राजपथ - जनपथ
अफ़सरों का हटना बाक़ी है ?
आचार संहिता लगते ही चुनाव आयोग ने एक झटके में दो कलेक्टर, 3 एसपी समेत कुल 8 अफसरों को फील्ड से हटा दिया। चर्चा है कि पूरी कार्रवाई भाजपा की शिकायत पर की गई है। दो माह पहले आयोग की टीम आई थी तब बकायदा इन अफसरों के नाम दिए गए थे।
कहा जा रहा है कि कुछ और अफसरों के नाम भी हैं जिन्हें अभी हटाया नहीं गया है। देर सबेर उन्हें भी हटाया जा सकता है। चर्चा है कि पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी और अन्य प्रमुख नेताओं ने इन अफसरों की सूची तैयार की थी। और फिर पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और सांसद सुनील सोनी की अगुवाई में पार्टी नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार से मिलकर शिकायती पत्र सौंपा था। हल्ला है कि एक लिस्ट और आ सकती है जिसमें कुछ एसपी और कलेक्टर भी हो सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बैठक का वीडियो
कांग्रेस की बैठक के बीच सीएम भूपेश बघेल के मोबाइल पर कैंडी क्रश खेलने का मसला सुर्खियों में रहा। इस पर सीएम बघेल और पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के बीच ट्वीटर पर काफी कुछ कहा गया। सीएम ने साफगोई से कह भी दिया कि कैंडी क्रश मेरा फेवरेट है। लेवल भी ठीक-ठाक है आगे भी खेलता रहूंगा।
बावजूद इसके कांग्रेस के अंदर खाने में इस तरह की वीडियो जारी करने पर विवाद हो रहा है। यह बात छनकर आई है कि जिस वक्त सीएम कैंडी क्रश खेल रहे थे उस समय प्रत्याशी चयन के लिए बैठक शुरू भी नहीं हुई थी। स्क्रीनिंग कमेटी की इस बैठक में चेयरमैन अजय माकन और अन्य सदस्य ऑनलाइन जुड़ रहे थे।
इधर, राजीव भवन में बैठक के लिए प्रभारी सैलजा, सीएम और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के आने का इंतजार कर रहे थे। तब तक फुर्सत के क्षणों में सीएम कैंडी क्रश खेलने लग गए। इसी बीच संचार विभाग के नेताओं पर मीडिया का जल्द से जल्द फोटो और वीडियो जारी करने का दबाव था और फिर बैठक शुरू होने से पहले आईटी सेल के एक पदाधिकारी ने वीडियो और फोटो जारी कर दिया। बैठक में क्या हुआ इससे ज्यादा कैंडी क्रश को लेकर बहस शुरू हो गई। जिसे नेशनल मीडिया ने भी हाथों हाथ ले लिया।
ईश्वर को टिकट तो दुर्गेश को क्यों नहीं
भाजपा के प्रत्याशी चयन को लेकर कार्यकर्ताओं में भारी खीज दिख रही है। कार्यकर्ता कह रहे हैं कि अगर हिंदुत्व का ही झंडा बुलंद करना है तो फिर कवर्धा से दुर्गेश देवांगन को टिकट क्यों नहीं दी गई। कवर्धा में हिंदुत्व की असली लड़ाई तो दुर्गेश देवांगन ने ही लड़ी थी। तब खूब प्रचारित किया गया कि अपनी जान की बाजी लगाकर हिंदु दुर्गेश ने भगवा ध्वज का सम्मान किया। उसे घेरकर पीटा गया, लेकिन दुर्गेश नहीं झुका। इस मुद्दे पर दो साल पहले जमकर राजनीति भांजी गई। जब बीरनपुर की घटना के पीडि़त ईश्वर साहू को टिकट दी जा सकती है, जिसने हिंदुत्व के लिए कुछ नहीं किया है तो फिर दुर्गेश की टिकट क्यों विजय शर्मा ले उड़े।
राजनीति में अपने-अपने दावे
चुनाव का बिगुल फूंका जा चुका है। अब प्रत्याशियों के अपने अपने दावे हैं। ऐसा ही एक दावा राजपरिवार की बहूरानी ने किया है। उन्होंने मीडिया में कहा कि उन्होंने ढाई साल में 50 हजार किलोमीटर की पदयात्रा की है। जनता के बीच रही हैं तो जनता का समर्थन मिलना तय है। उन्हें जिस सीट से भाजपा ने टिकट दी है, उस सीट पर उनके पति दो बार विधायक रह चुके हैं। पिछली बार बहूरानी को मौका मिला था लेकिन चुनाव हार गईं। यह भी सही है कि उनके पति के निधन के बाद वे अपना राजघराना छोडक़र विधानसभा क्षेत्र में ही निवास करने लगीं। लेकिन उनके इस दावे पर कार्यकर्ता ही सवाल खड़े कर रहे हैं कि ढाई साल यानी लगभग 900 से 1000 दिन में 50 हजार किलोमीटर की पदयात्रा कैसे हो सकती है। इसके लिए तो रोज 50 किमी चलना पड़ेगा। इतनी तो सडक़ ही उस विधानसभा में नहीं है। खैर दावे तो दावे हैं मतदाता थोड़े ही टेप लेकर नापने जाएंगे।
ज्यादा इंटेलिजेंट कौन- सरकार या सट्टेबाज
जिनके पास संवैधानिक ताकत होती है। शासन-प्रशासन का पूरा तंत्र रहता है। वो ज्यादा इंटेलिजेंट है या फिर 12वीं पास महादेव एप वाला सौरभ चंद्राकर। एक छोटे से गांव से निकलकर महादेव जूस सेंटर चलाने वाला तीन-चार साल में ही करोड़ों का मालिक बन जाता है। सट्टा एप चलाकर इतनी अकूत संपत्ति बना लेता है कि दुबई में जाकर बस जाता है। अरबपतियों जैसी शादी करता है। इस शाही शादी के प्रदर्शन में छत्तीसगढ़ के लोगों को मेहमान बनाकर चार्टर्ड प्लेन में ले जाता है। आश्चर्य की बात है कि तब तक न तो केंद्रीय एजेंसियों को इसकी भनक थी और न ही राज्य सरकार के इंटेलिजेंस विभाग को। केंद्र सरकार के पास विदेशों तक की खुफिया खबर रखने वाला बहुत बड़ा तंत्र होता है। कौन कहां से कैसे करोड़ों का लेन-देन कर रहा है। इसकी जानकारी जुटाना डिजिटल युग में बहुत कठिन नहीं है। लेकिन आखिर 12वीं पास सौरभ चंद्राकर के इस कारोबार की खबर किसी को कैसे नहीं हुई। लोग कहने लगे है कि सीबीआई और ईडी को तो विपक्ष के नेताओं के चिल्हर पकडऩे में लगा दिया गया है तो फिर उन्हें इतनी फुरसत कहां कि जूस सेंटर वाले के कारोबार की ओर नजर डालें। ऐसा ही स्थानीय एजेंसियों का हाल है।
तोहमत से बचने के लिए...
भारतीय जनता पार्टी के टिकट वितरण से जिन इलाकों में असंतोष है, उनमें जगदलपुर विधानसभा भी शामिल है। यहां से पूर्व विधायक संतोष बाफना पिछली बार 27 हजार के भारी अंतर से रेखचंद जैन से चुनाव हार गए थे। इस बार भाजपा ने पूर्व महापौर किरण देव पर दांव लगाया है। चूंकि हार जीत का फासला ज्यादा था, इसलिये प्रत्याशी बदलने के फैसले ने कार्यकर्ताओं को चौंकाया नहीं। पर बाफना की संगठन में अच्छी पकड़ रही है। किरण देव को भी उन्होंने एक वक्त राजनीति में आगे बढ़ाया। टिकट कटने से निराश बाफना के समर्थकों ने उनके घर पहुंचकर उनके समर्थन में नारेबाजी की और संगठन के सामने टिकट कटने का विरोध जताने का निर्णय लिया। पर बाफना ने कुछ अलग सोच रखा है। वे अपनी तरफ से कोई शिकायत नहीं करने जा रहे हैं। उन्होंने अपने समर्थकों को पार्टी प्रत्याशी के लिए काम करने कहा है। खुद को लेकर संगठन को संदेश पहुंचा दिया है कि वे चुनाव प्रचार तो करेंगे, मगर जगदलपुर में नहीं। इस सीट को छोडक़र बाकी 89 में से किसी भी जगह भेज दें काम कर लेंगे। नाहक, भितरघात का आरोप लगेगा। फिलहाल तो वे राजस्थान निकल गए हैं।
लडऩे व जीतने का रिकॉर्ड इनके नाम...
इस बार विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसे उम्मीदवार हैं, जिनका पूरा जीवन ही चुनाव लड़ते-लड़ते बीता है और अधिकांश बार उन्हें जीत भी हासिल हुई है। मसलन, रामपुर के विधायक ननकीराम कंवर 12वीं बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। अब तक वे 6 बार चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट से प्यारेलाल कंवर भी पांच बार जीते। अधिकांश मौकों पर दोनों के बीच ही मुकाबला होता रहा। अब तक यहां 14 विधानसभा चुनाव हुए। कोरबा जिले के बोधराम कंवर भी बार-बार चुनाव लडऩे और जीतने वाले नेता हैं। कांग्रेस ने उन्हें टिकट देना तब बंद किया जब उन्होंने खुद लडऩे से मना किया। सात बार वे कटघोरा से तो एक बार पाली-तानाखार से, कुल 8 बार चुनाव लड़े। सन् 2013 में एक बार वे लखन लाल देवांगन से हारे, बाकी 7 बार उन्हें जीत मिली। पत्थलगांव से विधायक रामपुकार सिंह अब तक 10 बार चुनाव लड़ चुके हैं। दो बार हारे, आठ बार जीत चुके हैं। 2023 की कांग्रेस टिकट अभी फाइनल नहीं हुई है, पर रेस में वे इस बार भी शामिल हैं। मुंगेली विधायक व भाजपा शासन में मंत्री रहे पुन्नूलाल मोहले 6 बार विधायक और चार बार सांसद रह चुके हैं। लोकसभा और विधानसभा दोनों में ही जीत का ऐसा रिकॉर्ड शायद ही किसी दूसरे नेता के पास छत्तीसगढ़ में हो। वे केवल एक बार अपना पहला चुनाव जरहागांव विधानसभा से हारे थे। उसके बाद जब भी लड़े, जीतते गए। भाजपा की टिकट से वे 12 वीं बार मुंगेली विधानसभा से उतर गए हैं।