बेमेतरा
![वटवृक्ष की 108 बार परिक्रमा कर परिवार की खुशहाली की कामना वटवृक्ष की 108 बार परिक्रमा कर परिवार की खुशहाली की कामना](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1717754427188.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 7 जून। गुरुवार को जिले में वट सावित्री का पर्व महिलाओं ने मनाया। महिलाओं ने व्रत रखकर दोपहर में बरगद के पेड़ की पूजा की। जिन-जिन स्थानों पर बरगद के पेड़ थे, वहां-वहां महिलाओं ने पहुंचकर वट वृक्ष की परिक्रमा लगाई और कच्चा सूत भी बांधा। अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना करते हुए महिलाओं ने व्रत रखा और सुबह से ही निर्जला व्रत रखकर पूजा समाप्ति के बाद ही कुछ ग्रहण किया।
पंडितों ने बताया कि सावित्री और सत्यवान की कथा इस दिन सुनाई जाती है। दरअसल ये सावित्री का ही प्रताप था, जिसके कारण विवश होकर यमराज को सावित्री के पति सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े। इसी पौराणिक मान्यता को मानते हुए महिलाएं इस व्रत को धारण करती हैं। इस व्रत को धारण करने में किसी भी प्रकार का जाति बंधन नहीं है, जिसके कारण सभी महिलाएं विधि-विधान से इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।
गुरूवार को सुहागिन महिलाओं ने व्रत रखकर विधि-विधान से बरगद के पेड़ की पूजा की। वट सावित्री पर सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रख कर बरगद पेड़ की पूजा की और कच्चा सूत बांधकर परिक्रमा लगाई। मान्यता के अनुसार यह त्यौहार सावित्री को समर्पित है। मान्यता है कि ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचाए थे। तभी से इस दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रत करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। विधि-विधान से पूजा अर्चना के साथ वट सावित्री व्रत कथा भी महिलाओं ने सुनी।
नगर व गांवों में उत्साह के साथ की पूजा-अर्चना
वट सवित्री पर महिलाओं ने घर व मंदिरों में वटवृक्ष की पूजा-अर्चना की। शहर के पिकरी, मानपुर, सुन्दरनगर, मोहभ_ा, ब्राह्मणपारा, गंजपारा, कृष्णा विहार कॉलोनी, प्रोफेसर कॉलोनी समेत कई स्थानों व तालाब में वटवृक्ष की पूजा अर्चना की। पंडित श्रीनिवास द्विवेदी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार मद्रदेश में अश्वपति की कन्या का नाम सावित्री था, जिनके द्वारा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पतिरूप में वरण किया गया। सत्यवान के पिता भी राजा थे परंतु उनका राज-पाठ छिन गया था, जिसके कारण वे लोग बहुत ही द्ररिद्रता में जीवन व्यतीत कर रहे थे।
सत्यवान के माता-पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी। सत्यवान जंगल से लकड़ी काटकर लाते और उन्हें बेचकर जैसे-तैसे अपना गुजारा करते थे। जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली तब नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी, जिसके बाद सावित्री के पिता नें उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन सावित्री यह सब जानने के बाद भी अपने निर्णय पर अडिग रही। अंतत: सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। इसके बाद सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लग गई। अंत में पति की जान बचाई। अंचल में आज उपवास रख सुहागिनों ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर त्यौहार मनाया।