राजपथ - जनपथ
खर्च को लेकर संघर्ष
चर्चा है कि रायपुर की एक सीट पर मुख्य राजनीतिक दल के प्रत्याशी, और चुनाव संचालक के बीच विवाद शुरू हो गया है। चुनाव संचालक के पास पहले से ही संगठन का एक अतिरिक्त दायित्व था, बावजूद उन्हें चुनाव संचालन की जिम्मेदारी दी गई।
चुनाव प्रचार जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है। प्रचार के लिए कार्यकर्ता पैसा मांग रहे हैं। स्वाभाविक है कि प्रचार-प्रसार पर तो खर्च होता ही है। चुनाव आयोग ने प्रत्याशी के लिए 40 लाख खर्च की सीमा तय कर रखी है। मगर रायपुर की सीटों पर मुख्य दलों के प्रत्याशियों को तय सीमा से न्यूनतम 10-20 गुना, या उससे अधिक खर्च करना पड़ता है।
बताते हैं कि खर्च को लेकर चुनाव संचालक, और प्रत्याशी के बीच पिछले दिनों बैठक हुई। प्रत्याशी ने साफ तौर पर कह दिया कि वो 2-3 सीआर से ज्यादा नहीं खर्च कर सकते हैं। इस पर हैरान चुनाव संचालक ने कहा बताते हैं कि रायपुर की सीट पर न्यूनतम 10 सीआर खर्च करने पड़ते हैं। इतनी व्यवस्था नहीं होगी, तो मुश्किलें आएंगी। कार्यकर्ताओं की नाराजगी से बचने के लिए चुनाव संचालक ने फिलहाल खुद को किनारे कर लिया है। देखना है कि आगे का प्रचार कैसे होता है।
पूरा महल जुटा
डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। भाजपा ने सिंहदेव के खिलाफ उनके ही चेले राजेश अग्रवाल को मैदान में उतार दिया है। इस बार का माहौल काफी अलग है। पिछली बार तो उनके सीएम बनने का हल्ला था। इसलिए लोगों ने उन्हें बढ़-चढक़र समर्थन दिया। लेकिन इस बार परिस्थिति अलग है। स्थानीय लोगों में नाराजगी भी है।
सिंहदेव को सारी स्थिति का अंदाजा है। यही वजह है कि उनके छोटे भाई, और तीनों बहनों ने अंबिकापुर में डेरा डाल दिया है। सारे नजदीकी रिश्तेदार भी जुट गए हैं। गली-मोहल्लों में जाकर सिंहदेव के लिए वोट मांग रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा प्रत्याशी राजेश अग्रवाल को उन्हीं के दल के प्रमुख नेता समर्थन नहीं कर रहे हैं। मगर असंतुष्ट कांग्रेसियों, और निष्ठावान भाजपाईयों व व्यक्तिगत संपर्कों की वजह से मजबूत दिख रहे हैं। कुल मिलाकर सिंहदेव के लिए इस बार की राह आसान नहीं है।
मंच पर कड़वे तेवर, मिले तो...
मानपुर-मोहला इलाके में सीएम भूपेश बघेल, और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा गुरुवार को वहां हेलीपैड में गर्मजोशी से मिले। दोनों ही सीएम अपने आक्रामक तेवर के लिए जाने जाते हैं। बिस्वा सरमा कांग्रेस में रह चुके हैं। और वो कांग्रेस की राजनीति में दिग्विजय सिंह के करीबी रहे हैं। भूपेश को भी दिग्विजय सिंह का वरदहस्त रहा है।
हिमंता और सीएम भूपेश बघेल, दोनों की मानपुर इलाके में सभा थी। और जब आमने-सामने हुए, तो हाथ मिलाया, और दोनों ने कुशलक्षेम पूछा। हिमंता के साथ महासमुंद के पूर्व सांसद चंदूलाल साहू भी थे। भूपेश बघेल ने उनकी तरफ देखकर पूछ लिया आप लोगों ने चंदूलाल जी को टिकट क्यों नहीं दिया? हास परिहास के बीच भूपेश ने आगे कहा कि अच्छा हुआ, आप लोगों ने चंदूलाल को टिकट नहीं दिया, हमारा एक विधायक बढ़ जाएगा। इसके बाद दोनों अलग-अलग हेलीकॉप्टर से रवाना हो गए।
क्या चिंतामणि दिखा पाएंगे अपना जादू
सरगुजा में संत गहिरा गुरु का काम और नाम बहुत प्रसिद्ध है। उन्होंने पूरे सरगुजा क्षेत्र में लोगों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से जागरूक किया। वे किसी राजनीतिक दल से नहीं थे। उनके नाम पर सरकार ने संत गहिरा गुरु अलंकरण भी घोषित किया है। उनके सुपुत्र चिंतामणि महराज अभी चर्चा में हैं। वे कांग्रेस के विधायक थे, उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दी तो भाजपा में चले गए। इसे उनकी घर वापसी कहा जा रहा है। वैसे चिंतामणि महराज भाजपा से कभी विधायक नहीं चुने जा सके। रमन सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें संस्कृत बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था।
वे 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट के दावेदार थे, पर भाजपा ने महत्व नहीं दिया तो नाराज होकर सामरी विधानसभा से निर्दलीय मैदान में उतर गए। उन्हें लगभग 19000 वोट मिले, पर जीत नहीं सके। इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने 2013 लुंड्रा से टिकट दी और जीतकर पहली बार विधायक बने।
2018 में कांग्रेस ने उन्हें लुंड्रा के बजाय सामरी से मैदान में उतारा और उन्होंने रिकार्ड 51 प्रतिशत मत लेकर चुनाव में विजयी रहे। लेकिन इस बार कांग्रेस ने टिकट नहीं दी। भाजपा में शामिल तो हुए पर कहीं से प्रत्याशी नहीं है। अब कार्यकर्ता कह रहे हैं कि भाजपा ने तो कभी विधायक तो बनाया नहीं, कांग्रेस से विधायक बन सके। अब देखना होगा कि भाजपा में उनकी ग्रह दशा कितना साथ देती है।
फसलों को बचाने वाला इलेक्ट्रॉनिक भेडिय़ा
फसल को जानवरों से बचाने के लिए हम बहुत पारंपरिक उपाय अपनाते हैं। एक पुतले को इंसानों का कपड़ा पहनाकर खड़ा कर दिया जाता है जिसे भगउड़ा या बिजूका कहा जाता है। या फिर कनस्तर पीट-पीट कर बंदरों और दूसरे जानवरों को भगाया जाता है। इसके अलावा बाड़ लगाई जाती है, जो खर्चीला है। कई बार पशु बाड़ को भी फांद लेते हैं, इसे देखते हुए उसमें गैरकानूनी तरीके से करंट लगा दिया जाता है। इससे जानवरों ही नहीं मनुष्यों की मौत भी हो जाती है। छत्तीसगढ़ में कई हाथी और अन्य वन्यप्राणी इसके चलते हर साल मारे जाते हैं।
पर अब जब किसान और खेती राजनीति के केंद्र में आ रही हो तो देश दुनिया में इस दिशा में होने वाले शोध और अविष्कारों पर भी नजर रखनी चाहिए। जापान में रोबोटिक भेडिय़े खेतों में लगाए जा रहे हैं, जो सोलर पावर से चलते हैं। कोई जानवर खेतों के आसपास फटकता है तो इसकी लाल एलईडी आंखें चमक जाती है। यह असली भेडिय़ों से भी ज्यादा भयानक 60 डेसिबल में चीखें निकालता है, जब तक जानवर भाग न जाए। उपलब्ध जानकारी के अनुसार कीटों से बचाने के लिए भी विशेष प्रकार की ध्वनि इससे निकलती है। ध्वनि हर बार बदल जाती है ताकि जानवर डरना बंद मत करें।
कुछ दिन पहले इसी कॉलम पर कटघोरा के एक किसान की चर्चा हुई थी, जिसने इंटरनेट पर सर्च करके पता लगाया और एक मशीन मंगाई, जिसे खेत के बाड़ में जोड़ देने से 12 वोल्ट का डीसी करंट प्रवाहित होता है। यह भी सोलर पॉवर से ही चलता है। इससे हाथियों से बचाव हो रहा है। हाथियों को कोई नुकसान नहीं होता, हल्का झटका लगने पर वे पीछे हट जाते हैं।
इस रोबोटिक वोल्फ का विवरण भी इंटरनेट से ही मिला है, पर यह अभी भारतीय बाजार में उपलब्ध नहीं है। इसकी जानकारी एक किसान ने अपने सोशल मीडिया पेज पर साझा करते हुए सरकार से अपेक्षा की है कि ऐसे उपकरणों को अपने देश में भी किसानों के लिए उपलब्ध कराना चाहिए और अन्य कृषि उपकरणों की तरह इस पर भी अनुदान मिलना चाहिए।
पढ़ाई का दोहरा नुकसान
विधानसभा, लोकसभा चुनाव जब भी होते हैं, स्कूलों की पढ़ाई को बहुत नुकसान होता है। शिक्षकों की चुनाव ड्यूटी लग जाती है, स्कूलों में ताले लग जाते हैं। इनमें से अधिकांश बूथ बना दिये जाते हैं। पर दूसरी समस्या उन छात्रों को हो रही है जो पढ़ाई को लेकर गंभीर हैं और छुट्टी के दौरान घर पर पढ़ाई करने का मन बनाते हैं। जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है हर गली मोहल्ले में प्रचार गाडिय़ां घूम रही हैं। चुनाव आयोग और छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट की सख्ती के बाद पुलिस ने हाल के दिनों में डीजे और तेज साउंड वाली गाडिय़ों पर तो कुछ सख्ती दिखाई है, पर जो छोटी गाड़ी आटो रिक्शा और कैब में प्रचार करते हुए चल रही हैं, वे भी ध्वनि प्रदूषण फैला रहे हैं। कई बार तो एक चौराहे पर दो-दो तीन गाडिय़ां खड़ी होती हैं, और सब पर नारे, गाने, भाषण चल रहे होते हैं। चूंकि प्राय: सब गाडिय़ां निर्वाचन कार्यालयों से अनुमति लेकर ही चल रही हैं, इसलिये इन पर कोई कार्रवाई भी नहीं हो रही है। लोग गिन रहे हैं कि उनके इलाके में प्रचार की आखिरी तारीख कब है।
जेसीसी की टिकट के लिए मारामारी
मुंगेली जिले की लोरमी सीट वैसे भी हाईप्रोफाइल सीट है, क्योंकि यहां से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव मैदान में हैं। पर एक दूसरे मायने में भी यह खास सीट हो गई क्योंकि यहां जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के दो-दो बी फार्म धारक उम्मीदवार रिटर्निंग ऑफिसर के पास पहुंच गए। जेसीसी से मनीष त्रिपाठी चुनाव लडऩे की तैयारी साल भर से कर रहे थे। उनका नाम लगभग फाइनल कर भी दिया गया था। पर अचानक जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सागर सिंह बैस ने अपनी पार्टी से बगावत कर दी। वे जेसीसी में आ गए और पार्टी ने उनके नाम भी बी फॉर्म जारी कर दिया। इधर त्रिपाठी ने दावा किया कि बी फॉर्म तो उनके नाम पर पहले से ही जारी हो चुका है। आखिरकार, पार्टी की ओर से बताया गया कि बैस को जारी किया गया फॉर्म ही सही है। त्रिपाठी ने कौन सा बी फॉर्म जमा किया है, उसे नहीं जानते वह असली नहीं है। अब मनीष त्रिपाठी मैदान में निर्दलीय उतर गए हैं। गौरतलब है कि सन् 2018 में यहां से जेसीसी को ही जीत मिली थी। पार्टी के विधायक धर्मजीत सिंह अब भाजपा की टिकट पर तखतपुर से लड़ रहे हैं। कुछ माह पहले तक यह समझा जा रहा था कि जेसीसी से लडऩे वाले नहीं मिलेंगे, वहीं आज लोरमी जैसी सीटें भी हैं, जहां टिकट नहीं मिलने पर बगावत हो गई।
स्वागत के लिए धक्का-मुक्की
भाजपा में स्टार प्रचारकों के स्वागत के लिए खींचतान मची है। चर्चा है कि कुछ शातिर नेताओं ने तो दिल्ली में अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर एंट्री गेट टिकट भी बंद करवा दिया है। केवल उन्हीं लोगों को प्रवेश मिल पाता है, जिन्हें ये शातिर नेता पसंद करते हंै।
हालांकि एयरपोर्ट के अफसरों का कहना है कि चुनाव के चलते वीवीआईपी विजिट काफी हो रहा है, और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एंट्री गेट टिकट 12 नवंबर तक के लिए बंद कर दिया गया है। स्टार प्रचारकों के स्वागत के लिए भाजपा के नेताओं में आपसी विवाद काफी समय से चल रहा है। जिन नेताओं को मौका नहीं मिल रहा है वो स्वागत समिति से जुड़े नेताओं को कोस रहे हैं।
नाराज नेता धमतरी के एक पदाधिकारी को ज्यादा कोस रहे हैं। जिन्हें पार्टी ने कई तरह की जिम्मेदारी दे रखी है। उन पर आरोप है कि जहां स्टार प्रचारकों का कार्यक्रम हो रहा है, वहां के नेताओं को भी समय पर जानकारी नहीं दी जा रही है। हाल यह है कि कई सभाओं पर अपेक्षाकृत भीड़ नहीं जुट पा रही है।
यही नहीं, नेताजी तो वीआईपी नेताओं के बस्तर, और आसपास के इलाकों में कार्यक्रम तय होने पर घरेलू काम निपटाने के लिए साथ धमतरी चले जाते हैं, और सभा निपटने तक अपना काम पूरा कर लौट आते हैं। इस तरह की कई शिकायतें पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष तक पहुंची है। देखना है आगे क्या होता है।
बंगले में रहने पर भी ऐतराज
चुनाव आयोग के निर्देश पर हटाए गए छत्तीसगढ़ पुलिस के दो आईपीएस अफसरों के खिलाफ भाजपा ने एक नई शिकायत में सरकारी बंगले में मौजूदगी पर सवाल उठाए हैं। 9 अक्टूबर को चुनाव आचार संहिता लागू होने के दो दिन बाद 11 अक्टूबर को आयोग ने 2 कलेक्टर समेत 3 आईपीएस अफसरों को जिले से हटाने के आदेश दिए थे।
आईपीएस अफसरों को पीएचक्यू में सहायक पुलिस महानिरीक्षक के तौर पर पदस्थ किया गया। शिकायत में कहा गया कि पीएचक्यू में आईपीएस अफसरों के लिए न आफिस और न ही कार्य की कोई नई जिम्मेदारी। ऐसे में अफसर अपने बंगले में ही जमे हुए हैं। भाजपा ने शिकायत में दो आईपीएस अफसरों का जिक्र किया है।
आयोग में जाने की खबर से पीएचक्यू में हडक़ंप मच गया। प्रदेश के शीर्ष अफसरों ने हटाए गए पुलिस अधीक्षकों को बंगला छोडक़र पीएचक्यू में हाजिर होने का फरमान जारी किया गया है। देखना है कि शिकायत पर कितना अमल होता है।
पथ संचलन में इस बार उत्साह कम क्यों
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना स्थापना दिवस विजयादशमी को हर साल मनाता है। इस दिन सारे स्वयंसेवक पूरे गणवेश में दंड लेकर एक तरह से शक्ति प्रदर्शन करते हैं। हर शहर और गांव में जहां संघ का संगठन है, वहां इसे मनाया जाता है।
विजयदशमी के बाद भी अनेक स्थानों में इसके आयोजन होते हैं लेकिन इस बार के पथ संचलन में स्वयंसेवक उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। पिछले साल की तुलना में पथ संचलन में ज्यादा स्वयंसेवक नहीं जुट रहे हैं। उत्साह का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि पहले स्वयंसेवक गणवेश में फोटो खींचा कर सोशल मीडिया में अपलोड
करते थे।
लेकिन इस बार सोशल मीडिया में केवल चुनावी सरगर्मी दिख रही है। इसके पीछे दो महत्वपूर्ण कारण बताये जा रहे हैं पहला आचार संहिता लगा होने के कारण सरकारी कर्मचारी इस आयोजन से दूरी बनाए हुए हैं, दूसरा भाजपा कार्यकर्ता व नेता भी चुनाव में व्यस्त हैं। ऐसे में संघ के लोग भी रुचि नहीं ले रहे हैं, वे कह रहे हैं कि स्वयंसेवक मेहनत करते हैं और फायदा भाजपा वाले ले जाते हैं, इसलिये ज्यादा भीड़ नहीं जुटा रहे हैं।
रूठे फूफाओं से ज्यादा खास कौन?
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सत्ता की लड़ाई तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही है लेकिन तीसरी पार्टियों में बाजी पलटने की ताकत दिखाई दे रही है। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, हमर राज, जोहार छत्तीसगढ़ जैसे दल खुद कितनी सीटें निकालेंगे इसका अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता। मगर, प्रदेश की कई सीटों पर जीतने की उम्मीद कर रहे प्रत्याशियों को ये हरा सकते हैं और हारने के मुहाने पर खड़े उम्मीदवारों की जीत दिला सकते हैं, यह जरूर कह सकते हैं।
अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर गौर करें, जो उन्होंने ग्वालियर में कार्यकर्ताओं के साथ संवाद के दौरान दिया। उन्होंने कहा सपा और बसपा के उम्मीदवारों की मदद करो, ये जितने मजबूत होंगे, उतना हमें फायदा होगा। ये ही कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे। उन्होंने कहा- रूठे हुए फुफाओं (बागी या घर बैठे भाजपा नेताओं) को मनाने की ज्यादा जरूरत नहीं है।
अब आप यह अंदाजा लगाइए यदि मध्यप्रदेश में सपा और बसपा के लिए वे यह बात कह रहे हैं तो छत्तीसगढ़ में किन दलों के लिए कहते? शायद छत्तीसगढ़ भाजपा तक शाह का संदेश पहले ही पहुंच चुका है।
करवा चौथ का चुनाव पर असर
करवा चौथ पर महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के साथ व्रत रखती हैं और रात में चांद देखकर इसे तोड़ती है। धूमधाम के साथ कल इसे देश में मनाया गया। इसका एक असर चुनाव की तैयारी पर मध्य प्रदेश में दिखा। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आरटीओ ने चुनाव में बसों की व्यवस्था करने के लिए एक बैठक एक नवंबर को बुलाई। करवा चौथ व्रत के चलते बस मालिकों ने इस बैठक की तारीख बदलने का आग्रह करते हुए एक रोचक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि व्रत के दिन सब की पत्नी चाहती हैं कि पति उनके साथ रहें। उन्होंने आशंका जाहिर की कि उनकी गैरमौजूदगी में अगर गलती से पत्नी ने कुछ खा लिया तो उनका जीवन खतरे में पड़ सकता है। पत्र के नीचे हस्ताक्षर करने वालों ने अपने को निरीह बस मालिक बताया। यह खबर नहीं आई है कि आरटीओ ने उनकी अर्जी पर गौर किया या फिर इलेक्शन अर्जेंट के नाम पर बैठक बुलाने पर आमादा थे।
शौच से मना नहीं है लेकिन..
पता नहीं छोटे और मझोले रेलवे स्टेशन के शौचालयों में ऐसा कौन सा कीमती सामान रखा होता है कि वहां ताला लगाकर चाबी स्टेशन मास्टर रख लेते हैं। किसी यात्री को यहां जाने की जरूरत महसूस हो तो पहले शौचालय तक दौड़ लगाए, फिर स्टेशन मास्टर की तलाश करें और चाबी लेकर वापस आए। व्हीलचेयर पर चलने वाला कोई यात्री कैसे यह सब कर पाएगा, आप कल्पना करिए। यह मध्य प्रदेश के सिंहपुर डुमरा स्टेशन की तस्वीर है।
राम, भरत मिलाप
करीब डेढ़ दशक बाद भाजपा के दो बड़े नेताओं के एक होने की खबर है। ये दोनो,अब तक श्री राम और भरत की तरह रहते रहे हैं। दरअसल इनके बीच अपने मनोभाव से अधिक कई विभीषण आते रहे हैं। से सभी ,अपने फायदे कि लिए दोनों को एक नहीं होने दे रहे थे। इनमें पार्टी के लोग भी रहे और बाहरी भी। दोनों के टकराव के चलते 15 वर्ष की सरकार आखिरकार 14 पर आ सिमटी। दोनों को एक दूसरे से दूरी का नुकसान समझ में आया। यह सब देख, सुन, भांप रहे एक व्यक्ति ने पहल की। और दोनों को एक करने में अहम भूमिका निभाई। देखना यह है कि यह मिलाप राम, लक्ष्मण की तरह रहता है, फिर तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई की तरह।
इस बार मुस्लिम नहीं !
यह पिछले पांच चुनाव के बाद यह पहला ऐसा चुनाव होगा कि रायपुर दक्षिण में मुस्लिम प्रत्याशियों की अधिकता नहीं है। फिर भी एक दर्जन दावेदार खड़े हैं। वर्ना एक बारगी तो समाज से 24-24 खड़े, और करवाए गए थे। अबकी बार भी प्रयास किया गया लेकिन इन्हें खड़े करवाने वाले काम नहीं आए। प्रयास भी किया गया लेकिन हर प्रयास विफल किया गया। खड़े होने की खबर लगते ही कांग्रेस के चुनाव संचालक उनके ही घर बाहुबली भेज देते और बात खतम। इनमें से कुछ लोग शायद आज दावेदारी वापस भी ले लें। यानी इस बार टिकरापारा, संजय नगर, संतोषी नगर के 25 हजार वोट बूथ तक पहुंचने वाले है। क्योकिं इनकी निजामुद्दीन और अजमेर शरीफ की जियारत का भी इंतजाम अब तक नहीं हो पाया है। देखते हैं इनके लिए क्या इंतजाम करते हैं।
चुनावी चरण स्पर्श
बिलासपुर संभाग के एक नेताजी ने पूरा 5 साल लोगों के पैर छूकर काट दिया। चुनाव से कुछ समय पहले तक तो उनकी इस अदा पर लोग वाह-वाह कर रहे थे। नेताजी को जमीन से जुड़ा बताते नहीं थकते थे। अब जब चुनाव सिर पर है, तब नेताजी के पैर छूने की आलोचना होने लगी है। लोग कहने लगे हैं कि यह तो चुनावी चरणस्पर्श है। वैसे नेताजी की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है, क्योंकि पैर छूने के बाद अपशब्द कहने की बात भी चर्चा में है और उनके ही लोग किस्से बताने लगे हैं।
चाचा-भतीजे की लड़ाई में पति-पत्नी
दो विधानसभा क्षेत्रों चाचा-भतीजे के बीच की लड़ाई में पति-पत्नी आ गए हैं। पाटन में भूपेश बघेल और विजय बघेल के बीच अमित जोगी और अकलतरा में सौरभ सिंह और राघवेंद्र सिंह के बीच ऋचा जोगी। पिछली बार ऋचा ने कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों को जमकर छकाया था। करीबी मुकाबले में सौरभ सिंह जीते थे। इस बार पाटन में अमित की उम्मीदवारी भी इसी तरह की मानी जा रही है। अब देखना यह है कि चाचा-भतीजे के बीच जोगी दंपति का भविष्य क्या रहेगा।
घुमा-फिरा कर बात क्यों करना?
वह जमाना भी अब लद चुका जब कोई नेता यह कहे कि नीतियों और कार्यक्रमों से प्रभावित होकर वह दूसरे दल में शामिल हो रहा है। सामरी विधायक चिंतामणि महाराज ने कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आने के लिए साफ-साफ शर्त रखी कि उन्हें अंबिकापुर से टिकट दी जाए। मगर भाजपा ने कोई दूसरा उम्मीदवार तय कर दिया। अब महाराज के भाजपा में लाने की योजना पर पेंच फंस गया। एक सप्ताह मसला हल नहीं हुआ। बाद जब शामिल हुए तो महाराज ने भी साफ कर दिया कि वे किस शर्त पर आए हैं। उन्हें आश्वासन मिला है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट दी जाएगी। बात घुमा-फिरा कर उन्होंने नहीं की। साफ-साफ सौदा है। समर्थन चाहिये तो पद दो या उसकी गारंटी। पर, यह सब भरोसे की ही बात है। भाजपा ने उन्हें सिर्फ आश्वस्त किया है, कोई अनुबंध नहीं हुआ है। अभी तो जशपुर और सरगुजा दोनों ही संसदीय सीट भाजपा के पास है। फिर क्या चिंतामणि महाराज की अपेक्षा आसानी से पूरी होगी? सन् 2019 में सारे सीटिंग सांसदों की टिकट काटी गई थी, इसलिये उम्मीद तो की जा सकती है।
तहखानों में कैद एफआईआर
मध्यप्रदेश के इंदौर क्रमांक एक से भाजपा प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय का नामांकन निरस्त करने की मांग की गई। इसमें कहा गया था कि छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की एक अदालत में उनके खिलाफ 1999 से एक मामला लंबित है। कोर्ट ने उनको फरार बताया है। यह जानकारी प्रत्याशी ने नामांकन जमा करते हुए छिपाई है। कई घंटों की बहस के बाद निर्वाचन अधिकारी ने आपत्ति रद्द कर नामांकन मंजूर कर लिया। ऐसा कई बार होता है जब ठीक चुनाव के समय प्रत्याशियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे बरसों से जमी धूल झाडक़र बाहर निकाले जाते हैं। हलचल होती है, पर चुनाव परिणामों के बाद सब शांत हो जाता है। भानुप्रतापपुर, बस्तर के उप-चुनाव में भी देखा गया था कि ब्रह्मानंद नेताम के खिलाफ झारखंड में दर्ज आपराधिक मामले को कांग्रेस ने चुनाव के दौरान उठाया। चुनाव खत्म होते ही सब भूल गए। राजनीतिक रसूख रखने वालों के प्रति पुलिस उदार रहती है, वारंट तामील नहीं करती। एफआईआर दर्ज कराने वाले भी शायद फैसला नहीं चाहते। फिर अदालत दिलचस्पी ले, क्या पड़ी है। ऐसे मुकदमे बड़ी संख्या में अदालतों में लंबित हो सकते हैं। पुलिस रिकॉर्ड में अनगिनत फरारी वारंट दबे पड़े हैं।
चुनाव लडऩे वालों की फाइल को सिर्फ इस्तेमाल करने के लिये ढूंढ लिया जाता है। चुनाव नहीं लड़ रहे हों तो लोग इससे भी बचे रहते हैं।
बंदर के हाथ में पॉलिथीन
प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व और अभयारण्य आज से खुल गए हैं। यह अचानकमार टाइगर रिजर्व की तस्वीर है। यहां पॉलिथीन प्रतिबंधित है। पर न तो पर्यटकों में समझदारी है, न ही वन विभाग का मैदानी अमला मुस्तैद, कि उन्हें तहजीब सिखाएं। भूखे वन्यजीव खाद्य पदार्थों साथ इन पन्नियों को भी उदरस्थ कर लेते हैं। पर्यावरण, जंगल नदी-नालों का नुकसान तो है ही।
खर्च और विवाद
रायपुर की एक सीट पर कांग्रेस के चुनाव संचालकों के बीच आपस में खींचतान शुरू हो गई है। कांग्रेस प्रत्याशी सीधे-सरल हैं, और वो सब पर भरोसा करते हैं। मगर संचालकों की वजह से प्रचार तंत्र बिखरता दिख रहा है। हालांकि कुछ नेता जरूर ईमानदारी से काम करते दिख रहे हैं। मगर उनके विरोधी ही मेहनत पर पलीता लगाने में पीछे नहीं हैं।
हुआ यूं कि प्रत्याशी का प्रचार व्यवस्थित ढंग से करने की रणनीति बनाई गई थी। और एक संचालक ने कार्यकर्ताओं के खाने-पीने के लिए रसोई भी शुरू करवा दी। ये बात संचालक मंडल से जुड़े एक अन्य सदस्य को पसंद नहीं आई। उन्होंने तुरंत मीडिया में खबर चलवा दी।
हाल यह हो गया कि चारों विधानसभा से कार्यकर्ता खाने-पीने के लिए वहां पहुंच जा रहे हैं। इससे खाने-पीने का खर्च चार गुना बढ़ जा रहा है। इस तरह संचालन समिति के सदस्य एक-दूसरे को झटका दे रहे हैं। हालांकि सीएम खुद प्रचार तंत्र पर नजर रखे हुए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
भाजपा दिग्गजों के रोड शो
भाजपा ने दिग्गज नेताओं के रोड शो का कार्यक्रम किया है। पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, असम के सीएम हिमंता बिस्वा शर्मा, केन्द्रीय मंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस का अलग-अलग शहरों में रोड शो होगा।
मोदी धरसींवा से लेकर रायपुर की चारों सीट से होते हुए आरंग तक रोड शो कर सकते हैं। इस पर चर्चा चल रही है। योगी आदित्यनाथ की दर्जनभर सभाएं होंगी। ये सभाएं मैदानी इलाकों में होंगी। सभा की तैयारियों को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। प्रदेश की तकरीबन सभी सीटों पर रोड शो का प्लान तैयार किया गया है। देखना है कि रोड शो से कितना फायदा होता है।
नेताम के बाद रेणुका का वीडियो
भाजपा नेताओं के पुराने वीडियो इन दोनों सोशल मीडिया पर एक के बाद एक वायरल हो रहे हैं। दो दिन पहले रामानुजगंज के भाजपा प्रत्याशी राम विचार नेताम का वीडियो छाया था, जिसमें वे भूपेश बघेल जिंदाबाद के नारे लगाते दिख रहे थे। यह 3 साल पुराना वीडियो था, जिसे इस तरह से पेश किया गया मानो वह अभी के चुनाव प्रचार का हो। अब एक वीडियो क्लिप भरतपुर-सोनहत प्रत्याशी केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह का आया है। 3000 से अधिक फॉलोवर वाले छत्तीसगढिय़ा मुख्यमंत्री नाम के अनवेरीफाइड ट्विटर पेज पर रेणुका सिंह का 28 सेकंड का एक वीडियो 29 अक्टूबर को पोस्ट किया गया है, जिसमें वह सामने खड़े कुछ कर्मचारियों को धमका रही हैं कि भगवाधारी भाजपा कार्यकर्ताओं को कमजोर मत समझना। ...जनपद और तहसील में बैठकर जो भेदभाव कर रहे हो ना, भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ.. भूल जाइए। अंधेरी कोठरी में ले जाकर ना, मैं बेल्ट खोलकर ठोकना जानती हूं अच्छे से।
दरअसल यह वीडियो मई 2020 का है। कोविड-19 महामारी का दौर था। इस दौरान बलरामपुर जिले के एक क्वॉरेंटाइन सेंटर में कर्मचारियों को उन्होंने धमकी दी थी। इसका वीडियो उसी समय वायरल भी हो गया था।
नेताम और रेणुका सिंह दोनों के ही वीडियो पुराने हैं पर इन्हें विधानसभा चुनाव से जोडक़र दिखाया जा रहा है। दूसरे चरण के चुनाव प्रचार में अभी और तेजी आने वाली है। देखना होगा कि सोशल मीडिया पर कांग्रेस से ज्यादा सक्रिय रहने वाली भाजपा कोई जवाबी हमला कर पाती है या नहीं।
चुनावी रैली का एक सीन ऐसा भी...
ड्डचुनावी सभाओं में जय जयकार, जिंदाबाद, जोशीले नारे और तालियों की गडग़ड़ाहट सुनाई-दिखाई देना आम बात है। मगर कांग्रेस की प्रियंका गांधी के भाषण के दौरान बिलासपुर की सभा में मौजूद कुछ महिलाएं सिसकने-सुबकने लगीं। दरअसल भाषण के बीच में प्रियंका गांधी बताने लगीं कि किस तरह बचपन में उन्होंने और राहुल गांधी ने अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की मौत का खौफनाक दृश्य देखा, और दोनों को खो देने का उन पर और राहुल पर क्या असर हुआ। प्रियंका का भाषण करीब 6 मिनट तक इसी पर था, जिसे सुनकर सभा में पहुंचे कई लोग भावुक हो गए थे।
चुनाव में रेलवे की सावधानी..
छत्तीसगढ़ से गुजरने वाली ट्रेनों को विकास, मरम्मत आदि की वजह से रद्द करने का सिलसिला इन दिनों थमा हुआ है। वरना यह सिलसिला एक के बाद एक चलता है। इसे इन दिनों चल रहे विधानसभा चुनाव के साथ जोडक़र देखा जा रहा है। यहां तक तो ठीक है, पर ट्रेनों के घंटों विलंब से चलने की स्थिति नहीं सुधर पाई है। कल राजेंद्रनगर से दुर्ग के लिए चलने वाली साउथ बिहार एक्सप्रेस 10 घंटे देर से चली वहीं पुरी से आने वाली उत्कल एक्सप्रेस करीब 14 घंटे। कई दूसरी ट्रेनों का भी यही हाल था। इसका कारण सामने आया कि राउरकेला के पास बिसरा नाम के एक स्टेशन पर कई घंटे तक रेलवे के खिलाफ ही रेल रोको आंदोलन चला। यदि किसी रेल रोको आंदोलन के चलते आवागमन पर असर पड़ता है तो रेलवे इसकी सूचना जनसंपर्क विभाग के जरिये जरूर देता है। पर इस बार कोई जानकारी नहीं दी गई। शायद रेलवे को लगा होगा कि नाहक इसे क्यों फैलाया जाए। छत्तीसगढ़ में भी तो रेलवे की चाल को लेकर लोगों में नाराजगी है। उनका ध्यान रेलवे की ओर से हटा रहे।
रजनीश की अग्नि परीक्षा
बेलतरा के विधायक रजनीश सिंह को अधर में लटकाए रखने के बाद अंतिम सूची में आखिर भाजपा ने उनकी टिकट काट दी। इस झटके से सिंह उबर पाए ही नहीं थे कि पार्टी ने उन पर एक बड़ा बोझ डाल दिया है। उसी बेलतरा सीट से उनको चुनाव संचालक बना दिया गया, जहां से वे दोबारा खुद चुनाव लडऩे की उम्मीद कर रहे थे। अब उन पर जिम्मेदारी है कि अपनी पीड़ा और मलाल को दबाकर अधिकृत प्रत्याशी सुशांत शुक्ला को जिताने के लिए काम करें। आम तौर पर टिकट के मजबूत दावेदारों को दूसरे विधानसभा क्षेत्रों का काम सौंप दिया जाता है, पर भाजपा ने उसी पर प्रत्याशी को जिताने की जिम्मेदारी डाल दी। समस्या यह है कि यदि रजनीश सिंह की मेहनत के बाद भी भाजपा यहां की सीट नहीं निकाल पाई तो भी उन पर आरोप लग सकता है कि ठीक तरह से काम नहीं किया और टिकट कटने का हिसाब
चुका दिया।
सरल और सहजता में उलझे नेताजी
बड़े सहज, सरल हैं डिप्टी सीएम हैं। न काहू से बैर के बड़े प्रवर्तक भी हैं। लेकिन जाने अनजाने मुश्किल में पड़ ही जाते हैं। पिछले माह पीएम मोदी के लिए मिनिस्टर इन वेटिंग बने और मंच से तारीफ कर दी। जबकि कांग्रेस की मोदी से बड़ी अदावत रही है। नतीजे में उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष की चेतावनी झेलनी पड़ी। अब वे एक नई दिक्कत में पड़ते दिख कहे। उन्होंने दिल्ली की एक ऐसी पत्रकार को लंबा- चौड़ा इंटरव्यू दे दिया। इस पत्रकार से कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने चर्चा पर रोक लगाई है। सुनते हैं यह बात कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर गठबंधन के नेताओं तक फैल गई है । अब नेतृत्व के रूख का इंतजार है।
अच्छे दिन आए
कांग्रेस में टिकट वितरण के बाद कई जगहों पर असंतोष सामने आ रहा है। बड़ी संख्या में छोटे-बड़े असंतुष्ट नेता बागी होकर चुनाव लडऩे जा रहे हैं। इसका सीधा फायदा अमित जोगी को हुआ है। अमित को पहले चरण की सीटों के लिए प्रत्याशी नहीं मिल पा रहे थे, लेकिन दूसरे चरण की सीटों के लिए कुछ जगहों पर असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं के रूप में मजबूत प्रत्याशी मिल गए हैं।
चर्चा है कि अमित चुनाव प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर किराए पर लेने जा रहे हैं। उनसे जुड़े लोगों का दावा है कि जोगी पार्टी के प्रत्याशियों को साधन-संसाधन की कमी नहीं होगी। सीएम भूपेश बघेल इसको लेकर भाजपा पर आरोप लगा चुके हैं। चाहे कुछ भी हो, अमित की पूछ परख बढ़ गई है।
ये तो प्रत्याशी हैं..
जैसे जैसे चुनाव दंगल अपने शबाब पर आने लगा है, वैसे वैसे नेताओं की धडक़न बढऩे लगी है। जो नेता पहले चुनाव को आसान समझ रहे थे, अब उन्हें खतरा दिखने लगा है। ऐसे ही एक कद्दावर मंत्री का हाल है। जब विपक्षी पार्टी ने प्रत्याशी घोषित किया तो कहते थे कि क्या हल्का प्रत्याशी उतार दिया है। किसी वजनदार नेता को उतारते तो टक्कर होती। अभी तो चुनाव लडऩे जैसा ही नहीं लग रहा है।
लेकिन खरगोश कछुआ जैसी रेस वाली बात हो गई। विपक्ष के प्रत्याशी घर घर जाकर पांव छूने लगे और हवा का रुख बदलने लगा तो कद्दावर मंत्री के सुर बदल गए। अब वे कार्यकर्ताओं से कहने लगे हैं कि चुनाव को हल्के में नहीं लेना है। ईवीएम में नोटा का बटन रहता है, उसके लिये कोई वोट नहीं मांगता। फिर भी दो-पांच हजार वोट नोटा को मिल जाते हैं। यह तो प्रत्याशी है, जो घर घर जा रहा है। इसलिये संभल जाओ और प्रचार में कूद पड़ो।
यह तो कुछ अधिक ही बड़ा
छत्तीसगढ़ में एक पार्टी के बागियों को एक ऐसी जगह बुलाकर एक ऐसा व्यक्ति ‘दोस्ताना सलाह’ दे रहा है कि जिसका भांडा फूटे तो कुछ अधिक ही बड़ा हंगामा हो जाएगा।
इस कीमती वोट की कद्र होगी?
निर्वाचन आयोग ने दिव्यांगजनों और 80 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों के लिए घर पहुंच कर डाक मतदान कराने की व्यवस्था की। कोन्टा विधानसभा क्षेत्र में इस दिव्यांग युवती ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इसने और चुनाव आयोग ने तो अपनी जिम्मेदारी निभा दी। पर वह प्रतिनिधि जो चुनाव जीतेगा, जीतने के बाद क्या ऐसे मतदाताओं के घर पर दस्तक देगा और पूछेगा कि किसी सरकारी योजना का उसे लाभ मिला भी है या नहीं?
नेताम कब बोले, भूपेश बघेल जिंदाबाद?
बहुत से समर्पित पार्टी कार्यकर्ता प्रतिद्वंद्वी दलों के नेताओं के वीडियो-ऑडियो फुटेज, फोटो आदि संभालकर रखते हैं, फिर मौका देखकर उसे वायरल करते हैं। किस जगह की और कब की वीडियो है, यह छिपाकर कोई नई बात कह दी जाती है। इसी का नुकसान हो रहा है रामानुजगंज के भाजपा प्रत्याशी रामविचार नेताम को। सोशल मीडिया पर उनका एक 18 सेकंड का छोटा सा वीडियो क्लिप दो दिन से वायरल हो रहा है। एक जनसभा में माइक पर खड़े नेताम भीड़ से कह रहे हैं- मैं यहां से पीछे तक देख रहा हूं। पीछे वाले आवाज लगाएंगे-भूपेश बघेल जिंदाबाद....। एक नहीं नेताम ने दो बार यह नारा लगवाया।
इस वीडियो के साथ कमेंट दिया गया है- बीजेपी के नेताओं को भी भूपेश पर ही भरोसा है। सुनिये भाजपा के रामविचार नेताम जी को, जो भाजपा के राष्ट्रीय सचिव, पूर्व राज्यसभा सदस्य और रमन सरकार के केबिनेट मंत्री रहे हैं। छत्तीसगढ़ में अब की बार 75 पार होने जा रहा है।
कुछ पोस्ट दावा कर रहे हैं कि यह रामानुजगंज के चुनाव प्रचार के दौरान का भाषण है। पड़ताल की गई तो पता चलता है कि वीडियो सही जरूर है, मगर अभी का नहीं, बल्कि तीन साल पुराना है। यू ट्यूब में यह वीडियो मौजूद भी है। यह वीडियो दुर्ग जिले के पाटन का है, जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और सांसद विजय बघेल चुनाव मैदान में इस बार भी आमने-सामने हैं। अक्टूबर 2020 में शराब दुकान में लूट का अपराध दर्ज कर पुलिस ने तीन भाजपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें जमानत नहीं मिली और वे जेल भेज दिए गए थे। बिना जांच-पड़ताल झूठी कार्रवाई करने का आरोप लगाते हुए मंडी परिसर के अस्थायी जेल में विजय बघेल ने अपने समर्थकों के साथ आमरण-अनशन कर दिया। इसे समर्थन देने कई भाजपा नेता वहां पहुंचे। इनमें नेताम भी थे। भाषण के दौरान अति उत्साह में गड़बड़ हो गई। उन्होंने नारा लगवा दिया- भूपेश बघेल जिंदाबाद...। तीन साल पहले इस वीडियो क्लिप के साथ आई खबरों में बताया गया था कि जैसे ही नेताम का ध्यान गया कि उनसे गलती हो गई, उन्होंने सुधारा और भूपेश बघेल मुर्दाबाद के नारे लगवाए। हालांकि आगे का हिस्सा वीडियो क्लिप में दिखाई नहीं दे रहा है। वायरल वीडियो में सिर्फ वही हिस्सा है, जिसमें वे भूपेश बघेल जिंदाबाद का नारा लगवा रहे हैं।
नफे-नुकसान की चिंता
जिन कांग्रेस विधायकों को अपनी टिकट कटने का अंदाजा हो गया था, उनमें सामरी विधायक चिंतामणि महाराज भी थे। प्रत्याशियों की सूची जारी होने से पहले ही उनका एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे कह रहे थे कि- जनता कह रही है कि इतना अच्छा काम करने के बाद भी टिकट कटेगी तो हम चुनाव का बहिष्कार करेंगे। मगर इससे हाईकमान पर दबाव नहीं बना, टिकट कट गई। एक सप्ताह पहले भाजपा नेता बृजमोहन अग्रवाल और विष्णुदेव साय उनसे मिलने के लिए सीधे उनके घर श्रीकोट पहुंच गए। चिंतामणि महाराज की यह शर्त सामने आ गई कि अंबिकापुर से टिकट मिलने पर वे भाजपा में शामिल हो जाएंगे। पर भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दी। अब कल वे भाजपा के हेलिकॉप्टर से अपने गांव श्री कोट पहुंचे। वहां भाजपा नेता गौरीशंकर अग्रवाल, केदार गुप्ता आदि ने उनका स्वागत किया। इसके बाद तो सबको लग रहा था कि महाराज कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो चुके हैं। मगर, उन्होंने फिर साफ कर दिया कि वे अभी कांग्रेस में ही हैं।
दरअसल, टिकट नहीं मिलने पर नाराजगी जाहिर करने के बावजूद कुछ विधायक बागी नहीं हुए। उन्हें लगता है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनी तो उन्हें कहीं न कहीं एडजस्ट कर लिया जाएगा। पर चिंतामणि महाराज ने भाजपा के प्रति अपना लगाव सार्वजनिक कर दिया है। वे पहले भी भाजपा में रहे हैं। इसलिए भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि एक दो दिन के भीतर ही वे भाजपा में शामिल हो जाएंगे।
नड्डा ने पवन साय से क्या कहा
चर्चा है कि रायपुर जिले की तीन सीटों पर भाजपा के चुनाव प्रचार की रणनीति से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा नाखुश हैं। उन्होंने शनिवार को कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में महामंत्री (संगठन) पवन साय से नाराजगी भी जताई।
बैठक में यह बात उभरकर सामने आई है कि तीनों सीट पर प्रत्याशी चयन से बाकी दावेदार, और अन्य प्रमुख नेता नाराज चल रहे हैं। यही वजह है कि वो राष्ट्रीय अध्यक्ष की बैठक से भी दूर रहे। नड्डा ने पवन साय से कह भी दिया कि ऐसे में कैसे सरकार बनेगी?
बताते हैं कि नड्डा ने नाराज नेताओं की लिस्ट मांगी है। कुछ प्रमुख नेताओं को नाराज लोगों से चर्चा करने के लिए कहा है। वो खुद भी बात करेंगे। देखना है कि नाराज लोगों पर क्या कुछ असर होता है।
महिला नेत्री की परेशानी
कांग्रेस की एक महिला नेत्री ने पार्टी के बड़े नेताओं की सहमति से एक विधानसभा सीट छाँटकर चुनाव लडऩे की तैयारी शुरू कर दी थी। महिला नेत्री ने उस विधानसभा क्षेत्र के लोगों की खूब खातिरदारी की। कई गांव के लोगों को तीर्थ यात्रा भी कराया। वो पिछले कुछ महीनों से गांव के लोगों को गिफ्ट आदि बांट रही थीं। मगर ऐन वक्त में उनकी सीट बदल दी गई।
सीट बदलने से उन पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। इससे वो काफी परेशान हैं, लेकिन महिला नेत्री की जगह जिस प्रत्याशी का चयन किया गया उनकी पोजीशन ठीक हो गई। महिला नेत्री की मेहनत का उन्हें फायदा मिल रहा है। कहावत भी है कि मेहनत करे मुर्गा, अंडा खाए फकीर। देखना है कि सीट बदलने के बाद भी महिला नेत्री के पक्ष में चुनाव नतीजे आते हैं या नहीं।
कर्ज माफी से बेचैनी
कांग्रेस के किसानों की कर्ज माफी के ऐलान से भाजपा में बेचैनी है। कुछ भाजपा प्रत्याशियों ने तो प्रचार के दौरान अपनी तरफ से कर्ज माफी की बात कह रहे हैं। कवर्धा से भाजपा प्रत्याशी विजय शर्मा जोर शोर से इसका प्रचार भी कर रहे हैं। पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में कर्ज माफी को प्रमुखता से शामिल करने पर जोर दिया गया है।
भाजपा का घोषणा पत्र दो दिन में जारी हो सकता है। इसमें धान खरीद को लेकर बड़े वादे किए जाएंगे। साथ ही कर्ज माफी, और तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए वादे किए जा सकते हैं। देखना है कि घोषणा पत्र में क्या कुछ होता है, और चुनाव पर क्या असर होगा।
केजरीवाल पैटर्न, भाजपा का शक
कांग्रेस और बघेल के केजरीवाल स्टाइल से रमन सिंह और भाजपा पसोपेश में पड़ गई है। केजरीवाल ने पहले दिल्ली, फिर पंजाब में एकमुश्त घोषणा ( पत्र) करने के बजाए एक एक कर गारंटियां देते रहे। छत्तीसगढ़ में भी केजरीवाल ने राजधानी, न्यायधानी में 9 और बस्तर में एक गारंटी की घोषणा कर चुके थे। बघेल भी उसी पैटर्न पर चल रहे हैं। पहले स्वयं एक घोषणा कर भरोसा दिलाया। फिर राहुल, प्रियंका से तीन घोषणाएं कराईं। और भाजपा से बार-बार एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि हम तो चार कर दिए आप बताएं क्या देंगे? भाजपा और रमन सिंह उन घोषणाओं का खंडन, मंडन ही कर पा रहे हैं । न की घोषणा। वैसे पार्टी, अपना घोषणा पत्र बना रही है। उसे इसके लिए तीन लाख से अधिक सुझाव, मांगें मिल चुकी हैं। इनकी छंटनी, लिस्टिंग में पसीने निकल रहे हैं। भाजपा को शक है कि इन्हीं में से कुछ लीक हो रहे हैं। लीक करने वाले अपने ही विभीषण या वराह के लोग तो नहीं। जो भी हो कांग्रेस अपने लिए भरोसा बढ़ा रही है। लगता है कि कांग्रेस को अब घोषणा पत्र लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
डॉ. साहब और मैडम की मुलाकात
जिला निर्वाचन अधिकारी निष्पक्षता को लेकर सरकार से कितनी भी शाबासी ले लें। सच्चाई तो उनका ज़मीर और ऊपर वाले को पता है। मन की बात समझ कर ये सभी अपनी अपनी स्थिति की टोह लेते रहते हैं। कल भी कुछ ऐसा ही हुआ । केंद्रीय मंत्री, सीईओ मैडम से मिलने गए थे। शिकायत कर आए कि प्रदेश के 33 जिलों से मिल रही शिकायतों को लेकर 158 मामले मैडम को भेज चुके हैं । और कार्रवाई मात्र 23 पर हुई। यह ठीक नहीं है, दिल्ली वाले कुमार साहब से भी शिकायत करेंगे। बस इसी बात से कई डीआरओ घबराए हुए हैं। वो जानते हैं कि कुमार साहब पहले दो कलेक्टर, तीन एसपी को बदल चुके हैं। यह तो सामान्य कार्रवाई हुई। पर ये लोग भविष्य में किसी भी चुनावी कार्य के लिए डिबार रहेंगे। यह बदनामी सबसे अहम होती है। डॉ,साहब ने दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर जिलों के नाम भी लिए। बस क्या था,राजधानी से लेकर हर जिले के कलेक्टर ने पड़ताल शुरू कर दी। पूछने लगे मेरी शिकायत ते नहीं हुई।
प्याज की ताकत, कई सरकारें गिर चुकी
पिछले एक सप्ताह से प्याज की कीमत बढ़ रही है। बाजार में यह 60 रुपए या उससे अधिक में बिक रहा है। महानगरों में तो 80 से 100 रुपए तक चला गया है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान इसकी कीमत कितनी ऊंचाई पर जाकर रुकेगी यह देखना होगा, क्योंकि नई फसल मतदान के बाद दिसंबर दूसरे सप्ताह तक बाजार में आएगी।
प्याज एक ऐसी फसल है जिसने देश के कई चुनावों को प्रभावित किया। सबसे दिलचस्प घटना थी जब इंडिया शाइनिंग का नारा देने और पोखरण में परमाणु परीक्षण कर भारत का दुनिया में लोहा बनवाने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा 1998 में लोकसभा चुनाव हार गई। नतीजे के बाद वाजपेयी ने कहा था कि जब-जब कांग्रेस सत्ता में नहीं होती, प्याज के दाम बढ़ जाते हैं। इसके पहले 1980 के चुनाव में जनता कांग्रेस को हराकर इंदिरा गांधी सत्ता में वापस लौटीं तो प्याज की कीमत को उन्होंने बड़ा मुद्दा बनाया था। वे चुनाव प्रचार में प्याज की माला पहनकर निकलती थीं। सन् 2010 में एक हफ्ते के भीतर जब प्याज के दाम 30 रुपए से बढक़र 80 रुपए तक हो गए तब पाकिस्तान से आयात करना पड़ा था। केंद्र में दूसरी बार मोदी सरकार के बनने के कुछ महीने बाद ही जब प्याज के दाम आसमान छूने लगे तब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह चर्चित बयान आया था कि वह प्याज लहसुन नहीं खाती।
कई बार धर्म, जाति, कल्याणकारी योजनाओं और सत्ता विरोधी लहर जैसे मुद्दों पर प्याज भारी पड़ चुका है। फिलहाल केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में दाम को काबू पर रखने के लिए प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 67 रुपए किलो तय कर दिया है।
नोटा वोटों को लेकर चिंता
चुनाव आयोग ने सन् 2014 के राज्यसभा चुनाव में पहली बार नोटा लागू किया था। बाद के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी अनिवार्य रूप से इसका इस्तेमाल होने लगा।? पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने इसे लेकर एक रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी। कोर्ट ने तब यह मानते हुए नोटा के प्रावधान का आदेश दिया था कि देश में शासन के लिए जो जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं, उन्हें उच्च नैतिक मूल्यों का पालन करना चाहिए। मतदाता को किसी भी एक उम्मीदवार का चुनाव करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यदि उसे कोई भी पसंद नहीं है, तो इसे व्यक्त करने का अधिकार उसे मिलना चाहिए। विशेषकर जब हमारे यहां जनप्रतिनिधि को मतदाता कार्यकाल के बीच में अयोग्यता के आधार पर हटा नहीं सकता।
कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से चुनाव आयोग से कोई मांग नहीं की है लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का यह विचार सामने आया है कि नोटा के प्रावधान को खत्म किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक कई बार यह बटन गलती से दबा दिया जाता है। कई मौकों पर हार जीत के अंतर से अधिक वोट नोटा में चले जाते हैं।
चुनाव आयोग के आंकड़े भी बताते हैं कि नोटा विकल्प के प्रति मतदाता लगातार जागरूक हो रहे हैं। नोटा बटन ईवीएम में सबसे नीचे होता है। यदि कुछ वोट गलती से नोटा में जा रहे हैं तो ऐसा दूसरे उम्मीदवारों को जाने वाले वोटों में भी हो सकता है। बघेल ने एक चर्चा छेड़ी है। इस पर राजनीतिक दलों में बहस हो सकती है, लेकिन कह नहीं सकते कि चुनाव आयोग इसे गंभीर सुझाव के रूप में लेगा। नोटा प्रावधान के पीछे सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है।
भूपेश ने किया दोस्त से सावधान
सीएम भूपेश बघेल ने रायपुर दक्षिण के पार्षदों को खास हिदायत दी है। उन्होंने कहा कि भाजपा प्रत्याशी को हराने के लिए खूब मेहनत करने की जरूरत है। भूपेश ने पार्षदों से कहा बताते हैं कि बृजमोहन अपने विरोधियों के खिलाफ अफवाह फैला देते हैं। ऐसे में जब वो प्रचार के लिए वार्डों में आए, तो उनके आसपास भी न फटके।
बृजमोहन साथ फोटो आदि खिंचवाने का शौक भी न करें, अन्यथा कांग्रेस के नेताओं के साथ फोटो-वीडियो सोशल मीडिया में वायरल कर लोगों के मन में शक पैदा कर देते हैं। इससे बचने की जरूरत है। सीएम ने पार्षदों को चेताया है कि उनके वार्डों से पार्टी को बढ़त नहीं मिली, तो निकाय चुनाव में उनके नामों पर विचार नहीं किया जाएगा। सीएम ने कहा कि पार्षद खुद तो जीत जाते हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में अपने वार्डों से बढ़त नहीं दिला पाते हैं। देखना है कि सीएम की बातों का पार्षदों पर कितना असर पड़ता है।
आयोग की सख्ती और सरकारी बर्बादी
जैसे ही विधानसभा या लोकसभा चुनाव की घोषणा होती है, सरकारी संपत्ति पर लगे नेताओं की तस्वीरों को विरूपित (मिटा) दिया जाता है। इस तस्वीर में चिनाव आयोग की सख्ती साफ दिख रही है। यह तस्वीर बिरनपुर के पास एक गांव की है, जिसमें लोक निर्माण विभाग के बोर्ड में नेताओं की फोटो को सफेद पेंट से पोत दिया गया है। अब इस बोर्ड का उपयोग दोबारा नहीं किया जा सकेगा। यह बोर्ड पूरी तरह खराब हो गया है। आम जनता भले ही नहीं जानती कि इस बोर्ड को बनाने में 25 से 30 हजार रूपए खर्च हुए होंगे।
इस बोर्ड की प्रिटिंग को रेटरो प्रिंट कहा जाता है, जो कंप्यूटर से डिजिटल प्रिंट किया जाता है। रेटरो प्रिंट की खासियत यह होती है कि इससे फोटो इतनी साफ और स्पष्ट दिखती है कि हीरो-हिरोइन हों। रेटरो प्रिंट करने वाले इसके 10 साल की गारंटी देते हैं यानी 10 साल तक यह नए जैसा ही रहता है। लेकिन चुनाव तो पांच साल में हो जाते हैं तो ऐसे खर्चीले बोर्ड को कैसे बचाया जा सकता है।
ऐसे हर गांव हर शहर की हर गली में लगाये जाने लगे हैं। ऐसे वक्त में जब नेता जनता के कल्याण के लिये देने वाले धन को रेवड़ी कहते हैं, पैसे की बर्बादी कहते हैं तब ये खर्चीले बोर्ड क्या हैं?
ऐसे बोर्ड पार्षदों ने अपने हर वार्ड में सैकड़ों लगा रखे हैं ताकि उनकी फोटो हीरो-हिरोइन की तरह चमकदार दिखे। विधानसभा चुनाव में नहीं तो नगरीय निकाय चुनाव में उन्हें हटना तय है तो फिर ऐसे महंगे बोर्ड को लगाया ही क्यों जाता है। चुनाव आयोग या फिर सुप्रीम कोर्ट को इस अपव्यय पर कोई निर्णय देना चाहिये, ताकि सरकारी धन की बर्बादी रोकी जा सके।
जादूगर के सहारे प्रचार...
चुनाव के दिनों में भीड़ सिर्फ नेता का भाषण सुनने के नाम पर नहीं पहुंचती। तरह-तरह के नुस्खे आजमाने की जरूरत पड़ती है। भानुप्रतापपुर में कांग्रेस के प्रचार के लिए एक जादूगर को लगाया गया है। वह हाथ घुमाता है और उसकी थैली से कांग्रेस की प्रचार सामग्री निकल जाती है। आचार संहिता का खौफ न होता तो शायद जादूगर खाने-पीने की चीजें निकालकर दिखाता।
फेरबदल की उम्मीद में...
बीते चुनाव में कम मतों से हारे कुछ कांग्रेसी दावेदार टिकट से वंचित रह गए तो कुछ ऐसे विधायकों की टिकट गई जिन्होंने 2018 में अच्छे मतों से जीत हासिल की थी। अधिकृत उम्मीदवारों की घोषणा होने के बाद कुछ लोगों ने तुरंत फैसला ले लिया तो कुछ असमंजस की स्थिति में हैं। पिछली बार बहुजन समाज पार्टी से लगभग 3 हजार वोटों से हारे गोरेलाल बर्मन ने कांग्रेस छोडक़र जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का दामन थाम लिया है। यह उनकी दूसरी हार थी। सन् 2008 में भी वे परास्त हुए थे। मनेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल को लेकर कई दिनों से चर्चा है कि वे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से लड़ सकते हैं पर उन्होंने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया। अंतागढ़ विधायक किस्मत लाल नंद को कांग्रेस ने निष्कासित कर दिया। पिछला चुनाव उन्होंने 13 हजार से अधिक मतों से जीता था। चिंतामणि महाराज ने अंबिकापुर से टिकट मिलने पर भाजपा में शामिल होने की शर्त रखी थी। भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दी। अब उनका अगला कदम क्या होगा, इस पर अटकलें लग रही हैं। इधर तीन दिन पहले धमतरी से पूर्व विधायक गुरुमुख सिंह होरा ने नामांकन पत्र खरीद लिया था। नामांकन जमा करने के लिए उनके समर्थक कल इक_े भी हो गए थे। रैली निकालने की योजना थी, जिसे उन्होंने अचानक रद्द कर दिया। कहा गया कि हाईकमान के निर्देश पर उन्होंने नामांकन भरने की योजना टाल दी है। इसके बाद से चर्चा निकल पड़ी है कि यहां से कांग्रेस प्रत्याशी बदला जा सकता है।
बालिकाओं की रामलीला मंडली
10-20 साल पहले तक रामलीला का मंचन गांवों का एक परंपरागत उत्सव होता था। लोग रात-रात जागकर कलाकारों का जीवंत अभिनय देखने के लिए बैठे रहते थे। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश की कई टोलियों का छत्तीसगढ़ के गावों में डेरा होता था। पूरा गांव सत्कार में लगा होता था, राशन और ठहरने की व्यवस्था सामूहिक रूप से की जाती थी। अनेक टोलियां छत्तीसगढ़ में भी होती थीं। इनमें अभिनय करने वाले युवक पार्ट टाइम कलाकार होते थे। धीरे-धीरे अब यह चलन कम हो गया है। दुर्ग जिले के पाटन क्षेत्र के तुर्रा ग्राम में रामलीला का मंचन होता है जिसमें सभी पात्र बालिकाएं होती हैं। राम, रावण, हनुमान का किरदार भी वे ही निभाती हैं। इसी तरह की एक मंडली बालोद जिले में भी है। दुर्ग के कलंगपुर में भी दशहरे पर रामलीला रखा गया था, जिसमें पहली बार सभी पात्र बालिकाएं थीं।
हवा के रूख वाला पजामा
चुनाव का माहौल ऐसा रहता है कि गरीब सरकार की तरफ टकटकी लगाकर देखते हैं कि उन्हें और क्या हासिल हो सकता है। दूसरी तरफ अमीर यह अंदाज लगाते हैं कि आने वाली सरकार में कौन सी पार्टी सत्ता पर रहेगी, कौन मुख्यमंत्री रहेंगे, कौन डिप्टी सीएम, या दूसरे ताकतवर मंत्री बनेंगे। ऐसे ही एक बड़े कारोबारी ने एक अनौपचारिक निजी चर्चा में एक संपादक से पूछा- अगली सरकार और विपक्ष में सबसे ताकतवर कौन तीन-तीन लोग रहेंगे जिन्हें कि इस बार चंदा दिया जाए?
संपादक कुछ समझदार था, उसने कहा कि सातवां नाम मेरा लिखने को तैयार हों, तो मैं उसके पहले के छह नाम सुझा सकता हूं। अब कारोबारी हिसाब लगा रहे हैं कि एक सलाह का इतना दाम ठीक रहेगा या नहीं, जाहिर है कि बिना हिसाब लगाए तो वे इतने बड़े कारोबारी बने नहीं हैं। जिस तरह हवाई अड्डों पर हवा का रूख दिखाने के लिए एक पजामा सा बंधा रहता है जो कि हवा के साथ उड़ते रहता है, उसी तरह बड़े कारोबारियों के दिमाग में हमेशा ही हवा भरा पजामा फडफ़ड़ाते रहता है, और उसी के हिसाब से वे पजामा पहने आने वाले लोगों को आंकते हैं।
चुनाव आयोग के हाथी दांत
चुनाव आयोग बड़े नेताओं को उनके हमलावर और भडक़ाऊ भाषणों पर नोटिस तो देता है, लेकिन नोटिस देकर शांत रह जाता है। कोई भी असरदार कार्रवाई तभी हो सकती है जब पहले भडक़ाऊ भाषण के बाद उस नेता का उस प्रदेश में दुबारा कार्यक्रम बैन हो जाए। इसी तरह प्रदेश या जिले के भीतर के स्थानीय नेताओं के ऐसे भडक़ावे पर उसी तरह मतदान तक जिलाबदर कर देना चाहिए जिस तरह आज छोटे-छोटे से संदिग्ध मुजरिमों को, या कि असहमत राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जिलाबदर किया जा रहा है। चुनाव आयोग अगर लोगों को पहले भडक़ावे के बाद ही इलाके से निकालना शुरू कर दे, तो हवा से जहर कुछ कम हो सकेगा। कहने के लिए तो चुनाव आयोग हाथी के दांतों की तरह बड़े-बड़े अधिकार दिखाता है, लेकिन उसका इस्तेमाल दिखावे से अधिक नहीं हो पाता है।
सरमा को नोटिस, शाह को वह भी नहीं
भारत निर्वाचन आयोग ने कांग्रेस की शिकायत पर असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा को नोटिस जारी कर उनके उस बयान पर जवाब मांगा है जिसमें कहा था कि यदि एक अकबर कहीं आता है तो वह 100 अकबरों को बुलाता है। इन्हें रोकें अन्यथा कौशल्या माता की भूमि अपवित्र हो जाएगी। सरमा ने मुस्लिम शासक अकबर के नाम का उस जगह पर रूपक की तरह इस्तेमाल किया, जहां कांग्रेस प्रत्याशी का नाम मोहम्मद अकबर है।
कांग्रेस ने इसके पहले एक और शिकायत केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ की थी। इसके मुताबिक राजनांदगांव की आमसभा में शाह ने कहा कि- भूपेश बघेल की सरकार ने तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति के लिए छत्तीसगढ़ के बेटे भुवनेश्वर साहू को लिंचिंग कर मार डाला।
कांग्रेस ने आयोग से सरमा की शिकायत 19 अक्टूबर को की थी और शाह के खिलाफ 16 अक्टूबर को। अब तक जो खबरें हैं, उसके अनुसार शाह से आयोग ने इस पहली शिकायत पर कोई जवाब नहीं मांगा है। सरमा को नोटिस तो जारी हो गई है पर कार्रवाई क्या होगी, यह अभी अंधेरे में है। आयोग को ऐसे मामलों में नोटिस देने और कार्रवाई के लिए कितना वक्त लेना चाहिए, इसे समझने के लिए सन् 2019 का एक वाकया याद किया जा सकता है।
लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी की एक रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुसलमानों से अपील की कि वे अपना वोट न बंटने दें और गठबंधन के पक्ष में मतदान करें। इसके जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यदि कांग्रेस, बसपा, सपा के साथ अली हैं, तो हमारे साथ बजरंगबली हैं। इनकी शिकायत आयोग से हुई लेकिन उसने कार्रवाई के नाम पर इन भाषणों की केवल निंदा की और इन नेताओं को सावधानी से बोलने की नसीहत दी। तब प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जो अब राज्यसभा सदस्य हैं, की बेंच ने मामले को सुना। आयोग को फटकार लगी। कोर्ट ने कहा कि आयोग ऐसे भाषणों की निंदा करके पल्ला नहीं झाड़ सकता। आयोग को ऐसे बयानों पर कार्रवाई के लिए समय भी नहीं लेना चाहिए। वह ठोस कार्रवाई कर अपना जवाब दाखिल करे। तब आयोग ने योगी आदित्यनाथ पर 72 घंटे और मायावती पर 48 घंटे तक प्रचार करने और भाषण देने पर रोक लगाई।
आज पांच साल बाद सुप्रीम कोर्ट की वह नसीहत और फटकार आयोग के ध्यान में पता नहीं, है भी या नहीं। अपने छत्तीसगढ़ में सरमा और शाह को भाषण दिये कई दिन बीत चुके हैं। सरमा छत्तीसगढ़ का दौरा करके, सभाएं और प्रेस वार्ता लेकर तीसरी बार जा चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह भी फिर चुनावी सभा लेने आ रहे हैं।
प्रबल के बल को भी टिकट...
स्व. दिलीप सिंह जूदेव के घर वापसी अभियान से जुड़े दो प्रत्याशी बिलासपुर की सीटों पर उतारे गए हैं। कोटा विधानसभा से जूदेव के बेटे प्रबल प्रताप को और बेलतरा से सुशांत शुक्ला को। सुशांत को टिकट मिलने से प्रबल प्रताप के सामने एक नई परेशानी खड़ी हो गई है। कोटा क्षेत्र उनके लिए अनजान सा है। घर वापसी अभियान के चलते विभिन्न कार्यक्रमों में पहले वे बिलासपुर और कोटा आते रहे हैं, पर जूदेव परिवार का यहां पर सबसे बड़ा सहयोगी सुशांत शुक्ला ही रहा है। प्रबल प्रताप इस भरोसे में थे कि सुशांत चुनाव अभियान की सारी जिम्मेदारी संभाल लेंगे। दौरे की रणनीति बनाएंगे, कार्यकर्ताओं से घुलने-मिलने में मदद करेंगे। अब जब खुद चुनाव लड़ रहे हैं तो सुशांत उनके लिए वक्त देने से रहे। अपने इलाके में व्यस्त हो गए हैं। अब प्रबल प्रताप विशुद्ध रूप से कोटा के कार्यकर्ताओं और जशपुर से आए समर्थकों के भरोसे रह गए हैं।
कांग्रेस की बी-टीम
सारी तैयारी, कार्यकर्ताओं का जोश , एक विकल्प के रूप में मतदाताओं की सोच सब धरी के धरी रह गई । हम आप पार्टी की बात कर रहे हैं । अगस्त- सितंबर तक सब कुछ बेहतर चल रहा था। एक एक गांव ,ब्लाक स्तर पर पार्टी की इकाइयां बन गई थीं। वार्ड प्रभारी, बीस बूथ प्रभारी,उन पर एक सर्किल प्रभारी जैसे 2.33 लाख नेतृत्वकर्ताओं की ग्राउंड टीम भी बना ली गई। स्व. वीसी शुक्ल,स्व.अजीत जोगी की पार्टी के 6 प्रतिशत वोटों के लिए विकल्प बनने की तैयारी में मजबूती से आगे बढ़ रही थी। दोनों सीएम आए, बड़े बड़े सम्मेलन किए। नौ नौ मैदानी गारंटी दिए और एक बस्तर गारंटी। सांसद, दिल्ली-पंजाब के मंत्रियों के दौरे होने लगे। इसी बीच एक के बाद एक चार सूचियों में 43 प्रत्याशी भी घोषित किए गए।
जब मध्य छत्तीसगढ़ की 47 सीटों की बारी आई तो।उसके बाद आया भारत बनाम इंडिया का मुद्दा। और केजरीवाल ने अपनी गारंटियों को तिलांजलि देकर कांग्रेस की बी -टीम बनना स्वीकार कर लिया। ऐसा होनेवाला है, यह बात हमने काफी पहले बता दी थी। और कल रात हुआ भी यही फैसला। उसके बाद से कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश घर कर गया है। राष्ट्रीय नेतृत्व को तरह तरह की संज्ञा, सर्वनाम,विशेषण दे रहे हैं। इसका असर भगवंत मान के राजधानी में होने वाले रोड शो में देखने को मिलेगा ।
किस्मत से मिलती है टिकट
विधायक बनने की लालसा तो हर किसी की हो सकती है, लेकिन यह आसान नहीं होता। विधायक बनना बाद की बात होती है, पहले तो टिकट मिलना किस्मत की बात होती है। कई आईएएस अधिकारी से लेकर कवि और नेता कतार में रहते हैं पर किस्मत होती है, तभी टिकट मिलती है। टिकट मिल गई तो उसके बाद जनता का विश्वास हासिल करना होता है।
ऐसे ही एक पद्मश्री कवि महोदय टिकट के इंतजार में थे, लेकिन न तो पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट हासिल कर पाए और न ही अब। कुछ यही हाल चर्चित आबकारी अधिकारी रहे आईएएस का रहा। बड़े लाव लश्कर के साथ दिल्ली में भाजपा प्रवेश किये थे, एयरपोर्ट से राजधानी तक भव्य स्वागत करवाकर शक्ति प्रदर्शन किया, धरसींवा से लडऩा चाहते थे, लेकिन हसरत अधूरी रह गई।
ऐसे ही दूसरी पार्टी से चुनाव लडक़र दूसरे नंबर पर रही महिला नेत्री ने टिकट की आस में कांग्रेस प्रवेश किया, पर आस अधूरी रह गई। अब वह पुरानी पार्टी में भी नहीं जा पा रही। ऐसे अनेकों है जिनके अरमान अधूरे रह जाते हैं, न यहां के होते हैं न वहां के।
नन्हीं रिपोर्टर की छोटी अपील
संकट मोचन मार्ग अंबिकापुर की एक छोटी बच्ची शानी त्रिपाठी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वह अपने छोटे भाई के साथ अपने घर के सामने है। उखड़ी हुई सडक़ की गिट्टी पैरों से उछालकर बता रही है कि यह कितना खतरनाक है। उसे साइकिल चलाते नहीं बनता, चोट आ जाती है। कोई गाड़ी यहां से गुजरे तो ऐसी धूल उड़ती है कि कोई चल सकता। रोड गायब है, गिट्टियां बच गई हैं। इसके बाद वह नाली का दर्शन कराती है, जो पूरी खुली पड़ी है। बहुत दिनों से जाम है और इसके चलते आसपास के लोग मच्छरों से परेशान है। बच्ची की बातों से यह लगता है कि वह किसी के इशारे पर नहीं बोल रही है। बातें उसके दिल दिमाग से ही निकल रही है।
चुनाव का मौसम है इसलिए ऐसा लग सकता है कि यह वीडियो किसी राजनीतिक मकसद से तैयार किया गया होगा। मगर वह देखने वालों से हाथ जोडक़र निवेदन कर रही है कि आपसे हो सकता है तो सडक़ बनवा दें, नाली साफ करा दें।
शिकायत भारी पड़ी
एफसीआई पर अवैध वसूली की शिकायत कर कुरूद के एक राईस मिलर मुश्किल में फंस गए हैं। मिलर, राईस मिलर एसोसिएशन के सचिव हैं, और उनकी शिकायत पर 40 से अधिक अफसरों को हटा दिया गया था। अब जांच आगे बढ़ी, तो दर्जनभर मिलर भी लपेटे में आ गए।
मिलरों के यहां पहले आईटी ने दबिश दी थी, और फिर ईडी भी जांच में कूद गई। ईडी ने मिलिंग में करीब 5 सौ करोड़ की हेराफेरी का दावा किया है। गोबरा-नवापारा से लेकर कोरबा तक मिलरों के ठिकानों पर छापे पड़े हैं।
ईडी की टीम शिकायतकर्ता मिलर के घर भी पहुंची थी। लेकिन वो नहीं मिले। उनके कर्मचारियों से पूछताछ हुई है। अब ईडी की टीम मिलर से पूछताछ करना चाहती है, लेकिन वो सामने नहीं आ रहे हैं। कुछ लोग बताते हैं कि आईटी, और ईडी के सक्रिय होने के बाद विदेश चले गए हैं। कहा जा रहा है कि ईडी, शिकायतकर्ता को ही आरोपी बना सकती है। इसको लेकर कुछ प्रमाण भी जुटाए गए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
यूपी के इश्तहार कैसे बंद कराएँ ?
विधानसभा चुनाव हर तरह की सरकारी योजना का प्रचार प्रतिबंधित रहता है। हर सरकारी चीजों पर नेताओं के फोटो हटा लिये जाते हैं। यहां तक शिलान्यास के पत्थरों में लिखे नाम में स्टीकर चिपका दिए जाते हैं।
ऐसे में केंद्र सरकार की उज्जवला गैस सिलेंडर योजना का प्रचार कैसे हो सकता है। पेट्रोलियम कंपनियां इसके लिए फार्म भरने का प्रचार कर रही थीं, कांग्रेस ने चुनाव आयोग में तुरंत फरियाद लगा दी। पर अब कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती यह आ गई कि वे यूपी सरकार के विज्ञापन कैसे बंद कराएं, जो हर टीवी चैनल पर चल रहे हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गरीबों को गैस सिलेंडर बांटने का गुणगान कर रहे हैं।
एक विज्ञापन में मोदी के नेतृत्व में महिलाओं को आरक्षण देने का बखान कर रहे हैं। विज्ञापन में यह भी संदेश दिया जा रहा है कि यह सब तभी संभव हुआ, जब डबल इंजन की सरकार होती है। कांग्रेसी इसकी काट खोजने माथापच्ची कर रहे हैं।
डीए और बोनस में चुनाव का अड़ंगा
केंद्र सरकार ने चुनाव के बीच में केंद्रीय कर्मचारियों के लिए डीए की घोषणा कर दी। अब राज्य के कर्मचारी भी इसकी मांग कर रहे हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में तो अभी आचार संहिता है, लिहाजा सत्तापक्ष चाहकर भी घोषणा नहीं कर सकती।
केंद्र ने रेलवे के कर्मचारियों को 78 दिन का बोनस देने की घोषणा कर दी तो छत्तीसगढ़ के ऐसे उपक्रम जहां हर साल दिवाली पर बोनस दिया जाता है, उनके कर्मचारियों की उम्मीद बढ़ गई है। राज्य के एक सार्वजनिक उपक्रम के कर्मचारियों को हर दिवाली में बोनस मिलता है। पहले इसे चेयरमेन ही तय करते थे लेकिन पिछली दिवाली में बोनस देने की घोषणा मुख्यमंत्री से कराई गई थी। अब इस बार आचार संहिता है तो यहां के कर्मी बोनस को लेकर आक्रोश मिश्रित मायूसी में हैं वे मांग तो कर रहे हैं पर कोई सुनने को तैयार नहीं है।
प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद निर्वाचन आयोग ने आपराधिक मामलों में लिप्त रहे प्रत्याशियों को लेकर कुछ कड़े दिशानिर्देश दिए हैं। उन्हें नामांकन दाखिल करते समय एक अलग फॉर्म में लंबित मामलों की जानकारी देनी होगी। चुनाव चिन्ह आवंटन से लेकर मतदान के 48 घंटे के भीतर तीन बार टीवी अखबार में एफआईआर का प्रकाशन, प्रसारण भी कराना होगा। यदि उस दल की अपनी कोई वेबसाइट है तो उसमें भी इसकी घोषणा करनी होगी, आदि।
यदि अपराध व्यक्तिगत स्तर का हो तो प्रत्याशी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। जैसा भानुप्रतापपुर के उप-चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम के साथ हुआ। उनके खिलाफ झारखंड में रेप और पॉक्सो एक्ट का अपराध दर्ज था। शपथ-पत्र में उन्होंने इस बात की जानकारी भी नहीं दी। पर कांग्रेस को जैसे ही पता चला उसने इसे मुद्दा बना लिया। झारखंड से पुलिस भी उनकी धरपकड़ के लिए पहुंच गई, फिर आनन-फानन में उन्हें अग्रिम जमानत का कागजात पेश करना पड़ा।
पर कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिसके बारे में प्रत्याशी सीना ठोक कर बता सकता है । कांकेर के गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के उम्मीदवार हेमलाल मरकाम ने प्रेस को जानकारी दी है कि उनके खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिसका उल्लेख नामांकन दाखिल करते समय दे दिया गया है। उनके मुताबिक एक मामले में पुलिस बेकसूर ग्रामीणों को पकडक़र थाने ले गई थी। इस पर उनकी थानेदार से बहस हो गई और उनके खिलाफ कई धाराओं में अपराध दर्ज कर लिया गया। दूसरा मामला रायगढ़ में आदिवासी भूमि के अधिग्रहण के विरोध में किये गए आंदोलन के चलते दर्ज किया गया। दोनों मामले आदिवासियों और ग्रामीणों के हक में लडऩे के चलते दर्ज किए गये। निष्कर्ष यह है कि यदि आंदोलन राजनीतिक हो तो एफआईआर के बारे में बताकर प्रत्याशी अधिक समर्थन और सहानुभूति भी हासिल कर सकता है।
आरक्षण के विरोधी की जीत
छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों के चुनाव में आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बन गया है। अभी एक बार फिर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि भाजपा की वजह से राजभवन में विधानसभा से पारित विधायक रुका हुआ है। मगर एक दौर तब भी आया था जब छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में मंडल आयोग के विरोध में आंदोलन हुआ था। अभी जो अकलतरा विधानसभा क्षेत्र जांजगीर जिले में शामिल है, वह बिलासपुर में हुआ करता था। अकलतरा में मंडल आयोग के विरोध का झंडा डॉ. जवाहर दुबे ने उठा रखा था। वे भाजपा से जुड़े हुए थे। सन् 1990 में विधानसभा टिकट उन्हें नहीं मिली तो निर्दलीय मैदान में उतर गए। उन्हें मिला मशाल चुनाव-चिन्ह। उन्होंने कड़ी टक्कर में कांग्रेस के धीरेंद्र कुमार सिंह को 2966 वोटों से हरा दिया। हालांकि चुनाव परिणामों के बाद यह साफ हुआ कि केवल आरक्षण के मुद्दे पर डॉ. दुबे को वोट नहीं पड़े बल्कि त्रिकोणीय संघर्ष ने उनके लिए रास्ता साफ किया और भाजपा कांग्रेस दोनों ही दलों के अनेक कार्यकर्ता उनसे जुड़ गए थे। फिर भी यह तो माना ही गया कि एक ऐसे उम्मीदवार ने जीत हासिल की जो आरक्षण के विरोध में थे।
सडक़ बनाकर गांव में घुसें
सडक़, पानी, नाली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी यदि जनप्रतिनिधि उपलब्ध नहीं करा पाते तो हताश ग्रामीण चुनाव बहिष्कार जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। कसडोल विधानसभा क्षेत्र के कोदवा सहसा ग्रामीणों को भी यही चेतावनी देनी पड़ी है। यहां से देवसुंदरा जाने वाली सडक़ का निर्माण बीते 10 सालों में नहीं हुआ। इस बीच भाजपा की सरकार चली गई फिर कांग्रेस का भी एक कार्यकाल पूरा हो गया। ग्रामीणों ने वोट मांगने वालों से कहा है कि पहले सडक़ बनवाएं, फिर हमारे गांव में प्रवेश करें।
30 तारीख गर्म रहेगी
विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी, पीएम मोदी के बजाए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की सभाओं की डिमांड कर रहे हंै। दूसरे चरण की सीटों के लिए सारे प्रत्याशी अलग-अलग तिथियों में एक साथ नामांकन दाखिल करेंगे। इस मौके पर तकरीबन सभी जिलों से योगी आदित्यनाथ की सभा की डिमांड आई है।
योगी आदित्यनाथ की 30 तारीख को बलरामपुर, और कवर्धा जिले में सभा होगी। यही नहीं, पीएम की सभा भी 30 तारीख को दुर्ग में होगी। इससे परे कांग्रेस की भी 30 तारीख को दुर्ग में बड़ी सभा है। इसमें पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा प्रमुख रूप से रहेंगी। कुल मिलाकर नामांकन दाखिले के आखिरी दिन प्रदेश का राजनीतिक माहौल गर्म रहेगा।
दिग्विजय सिंह भूले नहीं..
मध्यप्रदेश में टिकट वितरण के खिलाफ कांग्रेस भाजपा दोनों में नाराजगी है। वे अपने ही नेताओं का पुतला फूंक रहे हैं, मुंडन करा रहे हैं, शीर्षासन कर रहे हैं। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को कई दावेदार टिकट कटने के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। पत्रकारों से चर्चा के दौरान दिग्विजय सिंह ने इस विरोध को लेकर कहा- टिकट तो पार्टी ने बांटी है। आएं, जिसे मेरा कुर्ता फाडऩा है-आकर फाड़ लें। साथ ही याद करते हुए कहा कि- वैसे आज तक एक ही बार मेरा कुर्ता फटा है। तब, जब मैं सन् 2000 में (स्व.) अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए रायपुर गया था...।
बृजमोहन के खिलाफ लडऩे के फायदे
भाजपा और कांग्रेस ने सिंधी समाज से एक भी प्रत्याशी नहीं दिए हैं। इससे समाज के लोग खफा हैं। कांग्रेस से तो ज्यादा उम्मीद नहीं थी। मगर भाजपा के तो परम्परागत वोटर माने जाते हैं। ऐसे में भाजपा ने टिकट नहीं दी, तो समाज के लोगों में काफी प्रतिक्रिया हुई है।
सिंधी समाज के नेता अपना गुस्सा पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर निकाल रहे हैं। बताते हैं कि बृजमोहन की प्रत्याशी चयन में कोई भूमिका नहीं थी, और वो खुद भी चाहते थे कि रायपुर उत्तर से सिंधी समाज से प्रत्याशी बनाया जाए। मगर समाज के लोग मानने के लिए तैयार नहीं है। इस सिलसिले में रणनीति तैयार करने के लिए एक बड़ी बैठक भी रखी गई है।
कहा जा रहा है कि बृजमोहन के खिलाफ कुछ सिंधी नेता चुनाव मैदान में उतरने का मन बना रहे हैं। एक-दो ने तो फार्म भी ले लिए हंै। बृजमोहन के खिलाफ चुनाव लडऩे के फायदे भी हैं। वो अपने विरोधियों का पूरा ख्याल रखते हैं। देखना है कि आगे क्या होता है।
मतदान की तारीख
चुनाव आयोग सारे पहलुओं को देखकर मतदान की तारीख घोषित करता है। फिर भी कई बार मतदान की तारीख बदलनी पड़ जाती है। राजस्थान में देवउठनी पर शादियां होती हैं, राजनीतिक दलों ने फरियाद लगाई तो चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख बदल दी।
इसे देखकर छत्तीसगढ़ में भी मतदान तारीख बदलने की मांग उठी। कारण बताया गया कि छठ पूजा की शुरुआत इस दिन होती है। सबसे पहले आम आदमी पार्टी ने यह मुद्दा उठाया, क्योंकि नई पार्टी है, वोट बैंक बढ़ाना है। भिलाई, बिलासपुर, अंबिकापुर सहित कुछ क्षेत्रों में बिहारी से आए प्रवासी इसे मनाते हैं।
वोटबैंक का मामला है, इसलिये सभी दल इसमें कूद पड़े। छत्तीसगढिय़ा स्वाभिमान का झंडा बुलंद करने वाली पार्टी भी इसके समर्थन में आ गई। पूर्व कद्दावर नेता ने भी इसकी मांग कर दी। इस मामले में आयोग का फैसला आया भी नहीं था कि एक समाज ने भी यह कहकर मतदान तारीख बदलने की मांग कर दी कि हमारे समाज के कई लोग इस दिन तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं।
इन बातों को सुनकर गांव में मातर और देवारी मानने वाले कहने लगे कि आखिर चुनाव त्यौहार के समय क्यों होते हैं। छत्तीसगढ़ में नवरात्रि, दशहरा और दीवाली प्रमुख त्यौहार होता है। इस दौरान चुनाव होने से लोगों के व्यापारी व्यवसाय में असर पड़ता है। नगद राशि पर आयोग की नजर रहती है। इसे तीन महीने आगे कर देना चाहिए।
जहां जरूरत, वहां निगरानी ही नहीं
विधानसभा चुनाव 2023 के लिए सितंबर महीने में राज्य स्तरीय मीडिया प्रमाणन और अनुवीक्षण समिति, जिसे संक्षेप में एमसीएमसी कहते हैं, बना दी गई थी। प्रत्येक जिले में भी ऐसी समितियां काम कर रही है। इनमें डिप्टी कलेक्टर, जनसंपर्क विभाग के अधिकारी और कुछ रिटायर्ड अधिकारी रखे गए हैं। पहले ये सिर्फ अखबार, टीवी और रेडियो पर प्रकाशित, प्रसारित खबरों पर नजर रखते थे लेकिन पिछले कुछ चुनावों से सोशल मीडिया को निगरानी के दायरे में लाया जा चुका है। चुनाव आयोग की दिल्ली में चुनाव पर प्रेस कांफ्रेंस जैसे ही हुई, अखबार, टीवी से सरकारी विज्ञापन हट गए। अब पार्टियों के फंड से मिले विज्ञापन चलाए जा रहे हैं। खबरों में भी संतुलन रखा जा रहा है ताकि किसी खास दल या प्रत्याशी के पक्ष में झुकाव न दिखे। एमसीएमसी को खुद भी ऐसी कोई खबर हो तो संज्ञान में लेना है और शिकायत मिलने पर तो कदम उठाना ही है।
मगर, अखबार-टीवी आम तौर पर सतर्क हैं। सवाल यह है कि सोशल मीडिया पर कमेटी कितना नजर रख पा रही है? प्रचार का इस समय सबसे बड़ा हथियार बना है डिजिटल प्लेटफॉर्म। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में देखें तो भाजपा और कांग्रेस के कार्टून, मीम और जोड़-तोड़ करके बनाए गए फोटो, वीडियो से ट्विटर पेज भरे पड़े हैं। फेसबुक में कुछ कम है लेकिन वाट्सएप ग्रुपों का भी ट्विटर जैसा ही हाल है। दशहरे पर एक दल दूसरी पार्टी के नेताओं को रावण बताने पर तुला रहा। ये पोस्ट इतने आक्रामक, असंतुलित और कहीं-कहीं अमर्यादित हैं कि अखबार कभी छापने की हिम्मत ही न करें। मालूम नहीं एमसीएमसी में इतने जानकार लोग हैं भी या नहीं कि वे सोशल मीडिया पर नजर रख सकें। मजे की बात यह है कि ये दल अपने खिलाफ सोशल मीडिया पोस्ट की शिकायत लेकर एमसीएमसी के पास जा भी नहीं रहे हैं। वजह यह है कि सब एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं। दूध का धुला कोई नहीं। सोशल मीडिया पर ही पोस्ट का जवाब देकर हिसाब बराबर किया जा रहा है। वैसे आम मतदाता ऐसी पोस्ट से नाखुश हो तो सी-विजिल ऐप है। वे सीधे निर्वाचन पदाधिकारी को इसके जरिये शिकायत भेज सकते हैं।
एक यादगार बस्तर दशहरा
बस्तर का पारंपरिक दशहरा उत्सव हरेली अमावस्या से प्रारंभ हो चुका है। मावली परघाव की रस्म कल पूरी हुई। कहा जाता है कि बस्तर दशहरा की शुरूआत 13वीं शताब्दी में राजा पुरुषोत्तम देव ने शुरू की थी। यह खास तस्वीर सन् 1962 की है। सन् 1961 में महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव को तत्कालीन सरकार ने अपदस्थ कर उनके भाई विजयचंद्र को राजा घोषित कर दिया था। प्रशासन सिर्फ इसी शर्त पर बस्तर दशहरा में सहयोग करने के लिए तैयार था कि इसे विजयचंद्र भंजदेव की अगुवाई में मनाया जाए। लाला जगदलपुरी ने अपनी एक किताब में बताया है कि बस्तर की जनता के दिल पर तो प्रवीरचंद्र राज करते थे। लोगों ने आपसी सहयोग कर संसाधन जुटाए और प्रवीरचंद्र भंजदेव के नेतृत्व में ही बस्तर दशहरा मनाया। राजा प्रवीरचंद्र महारानी के साथ रथ पर सवार होकर निकले तो लाखों लोग उनका स्वागत करने के लिए मौजूद थे।
अप्रिय चर्चा भी काम आई
कांग्रेस में रायपुर उत्तर से प्रत्याशी तय करने के लिए काफी किचकिच हुई। टिकट के दो प्रमुख दावेदार कुलदीप जुनेजा, और डॉ. राकेश गुप्ता से परे तीसरे नाम पर विचार से काफी विवाद हो रहा था। तीसरे शख्स का नाम तकरीबन फाइनल माना जा रहा था, लेकिन स्थानीय प्रमुख नेताओं के कड़े विरोध के बाद आखिरकार कुलदीप के नाम पर मुहर लग गई।
बताते हैं कि पार्टी के कुछ राष्ट्रीय नेता, रायपुर उत्तर के टिकट को लेकर काफी दिलचस्पी दिखा रहे थे। इसके बाद टिकट के एवज में महंगे गिफ्ट बांटने की चर्चा शुरू हो गई। इन सबके बीच एक व्यापारी नेता तो एआईसीसी में यह कहते सुने गए, कि वो सबसे ज्यादा खर्च कर सकते हैं। इस तरह की अप्रिय चर्चा प्रदेश प्रभारी सैलजा तक पहुंची।
सीएम, और अन्य नेताओं ने भी इसको गंभीरता से लिया। बाद में विवादों से बचने के लिए छानबीन समिति के सदस्यों की सहमति से कुलदीप को फिर से प्रत्याशी बनाने का फैसला लिया गया। दिलचस्प बात यह है कि पिछले तीन चुनाव में कुलदीप की टिकट आखिरी समय में तय होती रही है। इस बार भी ऐसा ही हुआ।
बगावत उम्मीद से बहुत कम
सरगुजा संभाग में भाजपा को बड़ी उम्मीदें हैं। यहां की सभी 14 सीटें कांग्रेस के पास हैं। ऐसे में भाजपा यहां विशेष रूप से ध्यान दे रही है। भाजपा के रणनीतिकार टिकट वितरण के बाद सरगुजा में कांग्रेस के दावेदारों में असंतोष को देखकर काफी खुश थे, और उन्हें अपने लिए अपार संभावनाएं दिख रही थी। लेकिन जैसे-जैसे कांग्रेस में असंतोष कम हो रहा है, भाजपा के रणनीतिकार चिंतित हैं।
सरगुजा में टिकट नहीं मिलने से नाराज बड़े नेता बृहस्पति सिंह के सुर भी बदल गए हैं। वो कह चुके हैं कि किसी भी दशा में कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे। एक और कांग्रेस विधायक चिंतामणि महाराज के लिए कहा जा रहा था कि वो पार्टी छोड़ सकते हैं। इसके बाद पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और कई अन्य नेता उनसे मिलने पहुंच भी गए। मगर चिंतामणि महाराज ने ऐसी-ऐसी शर्त रखी, जिसे सुनकर बृजमोहन, और बाकी नेता बगल झांकने को मजबूर हो गए।
चिंतामणि महाराज ने अंबिकापुर से प्रत्याशी बनाने की मांग रख दी। भाजपा ने यहां से अब तक उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। बृजमोहन ने उनसे लोकसभा टिकट पर विचार करने का भरोसा दिलाया। लेकिन बात नहीं बनी। उनके जाने के बाद चिंतामणि महाराज यह कहते सुने गए, कि भाजपा उनके साथ पहले धोखा कर चुकी है। ऐसे में वो अब उन पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। अब जब कांग्रेस में बड़े नेता बागी होते नहीं दिख रहे हैं, तो भाजपा के नेता नई रणनीति बनाने में जुटे हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
चुनाव ड्यूटी कटवाने का खेल
विधानसभा चुनाव का आगाज हो चुका है। इसमें जिला निर्वाचन अधिकारी जिले का प्रमुख होता है। कलेक्टर को इसका जिम्मा दिया जाता है, लेकिन ज्यादातर काम उपजिला निर्वाचन अधिकारी करता है। चुनाव है तो अधिकारी से लेकर बाबू तक चुनाव में व्यस्त हैं। उनका दशहरा दीवाली की छुट्टी चुनाव की भेंट चढ़ गई है।
चुनाव अधिकारी इतनी मेहनत के बाद मलाई की तलाश में रहते हैं, जिले में मतदान कराने के लिये छह हजार कर्मी की आवश्यकता है तो दस हजार की ड्यूटी लगा दी। अब चुनाव ड्यूटी करना किसको पसंद है तो हर जिले में इसके नाम कटवाने बाबू सेटिंग करा रहे हैं। दुर्ग जिले में एक अधिकारी इसके जरिये अपना चुनावी मेहनताना का इंतजाम करने में लगे हैं। ऐसे लोग हर जिले में तैनात हैं। इनसे निपटने राजधानी में तो डीआरओ आफिस में ही मेडिकल बोर्ड बिठा दिया गया है। ताकि मौके पर ही बिमारी पता चल जाए।
हमर राज का समाज में विरोध
सर्व आदिवासी समाज ने तय किया कि वे एक राजनीतिक दल बनाएंगे और विधानसभा चुनाव में उतरेंगे। वजह यह है कि सत्ता में बार-बार आए दलों ने आदिवासियों के लिए संविधान में मिले विशेष प्रावधानों को लागू नहीं किया और जो नये कानून लाए जा रहे हैं उससे आदिवासियों के अधिकारों का हनन हो रहा है। यह लड़ाई बिना राजनीतिक दल बनाये ही भानुप्रतापपुर विधानसभा उप-चुनाव से शुरू हो चुकी थी। विधानसभा चुनाव में संगठन हमर राज पार्टी के बैनर पर मैदान में उतर रहा है। इसके 20 उम्मीदवार घोषित किये जा चुके हैं। पार्टी ने 50 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की घोषणा की थी। दूसरे चरण के प्रत्याशियों की भी आज, कल में घोषणा हो सकती है।
मगर इसका दूसरा पहलू सामने आ रहा है। किसी सामाजिक संगठन में काम करने वाले लोग अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा के हो सकते हैं। इसके सभी सदस्यों को किसी एक राजनीतिक लाइन पकडऩे के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सर्व आदिवासी समाज के सदस्य भी भाजपा, कांग्रेस या अन्य दलों के समर्थक-विरोधी हो सकते हैं। सर्व आदिवासी समाज उनका राजनीतिक नजरिया तय करे यह उन्हें मंजूर नहीं है। महासमुंद जिले में यह विरोध शुरू हुआ है। खल्लारी में सर्व आदिवासी समाज के महासमुंद जिला इकाई की बैठक हुई। इसने तय किया कि समाज का कोई भी व्यक्ति सर्व आदिवासी समाज की ओर से अधिकृत उम्मीदवार नहीं होगा। यदि वह हमर राज पार्टी से लड़े या निर्दलीय वह समाज का उम्मीदवार नहीं कहा जाएगा। सर्व आदिवासी समाज, सामाजिक संगठन है और यह अपनी यही जिम्मेदारी निभाएगा।
महासमुंद जिले में महासमुंद, खल्लारी, बसना और सरायपाली विधानसभा सीटें हैं। इनमें से सरायपाली अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, जबकि शेष तीन सामान्य सीटें हैं। दिलचस्प यह है कि इन चारों में कोई सीट अनुसूचित जनजाति आरक्षित नहीं है, जबकि 2011 की जनगणना में इनकी संख्या 60 प्रतिशत से अधिक थी।
महासमुंद से आई प्रतिक्रिया का यह संकेत है कि सर्व आदिवासी समाज के सभी सदस्य हमर राज पार्टी के भी साथ हों, यह जरूरी नहीं है। मगर यह भी मुमकिन है कि जो इस संगठन से नहीं जुड़े हैं, वे भी कांग्रेस भाजपा के विकल्प के रूप में हमर राज पार्टी को साथ दे दें।
टिकट के लिए शीर्षासन..
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश दोनों ही जगह कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की लड़ाई का अनुमान है। दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि उनकी सरकार बनेगी। इसीलिये टिकट से वंचित दोनों ही दलों के नेताओं और उनके समर्थकों में तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। टिकट बंटने के बाद छत्तीसगढ़ की तरह मध्यप्रदेश में भी एक से बढक़र एक नजारे दिखाई दे रहे हैं। भोपाल में कांग्रेस नेता कमलनाथ के घर के सामने पार्टी कार्यकर्ता धरने पर बैठे हैं। वे निवाड़ी सीट से रमेश पटेरिया की टिकट कट जाने से नाराज हैं। मौके पर एक कार्यकर्ता शीर्षासन कर ध्यान खींच रहा है।
टाइगर रिजर्व का यह हाल
यह तस्वीर उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व की है। इंदागांव परिक्षेत्र में दो पेड़ों के बीच फंस जाने से एक तेंदुये की मौत हो गई। पर वन विभाग को इसकी खबर चार दिन तक नहीं मिली। लाश चार दिन तक ऐसे ही फंसी रही। जानकारी मिलने पर पोस्टमार्टम कर शव दाह कराया गया। जब ऐसी सूचना वन विभाग के अफसर और मैदानी अमले को चार दिन तक न मिले तब अंदाजा लगा सकते हैं कि अभयारण्य में पेट्रोलिंग की क्या स्थिति होगी।
चिंतामणि को लेकर चिंता
चर्चा है कि कांग्रेस विधायक चिंतामणि महाराज भाजपा का दामन थाम सकते हैं। कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दी है। इसके बाद से चिंतामणि महाराज नाराज चल रहे हैं। हालांकि सीएम, और अन्य प्रमुख नेताओं से उनकी चर्चा हुई है, लेकिन कहा जा रहा है कि भाजपा के नेता उन्हें अपने साथ लाने के लिए प्रयासरत हैं।
गहिरा गुरु के बेेटे सामरी के विधायक चिंतामणि महाराज की भाजपा से नजदीकियां जगजाहिर है। वो पहले भाजपा में थे, और संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष रहे हैं। ताजा खबर यह है कि चिंतामणि महाराज के बड़े भाई बब्रुवाहन सिंह के कार्यक्रम में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल शरीक हुए हैं।
बब्रुवाहन राजनीति से अलग हैं, लेकिन उनके कार्यक्रम में भाजपा नेताओं की मौजूदगी को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि यह कार्यक्रम पहले से तय था, और नवरात्रि के मौके पर हर साल आयोजित होता है। इसमें संघ परिवार के लोग प्रमुख रूप से मौजूद रहते हैं। अब चुनाव का समय है, तो चिंतामणि के भाजपा में शामिल होने की चर्चा चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।
टिकट न मिला तो संचालन मिला
भाजपा ने जिनकी टिकट काटी उन्हें चुनाव संचालक की जिम्मेदारी दे रही है। अब तक दो दर्जन नेताओं को चुनाव की कमान दी जा चुकी है। कुछ को उसी विधानसभा में ते कुछ को दूसरे। कुछ नाराज दावेदार तो स्वयमेव ही अपने क्षेत्र के बाहर की जिम्मेदारी मांग चुके हैं। कारण एक तो प्रत्याशी से पटरी नहीं बैठती, दूसरी तन मन लगाकर जीते तो कोई क्रेडिट नहीं और हारे तो ठिकरा। सौदान सिंह के शागिर्दों से भला इस समस्या को कौन बेहतर जानेगी। सो सबने अपने इलाके से बाहर रहने का फैसला किया। एक समस्या और आ रही है, संगठन तो संचालक नियुक्त कर दे रहा है, प्रत्याशियों की तरह बकायदा सूची भी जारी कर रहा। लेकिन ये संचालक प्रत्याशियों को नहीं भा रहे। वे रात के अंधेरे में संगठन पदाधिकारियों और पुराने वरिष्ठ नेताओं से मिलकर संचालक बनने का आग्रह कर रहे हैं। राजधानी में भी एक प्रत्याशी ने यह डिमांड कर दी है। वे महापौर का चुनाव लड़ चुके नेताजी के लिए जुटे हुए हैं।
जब्त माल का हिसाब-किताब
चुनाव को प्रभावित करने में नगद राशि और उपहारों का बड़ा रोल होता है। इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने सितंबर महीने में ही पुलिस और परिवहन विभाग को वाहनों की चेकिंग करने का निर्देश जारी कर दिया गया था। संयोगवश जिस वक्त छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, नवरात्रि, दशहरा और दीपावली की भी धूम है, जब आभूषण, कपड़ों और बर्तनों की खूब खरीदारी होती है। बीते चुनाव के दरम्यान सन् 2018 में भी दिवाली 7 नवंबर को थी और आचार संहिता अक्टूबर के पहले सप्ताह में लागू हो गई थी। आंकड़ा रोजाना बढ़ रहा है। अकेले रायपुर जिले की पुलिस 6 करोड़ रुपये से अधिक नगद अब तक जब्त किए हैं। पूरे राज्य का हिसाब बहुत बड़ा हो जाएगा। इसी तरह से सोने चांदी के जेवर और कपड़े जब्त किए गए हैं। इस चेकिंग से जुड़े कुछ पुलिस अफसरों का कहना है कि दरअसल ज्यादातर मामले टैक्स चोरी के हैं। अकेले छत्तीसगढ़ में बिना बिलिंग के सोने-चांदी का व्यापार साल भर में अरबों का होता है। साड़ी, चादर, शर्ट, पेंट के मामले भी ऐसे ही हैं। जो नगद जब्त हुए हैं वे भी ज्यादातर ठेकेदारों, सप्लायरों के हैं। अब तक जिनकी भी धकड़-पकड़ हुई है, वे किसी राजनीतिक दल के लिए काम कर रहे थे, यह भी पता नहीं चला है। जांच अधिकारी सिर्फ यह कह रहे हैं कि जब्ती इसलिये की गई कि नगद का स्त्रोत नहीं बताया गया, कपड़े और आभूषणों का बिल नहीं था। चुनाव आचार संहिता के दौरान जो गड़बड़ी की जा रही है, वह तो शायद बारहों महीने होती होगी।
गरीब बस्तर के धनी उम्मीदवार
बस्तर की गरीबी और पिछड़ेपन की बात वे प्रत्याशी करने जा रहे हैं जिनके पास करोड़ों की संपत्ति है। इनमें सबसे आगे तो कांग्रेस से बगावत कर जगदलपुर से निर्दलीय चुनाव लडऩे जा रहे टीवी रवि हैं। उन्होंने अपने शपथ-पत्र में 25 करोड़ रुपये की संपत्ति बताई है। इसमें सोना-चांदी, जमीन, बंगला, गाडिय़ां और नगद रकम शामिल है। इसी सीट से कांग्रेस टिकट के ही दावेदार जतिन जायसवाल की संपत्ति उनकी ओर से दिये गए शपथ के मुताबिक 16 करोड़ रुपये है। चर्चा थी कि जायसवाल को टिकट दिलाने का उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने भी प्रयास किया था। बस्तर के कांग्रेस उम्मीदवार लखेश्वर बघेल के पास 8 करोड़ की संपत्ति है, उनके मुकाबले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने जो हलफनामा दिया है उसके मुताबिक वे 2 करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक हैं।
ललचाने लगे सीताफल..
नवरात्रि और दशहरा के करीब आते ही सीताफल की आवक छत्तीसगढ़ के बाजारों में शुरू हो जाती है। यह तस्वीर जांजगीर के बाजार की है। ([email protected])
दिवाली गिफ्ट
छत्तीसगढ़ में इस साल दिवाली के साथ-साथ लोकतंत्र का महापर्व यानी विधानसभा चुनाव की भी धूम है। ऐसे में पत्रकारों की दिवाली पर चर्चा छिड़ी। कुछ का कहना है कि चुनाव आचार संहिता के कारण दिवाली गिफ्ट पर असर पड़ेगा। इस पर दूसरे का कहना था कि चुनाव आयोग एक-एक गिफ्ट तो नजऱ रखेगी नहीं और नजऱ रखती भी है तो किसी कारोबारी की गाड़ी से गिफ्ट भिजवाया जा सकता है और गिफ्ट देते समय नेताओं के कार्ड लगाए जा सकते है। अब नेताओं को समझ लेना चाहिए कि आचार संहिता का बहाना काम नहीं आएगा।
दिवाली गिफ्ट टू
छत्तीसगढ़ में दो चरणों में चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण के लिए वोटिंग दिवाली से पहले और दूसरे चरण के लिए वोटिंग दिवाली के बाद होगी। ऐसे में पहले चरण के मतदान के बाद लोगों को दिवाली में गिफ्ट की उम्मीद हो सकती है, लेकिन दूसरे चरण की सीट में मतदान होने के बाद कोई उम्मीद नहीं होगी।
कहीं टेंशन कहीं राहत
विधानसभा के पहले चरण की सीटों के लिए नामांकन खत्म होने के बाद कांग्रेस ने जहां राहत की सांस ली है, तो दूसरी तरफ भाजपा की उम्मीदों को झटका लगा है। कांग्रेस के लिए संतोषजनक बात यह रही कि अंतागढ़ से अनूप नाग को छोडकऱ कोई और बड़ा नेता बागी नहीं हुआ। जबकि भाजपा के रणनीतिकारों को कांग्रेस में बगावत से फायदे की उम्मीद दिख रही थी।
कांग्रेस ने पहले चरण की 20 सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित किए, तो कई जगह असंतोष दिख रहा था। चार मौजूदा विधायक अनूप नाग, शिशुपाल सोरी, भुनेश्वर बघेल, और छन्नी साहू को टिकट नहीं दी। इससे वो खासे नाराज थे। मगर अनूप नाग को छोडकऱ बाकी तीनों खामोश हो गए। पार्टी उन्हें मनाने में कामयाब रही।
चर्चा है कि जिन विधायकों की टिकट कटी थी, उन्हें चुनाव लडऩे के लिए जोगी पार्टी, आम आदमी पार्टी और हमर राज पार्टी से ऑफर था। इन पार्टियों के नेताओं ने टिकट से वंचित विधायकों से संपर्क भी साधा था लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ करने से मना कर दिया। विधायकों को मनाने में सीएम भूपेश बघेल, और डिप्टी सीएम टी.एस.सिंहदेव की भूमिका रही।
बताते हैं कि सिंहदेव ने छन्नी साहू के लिए हाईकमान से बात की थी। उनके नाम पर पुनर्विचार भी हुआ, लेकिन वो छन्नी को टिकट नहीं दिलवा पाए। अलबत्ता, उन्हें बागी होने से रोकने में कामयाब रहे। अनूप नाग को बागी होने से रोकने की कोशिश की गई, लेकिन वो नहीं माने। फिर भी कांग्रेस के नेता इस बात संतुष्ट हैं कि पार्टी में और कोई बागी नहीं हुआ।
भाजपा के रणनीतिकार मान रहे थे कि कांग्रेस में कई बड़े नेता बागी होंगे, और इसका उन्हें फायदा मिलेगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हो पाया। इससे पहले चरण की लड़ाई भाजपा के लिए कठिन हो गई है।
उत्तर सीट का आसार
रायपुर उत्तर की सीट पर कांग्रेस में पेंच फंसा हुआ है। चर्चा है कि पार्टी के तीन प्रमुख नेता सीएम भूपेश बघेल, टी.एस.सिंहदेव, और डॉ.चरणदास महंत व दीपक बैज की राय मौजूदा विधायक कुलदीप जुनेजा और चिकित्सक डॉ. राकेश गुप्ता पर बंटी हुई है। कहा जा रहा है कि चारों से परे प्रदेश प्रभारी सैलजा ने पार्षद अजीत कुकरेजा का नाम आगे बढ़ाया है।
चर्चा है कि कुकरेजा के लिए दिल्ली के कुछ बड़े नेताओं का भी काफी दबाव है। इन सबके बीच सीएम ने शुक्रवार को अजीत को बुलाकर चुनाव को लेकर उनकी तैयारियों के बारे में पूछताछ की है। माना जा रहा है कि दो बार के विधायक जुनेजा और स्थानीय प्रमुख नेताओं के कड़े विरोध के बाद भी कुकरेजा का नाम फाइनल किया जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है, लेकिन लोग हैरान हैं कि राकेश गुप्ता जैसे भले उम्मीदवार के रहते हुए...
रक़म नहीं तो निर्दलीय नहीं
चुनाव आयोग की सख्ती से भाजपा के लोग काफी परेशान हैं। चर्चा है कि आयोग के डर से प्रत्याशियों तक फंड नहीं पहुंच पा रहे हैं, और जिन्हें जिम्मेदारी दी जा रही है वो आनाकानी कर रहे हैं। अब तक दो करोड़ से अधिक राशि जब्त हो चुकी है। सीमाओं पर पुलिस का तगड़े पहरा है।
चर्चा तो यह भी है कि पार्टी के कुछ लोगों ने कई दूसरी पार्टी, और निर्दलियों को मदद का भरोसा दिलाया था। मगर उन तक मदद नहीं पहुंच पाई। हल्ला है कि कुछ ने तो नाम वापस लेने की धमकी तक दे दी है। देखना है आगे क्या होता है।
नाराजग़ी की वजह
बात गुरूवार की है। राजधानी के दो भाजपा नेताओं को एक दमदार समाज के कार्यक्रम से उल्टे पैर लौटना पड़ा। इनमें से एक नेता तो चुनाव मैदान में हैं। ये दोनों परसों देवेंद्र नगर के भवन गए थे। वहां समाज के लोग पंजड़ी,छकड़ी खेल रहे थे। दोनों दस्तूर, मौका समझ कर भवन गए। वैसे यह समाज, पार्टी का बड़ा वोट बैंक है। इसी आशा विश्वास से लबरेज थे नेता ।लेकिन यह पता नहीं था कि वापस लौटना होगा। पंडाल पहुंचे तो पहले किसी ने स्वागत वागत नहीं किया। दो चार लोगों की नजर पड़ी तो उन तक पहुंचे और शेक हैंड किया। जब बड़े नेता ने छोटे का परिचय कराया तो समाज के मुखिया ने राजनीतिक चर्चा से रोका । जनसंपर्क भी नहीं करने दिया। वे सभी नाराज थे। कारण पार्टी ने उनके समाज के नेता को इस बार टिकट नहीं दी। और वे इसी इलाके के रहे हैं। पहले तो उनकी टिकट कटने को लेकर नाराजगी जताई और कहा गया कि पहले पटेल जी को लेकर आएं। बताया जा रहा है कि माइक में भी एनाउंस किया गया ।दरअसल एक नेताजी आठ विधानसभा सीटों के संयुक्त नेता हैं। समाज का रूख देखकर लौटना ही बेहतर समझा गया।
हाथियों को भगाने वाली मशीन
हाथियों से जान-माल की हानि से परेशान किसानों को एक समाधान इंटरनेट पर ऑनलाइन सर्च करने पर मिला है। एक मशीन देश के कई हिस्सों में किसान इस्तेमाल कर रहे हैं, जो न केवल हाथी बल्कि सुअर, कुत्ते तथा दूसरे जानवरों से बचाने में काम आ रहा है। कटघोरा वनमंडल में सितंबर से लेकर अब तक पांच लोगों की हाथियों के हमले से जान जा चुकी है। यहां एक किसान ने बैटरी और सोलर पावर से चलने वाले इस मशीन को ऑनलाइन ऑर्डर कर मंगाया। यह 12 वोल्ट का करंट प्रवाहित करता है जिसे घर या खेत के बाड़ से जोड़ दिया जाता है। इसके संपर्क में आने वाले जानवरों को झटका तो लगता है लेकिन इससे कोई नुकसान नहीं होता। मशीन की कीमत 15 हजार से 20 हजार रुपये के बीच है। इस मशीन का प्रयोग वैसे तो किसानों को खुद के लिए लाभदायक महसूस हो रहा है लेकिन हाथियों की सुरक्षा और उनके प्राकृतिक विचरण में बाधक तो नहीं है, इस पर वन विभाग के अधिकारियों ने विचार नहीं किया है। विभाग ने 40 मशीनों का ऑर्डर खुद भी दे दिया है।
पहाड़ी कोरवा वोट नहीं डालेंगे
आदिवासी वर्ग के हितों की बात करने में कोई दल पीछे नहीं रहता, पर जमीनी हकीकत की पोल ऐसे बैनर-पोस्टर खोल देते हैं। कोरबा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर रामपुर विधानसभा क्षेत्र के केरा कछार ग्राम पंचायत में रहने वाले अधिकांश लोग पहाड़ी कोरवा समुदाय से हैं, जिन्हें राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र भी कहा जाता है। गांव के लोगों को बिजली नसीब नहीं है। खुद खोदे हुए गड्ढे का पानी साफ करके पीना पड़ता है क्योंकि नलकूप नहीं है। मुख्य मार्ग तक पहुंचने का रास्ता जर्जर है। बारिश में पगडंडियों से होकर मुख्य मार्ग तक पहुंच पाते हैं। जनप्रतिनिधियों और सरकार पर इनका भरोसा नहीं रहा। इसलिये गांव की सरहद पर उन्होंने नेताओं को आगाह कर दिया है कि वे प्रचार के लिए नहीं आएं, उन्होंने चुनाव बहिष्कार का फैसला लिया है। ([email protected])
कुछ बातें चुनिंदा उम्मीदवारों की
भाजपा हाईकमान प्रदेश के कुछ युवा प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी तो इस लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। इसी तरह पूर्व मंत्री महेश गागड़ा के लिए भी मेहनत हो रही है।
केन्द्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर सिर्फ गागड़ा के नामांकन दाखिले के लिए बीजापुर पहुंचे हैं। अनुराग जब युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब गागड़ा उनकी कार्यकारिणी में थे। दोनों के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं। पिछला चुनाव हार चुके गागड़ा को इस बार जिताने के लिए खास रणनीति पर काम हो रहा है।
इसी तरह ओपी चौधरी के खिलाफ सारे असंतोष को दबाने में पार्टी को सफलता मिलती दिख रही है। रायगढ़ परम्परागत रूप से अग्रवाल समाज की सीट मानी जाती रही है। कई विधायक अग्रवाल समाज से ही रहे हैं। मगर पार्टी ने पूर्व विधायक विजय अग्रवाल की मजबूत दावेदारी को नजरअंदाज कर ओपी चौधरी को प्रत्याशी बनाया।
अग्रवाल के निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने की उम्मीद थी। उन्होंने पिछले चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 43 हजार वोट बटोरकर भाजपा प्रत्याशी रोशन लाल अग्रवाल की हार सुनिश्चित कर दी थी। मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। चर्चा है कि विजय, कोल कारोबार से जुड़े हैं। ऐसे में निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरना उनके लिए जोखिम भरा हो सकता था।
बाहरी राज्यसभा सदस्य बाहर
विधानसभा चुनाव का प्रचार चल रहा है, लेकिन कांग्रेस के तीन राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन, राजीव शुक्ला, और केटीएस तुलसी पूरे परिदृश्य से बाहर हैं। रंजीत रंजन को पार्टी ने राजस्थान में समन्वयक की जिम्मेदारी दे दी है। जबकि वल्र्ड कप क्रिकेट मैच चल रहा है। ऐसे में राजीव शुक्ला के आने की उम्मीद नहीं है। वो क्रिकेट मैच का लुफ्त उठाते स्टेडियम में देखे जा सकते हैं। केटीएस तुलसी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं, और वो कोर्ट-कचहरी में ही व्यस्त हैं। वैसे भी प्रदेश के नेताओं को इन सबसे उम्मीद भी नहीं है।
दिल्ली की दखल हुई कम
भाजपा ने जब अगस्त में प्रत्याशियों की पहली सूची जारी की थी, तब के माहौल का अंदाजा लगाइये। गृहमंत्री अमित शाह लगातार छत्तीसगढ़ दौरा कर रहे थे। उनके दौरे में सभा नहीं होती थी, केवल बैठकें होती थी। एयरपोर्ट से सीधे रात में ही बैठक लेने पहुंच जाते थे। ओम माथुर की टीम का दबदबा था। हर विधानसभा में दूसरे राज्यों के विधायक डेरा डाल चुके थे।
कुल मिलाकर यह संदेश देने की कोशिश की गई कि इस बार भाजपा छत्तीसगढ़ को लेकर अतिरिक्त गंभीरता बरत रही है। गुजरात दिल्ली वाले प्रयोग यहां किये जा रहे हैं। पुराने नेताओं को टिकट नहीं मिलेगी, सारे नए चेहरे होंगे। इस आभामंडल का नतीजा यह हुआ था कि प्रदेश के सारे बड़े नेताओं को सांप सूंघ गया था। खासकर पिछली सरकार के मंत्रियों की टिकट को लेकर भारी संशय था। राजधानी के कद्दावर नेता के सुर बदल गए थे, पांच साल चुप रहने वाले पूर्व मंत्री और विधायक गायों की मौत से लेकर गंगाजल तक के मुद्दों पर लगातार मुखर होकर बोलने लगे थे ताकि टिकट पक्की हो जाए। एक पूर्व मंत्री तो टिकट को लेकर इतने भयभीत हो गए थे कि मानों गायब ही हो गए थे। जब उन्हें टिकट की हरी झंडी मिली तब वे निकले।
लेकिन दो महीने पहले दिल्ली का टेरर अब खत्म हो गया है। कार्यकर्ताओं कह रहे हैं कि भाजपा की पहली सूची जितनी कड़ाई से बांटी गई थी, दूसरी सूची उतनी ही निराशाजनक रही है। कईयों को तो इससे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं दिख रही है। चुनाव के एक प्रमुख रणनीतिकार के अचानक परिदृश्य से गायब होने पर काफी चर्चा हो रही है।
कितने वोट घर से डाले जाएंगे?
चुनाव आयोग हर बार कुछ नये प्रयोग करता है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को वोट देने का अवसर मिल सके। इस बार 80 वर्ष से अधिक उम्र वाले मतदाता, 40 प्रतिशत से अधिक विकलांगता और कोविड 19 अथवा किसी संक्रमित बीमारी से ग्रस्त मतदाताओं की सुविधा के लिए विशेष मतदान दल बनाए जाएंगे। यदि ऐसे मतदाता बूथ तक आकर वोट नहीं डालना चाहें, तो विशेष मतदान दल सुरक्षा इंतजामों के साथ उस मतदाता के घर जाएगा और गोपनीयता के साथ उनका मत प्राप्त करेगा। विशेष दल के दौरे और रूट की जानकारी सभी प्रत्याशियों को भी दी जाएगी ताकि वे देख सकें कि गोपनीयता बरती जा रही है या नहीं। दिव्यांग और संक्रामक बीमारी से ग्रस्त मतदाता का अलग से ब्यौरा आयोग ने नहीं दिया है पर अभी की स्थिति में 80 वर्ष से अधिक मतदाताओं की संख्या 1 लाख 86 हजार 215 है।
प्राय: देखा गया है कि अशक्त हो चुके बुजुर्गों को परिवार के सदस्य अपने साथ मतदान केंद्र लेकर आ जाते हैं। बहुत से अशक्त बुजुर्ग घर से बाहर निकलने का मौका तथा अपने बच्चों की सेवा पाकर खुश भी होते हैं। दिक्कत उन्हें होती है जो वृद्ध अकेले हैं और बूथ तक लेकर जाने वाला कोई नहीं होता।
ऐसे कई वृद्ध मतदाता जो परिवार के सदस्यों के प्रयासों के बावजूद बिस्तर से उठने में असमर्थ हैं, वे भी अब की बार वोट डाल सकेंगे।
ऐसा नहीं लगता कि ज्यादा वृद्ध मतदाता या उनके परिजनों को पता है कि घर पर वोट डालने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए चुनाव अधिसूचना जारी होने के पांच दिन के भीतर क्षेत्र के संबंधित रिटर्निंग अधिकारी के पास आवेदन लगाना जरूरी है। यानि उन्हें मतदान की सुविधा भले ही घर बैठे मिले पर एक बार रिटर्निंग ऑफिसर के पास जाना ही है। शायद वे अपना आवेदन अपने किसी प्रतिनिधि के जरिये भी दे सकते हैं, पर इस बारे में आयोग ने स्पष्ट नहीं लिखा है। प्रथम चरण की अधिसूचना का प्रकाशन 13 अक्टूबर को हुआ था। इसका मतलब जिन वृद्ध मतदाताओं ने 17 अक्टूबर तक आवेदन दिया हो, वे ही इस सुविधा का लाभ ले सकेंगे। दूसरे चरण के मतदाताओं के लिए अभी समय है। बीते चुनावों से चुनाव आयोग ने मतदान केंद्रों में मतदाता- मित्रों की सेवाएं शुरू की है, लेकिन यह सिर्फ बूथ पर है। इनकी सेवा मतदान केंद्र पहुंचने वाले बुजुर्ग ही ले पाएंगे।
मतदान से कोई वंचित न रहे इसलिये यह एक और नया प्रयोग है, पर इसमें कितने प्रतिशत सफलता मिलेगी, अभी कुछ नहीं कह सकते। हो सकता है इस बार जो खामियां दिखेंगी, उन्हें अगले चुनावों में दूर किया जाए।
लंबी पारी खेलने के लिए...
कांग्रेस और भाजपा दोनों में ही टिकट कटने के बाद बगावत की खबरें फूट-फूट कर आ रही है। बहुत से लोगों ने ऐलान कर दिया है कि वे निर्दलीय या फिर किसी तीसरे दल से चुनाव लडऩे जा रहे हैं। जिन लोगों ने सीधे बगावत नहीं की वे चुपचाप घर बैठ गए हैं या फिर पर्यटन के लिये राज्य से बाहर चले गए हैं। पर कुछ दावेदारों की रणनीति अलग है।
भाजपा ने पिछली बार तखतपुर से हर्षिता पांडेय को टिकट दी थी जो त्रिकोणीय संघर्ष में जीत से करीब 7 हजार वोटों से पिछड़ गई। इस बार यहां से धर्मजीत सिंह ठाकुर को जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से भाजपा प्रवेश कराया गया और मैदान में लाया गया। पांडेय टिकट कटने के बावजूद अधिकृत उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने लगी हैं। हर्षिता को भाजपा शासनकाल में राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था। वे जनसंघ के एक प्रभावशाली नेता रहे स्व. मनहरण लाल पांडेय की बेटी हैं। शायद इस विरासत को समझते हुए उन्हें लगा हो कि बगावत ठीक नहीं। पार्टी उसे फिर कभी किसी जगह पर मौका दे देगी।
दो चार वोटर वाले बूथ...
कोरिया जिले का भरतपुर-सोनहत मतदान केंद्र सबसे प्रदेश में सबसे कम जनसंख्या घनत्व वाला इलाका है। यहां एक मतदान केंद्र शेराडांड ग्राम में खोला जाएगा, जहां केवल पांच मतदाता हैं। 15 साल पहले यहां सिर्फ दो मतदाता पति-पत्नी थे, तब भी बूथ खोला गया। अब यहां इस परिवार के पांच लोग वोट डालने के लायक हो चुके हैं। चार सदस्यीय मतदान दल ट्रैक्टर में बैठकर यहां पहुंचेगा और यहां एक अस्थायी बूथ बनाकर वोटिंग की प्रक्रिया पूरी करायेगा। इस दूरस्थ ग्राम तक पहुंचने के लिए गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व का काफी हिस्सा पार करना पड़ता है। वैसे इस विधानसभा क्षेत्र में कई मतदान केंद्र ऐसे हैं जहां 12-15 मतदाता ही हैं। जैसे मतदान केंद्र कांटो में 12 मतदाता हैं, रेवला में 23।
वैसे, इस बात की गुंजाइश कम है कि इतने कम वोटों वाले गांवों में कोई दल चुनाव प्रचार के लिए भी जाता होगा। इन मतदाताओं को प्रत्याशियों का नाम और उनके चुनाव चिन्ह पता है भी या नहीं। शायद मतदान दलों को यह काम भी वहां करना पड़े।
डॉ. प्रेमसाय का पत्ता क्यों कटा?
डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम अकेले ऐसे विधायक हैं, जो भूपेश सरकार में मंत्री रहे और टिकट काट दी गई। मंत्रिमंडल से जुलाई महीने में उनका इस्तीफा ले लिया गया था, हालांकि इसके कुछ दिन बाद कैबिनेट मंत्री दर्जा बरकरार रखते हुए उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बना दिया गया। डॉ. साय का कार्यकाल बहुत विवादित रहा। मंत्री बनने के तुरंत बाद पत्नी डॉ. रमा सिंह को उन्होंने अपना विशेष सहायक नियुक्त कर लिया था। विवाद बढऩे के बाद मुख्यमंत्री ने आदेश रद्द कराया।
दो साल पहले डीपीआई के डिप्टी डायरेक्टर आशुतोष चावरे का एक शिकायती पत्र वायरल हुआ था, जिसमें डायरी के पन्नों का हवाला देते हुए शिक्षकों की पदस्थापना में 366 करोड़ के लेन-देन की बात कही गई थी। चावरे ने रायपुर के राखी थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी कि उनके फर्जी दस्तखत और सील से मनगढ़ंत शिकायत की गई। इस मामले में दो तरह की जांच होनी थी। एक तो कि क्या चावरे का दस्तखत फर्जी था, दूसरा ट्रांसफर पोस्टिंग में 366 करोड़ के लेनदेन की शिकायत क्या सही थी? जानकर हैरानी हो सकती है कि दोनों ही जांच अब तक अंजाम तक नहीं पहुंची हैं।
स्कूल शिक्षा में छत्तीसगढ़ की रैंकिंग पूरे देश में बेहद खराब है लेकिन ऐसा कभी नहीं लगा कि सुशिक्षित डॉ. प्रेमसाय इस मसले पर चिंतित हैं। इनके लगभग 4 साल के कार्यकाल में रैंकिंग सुधरी नहीं।
उनके इस्तीफे के कुछ पहले 4500 से अधिक पदोन्नत शिक्षकों की पोस्टिंग में करोड़ों के रिश्वतखोरी के आरोप से विभाग घिर गया। विभाग को रविंद्र चौबे ने संभाला। डॉ. साय के हटते ही इस मामले में कई बड़े अधिकारी सस्पेंड कर दिये गए। हालांकि इनके विरुद्ध एफआईआर के आदेश का पालन नहीं हुआ है।
रायपुर में आरटीई की प्रतिपूर्ति के नाम पर 76 लाख रुपये संदिग्ध खाते में भेजे गए थे। इसकी जांच की फाइल स्कूल शिक्षा मंत्री के बंगले में साल भर पड़ी रही। उनके दफ्तर से निकलने के बाद भी जांच अधूरी है।
अक्टूबर 2021 में विधायक बृहस्पत सिंह और चंद्रदेव राय ने ट्रांसफर पोस्टिंग में लाखों का लेन-देन का आरोप लगाकर उनका बंगला घेरा। शायद ही पहले ऐसा हुआ हो कि 35 कांग्रेस विधायकों ने अपने ही किसी मंत्री की मुख्यमंत्री से शिकायत की हो। इनका कहना था कि मंत्री मनमानी कर रहे हैं, सारा दफ्तर उनके चहेते पीए और दूसरे भ्रष्ट अफसर चला रहे हैं। उनसे इस्तीफा लेने की मांग की गई। डॉ. साय के समर्थकों ने कहा कि यह सब उनके टीएस सिंहदेव खेमे से होने के कारण किया जा रहा है। सिंहदेव ने यह कहते हुए मंत्री का बचाव किया था कि विवाद सार्वजनिक करने से विपक्ष को लाभ मिलता है।
इन सब तथ्यों के बावजूद यह निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं है कि डॉ. साय सिर्फ इन्हीं कारणों से टिकट से वंचित हुए। प्रदेश के शीर्ष नेता सहमत हो गए होंगे कि दो टिकट हमारे कटेंगे, दो आपके। दो हमारी सिफारिश से मिलेगी, दो आपकी।
हाथ का साथ रास आया साय को?
भाजपा में करीब 40 साल की राजनीतिक यात्रा के बाद कांग्रेस में अचानक शामिल हुए नंदकुमार साय ने लैलूंगा, कुनकुरी या पत्थलगांव से टिकट मांगी थी। लैलूंगा रायगढ़ तो बाकी दो जशपुर जिले में हैं। 77 वर्षीय साय इस इलाके से तीन बार विधायक रह चुके हैं, छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष, लोकसभा,राज्य सभा सदस्य, अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष होने के साथ-साथ कई महत्व के पदों पर रहे।
कांग्रेस में शामिल होने के बाद केबिनेट मंत्री दर्जा के साथ सीएसआईडीसी के अध्यक्ष बनाए गए साय ने जिन तीन सीटों से टिकट मांगी, उन सभी पर कांग्रेस का कब्जा था। इनमें से कुनकुरी और पत्थलगांव सीट पर मौजूदा कांग्रेस विधायकों की टिकट नहीं काटी गई लेकिन लैलूंगा में एक विकल्प था। यहां से विधायक चक्रधर प्रसाद सिदार ने भाजपा को 2018 में भाजपा को 24 हजार से अधिक वोटों से हराया था, जिनकी टिकट काटकर विद्यावती सिदार को प्रत्याशी बनाया गया है। अपनी टिकट कटने की चर्चा के बीच विधायक चक्रधर सिदार अपनी पुत्रवधू यशोमति सिदार का नाम आगे कर चुके थे, पर पूर्व विधायक प्रेम सिंह सिदार की पुत्रवधू विद्यावती सिदार पर कांग्रेस ने भरोसा जताया। वे इस समय जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष भी हैं। जिन तीन सीटों पर साय ने लडऩे की इच्छा जाहिर की थी, उनमें से यही एक सीट है- जहां पर कांग्रेस ने फेरबदल किया।
साय की महत्वाकांक्षा ऊंची रही है। उनका बयान आ चुका है कि राजनाथ सिंह और डॉ. रमन सिंह की सांठगांठ के चलते वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से वंचित रह गए। प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग वे हमेशा करते हैं।
जब वे कांग्रेस में शामिल हुए तो भाजपा ने गिनाया था कि पार्टी ने उन्हें क्या-क्या दिया। अब कांग्रेस ने टिकट को लेकर उनकी दावेदारी को नकार दिया है। अब, पता नहीं साय खुद को कांग्रेस में ज्यादा उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, या बीजेपी में करते थे। मालूम होगा तब होगा, जब वे अपने इन इलाकों में हाथ के निशान को वोट देने के लिए निकलेंगे।
कन्हैया की जगह राम
रायपुर दक्षिण से पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ काफी माथापच्ची के बाद कांग्रेस ने दूधाधारी मठ के महंत रामसुंदर दास के नाम पर मुहर लगाई। बताते हैं कि महंत जी खुद जांजगीर-चांपा से टिकट चाह रहे थे। वो एक बार पामगढ़ से विधायक रहे हैं। लेकिन चर्चा है कि रायपुर दक्षिण से बृजमोहन के खिलाफ लडऩे के अनिच्छुक रहे हैं।
दूसरी तरफ, पूर्व पराजित प्रत्याशी कन्हैया अग्रवाल ने अपनी टिकट के लिए खूब कोशिश की। डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव उनके समर्थन में थे। कहा जा रहा है कि इस बात की खबर मिलने पर कन्हैया, महंत जी से मिलने मठ भी गए। और उनसे टीएस सिंहदेव की बात कराई। कन्हैया ने महंत जी से कहलवाया कि पार्टी चाहे तो उनकी जगह कन्हैया को प्रत्याशी बना सकती है। सिंहदेव ने हाथ खड़े कर दिए, इसके बाद प्रदेश प्रभारी सैलजा से चर्चा की कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया। और कन्हैया प्रत्याशी बनने से रह गए।
दो नेताओं के सींग उलझे
प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। एक बड़े नेता ठाकरे परिसर से मानो खो कर दिए गए हैं। चुनाव सिर पर न होता तो नेताजी ठाकरे परिसर से ही नहीं पद से भी हाथ धोना पड़ जाता। हालांकि वे टिकट हासिल करने में सफल रहे। ठाकरे परिसर की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने वालों का कहना है कि इन दिनों दो नेताओं के बीच बोलचाल ही बंद है। न तो फोन पर बात हो रही न वन टू वन मुलाकात में। इसे संगठन के महामंत्री भी समझ रहे हैं। इसके पीछे एक कारण यह बताया जा रहा है कि एक सह प्रभारी, न्यायधानी की एक टिकट भाजयुमो नेता को दिलाना चाहते हैं और नेताजी नहीं चाहते। इससे बड़ी चर्चा है कि नेताजी के किसी लेनदेन फंस गए हैं और हाईकमान को पता चल गया है। उसके ही कहने पर नेताजी साइड लाइन किए जा रहे हैं।
जंगल से मोहब्बत और नफरत
भाजपा में एक वन अफसर को लेकर बड़ी खींचतान चल रही है। 2018 जुलाई तक जो अफसर मानो लख्ते जिगर था । उसकी अब परछाई भी पसंद नहीं है। जो लोग विरोध कर रहे हैं उन्होंने ही कभी इन अफसर को आरा मिल घोटाले से पाक साफ किया था। हालांकि इसके लिए अफसर ने नीचे से लेकर ऊपर तक खूब गांधीजी को खूब इस्तेमाल किया था। अब उनसे ऐसी चिढ़ समझ से परे है। हर दूसरे दिन लोग आयोग में जाने बड़े नेताओं पर दबाव बनाए रहते हैं। वो तो भला हो भाई साहबों का कि ये एक घर छोडक़र चलने के स्टैंडिंग आर्डर दे रखे हैं।
राज्योत्सव मैदान में विकास या विनाश
साइंस कालेज का मैदान काफी प्रसिद्ध रहा है। कई प्रधानमंत्री से लेकर दिग्गज नेताओं की सभाएं यहां कई दशकों से होती आ रही हैं। लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं रही। राज्य गठन के पहले मैदान जितना विशाल था, आज आधे का भी आधा रह गया है। राजधानी बनने के बाद यहां राज्योत्सव का आयोजन हुआ तो यह राज्योत्सव मैदान कहलाने लगा। शहर से लगा और आम लोगों की आसान पहुंच वाला राजधानी में इतना बड़ा मैदान और कहीं नहीं था। यहां रोजाना सुबह-शाम क्रिकेट खेलने वाले दर्जनों टीम दिखती है। लेकिन इस मैदान को तथाकथित विकास करने वालों ने निगल लिया है। चुनावी का मौसम है तो एक पार्टी के कद्दावर नेता अपने विकास कार्यों की फेहरिस्त में इस मैदान में बने ढांचों को उपलब्धियों के रूप में गिनाते नहीं थकते। पर आम लोगों का कहना है कि इस मैदान में हॉकी के दो स्टेडियम बनाए गए हैं, जिसमें केवल अंतरराष्ट्रीय मैच होते हैं। वह भी कई सालों में कभी-कभार, जबकि रोज खेलने वाले बच्चों के लिए मैदान ही नहीं है।
इस मैदान में ही खेल विभाग का बड़ा सा कार्यालय बन गया है। एक हिस्से में युवा आयोग है तो दूसरे हिस्से में छात्रावास बन गया है। लेकिन यह कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन सका कि आम लोगों की सुविधाओं में कैसे कटौती हो रही है। रोजाना खेलने वाले बच्चों के लिए शहर के नजदीक ही मैदान होना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर के मैच तो कभी-कभी होते हैं, वो शहर से बाहर हो सकते हैं। अब दूसरी पार्टी की सरकार बनी तो इस मैदान को मानों जीवनदान मिला। यहां राज्योत्सव आयोजित होने से मैदान की जान लौट गई, लेकिन छोटा होने के कारण अव्यवस्थित लगता है। पर इस सरकार ने भी विकास के नाम पर एक तो चौपाटी बना दी, दूसरी ओर छात्रावास के सामने एक लंबी दीवार खड़ी कर दी है। कुल मिलाकर मैदान सिकुड़ते जा रहा है। खिलाडिय़ों का भी दोष है कि उन्होंने कभी इसके खिलाफ आवाज भी नहीं उठाई, नहीं तो कम से कम चुनाव में मुद्दा तो जरूर बन जाता।
बाहर का मतलब सोनिया गांधी
केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह नामांकन दाखिले के लिए भरतपुर-सोनहत पहुंचीं तो बाहरी प्रत्याशी कहे जाने को लेकर पूछे गए सवाल से विचलित हो गईं। उन्होंने कहा कि पहले सोनिया गांधी को धक्के मारकर इटली भेजें, फिर मुझसे क्वेश्चन करें। इधर, यही सवाल भाजपा प्रत्याशी प्रबल प्रताप सिंह से किया गया, जो बिलासपुर जिले के कोटा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा- कांग्रेस के जो लोग मुझे बाहरी कह रहे हैं, उन्हें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए और बताना चाहिए कि सोनिया गांधी कहां की हैं? इटली की है न? राहुल गांधी चुनाव कहां से लड़ते हैं?
कोटा प्रत्याशी का बयान कुछ शालीन है, वहीं रेणुका सिंह का सोनिया गांधी को धक्के मारने, जैसा बयान कुछ लोगों को अशोभनीय लग सकता है और विधानसभा चुनाव के संदर्भ में ऐसा उदाहरण बेतुका भी। पर एक साथ दोनों ही प्रत्याशी सोनिया गांधी को याद कर रहे हैं। यह अटकल आप लगाएं कि क्या यह संयोग है। या फिर भाजपा ने तय कर रखा है कि सोनिया गांधी को छत्तीसगढ़ के चुनाव में किसी बहाने चर्चा में लाया जाए?
विधायक का वायरल ऑडियो
दूसरी सूची के लिए दिल्ली में हुई कांग्रेस की बैठक के पहले कई विधायकों को इसका आभास भी हो चुका था कि उनकी टिकट खतरे में है। यह एक दिलचस्प मोड़ है। लोगों ने नजर गड़ा रखी है कि टिकट से वंचित विधायक पार्टी के आदेश को मानकर खामोश बैठ जाएंगे या फिर बगावत करेंगे। एक दो दिन में सब साफ होने वाला है। ऐसे में एक ऑडियो वायरल हुआ है जो कथित तौर पर मनेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल और एक कार्यकर्ता के बीच की बातचीत है। इसमें विधायक कह रहे हैं कि उन्हें टिकट नहीं मिल रही है। डॉ. जायसवाल कार्यकर्ता से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की टिकट पर चुनाव लडऩे के बारे में सलाह ले रहे हैं और कार्यकर्ता उन्हें वोटों का गणित समझा कर बता रहा है कि वे किस तरह से गोंडवाना की टिकट पर जीत सकते हैं। ऑडियो वायरल होने पर डॉ. जायसवाल ने सफाई दी है कि यह फर्जी है। जिस वक्त उनकी प्रतिक्रिया आई है, कांग्रेस की सूची जारी नहीं हुई है। उनका कहना है कि अभी तो टिकट फाइनल नहीं हुई। आगे जो कुछ भी होता है, मीडिया के माध्यम से मैं सार्वजनिक करूंगा। हालांकि विधायक ने यह नहीं कहा कि पार्टी का जो निर्णय होगा मानेंगे और टिकट कट जाने पर भी कांग्रेस के लिए काम करेंगे।
जीएसटी गंगाजल की डिलीवरी पर
छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि हिंदुओं के लिए पवित्र गंगाजल को केंद्र की भाजपा सरकार ने कमाई का साधन बना लिया है और इस पर जीएसटी लगाया जा रहा है, तो भाजपा ने कांग्रेस पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स एंड कस्टम (सीबीआईसी) की ओर से सोशल मीडिया पर बयान जारी कर कहा गया कि गंगाजल सहित किसी भी पूजा सामग्री में टैक्स नहीं लगता। पहले से ही इस पर जीएसटी कौंसिल की बैठक में निर्णय लिया जा चुका है।
गंगाजल की देशभर में आपूर्ति का काम डाक विभाग ने बीते वर्षों से शुरू किया है। जिन लोगों ने डाक से कभी गंगाजल मंगाया नहीं, उनको यह समझ में नहीं आ रहा कि कांग्रेस सही है या केंद्र सरकार। कांग्रेस नेत्री अलका लांबा की पोस्ट से यह साफ होता है कि गंगाजल पर तो कोई टैक्स नहीं है पर पोस्टल चार्ज पर 18 प्रतिशत जीएसटी देना होता है, यह चार्ज डाक विभाग की ओर से किया जाता है। इसका मतलब यह है कि डाक खर्च और गंगाजल के कुल खर्च में जीएसटी का एक हिस्सा जुड़ा तो है, पर वह कांग्रेस की मानें तो गंगाजल पर है, भाजपा की मानें तो डिलीवरी पर।
चुनाव के बीच संगठन में बदलाव
चुनाव के बीच भाजपा ने धमतरी जिला संगठन में छोटा सा बदलाव किया है। जिला महामंत्री कविन्द्र जैन को महामंत्री पद से हटाकर उपाध्यक्ष बनाया है। अविनाश दुबे को महामंत्री का दायित्व सौंपा गया है। चर्चा है कि पार्टी के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर की नाराजगी के चलते बदलाव हुआ है।
सुनते हैं कि जिला संगठन ने टिकट वितरण से पहले प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, और अन्य प्रमुख पदाधिकारियों को सुझाव दिया था कि कुरूद से साहू समाज से प्रत्याशी उतारा जाना चाहिए। पार्टी चाहे तो धमतरी विधायक रंजना साहू को कुरूद शिफ्ट कर सकती है। साथ ही यह भी सुझाया था कि धमतरी से सामान्य वर्ग से प्रत्याशी तय कर सकती है।
दिग्गज नेता अजय चंद्राकर के लिए सुझाव यह था कि उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। जिले के प्रस्ताव पर पार्टी नेताओं ने विमर्श भी किया था, लेकिन बात छनकर अजय, और रंजना तक पहुंची, तो दोनों नाराज हो गए। अजय और रंजना को प्रत्याशी बनाने की घोषणा के बाद महामंत्री कविन्द्र जैन को बदल दिया गया। चुनाव का समय है इसलिए महामंत्री पद पर चंद्राकर की पसंद से नई नियुक्ति की गई, और जैन को उपाध्यक्ष बनाकर संतुष्ट किया गया।
चुनाव आयोग की किफायत
वैसे से चुनाव कराना बहुत ही कठिन कार्य है। इसमें निष्पक्ष होने के साथ पारदर्शिता भी आवश्यक है। प्रत्याशियों की पाई-पाई के खर्च का ब्यौरा पूछने वाला चुनाव आयोग अपने खर्चे पर कैसे पारदर्शिता रखता होगा। चुनाव कराने के लिए निर्वाचन आयोग को करोड़ों रुपए का बजट मिलता है, जिसमें से बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के मानदेय पर देना होता है, लेकिन उसके पहले कई आवश्यक खर्चे होते हैं जैसे वाहन, वीडियोग्राफी, सीसीटीवी कैमरा, पंडाल इत्यादि। चुनाव में इनका ठेका लेने वाले जानते हैं कि चुनाव का पैसा कब मिलेगा, इसका भगवान ही मालिक होते हैं। लिहाजा वे बिल तीन-चार गुना बनाते हैं।
लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में आयोग ने ये सारे ठेके सेंट्रलाइज्ड करवा दिये थे। राजधानी से ठेकेदार तय किये गए थे, उन्हें जिले में जाकर काम करना था।
अब नए अधिकारी के जिम्मे यह कार्य है। उनकी तासीर अलग तरह की है। उन्होंने एकमुश्त ठेका देने के बजाय जिला कलेक्टरों को बजट का आबंटन कर दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि जिस वीडियोग्राफी के लिए पिछली बार हर विधानसभा में 20 लाख खर्च हुए थे, वह काम अब महज चार लाख रुपए में हो रहा है। सीसीटीवी का ठेका सेंट्रलाइज्ड करने पर एक जिले में दो करोड़ में दिया गया था, वह इस बार केवल 24 लाख रुपए में पूरा हो जा रहा है। निर्वाचन आयोग की खर्च में पारदर्शिता से उम्मीद की जा रही है कि चुनाव में भी पारदर्शिता बनी रहेगी।
पीएससी विवाद अब घर के भीतर
पीएससी और विवाद दोनों एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं कहना संस्था को अपमानित करना नहीं होगा। पीएससी में भर्ती तो चल ही रहा था, कि अब एक नया पदभार विवाद भी सामने आया है। विवादास्पद अध्यक्ष के बाद सरकार ने एक वर्तमान सदस्य को अध्यक्ष का अधिकार दिया गया है । और उनके साथ एक सदस्य को नियुक्त किया गया है। दोनों ने नियुक्ति के अगले ही दिन अपनी अपनी कुर्सी संभाल ली। और एक सदस्य ने तो बकायदा पोस्टिंग,प्रमोशन कमेटी की बैठक कर ली। कुछ फैसले भी ले लिए। अब ये फैसले पाक साफ हैं या विवादास्पद, यह तो वक्त बताएगा।
बात यहीं खत्म नहीं हो रही। दरअसल पीएससी परिसर में चर्चा है कि सरकार के आदेश से पहले दोनों ने पदभार लिया या इनके पदभार लेने के बाद सरकार ने नियुक्ति की। अध्यक्ष, सदस्य ने सात अक्टूबर को पदभार लिया और सामान्य प्रशासन विभाग ने इनकी नियुक्ति का आदेश पांच दिन बाद 12 अक्टूबर को आदेश जारी किया। अब देखना यह है कि किसी ने यदि चुनौती दे दी तो सरकार और पीएससी इसे जस्टिफाई कैसे करेगा।
फिर बगावत, भितरघात की राह पर ?
अब से सात-आठ माह पहले जब कांग्रेस ने अपने विधायकों के कामकाज की समीक्षा की तो यह जाहिर किया कि दो चार को छोडक़र शेष की रिपोर्ट ठीक-ठाक है। समय नजदीक आते-आते यह साफ हो गया कि असल सर्वे रिपोर्ट कुछ अलग है, जिसके अनुसार कुछ मंत्रियों सहित 30-35 विधायकों की टिकट काटी जाएगी। पहली सूची में 30 में से 8 विधायकों को टिकट नहीं दी गई। हालांकि इनमें से एक सीट दंतेवाड़ा है, जहां से देवती कर्मा की जगह उनके बेटे को मैदान में उतारा गया है।
मौजूदा विधायकों, सांसदों की टिकट काटने जैसा ‘साहसिक’ फैसला पहले से भाजपा लेती रही है। गुजरात, उत्तरप्रदेश और कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में उसने यह प्रयोग किया था, जो कर्नाटक छोडक़र बाकी दोनों राज्यों में सफल रहा। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ से उसने सभी प्रत्याशी नये दिए, यह भी सफल रहा। इस चुनाव में भाजपा ने यहां वैसा निर्मम फैसला नहीं लिया। सन् 2018 के चुनाव में जिन मंत्रियों को हार की वजह मानकर कार्यकर्ता चल रहे थे उन्हें भी उदारता के साथ टिकट दी है। टिकट वितरण का भाजपा में विरोध कम नहीं हो रहा है। जशपुर से रायमुणि भगत को टिकट देने के विरोध में तो पूर्व मंत्री गणेशराम भगत के समर्थक राजधानी आकर पार्टी कार्यालय के सामने राशन पानी लेकर धरने में बैठ गए। करीब दर्जन भर सीटों पर कार्यकर्ता सडक़ों पर आये।
वहीं कांग्रेस में जिनकी टिकट कटने की आशंका थी, उनमें तीन से चार मंत्री भी थे। यह जानते हुए भी सीट खतरे में आ सकती है, पार्टी ने किसी की टिकट नहीं काटी। एक मंत्री गुरु रुद्र कुमार की सिर्फ सीट बदली। कुछ लोगों को लग रहा है कि विधायकों की टिकट काटने का फैसला सुविधा के अनुसार लिया गया। टिकट फाइनल करने वाले सदस्यों की निजी राय का असर इसमें दिख रहा है। सन् 2018 के चुनाव में 27 हजार से अधिक मतों से जीत हासिल करने वाली खुज्जी विधायक छन्नी साहू की टिकट काटी गई है, जबकि 26 सौ वोट से जीतने वाले चंदन कश्यप की टिकट बरकरार रखी गई है। करीब 18 हजार मतों से जीतने वाले राजमन बेंजाम की भी टिकट बीजापुर से कट गई है। यहां से प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज मैदान में उतारे गए हैं।
2003, 2008 और 2013 के चुनावों में भितरघात और बागी उम्मीदवारों की वजह से नुकसान नहीं होता, तो वह शायद पहले ही सत्ता में वापस आ चुकी होती। सन् 2018 में एंटी इनकमबेंसी के अलावा कांग्रेस की यह बात भी खूब प्रचारित हुई थी कि जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे), भाजपा की ‘बी’ टीम है। पूरी कांग्रेस किसी सूरत में सत्ता में वापस के लिए सन् 2018 में एकजुट थी।
मगर, 2023 में वह एक बार फिर बगावत और भितरघात का सामना कर सकती है। इसकी शुरूआत भी हो चुकी है। चित्रकोट विधायक राजमन बेंजाम के समर्थक टिकट कटने से नाराज हैं। बेंजाम ने भी कह दिया है कि समर्थकों की जिद के आगे उन्हें लडऩे के लिए मजबूर होना पड़ेगा। पहले चरण की कुछ सीटों पर असंतुष्टों ने फार्म खरीद रखे हैं। नामांकन के लिए अभी तीन दिन बाकी है। नाम वापसी के लिए भी वक्त मिलेगा। इस बीच काफी उठापटक, समझाने, मनाने का सिलसिला नजर आ सकता है।
किसको नुकसान पहुंचाएंगे वेदराम
आरंग विधानसभा क्षेत्र में इस बार दिलचस्प तस्वीर बन रही है। दो माह पहले कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए सतनामी समाज के धर्मगुरु बालदास के बेटे खुशवंत साहेब को भाजपा ने उम्मीदवार घोषित कर दिया है। यहां पर उनका मुकाबला मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया से होने वाला है। मगर, इसी सीट पर वेदराम मनहरे भी भाजपा की टिकट चाहते थे। सन् 2018 के चुनाव में खुशवंत साहेब और वेदराम मनहरे ने कांग्रेस प्रत्याशी डहरिया का साथ दिया था। करीब 25 हजार मतों से डहरिया की जीत हुई थी। कांग्रेस में रहते हुए ही वेदराम दो बार तिल्दा से जनपद अध्यक्ष पद संभाल चुके हैं। सतनामी समाज के संरक्षक भी हैं। उन्हें उम्मीद थी कि डहरिया की जीत में जी जान से मेहनत करने का पार्टी उन्हें कोई पुरस्कार देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दो साल पहले सितंबर 2021 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा की सदस्यता ले ली। पार्टी में प्रवेश तत्कालीन प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी ने खुद कराया था। कुछ दिन बाद उन्हें दिल्ली बुलाया गया और राष्ट्रीय नशा मुक्ति आंदोलन का छत्तीसगढ़ प्रभारी बनाया गया। प्रदेश के सतनामी समाज में गुरु बालदास के प्रभाव को देखते हुए उनके बेटे खुशवंत साहेब को भाजपा ने आरंग से टिकट दी है। पर वेदराम ने अपने समर्थकों के साथ बगावत कर दी है। कुछ दिन पहले काफी संख्या में कार्यकर्ता पैदल रायपुर पहुंचे थे। भाजपा कार्यालय में उन्होंने वेदराम को ही प्रत्याशी बनाने की मांग की। मगर भाजपा ने एक भी प्रत्याशी नहीं बदला है। अब वेदराम ने निर्दलीय लडऩे का ऐलान कर दिया है। वे जगह-जगह सभायें ले रहे हैं, जिनमें भीड़ भी आ रही है। जानकार बता रहे हैं कि वेदराम आरंग में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति पैदा कर सकते हैं। हालांकि यह कोई यह बताने की स्थिति में नहीं है कि वे किसका वोट काटेंगे। बरसों कांग्रेस में रहे, पिछले चुनाव में डहरिया को उनसे मदद मिली है और इधर दो साल के भीतर उन्होंने भाजपा में भी जगह बना ली थी।
यह तस्वीर पंडरी रोड शराब दुकान की है। जहां के सेल्समेन कहना है कि शराबी काउंटर में आते ही जेबकटी की शिकायत करने लगते हैं। पूछने पर बताया कि पैसे कम पडऩे पर शराबी ही एक दूसरे का जेब साफ कर रहे।
पत्ते फूल से बागी !
भाजपा में टिकट की घोषणा के बाद असंतोष थमने का नाम नहीं ले रहा है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद यहां आए, तो एक पूर्व आईएएस, और टिकट के दावेदार रहे नेताओं ने उनसे मिलकर प्रत्याशी चयन पर नाराजगी जताई। टिकट नहीं मिलने पर एक प्रभावशाली नेता के समर्थकों ने बकायदा ऑडियो संदेश तैयार करवा लिया है, और अपने समाज के लोगों को भाजपा के खिलाफ वोट करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। एक चर्चा यह भी है कि समाज विशेष के करीब दो हजार लोग चुनाव के बीच में धार्मिक पर्यटन पर निकल रहे हैं। टिकट कन्फर्म होने का दावा किया जा रहा है। इससे चुनाव नतीजों पर क्या फर्क पड़ेगा, इस पर भी चर्चा चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।
पंजे की उंगलियाँ झाड़ू थामने की ओर
कांग्रेस की पहली सूची में 8 विधायकों का पत्ता साफ हो गया है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि करीब 18-20 विधायकों की टिकट कट सकती है। टिकट को लेकर सशंकित कुछ विधायक दिल्ली में जमे हुए हैं, और एक-दो तो आम आदमी पार्टी, और अन्य दल के संपर्क में भी आ चुके हैं।
संभावना जताई जा रही है कि जिन विधायकों की टिकट कट चुकी है अथवा कटने जा रही है, उनमें से कई पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। जिन आठ विधायकों की टिकट कटी है, उनमें से एक ने तो पार्टी छोडक़र चुनाव मैदान में उतरने का मन बना लिया है। एक अन्य ने तो समर्थकों को चुनाव प्रचार से जुट जाने के लिए कह दिया है। ये विधायक पहले भी निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरकर अपना दम दिखा चुके हैं। इस बार तैयारी पहले से ज्यादा है। कितने विधायक बागी होते हैं, यह तो नाम वापसी के बाद पता चलेगा।
आप, जोगी और नेताम की नजर
प्रथम चरण की सीटों के लिए नामांकन दाखिल हो रहे हैं। इस बीच पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम, आम आदमी पार्टी, और जोगी पार्टी की नजर कांग्रेस व भाजपा के असंतुष्ट नेताओं पर है। नेताम ने तो अपने दल के प्रत्याशियों की सूची सिर्फ इसलिए जारी नहीं की है कि कांग्रेस से निराश वजनदार नेता साथ आ सकते हैं। ऐसे मजबूत नेताओं को वो प्रत्याशी बनाने की सोच रहे हैं।
आम आदमी पार्टी ने दो सूची जारी कर दी है, लेकिन कई सीटों पर नाम घोषित नहीं किए हैं। उनकी भाजपा, और कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं पर नजर है। जबकि जोगी पार्टी के मुखिया अमित जोगी तो कह चुके हैं कि दोनों ही पार्टी के कई प्रमुख नेता उनके संपर्क में हैं। यानी असंतुष्टों के लिए दूकानें खुली हुई है।
फर्जीवाड़ा और चुनाव ड्यूटी
ऐसे कर्मचारी जिनके खिलाफ नौकरी हासिल करने के लिए फर्जीवाड़ा करने का आरोप है, वे चुनाव ड्यूटी क्या निष्पक्ष तरीके से करेंगे? यह सवाल उठा है धमतरी जिले के मगरलोड से। करीब 12 साल पहले यहां शिक्षाकर्मी भर्ती में फर्जीवाड़ा की शिकायत हुई थी। मामला उजागर होने के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी, तत्कालीन एक जनपद सीईओ को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था। पर उसके बाद किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। न तो पुलिस जांच बढ़ी. न विभाग ने रुचि ली। स्थिति यह है कि जिन 102 शिक्षाकर्मियों पर फर्जी दस्तावेजों के जरिये नौकरी हासिल करने का आरोप है, वे अब भी सेवा दे रहे हैं, शासन से वेतन ले रहे हैं। कुछ का तो प्रमोशन भी हो गया है। यह जानकारी सामने आई है कि अभी के चुनाव में उन्हें फिर ड्यूटी पर लिया गया है, 2018 में भी लिया गया था। जिस आरटीआई कार्यकर्ता ने इस फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ किया था, उसने जिला निर्वाचन अधिकारी और एसपी से मांग की है कि 12 साल में जांच तो पूरी हुई नहीं, कम से कम इन्हें चुनाव से अलग रखा जाये, वरना अपनी नौकरी बचाने के लिए वे दबाव में काम कर सकते हैं। देखें, प्रशासन इस पर क्या निर्णय लेता है।
सीएम के दावेदार सांसद चेहरे
सांसदों का विधानसभा चुनाव लडऩा, मोर्चे पर सेनापतियों का खुद युद्ध में कूद जाने जैसा है। भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा तय नहीं किया, लेकिन मतदाताओं को खुशफहमी में रखने का पूरा मौका दिया है। अन्य पिछड़ा वर्ग में छत्तीसगढ़ के दो समाज, कुर्मी और साहू वजन रखते हैं। कुर्मी समाज को लग सकता है कि पाटन में विजय बघेल मुख्यमंत्री को हरा देंगे तो फिर सीएम पद के वे ही दावेदार होंगे। इधर साहू समाज से अरुण साव भी लोरमी से मैदान में हैं। यदि भाजपा की ज्यादा सीटें आईं तो साहू समाज उनको मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहेगा। यह जरूर माना जा सकता है कि बीते कई चुनावों में चुनौती बनती आई पत्थलगांव सीट से सांसद गोमती साय को टिकट इसलिए दी गई हो कि वह कांग्रेस को मजबूती से टक्कर दे सके, लेकिन कोरिया जिले की भरतपुर-सोनहत सीट से केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह को टिकट देने का संदेश यह माना जा सकता है कि बहुमत मिलने पर आदिवासी मुख्यमंत्री भी भाजपा तय कर सकती है। इन सबको लेकर कोई सहमति नहीं बनती है तो फिर डॉ. रमन सिंह तो मैदान में हैं ही।
कांग्रेस ने अपने दो में से एक सांसद दीपक बैज को मैदान में उतारा है। वे सीएम के रेस में शायद न रहें, पर उतरने की वजह बैज खुद बता चुके हैं- मेरे लडऩे से आसपास की तीन-चार सीटों पर फायदा मिलेगा। वैसे लोगों का कहना है कि बैज की महत्वाकांक्षाएँ ख़ासी बड़ी हैं।
अपील की जमीनी हकीकत..
जिलों में प्रशासन चुनाव की तैयारियों के साथ-साथ मतदाताओं को वोट देने के लिए जागरूक करने का अभियान भी चला रहा है। वोट किस बात पर देना है, किस पर नहीं-यह भी समझाया जा रहा है। अब इसे देखिये, धमतरी में चलाए गए स्वीप अभियान के तहत राह चलते मतदाताओं को तख्तियां पकड़ाकर फोटो खींची गई है। एक तख्ती पर लिखा है-जाति पर न धर्म पर, बटन दबेगा कर्म पर। अब मतदाता इस सीख पर अमल करना चाहे तो वह कर्म वाला प्रत्याशी ढूंढता रह जाएगा। जिन दलों के बीच मुख्य मुकाबला है, उन्होंने उम्मीदवार तय करते समय जाति को तो बड़ा आधार बनाया ही है, कई सीटों पर धर्म ने भी भूमिका निभाई है। जिला प्रशासन जाने-अनजाने तीसरे दलों को या नोटा में वोट देने की अपील तो नहीं कर रहा? ([email protected])
पार्टी में नाराज का क्या इलाज?
भाजपा के वरिष्ठ नेता, यहां तक कि प्रदेश प्रभारी भी इन दिनों परंपरागत समस्या से जूझ रहे हैं। अब काम करना है तो सुनना ही पड़ेगा। यह समस्या 85 की सूची जारी होने के बाद से बढ़ गई है। टिकट से चुके जिस दावेदार को चुनावी कार्य के सिलसिले में ठाकरे परिसर या एकात्म परिसर बुलाओ,पहले तो वह दो घंटे बाद आएगा। और आया तो दो घंटे का लेक्चर पिलाएगा। यह कहते हुए कि जिसे टिकट दी गई वो कितना सक्रिय रहा, मैं कितना, यह देख से। 20-30-40 से संगठन में सक्रिय हूं पार्टी ने मुझे क्या दिया। पार्षद की टिकट भी नहीं दी आदि-आदि। बड़े नेताओं को सुनना पड़ता है। मन रखने बोल भी देते हैं मैने तो पैनल में रखा था, लेकिन डॉ.साहब,प्रदेश अध्यक्ष, संगठन के फलां,ढिंका नहीं चाहते थे। बहुत मुश्किल से ऐसे लोगों का मन एकात्म हो पाता। ठीक है भाई साब,आप कह रहे हैं तो काम करता हूं वर्ना...! इसके बाद कार्यालय से जो निकले फिर नहीं आते। ऐसी ही समस्या या तोड़ कांग्रेस के राष्ट्रीय मुख्यालय ने निकाला है। कुछ हद तक पीसीसी ने भी अपनाया है। यानी पार्टी दफ्तर में वैतनिक कर्मचारी (पेड एंप्लाई) नियुक्त हैं। भाजपा को भी अनुसरण करना चाहिए।
शेर के सामने सोच समझकर बकरी
लगता है भाजपा इस चुनाव को हिंदुत्व के मुद्दे पर लडऩा चाहती है। तभी तो कांग्रेस सरकार के कद्दावर मंत्री के सामने बहुत सामान्य प्रत्याशी ईश्वर साहू को उतार दिया है, जिसका कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है। उसकी पहचान इतनी ही है कि वह बिरनपुर घटना में मारे गए भुनेश्वर साहू का पिता है।
ऐसे में कहा जा रहा है शेर के सामने बकरी को बांध दिया है। जब चैनलों के पत्रकारों ने प्रत्याशी ईश्वर साहू से यह सवाल पूछा तो उसने बड़ी सहजता से पत्रकारों को ही निरुत्तर कर दिया। उसने कहा कि शेर के सामने बकरी को चरवाहा तभी बांधता है, जब उसे पिंजरे में पकडऩा होता है। चरवाहा चतुर होता है, कमजोर देखकर शेर लालच में आ जाता है। हमारे चरवाहा ने भी रणनीति बनाई है।
घोषणा पत्र में अपने भविष्य का ख्याल
बात 2013 के चुनाव की है। झीरम घाटी की घटना के बाद कांग्रेस में नेतृत्व का संकट था, तब घोषणा पत्र बनाने की जिम्मेदारी एक कद्दावर नेता की मिली थी, जो अल्पसंख्यक हैं। जब सारे देश में ध्रुवीकरण का माहौल बन रहा था, तब उन्हें अपनी हार का आभास हो गया था। लिहाजा भविष्य में मंत्री पद पाने के लिये बैकडोर एंट्री का इंतजाम एमएलसी के रूप में कर लिया था।
उस समय उन्होंने एक घोषणा शामिल की थी, प्रदेश में विधान परिषद बनाने का। यह मुद्दा जनता की ओर से नहीं आया था और न ही इसकी कभी आवाज उठी थी। नेताजी ने इसे प्रमुखता से शामिल करा लिया। कुछ बड़े नेता इससे नाखुश थे, पर कुछ नहीं कर पाए। खैर कांग्रेस की सरकार ही नहीं बनी और विधान परिषद भी नहीं।
अगली बार राजा साहब को घोषणा पत्र बनाने की जिम्मेदारी मिली, उन्होंने विधान परिषद को घोषणा पत्र में कोई महत्व नहीं दिया। अब इस बार का चुनाव आ गया है और अल्पसंख्यक नेता पावरफुल मंत्री हैं, उन्हें फिर से घोषणा पत्र बनाने का जिम्मा दे दिया गया है। अब फिर से बिना किसी मांग के विधान परिषद घोषणा पत्र में शामिल हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
सरकारें अलग, आरोप एक जैसे...
राज्य में भू-माफिया, शराब माफिया, रेत माफिया, यहां तक कि शिक्षा माफिया को पनपने दिया जा रहा है। परीक्षाएं समय पर नहीं होती हैं, परिणामों में देरी होती है, अनगिनत घोटाले हो रहे हैं। व्यापमं, शिक्षक, पुलिस, नर्सिंग, पटवारी, कांस्टेबल के पद 8 लाख से 15 लाख रुपये में बेचे गए हैं।
उपरोक्त पंक्तियों से हमें लगेगा कि यह भाजपा का छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ आरोप है। मगर, यह कांग्रेस का आरोप है, मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार पर। वहां कांग्रेस की प्रवक्ता शोभा ओझा ने भर्तियों में गड़बड़ी और बेरोजगारों से छलावे के कई गंभीर आरोप एक प्रेस कांफ्रेंस में लगाए।
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश दोनों ही जगह पर कांग्रेस और भाजपा हमेशा की तरह आमने-सामने हैं। मगर, दोनों के खिलाफ आरोप एक जैसे हैं। कहने का मतलब यह है कि भ्रष्टाचार विपक्ष में रहते हुए ही दिखाई देता है। सरकार में बने रहने पर आरोप निराधार लगते हैं।
बस्तर की एक पारंपरिक बाड़
इसका चलन अब कम हो गया है। नाम है- अडग़ेड़ा। अड़ यानी कि आड़ा और गेड़ा यानी कि मोटा डंडा। जोहार एथनिक रिसोर्ट कोण्डागांव में इसे प्रदर्शित किया गया है, जहां से तस्वीर ली है अशोक कुमार नेताम ने। इसे अब भी कुछ मुरिया जनजाति के घरों के आंगन पर देखा जा सकता है। दोनों खंभों में बराबर ऊंचाई पर लगभग 5 से.मी. व्यास के गोल छेद बने होते हैं। छेद की संख्या 5 या 6 होती है। दोनों खंभों के मध्य गेड़ा यानी कि मोटा डंडा फंसाकर गेट बंद किया जाता है। गेट खोलते समय गेड़ा को किनारे सरका दिया जाता है। बस्तर के छेरछेरा पर्व में इससे संबंधित एक गीत भी गया जाता है।
छठ पूजा और मतदान
राज्य के कई जिलों में भोजपुरी समाज के लोग बड़ी संख्या में हैं। इनमें से कई परिवारों का पैतृक निवास बिहार और यूपी के गांवों में है। छत्तीसगढ़ से इस मौके पर बिहार-यूपी जाने वालों की संख्या इतनी अधिक है कि रेलवे को स्पेशल ट्रेन भी चलानी पड़ती है। जो लोग नहीं जाते, वे यहां खरना के दिन से उपवास शुरू करते हैं, जो करीब 36 घंटे चलता है। इस बार खरना 17 नवंबर को है और इसी दिन राज्य में दूसरे चरण का मतदान भी होना है। ऐसे में भोजपुरी समाज की ओर से मतदान की तिथि बदलने की मांग उठने लगी है। बिलासपुर के अरपा नदी में एक बड़ा छठ घाट है, जहां हजारों भोजपुरी समाज के लोग त्यौहार मनाने के लिए एकत्र होते हैं। भिलाई, रायगढ़, खरसिया, अंबिकापुर, कोरिया आदि के औद्योगिक क्षेत्रों में भी ये बड़ी संख्या में निवासरत हैं। अब इन्हें चिंता सता रही है कि उपवास रहते हुए वे पूजा-पाठ करें या मतदान के लिए कतार में लगें। उनकी ओर से मांग उठ रही है कि मतदान की तारीख बदली जाये।
23 नवंबर को एकादशी है। इस दिन राजस्थान में बड़ी तादात में विवाह होते हैं। इसे देखते हुए वहां मतदान की तारीख चुनाव आयोग ने दो दिन आगे बढ़ाकर 25 नवंबर कर दी है। एक बार चुनाव की तारीखें घोषित होने के बाद आयोग प्राय: उसमें फेरबदल नहीं करता। पर राजस्थान के मामले में उसे रिपोर्ट मिली कि विवाह के कारण प्रशासन को वाहनों और कर्मचारियों की व्यवस्था करने में भी दिक्कत आ सकती है। छत्तीसगढ़ में देखना होगा कि आयोग क्या निर्णय लेता है।
भाजपा प्रत्याशियों के बाद अब तक का बड़ा प्रदर्शन ठाकरे परिसर में देखने को मिला है। जशपुर से रायमुनी भगत को बदलने पूर्व मंत्री गणेश राम भगत के समर्थन में राशन पानी लेकर कार्यकर्ता डेरा जमा चुके हैं। गणेश राम इतने व्यथित हैं कि रायमुनी का नाम घोषित होते ही अपने आंसु नहीं रोक पाए।
बाफना राजस्थान निकल गए
टिकट वितरण के बाद बागियों को मनाने में भाजपा के दिग्गज नेताओं को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, और नितिन नबीन दो दिन पार्टी दफ्तर में डटे रहे, और सुबह से शाम तक टिकट कटने से नाराज नेताओं को मनाने की कोशिश करते रहे। उन्हें थोड़ी बहुत सफलता भी मिली है, लेकिन ज्यादातर नेता अब भी नाराज बताए जा रहे हैं।
जगदलपुर के पूर्व विधायक संतोष बाफना को माथुर ने बुलाया, और अधिकृत प्रत्याशी किरण देव के पक्ष में काम करने की समझाइश दी। मगर बाफना ने साफ तौर पर कह दिया कि वो किसी भी दशा में जगदलपुर में काम नहीं करेंगे। उन्होंने कहा बताते हैं कि वो राजस्थान जा रहे हैं, और लौटने के बाद अगर पार्टी चाहे तो किसी दूसरी सीट पर प्रचार का जिम्मा दे सकती है।
माथुर ज्यादा कुछ जोर नहीं दे सके, और फिर बाफना राजस्थान निकल गए। मगर दंतेवाड़ा से दिवंगत भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी मंडावी को मनाने में माथुर सफल रहे, लेकिन आरंग, बालोद, और रायपुर की सीटों पर प्रत्याशी की घोषणा के बाद जो असंतोष फैला है, वह कम होने का नाम नहीं ले रहा है। यह साफ है कि बागी नहीं माने, तो चुनाव में दिक्कत हो सकती है।
सिंधी-गुजराती समाज
भाजपा में सिंधी, और गुजराती समाज से प्रत्याशी तय नहीं हुए हैं। कांग्रेस में तो वैसे भी दोनों समाजों के लिए गुंजाइश काफी कम दिख रही है। इन चर्चाओं के बीच एक खबर यह है कि दोनों समाज के प्रमुख नेता, रायपुर की चारों में से एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रहे हैं। दोनों समाज के लोग आर्थिक रूप से सक्षम भी हैं, और एक पूर्व विधायक को इसके लिए तैयार करने की कोशिश हो रही है। पूर्व विधायक ने तो फिलहाल मना कर दिया है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस टिकट की अधिकृत घोषणा के बाद दोनों समाज मिलकर कोई ठोस फैसला ले सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बाबा के खिलाफ कौन?
डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव इस बार कड़े मुकाबले में फंस सकते हैं। इसके लिए भाजपा रणनीति बना रही है। इससे पहले भाजपा अंबिकापुर को लेकर ज्यादा सीरियस नहीं रही है। भाजयुमो के प्रभारी अनुराग सिंहदेव ने पहली बार तो टीएस को कड़ी टक्कर दी थी। बाद में उनकी खुद की स्थिति खराब हो गई। इसके बाद के चुनाव में उनके हार का अंतर बढ़ गया।
पिछले चुनाव में विरोध के बाद भी अनुराग को फिर टिकट दे दी गई, और टीएस रिकॉर्ड वोटों से जीत गए। पार्टी के कई लोग टिकट तय करने वाली कोर टीम के सदस्यों पर टीएस से मिलीभगत के आरोप भी लगाते रहे हैं। मगर इस बार आरोपों से बचने के लिए ऐसे प्रत्याशी की तलाश हो रही है, जो सिंहदेव को कड़ी टक्कर दे सके।
कोर टीम के साथ दिक्कत यह है कि अंबिकापुर शहर के ज्यादातर नेताओं के टीएस से घनिष्ठता है। ऐसे में कांग्रेस से आए दो प्रमुख नेता आलोक दुबे, और राजेश अग्रवाल पर नजरें टिकी है। आलोक, टीएस की जमीन के मामले पर शिकायतकर्ता हैं, और लड़ाई लड़ रहे हैं। इन सबको देखकर पार्टी उन्हें उम्मीदवार बना सकती है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
हटाए गए अफसरों का नुकसान
यूं तो लोकतंत्र के सबसे बड़े त्यौहार चुनाव में वोट डालना बड़े गर्व कारी माना जाता है आजकल तो वोट डालने को इवेंट की तरह प्रचारित भी किया जा रहा है। उसमें किसी अधिकारी कर्मचारी को चुना कराने का अवसर बीएलओ, सेक्टर प्रभारी, एआरओ और डीआरओ के रूप में मिले तो वह शान से कह सकता है कि इस सरकार या मंत्री, मुख्यमंत्री, विधायक के निर्वाचन में मेरी भूमिका रही है।
यह भूमिका इसलिए कि आयोग ने जिन प्रशासनिक और पुलिस अफसरों को हटाया है वे अब कभी चुनाव संबंधी काम नहीं कर जाएंगे। आयोग उनकी ड्यूटी नहीं लगाएगा। हालांकि प्रशासनिक अफसर हमेशा कलेक्टर नहीं रहेंगे। वे पदोन्नत होकर महानदी, इंद्रावती भवन में बैठेंगे। सो सचिवों की ड्यूटी तो लगती नहीं। लेकिन उन्हें दीगर राज्यों में पर्यवेक्षक भी नहीं बनाया जाता है। और कभी राज्य के सीईओ बनाने का अवसर आया तो आयोग के पैनल भी नाम नहीं होगा। सबसे बड़ा नुकसान पुलिस अफसरों को होगा। वे किसी भी चुनावी कार्य में कभी तैनात नहीं किए जाएंगे। बस मन को तसल्ली होगी कि चलो बचे रहे चुनाव ड्यूटी नहीं लगी।
क्या फिर बगावत करेंगे चोपड़ा?
महासमुंद से सन् 2013 में निर्दलीय विधायक चुने गए डॉ. विमल चोपड़ा बाद में अपनी पार्टी भाजपा में वापस आ गए थे। सन् 2018 में भी वे निर्दलीय लड़े, लेकिन केवल 21 हजार वोट हासिल कर पाए। कांग्रेस प्रत्याशी विनोद चंद्राकर ने भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार को 23 हजार से अधिक वोटों से हराया। चुनाव 2023 में भाजपा ने पार्टी के जिला उपाध्यक्ष योगेश्वर राजू सिन्हा को मैदान में उतारा है। डॉ. चोपड़ा के समर्थक पार्टी के इस फैसले से निराश हैं। उन्होंने चोपड़ा से मिलकर उनसे निर्दलीय चुनाव लडऩे का आग्रह किया है। चोपड़ा ने कोई निर्णय नहीं लिया है। सन् 2018 के आंकड़ों से पता चलता है कि यदि चोपड़ा के वोट भाजपा को मिल जाते तो कांग्रेस उम्मीदवार को शिकस्त देने की स्थिति बन जाती। यदि वे इस बार फिर निर्दलीय उतरते हैं तो भाजपा को यह सीट हासिल करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी। वैसे यह कोई कारण नहीं हो सकता कि चोपड़ा ने पिछली बार भाजपा को नुकसान पहुंचाया, इसलिए उनके नाम पर विचार नहीं किया गया। बगल की बसना सीट से सन् 2018 में निर्दलीय लडऩे वाले संपत अग्रवाल को तो भाजपा ने इस बार अपनी टिकट से उतार ही दिया है। फर्क इतना है कि संपत अग्रवाल को करीब 50 हजार वोट मिले थे और निर्दलीय लडक़र उन्होंने भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। जबकि चोपड़ा पांचवे नंबर थे। भाजपा, जेसीसी प्रत्याशी और एक निर्दलीय मनोज साहू को उनसे अधिक वोट मिले थे।
मिलते-जुलते नाम वाला दल
मिलते-जुलते नाम वाले प्रत्याशी ही नहीं, इस बार पार्टियां भी मैदान में दिखने वाली हैं। जनता कांग्रेस पार्टी की ओर से कल 32 उम्मीदवारों की सूची जारी की गई तो लोगों को लगा कि यह स्व. अजीत जोगी की पार्टी के हैं। पर थोड़ी ही देर में प्रदेश अध्यक्ष पूर्व विधायक अमित जोगी का बयान आ गया कि उनकी कोई सूची जारी नहीं की गई है। जो सूची बताई जा रही है, वह फर्जी है। दरअसल, यह सही है कि यह जेसीसी की सूची नहीं है, पर फर्जी होने की बात में पेंच है। इस दल, जनता कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष संतोष सोनवानी का दावा है कि उनकी अलग पार्टी है। दस राज्यों में उनका संगठन है और डॉ. मेहताब रॉय इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। चुनाव आयोग में दल का पंजीयन भी है।
पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने जब दल का नाम जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) रखते हुए इसका ऐलान किया, तभी स्पष्ट किया था कि उन्हें आशंका है कि कुछ मिलते-जुलते नाम वाले दल मैदान में आ जाएंगे, इससे भ्रम होगा। इसलिए उन्होंने खास तौर पर अपने दल के नाम के साथ जोगी और छत्तीसगढ़ को जोड़ा है। फिलहाल दूसरी, तीसरी पार्टियों की तरह जेसीसी के किसी उम्मीदवार की घोषणा नहीं हुई है।
तीसरे दलों को कांग्रेस का इंतजार
भाजपा में कांग्रेस के मुकाबले बागी उम्मीदवार कम निकलते हैं। प्रदेश में पांच को छोडक़र बाकी सारी सीटों पर उम्मीदवार तय कर देने के बाद असंतोष तो देखने को मिला लेकिन किसी ने अब तक बगावत कर मैदान में उतरने की घोषणा नहीं की है। आगे हो सकता है। इधर कांग्रेस की सूची जारी नहीं हुई है। कल 15 अक्टूबर को एक साथ ज्यादातर सीटों के नाम आने की बात कही जा रही है। पर, कांग्रेस को छोड़ दें, आम आदमी पार्टी, सर्व आदिवासी समाज और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने भी नाम रोक रखे हैं। चर्चा यही है कि इन तीनों दलों को उम्मीद है कि कांग्रेस में टिकट की घोषणा होने के बाद बगावत कर मैदान में उतरने वाले कई लोग सामने आएंगे। इन असंतुष्टों पर तीसरे दलों की निगाह है। इनमें भी अगर कोई मौजूदा विधायक किसी तीसरे दल के हाथ लग जाए तो फिर तो बात जम जाएगी ! सुनने में तो यह भी आया है कि आम आदमी पार्टी ने भाजपा के टिकट वितरण के बाद कुछ दावेदारों को अपने चुनाव-चिन्ह पर उतरने का ऑफर दिया था, लेकिन बात नहीं बनी। जेसीसी (जे) के बारे में भी कहा जा रहा है कि वहां भी कांग्रेस की सूची का इंतजार हो रहा है। बसपा को परवाह नहीं रही, उसने अपनी उन सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं, जहां से उसे लडऩा है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कल छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। संभवत: वे कल सूची भी जारी करें। पूर्व के चुनावों में सपा ने कांग्रेस के कुछ बागियों को टिकट दी थी।
एक तस्वीर अपने शहर की
सोशल मीडिया पर इस तस्वीर को पोस्ट करते हुए एक आईपीएस ने लिखा- यह न्यूयार्क नहीं, अपना रायपुर शहर है। लोगों ने जवाब दिया, हमें न्यूयार्क लग भी नहीं रहा है। दूसरे ने कहा कि सर पर गमछा बांधकर बाइक चलाने वाले तो अपने रायपुर में ही मिलेंगे।
भारत जोड़ो से खुला रास्ता
चर्चा है कि कांग्रेस की तीन महिला नेत्रियों की टिकट के लिए हाईकमान रुचि ले रहा है। ये नेत्रियां राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में साथ थीं। और उनके साथ कन्याकुमारी से कश्मीर तक पैदल चलीं। इनमें से एक शशि सिंह प्रेमनगर से जिला पंचायत की सदस्य हैं। शशि, दिवंगत पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह की पुत्री हैं। खास बात यह है कि वो प्रेम नगर विधानसभा के मौजूदा भाजपा प्रत्याशी भुवन सिंह मरावी को हराकर ही जिला पंचायत की सदस्य चुनी गई हैं। जबकि दो अन्य कांति बंजारे, और आशिका कुजूर भी अपने इलाके में अच्छा प्रभाव रखती हैं।
कांति बंजारे जिला पंचायत की सदस्य रह चुकी हैं, और वो डोंगरगढ़ सीट से टिकट चाहती हैं। इसी तरह आशिका कुजूर का नाम जशपुर सीट से चर्चा में है। मगर दिक्कत यह है कि तीनों सीट पर पार्टी के ही विधायक हैं। प्रेमनगर से खेलसाय सिंह काफी सीनियर विधायक हैं। ऐसे में उनकी जगह शशि सिंह को एडजेस्ट करने में दिक्कत है। इसी तरह वो डोंगरगढ़ से भुवनेश्वर बघेल और जशपुर से विनय भगत विधायक हैं, और उनकी पुख्ता दावेदारी है। ऐसे में उनकी टिकट काटना आसान नहीं है। फिर भी सर्वे रिपोर्ट का अवलोकन किया जा रहा है, और तीनों महिलाओं के लिए रास्ता बनाने की कोशिश भी हो रही है। देखना है आगे क्या होता है।
कटघरे के विधायकों का क्या होगा?
चर्चा है कि कोल स्कैम में फंसे विधायक देवेन्द्र यादव, और चंद्रदेव राय की टिकट को लेकर कांग्रेस असमंजस में है। यादव और चंद्रदेव राय के खिलाफ ईडी ने चालान पेश कर दिया था, और उन्हें 25 अक्टूबर को ईडी की विशेष अदालत में पेश होना है। इससे पहले उन्हें जमानत भी लेनी होगी।
कहा जा रहा है कि दोनों विधायकों की टिकट को लेकर काफी चर्चा हुई है, और दोनों के मसले पर कानूनी राय ली गई है। एक चर्चा यह भी है कि देवेन्द्र की जगह उनकी पत्नी को पार्टी चुनाव मैदान में उतार सकती है। जबकि चंद्रदेव राय की जगह किसी अन्य दावेदार के नाम पर विचार हो सकता है। देखना है कि इस पूरे मामले में पार्टी क्या कुछ फैसला लेती है।
कभी खुशी कभी गम
खबर है कि कांग्रेस पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के खिलाफ जिला कांग्रेस अध्यक्ष भागवत साहू को प्रत्याशी बना सकती है। भागवत का नाम आते ही रमन सिंह समर्थक खुश हैं, और मान रहे हैं कि उन्हें बड़ी जीत हासिल होगी। भाजपा के रणनीतिकार रमन सिंह के खिलाफ करूणा शुक्ला जैसी कोई मजबूत प्रत्याशी की उम्मीद पाले हुए थे। जिन्होंने 2018 के चुनाव में रमन सिंह की राह काफी कठिन कर दी थी।
दूसरी तरफ, कांग्रेस के लोग भागवत साहू को मजबूत मान रहे हैं, और कहा जा रहा है कि इससे राजनांदगांव के ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस को अच्छा समर्थन मिलेगा। हालांकि कुलबीर छाबड़ा जैसे कई और दावेदार चर्चा में हैं। देखना है कि कांग्रेस 15 तारीख को किसके नाम पर मुहर लगाती है।
पुलिस हाईकोर्ट को दे देनी चाहिए
हाईकोर्ट की लगातार निगरानी की वजह से छत्तीसगढ़ के एक-दो बड़े शहरों में पुलिस दिखावे के लिए सडक़ों पर डीजे, लाउडस्पीकर, और शोर करने वाली मोटरसाइकिलों पर दिखावे की कुछ कार्रवाई कर रही है। लेकिन अदालत के आदेश के बावजूद ऐसे लोगों पर अदालत की अवमानना का कोई मामला नहीं बनाया जा रहा है। नतीजा यह होता है कि मामूली जुर्माना देकर लोग छूट जाते हैं, और दुबारा वैसी हरकत करने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती। क्या पुलिस को नियमों के तहत कार्रवाई न करने की कोई छूट हो सकती है क्या? जितने नियम तोड़े जा रहे हैं, और सोच-समझकर तोड़े जा रहे हैं, उन पर जुर्माने और सजा के सारे प्रावधान लागू क्यों नहीं किए जाते?
कल बिलासपुर के एक वरिष्ठ भूतपूर्व पत्रकार प्राण चड्ढा ने बिलासपुर कोटा रोड पर मोबाइल से फोचो खींची है जिसमें कोई दर्जन भर स्कूली बच्चे एक ऑटोरिक्शा में खतरनाक तरीके से लादकर ले जाए जा रहे हैं। इन पर तो बच्चों की जान खतरे में डालने का जुर्म भी लगाना चाहिए, लेकिन सबको मालूम है कि पुलिस, आरटीओ के साथ कारोबारी गाडिय़ों का कैसा रिश्ता रहता है, और क्यों रहता है, इसलिए लोगों की जान बिक्री इसी तरह चलती रहती है, सडक़ों पर रोज मौतें होते रहती हैं। कई बार ऐसा लगता है कि पुलिस महकमा हाईकोर्ट के ही हाथ दे देना चाहिए, तो शायद इसकी जवाबदेही कुछ तय हो सके।
भला हुआ चुनाव आ गया...
आचार संहिता लागू होने के चलते जांच और कार्रवाई की दहशत से गुजर रहे कई लोगों को फिलहाल राहत मिल गई है। चुनाव के बाद जब नई सरकार बनेगी तो उसकी प्राथमिकता में ये मामले रहेंगे, यह आज दावे से नहीं कहा जा सकता। दिव्यांगों के एक संगठन ने 56 लोगों के खिलाफ दस्तावेजों के साथ शिकायत की थी कि ये फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे हैं। उनकी शिकायत दो साल से शासन के पास पड़ी थी, पर अगस्त सितंबर में जब इन्होंने आंदोलन किया, तब जांच आगे बढ़ाई गई। पर अब तक इनमें से सिर्फ एक पर कार्रवाई हुई है। महासमुंद की कृषि विभाग में सहायक संचालक ऋचा दुबे को बर्खास्त किया गया। मेडिकल बोर्ड ने पाया कि श्रवण बाधित होने का उसका प्रमाण पत्र फर्जी है। मुंगेली और बिलासपुर के दो डॉक्टरों पर ऊंगली उठी है कि ये फर्जी प्रमाण पत्र उन्होंने ही जारी किए, पर न तो फिलहाल इन डॉक्टरों पर कोई कार्रवाई होने की उम्मीद है और न ही शेष 55 लोगों के प्रमाण पत्रों की जांच होने की संभावना दिख रही है। इसी तरह, बीते जुलाई माह में विधानसभा सत्र के दौरान अनुसूचित जाति के युवाओं ने सडक़ पर नग्न प्रदर्शन किया था। इनका आरोप है कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर 267 लोग नौकरियों पर कब्जा करके बैठे हैं। इनकी बर्खास्तगी का आदेश 3 साल पहले दिया जा चुका है पर वे अपने पदों पर बैठे हैं। नग्न प्रदर्शन करने वाले गिरफ्तार कर लिए गए। करीब दो माह बाद जमानत पर छूट गए। नग्न प्रदर्शन से हड़बड़ाकर सरकार ने उच्च-स्तरीय जाति छानबीन समिति को प्रकरणों पर जल्द फैसला लेने कहा, लेकिन कुछ दिनों में मामला ठंडा पड़ गया।
इसी साल स्कूल शिक्षा विभाग में करीब 10 हजार शिक्षकों का प्रमोशन हुआ। इनमें से 4 हजार शिक्षकों को गलत तरीके से काउंसलिंग के बिना ही मनचाही पोस्टिंग दी गई। एक एक पोस्टिंग पर डेढ़ से दो लाख रुपये की वसूली की शिकायत आई। इस बीच स्कूल शिक्षा मंत्री का प्रभार रविंद्र चौबे को मिला। उन्होंने पोस्टिंग को तो रद्द करने का आदेश दिया, लेकिन जिन संयुक्त संचालकों और लिपिकों को निलंबित किया गया, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हुई। एफआईआर का केवल ऐलान किया गया था। इन पर भी अब कोई कार्रवाई होने की उम्मीद निकट भविष्य में नहीं है।
टमाटर सडक़ पर..
कुछ माह पहले टमाटर 150-200 रुपये किलो पहुंच गया तब हाहाकार मच गया था। पर अब स्थिति ठीक उल्टी हो गई है। रायगढ़, सरगुजा और जशपुर इलाके में बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती की जाती है। छत्तीसगढ़ के अलावा पड़ोसी राज्यों में इसकी बड़ी डिमांड होती है। पर इस बार उत्पादन के मुकाबले मांग फिर घट गई है। किसानों का कहना है कि इस बार उनकी लागत भी नहीं निकल रही है। यह तस्वीर झारखंड से सटे छत्तीसगढ़ के रामानुजगंज जिले की है, जहां किसानों ने व्यापारियों को तीन रुपये किलो में बेचने से बेहतर यह समझा कि इसे सडक़ों पर फेंक दिया जाए। जरूरतमंद लोग टमाटर उठाकर ले जा रहे हैं। बाकी सब्जियों के दाम वैसे भी चढ़े हुए हैं। मवेशियों को भी आहार मिल रहा है।
अफ़सरों का हटना बाक़ी है ?
आचार संहिता लगते ही चुनाव आयोग ने एक झटके में दो कलेक्टर, 3 एसपी समेत कुल 8 अफसरों को फील्ड से हटा दिया। चर्चा है कि पूरी कार्रवाई भाजपा की शिकायत पर की गई है। दो माह पहले आयोग की टीम आई थी तब बकायदा इन अफसरों के नाम दिए गए थे।
कहा जा रहा है कि कुछ और अफसरों के नाम भी हैं जिन्हें अभी हटाया नहीं गया है। देर सबेर उन्हें भी हटाया जा सकता है। चर्चा है कि पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी और अन्य प्रमुख नेताओं ने इन अफसरों की सूची तैयार की थी। और फिर पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और सांसद सुनील सोनी की अगुवाई में पार्टी नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार से मिलकर शिकायती पत्र सौंपा था। हल्ला है कि एक लिस्ट और आ सकती है जिसमें कुछ एसपी और कलेक्टर भी हो सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बैठक का वीडियो
कांग्रेस की बैठक के बीच सीएम भूपेश बघेल के मोबाइल पर कैंडी क्रश खेलने का मसला सुर्खियों में रहा। इस पर सीएम बघेल और पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के बीच ट्वीटर पर काफी कुछ कहा गया। सीएम ने साफगोई से कह भी दिया कि कैंडी क्रश मेरा फेवरेट है। लेवल भी ठीक-ठाक है आगे भी खेलता रहूंगा।
बावजूद इसके कांग्रेस के अंदर खाने में इस तरह की वीडियो जारी करने पर विवाद हो रहा है। यह बात छनकर आई है कि जिस वक्त सीएम कैंडी क्रश खेल रहे थे उस समय प्रत्याशी चयन के लिए बैठक शुरू भी नहीं हुई थी। स्क्रीनिंग कमेटी की इस बैठक में चेयरमैन अजय माकन और अन्य सदस्य ऑनलाइन जुड़ रहे थे।
इधर, राजीव भवन में बैठक के लिए प्रभारी सैलजा, सीएम और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के आने का इंतजार कर रहे थे। तब तक फुर्सत के क्षणों में सीएम कैंडी क्रश खेलने लग गए। इसी बीच संचार विभाग के नेताओं पर मीडिया का जल्द से जल्द फोटो और वीडियो जारी करने का दबाव था और फिर बैठक शुरू होने से पहले आईटी सेल के एक पदाधिकारी ने वीडियो और फोटो जारी कर दिया। बैठक में क्या हुआ इससे ज्यादा कैंडी क्रश को लेकर बहस शुरू हो गई। जिसे नेशनल मीडिया ने भी हाथों हाथ ले लिया।
ईश्वर को टिकट तो दुर्गेश को क्यों नहीं
भाजपा के प्रत्याशी चयन को लेकर कार्यकर्ताओं में भारी खीज दिख रही है। कार्यकर्ता कह रहे हैं कि अगर हिंदुत्व का ही झंडा बुलंद करना है तो फिर कवर्धा से दुर्गेश देवांगन को टिकट क्यों नहीं दी गई। कवर्धा में हिंदुत्व की असली लड़ाई तो दुर्गेश देवांगन ने ही लड़ी थी। तब खूब प्रचारित किया गया कि अपनी जान की बाजी लगाकर हिंदु दुर्गेश ने भगवा ध्वज का सम्मान किया। उसे घेरकर पीटा गया, लेकिन दुर्गेश नहीं झुका। इस मुद्दे पर दो साल पहले जमकर राजनीति भांजी गई। जब बीरनपुर की घटना के पीडि़त ईश्वर साहू को टिकट दी जा सकती है, जिसने हिंदुत्व के लिए कुछ नहीं किया है तो फिर दुर्गेश की टिकट क्यों विजय शर्मा ले उड़े।
राजनीति में अपने-अपने दावे
चुनाव का बिगुल फूंका जा चुका है। अब प्रत्याशियों के अपने अपने दावे हैं। ऐसा ही एक दावा राजपरिवार की बहूरानी ने किया है। उन्होंने मीडिया में कहा कि उन्होंने ढाई साल में 50 हजार किलोमीटर की पदयात्रा की है। जनता के बीच रही हैं तो जनता का समर्थन मिलना तय है। उन्हें जिस सीट से भाजपा ने टिकट दी है, उस सीट पर उनके पति दो बार विधायक रह चुके हैं। पिछली बार बहूरानी को मौका मिला था लेकिन चुनाव हार गईं। यह भी सही है कि उनके पति के निधन के बाद वे अपना राजघराना छोडक़र विधानसभा क्षेत्र में ही निवास करने लगीं। लेकिन उनके इस दावे पर कार्यकर्ता ही सवाल खड़े कर रहे हैं कि ढाई साल यानी लगभग 900 से 1000 दिन में 50 हजार किलोमीटर की पदयात्रा कैसे हो सकती है। इसके लिए तो रोज 50 किमी चलना पड़ेगा। इतनी तो सडक़ ही उस विधानसभा में नहीं है। खैर दावे तो दावे हैं मतदाता थोड़े ही टेप लेकर नापने जाएंगे।
ज्यादा इंटेलिजेंट कौन- सरकार या सट्टेबाज
जिनके पास संवैधानिक ताकत होती है। शासन-प्रशासन का पूरा तंत्र रहता है। वो ज्यादा इंटेलिजेंट है या फिर 12वीं पास महादेव एप वाला सौरभ चंद्राकर। एक छोटे से गांव से निकलकर महादेव जूस सेंटर चलाने वाला तीन-चार साल में ही करोड़ों का मालिक बन जाता है। सट्टा एप चलाकर इतनी अकूत संपत्ति बना लेता है कि दुबई में जाकर बस जाता है। अरबपतियों जैसी शादी करता है। इस शाही शादी के प्रदर्शन में छत्तीसगढ़ के लोगों को मेहमान बनाकर चार्टर्ड प्लेन में ले जाता है। आश्चर्य की बात है कि तब तक न तो केंद्रीय एजेंसियों को इसकी भनक थी और न ही राज्य सरकार के इंटेलिजेंस विभाग को। केंद्र सरकार के पास विदेशों तक की खुफिया खबर रखने वाला बहुत बड़ा तंत्र होता है। कौन कहां से कैसे करोड़ों का लेन-देन कर रहा है। इसकी जानकारी जुटाना डिजिटल युग में बहुत कठिन नहीं है। लेकिन आखिर 12वीं पास सौरभ चंद्राकर के इस कारोबार की खबर किसी को कैसे नहीं हुई। लोग कहने लगे है कि सीबीआई और ईडी को तो विपक्ष के नेताओं के चिल्हर पकडऩे में लगा दिया गया है तो फिर उन्हें इतनी फुरसत कहां कि जूस सेंटर वाले के कारोबार की ओर नजर डालें। ऐसा ही स्थानीय एजेंसियों का हाल है।
तोहमत से बचने के लिए...
भारतीय जनता पार्टी के टिकट वितरण से जिन इलाकों में असंतोष है, उनमें जगदलपुर विधानसभा भी शामिल है। यहां से पूर्व विधायक संतोष बाफना पिछली बार 27 हजार के भारी अंतर से रेखचंद जैन से चुनाव हार गए थे। इस बार भाजपा ने पूर्व महापौर किरण देव पर दांव लगाया है। चूंकि हार जीत का फासला ज्यादा था, इसलिये प्रत्याशी बदलने के फैसले ने कार्यकर्ताओं को चौंकाया नहीं। पर बाफना की संगठन में अच्छी पकड़ रही है। किरण देव को भी उन्होंने एक वक्त राजनीति में आगे बढ़ाया। टिकट कटने से निराश बाफना के समर्थकों ने उनके घर पहुंचकर उनके समर्थन में नारेबाजी की और संगठन के सामने टिकट कटने का विरोध जताने का निर्णय लिया। पर बाफना ने कुछ अलग सोच रखा है। वे अपनी तरफ से कोई शिकायत नहीं करने जा रहे हैं। उन्होंने अपने समर्थकों को पार्टी प्रत्याशी के लिए काम करने कहा है। खुद को लेकर संगठन को संदेश पहुंचा दिया है कि वे चुनाव प्रचार तो करेंगे, मगर जगदलपुर में नहीं। इस सीट को छोडक़र बाकी 89 में से किसी भी जगह भेज दें काम कर लेंगे। नाहक, भितरघात का आरोप लगेगा। फिलहाल तो वे राजस्थान निकल गए हैं।
लडऩे व जीतने का रिकॉर्ड इनके नाम...
इस बार विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसे उम्मीदवार हैं, जिनका पूरा जीवन ही चुनाव लड़ते-लड़ते बीता है और अधिकांश बार उन्हें जीत भी हासिल हुई है। मसलन, रामपुर के विधायक ननकीराम कंवर 12वीं बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। अब तक वे 6 बार चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट से प्यारेलाल कंवर भी पांच बार जीते। अधिकांश मौकों पर दोनों के बीच ही मुकाबला होता रहा। अब तक यहां 14 विधानसभा चुनाव हुए। कोरबा जिले के बोधराम कंवर भी बार-बार चुनाव लडऩे और जीतने वाले नेता हैं। कांग्रेस ने उन्हें टिकट देना तब बंद किया जब उन्होंने खुद लडऩे से मना किया। सात बार वे कटघोरा से तो एक बार पाली-तानाखार से, कुल 8 बार चुनाव लड़े। सन् 2013 में एक बार वे लखन लाल देवांगन से हारे, बाकी 7 बार उन्हें जीत मिली। पत्थलगांव से विधायक रामपुकार सिंह अब तक 10 बार चुनाव लड़ चुके हैं। दो बार हारे, आठ बार जीत चुके हैं। 2023 की कांग्रेस टिकट अभी फाइनल नहीं हुई है, पर रेस में वे इस बार भी शामिल हैं। मुंगेली विधायक व भाजपा शासन में मंत्री रहे पुन्नूलाल मोहले 6 बार विधायक और चार बार सांसद रह चुके हैं। लोकसभा और विधानसभा दोनों में ही जीत का ऐसा रिकॉर्ड शायद ही किसी दूसरे नेता के पास छत्तीसगढ़ में हो। वे केवल एक बार अपना पहला चुनाव जरहागांव विधानसभा से हारे थे। उसके बाद जब भी लड़े, जीतते गए। भाजपा की टिकट से वे 12 वीं बार मुंगेली विधानसभा से उतर गए हैं।
दुश्मनी भारी पड़ रही है
तेज तर्रार विधायक बृहस्पति सिंह को डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव से अदावत भारी पड़ती दिख रही है। दो बार के विधायक बृहस्पति सिंह पिछले दिनों दिल्ली में थे, और पार्टी के प्रमुख नेताओं से चर्चा कर अपनी टिकट पक्की कराने में जुटे थे। मगर उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला।
दूसरी तरफ, सिंहदेव बृहस्पति सिंह की जगह पूर्व मेयर डॉ. अजय तिर्की को टिकट देने के लिए दबाव बनाए हुए हैं। इससे बृहस्पति सिंह के समर्थकों के सब्र का बांध टूटता दिख रहा है। दो दिन पहले बृहस्पति सिंह सिंह के समर्थकों ने बलरामपुर में सभा बुलाई थी। इसमें करीब 5 हजार लोग जुटे। सभा में साफ तौर पर कहा गया कि बृहस्पति सिंह के अलावा कोई और प्रत्याशी मंजूर नहीं होगा। यही नहीं, बृहस्पति सिंह के कुछ उत्साही समर्थकों ने टीएस के खिलाफ नारेबाजी भी की।
जानकार बताते हैं कि यदि बृहस्पति सिंह को टिकट नहीं मिली, तो वो खामोश बैठने वालों में नहीं है। वो निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद जाएंगे। ऐसा वो एक दफा कर भी चुके हैं। हालांकि उन्हें, और समर्थकों को सीएम भूपेश बघेल पर भरोसा है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है। मगर कांग्रेस में विवाद से विशेषकर बृहस्पति सिंह के प्रतिद्वंदी भाजपा प्रत्याशी रामविचार नेताम खुश दिख रहे हैं।
गौरीशंकर को जिम्मा
चर्चा है कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। कसडोल में पिछले चुनाव अनजान चेहरे से बुरी हार के बाद पार्टी उनकी जगह किसी और नाम पर विचार कर रही है। कसडोल में प्रत्याशी की अधिकृत घोषणा नहीं की गई, लेकिन चर्चा है कि इस मसले पर गौरीशंकर की राय ली गई है।
बताते हैं कि गौरीशंकर अग्रवाल के उन्हें कोई और जिम्मेदारी देने जा रही है। इस सिलसिले में प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, और अन्य नेताओं से चर्चा की। चूंकि प्रदेश अध्यक्ष, तीनों महामंत्रियों, और पूर्व सीएम व तमाम दिग्गजों के चुनाव मैदान में उतर गए हैं। ऐसे में चुनाव मैनेजमेंट की कमान गौरीशंकर को दी जा सकती है। गौरीशंकर पहले भी पार्टी का चुनाव प्रबंधन देखते रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
सत्ता की सहूलियत
चुनाव में सरकार होने का फायदा तो फील्ड में मिलता ही है। क्योंकि सरकारी विभागों से राजनीतिक दलों, नेताओं प्रत्याशियों को कई तरह की कागजी अनुमति,एनओसी लेनी होती है। इसके एवज में विभाग केवल नो, नहीं दी जा सकती, नहीं दी जाती है भर लिखवाना, लिखना होता है बस। जब विभाग से लाल चिडिय़ा बैठे तो आयोग भी कुछ नहीं कर पाता। आने वाले दिनों में ऐसी समस्या से सभी विपक्षी प्रत्याशी जूझने वाले हैं। कुछ तो जूझने भी लगे हैं। खबर है कि भाजपा ने पीएम की वर्चुअल सभाओं के लिए सभी 90 सीटों पर एलईडी स्क्रीन वैन की अनुमति आयोग से मांगी है।
आयोग ने आरटीओ से एन ओ सी तलब किया है। आरटीओ अभी चुनाव कार्य में व्यस्त हैं। दफ्तर में मिलते ही नहीं । एक सप्ताह से एजेंसी और पार्टी के लोग चक्कर काट रहे हैं। और आखिरी में जब मिलेंगे तब आरटीओ कहेंगे, इतने की अनुमति नहीं दी जा सकती । और भी दल, प्रत्याशी हैं। आपको दस की ही अनुमति दी जाती है । ऐसे विपक्ष को सबसे बड़ी दिक्कत दारू को लेकर होने वाली है। विभाग ने ऐसी किलेबंदी कर रखी है कि विपक्ष एक एक घूंट देने तरस जाएगा।
कप्तान की चेतावनी
उत्तर छत्तीसगढ़ के एक प्रत्याशी और जिलाध्यक्ष पूर्व मंत्री भी रहे हैं। वे वोटर्स के कुछ फ्रीबीज का इंतजाम कर रहे थे। कप्तान साब ने मैसेज भिजवाया कि न करें नहीं तो रासुका लगा दूंगा। देखे यह चेतावनी ही रहती है या लगती है ।
भाजपा नेताओं को ‘बेटी’ की फटकार...
भाजपा की दूसरी सूची ने ऐसे दावेदारों को भावुक कर दिया है। सन् 2018 में बिंद्रानवागढ़ के विधायक डमरूधर पुजारी ने करीब 10 हजार वोटों से कांग्रेस के संजय नेताम को हराया था। इस बार उनकी जगह गोवर्धन राम मांझी को टिकट दी है। पुजारी सदमे में हैं और उन्होंने मीडिया के सामने दुख भी जताया है। पूछ रहे हैं गलती क्या हुई, जो टिकट काटी गई। कह रहे हैं- होना कुछ नहीं है, फिर भी संगठन से बात करेंगे। इधर सोशल मीडिया पर दूसरा दर्द छलका है, स्व. भीमा मंडावी की बेटी दीपा मंडावी का। स्व मंडावी ने कड़े मुकाबले में कांग्रेस लहर के बीच देवती कर्मा को करीब 2100 वोटों से हराया था। सन् 2019 में नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी। इसके बाद हुए उप-चुनाव में स्व. भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी को भाजपा ने खड़ा किया, जबकि देवती कर्मा फिर चुनाव लड़ी। ओजस्वी करीब 11 हजार वोटों से हार गईं। हालांकि इस चुनाव में ओजस्वी को 37 हजार के करीब वोट मिले जो भीमा मंडावी को जीत में मिले 35 हजार वोटों से अधिक था।
अब ट्विटर (एक्स) पर ओजस्वी-भीमा की बेटी दीपा ने सीधे आरोप लगाया है कि उनकी मां ओजस्वी की टिकट काटकर पिता के बलिदान को बेइज्जत किया गया है। उनका कहना है कि –मेरे पापा ने पार्टी के लिए अपनी जान दी, उनके जाने के बाद हमें अपने कल का पता नहीं था, फिर भी मम्मी ने हमें संभाला और पापा की जगह ली। क्या मेरे पापा के बलिदान की कोई कीमत नहीं है? पापा को यहां की जनता अब भी चाहती है, मेरी मां ने उनके अधूरे कामों को पूरा करने के लिए ही राजनीति में कदम रखा था। पार्टी से जवाब चाहिए।
अभी 5 सीटों पर टिकट की घोषणा बाकी है। इनमें बेलतरा सीट भी है, जहां के विधायक रजनीश सिंह ठाकुर ने त्रिकोणीय संघर्ष में सन् 2018 में भाजपा के लिए जीत हासिल की थी। डॉ. रमन सिंह, सौरभ सिंह, प्रबल प्रताप सिंह, संयोगिता सिंह, धर्मजीत सिंह और एक दो और नाम ठाकुर या राजपूत समाज से प्रत्याशी तय हो चुके हैं। ऐसे में रजनीश सिंह की टिकट को खतरे में माना जा रहा है। वे अभी खामोश हैं, उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि बेलतरा से कोई नाम अभी घोषित नहीं किया गया है।
कांग्रेस का धार्मिक विश्वास बड़ा
भारतीय जनता पार्टी ने 85 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है लेकिन अब तक कांग्रेस की एक भी सूची नहीं आई है। पहले कहा जा रहा था कि कर्नाटक के फॉर्मूले पर काम करते हुए कुछ उम्मीदवारों के नाम सितंबर के पहले सप्ताह में घोषित कर दिए जाएंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। कांग्रेस की बैठकें लगातार हो रही हैं, यह भी बात बाहर फैलाई जा रही है कि अधिकांश सीटों पर सिंगल नाम तय हो चुके हैं, पर जिस तरह की देरी हो रही है, उससे कयास लगाये जा रहे हैं कि आम सहमति नहीं बन पा रही है। चर्चा यह है कि मौजूदा विधायकों में किसकी टिकट बरकरार रखी जाए, किसकी काट दें- यह तय नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ टिकटों की घोषणा रोकने का एक पवित्र कारण भी प्रचारित किया जा रहा है। यह कहा जा रहा है कि शुभ काम पितृ पक्ष में नहीं किये जाते, इसलिये घोषणा रुकी है। 15 अक्टूबर से नवरात्र शुरू हो रहा है, उसके साथ ही घोषणा का सिलसिला शुरू होगा। ऐसा करके कांग्रेस एक बार फिर प्रचारित कर सकेगी धार्मिक मान्यताओं की उसे भाजपा से कहीं अधिक परवाह है।
टिकट फाइनल, अब वीडियो का वक्त
भाजपा में प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद से असंतुष्ट नेता अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। दुर्ग जिले की सीटों के प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के बाद से नाराज नेता, वरिष्ठ नेताओं से मिलकर अपना विरोध जता रहे हैं। इन सबके बीच एक भाजपा प्रत्याशी का वीडियो वायरल हुआ है। जिसमें वो अपने यहां के म्युनिसिपल में कमीशनखोरी पर बेबाकी से चर्चा करते नजर आ रहे हैं।
भाजपा प्रत्याशी यह कहते दिख रहे हैं कि भाजपा शासनकाल में म्युनिसिपल में निर्माण कार्यों पर 8 फीसदी तक कमीशन लेते-देते रहे हैं। तत्कालीन महापौर से लेकर स्थानीय विधायक को कितना कमीशन मिलता रहा है, इसका विस्तार से जिक्र करते दिख रहे हैं। प्रत्याशी के खिलाफ पहले ही पार्टी में भारी विरोध हो रहा था, और अब वीडियो वायरल होने के बाद पार्टी के रणनीतिकार हलाकान हैं। कुछ लोगों का कहना है कि आने वाले दिनों में इस तरह के कई और वीडियो सामने आ सकते हैं। इस तरह के वीडियो का जवाब ढूंढने में पार्टी नेताओं को कठिनाई हो रही है।
ईश्वर को चेक देने की कोशिश
भाजपा ने बिरनपुर सांप्रदायिक हमले में मारे गए भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को साजा से ताकतवर मंत्री रविन्द्र चौबे के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारकर एक बड़ा दांव खेला है। स्वाभाविक है कि भुवनेश्वर की मौत के बाद इलाके में ईश्वर-साहू परिवार के प्रति सहानुभूति है।
साजा, और उसके आसपास की विधानसभा सीटों पर साहू मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसे में ईश्वर के भाजपा प्रत्याशी बनने के कांग्रेस के नेता असहज भी दिख रहे हैं। इसका अंदाजा उस वक्त लगा जब ईश्वर साहू को प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चाओं के बाद पिछले दिनों बेमेतरा के एक राजस्व अफसर, ईश्वर साहू से मिलने गए, और उनसे सहायता राशि 10 लाख का चेक लेने का आग्रह किया।
दरअसल, सीएम भूपेश बघेल ने भुवनेश्वर साहू की हत्या के बाद परिजनों को 10 लाख रुपए सहायता राशि, और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की थी। मगर भुवनेश्वर के पिता ने सहायता राशि लेने से मना कर दिया था। इसके बाद से जिला प्रशासन के लोग उनसे राशि लेने का आग्रह करते रहे। शुरुआत में मना होने के बाद प्रशासन के लोग तकरीबन प्रकरण को ठंडे बस्ते में डाल दिया था, लेकिन जब ईश्वर साहू के राजनीति में आने की चर्चा शुरू हुई, तो प्रशासन ने फिर बिरनपुर की ओर रुख किया।
इस बार भी वो सहायता राशि लेने के लिए राजी करने में नाकाम रहे। भाजपा घटना के कुछ दिनों बाद 11 लाख की सहायता राशि उपलब्ध साहू परिवार को साध चुकी है। अब ईश्वर साहू खुद चुनाव मैदान में उतर चुके हैं, तो बिरनपुर प्रकरण को लेकर जंग तेज होने के आसार है। इसका कांग्रेस, और रविन्द्र चौबे किस तरह सामना करते हैं, यह देखना है।
करोड़ों खर्च, पर टिकट न मिली
भाजपा की सूची जारी होने के बाद से तकरीबन हर जिले में बगावत के सुर सुनाई दे रहे हैं। पार्टी के कुछ लोग इसके लिए संगठन के नेताओं को भी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। बताते हैं कि संगठन के नेताओं ने कई जगहों पर आर्थिक रूप से ताकतवर नेताओं को चुनाव लड़ाने की योजना बनाई थी। ये दावेदार, पदाधिकारियों के इशारे पर दिल खोलकर खर्च करते रहे। मगर उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया गया।
ऐसे ही रायपुर की सीमा से सटे विधानसभा क्षेत्र में तो एक जनपद के पूर्व पदाधिकारी को सरकार के मंत्री के खिलाफ लड़ाने के संकेत दिए थे। पार्टी का इशारा पाकर पदाधिकारी ने खूब खर्च किए। कुछ लोग बताते हैं कि वो टिकट से पहले ही करोड़ों खर्च कर चुके हैं। मगर ऐन वक्त में पार्टी ने किसी दूसरे को उम्मीदवार बना दिया। अब इतना खर्च कर चुके नेता का चुप रहना अस्वाभाविक है। चर्चा है कि कुछ दावेदार तो थोड़ा और खर्च कर अपने प्रत्याशी को निपटाने की सोच रहे हैं। देखना है कि पार्टी बगावती तेवर वाले इन नेताओं को कैसे समझाती है।
2024 में कितने उप-चुनाव होंगे?
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में भारतीय जनता पार्टी ने वह हर एक सुराख बंद करने की कोशिश की है जिससे जीत की संभावना पर असर हो। अपने चार सांसदों रेणुका सिंह, गोमती साय, अरुण साव और विजय बघेल को एक साथ मैदान में उतारने से बड़ा दांव इसीलिये खेला गया है। इन सभी को उन सीटों से टिकट दी गई है जहां भाजपा की लोकसभा में जीत का अंतर ठीक-ठाक था। साव लोरमी से मैदान में उतर चुके हैं। यह उनका गृह जिला है। वे लोरमी में कम समय दें तो भी काम चल सकता है क्योंकि आखिर उन्हें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभालनी है।
चुनाव परिणामों के बाद बनने वाली कुछ तस्वीरों के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। एक, भाजपा को बहुमत मिल गया और चारों सांसद जीत जाते हैं, तो क्या होगा? इनमें से दो, विजय बघेल और अरुण साव मुख्यमंत्री पद की रेस में होंगे। रेणुका सिंह और गोमती साय को भी मंत्रिमंडल में लेना होगा।
वहीं, यदि ये चारों अपना चुनाव तो जीत जाएं लेकिन विधानसभा में विपक्ष में बैठना होगा, तब? इनमें से कोई एक तो नेता प्रतिपक्ष बन दिए जाएंगे, पर बाकी क्या विधायक के रूप में काम करना चाहेंगे? यद्यपि लोकसभा में उनका कार्यकाल भी कुछ माह बाद समाप्त होने वाला है, पर वे दोबारा लोकसभा क्यों नहीं पहुंचना चाहेंगे? फिर क्या विधानसभा की सदस्यता से ये सांसद इस्तीफा देंगे। यदि ऐसा हुआ तो 2024 में विधानसभा उप-चुनाव भी जरूर होंगे।
सन् 2003 में राज्यसभा सदस्य रहते हुए (स्व.) रामाधार कश्यप को तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने अकलतरा से विधानसभा की टिकट दी थी। कश्यप ने लगातार दो बार के विधायक छतराम देवांगन को हरा दिया। पर जोगी की सरकार नहीं बनी और कश्यप ने विधायक की सीट छोड़ दी। वहां उप-चुनाव हुआ, छत राम देवांगन फिर से लड़े और जीतकर विधानसभा चुनाव पहुंच गए।
एक अनुमान इससे भी बुरा लगाया जा सकता है। मान लें कि इनमें से कुछ या सभी सांसद विधानसभा चुनाव ही हार गए तब क्या होगा? क्या उन्हें फिर से लोकसभा की टिकट मिलेगी? या फिर किनारे कर दिए जाएंगे।
जोखिम वाली सीटें तो बढ़ गईं...
कांग्रेस ने अपने बीते 57-58 महीने के कार्यकाल में यह बात बार-बार दोहराई कि माओवादी हिंसा पर उसने काफी हद तक काबू पा लिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी अपने छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान कहा है कि नक्सली नियंत्रण में हैं और 2024 लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ से उनका सफाया हो जाएगा। पर ये सब बातें राजनीतिक हैं। चुनाव आयोग को खतरा पिछली बार से कुछ कम नहीं दिखाई देता, बल्कि अधिक ही दिख रहा है। सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण का मतदान 12 नवंबर को कराया गया था। इसमें बस्तर की सभी 12 सीटों के अलावा राजनांदगांव जिले की 6 सीटें शामिल थीं। यानि कुल 18 संवेदनशील विधानसभा सीटें थीं। इस बार 2023 में प्रथम चरण में 20 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं। 12 सीटें तो यथावत बस्तर संभाग की हैं, 8 दुर्ग संभाग से शामिल हैं, जिनमें राजनांदगांव की सीटें भी हैं। यानि पहले चरण में इस बार पिछली बार से दो सीटें अधिक हैं। माना जा सकता है कि नक्सल वारदातों में कुछ कमी आने के बावजूद चुनाव आयोग ने शांतिपूर्ण चुनाव पुख्ता तरीके से निपटाने के लिए ही ऐसा किया होगा। वैसे अभी तो चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा ही हुई है। नामांकन से लेकर मतदान और मतगणना की लंबी प्रक्रिया अगले 55 दिनों तक चलने वाली है। यह ध्यान रखना होगा कि सन् 2018 में पहले चरण के मतदान के 15 दिन पहले से नक्सली हिंसा शुरू हुई थी। अलग-अलग घटनाओं में 5 ग्रामीणों की मौत भी हो गई थी। इसके बावजूद मतदान का प्रतिशत 74 से अधिक था।
हाईवे पर छात्राओं का चक्का जाम
गीदम, बस्तर के जवांगा ग्राम में पुरानी स्कूल बिल्डिंग का रंग-रोगन करके स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल तो खोल दिया गया लेकिन यहां शिक्षकों की व्यवस्था नहीं की गई। जुलाई से अब तक स्थिति यही बनी हुई है। कलेक्टर, शिक्षा अधिकारियों और प्राचार्य के सामने यहां की छात्राओं ने कई बार मांग उठाई, लेकिन समस्या हल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। मजबूरन छात्राएं नेशनल हाईवे पर ही सडक़ जाम करके बैठ गईं। आसपास में यह पहला मौका था, जब छात्राओं ने नेशनल हाईवे पर उतरकर चक्काजाम किया। एक बार फिर अधिकारियों ने आश्वासन देकर उनका आंदोलन खत्म करा दिया। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के नाम पर खोले गए आत्मानंद स्कूलों का यह हाल है।
जिसके राज खोलने हों, उम्मीदवार बना दो
भाजपा प्रत्याशियों की सूची लीक होने के बाद करीब दर्जनभर से अधिक क्षेत्रों में प्रदर्शन हो रहा है, और प्रत्याशी बदलने की मांग हो रही है। बालोद जिले के पदाधिकारी तो सोमवार को सुबह-सुबह रायपुर पहुंच गए, और उन्होंने प्रदेश महामंत्री (संगठन) पवन साय से मिलकर राकेश यादव के खिलाफ दर्ज अपराधिक प्रकरणों की जानकारी देकर उन्हें बदलने की मांग की। इस सिलसिले में पदाधिकारियों ने दस्तावेज भी दिए हैं।
पार्टी ने पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष राकेश यादव को बालोद से प्रत्याशी बना रही है। इसका अधिकृत ऐलान होना बाकी है। ऐसे में पार्टी के भीतर राकेश के विरोधी उन्हें बदलने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक जिन प्रत्याशियों के खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज हैं, उन्हें अखबारों में सार्वजनिक सूचना प्रकाशित कर इसकी जानकारी देनी होगी।
पदाधिकारियों का कहना था कि यादव को टिकट देने से चुनाव में पार्टी के असुविधाजनक स्थिति पैदा होगी। चर्चा है कि साय ने पूरी बात सुनी, लेकिन टिकट बदलने का कोई आश्वासन नहीं दिया। यही नहीं, दो दिन पहले प्रदेश अध्यक्ष ने प्रत्याशी बदलने की मुहिम में जुटे एक पूर्व विधायक को बुलाकर साफ तौर पर बता दिया कि लीक हुई सूची में कोई बदलाव नहीं होगा। ऐसे में विरोध-प्रदर्शन का कोई मतलब नहीं है।
चुनाव और चार्जशीट
चुनाव आचार संहिता प्रभावशील होने के साथ पुलिस, और पूरा प्रशासनिक अमला चुनाव आयोग के अधीन आ गया है। इन सबके बीच रायपुर पुलिस एक अलग ही टेंशन में हैं। इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाला केस में जिला अदालत ने मौखिक रूप से प्रकरण की जांच कर जल्द चालान पेश करने कहा था।
चर्चा है कि बाद की सुनवाई में पुलिस की तरफ से कहा गया कि इस सिलसिले में लिखित आदेश की जरूरत होगी। फिर क्या था, अदालत ने आदेश भी दे दिए, और 20 तारीख को चालान पेश करने के लिए तिथि तय कर दी।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि इंदिरा बैंक केस में भाजपा के दिग्गज नेताओं का नाम है, और ये सभी चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। ऐसे में पुलिस की टेंशन बढ़ गई है कि चार्जशीट का क्या किया जाए। चर्चा है कि पिछले दिनों जिला अदालत के बाद रायपुर पुलिस के सीनियर अफसरों ने इसको लेकर बैठक भी की। अब पुलिस का रुख क्या होता है, ये आने वाले दिनों में पता चलेगा।
टिकट के दावेदार डॉक्टर का गुस्सा
बस्तर में स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त संचालक डॉ. बीआर पुजारी को लेकर पिछले एक साल से चर्चा थी कि वे भाजपा की टिकट पर बीजापुर सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। जैसा कि उनका खुद दावा है कि भाजपा के सर्वे में उनका नाम सबसे ऊपर आया था। टिकट का आश्वासन मिलने पर कुछ माह पहले उन्होंने वीआरएस का आवेदन विभाग में लगा दिया था। उस आवेदन पर विचार तो हुआ नहीं उल्टे उनका कम महत्व के पद पर जिला चिकित्सालय जगदलपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। बीजापुर सीट से पूर्व मंत्री महेश गागड़ा भी चुनाव लडऩा चाहते हैं। इसलिये यह स्पष्ट नहीं है कि उनके वीआरएस की मंजूरी को रोकने और बीजापुर से हटाने में कांग्रेसियों का हाथ है या भाजपाईयों का। पर डॉ. पुजारी ने अपने एक वाट्सएप ग्रुप में प्रतिक्रिया जरूर दी है। उन्होंने बीजापुर में 20 साल लंबी अपनी सेवा को याद करते हुए कहा है कि सर्वे में मेरा नाम आने से ही कुछ लोगों की हालत खराब हो गई है, जबकि टिकट किसे मिलेगी यह तय नहीं है। मुझे बुलाकर बोल देते, वीआरएस नहीं लगाता-चुनाव भी नहीं लड़ता। मेरा डिमोशन कर दिया गया है। मेरे संवैधानिक, मौलिक अधिकार को दबाने का प्रयास हो रहा है। मेरे साथ साजिश रची गई, समय आने पर सबकी पोल खोलूंगा।
फिलहाल लोग कयास लगा रहे हैं कि क्या डॉ. पुजारी को वीआरएस मिल पाएगा? यदि नहीं मिल पाया तो इस कितना फायदा गागड़ा को, और मौजूदा कांग्रेस विधायक विक्रम मंडावी को मिलेगा?
ट्रैफिक संभालने वाले की बुद्धि
सडक़ यातायात संभालना आसान नहीं होता है। इसके लिए बड़ा अमला सडक़ से लेकर मुख्यालय तक में तैनात रहता है। लेकिन राजधानी के प्रवेश द्वार टाटीबंध चौक में ट्रैफिक व्यवस्था तय करने वालों की बुद्धि को देखकर हर कोई खीज जाता है। आम राहगीर भी समझ जाते हैं कि कैसे वहां के ट्रैफिक जाम को स्मूथ किया जा सकता है। पहले तो फ्लाईओवर बनने के इंतजार में लोग ट्रैफिक जाम को झेलते रहे। अब फ्लाईओवर बन गया है तो भाठागांव से बिलासपुर जाने वाले वाहनों के लिये नीचे का रास्ता बंद कर दिया गया है और फ्लाईओवर के नीचे उतरते ही मुख्य सडक़ पर कट दे दिया गया है। इसके कारण रोज लंबा जाम लग रहा है। लंबा इंतजार करने वाले लोगों के मुंह से निकल ही जाता है कि ट्रैफिक वालों को इतनी बुद्धि नहीं है क्या?
आखिरी दम तक उम्मीद
अब जब आचार संहिता लागू हो चुकी, कांग्रेस उम्मीदवारों की कोई सूची जारी नहीं हो पाई है। भाजपा की भी अधिकारिक रूप से एक ही सूची जारी हुई है। जो दूसरी सूची वायरल हुई उसे अधिकारिक होने से पार्टी ने इंकार कर दिया। जब तक सूची रुकी हुई है, दावेदारों में उम्मीद बनी हुई है। रायगढ़ जिले में हाल ही में दो कोशिशें हुई हैं। लैलूंगा की ईसाई आदिवासी महासभा ने कांग्रेस नेताओं को पत्र लिखकर मांग की है कि वर्तमान विधायक चक्रधर सिदार को कदापि रिपीट नहीं किया जाए। समाज की बैठक इस बारे में हो चुकी है। उन्होंने सिदार को टिकट मिलने पर उनका विरोध करने का निर्णय लिया है। इनके अनुसार सिदार निष्क्रिय हैं और ईसाई समाज से किये गए वायदों को उन्होंने पूरा नहीं किया। इधर रायगढ़ में कोलता समाज की ओर से भाजपा के प्रभारी ओम माथुर को पत्र लिखा गया है। इसमें मांग की गई है कि रायगढ़ सीट से समाज का प्रत्याशी खड़ा किया जाए। उनके 65 हजार वोट हैं। लगभग चेतावनी के अंदाज में यह भी पत्र में बताया गया है कि पिछले कुछ चुनावों में कोलता समाज को टिकट नहीं देने की वजह से किस तरह निर्दलीय उम्मीदवारों ने खड़े होकर भाजपा का खेल बिगाड़ा था।
ये दोनों पत्र कांग्रेस और भाजपा के नेताओं तक पहुंचे या नहीं, यह तो पता नहीं- मगर मीडिया के पास समय पर पहुंच गए। वैसे अब प्रत्याशियों की सूची को जब दोनों ही दल अंतिम रूप देने लगे हैं। ऐसी स्थिति में मीडिया के माध्यम से आ रहे इन दबावों का टिकट तय करने पर कितना असर होगा, देखना होगा।
नदी के उस पार स्कूल...
बस्तर में बच्चों को अपना भविष्य गढऩे के लिए किस तरह उफनती नदियों को बांस की बल्लियां लगाकर पार करना पड़ता है, इस पर तस्वीरें पहले आ चुकी हैं। हाईकोर्ट में पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने जवाब दिया है कि वहां पुल बनाने के लिए टेंडर हो चुका है। पर ऐसी हालत जगह-जगह दिखाई देती है। प्रशासन क्या कर रहा है, विकास इन तक अब तक क्यों नहीं पहुंचा, यह सवाल बार-बार खड़ा हो रहा है। यह तस्वीर कोंडागांव जिले के कोनगुड नदी का है, जिसे पार कर नवमीं, दसवीं और 11वीं के बच्चे पढऩे के लिए स्कूल तक पहुंच पाते हैं।