राजपथ - जनपथ
पत्ते फूल से बागी !
भाजपा में टिकट की घोषणा के बाद असंतोष थमने का नाम नहीं ले रहा है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद यहां आए, तो एक पूर्व आईएएस, और टिकट के दावेदार रहे नेताओं ने उनसे मिलकर प्रत्याशी चयन पर नाराजगी जताई। टिकट नहीं मिलने पर एक प्रभावशाली नेता के समर्थकों ने बकायदा ऑडियो संदेश तैयार करवा लिया है, और अपने समाज के लोगों को भाजपा के खिलाफ वोट करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। एक चर्चा यह भी है कि समाज विशेष के करीब दो हजार लोग चुनाव के बीच में धार्मिक पर्यटन पर निकल रहे हैं। टिकट कन्फर्म होने का दावा किया जा रहा है। इससे चुनाव नतीजों पर क्या फर्क पड़ेगा, इस पर भी चर्चा चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।
पंजे की उंगलियाँ झाड़ू थामने की ओर
कांग्रेस की पहली सूची में 8 विधायकों का पत्ता साफ हो गया है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि करीब 18-20 विधायकों की टिकट कट सकती है। टिकट को लेकर सशंकित कुछ विधायक दिल्ली में जमे हुए हैं, और एक-दो तो आम आदमी पार्टी, और अन्य दल के संपर्क में भी आ चुके हैं।
संभावना जताई जा रही है कि जिन विधायकों की टिकट कट चुकी है अथवा कटने जा रही है, उनमें से कई पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। जिन आठ विधायकों की टिकट कटी है, उनमें से एक ने तो पार्टी छोडक़र चुनाव मैदान में उतरने का मन बना लिया है। एक अन्य ने तो समर्थकों को चुनाव प्रचार से जुट जाने के लिए कह दिया है। ये विधायक पहले भी निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरकर अपना दम दिखा चुके हैं। इस बार तैयारी पहले से ज्यादा है। कितने विधायक बागी होते हैं, यह तो नाम वापसी के बाद पता चलेगा।
आप, जोगी और नेताम की नजर
प्रथम चरण की सीटों के लिए नामांकन दाखिल हो रहे हैं। इस बीच पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम, आम आदमी पार्टी, और जोगी पार्टी की नजर कांग्रेस व भाजपा के असंतुष्ट नेताओं पर है। नेताम ने तो अपने दल के प्रत्याशियों की सूची सिर्फ इसलिए जारी नहीं की है कि कांग्रेस से निराश वजनदार नेता साथ आ सकते हैं। ऐसे मजबूत नेताओं को वो प्रत्याशी बनाने की सोच रहे हैं।
आम आदमी पार्टी ने दो सूची जारी कर दी है, लेकिन कई सीटों पर नाम घोषित नहीं किए हैं। उनकी भाजपा, और कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं पर नजर है। जबकि जोगी पार्टी के मुखिया अमित जोगी तो कह चुके हैं कि दोनों ही पार्टी के कई प्रमुख नेता उनके संपर्क में हैं। यानी असंतुष्टों के लिए दूकानें खुली हुई है।
फर्जीवाड़ा और चुनाव ड्यूटी
ऐसे कर्मचारी जिनके खिलाफ नौकरी हासिल करने के लिए फर्जीवाड़ा करने का आरोप है, वे चुनाव ड्यूटी क्या निष्पक्ष तरीके से करेंगे? यह सवाल उठा है धमतरी जिले के मगरलोड से। करीब 12 साल पहले यहां शिक्षाकर्मी भर्ती में फर्जीवाड़ा की शिकायत हुई थी। मामला उजागर होने के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी, तत्कालीन एक जनपद सीईओ को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था। पर उसके बाद किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। न तो पुलिस जांच बढ़ी. न विभाग ने रुचि ली। स्थिति यह है कि जिन 102 शिक्षाकर्मियों पर फर्जी दस्तावेजों के जरिये नौकरी हासिल करने का आरोप है, वे अब भी सेवा दे रहे हैं, शासन से वेतन ले रहे हैं। कुछ का तो प्रमोशन भी हो गया है। यह जानकारी सामने आई है कि अभी के चुनाव में उन्हें फिर ड्यूटी पर लिया गया है, 2018 में भी लिया गया था। जिस आरटीआई कार्यकर्ता ने इस फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ किया था, उसने जिला निर्वाचन अधिकारी और एसपी से मांग की है कि 12 साल में जांच तो पूरी हुई नहीं, कम से कम इन्हें चुनाव से अलग रखा जाये, वरना अपनी नौकरी बचाने के लिए वे दबाव में काम कर सकते हैं। देखें, प्रशासन इस पर क्या निर्णय लेता है।
सीएम के दावेदार सांसद चेहरे
सांसदों का विधानसभा चुनाव लडऩा, मोर्चे पर सेनापतियों का खुद युद्ध में कूद जाने जैसा है। भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा तय नहीं किया, लेकिन मतदाताओं को खुशफहमी में रखने का पूरा मौका दिया है। अन्य पिछड़ा वर्ग में छत्तीसगढ़ के दो समाज, कुर्मी और साहू वजन रखते हैं। कुर्मी समाज को लग सकता है कि पाटन में विजय बघेल मुख्यमंत्री को हरा देंगे तो फिर सीएम पद के वे ही दावेदार होंगे। इधर साहू समाज से अरुण साव भी लोरमी से मैदान में हैं। यदि भाजपा की ज्यादा सीटें आईं तो साहू समाज उनको मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहेगा। यह जरूर माना जा सकता है कि बीते कई चुनावों में चुनौती बनती आई पत्थलगांव सीट से सांसद गोमती साय को टिकट इसलिए दी गई हो कि वह कांग्रेस को मजबूती से टक्कर दे सके, लेकिन कोरिया जिले की भरतपुर-सोनहत सीट से केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह को टिकट देने का संदेश यह माना जा सकता है कि बहुमत मिलने पर आदिवासी मुख्यमंत्री भी भाजपा तय कर सकती है। इन सबको लेकर कोई सहमति नहीं बनती है तो फिर डॉ. रमन सिंह तो मैदान में हैं ही।
कांग्रेस ने अपने दो में से एक सांसद दीपक बैज को मैदान में उतारा है। वे सीएम के रेस में शायद न रहें, पर उतरने की वजह बैज खुद बता चुके हैं- मेरे लडऩे से आसपास की तीन-चार सीटों पर फायदा मिलेगा। वैसे लोगों का कहना है कि बैज की महत्वाकांक्षाएँ ख़ासी बड़ी हैं।
अपील की जमीनी हकीकत..
जिलों में प्रशासन चुनाव की तैयारियों के साथ-साथ मतदाताओं को वोट देने के लिए जागरूक करने का अभियान भी चला रहा है। वोट किस बात पर देना है, किस पर नहीं-यह भी समझाया जा रहा है। अब इसे देखिये, धमतरी में चलाए गए स्वीप अभियान के तहत राह चलते मतदाताओं को तख्तियां पकड़ाकर फोटो खींची गई है। एक तख्ती पर लिखा है-जाति पर न धर्म पर, बटन दबेगा कर्म पर। अब मतदाता इस सीख पर अमल करना चाहे तो वह कर्म वाला प्रत्याशी ढूंढता रह जाएगा। जिन दलों के बीच मुख्य मुकाबला है, उन्होंने उम्मीदवार तय करते समय जाति को तो बड़ा आधार बनाया ही है, कई सीटों पर धर्म ने भी भूमिका निभाई है। जिला प्रशासन जाने-अनजाने तीसरे दलों को या नोटा में वोट देने की अपील तो नहीं कर रहा? ([email protected])