोड़ दिया जाये। कोरबा के एक इलाके में बीते दिनों मुस्लिम समाज के बीच कुछ इसी तरह भांति फैलाने की कोशिश की गई। वहां से लोग टीके के लिये नहीं निकल रहे थे। कुछ समझदार लोगों ने जिला प्रशासन से बात की और टीकाकरण कराने में मदद करने की बात कही। इसके बाद वहां के एक मस्जिद में ही टीकाकरण केन्द्र खोल दिया गया। अब सोशल मीडिया पर इस पोस्ट होने लगे, मस्जिद में ही टीकाकरण क्यों? वैसे भी सरकार इस समय टीकाकरण का वर्गीकरण को लेकर हाईकोर्ट को जवाब देने के नाम पर परेशान दिखाई दे रही है। फिलहाल सोशल मीडिया पोस्ट के जवाब में आयोजन करने वालों ने बाकी मस्जिदों से भी सम्पर्क किया। सभी में एक ही दिन एक साथ टीका। साथ ही यह घोषणा भी की गई कि किसी एक समाज के लिये यह टीकाकरण केन्द्र नहीं खोला गया है, टीका सबको लगेगा। और ऐसा हुआ भी। सभी वर्गों से लोग पहुंचे और उन्होंने टीका लगवाया।
बहुगुणा ने लड़ाई को दिशा दी..
पंडित सुंदरलाल, बहुगुणा पद्म विभूषण पर्यावरणविद और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी। जल जंगल और जमीन को बचाने के लिए उनसे प्रेरणा लेने वाले छत्तीसगढ़ में भी बहुत से लोग हैं। यह लड़ाई कोई सडक़ से लड़ रहा है तो कोई अदालतों के जरिए। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव सन 2012 में दिल्ली में उनसे मिले। वे वहां हिमालय बचाओ अभियान के एक कार्यक्रम में पहुंचे थे। सुदीप श्रीवास्तव ने उनको बताया कि हसदेव नदी पर बनाए गए बांध के कारण 11 हजार हेक्टेयर जंगल पहले ही डुबान क्षेत्र में आ चुका है। अब उसके ऊपर पांच छह कोयला खदानों को मंजूरी दे दी गई है। इससे बड़ी संख्या में पेड़ों का विनाश होगा। बहुगुणा इससे चिंतित दिखे और कहा कि आप लोगों को इसे लेकर लडऩा चाहिए। सुदीप ने बताया लड़ाई चल रही है। इन खदानों को खोलने के खिलाफ एडवोकेट सुधीर श्रीवास्तव की याचिका पर एनजीटी ने खदानों के आबंटन पर रोक लगाई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से एनजीटी के आदेश पर स्थगन हो गया। अभी भी जो खदानें खुली हैं, सुप्रीम कोर्ट के स्थगन के आदेश पर ही है। सुदीप कहते हैं कि बहुगुणा से मिलने के पहले उन्हें लगता था कि इतने पत्राचार करने, मुकदमे लडऩे के कारण मुझे विकास विरोधी, बांध विरोधी कहा जाएगा। लड़ाई लडऩी चाहिए या नहीं, सोचा करता था। उनसे मिलने के बाद लगा कि उसकी दिशा सही है। उन्होंने सारे भ्रम दूर किये। आज भी वे पर्यावरण के मसलों पर दर्जनों लड़ाइयां लड़ रहे हैं। अदालत में भी और बाहर भी। इसके पीछे बहुगुणा का परामर्श उनके बहुत काम आता है।
कठिन सवाल, और शानदार ईनाम
किसी फिल्म को हिट करने के लिए तो पता नहीं क्या-क्या किया जाता है, लेकिन किसी फिल्म को फ्लॉप साबित करने के लिए लोग इतने किस्म के लतीफे बनाते हैं कि जिसकी हद नहीं।
अभी सोशल मीडिया पर एक किस्सा घूम रहा है कि एक ऑनलाइन कंपनी ने एक इनामी मुकाबला शुरू किया। उसमें दाखिल होने के लिए किसी कंपनी को फोन करना था। एक आदमी ने फोन किया तो उसे बताया गया कि आपसे एक सवाल किया जाएगा और अगर आपने उसका सही जवाब दिया तो आपके लिए एक बहुत शानदार इनाम रखा गया है।
खुश होकर उस आदमी ने पूछा कि सवाल क्या है? तो उसे बताया गया कि सवाल गणित का है।
वह आदमी और खुश हो गया उसने कहा कि वह तो 30 बरस से स्कूल में गणित ही पढा रहा है और वह उसका पसंदीदा विषय भी है।
उसने पूछा कि ईनाम क्या है? तो उसे बताया गया कि सलमान खान की फिल्म ‘राधे’ की 4 टिकटें।
इसके पहले कि वह फोन रख सके उससे सवाल पूछा गया कि 2 में 2 जोड़े तो कितना होगा?
उस आदमी ने छुटकारा पाने के लिए जवाब दिया 7, और उसने सोचा कि अब कम से कम इस फिल्म की टिकट लेने से बच जाएगा।
लेकिन सामने से उस कंपनी के आदमी ने खुश होते हुए कहा कि सुबह से जवाब तो कई लोग दे रहे थे लेकिन आपका जवाब सही जवाब के सबसे करीब है, इसलिए आपके पते पर फिल्म ‘राधे’ की 4 टिकटें भेजी जा रही हैं।
तथ्य से कोसों दूर कलेक्टर का जवाब
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से संवाद के लिये प्रदेश से पांच कलेक्टर जरूर बैठे थे लेकिन तय था कि वे सभी से बात नहीं करने वाले थे। आखिर देशभर से 60 से अधिक कलेक्टर उनकी इस वर्चुअल मीटिंग में जुड़े थे। छत्तीसगढ़ में मौका जांजगीर-चाम्पा के कलेक्टर यशवंत कुमार को मिला। बड़ा सरल सा सवाल था पर हड़बड़ी में जो जवाब कलेक्टर ने दिया वह सच के आसपास भी नहीं था। उन्होंने 1400 गांव बता दिये जबकि वास्तविक संख्या 915 है। यह उम्मीद करना भी स्वाभाविक है कि वह महामारी से मुक्त हो चुके या अप्रभावित रहे गांवों की संख्या की जानकारी तो कलेक्टर को हो, पर इसका जवाब भी वे नहीं दे पाये। इस शोर में हुआ यह कि प्रधानमंत्री ने कोरोना से निपटने के लिये छत्तीसगढ़ में हुए प्रयासों की जो सराहना की, वह खबर पीछे रह गई। जांजगीर कलेक्टर ने भी अधोसंरचना, कोविड केयर सेंटर, वैक्सीनेशन, पॉजिविटी रेट गिरने जैसी कई उपलब्धियों की जानकारी दी पर उनकी ओर भी किसी का ध्यान नहीं गया। अब दूसरे कलेक्टर्स कह रहे हैं कि हमने तो पूरी तैयारी कर रखी थी, हमें मौका मिला नहीं। खैर, मोदी ने सलाह दी है कि एक दूसरे से अपनी बातें शेयर करनी चाहिये, अब आगे न हो। एक कलेक्टर दूसरे से चर्चा कर लें कि क्या-क्या पूछा जा सकता है और क्या जवाब दिया जा सकता है।
चर्चा में फिर खेतान का ट्वीट
आईएएस चितरंजन खेतान की एक ट्वीट कल से चर्चा में है। उन्होंने आईपीएस दीपांशु काबरा और आर के विज के बारे में लिखा है- कभी-कभी सोचता हूं कि उनको इतना ज्ञान कहां से प्राप्त हुआ- सरकार से या और कहीं से? मेरी बुद्धि तो नहीं चलती। उनको सलाम।
लिखने के बाद खेतान को लगा, कुछ कमी रह गई है तो इसमें उन्होंने आईएएस सोनमणि बोरा का नाम भी जोड़ दिया और कहा कि पड़ोसी होने के कारण उनका जिक्र नहीं कर पाये थे।
यह किस संदर्भ में उन्होंने कहा यह साफ नहीं लेकिन यह जरूर है कि सोशल मीडिया खासकर ट्विटर पर ये अधिकारी बेहद सक्रिय हैं।
ट्वीट की प्रतिक्रिया में कुछ लोगों ने पूछा है कि यह इन अफसरों की तारीफ है या तंज?
इस ट्वीट से करीब 8 माह पहले की गई उनकी ट्वीट याद आ गई जब खेतान ने कलेक्टर्स के प्रति हमदर्दी दिखाई थी। उन्होंने कहा था कलेक्टर पर ही सारी जिम्मेदारी और उसी से सबकी नाराजगी। नेताओं के काम वो बनाये और डांट भी खाये। क्या करें, क्या न करें, बोल मेरे भाई।
इस बार नेताओं का जिक्र नहीं है इसलिये नहीं लगता कि पिछली बार की तरह कांग्रेस-भाजपा उनके इस ट्वीट पर आपस में उलझेंगे।
बिना तकलीफ उठाये आंदोलन..
राजनैतिक दलों के लिये उनके अस्तित्व से जुड़ी जरूरत है कि वह विरोधियों के खिलाफ मुद्दा गरम रखे और सडक़ पर निकले। लेकिन इन दिनों लॉकडाउन के कारण घरों से निकलने पर रोक लगी हुई है। इसके बावजूद कांग्रेस-भाजपा दोनों ने ही अपने आंदोलनजीवी होने का धर्म नहीं छोड़ा है। भाजपा को हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ, टूलकिट और महासमुंद में महिला बाल विकास अधिकारी के आरोपों का मुद्दा मिला। कांग्रेस को भी टूल किट के फर्जी होने, रासायनिक खाद के दाम बढऩे को लेकर केन्द्र सरकार को निशाने पर लेना जरूरी था।
महामारी के इस दौर ने आंदोलन और विरोध प्रदर्शन का एक सहूलियत भरा ट्रेंड शुरू कर दिया है। घर में कुर्सी लगाकर बैठने का और तस्वीर खिंचाने का। घर के सामने कोई घंटों बैठकर करेगा भी क्या, लॉकडाउन के कारण कोई देखने भी तो नहीं आने वाला है। इसीलिये तरीका यही निकाला गया कि बैनर और तख्ती के साथ कुर्सी पर बैठकर तस्वीर खिंचवा लीजिये। तुरंत फोटो और बयान जारी कर दीजिये। सैकड़ों न्यूज पोर्टल हैं जो इस खबर को तुरंत छत्तीसगढ़ के कोने-कोने तक सर्कुलेट करने के लिये तैयार मिलेंगे। टूल किट कौन बना हुआ है?