राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : बाफना राजस्थान निकल गए
14-Oct-2023 4:39 PM
राजपथ-जनपथ : बाफना राजस्थान निकल गए

बाफना राजस्थान निकल गए

 टिकट वितरण के बाद बागियों को मनाने में भाजपा के दिग्गज नेताओं को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, और नितिन नबीन दो दिन पार्टी दफ्तर में डटे रहे, और सुबह से शाम तक टिकट कटने से नाराज नेताओं को मनाने की कोशिश करते रहे। उन्हें थोड़ी बहुत सफलता भी मिली है, लेकिन ज्यादातर नेता अब भी नाराज बताए जा रहे हैं। 
जगदलपुर के पूर्व विधायक संतोष बाफना को माथुर ने बुलाया, और अधिकृत प्रत्याशी किरण देव के पक्ष में काम करने की समझाइश दी। मगर बाफना ने साफ तौर पर कह दिया कि वो किसी भी दशा में जगदलपुर में काम नहीं करेंगे। उन्होंने कहा बताते हैं कि वो राजस्थान जा रहे हैं, और लौटने के बाद अगर पार्टी चाहे तो किसी दूसरी सीट पर प्रचार का जिम्मा दे सकती है। 

माथुर ज्यादा कुछ जोर नहीं दे सके, और फिर बाफना राजस्थान निकल गए। मगर दंतेवाड़ा से दिवंगत भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी मंडावी को मनाने में माथुर सफल रहे, लेकिन आरंग, बालोद, और रायपुर की सीटों पर प्रत्याशी की घोषणा के बाद जो असंतोष फैला है, वह कम होने का नाम नहीं ले रहा है। यह साफ है कि बागी नहीं माने, तो चुनाव में दिक्कत हो सकती है। 

सिंधी-गुजराती समाज 

भाजपा में सिंधी, और गुजराती समाज से प्रत्याशी तय नहीं हुए हैं। कांग्रेस में तो वैसे भी दोनों समाजों के लिए गुंजाइश काफी कम दिख रही है। इन चर्चाओं के बीच एक खबर यह है कि दोनों समाज के प्रमुख नेता, रायपुर की चारों में से एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रहे हैं। दोनों समाज के लोग आर्थिक रूप से सक्षम भी हैं, और एक पूर्व विधायक को इसके लिए तैयार करने की कोशिश हो रही है। पूर्व विधायक ने तो फिलहाल मना कर दिया है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस टिकट की अधिकृत घोषणा के बाद दोनों समाज मिलकर कोई ठोस फैसला ले सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है। 

बाबा के खिलाफ कौन? 

डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव इस बार कड़े मुकाबले में फंस सकते हैं। इसके लिए भाजपा रणनीति बना रही है। इससे पहले भाजपा अंबिकापुर को लेकर ज्यादा सीरियस नहीं रही है। भाजयुमो के प्रभारी अनुराग सिंहदेव ने पहली बार तो टीएस को कड़ी टक्कर दी थी। बाद में उनकी खुद की स्थिति खराब हो गई। इसके बाद के चुनाव में उनके हार का अंतर बढ़ गया। 

पिछले चुनाव में विरोध के बाद भी अनुराग को फिर टिकट दे दी गई, और टीएस रिकॉर्ड वोटों से जीत गए। पार्टी के कई लोग टिकट तय करने वाली कोर टीम के सदस्यों पर टीएस से मिलीभगत के आरोप भी लगाते रहे हैं। मगर इस बार आरोपों से बचने के लिए ऐसे प्रत्याशी की तलाश हो रही है, जो सिंहदेव को कड़ी टक्कर दे सके। 

कोर टीम के साथ दिक्कत यह है कि अंबिकापुर शहर के ज्यादातर नेताओं के टीएस से घनिष्ठता है। ऐसे में कांग्रेस से आए दो प्रमुख नेता आलोक दुबे, और राजेश अग्रवाल पर नजरें टिकी है। आलोक, टीएस की जमीन के मामले पर शिकायतकर्ता हैं, और लड़ाई लड़ रहे हैं।  इन सबको देखकर पार्टी उन्हें उम्मीदवार बना सकती है। देखना है आगे क्या कुछ होता है। 

हटाए गए अफसरों का नुकसान 

यूं तो लोकतंत्र के सबसे बड़े त्यौहार चुनाव में वोट डालना बड़े गर्व कारी माना जाता है आजकल तो वोट डालने को इवेंट की तरह प्रचारित भी किया जा रहा है। उसमें किसी अधिकारी कर्मचारी को चुना कराने का अवसर बीएलओ, सेक्टर प्रभारी, एआरओ और डीआरओ के रूप में मिले तो वह शान से कह सकता है कि इस सरकार या मंत्री, मुख्यमंत्री, विधायक के निर्वाचन में मेरी भूमिका रही है। 

यह भूमिका इसलिए कि आयोग ने जिन प्रशासनिक और पुलिस अफसरों को हटाया है वे अब कभी चुनाव संबंधी काम नहीं कर जाएंगे। आयोग उनकी ड्यूटी नहीं लगाएगा। हालांकि प्रशासनिक अफसर हमेशा कलेक्टर नहीं रहेंगे। वे पदोन्नत होकर महानदी, इंद्रावती भवन में बैठेंगे। सो सचिवों की ड्यूटी तो लगती नहीं। लेकिन उन्हें दीगर राज्यों में पर्यवेक्षक भी नहीं बनाया जाता है। और कभी राज्य के सीईओ बनाने का अवसर आया तो आयोग के पैनल भी नाम नहीं होगा। सबसे बड़ा नुकसान पुलिस अफसरों को होगा। वे किसी भी चुनावी कार्य में कभी तैनात नहीं किए जाएंगे। बस मन को तसल्ली होगी कि चलो बचे रहे चुनाव ड्यूटी नहीं लगी।

क्या फिर बगावत करेंगे चोपड़ा?

महासमुंद से सन् 2013 में निर्दलीय विधायक चुने गए डॉ. विमल चोपड़ा बाद में अपनी पार्टी भाजपा में वापस आ गए थे। सन् 2018 में भी वे निर्दलीय लड़े, लेकिन केवल 21 हजार वोट हासिल कर पाए। कांग्रेस प्रत्याशी विनोद चंद्राकर ने भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार को 23 हजार से अधिक वोटों से हराया। चुनाव 2023 में भाजपा ने पार्टी के जिला उपाध्यक्ष योगेश्वर राजू सिन्हा को मैदान में उतारा है। डॉ. चोपड़ा के समर्थक पार्टी के इस फैसले से निराश हैं। उन्होंने चोपड़ा से मिलकर उनसे निर्दलीय चुनाव लडऩे का आग्रह किया है। चोपड़ा ने कोई निर्णय नहीं लिया है। सन् 2018 के आंकड़ों से पता चलता है कि यदि चोपड़ा के वोट भाजपा को मिल जाते तो कांग्रेस उम्मीदवार को शिकस्त देने की स्थिति बन जाती। यदि वे इस बार फिर निर्दलीय उतरते हैं तो भाजपा को यह सीट हासिल करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी। वैसे यह कोई कारण नहीं हो सकता कि चोपड़ा ने पिछली बार भाजपा को नुकसान पहुंचाया, इसलिए उनके नाम पर विचार नहीं किया गया। बगल की बसना सीट से सन् 2018 में निर्दलीय लडऩे वाले संपत अग्रवाल को तो भाजपा ने इस बार अपनी टिकट से उतार ही दिया है। फर्क इतना है कि संपत अग्रवाल को करीब 50 हजार वोट मिले थे और निर्दलीय लडक़र उन्होंने भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। जबकि चोपड़ा पांचवे नंबर थे। भाजपा, जेसीसी प्रत्याशी और एक निर्दलीय मनोज साहू को उनसे अधिक वोट मिले थे।

मिलते-जुलते नाम वाला दल

मिलते-जुलते नाम वाले प्रत्याशी ही नहीं, इस बार पार्टियां भी मैदान में दिखने वाली हैं। जनता कांग्रेस पार्टी की ओर से कल 32 उम्मीदवारों की सूची जारी की गई तो लोगों को लगा कि यह स्व. अजीत जोगी की पार्टी के हैं। पर थोड़ी ही देर में प्रदेश अध्यक्ष पूर्व विधायक अमित जोगी का बयान आ गया कि उनकी कोई सूची जारी नहीं की गई है। जो सूची बताई जा रही है, वह फर्जी है। दरअसल, यह सही है कि यह जेसीसी की सूची नहीं है, पर फर्जी होने की बात में पेंच है। इस दल, जनता कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष संतोष सोनवानी का दावा है कि उनकी अलग पार्टी है। दस राज्यों में उनका संगठन है और डॉ. मेहताब रॉय इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। चुनाव आयोग में दल का पंजीयन भी है।

पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने जब दल का नाम जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) रखते हुए इसका ऐलान किया, तभी स्पष्ट किया था कि उन्हें आशंका है कि कुछ मिलते-जुलते नाम वाले दल मैदान में आ जाएंगे, इससे भ्रम होगा। इसलिए उन्होंने खास तौर पर अपने दल के नाम के साथ जोगी और छत्तीसगढ़ को जोड़ा है। फिलहाल दूसरी, तीसरी पार्टियों की तरह जेसीसी के किसी उम्मीदवार की घोषणा नहीं हुई है।

तीसरे दलों को कांग्रेस का इंतजार

भाजपा में कांग्रेस के मुकाबले बागी उम्मीदवार कम निकलते हैं। प्रदेश में पांच को छोडक़र बाकी सारी सीटों पर उम्मीदवार तय कर देने के बाद असंतोष तो देखने को मिला लेकिन किसी ने अब तक बगावत कर मैदान में उतरने की घोषणा नहीं की है। आगे हो सकता है। इधर कांग्रेस की सूची जारी नहीं हुई है। कल 15 अक्टूबर को एक साथ ज्यादातर सीटों के नाम आने की बात कही जा रही है। पर, कांग्रेस को छोड़ दें, आम आदमी पार्टी, सर्व आदिवासी समाज और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने भी नाम रोक रखे हैं। चर्चा यही है कि इन तीनों दलों को उम्मीद है कि कांग्रेस में टिकट की घोषणा होने के बाद बगावत कर मैदान में उतरने वाले कई लोग सामने आएंगे। इन असंतुष्टों पर तीसरे दलों की निगाह है। इनमें भी अगर कोई मौजूदा विधायक किसी तीसरे दल के हाथ लग जाए तो फिर तो बात जम जाएगी ! सुनने में तो यह भी आया है कि आम आदमी पार्टी ने भाजपा के टिकट वितरण के बाद कुछ दावेदारों को अपने चुनाव-चिन्ह पर उतरने का ऑफर दिया था, लेकिन बात नहीं बनी। जेसीसी (जे) के बारे में भी कहा जा रहा है कि वहां भी कांग्रेस की सूची का इंतजार हो रहा है। बसपा को परवाह नहीं रही, उसने अपनी उन सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं, जहां से उसे लडऩा है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कल छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। संभवत: वे कल सूची भी जारी करें। पूर्व के चुनावों में सपा ने कांग्रेस के कुछ बागियों को टिकट दी थी।

एक तस्वीर अपने शहर की

सोशल मीडिया पर इस तस्वीर को पोस्ट करते हुए एक आईपीएस ने लिखा- यह न्यूयार्क नहीं, अपना रायपुर शहर है। लोगों ने जवाब दिया, हमें न्यूयार्क लग भी नहीं रहा है। दूसरे ने कहा कि सर पर गमछा बांधकर बाइक चलाने वाले तो अपने रायपुर में ही मिलेंगे। 

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