राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : खर्च को लेकर संघर्ष
03-Nov-2023 4:09 PM
	 राजपथ-जनपथ :  खर्च को लेकर संघर्ष

खर्च को लेकर संघर्ष

चर्चा है कि रायपुर की एक सीट पर मुख्य राजनीतिक दल के प्रत्याशी, और चुनाव संचालक के बीच विवाद शुरू हो गया है। चुनाव संचालक के पास पहले से ही संगठन का एक अतिरिक्त दायित्व था, बावजूद उन्हें चुनाव संचालन की जिम्मेदारी दी गई। 

चुनाव प्रचार जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है। प्रचार के लिए कार्यकर्ता पैसा मांग रहे हैं। स्वाभाविक है कि प्रचार-प्रसार पर तो खर्च होता ही है। चुनाव आयोग ने प्रत्याशी के लिए 40 लाख खर्च की सीमा तय कर रखी है। मगर रायपुर की सीटों पर मुख्य दलों के प्रत्याशियों को तय सीमा से न्यूनतम 10-20 गुना, या उससे अधिक खर्च करना पड़ता है। 

बताते हैं कि खर्च को लेकर चुनाव संचालक, और प्रत्याशी के बीच पिछले दिनों बैठक हुई। प्रत्याशी ने साफ तौर पर कह दिया कि वो 2-3 सीआर से ज्यादा नहीं खर्च कर सकते हैं। इस पर हैरान चुनाव संचालक  ने कहा बताते हैं कि रायपुर की सीट पर न्यूनतम 10 सीआर खर्च करने पड़ते हैं। इतनी व्यवस्था नहीं होगी, तो मुश्किलें आएंगी। कार्यकर्ताओं की नाराजगी से बचने के लिए चुनाव संचालक ने फिलहाल खुद को किनारे कर लिया है। देखना है कि आगे का प्रचार कैसे होता है। 

पूरा महल जुटा

डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। भाजपा ने  सिंहदेव के खिलाफ उनके ही चेले राजेश अग्रवाल को मैदान में उतार दिया है। इस बार का माहौल काफी अलग है। पिछली बार तो उनके सीएम बनने का हल्ला था। इसलिए लोगों ने उन्हें बढ़-चढक़र समर्थन दिया। लेकिन इस बार परिस्थिति अलग है। स्थानीय लोगों में नाराजगी भी है। 

सिंहदेव को सारी स्थिति का अंदाजा है। यही वजह है कि उनके छोटे भाई, और तीनों बहनों ने अंबिकापुर में डेरा डाल दिया है। सारे नजदीकी रिश्तेदार भी जुट गए हैं। गली-मोहल्लों में जाकर सिंहदेव के लिए वोट मांग रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा प्रत्याशी राजेश अग्रवाल को उन्हीं के दल के प्रमुख नेता समर्थन नहीं कर रहे हैं। मगर असंतुष्ट कांग्रेसियों, और निष्ठावान भाजपाईयों व व्यक्तिगत संपर्कों की वजह से मजबूत दिख रहे हैं। कुल मिलाकर सिंहदेव के लिए इस बार की राह आसान नहीं है। 

मंच पर कड़वे तेवर, मिले तो...

मानपुर-मोहला इलाके में सीएम भूपेश बघेल, और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा गुरुवार को वहां हेलीपैड में गर्मजोशी से मिले। दोनों ही सीएम अपने आक्रामक तेवर के लिए जाने जाते हैं। बिस्वा सरमा कांग्रेस में रह चुके हैं। और वो कांग्रेस की राजनीति में दिग्विजय सिंह के करीबी रहे हैं। भूपेश को भी दिग्विजय सिंह का वरदहस्त रहा है। 

हिमंता और सीएम भूपेश बघेल, दोनों की मानपुर इलाके में सभा थी। और जब आमने-सामने हुए, तो हाथ मिलाया, और दोनों ने कुशलक्षेम पूछा। हिमंता के साथ महासमुंद के पूर्व सांसद चंदूलाल साहू भी थे। भूपेश बघेल ने उनकी तरफ देखकर पूछ लिया आप लोगों ने चंदूलाल जी को टिकट क्यों नहीं दिया? हास परिहास के बीच भूपेश ने आगे कहा कि अच्छा हुआ, आप लोगों ने चंदूलाल को टिकट नहीं दिया, हमारा एक विधायक बढ़ जाएगा। इसके बाद  दोनों अलग-अलग हेलीकॉप्टर से रवाना हो गए। 

क्या चिंतामणि दिखा पाएंगे अपना जादू

सरगुजा में संत गहिरा गुरु का काम और नाम बहुत प्रसिद्ध है। उन्होंने पूरे सरगुजा क्षेत्र में लोगों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से जागरूक किया। वे किसी राजनीतिक दल से नहीं थे। उनके नाम पर सरकार ने संत गहिरा गुरु अलंकरण भी घोषित किया है। उनके सुपुत्र चिंतामणि महराज अभी चर्चा में हैं। वे कांग्रेस के विधायक थे, उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दी तो भाजपा में चले गए। इसे उनकी घर वापसी कहा जा रहा है। वैसे चिंतामणि महराज भाजपा से कभी विधायक नहीं चुने जा सके। रमन सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें संस्कृत बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था। 

वे 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट के दावेदार थे, पर भाजपा ने महत्व नहीं दिया तो नाराज होकर सामरी विधानसभा से निर्दलीय मैदान में उतर गए। उन्हें लगभग 19000 वोट मिले, पर जीत नहीं सके। इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने 2013 लुंड्रा से टिकट दी और जीतकर पहली बार विधायक बने। 

2018 में कांग्रेस ने उन्हें लुंड्रा के बजाय सामरी से मैदान में उतारा और उन्होंने रिकार्ड 51 प्रतिशत मत लेकर चुनाव में विजयी रहे। लेकिन इस बार कांग्रेस ने टिकट नहीं दी। भाजपा में शामिल तो हुए पर कहीं से प्रत्याशी नहीं है। अब कार्यकर्ता कह रहे हैं कि भाजपा ने तो कभी विधायक तो बनाया नहीं, कांग्रेस से विधायक बन सके। अब देखना होगा कि भाजपा में उनकी ग्रह दशा कितना साथ देती है।

फसलों को बचाने वाला इलेक्ट्रॉनिक भेडिय़ा

फसल को जानवरों से बचाने के लिए हम बहुत पारंपरिक उपाय अपनाते हैं। एक पुतले को इंसानों का कपड़ा पहनाकर खड़ा कर दिया जाता है जिसे भगउड़ा या बिजूका कहा जाता है। या फिर कनस्तर पीट-पीट कर बंदरों और दूसरे जानवरों को भगाया जाता है। इसके अलावा बाड़ लगाई जाती है, जो खर्चीला है। कई बार पशु बाड़ को भी फांद लेते हैं, इसे देखते हुए उसमें गैरकानूनी तरीके से करंट लगा दिया जाता है। इससे जानवरों ही नहीं मनुष्यों की मौत भी हो जाती है। छत्तीसगढ़ में कई हाथी और अन्य वन्यप्राणी इसके चलते हर साल मारे जाते हैं।

पर अब जब किसान और खेती राजनीति के केंद्र में आ रही हो तो देश दुनिया में इस दिशा में होने वाले शोध और अविष्कारों पर भी नजर रखनी चाहिए। जापान में रोबोटिक भेडिय़े खेतों में लगाए जा रहे हैं, जो सोलर पावर से चलते हैं। कोई जानवर खेतों के आसपास फटकता है तो इसकी लाल एलईडी आंखें चमक जाती है। यह असली भेडिय़ों से भी ज्यादा भयानक 60 डेसिबल में चीखें निकालता है, जब तक जानवर भाग न जाए। उपलब्ध जानकारी के अनुसार कीटों से बचाने के लिए भी विशेष प्रकार की ध्वनि इससे निकलती है। ध्वनि हर बार बदल जाती है ताकि जानवर डरना बंद मत करें।

कुछ दिन पहले इसी कॉलम पर कटघोरा के एक किसान की चर्चा हुई थी, जिसने इंटरनेट पर सर्च करके पता लगाया और एक मशीन मंगाई, जिसे खेत के बाड़ में जोड़ देने से 12 वोल्ट का डीसी करंट प्रवाहित होता है। यह भी सोलर पॉवर से ही चलता है। इससे हाथियों से बचाव हो रहा है। हाथियों को कोई नुकसान नहीं होता, हल्का झटका लगने पर वे पीछे हट जाते हैं।

इस रोबोटिक वोल्फ का विवरण भी इंटरनेट से ही मिला है, पर यह अभी भारतीय बाजार में उपलब्ध नहीं है। इसकी जानकारी एक किसान ने अपने सोशल मीडिया पेज पर साझा करते हुए सरकार से अपेक्षा की है कि ऐसे उपकरणों को अपने देश में भी किसानों के लिए उपलब्ध कराना चाहिए और अन्य कृषि उपकरणों की तरह इस पर भी अनुदान मिलना चाहिए।

पढ़ाई का दोहरा नुकसान

विधानसभा, लोकसभा चुनाव जब भी होते हैं, स्कूलों की पढ़ाई को बहुत नुकसान होता है। शिक्षकों की चुनाव ड्यूटी लग जाती है, स्कूलों में ताले लग जाते हैं। इनमें से अधिकांश बूथ बना दिये जाते हैं। पर दूसरी समस्या उन छात्रों को हो रही है जो पढ़ाई को लेकर गंभीर हैं और छुट्टी के दौरान घर पर पढ़ाई करने का मन बनाते हैं। जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है हर गली मोहल्ले में प्रचार गाडिय़ां घूम रही हैं। चुनाव आयोग और छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट की सख्ती के बाद पुलिस ने हाल के दिनों में डीजे और तेज साउंड वाली गाडिय़ों पर तो कुछ सख्ती दिखाई है, पर जो छोटी गाड़ी आटो रिक्शा और कैब में प्रचार करते हुए चल रही हैं, वे भी ध्वनि प्रदूषण फैला रहे हैं। कई बार तो एक चौराहे पर दो-दो तीन गाडिय़ां खड़ी होती हैं, और सब पर नारे, गाने, भाषण चल रहे होते हैं। चूंकि प्राय: सब गाडिय़ां निर्वाचन कार्यालयों से अनुमति लेकर ही चल रही हैं, इसलिये इन पर कोई कार्रवाई भी नहीं हो रही है। लोग गिन रहे हैं कि उनके इलाके में प्रचार की आखिरी तारीख कब है।

जेसीसी की टिकट के लिए मारामारी

मुंगेली जिले की लोरमी सीट वैसे भी हाईप्रोफाइल सीट है, क्योंकि यहां से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव मैदान में हैं। पर एक दूसरे मायने में भी यह खास सीट हो गई क्योंकि यहां जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के दो-दो बी फार्म धारक उम्मीदवार रिटर्निंग ऑफिसर के पास पहुंच गए। जेसीसी से मनीष त्रिपाठी चुनाव लडऩे की तैयारी साल भर से कर रहे थे। उनका नाम लगभग फाइनल कर भी दिया गया था। पर अचानक जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सागर सिंह बैस ने अपनी पार्टी से बगावत कर दी। वे जेसीसी में आ गए और पार्टी ने उनके नाम भी बी फॉर्म जारी कर दिया। इधर त्रिपाठी ने दावा किया कि बी फॉर्म तो उनके नाम पर पहले से ही जारी हो चुका है। आखिरकार, पार्टी की ओर से बताया गया कि बैस को जारी किया गया फॉर्म ही सही है। त्रिपाठी ने कौन सा बी फॉर्म जमा किया है, उसे नहीं जानते वह असली नहीं है। अब मनीष त्रिपाठी मैदान में निर्दलीय उतर गए हैं। गौरतलब है कि सन् 2018 में यहां से जेसीसी को ही जीत मिली थी। पार्टी के विधायक धर्मजीत सिंह अब भाजपा की टिकट पर तखतपुर से लड़ रहे हैं। कुछ माह पहले तक यह समझा जा रहा था कि जेसीसी से लडऩे वाले नहीं मिलेंगे, वहीं आज लोरमी जैसी सीटें भी हैं, जहां टिकट नहीं मिलने पर बगावत हो गई।

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