राजपथ - जनपथ
भारत जोड़ो से खुला रास्ता
चर्चा है कि कांग्रेस की तीन महिला नेत्रियों की टिकट के लिए हाईकमान रुचि ले रहा है। ये नेत्रियां राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में साथ थीं। और उनके साथ कन्याकुमारी से कश्मीर तक पैदल चलीं। इनमें से एक शशि सिंह प्रेमनगर से जिला पंचायत की सदस्य हैं। शशि, दिवंगत पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह की पुत्री हैं। खास बात यह है कि वो प्रेम नगर विधानसभा के मौजूदा भाजपा प्रत्याशी भुवन सिंह मरावी को हराकर ही जिला पंचायत की सदस्य चुनी गई हैं। जबकि दो अन्य कांति बंजारे, और आशिका कुजूर भी अपने इलाके में अच्छा प्रभाव रखती हैं।
कांति बंजारे जिला पंचायत की सदस्य रह चुकी हैं, और वो डोंगरगढ़ सीट से टिकट चाहती हैं। इसी तरह आशिका कुजूर का नाम जशपुर सीट से चर्चा में है। मगर दिक्कत यह है कि तीनों सीट पर पार्टी के ही विधायक हैं। प्रेमनगर से खेलसाय सिंह काफी सीनियर विधायक हैं। ऐसे में उनकी जगह शशि सिंह को एडजेस्ट करने में दिक्कत है। इसी तरह वो डोंगरगढ़ से भुवनेश्वर बघेल और जशपुर से विनय भगत विधायक हैं, और उनकी पुख्ता दावेदारी है। ऐसे में उनकी टिकट काटना आसान नहीं है। फिर भी सर्वे रिपोर्ट का अवलोकन किया जा रहा है, और तीनों महिलाओं के लिए रास्ता बनाने की कोशिश भी हो रही है। देखना है आगे क्या होता है।
कटघरे के विधायकों का क्या होगा?
चर्चा है कि कोल स्कैम में फंसे विधायक देवेन्द्र यादव, और चंद्रदेव राय की टिकट को लेकर कांग्रेस असमंजस में है। यादव और चंद्रदेव राय के खिलाफ ईडी ने चालान पेश कर दिया था, और उन्हें 25 अक्टूबर को ईडी की विशेष अदालत में पेश होना है। इससे पहले उन्हें जमानत भी लेनी होगी।
कहा जा रहा है कि दोनों विधायकों की टिकट को लेकर काफी चर्चा हुई है, और दोनों के मसले पर कानूनी राय ली गई है। एक चर्चा यह भी है कि देवेन्द्र की जगह उनकी पत्नी को पार्टी चुनाव मैदान में उतार सकती है। जबकि चंद्रदेव राय की जगह किसी अन्य दावेदार के नाम पर विचार हो सकता है। देखना है कि इस पूरे मामले में पार्टी क्या कुछ फैसला लेती है।
कभी खुशी कभी गम
खबर है कि कांग्रेस पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के खिलाफ जिला कांग्रेस अध्यक्ष भागवत साहू को प्रत्याशी बना सकती है। भागवत का नाम आते ही रमन सिंह समर्थक खुश हैं, और मान रहे हैं कि उन्हें बड़ी जीत हासिल होगी। भाजपा के रणनीतिकार रमन सिंह के खिलाफ करूणा शुक्ला जैसी कोई मजबूत प्रत्याशी की उम्मीद पाले हुए थे। जिन्होंने 2018 के चुनाव में रमन सिंह की राह काफी कठिन कर दी थी।
दूसरी तरफ, कांग्रेस के लोग भागवत साहू को मजबूत मान रहे हैं, और कहा जा रहा है कि इससे राजनांदगांव के ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस को अच्छा समर्थन मिलेगा। हालांकि कुलबीर छाबड़ा जैसे कई और दावेदार चर्चा में हैं। देखना है कि कांग्रेस 15 तारीख को किसके नाम पर मुहर लगाती है।
पुलिस हाईकोर्ट को दे देनी चाहिए
हाईकोर्ट की लगातार निगरानी की वजह से छत्तीसगढ़ के एक-दो बड़े शहरों में पुलिस दिखावे के लिए सडक़ों पर डीजे, लाउडस्पीकर, और शोर करने वाली मोटरसाइकिलों पर दिखावे की कुछ कार्रवाई कर रही है। लेकिन अदालत के आदेश के बावजूद ऐसे लोगों पर अदालत की अवमानना का कोई मामला नहीं बनाया जा रहा है। नतीजा यह होता है कि मामूली जुर्माना देकर लोग छूट जाते हैं, और दुबारा वैसी हरकत करने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती। क्या पुलिस को नियमों के तहत कार्रवाई न करने की कोई छूट हो सकती है क्या? जितने नियम तोड़े जा रहे हैं, और सोच-समझकर तोड़े जा रहे हैं, उन पर जुर्माने और सजा के सारे प्रावधान लागू क्यों नहीं किए जाते?
कल बिलासपुर के एक वरिष्ठ भूतपूर्व पत्रकार प्राण चड्ढा ने बिलासपुर कोटा रोड पर मोबाइल से फोचो खींची है जिसमें कोई दर्जन भर स्कूली बच्चे एक ऑटोरिक्शा में खतरनाक तरीके से लादकर ले जाए जा रहे हैं। इन पर तो बच्चों की जान खतरे में डालने का जुर्म भी लगाना चाहिए, लेकिन सबको मालूम है कि पुलिस, आरटीओ के साथ कारोबारी गाडिय़ों का कैसा रिश्ता रहता है, और क्यों रहता है, इसलिए लोगों की जान बिक्री इसी तरह चलती रहती है, सडक़ों पर रोज मौतें होते रहती हैं। कई बार ऐसा लगता है कि पुलिस महकमा हाईकोर्ट के ही हाथ दे देना चाहिए, तो शायद इसकी जवाबदेही कुछ तय हो सके।
भला हुआ चुनाव आ गया...
आचार संहिता लागू होने के चलते जांच और कार्रवाई की दहशत से गुजर रहे कई लोगों को फिलहाल राहत मिल गई है। चुनाव के बाद जब नई सरकार बनेगी तो उसकी प्राथमिकता में ये मामले रहेंगे, यह आज दावे से नहीं कहा जा सकता। दिव्यांगों के एक संगठन ने 56 लोगों के खिलाफ दस्तावेजों के साथ शिकायत की थी कि ये फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे हैं। उनकी शिकायत दो साल से शासन के पास पड़ी थी, पर अगस्त सितंबर में जब इन्होंने आंदोलन किया, तब जांच आगे बढ़ाई गई। पर अब तक इनमें से सिर्फ एक पर कार्रवाई हुई है। महासमुंद की कृषि विभाग में सहायक संचालक ऋचा दुबे को बर्खास्त किया गया। मेडिकल बोर्ड ने पाया कि श्रवण बाधित होने का उसका प्रमाण पत्र फर्जी है। मुंगेली और बिलासपुर के दो डॉक्टरों पर ऊंगली उठी है कि ये फर्जी प्रमाण पत्र उन्होंने ही जारी किए, पर न तो फिलहाल इन डॉक्टरों पर कोई कार्रवाई होने की उम्मीद है और न ही शेष 55 लोगों के प्रमाण पत्रों की जांच होने की संभावना दिख रही है। इसी तरह, बीते जुलाई माह में विधानसभा सत्र के दौरान अनुसूचित जाति के युवाओं ने सडक़ पर नग्न प्रदर्शन किया था। इनका आरोप है कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर 267 लोग नौकरियों पर कब्जा करके बैठे हैं। इनकी बर्खास्तगी का आदेश 3 साल पहले दिया जा चुका है पर वे अपने पदों पर बैठे हैं। नग्न प्रदर्शन करने वाले गिरफ्तार कर लिए गए। करीब दो माह बाद जमानत पर छूट गए। नग्न प्रदर्शन से हड़बड़ाकर सरकार ने उच्च-स्तरीय जाति छानबीन समिति को प्रकरणों पर जल्द फैसला लेने कहा, लेकिन कुछ दिनों में मामला ठंडा पड़ गया।
इसी साल स्कूल शिक्षा विभाग में करीब 10 हजार शिक्षकों का प्रमोशन हुआ। इनमें से 4 हजार शिक्षकों को गलत तरीके से काउंसलिंग के बिना ही मनचाही पोस्टिंग दी गई। एक एक पोस्टिंग पर डेढ़ से दो लाख रुपये की वसूली की शिकायत आई। इस बीच स्कूल शिक्षा मंत्री का प्रभार रविंद्र चौबे को मिला। उन्होंने पोस्टिंग को तो रद्द करने का आदेश दिया, लेकिन जिन संयुक्त संचालकों और लिपिकों को निलंबित किया गया, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हुई। एफआईआर का केवल ऐलान किया गया था। इन पर भी अब कोई कार्रवाई होने की उम्मीद निकट भविष्य में नहीं है।
टमाटर सडक़ पर..
कुछ माह पहले टमाटर 150-200 रुपये किलो पहुंच गया तब हाहाकार मच गया था। पर अब स्थिति ठीक उल्टी हो गई है। रायगढ़, सरगुजा और जशपुर इलाके में बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती की जाती है। छत्तीसगढ़ के अलावा पड़ोसी राज्यों में इसकी बड़ी डिमांड होती है। पर इस बार उत्पादन के मुकाबले मांग फिर घट गई है। किसानों का कहना है कि इस बार उनकी लागत भी नहीं निकल रही है। यह तस्वीर झारखंड से सटे छत्तीसगढ़ के रामानुजगंज जिले की है, जहां किसानों ने व्यापारियों को तीन रुपये किलो में बेचने से बेहतर यह समझा कि इसे सडक़ों पर फेंक दिया जाए। जरूरतमंद लोग टमाटर उठाकर ले जा रहे हैं। बाकी सब्जियों के दाम वैसे भी चढ़े हुए हैं। मवेशियों को भी आहार मिल रहा है।