राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : हवा के रूख वाला पजामा
27-Oct-2023 4:22 PM
राजपथ-जनपथ : हवा के रूख वाला पजामा

हवा के रूख वाला पजामा

चुनाव का माहौल ऐसा रहता है कि गरीब सरकार की तरफ टकटकी लगाकर देखते हैं कि उन्हें और क्या हासिल हो सकता है। दूसरी तरफ अमीर यह अंदाज लगाते हैं कि आने वाली सरकार में कौन सी पार्टी सत्ता पर रहेगी, कौन मुख्यमंत्री रहेंगे, कौन डिप्टी सीएम, या दूसरे ताकतवर मंत्री बनेंगे। ऐसे ही एक बड़े कारोबारी ने एक अनौपचारिक निजी चर्चा में एक संपादक से पूछा- अगली सरकार और विपक्ष में सबसे ताकतवर कौन तीन-तीन लोग रहेंगे जिन्हें कि इस बार चंदा दिया जाए? 

संपादक कुछ समझदार था, उसने कहा कि सातवां नाम मेरा लिखने को तैयार हों, तो मैं उसके पहले के छह नाम सुझा सकता हूं। अब कारोबारी हिसाब लगा रहे हैं कि एक सलाह का इतना दाम ठीक रहेगा या नहीं, जाहिर है कि बिना हिसाब लगाए तो वे इतने बड़े कारोबारी बने नहीं हैं। जिस तरह हवाई अड्डों पर हवा का रूख दिखाने के लिए एक पजामा सा बंधा रहता है जो कि हवा के साथ उड़ते रहता है, उसी तरह बड़े कारोबारियों के दिमाग में हमेशा ही हवा भरा पजामा फडफ़ड़ाते रहता है, और उसी के हिसाब से वे पजामा पहने आने वाले लोगों को आंकते हैं। 

चुनाव आयोग के हाथी दांत

चुनाव आयोग बड़े नेताओं को उनके हमलावर और भडक़ाऊ भाषणों पर नोटिस तो देता है, लेकिन नोटिस देकर शांत रह जाता है। कोई भी असरदार कार्रवाई तभी हो सकती है जब पहले भडक़ाऊ भाषण के बाद उस नेता का उस प्रदेश में दुबारा कार्यक्रम बैन हो जाए। इसी तरह प्रदेश या जिले के भीतर के स्थानीय नेताओं के ऐसे भडक़ावे पर उसी तरह मतदान तक जिलाबदर कर देना चाहिए जिस तरह आज छोटे-छोटे से संदिग्ध मुजरिमों को, या कि असहमत राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जिलाबदर किया जा रहा है। चुनाव आयोग अगर लोगों को पहले भडक़ावे के बाद ही इलाके से निकालना शुरू कर दे, तो हवा से जहर कुछ कम हो सकेगा। कहने के लिए तो चुनाव आयोग हाथी के दांतों की तरह बड़े-बड़े अधिकार दिखाता है, लेकिन उसका इस्तेमाल दिखावे से अधिक नहीं हो पाता है। 

सरमा को नोटिस, शाह को वह भी नहीं

भारत निर्वाचन आयोग ने कांग्रेस की शिकायत पर असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा को नोटिस जारी कर उनके उस बयान पर जवाब मांगा है जिसमें कहा था कि यदि एक अकबर कहीं आता है तो वह 100 अकबरों को बुलाता है। इन्हें रोकें अन्यथा कौशल्या माता की भूमि अपवित्र हो जाएगी। सरमा ने मुस्लिम शासक अकबर के नाम का उस जगह पर रूपक की तरह इस्तेमाल किया, जहां कांग्रेस प्रत्याशी का नाम मोहम्मद अकबर है।  

कांग्रेस ने इसके पहले एक और शिकायत केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ की थी। इसके मुताबिक राजनांदगांव की आमसभा में शाह ने कहा कि- भूपेश बघेल की सरकार ने तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति के लिए छत्तीसगढ़ के बेटे भुवनेश्वर साहू को लिंचिंग कर मार डाला।

कांग्रेस ने आयोग से सरमा की शिकायत 19 अक्टूबर को की थी और शाह के खिलाफ 16 अक्टूबर को। अब तक जो खबरें हैं, उसके अनुसार शाह से आयोग ने इस पहली शिकायत पर कोई जवाब नहीं मांगा है। सरमा को नोटिस तो जारी हो गई है पर कार्रवाई क्या होगी, यह अभी अंधेरे में है। आयोग को ऐसे मामलों में नोटिस देने और कार्रवाई के लिए कितना वक्त लेना चाहिए, इसे समझने के लिए सन् 2019 का एक वाकया याद किया जा सकता है।

लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी की एक रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुसलमानों से अपील की कि वे अपना वोट न बंटने दें और गठबंधन के पक्ष में मतदान करें। इसके जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यदि कांग्रेस, बसपा, सपा के साथ अली हैं, तो हमारे साथ बजरंगबली हैं। इनकी शिकायत आयोग से हुई लेकिन उसने कार्रवाई के नाम पर इन भाषणों की केवल निंदा की और इन नेताओं को सावधानी से बोलने की नसीहत दी। तब प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जो अब राज्यसभा सदस्य हैं, की बेंच ने मामले को सुना। आयोग को फटकार लगी। कोर्ट ने कहा कि आयोग ऐसे भाषणों की निंदा करके पल्ला नहीं झाड़ सकता। आयोग को ऐसे बयानों पर कार्रवाई के लिए समय भी नहीं लेना चाहिए। वह ठोस कार्रवाई कर अपना जवाब दाखिल करे। तब आयोग ने योगी आदित्यनाथ पर 72 घंटे और मायावती पर 48 घंटे तक प्रचार करने और भाषण देने पर रोक लगाई।

आज पांच साल बाद सुप्रीम कोर्ट की वह नसीहत और फटकार आयोग के ध्यान में पता नहीं, है भी या नहीं। अपने छत्तीसगढ़ में सरमा और शाह को भाषण दिये कई दिन बीत चुके हैं। सरमा छत्तीसगढ़ का दौरा करके, सभाएं और प्रेस वार्ता लेकर तीसरी बार जा चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह भी फिर चुनावी सभा लेने आ रहे हैं।

प्रबल के बल को भी टिकट...

स्व. दिलीप सिंह जूदेव के घर वापसी अभियान से जुड़े दो प्रत्याशी बिलासपुर की सीटों पर उतारे गए हैं। कोटा विधानसभा से जूदेव के बेटे प्रबल प्रताप को और बेलतरा से सुशांत शुक्ला को। सुशांत को टिकट मिलने से प्रबल प्रताप के सामने एक नई परेशानी खड़ी हो गई है। कोटा क्षेत्र उनके लिए अनजान सा है। घर वापसी अभियान के चलते विभिन्न कार्यक्रमों में पहले वे बिलासपुर और कोटा आते रहे हैं, पर जूदेव परिवार का यहां पर सबसे बड़ा सहयोगी सुशांत शुक्ला ही रहा है। प्रबल प्रताप इस भरोसे में थे कि सुशांत चुनाव अभियान की सारी जिम्मेदारी संभाल लेंगे। दौरे की रणनीति बनाएंगे, कार्यकर्ताओं से घुलने-मिलने में मदद करेंगे। अब जब खुद चुनाव लड़ रहे हैं तो सुशांत उनके लिए वक्त देने से रहे। अपने इलाके में व्यस्त हो गए हैं। अब प्रबल प्रताप विशुद्ध रूप से कोटा के कार्यकर्ताओं और जशपुर से आए समर्थकों के भरोसे रह गए हैं।

कांग्रेस की बी-टीम

सारी तैयारी, कार्यकर्ताओं का जोश , एक विकल्प के रूप में मतदाताओं की सोच सब धरी के धरी रह गई । हम आप पार्टी की बात कर रहे हैं । अगस्त- सितंबर तक सब कुछ बेहतर चल रहा था। एक एक गांव ,ब्लाक स्तर पर पार्टी की इकाइयां बन गई थीं। वार्ड प्रभारी, बीस बूथ प्रभारी,उन पर एक सर्किल प्रभारी जैसे 2.33 लाख नेतृत्वकर्ताओं की ग्राउंड टीम भी बना ली गई। स्व. वीसी शुक्ल,स्व.अजीत जोगी की पार्टी के 6 प्रतिशत वोटों के लिए विकल्प बनने की तैयारी में  मजबूती से आगे बढ़ रही थी। दोनों सीएम आए, बड़े बड़े सम्मेलन किए। नौ नौ मैदानी गारंटी दिए और एक बस्तर गारंटी। सांसद, दिल्ली-पंजाब के मंत्रियों के दौरे होने लगे। इसी बीच एक के बाद एक चार सूचियों में 43 प्रत्याशी भी घोषित किए गए। 

जब मध्य छत्तीसगढ़ की 47 सीटों की बारी आई तो।उसके बाद आया भारत बनाम इंडिया का मुद्दा। और केजरीवाल ने अपनी गारंटियों को तिलांजलि देकर  कांग्रेस की बी -टीम बनना स्वीकार कर लिया। ऐसा होनेवाला है, यह बात हमने काफी पहले बता दी थी। और कल रात हुआ भी यही फैसला। उसके बाद से कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश घर कर गया है। राष्ट्रीय नेतृत्व को तरह तरह की संज्ञा, सर्वनाम,विशेषण दे रहे हैं। इसका असर भगवंत मान के राजधानी में होने वाले रोड शो में देखने को मिलेगा ।

किस्मत से मिलती है टिकट

विधायक बनने की लालसा तो हर किसी की हो सकती है, लेकिन यह आसान नहीं होता। विधायक बनना बाद की बात होती है, पहले तो टिकट मिलना किस्मत की बात होती है। कई आईएएस अधिकारी से लेकर कवि और नेता कतार में रहते हैं पर किस्मत होती है, तभी टिकट मिलती है। टिकट मिल गई तो उसके बाद जनता का विश्वास हासिल करना होता है।

ऐसे ही एक पद्मश्री कवि महोदय टिकट के इंतजार में थे, लेकिन न तो पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट हासिल कर पाए और न ही अब। कुछ यही हाल चर्चित आबकारी अधिकारी रहे आईएएस का रहा। बड़े लाव लश्कर के साथ दिल्ली में भाजपा प्रवेश किये थे, एयरपोर्ट से राजधानी तक भव्य स्वागत करवाकर शक्ति प्रदर्शन किया, धरसींवा से लडऩा चाहते थे, लेकिन हसरत अधूरी रह गई।

ऐसे ही दूसरी पार्टी से चुनाव लडक़र दूसरे नंबर पर रही महिला नेत्री ने टिकट की आस में कांग्रेस प्रवेश किया, पर आस अधूरी रह गई। अब वह पुरानी पार्टी में भी नहीं जा पा रही। ऐसे अनेकों है जिनके अरमान अधूरे रह जाते हैं, न यहां के होते हैं न वहां के।

नन्हीं रिपोर्टर की छोटी अपील

संकट मोचन मार्ग अंबिकापुर की एक छोटी बच्ची शानी त्रिपाठी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वह अपने छोटे भाई के साथ अपने घर के सामने है। उखड़ी हुई सडक़ की गिट्टी पैरों से उछालकर बता रही है कि यह कितना खतरनाक है। उसे साइकिल चलाते नहीं बनता, चोट आ जाती है। कोई गाड़ी यहां से गुजरे तो ऐसी धूल उड़ती है कि कोई चल सकता। रोड गायब है, गिट्टियां बच गई हैं। इसके बाद वह नाली का दर्शन कराती है, जो पूरी खुली पड़ी है। बहुत दिनों से जाम है और इसके चलते आसपास के लोग मच्छरों से परेशान है। बच्ची की बातों से यह लगता है कि वह किसी के इशारे पर नहीं बोल रही है। बातें उसके दिल दिमाग से ही निकल रही है।

चुनाव का मौसम है इसलिए ऐसा लग सकता है कि यह वीडियो किसी राजनीतिक मकसद से तैयार किया गया होगा। मगर वह देखने वालों से हाथ जोडक़र निवेदन कर रही है कि आपसे हो सकता है तो सडक़ बनवा दें, नाली साफ करा दें।

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