राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : दुश्मनी भारी पड़ रही है
11-Oct-2023 2:52 PM
राजपथ-जनपथ : दुश्मनी भारी पड़ रही है

दुश्मनी भारी पड़ रही है 

तेज तर्रार विधायक बृहस्पति सिंह को डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव से अदावत भारी पड़ती दिख रही है। दो बार के विधायक बृहस्पति सिंह पिछले दिनों दिल्ली में थे, और पार्टी के प्रमुख नेताओं से चर्चा कर अपनी टिकट पक्की कराने में जुटे थे। मगर उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। 

दूसरी तरफ, सिंहदेव बृहस्पति सिंह की जगह पूर्व मेयर डॉ. अजय तिर्की को टिकट देने के लिए दबाव बनाए हुए हैं। इससे बृहस्पति सिंह  के समर्थकों के सब्र का बांध टूटता दिख रहा है। दो दिन पहले बृहस्पति सिंह सिंह के समर्थकों ने बलरामपुर में सभा बुलाई थी। इसमें करीब 5 हजार लोग जुटे। सभा में साफ तौर पर कहा गया कि बृहस्पति सिंह के अलावा कोई और प्रत्याशी मंजूर नहीं होगा। यही नहीं, बृहस्पति सिंह  के कुछ उत्साही समर्थकों ने टीएस के खिलाफ नारेबाजी भी की। 

जानकार बताते हैं कि यदि बृहस्पति सिंह को टिकट नहीं मिली, तो वो खामोश बैठने वालों में नहीं है। वो निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद जाएंगे। ऐसा वो एक दफा कर भी चुके हैं। हालांकि उन्हें, और समर्थकों को सीएम भूपेश बघेल पर भरोसा है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है। मगर कांग्रेस में विवाद से विशेषकर बृहस्पति सिंह के प्रतिद्वंदी भाजपा प्रत्याशी रामविचार नेताम खुश दिख रहे हैं। 

गौरीशंकर को जिम्मा 

चर्चा है कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। कसडोल में पिछले चुनाव अनजान चेहरे से बुरी हार के बाद पार्टी उनकी जगह किसी और नाम पर विचार कर रही है।  कसडोल में प्रत्याशी की अधिकृत घोषणा नहीं की गई, लेकिन चर्चा है कि इस मसले पर गौरीशंकर की राय ली गई है। 
बताते हैं कि गौरीशंकर अग्रवाल के उन्हें कोई और जिम्मेदारी देने जा रही है। इस सिलसिले में प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, और अन्य नेताओं से चर्चा की। चूंकि प्रदेश अध्यक्ष, तीनों महामंत्रियों, और पूर्व सीएम व तमाम दिग्गजों के चुनाव मैदान में उतर गए हैं। ऐसे में चुनाव मैनेजमेंट की कमान गौरीशंकर को दी जा सकती है। गौरीशंकर पहले भी पार्टी का चुनाव प्रबंधन देखते रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है। 

सत्ता की सहूलियत 

चुनाव में सरकार होने का फायदा तो फील्ड में मिलता ही है। क्योंकि सरकारी विभागों से राजनीतिक दलों, नेताओं प्रत्याशियों को कई तरह की कागजी अनुमति,एनओसी लेनी होती है। इसके एवज में विभाग केवल नो, नहीं दी जा सकती, नहीं दी जाती है भर लिखवाना, लिखना होता है बस। जब विभाग से लाल चिडिय़ा बैठे तो आयोग भी कुछ नहीं कर पाता। आने वाले दिनों में ऐसी समस्या से सभी विपक्षी प्रत्याशी जूझने वाले हैं। कुछ तो जूझने भी लगे हैं। खबर है कि भाजपा ने पीएम की वर्चुअल सभाओं के लिए सभी 90 सीटों पर एलईडी स्क्रीन वैन की अनुमति आयोग से मांगी है। 

आयोग ने आरटीओ से एन ओ सी तलब किया है। आरटीओ अभी चुनाव कार्य में व्यस्त हैं। दफ्तर में मिलते ही नहीं । एक सप्ताह से एजेंसी और पार्टी के लोग चक्कर काट रहे हैं। और आखिरी में जब मिलेंगे तब आरटीओ कहेंगे, इतने की अनुमति नहीं दी जा सकती । और भी दल, प्रत्याशी हैं। आपको दस की ही अनुमति दी जाती है । ऐसे विपक्ष को सबसे बड़ी दिक्कत दारू को लेकर होने वाली है। विभाग ने ऐसी किलेबंदी कर रखी है कि विपक्ष एक एक घूंट देने तरस जाएगा। 

कप्तान की चेतावनी 

उत्तर छत्तीसगढ़ के एक प्रत्याशी और जिलाध्यक्ष  पूर्व मंत्री भी रहे हैं। वे वोटर्स के कुछ फ्रीबीज का इंतजाम कर रहे थे। कप्तान साब ने मैसेज भिजवाया कि न करें नहीं तो रासुका लगा दूंगा।  देखे यह चेतावनी ही रहती है या लगती है ।

भाजपा नेताओं को ‘बेटी’ की फटकार...

भाजपा की दूसरी सूची ने ऐसे दावेदारों को भावुक कर दिया है। सन् 2018 में बिंद्रानवागढ़ के विधायक डमरूधर पुजारी ने करीब 10 हजार वोटों से कांग्रेस के संजय नेताम को हराया था। इस बार उनकी जगह गोवर्धन राम मांझी को टिकट दी है। पुजारी सदमे में हैं और उन्होंने मीडिया के सामने दुख भी जताया है। पूछ रहे हैं गलती क्या हुई, जो टिकट काटी गई। कह रहे हैं- होना कुछ नहीं है, फिर भी संगठन से बात करेंगे। इधर सोशल मीडिया पर दूसरा दर्द छलका है, स्व. भीमा मंडावी की बेटी दीपा मंडावी का। स्व मंडावी ने कड़े मुकाबले में कांग्रेस लहर के बीच देवती कर्मा को करीब 2100 वोटों से हराया था। सन् 2019 में नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी। इसके बाद हुए उप-चुनाव में स्व. भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी को भाजपा ने खड़ा किया, जबकि देवती कर्मा फिर चुनाव लड़ी। ओजस्वी करीब 11 हजार वोटों से हार गईं। हालांकि इस चुनाव में ओजस्वी को 37 हजार के करीब वोट मिले जो भीमा मंडावी को जीत में मिले 35 हजार वोटों से अधिक था।

अब  ट्विटर (एक्स) पर ओजस्वी-भीमा की बेटी दीपा ने सीधे आरोप लगाया है कि उनकी मां ओजस्वी की टिकट काटकर पिता के बलिदान को बेइज्जत किया गया है। उनका कहना है कि –मेरे पापा ने पार्टी के लिए अपनी जान दी, उनके जाने के बाद हमें अपने कल का पता नहीं था, फिर भी मम्मी ने हमें संभाला और पापा की जगह ली। क्या मेरे पापा के बलिदान की कोई कीमत नहीं है? पापा को यहां की जनता अब भी चाहती है, मेरी मां ने उनके अधूरे कामों को पूरा करने के लिए ही राजनीति में कदम रखा था। पार्टी से जवाब चाहिए।  

अभी 5 सीटों पर टिकट की घोषणा बाकी है। इनमें बेलतरा सीट भी है, जहां के विधायक रजनीश सिंह ठाकुर ने त्रिकोणीय संघर्ष में सन् 2018 में भाजपा के लिए जीत हासिल की थी। डॉ. रमन सिंह, सौरभ सिंह, प्रबल प्रताप सिंह, संयोगिता सिंह, धर्मजीत सिंह और एक दो और नाम ठाकुर या राजपूत समाज से प्रत्याशी तय हो चुके हैं। ऐसे में रजनीश सिंह की टिकट को खतरे में माना जा रहा है। वे अभी खामोश हैं, उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि बेलतरा से कोई नाम अभी घोषित नहीं किया गया है।

कांग्रेस का धार्मिक विश्वास बड़ा

भारतीय जनता पार्टी ने 85 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है लेकिन अब तक कांग्रेस की एक भी सूची नहीं आई है। पहले कहा जा रहा था कि कर्नाटक के फॉर्मूले पर काम करते हुए कुछ उम्मीदवारों के नाम सितंबर के पहले सप्ताह में घोषित कर दिए जाएंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। कांग्रेस की बैठकें लगातार हो रही हैं, यह भी बात बाहर फैलाई जा रही है कि अधिकांश सीटों पर सिंगल नाम तय हो चुके हैं, पर जिस तरह की देरी हो रही है, उससे कयास लगाये जा रहे हैं कि आम सहमति नहीं बन पा रही है। चर्चा यह है कि मौजूदा विधायकों में किसकी टिकट बरकरार रखी जाए, किसकी काट दें- यह तय नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ टिकटों की घोषणा रोकने का एक पवित्र कारण भी प्रचारित किया जा रहा है। यह कहा जा रहा है कि शुभ काम पितृ पक्ष में नहीं किये जाते, इसलिये घोषणा रुकी है। 15 अक्टूबर से नवरात्र शुरू हो रहा है, उसके साथ ही घोषणा का सिलसिला शुरू होगा। ऐसा करके कांग्रेस एक बार फिर प्रचारित कर सकेगी धार्मिक मान्यताओं की उसे भाजपा से कहीं अधिक परवाह है।

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